Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________ अस्ति सा112 10- 38006 सप्रेम-समर्पण श्री शत्रुजय गिरिराज की छ? तप करके 7 यात्रा 2 बार करने वाले एवं श्री सम्मेतशिखरजी की प्रतिष्ठा प्रादि विविध शासन प्रभावना करने वाले, निस्पृही, विवेकी, मधुरभाषी, तपस्वी, संयमी आदि अनेक गुणालंकृतः पूज्यपाद प्राचार्यदेव श्रीमद् कैलाश सागर सूरीश्वरजी महाराज साहब के कर कमलों में यह चरित्र हार्दिक श्रद्धापूर्वक समर्पित आपका : जयपद्मविजय की कोटिशः वंदना TRA ..SN P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________ आभार. -050 पूज्या साध्वी श्री हेतोजी म०, श्राहोर / 30 पूज्य मुनिराज श्री महोदयसागरजी म०, जबलपुर / 25 पूज्या साध्वी श्री दानश्रीजी, यशोधराश्रीजी म., सांढेराव / 7 >> >> क्षमाश्रीजी म०, आहोर। 10 श्री सरस्वती पुस्तक भंडार रतनपोल, अहमदावाद 1. / 8 शा० नारायणजी कानजी, हुबली। 7 शा० छोगालाल धनाजी ओसवाल, पंचगनी। 7 , भुरमल " " " 7 , पेराजमल चन्द्राजी, मुदेबिहाल / , मोहनलाल दलीचन्द, बड़गांव। . , दलीचन्द चुनीलाल राठोड़, गोकाक / 7 ., गंगाराम हरीचन्द, बतीशीराला / " गणपतलाल खाजीशाह, एकसंभा / ,, हंशाजी अचलाजी, संखेश्वर / " माणकचन्दजी हीराचन्दजी, हुबली / 7 " नाराणजी सामजी मोता। 7 , कुन्दनमल, गणेशमल, बाबुलाल, धनराजजो, गदग / 6 6 6 6 6 ली० शा० मोतीचन्द नरशी धर्मसिंह हुबली. 20. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________ CM - म. महावार an BRUW __ // श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथाय नमः / / * प्री गौतम स्वामिने नमः * पू० आ० देव श्री सिद्धर्षि गणि कृत श्री श्रीचन्द्र' केवलि चरित्र द्वितीय भाग मंगलं भगवान् वीरो, मंगलं गौतमः प्रभुः / मंगलं स्थूलभद्राद्या, जैनो धर्मोऽस्तु मंगलम् // [ तृतीय खराड ] चन्द्र के समान कान्तिवान प्रतापसिंह राजा का पुत्र श्री 'श्रीचन्द्र घूमते हुए तथा देखने वालों को आनन्द देते हुए कभी घोड़े पर, कभी . माड़ी पर, किसी जगह पैदल, कभी दिन में, कभी रात में, श्री परमेष्ठी महामन्त्र के पद के ध्यान से पूर्व पुण्य के प्रताप से और गुरु की दी मा.श्री. कैलाससागर सरि ज्ञान दिर श्री महावीर जैन आराधना , कोवा . P.P. Ac. GMT.ashas Jun Gun Aaradhak Trust
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________ हुई औषधी के कारण सब जगह विजयी हुा / ... एक समय एक वनिक को सोना मोहर दी और उसके यहां भोजन करके बाकी पैसे लिये बिना रवाना हो गए। हमेशा 5-7 मनुष्यों के साथ ही भोजन किया करते थे। अकेले कभी भोजन नहीं करते, जंगल में भूले भटके मुसाफिरों को धन की मदद देते थे / एक बार श्री 'श्रीचन्द्र' वृक्ष पर बैठे हुए होते हैं, उसी समय चन्द्रमा के प्रकाश में एक मनुष्य की छाया दिखाई देती है परन्तु मनुष्य कोई नजर नहीं आता। श्री 'श्रीचन्द्र' ने सोचा कि यह जो पुरुष है वह अंजन गोली से सिद्ध हुअा लगता है और वह किसी भारी वस्तु को ले जाता हुआ नजर आ रहा है। यह कौन है ? उसे देखने की इच्छा से बुद्धिशाली 'श्रीचन्द्र' वृक्ष से नीचे उतर कर उस छाया के पीछे 2 चलने लगे / आगे जाकर बहुत वृक्षों की छाया में वह छाया अदृश्य हो गई / 'श्रीचन्द्र' वहां कुछ क्षण रुके पौर सूर्य के उदय होने पर अपनी तीक्ष्ण बुद्धि से उस छाया वाले मनुष्य के पद चिन्ह खोज निकाले / उन पद चिन्हों के अनुसार चलने पर एक बहुत बड़े विशाल पर्वत में एक ऊंची शिला को देखा। उसके बीच के भाग में प्रवेश करते हुए और बाहर निकलते हुए मनुष्य के पद चिन्ह देखे / बाद में नजदीक में जो जल कुण था उसकी खोखल में फल मोर जल से तृप्त होकर गुफा की ओर एक टक देखते ही रहे / . तीसरे पहर में गुफा के मध्य भाग में से शिला को उठा कर एक पुरुष बाहर माया वह बादली रंग के वस्त्रों से सुशोभित, शस्त्र से P.PR..Sanratnasuri M.S.'. -Jun-Gun Aaradhak Trust
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________ सज्जित और पान चवा रहा था। उसने जलकुण्ड के पास जाकर पानी पीया और जल लेक र गुफा में चला गया और वहां जल रखकर पहले की तरह बाहर आया और गुफा के आगे शिला रखकर बावड़ी के जल से मुह को साफ करके मुह में अद्भुत गोली रखते ही वह व्यक्ति अदृश्य होगया पहले ही की तरह धूप में उस मनुष्य की छाया दिखाई दी। छाया दूर गई ऐसा जानकर 'श्रीचन्द्र' गुफा के आगे से भारी शिला को उठा कर अन्दर प्रवेश कर गये / गुफा के अन्दर कंचन और रत्नों से भरपूर एक महल के बीच में प्रौढ़ उम्र की स्त्री को देखा और नमस्कार करके कहने लगा, 'हे बहन ! तुम यहां अकेली कौन हो ?' प्रांखों में आंसू लाती हुई वह कहने लगी, 'हे उत्तम पुरुष ! नायक नगर में ब्राह्मण सार्थवाह लोग रहते हैं। वहां का राजा भी ब्राह्मण है और रविदत्त मंत्री भी ब्राह्मण है, उसी की मैं शिवमती नाम की पत्नि हूँ / राज्य के रक्षा के लिये पूरा बंदोबस्त होते हुए भी हमेशा चोरिये हुआ करती थीं। जिससे नगर के लोगों ने राजा से कहा कि अगर आपसे राज्य की रक्षा नहीं हो सकती हो तो हम कुश स्थल के राजा से रक्षा के लिए प्रार्थना करें।' राजा ने कुछ भय से व्याकुल होकर लोगों का सम्मान करके कोतवाल को बुलाकर गुस्से से उपालम्भ दिया / कोतवाल ने कहा 'राजन् कोई सिद्ध चोर है ऐसा दिखता है, प्राज रात मैं उसे . खोज निकालूगा। कोतवाल ने रात को बहुत छान बीन की परन्तु चोर P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________ तो मिला ही नहीं / चोर ने जब यह बात जानी तो उसने कोतवाल के घर ही उस रात चोरी की। इस प्रकार जो कोई भी उसे पकड़ने की प्रतिज्ञा करता उसके घर ही चोर चोरी करने जाता। एक बार रविदत्त मन्त्री ने भी अपने घर को खाली करा कर चोर को पकड़ने की प्रतिज्ञा की। तथा रात्रि को सब जगह चोर की खोज करने लगा परन्तु चोर का कोई पता नहीं चला। पता नहीं चला। चोर जब मंत्री के घर गया और वहां उसे कुछ भी नहीं मिला जिससे वह क्रोधित होकर मेरे मुह तथा हाथों को बांधा और कंधे पर डाल कर अपने यहां ले आया। फिर कहने लगा हे भद्रे ! मैं रत्नखुर घोर हूं। मैंने कहा कि भैया मैं तो कुछ भी नहीं जानती हूं। - इस प्रकार प्रतिदिन किसी समय दृश्य और किसी समय अदृश्य होकर इस समय रोज आता है और कुछ रात्रि रहती है तब लौट जाता है। तीन दिन होगये हैं मैं अपने छोटे पुत्र के वियोग में बहुत दुःखी हूँ। तुम कौन हो ? क्या मेरा भाग्य ही तुम्हें यहां ले माया है ? श्रीचन्द्र ने कहा कि "मैं अवधूत हूं" तब शिवमती ने कहा कि हे भद्र ! अगर तुम इस पापी के पंजे से मुझे मुक्त करोगे तो मेरी मुक्ति का और मुझे पुत्र मिलाप कराने का इस प्रकार दोनों ही दानों का फल तुम्हें प्राप्त होगा। 'श्रीचन्द्र शिवमती को गुफा के बाहर ले आया और उसे उसके घर पहुंचा पाया। रविदत्त मंत्री ने भी 'श्रीचन्द्र' की बहुत प्रशंसा की और शिवमती ने भी यथा योग्य सन्मान कर कुछ भेंट दी P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________ परन्तु 'श्रीचन्द्र' ने वस्त्र और धन लेने से इन्कार कर दिया तब शिवमती ने अपनी यादगार रूप में एक अंगूठी जबरदस्ती भेंट की / बाद में सूक्ष्म दृष्टि वाले 'श्रीचन्द्र' चोर के पद चिन्हों के अनुसार गुफा के पास एक वृक्ष पर बैठ गये। इतने में ही कुछ मनुष्यों और उस चोर को आते हुए देखा। चोर ने आकर 'श्रीचन्द्र से उसका नाम पूछा। 'श्रीचन्द्र' ने कहा 'मेरा नाम लक्ष्मीचन्द है।' चोर ने कहा 'मेरा नाम रत्नाकर है / ' 'श्रीचन्द्र' ने मन में ऐसा सोचा कि अगर चोर कहे कि मैं गुफा के द्वार को खोलू फिर पूछने लगा कि हे मित्र ! तुम आज चिंतातुर क्यों दिखाई दे रहे हो ? चोर कुछ सोच कर कहने लगा था इतने में ही दुसरे और पांच मुसाफिर आकर उसी वृक्ष की छाया में बैठकर परस्पर बातचीत करने लगे। . सूक्ष्म बुद्धि से यह जानकर कि चोर के सिर पर जो पगड़ी है उसके पल्ले पर अदृश्यकारिणी गोली बंधी हुई है इसलिये 'श्रीचन्द्र' ने पांचों मनुष्यों की साक्षी में शतं लगाई कि दोनों की पगड़ी शिला के नीचे रख दें जो अपने दोनों में से शिला के नीचे से पगड़ी निकालेगा उसे पगड़ियों के पल्लों में जो कुछ बंधा हुआ है सब कुछ मिलेगा / धन के लालच में चोर ने शर्त स्वीकार कर ली मोर पगड़ी को निकालने के लिये भरसक प्रयत्न किया लेकिन शिला टस से मस नहीं हुई। / / बाद में श्रीचन्द्र ने अपनी लीला से दोनों पगड़ियों को निकालं लिया और जीत की खुशी के उपलक्ष में आम लेकर थोड़ा 2 सबको बांट दिया। चोर सोचने लगा कि 'यह लक्ष्मीचंद तो गुफा के द्वार को P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________ भी खोल सकता है ?' इतने में तो नायकपुर नगर की तरफ बाजों की आवाज गूजने लगी। चोर यह सोच कर कि यह राजा की सेना है सबसे पहले भाग खड़ा हुआ और बाद में दुसरे पांच व्यक्ति भी भाग छूटे।. . . . .. . .... चोर की पगड़ी में से श्रीचन्द्र ने गोली निकाली और मुंह में रखकर अदृश्य हो वृक्ष पर बैठ. गये। इतने में रविदत्त मंत्री पद चिन्हों के जानकारों को साथ लेकर आया / उन लोगों ने एकाग्र चित्त से चिन्हों का निरीक्षण किया। वहां पद चिन्ह तो दिखाई देते थे परन्तु कोई मनुष्य दिखाई नहीं देता था। जिससे उन्होंने मन्त्री से कहा कि हे स्वामी ! क्या यहां कुछ संभव है ऐसी कौनसी शक्तिशाली पात्मा यहाँ माई होगी? उसकी सैनिकों द्वारा खोज कराइये / चारों तरफ से सेना ने छान बीन की लेकिन वापिस खाली हाथ रात्रि को नगर में लौट पाई। बाद में श्रीचन्द्र ने अपने इच्छित स्थल की ओर प्रयाण किया। .पूर्व पुण्य के प्रताप से श्रीचन्द्र को चारों तरफ जहां जाते हैं संपत्ति ही प्राप्त होती है। यात्रा में उन्हें स्वर्ण पुरुष प्राप्त हुआ। मदृश्य होने वाली गुटिका के कारण श्रीचन्द्र बहुत प्रभावशाली बन गये। रास्ते में एक कुटिया में बहुत से मनुष्यों को बातें करते सुना कि कुशस्थल के राजा प्रतापसिंह और सूर्यवती पट्टराणी के पुत्र कुल में चन्द्रमा के सदृश्य ऐसे श्री श्रीचन्द्र' जय को प्राप्त हों।... : .. सिंहपुर के श्रेष्ठ सुभगांग राजा की पुत्री पद्मिनी चन्द्रकला P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________ 8 7 * जिसने पूर्व भव के स्नेह के कारण श्रीचन्द्र से विवाह किया वे श्रीचन्द्र जय को प्राप्त हों। इत्यादि तरह 2 की बातें कर रहे थे। किसी ने कहा कि श्रीचन्द्र तो सेठ पुत्र हैं परन्तु तुम राजपुत्र कैसे कह रहे हो ? दुसरे ने कहा कि मैं जब कुशस्थल में था तब पद्मिनी चन्द्रकला का नगर प्रवेश हुआ, श्रीचन्द्र ने वीणारव को दान दिया सबको बड़े प्रादर से भोजन करवाया। उसके बाद दूसरे दिन बिना किसी को कहे विदेश चले गये / कुछ ही दिनों में ज्ञानी महाराज वहां आये उन्होंने अपने मुखाविन्द से फरमाया कि श्रीचन्द्र प्रतापसिंह और सूर्यवती के पुत्र हैं और वह विदेश भ्रमण के लिये गये हैं। एक वर्ष बाद राजा और रानी से मिलेंगे / ऐसा जानकर राजा और रानी आदि सवको जानकर बहुत प्रसन्नता हुई। सब कवि भाट भी इसी प्रकार से स्तवना करते हैं। . . - इन सब बातों को सुनकर श्रीचन्द्र बहुत आनन्दित हुए / और सोचने लगे ये सब बातें ज्ञानी महाराज ही जान सकते हैं। उस शुभ संदेश सुनाने वाले को बहुत सा दान दिया तथा दूसरों को घी और गुड़ देकर उसी वेश में प्रागे के लिये रवाना हो गये। किसी जगह दृश्यमान होकर और कहों अदृश्य होकर चलते हुए एक भयंकर जंगल में पहुंचे / रात्रि व्यतीत करने के लिये एक बड़े वृक्ष के नीचे अपना डेरा डाल दिया। उस वृक्ष पर तोतों का स्थान था। रात्रि शुरु होते ही सब दाना चुग 2 कर आगये। वे सब आपस में हंसी खुशी से तरह 2 की बातें करने लगे। उनमें से एक ने पूछा अच्छा यह बताओ कि कौन 2 कहां 2 गया था। उनमें से एक बृद्ध तोता पो 3 P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________ . दिन बाद आया वह बोला-'हे वत्स ! पूर्व दिशा में महेन्द्रपुर नगर में त्रिलोचन राजा राज्य करता है उसके गुणसुन्दरी नाम की एक __ सुशीला रानी है। उनके रूप और गुणों से सुशोभित सुलोचना नाम की एक पुत्री है, परन्तु वह जन्म से अन्धी है। चौसठ कलाओं से युक्त युवावस्था को प्राप्त हुई वह राजकुमारी हृदय रूपी दृष्टि से नाम श्लोक प्रादि लिख लेती है। त्रिलोचन राजा ने मन्त्रियों की सलाह से पटह मजवाया है कि जो कोई भी सुलोचना को देखती करेगा उसे प्राधा राज्य तथा कन्या दे दूंगा। इस पटह को बजते आज पांच महिने हो गये हैं अब पता नहीं सुलोचना के भाग्य में क्या लिखा है / छोटे 2 तोतों ने पूछा 'पिताजी वह अन्धी पुत्री देखती हो जाये ऐसी औषधी कहां मिलेगी।' बूढ़े तोते ने कहा कि किसी बड़े वन में हो सकती है।' तब उन्होंने कहा कि 'क्या इस बन में है ?' बूढ़े तोते ने कहा कि होसकती है परन्तु यह बात गुप्त रखने योग्य है इसलिये रात्रि को नहीं कही जा सकती।' बच्चों के हठ से वृद्ध तोते ने कहा कि "इस वृक्ष के मूल में दो प्रभावशाली बेलें हैं / एक विशाल पान की अमृत संजीवनी बेल अन्धे को देखता करती है और दूसरी घाव हरणी गोल पान की बेल है जो घाव को तुरन्त भर देती है।' उस वार्तालाप को सुनकर परोपकारी राजकुमार ने हर्ष से दोनों प्रौषधियों की बेलें ली और पूर्व दिशा की मोर रवाना होगया। तीन दिन चलने के पश्चात् एक सुनसान देश में पहुँचा। वहां एक शून्य नगर था / उसमें बाग, सरोवर, बावड़ी और वृक्ष भी थे, केचे 2 किल्लों, महलों से और मोहल्लों से वह शहर बहुत सुन्दर दिखाई दे रहा था परन्तु सबसे बड़ी कमी यह थी कि वह बिना राजा का था। अन्दर बाहर सब जगह सुनसान थी / राजकुमार को P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________ * : * बहुत आश्चर्य हुआ, श्रीचन्द्र उस नगर में प्रवेश करने ही वाला था इतने में एक तोती उड़ती हुई घबराई हुई सी वहां पाई और कहने लगी, 'हे मुसाफिर ! इस नगर में मत जानो। इस नगर में जाने वाले को विघ्न पाता है। श्रीचन्द्र ने पूछा कि 'इस नगर और यहां के राजा का क्या नाम . है ? यह नगर शून्य किस तरह हो गया है ? यहां किसका डर है ?' तोती बोली कि 'कुन्डलाचल देश में प्रसिद्ध कुन्डलपुर नाम का यह नगर है यहां अर्जुन नाम का राजा राज्य करता था / उसके पांच रानियां थीं। मुख्य रानी का नाम सुरसुन्दरी था। कुन्डलपुर में 6-7 दिन में एक चोरी हो जाया करती थी। कोतवाल आदि चोर की खोज करते पर चोर पकड़ में नहीं आता था एक रात राजा चोर को पकड़ने निकला। रास्ते में राजा ने किसी को घुमते हुए देखा, राजा ने चुपचाप उसका पीछा किया। चोर समझ गया कि राजा उसका पीछा कर रहा है / चोर ने नगर के बाहर आकर राजा की नजर से बचकर किसी एक मठ के अन्दर जाकर चोरी किया हुअा रत्नों का डिब्बा सोये हुए परिव्राजक के पास रखकर परिव्राजक का वेश पहन क अदृश्य हो गया / जब प्रातःकाल हुया तब अर्जुन राजा ने उस परिव्राजक को चोर समझकर पकड़ लिया और उसे मरवा डाला / वह मृत्यु के बाद राक्षस हुा / " वदला लेने की भावना से उस राक्षस ने यहां के राजा को मार P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 10 10 दिया। नगर के सारे लोग राक्षस के डर से सब कुछ छोड़ कर भा गए। पांचों रानियों का अंतपुर में रक्षण करता है, उनमें से गुणवत रानी सगर्भा थी, उसके पुत्र होगा तो उसको मैं मार डालू ऐसी राक्षस की इच्छा थी। दैवयोग से पुत्री का जन्म हुआ। उसक नाम चन्द्रमुखी रखा, अब उसका भविष्य क्या है यह मैं नहीं जानती जो कोई भी नगर में प्रवेश करता है उसको राक्षस मार डालता है।' ... तोती के मुख से सारा वृतांत सुनकर श्री श्रीचन्द्र' नगर में गए। , राजकुमार ने सारे राजमहल को देखा, बाद में राज-सभा में आकर कोमल वस्त्र से ढ़के हुये तथा घूमते हुये पलंग को देखकर अनुमान . लगाया कि यह राक्षस का ही पलंग होगा, अपनी शरीर की थकान को दूर करने के लिये श्रीचन्द्र आत्म रक्षक नमस्कार मंत्र से शरीर की रक्षा कर पलंग पर निर्भयता से सो गये। नगर में मनुष्य के पद चिन्हों को देख कर राक्षस बहुत क्रोधित हुआ। उसी समय महल में आया, पलग में आराम से सोते हुये श्रीचन्द्र को देखकर मन में सोचने लगा 'अद्भुत वीररस से युक्त और अत्यन्त तेजस्वी यह कौन है ? बडे धैर्य से मेरी शैया पर कौन सो रहा है ? यहां कैसे आया होगा ? किस प्रकार सो गया होगा ? क्या इसको उठा कर समुद्र में फेंक दूं? या तलवार से टुकडे 2 कर दूं या दड से पलँग सहित इसका चूरा कर दू? केसरीसिंह की जगह सियाल किस प्रकार रह सकता है ? 'ह दुष्टात्मा ! तू जल्दी से खड़ा हो जा, तू मेरे से डरता क्यों नहीं ? राक्षस की धमकी से श्रीचन्द्र ने जागृत होकर कहा कि 'तुझे Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 111 क्या काम है ? नकली आडंबर युक्त तू कौन है ? क्या तेरे पुरुषार्थ का : तुझे गर्व है ? अपना विशाल पेट और अपनी भयंकर आंखें किसे दिखा रहा है ? तुझे अपने क्रूर कर्मों से अभी भी तृप्ति नहीं हुई है ? पलंग पर मैं अपनी शक्ति तथा सत्व से बैठा हूँ। जैसे-तसे बोलते हुये तेरे में सज्जनता नहीं दिखाई देती। सदाचारी सुशीला रानियों को तूने कैद कर रखा है, अगर तुझे ठीक तरह रहना हो तो रह नहीं तो इसी क्षण रवाना होजा। तू शस्त्र से युक्त है और मैं शस्त्र बिना का हूँ। तू मनुष्य नहीं है इसलिये तुझे मारता नहीं हूँ।' . श्रीचन्द्र के अचित्य प्रभाव से अपना तेज खतम हो गया है ऐस . जानकर राक्षस ने शांत होकर कहा कि, “मैं तेरे साहस पर तुझ से सन्तुष्ट हुआ हूँ, इसलिये तू कुछ भी मांग / ' श्रीचन्द्र ने मजाक से कहा कि, 'मेरे नेत्रों की शान्ति के लिये मेरे पैर के तलुवों की दोनों हाथों से मालिश कर / ' सर्व लक्षण संपन्न जानकर राक्षस ने चरण स्पर्श किये ही थे कि जल्दी से राक्षस के दोनों हाथों को अपने हाथों में ले बड़े विनय से श्रीचन्द्र ने नमस्कार किया। राक्षस श्रीचन्द्र के चरणों में झुक पड़ा। उन्होंने आपस में जो कुछ कहा था उसके लिये क्षमायाचना की और बहुत प्रसन्नता अनुभव करने लगे / . श्रीचन्द्र ने राक्षस से कहा कि, अगर तुम सचमुच मुझ पर प्रसन्न हो तो आज से प्राणी वध के पाप को छोड़ दो और धर्म बुद्धि को प्रहण करो। राक्षस ने अति हर्ष से यह बात स्वीकार की। धर्म का दान करने वाले परम उपकारी जानकर सविशेष संतुष्ट होकर राक्षस ने P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 12 10 कहा कि 'हे धीर पुरुष ! इस राज्य का तुम उद्धार करो। राक्षस ने रानियों से कहा कि, 'हे रानियों ! तुम्हारे और मेरे भाग्य से कोई पुण्यात्मा यहां आयी है। पाज से तुम मेरी बहनों के समान हो, मेरे दुष्ट वचनों को जो कि मैं पहले बोल चुका हूं उसे तुम क्षमा करदो। मैंने इस व्यक्ति को महात्मा, धीर तथा गंभीर पुरुष जानकर यह राज्य इन्हें अषित कर दिया है। ___ तब श्रीचन्द्र ने कहा कि 'हे माताओं ! आपके कुल में इस राज्य को संभाल सकने वाला कोई है ?' रानियों ने कहा कि 'हे वत्स ! जो कुछ राक्षस ने कहा है उसमें हम सहमत हैं / ' गुणवती रानी ने कहा कि मेरी पुत्री चन्द्र मुखी को तुम ग्रहण करो। श्रीचन्द्र ने कहा कि 'पाप लोग अज्ञात कुल शील वाले को कन्या क्यों सौंप रहे हैं।' इतने में सक्षस ने अपनी शक्ति द्वारा हाथियों, घोड़ों तथा सेना लोगों आदि को वहां प्रगट कर दिया तथा कन्या को भी ले आया। श्रीचन्द्र ने कहा कि हे राक्षस राज ! मुझे कन्या क्यों सौंप रहे हो? तुम्हें योग्य जानकर ही कन्या दी है, ऐसा राक्षस ने जवाब दिया / श्रीचन्द्र ने अपनी अंगूठी बतायी, नाम जानकर सबको बहुत खुशी हुई। राक्षस ने श्रीचन्द्र का नगर में राज्याभिषेक करके उसकी आज्ञा का विस्तार करके कहा, जिस पापी ने मेरे पास चोरी का माल रख कर मुझे मरवाया था उस वज्रखुर चोर को मैंने मार दिया है। .P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 13 10 "हे राजन् ! कुडलगिरि के मुख्य शिखर के मध्य में रत्न और सुवर्ण से भरपूर उसका महल है उसे तुम ग्रहण करो। राक्षस के वचन को स्वीकार कर श्रीचन्द्र ने वहां जाकर सब वस्तुप्रों को ग्रहण करली / उस महल के स्थान पर देवलोक से भी अद्भुत चन्द्रपुर नाम का एक नया नगर बसाया / उसके मध्य भाग में राक्षस के मन्दिर में चोर के शरीर के ऊपर राक्षस की प्रतिमा को स्थापित कर उसका नाम नरवाहन रखा / उसके बाद कुन्डलपुर नगर में आकर कुन्डलेश्वर कुछ दिन ठहर कर सास, पत्नि, सेनापति, सैनिकों आदियों को हित शिक्षा देकर अपनी पादुका सिंहासन पर स्थापित कर श्रीचन्द्र जिस छिपे वेश में आये थे उसी वेश में रात्रि के प्रथम पहर में आगे के लिये प्रयाण कर गये / अनुक्र म से महेन्द्रपुर के पास आए वहां रात्रि व्यतीत करने के लिये किसी वृक्ष के नीचे निद्राधीन हो गए, इतने में जिसने अवस्वापिनी विद्या से लोगों को निद्राधीन किया है ऐसा लोहखुर चोर चोरी करके भार से व्याकुल हुअा वहां पाया और कहने लगा ‘ह अवदूत ! इस भार को तू उठा ले मैं तुझे जमदुरी दे दूंगा / सत्ववानों में सिंह के समान श्रीचन्द्र उस भार को उठा कर चोर के पीछे 2 चले / लोहखुर ने एक गुफा में प्रवेश किया / गुफा के अन्दर भूमि में दीपों से देदीप्यमान रत्न और एक स्त्री थी। उस स्त्री को लोहखुर ने कहा इस पुरुष का तू.. मादर सत्कार कर। स्त्री ने कहा हे स्वामिन ! भोजन आदि करके मेरे साथ खेलो। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #16
--------------------------------------------------------------------------
________________ 14 . आश्चर्य से इन सब बातों को कपट जाल समझ कर श्रीचन्द्र ने उस स्त्री को बाहर खेंचा और क्रोधित होकर पूछा, "यह कौन है, और तू कौन _ स्त्री ने भयभीत होकर कहा यह लोहखुर चोर है और मैं इसके संकेत __ से इसकी पुत्री हूँ। लोहखुर को शिक्षा देकर और बाद में खुश होकर उस स्त्री को छुड़ा कर चोर को छोड़ दिया और रात्रि कहीं और जाकर व्यतीत की। प्रातःकाल अरिहंत भगवान का स्मरण करके महेन्द्रपुर नगर में प्रवेश किया। नगर में जाकर किसी सेठ की दुकान पर बैठ गये / उसी समय पटह बजने की आवाज सुनाई दी। इस पटह को बजते 6 महिने में 6 दिन कम है जो कोई व्यक्ति राजकन्या को देखती करेगा उसे निश्चय ही कन्या और राज्य मिलेगा। जिस प्रकार तोता रटी हुई बात बोलता रहता है उसी प्रकार सब बातें वह पटह वाला बोल गया। श्रीचन्द्र ने उसी समय पटह को स्पर्श किया पटह वाले ने यह हकीकत राजा से कही। राजा ने बड़ी खुशी से अवदत को छत्र, चामर, हाथी आदि सहित ले पाने का आदेश दिया। राजमहल में आकर राजा के दिये हुए आसन पर अवधूत बैठा त्रिलोचन राजा ने पूछा हे भद्र ! तुम कहां के रहने वाले हो ? श्रीचन्द्र ने कहा महाराज मैं कुशस्थल में रहता हूं / राजा ने कहा आपके चरण कमल आज मेरे नगर में पडे हैं मेरा अहो भाग्य है / पटह के अनुसार कन्या को देखती करके प्राधा राज्य स्वीकार करो / श्रीचन्द्र ने कहा यह तो ठीक है गुरुदेवों के प्रताप से मेरे पास विद्या, मंत्र और कुछ औषधियां हैं परन्तु कन्या को दिखाओ तब कुछ हो सके। , P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #17
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 15 10 .: राजा ने कन्या को बुलवाया / अवदूत ने कहा सभा को चारों ' तरफ से पवित्र करो ! बाद में कन्या को पर्दे के पीछे बिठा कर विज्ञान चिकित्सा करके कन्या के नेत्रों में अमृत संजीविनी वेल का रस डाल कर तथा और भी क्रिया कान्ड करके वहीं अपना असली वेश धारण कर . नमस्कार महामन्त्र का ध्यान करने के लिये बैठ गये / जब तक रस सूखे .. तब तक पूजा आदि किया करते रहे / अमृत संजीवी औषधि के प्रभाव से कन्या के नेत्र कमल जैसे हो गये / कुमार इन्द्र की तरह पूजा कर रहा था। अलौकिक प्राभूषणों से भुषित, सूर्य के समान तेजस्वी कुमार के मस्तिष्क को देखकर कन्या श्री अरिहंत भगवान को नमस्कार करके बहुत ही खुश हुई / श्रीचन्द्र ने कहा हे भद्रे ! तुझे अच्छी तरह दिखाई दे रहा है ? मेरी अंगूठी में क्या नाम है पढ़ / उसे पढ़कर बड़ी प्रसन्नता से सुलोचना ने श्रीचन्द्र की प्रशंसा ... करते हुए कहा कि 'हे प्राण जीवन ! पहले मुझे पिताजी ने आपको दी थी, अब मैं हृदय से आपका वरण करती हूँ। अंगूठी से नाम की जानकारी हुई तथा प्राचार से कुल पहचान गई हूँ।' उसके बाद श्रीचन्द्र ने अद्भुत रूप बदल कर अपना पुराना अवदूत का वेष पहन, भस्म आदि लगाकर बाहर राजा के पास पाए / . राजा ने पूछा, नेत्र ठीक हो गये हैं ? राजकुमार ने कहा हां नेत्र बहुत सुन्दर हो गये हैं अब राजकुमारी सचमुच सुलोचना है / त्रिलोचन राजा ने सुलोचना को अपनी गोदी में बिठाया, सब को बहुत आनन्द हुआ / राजा ने पुत्र जन्म जैसा महान महोत्सव किया / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #18
--------------------------------------------------------------------------
________________ बाद में अंतपुर में खबर भिजवाई / सुलोचना को देखकर सबको आनन्द हुया / अवदूत को बड़े आदर सत्कार से भोजन करने महल में भेजा जहां छत्तीस प्रकार का स्वादिष्ट भोजन बनाया गया था। बाद में राजा ने मंत्रियों को बुलाकर सलाह दी कि हम अगर अवदत को कन्या देते हैं परन्तु इसका कुल आदि तो हम जानते नहीं / तब मंत्री जहां अवदत को ठहराया था वहां गये और पूछने लगे 'हे भद्र ! आपका नाम, कुल आदि क्या है यह तो बताओ। श्रीचन्द्र ने हंसकर कहा कि आप लोगों ने पूछा वह तो ठीक है परन्तु आपने तो पानी पीकर घर पूछने वाली कहावत को सत्य कर दिखाया। फिर भी सुनिये 'मैं कुशस्थल में रहने वाले लक्ष्मीदत्त सेठ का पुत्र हूं / व्यसनी और हठवाला होने से पिताजी की गुप्त रीति से बहुत लक्ष्मी लेकर दूसरों को दे देता था, जिससे पिताजी ने मुझे बहुत समझाया पर मैं अपनी आदत से हटा नहीं। इसलिये उन्होंने मुझे घर से निकाल दिया / उसके बाद पृथ्वी घूमते हुए मुझे एक सिद्ध पुरुष मिले जिनकी मैंने बहुत सेवा की। उन्होंने सेवा से सन्तुष्ट होकर मुझे मन्त्र आदि दिये / उनको अब छोड़कर मैं यहां आया हूं। धन के बिना जुमा खेला नहीं जा सकता इसलिये मैंने पटह को स्पर्श किया। सारी बातें मन्त्रियों ने राजा से कही / यह भी कहने लगे कि सारा धन उसकी इच्छानुसार जुए में जायेगा इससे हमें तो बहुत चिन्ता होने लगी है / राजा भी चिन्तातुर हो गया। कहने लगे कि ऐसे जुआरी को कन्या P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #19
--------------------------------------------------------------------------
________________ 3. 1710 कैसे दें। अगर कन्या न दें तो मेरा वचन जाता है और वचन के सामने धन, राज्य और प्राण भी तुच्छ है / . बाद में जिस अंतःपुर में नृत्य, गान प्रादि हो रहे हैं वहां राजा आया। सुलोचना ने पिता को देखकर कहा कि आपके चेहरे पर हर्ष के स्थान पर विषाद क्यों ? राजा ने सारी हकीकत रानी आदि से कही सब चिंतातुर हो गये, तब सुलोचना ने हस कर कहा कि वह .. पुरुष ऐसा नहीं है, यह तो वाणी की विचित्रता है। जो रूप उसने पर्दे के पीछे देखा था उसका वर्णन किया और जो अंगूठी पर नाम पढ़ा था वह बताया। कुल और पिता का नाम बताया। तब तो राजा को बहुत खुशी हुई / राजा ने राजसभा में जाकर ज्योतिषी को बुलबाकर लग्न मुहूर्त निकलवाया। .. राजा ने श्रीचन्द्र को बुलवाने जितनी देर में भेजा उतने समय ___ में तो श्रीचन्द्र वहां से रवाना हो गये थे। मंत्री ने आकर कहा कि महाराज श्रीचन्द्र तो कहीं भी दिखाई नहीं दिये। बाद में व्याकुल राजा ने अंतःपुर, महल, नगर प्रादि सब जगह खोज करवायी पर श्रीचन्द्र तो कहीं नहीं मिले। जिससे सुलोचना मूछित हो गई / शीत उपाय करने से होश आया राजकुमारी रुदन करती तथा दूसरों को रुलाती हुई रात्रि व्यतीत करती है। वह न बोलती है, न खाती है, न पीती है। उसके दुःख के कारण दूसरे लोग भी भोजन नहीं करते / मंत्रियों की समझ में भी नहीं आता कि अब क्या किया जाय / एक वार राजा ने कु:शस्थल से आने वाले यात्रियों से श्रीचन्द्र के समाचार P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________ 'पूछे उन्होंने कहा कि लक्ष्मीदत्त सेठ के पुत्र श्रीचन्द्र बहुत गुणवान तथा रूपवान हैं। हमारे सेठ के जमाई भी हैं उनकी अंगुली में उनके नाम की हीरे की अंगूठी पहनी हुई है। धन सेठ की पुत्री धनवती के पति है, मैं उन्हीं सेठ का नौकर हूँ। जब ये सारी बातें सुलोचना ने सुनी तो कहने लगी कि वहीं श्रीचन्द्र थे। त्रिलोचन राजा ने कहा- पुत्री बही तेरे पति हैं मैं अभी कुशस्थल के राजा प्रतापसिंह के पास मंत्रियों को भेजता हूँ कि वे श्रीचन्द्र को भेजें / तब सुलोचना ने भोजन किया / .. / सूक्ष्म बुद्धि वाले चतुर श्रीचन्द्र ने अवदूत का वेष तो किसी को दे दिया और बटोही का वेष पहन कर' घुमते घामते किसी बड़े वन में पहुंचे। कमलों से युक्त निर्मल पानी वाले, चक्रवाक आदि पक्षियों से भरपूर एक बड़े सरोवर को देखकर वहां सूर्यवती रानी के पुत्र ने स्नान किया, स्नान करके श्रीचन्द्र बाहर आकर कुंड की पाल से बा रहे थे कि दूसरी तरह एक उद्यान दिखाई दिया / उसमें एक तरफ आश्रम था, दूसरी तरफ घोड़े, हाथी और कितने ही स्त्री पुरुषों को देखा / ' कितनों को आश्चर्यकारी वेष पहने हुए देखकर सोचने लगे कि ये लोग अवधूत, तापस हैं या योगी. हैं / सोचने के बजाय वहां चाकर ही पूछू। ... प्राम्रवन में प्रवेश करके, बीच में अद्भुत कान्ति वाले, तरह-२ के वेष धारण किये हुये तापस कुमारों को देखा। चारों तरफ चन्द्रमा के समान देदीप्यमानी मोर के पंखों की पादुकायें पड़ी थीं। पास ही में फुले पर झूलती हुयी एक कन्या जो कि पुरुष वेष में थी, देखी। सुवर्ण P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 16 प्राभूषणों से जिसका अंग विभूषित है। जिसका मुख कोमल है ऐसी दुसरी कन्या को उसके पास पास घूमते देखा। श्रीचन्द्र को आगे इये देखकर तापसकुमार ने कहा, हे सखी ! तेरे सौन्दर्य से आकर्षित पह पुरुष पाया इसका फल फूल देकर आदर करो। .: ..:. सखी ने आदर पूर्वक कहा, 'हे बटुक इस रायण वृक्ष के नीचे बेठो / ' सखी फल लाकर देने लगी, बटोही ने ऊपर से ही फल ले लिये और पूछने लगा तुम कौन हो और यह कौन है.? इतने में एक सुन्दर घाला गाती हुई आयी, सर्व कलाओं से युक्त चन्द्रकला राजकन्या ने जिसे . स्वयं परख कर स्वीकार किया है ऐसे श्री चन्द्र जय को प्राप्त हों। ऐसा सुन. कर श्रीचन्द्र पूछने लगे, ये क्या बोलती है.? वह कौन है ? और यह कौनसा स्थान है ?. इतने में ही एक श्वेत वस्त्रधारी विधवा वृद्धा ने , उस पुरुष वेषधारी कन्या को स्त्री वेश दिया। . . . ... / वृद्ध स्त्री ने बटुक से पूछा, 'हे भद्र ! तुम कहां से माये हो ? चटुक ने कहा, 'मैं कुशस्थल से आया हूँ / '' यह सुनकरः सबको बहुत मानन्द हुआ। उन लोगों ने यह समाचार दूसरों को भी पहुँचा दिया, जिससे दूसरे सारे लोग बटुक के चारों ओर आकर बैठ गये / भ्रान्ति से बाला ने पूछा चन्द्रकला का पति कौन हुआ ? उसका वर्णन करो। श्रीचन्द्र ने कहा वह बाला• गाती 2 आयी है वह सत्य है, लक्ष्मीदत्त श्रेष्ठी के पुत्र से शादी हुई है।' कुशल बुद्धि वाले श्रीचन्द्र ने फिर उस : वृद्धा से पूछा कि हे माता ! आप यहां कैसे आयी हुयीं हैं पारि घृतान्त कहने योग्य हो तो कहो / . .. .. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 2010 वृद्ध स्त्री ने कहा, 'हे वत्स !' वसतपुर में वीरसेन राजा था / उसके वीरमती और वीरप्रभा दो रानियां थीं। हम दो बहनें थीं। पहली जयश्री जो प्रतापसिंह राजा की रानी है और दूसरी मैं हूँ। मेरा दुसरा नाम विजयवती है। वीरसेन राजा के सदामति मंत्रि है, वह मेरा चाचो लगता है। वीरप्रभा के नरवर्मा पुत्र हुआ। वह शस्त्र और शास्त्र में प्रवीण हुआ.। वह बहुत ही बलवान हुआ / बहुत समय पश्चात् चन्द्र के रुप को भी मात करके ऐसी चन्द्रलेखा नाम की मेरे पुत्री हुई / उसकी यह सखियें हैं / बाद में मुझे वीरवर्मा नामका पुत्र हुआ। वह पांच वर्ष का हुआ, उसके बाद राजा को बहुत भयंकर कालज्वर हो गया। वीरसेन ने वीरवर्मा को सदामति की गोद में बिठा कर कहा, मेरा राज्य इस कुमार को देना, बाद में राजा की मृत्यु हो गयी / नरवर्मा ने बल पूर्वक राज्य को अपने हाथ में ले हमें वहां से निकाल दिया / . . - हम लोग अपने पिता के नगर को जा रहे थे तो रास्ते में किसी नगर के उद्यान में ठहरे / सदामति मंत्री ने देखा कि अगर से कोई ज्योतिषी आ रहा है, उसे मान पूर्वक मेरे पास ले आया। उसकी गोदी में चन्द्रलेखा को बिठा कर मैंने सारी हकीकत कही और पूछा कि पुत्री का पति कौन होगा और कब आयेगा ? कुछ क्षण सोच कर ज्योतिषी ने कहा कि, चन्द्रलेखा का एक महान पति होगा, राजा प्रतापसिंह का पुत्र जो चन्द्रकला से ब्याहा है, वह ही तुम्हारी पुत्री का पति होगा। एक श्लोक लिख कर दिया और कहा कि, 'तुम खादिखन में जाओ, वहां रायणा वृक्ष है जिस पर दुध झराये बस उसी को Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.
Page #23
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 21 10 तुम चन्द्रलेखा का पति मानना श्लोक पत्र लेकर उसका सत्कार कर हम यहां आये हैं। . चन्द्रलेखा कभी अपने वेष में कभी पुरुष वेष में सखियों के साथ तरह 2 क्रीड़ा करती हुई रहती है। श्रीचन्द्र ने सोचा मुझे यहां नहीं रहना चाहिये / ऐसा सोचकर ज्योंही खड़े हुये त्योंही रायगण वृक्ष में से दुघ झरने लगा। जिस प्रकार बहुत समय पश्चात् पुत्र मिलने पर माता के नेत्रों में से अश्रुधारा बहने लगती है वही हाल उन सब लोगों का हुआ और उन्होंने बड़े प्रानन्द से कहा कि, चन्द्रलेखा को पति प्राप्त हो गया / ' लज्जा से चन्द्रलेखा का सिर झुक गया। माता के आदेश से पति को पुष्पों की माला पहना कर, अनेक प्रकार के फलों से भक्ति की। बाद में श्रीचन्द्र ने अपने नाम की अंगूठी दिखलाई। - चन्द्रलेखा के हस्तमिलाप के समय सास ने विष को हरने वाली मणी दी। रानी वीरमती ने अपने पुत्र को श्रीचन्द्र की गोद में बैठा कर कहा कि इस कुमार को भी अपने जैसा उदार, वीरों में शिरोमणी बनाना / सास के वचन को स्वीकार कर प्रतापसिंह राजा के पुत्र ने कहा कि 'हे मासा ! उसी प्रकार का होगा, धीरज रखो। भविष्य में जो होगा अच्छा ही होगा। आप मंत्री सहित कुण्डलपुर जाकर सुख से रहो। .. . . मुझे अभी आगे जाने की चिन्ता है इसलिये मुझे आज्ञा दीजिये। ऐसा कहकर कुन्डलपुर के मन्त्री के नाम पत्र लिखकर सदामती मंत्री को दिया ! कुछ दिन वहां ठहर कर पहले के ही वेष में आगे प्रयाण P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #24
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 22 10 कर गये / वीरमती पुत्र, मंत्री आदि सहित कुन्डलपुर नगर जाते हुए क्रमशः महेन्द्रपुर नगर में आई। वहां के राजा में जब सुना तो उन सबको राज सभा में बुलाकर उनसे सारा वृतांत सुना / सुलोचना पौर चन्द्रलेखां दोनों के सम्बन्ध बहनों जसे हो गये / सब को बहुत आनन्द हुआ / इतने में ही एक भाट कुन्डलपुर नगर की तरफ से होकर भाया था, वह श्रीचन्द्र के गुण गाने लगा। .. ., . .. - जिसने राधावेध में विजय प्राप्त की, तिलंकमंजरी ने जिसे परमाला पहनाई, सिंहपुर के राजा की पद्मिनी पुत्री से जिसकी शादी हुई जो प्रतापसिंह राजा का पुत्र है जिसका कुडलपुर में वास स्थान है इत्यादिः तरह 2 के उसने श्लोक बोले / राजा के पुत्र ऐसे श्रीचन्द्र का चरित्र सुन कर सबको बहुत प्रानन्दः हुआ। सुलोचना द्वारा राजा ने आग्रह पूर्वक वीरमती को यहीं रहने का कहलाया परन्तु वे नहीं रहे __ मोर कुन्डलपुर के लिये प्रस्थान कर गये। ........... उघर मागे जाते हुए श्रीचन्द्र ने नगर के बाहर तंबू, घोड़े, हाथी, रथ तथा सुन्दर 2 वेष वाले सैनिकों को देखा / वहां दान दिया नाते देख श्रीचन्द्र ने किसी व्यक्ति से पूछा 'ये सब क्या हो रहा है ?? उसने कहा हे बटुक.! यह कपिलपुर नगर है। यहां के राजा का नाम जितशत्रु है उसके प्रीतिमती नाम की पटरानी है और वह रतिरानी की बहन होती है / उनका पुत्र कनकरथ मित्रों के साथ सभी राधावेध का अनुकरण कर रहा है। एक समय गायकों में शिरोमणी वीणारव ने कभी भी नहीं सुना हुआ श्रीचन्द्र राजा का चरित्र सुनाया। यह सुनकर P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #25
--------------------------------------------------------------------------
________________ { - ... . . : *:23 * 'जितशत्रु राजा ने उसे खुश होकर बहुत इनाम देना चाहा परन्तु वीणारव' ने कहा कि मेरे हाथ श्रीचन्द्र राजा के दान से बंध गये हैं, जिससे अब मैं दान नहीं ले सकता।' उसके जाने के बाद रतिरानी की पुत्री तिलकमंजरी का जिस प्रकार राधावेध हुआ था ये लोग उसी प्रकार से नाटक कर रहे हैं। ... ... ... '.. पिंगल भाट ने कहा 'लौकिक मिथ्यात्व दो प्रकार के हैं, देवगत और गुरुगत / लोकोत्तर मिथ्यात्व भी देव और गुरु दो प्रकार का है। इस प्रकार चारों प्रकार के मिथ्यात्व का जिसने भी सुव्रत मुनि के मधुर वचनों को सुनकर त्याग किया ऐसे श्रीचन्द्र * जय को प्राप्त हो / . नाटक देखकर कनकवती हर्ष को प्राप्त हुई। श्री चन्द्र पर मोहित हुई राजपुत्री ने धायमाता से कहा कि यह श्रीचन्द्र की आकृति चित्त को हरने वाली है तो वे साक्षात कैसे अद्भुत महिमा वाले होंगे I इससे, श्रीचन्द्र ही मैरे. पति. हों। उसकी तीन सखियें मत्री की पुत्री प्रेमवती, सार्थवाह की पुत्री धनवती, सेठ पुत्री हेम श्री ने भी श्रीचन्द्रः को ही अपना पति धारण कर लिया। घायभाता ने सारा हाल राजा से निवेदित किया जिससे राजा ने मंत्री को कुशस्थल भेजा है। . . i * पृथ्वी के इन्द्र श्रीचन्द्र ने इन सब बातों को सुनकर सोचा कि मेरे यहां रहने से मुझे यहां के लोग पहचान जायेंगे इस कारण अब मैं नगर को देखते हुए 'शीनं ही आगे के लिये रवाना हो जाऊं। ऐसा विचार कर नगर को देखते हुए वे बहुत दूर निकल गये / / मागे जाकर यक्ष के मंदिर में एक पुरुष को चिंतातुर बैठा P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 24 4. पाया। उसे देखकर श्रीचन्द्र ने पूछा यह कौनसी नगरी है ? तुम्हें क्या चिन्ता है ? निश्वास डालकर वह बोला हे मुसाफिर ! यह कान्ति नामक नगरी है। इसमें नरसिंह राजा के चौसठ कला युक्त सुन्दर प्रियंगुमंजरी पुत्री है। उसे प्राप्त करने की मुझे चिन्ता है / मैं कौन हूँ, अब यह सुनो। नैऋत्य दिशा में हेमपुर नगर में है वहां मकरध्वज राजा के मदनपाल नामक पुत्र था। युवावस्था को प्राप्त हुआ वह राजकुमार एक बार गवाक्ष में बैठा हुआ था। उसने रास्ते में जाती हुई एक योगिनी को देखा और अपने पास बुलाकर पूछने लगा आप कुशल तो हैं ? कहां से आई हैं और कहां जा रही हैं ? कोई अद्भुत घटना हो तो सुनाओ। _ योगिनी ने कहा 'जरा के आगमन से यौवन नष्ट हो जाता है / दिन प्रतिदिन कान्ति घटती जाती है / इसलिए हे भद्रिक ! कुछ न पूछो बुढ़ापा जब आता है तो यौवन स्वप्न मात्र रह जाता है। प्रति क्षण हानि, बहुत ही हानि हो रही है / जब तक काल राजा का प्रागमन नहीं होता तभी तक यौवन शोभा देता है / इसलिए हे भद्रिक ! कुशल न पूछ / कोई एक घड़ी और कोई दो पहर खुशी के मानता है तो मूर्ख है। जब तक जीव यमराज को भूला हुआ और उस पर दृष्टि नहीं रखता तब तक ही जीव खुश हैं। बुढ़ापा सबको आकर पकड़ नेता है। ___जो पूर्ण रुप से सुखी होते हैं वे जन्मते ही नहीं / जो जन्मते हैं वो मृत्यु को अवश्य प्राप्त होंगे। हम भी मृत्यु के मुख में बैठे हुए हैं / जब P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #27
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 25 9 तक यह मुह बन्द नहीं होता तब तक ही हम हैं। जब मृत्यु पानी है तब सुख किस बात का / चार गतियों में चौरासी लाख योनियों में घूमते 2 यहां आए हैं। जो जहां जन्म लेता है वहीं पर मन को वश में करे या करने का प्रयत्न करे तो वो मोक्ष को प्राप्त करता है / जो व्यक्ति प्रात्मा के अन्दर रहे हुए गुणों का विचार करता है वह अद्धभुत वस्तु को प्राप्त करता है वह अद्धभुत वस्तु को प्राप्त करता है / लडकपन, यौवन, बुढ़ापा आता है बाद में शरीर के अंग प्रत्यंग नाश को प्राप्त होते हैं। . स्वामी सेवक बन जाता है तो उसका स्वामित्व नष्ट हो जाता है। इस प्रकार बाह्य और अंतर की बातें करके, मैं श्री जिनेश्वर परमात्मा की कृपा से कुशल हूँ। मैं कान्तिपुर से आई हूँ और कुशस्थल को जा रही हूं। यह मेरे पास जो चित्र है उसे देखो ऐसा योगिनी ने कहा / चित्र में एक अपूर्व, अद्धभुत रुप को देखकर मदनपाल ने पूछा कि . यह किसने अद्धभुत स्त्री का चित्र चित्रण किया है ? योगिनी ने कहा कि, “कान्तिपुर के नरसिंह राजा की पुत्री प्रियंगुमंजरी राजकुमारी के चित्र का चित्रण किया गया है।" tamasomeTHIMAnus - प्रियंगुमंजरी गुणंधर पाठक के मुख से श्रीचन्द्र के रुप का वर्णन सुनकर उनपर आसक्त हो गई है। उसी का यह चित्रपट वहां देने के लिए मैं जा रही हूं। मदनपाल ने चित्र को लेने के लिए बहुत मेहनत की परन्तु उसने दिया नहीं और योगिनी जल्दी से निकल गई। * मदनपाल कामज्वर से पीड़ित हो गया और दिन-प्रतिदिन उसके शरीर P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #28
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 26 *. . की कान्ति नष्ट होने लगी। मित्र ने यह हकीकत राजा को बताई जिससे राजा ने नरसिंह राजा से कन्या की मांगनी की परन्तु नरसिंह राजा ने यह बात स्वीकार नहीं की। मदनपाल से पिता ने कहा घयं रखो, इस कन्या से भी अधिक रुपवाली कन्या से मैं तुम्हारी शादी करुंगा। वही मैं मदनपाल पिता से छुपकर यहां आया हूँ। मेरा मन प्रियंगुमंजरी के रुप से आकर्षित है। जिस प्रकार केतकी की सुगंध से भ्रमर आकर्षित होता है उसी प्रकार मुझे वहां शान्ति नहीं मिली इस लिए मैं यहां आया / पहले मैं राजा के बगीचे के आरामगृह में रहा था, तब मैंने मालिन से कहा था कि, हे भद्र ! राजकन्या को मेरा संदेशा कहो कि हेमपुर राजा का पुत्र तुम्हारा चित्र देखकर तुम्हारे पर मोहित हुआ है और तुम्हारे शहर में आया है। मेरा रूप, कला आदि सबका वर्णन राजकुमारी से करना और प्रत्यन्त सुख वाली राजकुमारी मुझ पर अनुराग वाली हो ऐसा प्रयत्न करना इस प्रकार समझा कर मालिन को मैंने बहुत धन देकर भेजा। प्रियंगुमंजरी ने कहा उसकी बुद्धि को परीक्षा तो करें। बाद में विचार कर कनेर के पुष्पों के ढेर में से लाल रंग का फूल लेकर कान पर रखकर मालिन को देखते हुए फेंका। बाद में कमल को लेकर वुमकुम से रंग कर, उसे बड़े प्रम से देखकर, हृदय पर धारण करके कहा कि, हे मुग्धे ! उसके पास जा भौर उससे उत्तर ला। मालिन ने सारा वृतांत मुझे सुनाया, परन्तु मैं उसका उत्तर P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #29
--------------------------------------------------------------------------
________________ 27 310 नहीं दे सका, इसलिये अब मैं क्या करूँ ? कहां जाऊं? इसकी चिन्ता में हूँ। प्रियंगुमंजरी हमेशा इस कामदेव के मंदिर में प्राती है। यहां रहने से किसी समय मिलाप हो सकता है, प्ररन्तु प्रतिहारिये मुझे मारकर बाहर निकाल देती हैं / हे सुन्दर ! यह दुख है मुझे। ये सुनकर श्रीचन्द्र मदनपाल के ऊपर दया लाकर सोचने लगे कि गुणधर गुरु पहले यहां आये थे, अहो ! यह कन्या कितनी बुद्धि मति है / फूल द्वारा अपने भाव प्रदर्शित किये हैं, 'लाल पुष्प से तू स्वयं रक्त है ऐसा मैंने कान से सुना है, परतु मैं देख भी नहीं सकती और स्थान भी नहीं दे सकती इसलिये तू अपना प्रयत्न छोड़ दे ऐसा दर्शाया है / श्वेत कमल दिखा कर उसने यह दर्शाया है कि विरक्त को मैंने रक्त किया है, मैंने कान से सुनकर हृदय में स्थापित कर लिया है ऐसा बताया है। परन्तु अपने आपको पंडित मानता हुआ यह इतना भी नहीं जान सका। ___ श्रीचन्द्र ने कहा अब तू क्या करेगा ? मदनपाल ने कहा, मैंने प्रियंगुमंजरी को देखा है, परन्तु उसने मुझे नहीं देखा। हे मित्र ! मेरा कार्य किस प्रकार सिद्ध होगा? आप परोपकारी लगते हैं इसलिये पाप बता कि मैं क्या करूं? इतने में तो शंख ध्वनि सुन कर, इसलिये यहां से चले चलो, मदनपाल ने कहा / दोनों ने उद्यान में से राजकुमारी को सखियों से युक्त कामदेव के मंदिर में प्रवेश करते हुये देखा वहां वे सब मृदंग, वीणा, नृत्य गीत आदि में मस्त हो गई। कुछ समय बाद वहां एक स्त्री ने जिसके कपड़े धूल से भरे हुए P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #30
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 28 1. थे, मंदिर में प्रवेश किया, उसी क्षण नृत्य, संगीत आदि बंद हो गया, क्षण में रोने की आवाज आने लगी और रुदन करती हुई सखियें बाहर भायीं / एक सखी से मदनपाल ने पूछा कि भद्रे ! गीत के स्थान पर रुदन क्यों शुरु होगया ये तो बतायो / सखी ने कहा मुझे समय नहीं है / किसी की तो दाढ़ी जल रही है और कोई दीपक जला रहा है / इतने में दूसरी सखी ने कहा कि हे बहन जल्दी केले के पत्ते लाओ, स्वामिनी मूर्छित हो गई हैं। - बुद्धिशाली सखी ने कहा कि पहले अपनी स्वामिनी ने कुशस्थल एक सखी को श्रीचन्द्र का अपने ऊपर कितना प्रेम है यह जानने के लिये भेजा था, परन्तु श्रीचन्द्र वहां हैं नहीं जिससे हमारा कार्य सिद्ध नहीं हुआ। उस दुःख से राजकुमारी विलाप करती मूछित हो गई है। अब क्या होगा पता नहीं। ऐसा कहकर अन्दर चली गई। बाद में सब लोग नगर में चले गये। सूर्यवती के पुत्र श्रीचन्द्र ने विवाह की इच्छा वाले मदनपाल को कहा कि फालतू में तुम अपना राज्य छोड़ घूम रहे हो। अगर इसके बिना तू नहीं रह सकता है तो जैसे मैं कहूँ वैसा कर, परन्तु तेरे कार्य की सिद्धि धन द्वारा होगी, घन बिना सब निष्फल है / अब किस प्रकार से तेरा कार्य सिद्ध हो सकता है उसे सुन / सखी ने अभी कहा कि कुशस्थल से श्रीचन्द्र देशान्तर गए हुए हैं, तो उसके आधार एक प्रपंच करें। तूं तो श्रीचन्द्र बन और मैं तेरा सेवक बनता हूं। नगर में जाकर किसी को द्रव्य देकर एक मकान खरीद कर वहां गरीबों को P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #31
--------------------------------------------------------------------------
________________ . 26 * दान देना जिससे तेरी प्रसिद्धि हो जायेगी। उसके बाद जो योग्य होगा मैं करूगा / जिससे राजा को खबर पहुंचेगी कि कुशस्थल से गुप्त रीति से श्रीचन्द्र पाए हैं बाद में तो कर्म की शक्ति बलवान है / यह सुनकर तो मदनपाल बहुत ही हर्षित हुआ। इस प्रकार दोनों ने निश्चय किया। ऊपर की मंजिल पर मदनपाल श्रीचन्द्र बन कर रहता है और द्वार पर श्रीचन्द्र जो योग्य समझता है करता है। उसके बाद एक दिन राजा को समाचार मिले कि श्रीचन्द्र यहां आए हुए है तब राजा बहुत खुश हुआ। श्रीचन्द्र ने मदनपाल से कहा कि अब तू मुनि की तरह मौन रहना। उसके बाद श्रीचन्द्र ने अपने चातुर्य से राजा कन्या और मंत्रियों को खुश किया। राजा ने बहुत ही मुश्किल से उसे शादी के लिये मनवाया। शादी में देर नहीं करनी चाहिये / दुसरे ही दिन गोधुलिक समय में लग्न पक्का हुआ / दोनों जगह शादी की तैयारियां होने लगीं / श्रीचन्द्र पाये हैं ऐसा जानकर लोगों ने नगर को बहुत सुन्दर ढंग से सजाया / शादी के दिन मदनपाल एक झरोखे में बैठा है उसी समय मार्ग से जाती हुई पनिहारियों की बातचीत उसने सुनी, हे बहन तू आज जल्दी 2 क्यों जा रही है ? जवाब मिला कि हे सखी क्या तू नहीं जानती ? प्रियंगुमंजरी और श्रीचन्द्र दोनों गुणधर पाठक से पढ़े हैं / राजकुमारी पद्मिनी के लक्षणों की गोष्ठी करके फिर शादी करेगी, वहां बहुत आनन्द प्रायेगा। यह सुनकर मदनपाल को चिंता हुई। वह श्रीचन्द्र से पूछने P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #32
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 30 40 लगा हे मित्र अब क्या करेंगे ? श्रीचन्द्र ने कहा कि पद्मिनी आदि स्त्री के चार भेद मैं जानता हूँ इसलिये तूलिख कर उन्हें याद कर ले जिससे तेरा कार्य सिद्ध हो जायेगा। नहीं याद करेगा तो सब कुछ निष्फल हो जायेगा। मदनपाल ने कहा कि अब पढ़ने का टाइम ही कहां है ? 'प्राग लगे तब कुप्रा खोदने जाना' उसके अनुसार तुमने मेरे लिये बहुत मेहनत की है परन्तु मैं अभागी हूँ। अब मैं बताऊ वैसा करो / तुम मेरे से छोटे लगते हो परन्तु रूप में मेरे ही समान हो और अब तुम आभूषण पहनोगे तो बहुत सुन्दर लगोगे इसलिये तुम मेरा वेष पहन कर कन्या से शादी करके मुझे सौंप देना / जो काम तुम्हें भविष्य में करना था वह अभी कर लो / परोपकारी पुरुष याचना का भंग नहीं करते। - श्रीचन्द्र ने कहा अच्छा तुम्हारे कहे अनुसार करता हूँ। बाद में वेष बदल कर मदनपाल अपने रूप में और श्रीचन्द्र अपने वेष में शोभायमान होने लगे। वे दूसरों के वेष से नहीं अपने वेष से शोभ रहे थे / उनके सारे मांगलिक रीति रिवाज राज्य की स्त्रियों ने ही किये। श्रीचन्द्र ने स्वर्ण रत्नों से जड़ित मुकट धारण किया, कानो पर कुडल प हाथ में अपने नाम की अंगूठी पहनी / देदिप्यमान राजा की भांति वे हाथी पर सवार हुए, ऊपर छत्र व दोनों तरफ चामर डुलने लगे और पाजे बजाने वाले आगे चलने लगे। अनेक सैनिकों आदि के साथ वह जुलूस सारे शहर में फिरता हुआ राज्य सभा में पाया / .. भाट ने श्रीचन्द्र की जय जयकार की और कहा धनवती पारि P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #33
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 31 9 आठ कन्याओं के साथ विवाह करने वाले श्रीचन्द्र की जय हो / राजा ने तारक भाट को बहुत दान दिया। दरसिंह राजा ने श्रीचन्द्र को अपनी गोदी में बिठाया व अपनी पुत्री को चरणों के पास बिठाकर दोनों को परिचित करवाया। उसी समय प्रियंगुभंजरी ने कहा 'हे राजारों के इन्द्र स्त्रियों के भेद लक्षण प्रादि बतायो / श्री 'श्रीचन्द्र' ने कहा हे भद्रे ! स्त्री के 4 भेद हैं 1 पद्मिनी 2 हस्तिनी 3 चित्रिणी 4 शंखिनी / प्रत्येक के 4.4 भाग होते हैं इस प्रकार 16 भेद हुए। 1 कमल के गंध वाली 2 हाथी के मद समान गंध वाली 3 चित्र विचित्र गंध वाली और 4 मगर मच्छ के गॅघ वाली होती है / 1 शोभायमान मुंह वाली 2 जिसकी चाल सुन्दर हो। 3 सुन्दर साथल वाली और सुन्दर स्तन वाली होती है / 1 हंस के जैसी चाल वाली 2 हथिनी की जैसी चाल वाली 3 हिरण जैसी चाल वाली 4 गधी की जैसी चाल वाली होती है / 1 कोमल सुन्दर दांत वाली 2 मोटे दांत वाली 3 छोटे दांत वाली 4 लम्बे दांत वाली होती है। / चिकने, बारीक बालों वाली 2 मोटे बालों वाली 3 छोटे बालों वाली 4 वरछट बालों वाली होती है। 1. विशाल नेत्रों वाली 2. छोटी प्रांखों वाली 3. अणीदार नेत्रों वाली 4 पीले नेत्रों वाली होती है / 1. विशाल स्तन वाली 2. छोटे स्तन वाली 3 ऊंचा स्तन वाली 4. लम्बे स्तन वाली होती है 1. अल्प निद्रा वाली 2. भारी निद्रा वाली 3 थोड़ी निद्रा वाली 4. खूब निद्रा वाली होती है / 1. अल्प काम वासना वाली 2. गाढ़ P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #34
--------------------------------------------------------------------------
________________ ___ #. 32 110 काम वासना वाली 3. चित्रविचित्र काम वासना वाली 4. अतिशय कामवासना वाली होती है / 1. अल्प प्रस्वेद वाली 2. बहुत प्रस्वेद वाली 3. मध्यम प्रस्वेद वाली और 4. अतिशय प्रस्वेद वाली होती है / 1. अल्प क्रोधी 2. अतिशय क्रोधी 3. विचित्र क्रोधी 4. लम्बे क्रोध वाली होती है। 1. पुष्पों का समूह प्रिय होता है 2 मोती प्रिय होते हैं 3. विभूषा प्रिय होती है 4 कलह प्रिय होता है 1. अल्प आार वाली 2. ज्यादा आहार वाली 3. कम पाहार वाली 4. अतिशय माहार वाली होती है / 1. कमल के समान सुन्दर हाथ वाली 2. शंख के समान हाथों वाली 3. मगर के समान हाथों वाली 4. मत्स्म्य के समान हाथों वाली होती है। - "स्त्रियों के शुभ और अशुभ दो प्रकार के लक्षण होते हैं / पूर्ण चन्द्र के समान मुख वाली, बाल सूर्य जैसी : कान्ति वाली, विशाल मुख वाली और लाल होठ वाली शुभ कन्या कहलाती है / अंकुश, कुन्डल और चक्र जिसके हाथ में हो वो पुत्र को जन्म देती है व उसका पति राजा बनता है। जिसके हाथ की हथेली पर तोरन होता है, व दासी के कुल में जन्मी हो तो भी राजा की पत्ती बनती है / जिसके हाथ में मंदिर, कमल, चक्र, तौरन, छत्र और पूर्ण कुभ होता है व राजपत्नि बनती है और उसके बहुत पुत्र जन्मते हैं / जो स्त्री कोमल अंग वाली; हिरण के समान नेत्रों वाली, पतली मर्दन वाली और पेट वाली, जिसकी चाल हंस की तरह हो वह राज पत्नि बनती है। जिस स्त्री के छोटे बाल जो गोल मुख वाली और P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust
Page #35
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 33 10 दक्षिणावर्त वाली हो तो वह प्रेम की भाजन बनती है / जिसके अंगुलियां लबी और बाल लंबे हों वह दीर्घ आयु य वाली होती है और धन्य धान्य से वृद्धि को पाती है। जो स्त्री कृष्ण के जैसी श्याम, चम्पक जैसी प्रभावाली, गौरी ओर ग्ध अग वाली हो वह भी सुख को प्राप्त होती है। नील कमल के दन जैसी कांति वाली, पीनी कांति वाली हो तो वह समस्त संग प्रत्यंग पर अलंकार धारण करेगी। जिस पी के लबाट पर स्वस्तिक हो वह हजार जहाजों के आधिपति का वरण करती है। जिस सी के दायें तरफ गले पर, स्तन पर लांछन तिल या मसा अगर हो तो वह पहले पुत्र को जन्म देती है / जिस स्त्री के प्रस्वेद, रोन, निदा और भोजन अल्प हों तो वह उत्तम लक्षणों वाली होती है / जिस स्त्री की साथल हथिनी की सूढ जैसी भरावदार हो, योनि पीपल के पत्ते जैसी और रोम बिना की हो, कमर, ललाट और पेट कछुओं जैसा उन्नत हो और मणिबंब गूढ़ हो तो वहे विपुल लक्ष्मी को प्राप्त करती है / - 'जो स्त्री की जंघा रोम वाली हो, स्तन और हाथ पर अगर रोम हों तो वह तत्काल विधवा हो जाती है। जिस स्त्री का साथल मोटा हो, पैर चपटे हो वह विधवा और दारिद्रय के दुख को प्राप्त होती हैं। जिसके पीछे प्रावर्त हो वह पति को मारती है, जिसके हृदय पर आवर्त हो वह पतिव्रता होती है;"जिसके कमर पर प्रावर्त हो वह स्वच्छन्दी होती है। जिसकी तीनों ललाट, पेट और योनि लम्बी हो तो वह ससुर, देवर' और पति का नाश करती है। जिसकी जीभ काली P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #36
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 34 38. हो, होठ लम्बे हों. नेत्र पीने हों. अावाज मोटी (घोघरा) हो, अतिश्वेत अतिश्याम यह 6 प्रकार की स्त्रिये त्यागने योग्य हैं / जिसके गालों पर खड्डे पड़ते हों वह पंति के घर स्थिर हो कर नहीं रहती और स्वच्छंद आचार वाली होती है। पैर के अंगूठे की पास वाली पहली अंगूली अंगूठे से बड़ी हो तो वह अच्छी नहीं होती। * दूसरी अंगूली यानि बीच की अंगूली अंगूठे से बड़ी हो तो वह स्त्री दुर्भागा होगी और पति को छोड़ देगी। पैर की तीसरी अंगुली ऊची न हो और जमीन से स्पर्श न करती हो तो वह कुमारी अवस्था में जार के साथ खेलती है / जिसकी सबसे छोटी अंगुली जमीन से स्पर्श न करे तो वह यौवन वय में जार के साथ क्रीड़ा करे इसमें कोई संशय नहीं / जसा मुख वैसा ही गुप्त भाग, जैसी चक्षु हो वैसी कमर हो, जसा हाथ हो वैसे ही पैर हों, जैसी भुजायें हों वैसी जंघा हो, जिसकी कौए के मावाज जैसी वाणी हो, कोए जसी जंघा और पीठ रोम वाली हो, मोटे दांत वाली हो वह दस महीने में पति का नाश करती है / जिसकी अंगुलियों में छेद पड़ते हों, जिसकी अंगुलिये विषम हों वह वेर को बढाने वाली होती है ऐसा सामुद्रिक कहते हैं / इसमें शंका नहीं है अति दीर्घ, प्रति छोटी, अति मोटी, अति पतली, अति श्याम और अति काली योनि वाली स्त्री दुर्भागा कहलाती है। विवाद करने वाली,अस्थिर आश पर बैठने वाली शूरातन वाली, दूसरों के अनुकूल पौर दूसरों की आश्रय से खिली हई, प्रति आक्रोश को करने वाला, धौर शून्य घर में बैठने वाली, जिसकी दस पुत्र पुत्री हो भी तूं उस Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
Page #37
--------------------------------------------------------------------------
________________ . * 35 4 . भार्या को छोड़ दे। गाल में जिसके खड्ड पड़ते हों, गधे जैसी आवाज वाली, मोटी मंघा वाली, खड़े बालों वाली, लम्बे होठ वाली, मोटे मुख वाली, अलग 2 दांतों वाली, काले दांत, होठ और जीभ वाली, सुके हुये अंगों वाली, विषम भृकुटि और स्तन वाली, नाक, मुह चपटा हो तो वह स्त्री त्यागने योग्य है / ऐसी स्त्री सुख से रहित और भ्रष्ट शील वाली होती है। कछुए जैसी पीठ वाली, हाथी जैसे स्कन्ध वाली, कमल के पत्र जैसे पुष्ट साथल वाली, पुष्ट गाल वाली, छोटे और एक समान दांतों वाली, अच्छी तरह से गुप्त, अति उष्ण और गोलाकार वाली, इस प्रकार की 6 योनियें प्रच्छी मानी गयी हैं / दक्षिणवर्त नाभि, स्निग्ध अंग वाली, सुन्दर भृकुटि खुली कमर वाली और खुले जधन, अच्छे सुन्दर बालों वाली, कच्छए जैसी पीठ वाली, ठंडी, दांत जिसके एक समान है, जिसके कंधे के भाग खुले हैं, सुन्दर गोल कमल जैसे नेत्र वाली सुव्रता, सारे ही गुणों से युक्त ऐसी स्त्री विवाह के योग्य है। इस प्रकार बहुत समय तक श्रीचन्द्र ने प्रियंगुमंजरी के साथ वार्तालाप करने के पश्चात् प्रियंगुमंजरी ने श्रीचन्द्र के कंठ में वरमाला पहनाई। बाद में मंडप के द्वार में पांखण आदि सारी विधि के बाद श्रीचन्द्र राज आंगन में आए वहां सारी क्रिया होने के बाद कन्या से युक्त हरे बांस की बनी हुई बड़ी चोरी में आए / मग्नि के चारों तरफ फेरी फिरते, चौथे मंगल फेरे में नरसिंह राजा ने जमाई को चतुरंग सेना मादि सौंपी और कहा यह सब तुम्हारे साथ भेजूंगा / श्रीचन्द्र प्रियंगु P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #38
--------------------------------------------------------------------------
________________ नई 36 10 मंजरी से रक्त श्रष्ठ वाहन में बैठ कर अपने महल की तरफ गए। . ... रास्ते में स्थान 2. पर लोगों के मुख से अद्धभुत वाणी सुनते हुए कि 'रूप, विद्या, कुल, चतुर बुद्धि, : अनुत्तर कांति, मुख्य गुणों और रूप में अनुत्तर, जिस प्रकार इन्द्र और इन्द्राणी का योग, चन्द्र और रोहिणी का योग, सूर्य और रहनादेवी का योग हुमा वैसा ही विधि ने (प्रकृति) यह योग बनाया है। श्रीचन्द्र ने अपने महल में प्रवेश किया / मंगल पूर्वक सब वस्तुओं को उचित स्थान पर रखकर यथा योग्य दान देकर वास. गृह में पाए / हंसते हुए मुख वालो: प्रियं गुमंजरी सखियों से युक्त पलंग पर बैठे हुए पति के पास बैठकर काव्य गोष्ठी करने लगी। इतने में मदनपाल ने भू संज्ञा से "अपने वचन को याद कर" ऐसा संकेत किया श्रीचन्द्र शंका के बहाने बाहर निकले तब प्रियंगुमंजरी पानी लेके इन के पीछे गई। तब श्रीचन्द्र ने कहा तुम यहीं रहो वहां बहुत पानी है। ऐसा कह कर नीचे आकर ससुर के पास से प्राप्त की हुई सब वस्तुएं मदनपाल को देकर और अपने कुन्डल नाम की अगुठी और ससुर की अंगुठी लेकर अपना वेश ग्रहण करके कहा कि हे मदनपाल ! तेरे मन को संतोष होगया ? अब मैं जाता हूं। - मदनपाल. ने कहा कि तुमने बहुत ही सुन्दर किया अब तुम्ह जैसा सुन्दर लगे वैसा करो / आनंद से अांख में अंजन डाल कर श्रीचन्द्र की वेशभूषा को पहन कर मदनपाल जिसके चेहरे पर कोई तेज नहा है, .गंदे हाथ पैर वाला वास गृह में जाकर बैठ गया / उसको इस प्रकार P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #39
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 37 10 . का देखकर प्रियंगुमंजरी उसी क्षण बाहर निकली और सखी से कहने लगी कि "पति का वेश लेकर कोई और व्यक्ति अाया है" सखी ने कहा यहां ऐसा कौन है जिसने तेरे पति : का वेश धारण किया है / तू व्यामूढ हो गई है / राजकुमारी ने कहा हे सखी ! अगर तू नहीं मानती तो तू स्वयं जाकर पूछ पहले के प्रेम वा क्यों और कथा वार्तालाप अब वह किस प्रकार कर रहा है और उसे देख / सखी ने उसी तरह किया तो वह पहले की बजाय उल्टा ही बोला / उससे सखी ने कहा कि ये श्रीचन्द्र नहीं है परन्तु वेष तो उन्हीं का पहन कर कोई और ही आया है / प्रियंगुमंजरी ने कहा तू द्वारपाल से पूछ / सखी ने जब द्वारपाल से पूछा तो द्वारपाल ने कहा कि मैंने तो विसी दूसरे को पाते नहीं देखा है। बाद में सखियों को वहां छोड़कर प्रियंगुमंजरी अपनी पां के पास गई / माता ने पूछा तुम इस समय स्वयं केसे आई हो ? कुशल तो है ? दुख से भरी हुई कन्या ने जो घटना घटित हुई वे सारी कह सुनाई / रानी ने सारी बातें राजा से कही / राजा व्याकुल हो उठा ये कैसा षड़यंत्र है ? प्रातःकाल होते ही मदनपाल को बुला भेजा, सूक्ष्म दृष्टि से निरीक्षण करके और दूसरों के कहने से यह विश्वास हो गया कि ये श्रीचन्द्र नहीं है / .... राजा ने पूछा हे वत्स ! वह अंगूठी कुन्डल आदि कहां हैं ? मदनपाल ने दूसरे दिखा दिये / राजा सोचने लगा इस समय कैसी अजीब घटना घटी है / पुनः राजा ने मदनपाल से पद्मिनी आदि स्त्रियों के गुण पूछे। परन्तु मदनपाल तो जानता ही नहीं था इसलिये P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #40
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 38 चुप रहा / इससे राजा ने पूछा तू कौन है सत्य क्यों नहीं कहता ? तो भी मदनपाल मौन रहा तब राजा ने कहा कि इसको तो चाबुक की फटकारों की सजा होनी चाहिये / सजा से घबराकर वह बोला मैं मदनपाल हूँ और अपनां चरित्र कह सुनाया और कहने लगा यह बुद्धि बटुक की है उसने मेरे ही कहने से शादी भी की जिससे उससे द्वेष करना योग्य नहीं। उस उपकारी के उपकार का बदला किस प्रकार . चुका सकूगा। ___ वह सब कुछ मुझे दे गया / वह यहां है या कहीं और इसका मुझे कुछ पता नहीं है। वह श्रीचन्द्र है या कोई और ये भी मैं नहीं जानता। तब राजा ने और लोगों ने कहा कि बटुक हो श्रीचन्द्र थे। तारक भाट ने कहा कि वे श्रीचन्द्र ही थे। इसमें कोई भी संशय नहीं है उनको बहुत खोज करवाई लेकिन श्रीचन्द्र का कोई पता नहीं लगा। विलाप करती पुत्री को राजा ने कहा कि तू रुदन न कर, तेरा पति तुझे मिलेगा परन्तु क्या तू उसे पहचान सकेगी? प्रियंगुमंजरी ने कहा मेरे बायें अंग फड़कने पर मैं शुभ शकुन से स्वयं जान लूगी। अब तक मेरे पति मुझे नहीं मिलते उन्होंने मुझे अपनी छोटी अंगुली की / अंगूठी दी है मैं उसी की दर से पूजा करूंगी। मदनपाल से सब माभूषण हाथी प्रादि सर्व वस्तुएं मंत्री ने राजा के कहने से अपने प्रधिकार में रख ली। रानीजी की दी हुई अंगूठी उसमें नहीं थी, मदनपाल से उसके लिये पूछा गया तब उसने उत्तर दिया वह तो बटुक मे गया है। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #41
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 36 - राजा कहने लगे पहो ! देखो उसका परोपकारीपन, धैर्य, मति मौर बुद्धि ! यहां जाना जाता है कि कन्या कितनी भाग्यवान है। राजा ने बहुत सा धन देकर मदन पाल को मुक्त किया / राजा ने चारों तरफ खोज करवाई लेकिन श्रीचन्द्र का कहीं पता नहीं लगा। तब राजा ने कहा किसी शुभ दिन मंत्रियों को श्रीचन्द्र को बुलाने के लिये भेजेंगे। . चन्द्र के समान गोल मुख वाले श्रीचन्द्र क्षत्रिय के वेष में चलते] फिरते एक बहुत बड़े जंगल में पहुँचे / अति तृषा लगने से ऊंची जगह चढ़कर जल की खोज करने लगे, इतने में कुछ दूर सूर्य की कान्ति का भी तिरस्कार करता हो ऐसी कान्ति का एक पुज देखा। वहां पास में जाकर देखा तो वह चन्द्रहास खडग है ऐसा जानकर सोचने लगे कि यह खडग किसका होगा ? पृथ्वी पर रहे हुए पुरुष का है या किसी प्रकाश में विचरण करते हुए विद्याधर का है? परन्तु इसका स्वामी भी यहां दिखाई नहीं देता, शायद कोई यहां भूल गया होगा। इस प्रकार सोचते हुए बुद्धिशाली श्रीचन्द्र ने कल्याण के लिये उसे प्रहण किया। उस खडग की धार की परीक्षा के लिये पास ही जो माड़ी थी उस पर उन्होंने वार किया, क्षणवार में उसके दो टुकडे हो गये। और उसके मध्य में रहे हुए पुरुष के भी दो टुकड़े हो गये / ये देखकर श्रीचन्द्र बोले हा...हा...अहो मेरी अज्ञानता और मूढ़पने से मैंने बहुत बड़ा पाप किया है जिससे अब तो मुझे नरक में भी स्थान नहीं मिलेगा / मब मेरा क्या होगा। ऐसे स्वनिन्दा करते हुए वह पुरुष कुछ P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #42
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 40 110 होश में था उसके हाथ में खडग देकर कहने लगे मुझे मार डालो मैं अपराधी हूँ / बोलने में अशक ऐसे उस पुरुष ने श्रीचन्द्र को खडग अपित कर ऐसा संकेत किया कि यहां अगर जल है तो मुझे पिलादो / ' : जल पिलाकर श्रीचन्द्र बार 2 उमसे क्षमा याचना करने लगे। थोड़ी ही देर में वह पुरुष मृत्यु को प्राम हुअा। कुछ क्षण वहां ठहर कर दुखित हृदय वाले श्रीचन्द्र जलपान किये बिना खडग सहित वहां से रवाना हो गये। उसी रात्रि को किसी वन में पहुंचे / वहां एक वृक्ष की डाल पर दर्भ का विस्तर बिछा हुआ देख वह सोचने लगे कि इसके ऊपर कोई मुसाफिर सोया होगा। तो भी उसे उठाकर चारों त फ देखने लगे / उसी समय उनकी नजर एक खोसल पर पड़ी जिसे लकडे से बंध किया हुआ था उसे आगे' खिसका कर वीर पुरुष ने उसमें प्रवेश किया / गुफा के मुंह पर कुछ क्षण ठहर कर वहां जो बड़ी शिला यी उसे उठाया तो क्या देखते हैं कि नीचे की तरफ रास्ता जा रहा है। उस रास्ते से नीचे उतरे तो वहां पाताल महल देखा / रत्ल के दीपकों से भी तेजस्वी दो मंजिल महल को देखकर पहले तो नीचे वाली में जिल' का निरीक्षण किया फिर ऊपर वाली मंजिल पर गये। वहां मरिणों से जड़ित सिंहासन था, उस पर बैठे कर श्रीचन्द्र ने उसे सार्थक किया। बाद में कुतुहल वश सामने एक कमरा था उसे खोला तो देखते क्या हैं वहीं 'कमरे में रत्नों के पलंग पर एक बंदरी बैठी है। बंदरी पहले तो श्रीचन्द्र के पर पड़ी, बाद वस्त्र के किनारे को पकड़ कर पलंग पर बिठाया। श्रीचन्द्र कहने लगे तू P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #43
--------------------------------------------------------------------------
________________ चेष्टा से तो मनुष्य प्रतीत होती है परन्तु दिखने में बंदरी इसका क्या कारण है मैं जानना चाहता हूँ। रुदन करती बंदरी ने दीवार में एक पाला था वह बताया और बार बार अपने नेत्र दिखाने लगी। उसके इशारे से उठ कर उस तरफ गये वहां अंजन से भरी हुयी दो डिबियें देखी, एक श्याम रंग की थीं दूसरी सफेद बंदरी के संकेत से, काले रंग का प्रजन श्रीचन्द्र ने उसके नेत्रों में डाला / उसके अद्भुत प्रभाव से बंदरी दिव्य वेश तथा अलंकार पहनी हुई कन्या के रुप में बदल गई। इस कौतुक को देखकर श्रीचन्द्र बोले 'हे भद्रे तू कौन है ? यह स्थान कौनसा है और तुझे बंदरी किसने बनाया है।' ___ हर्ष और लज्जा युक्त कन्या ने कहा, 'हे नाथ ! हेमपुर में हूँ। मैं मदनपाल की छोटी बहिन, माता पिता को प्रिय ऐसी मैं अनुक्रम से योवनावस्था को प्राप्त हुयी / मैं पुरुष के 32 लक्षणों को जानती हूँ / मैंने प्रतिज्ञा की कि मैं बत्तीस लक्षणों से युक्त मनुष्य से शादी करुंगी। एक दिन राजसभा में एक याचक ने प्रतापसिंह के पुत्र के गुण-गान गाये की 'दान रुपी पंखे से उत्पन्न हुअा श्रीचन्द्र का यश रुपी पवन, नये अर्थी रुपी रज को सन्मुख लाता है। राजा ने उसका सन्मान कर उसके साथ विवाह की मंत्रणा की। एक दिन मैं सखियों सहित उद्यान में कीड़ा के लिये गई, वहां पुष्पों के कीड़ा गृह में से किसी विद्याधर ने मुझे उठा लिया, परन्तु सा का। P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #44
--------------------------------------------------------------------------
________________ # 42 16 स्वस्त्र क न स मुझे इस महल में रखा है। आज पांचवां दिन मैं रुदन करती थी जिससे वह बोला कि रुदन क्या करती है ? मैं वैताठय पर्वत पर रहने वाला रत्नचूड़ नामक विद्याधर हूँ। अभी हमारी गोत्र के ही एक राजा ने मेरा मरिण भूषण नगर अपने कब्जे में कर लिया है जिससे मैं अपने परिवार महित बाहिर रहता हूं। एक दिन पृथ्वी पर घूमते हुये मैं कुशस्थ न गया। वहां उद्यान में अश्वों, रथों मोर हाथियों से युक्त विशाल सेना को देखा / 'वहां एक सुवर्ण के पलंग पर पुष्पों से क्रीड़ा करती हुयी, सखियों से युक्त, सुसराल से पिता के घर जाती हुई पद्मिनी को देख कर मुझे अतिशय प्रेम उत्पन्न हुआ। मनोहर सुभंग अंग वाली उसको हरण करने के लिये एक दिन मैं वहां अदृश्य पण में रहा। मैंने अपने दो रुप करने का यत्न किया / परन्तु पद्मिनी पति से रक्षित थी और स्वशील की रक्षा वाली थी, जिस कारण मेरे दो रुप नहीं हुये / बाद में उसी के समान रुप वाली स्त्री की मैं खोज में था। पृथ्वी पर निरीक्षण करते हुये तू मिली है अब मैं तुझ से शादी करुंगा। ऐसा कह कर सफेद अंजन डाल कर मुझे बंदरी बना दिया, तीसरे दिन वापिस माकर श्याम अजन डाल कर सुन्दरी बनाकर कहने लगा, हे सुन्दरी लह प्रहण करो, मैं लग्न देखकर माया है। गुरुवार के मध्यान्ह समय शुभ लग्न है। ये सारी सामग्री तू रख, मैं विद्या साधने जाता हैं बुधवार की रात को या गुरुवार प्रातका में मैं आऊंगा। मैंने कहा कि, 'हे विद्याधर ! तू मूर्ख है / या P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #45
--------------------------------------------------------------------------
________________ है ? तू तो पिता के समान है, तो तू मुझ से किस तरह शादी करेगा ? वह हंस कर मुझे बदरी बना गया है। आज बुधवार की रात्रि है आप कौन हैं ? हे साहसिक शिरोमणी आप यहां किस तरह आये हो? यहां से मुझे निकाल कर उस दुष्ट के पंजे में से निकाल कर मेरा उद्धार करें। चन्द्रकला के पति श्रीचन्द्र सोचने लगे, 'कल जो व्यक्ति मेरे द्वारा मारा गया था, वही रत्नचूड होगा।' ऐसा सोचकर निगर्वी राजकुमार ने कहा कि, 'मैं मुसाफिर हूं, दरिद्रता के कारण कुशस्थल को धन प्राप्त करने की इच्छा से धूमता हुआ जा रहा था, इस अटवी में वृक्ष पर सोने के लिये चढ़ा, वहां खोखल का मुह अन्दर की ओर जाते हुये देख मैं उस के अंदर प्रवेश कर गया यहां मैं पाताल महल को देख कर उस पर चढ़ पाया यहां तुम्हें बंदरी पन में देखा / अब हे कृश पेट वाली / तू दुःख क्यों सहन करती है ? तू कुमारी है तो उस विद्याधर के साथ विवाह करने से तू विद्याधरी बनेगी, उसमें तुझे बुरा क्या लगता है ? 'हे नाथ ! आप मेरे भाग्य से आये हैं, जिससे आज मेरी प्रतिज्ञा पूर्ण हुई है। आप संपूर्ण लक्षणों से महान हो। कहा है कि, 'पांच लम्बे, चार छोटे, पांच सूक्ष्म, सात लाल, तीन ऊचे, तीन चौडे, तीन गहरे, और 2 श्याम ये पुरुष के 32 लक्षण कहे गये हैं / दो हाथ, दोने त्र, अंगुली, जीभ और नाक ये पांच लम्बी अच्छी हैं। वांसो, कठ, पुरुष. चिन्ह और जंघा ये चार छोटी अच्छी हैं। दांत, चमड़ी, नख और केश ये चार सूक्ष्म अच्छे हैं। पेट, कन्धे, मस्तक और पैर चार उन्नत शुभ P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #46
--------------------------------------------------------------------------
________________ . * 44 310 हैं। हाथ और पैर के तलुवे, तालव, नेत्रों के कोने, जीभ, नख और होठ ये सात लाल अच्छे हैं / ललाट, छाती और मुख ये तीन चौडे अच्छे हैं / नाभि स्वर और सत्व ये तीन गहरे अच्छे हैं / आंख की की की और बाल ये दोनों काले शुभ माने गये हैं। इस प्रकार बत्तीस लक्षणों से प्राप युक्त हैं यह निश्चित है। 'मुख को आधा शरीर कहा गया है अथवा मुख सारा शरीर भी कहलाता है। मुख में नाक श्रेष्ठ है, उससे श्रेष्ठ चक्षु हैं, उनसे कान्ति श्रेष्ठ है. उससे श्रेष्ठ स्नेह है, उससे भी श्रेष्ठ स्वर है और उनसे श्रेष्ठ सत्व है / सत्व में सब वस्तुयें रही हुयी हैं / ' चन्द्रहास खड्ग किसी साधारण हाथ में नहीं होता। आप मेरे प्राण हैं। मैंने तो आपको ही वरण किया है, मेरे जीवन आप हो / स्वामी आप अकेले हो / प्रभात होते ही वह दुष्ट आयेगा उससे पहले ही हम कहीं निकल चलें जिससे वह हमें देख नहीं सके / फिर आज दोपहर को इस लग्न सामग्री से हे प्रभु ! गांधर्व विवाह से आप मुझे स्वीकार करो। - श्रीचन्द्र ने कहा 'हे भीरु ! तू सुख से यहां रह / डरो नहीं। वह पायेगा तब मैं उसे देख लूगा वह किस तरह का है / परन्तु यहां दोपहर के समय का पता कैसे चलेगा?' मदनसुन्दरी ने कहा 'हे देव ! इस गुफा के नीचे विशाल बड़ का वृक्ष है, उसके नजदीक एक खोखल के छोटे द्वार में से दिन और रात्रि का मध्य भाग दिखाई देता है। उसके बाद प्रातःकाल में मदनसुन्दरी सहित श्रीचन्द्र ने पारणा किया / मध्यान्ह समय में शुभ लग्न में दोनों ने गांधर्व विधि से विवाह किया। मदनसुन्दरी ने कहा हे स्वामिन ! वह विद्याधर क्यों नहीं Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.
Page #47
--------------------------------------------------------------------------
________________ प्राया ? तब श्रीचन्द्र ने जो घटना घटी थी वह यथास्थित कह सुनाई। खराब मन्त्री से राजा पीडित होता है, फल अवधि पर पकता है ताप लम्बे अरसे में टीक होता है और पापी पाप से पीड़ित होता है / उस दिन वहीं रहकर पत्नी सहित सारभूत रत्न और अंजन के दोनों कुप्पों को लेकर जिस रास्ते से आये थे उसी रास्ते से बाहर निकल कर शिला से गुफा के द्वार को बन्द कर पृथ्वी में बहुत सा धन गाड़ कर जिसके हाथ में चन्द्रहास खड्ग उल्लसित है ऐसे श्रीचन्द्र सिंह की तरह अटवी को पार कर एक गांव के नजदीक पाये / सरोवर की पाल पर रुक कर उन्होंने कहा हे प्रिया ! यहां उपवन में ठहर कर रमोई बनाकर भोजन करते हैं। मदनसुन्दरी ने कहा 'पाप सामग्री ले आइये मैं खाना बनाऊगी। सारी सामग्री माली से लेकर मदनसुन्दरी ने अति घी वाले घेवर, पूरी प्रादि वस्तुयें बनाई। प्रतापसिंह के पुत्र ने स्नान करके आभूषणों से भूषित होकर उत्तम तीर्थ की तरफ मुह कर के देववदन की। तब अंगूठी पर नाम देखकर मदनसुन्दरी को पति का नाम मालून हुमा / पहले भाट से सुना था कि 'कुशस्थल राजा के पुत्र रूप, स्फूर्ति बल और कला से युक्त श्रीचन्द्र हैं। वही ये श्री चन्द्र हैं ऐसा जान कर अति आनन्दित होती हुई उनके प्रौदार्य आदि गुणों से अति हर्षित हुई राजकुमारी ने कहा 'हे विभो ! भोजन के लिये पधारो। . श्रीचन्द्र ने कहा कि 'हे भद्रे | आज प्रिया के हाथ से बना हुआ भोजन पहली बार तैयार हुआ है इसलिये मुनि महाराज को बहराकर P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #48
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 46 फिर भोजन करते हैं / वे सरोवर की पाल पर ज्यों ही पाते हैं तो क्या देखते हैं कि दो मुनि बड़ी शान्त मुद्रा वाले उस तरफ ही आरहे हैं / वच्छ और कच्छ नाम के साधुनों को आमंत्रण करके भक्ति और प्रति हर्ष से दोनों ने घी और शक्कर से युक्त घेवर आदि बहाये / बाद में बहुत लोगों को साथ लेकर भोजन किया। बाद में पत्नी के साथ उनके पास जाकर उन्हें नमस्कार कर वहां बैठे। वच्छ मुनि श्री ने धर्म लाभ पूर्वक कहा कि 'चित्त, वित्त और सुपात्र का योग, हे भद्र ! बहुत दुर्लभ है। कहा है कि 'समये सुपात्र दान और सम्यक्त्व से विशुद्ध ऐसा बोधि लाभ और अन्त समय में समाधि मरण अभव्य जीव नहीं प्राप्त कर सकता। उत्तम पात्र साधु साध्वी, मध्यम पात्र श्रावक श्राविका और जघन्य पात्र अविरति सम्यग् दृष्टि जीव होते हैं। इस प्रकार से देशना सुनकर श्रीचन्द्र में विनती की कि 'हे मुनि श्रेष्ठ पापी ऐसे मेरे से अज्ञानतावश उत्तम विद्याधर मारा गया है, उसका मुझे प्रायश्चित दो। वह पाप शल्य की तरह मुझे हमेशा चुभता है। . मुनिश्री ने कहा कि 'हे पुण्यात्मा ! तेरी पाप भीरुता भव्य है, पश्चाताप और दान से तेरी शुद्धि हो गई है। तो भी इस विधि से अरिहंत भगवान आदि को नमस्कार करके, नमस्कार मंत्र का जाप करो / संयोग प्राप्त होने पर अरिहंत भगवान का मन्दिर बनवा देना / सिद्धान्त में इस प्रकार कहा है तो उसे सुनो। महाप्रारम्भ, महापरिग्रह, मांस का आहार करने और पंचेन्द्रिय के वध से जीव नरक P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #49
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 47 110 की प्रायुप्य बांधता है। श्री गौतम स्वामी ने पूछा हे वीर ! किस प्रकार जीव शुभ और दीर्घ आयुष्य को प्राप्त होता है ? भगवान श्री वर्षमान पामी ने कहा 'हे गौतम ! जीव हिंसा न करे, मृषावाद का सेवन न करे, 27 गुणों से युक्त साधुनों को वन्दन करे और दूसरी रीति से मन को प्रिय ऐस' आहार पानी, खादिम और स्वादिम बहराये। इस प्रकार करने से सचमुच जीव शुभ दीर्घ आयुष्य को बांधता है। किये हुए कर्म का क्षय पश्चाताप से या तपश्चर्या से हो सकता है / कर्म को नाश कर देने से ही शान्ति प्राप्त होती है। _ 'तुम्हारी छात्राकार की रेखा से, तुम्हारे ललाट और लक्षणों से तुम भविष्य में महान राजा होने वाले हो ऐसा प्रतीत होता है / इसलिये तुम स्थिर रीति से सम्यक्त्व को पाराधना करो जिस तरह गिरी में मेरु, देवों में इन्द्र, ग्रहों में चन्द्र, देव में श्री जिनेश्वर देव हैं वैसे ही कर्म में मुख्य सम्यक्त्व हैं। जीव ने प्रायः अनंत मन्दिर तथा जिन प्रतिमाएं भरायीं / परन्तु ये सब भाव बिना से करवाई हुई हैं जिससे दर्शन शुद्धि (शुद्ध श्रद्धा) की एक अंश भर प्राप्ति नहीं हुई। जो भाग्यशाली सम्यक्त्व को अन्तर्मुहूर्त में भी एक बार स्पर्श करे तो यह जीव संसार में ज्यादा से ज्यादा अर्व पुद्गल परावर्त ही संसार में रहता है। जो दर्शन से भ्रष्ट है वह भ्रष्ट ही कहलाता है उसको मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती। चारित्र रहित हो तो उसे तो सिद्ध गति प्राप्त हो सकती है परन्तु दर्शन (सम्यक्त्व) बिना जीव की मुक्ति नहीं होती। 'सम्यक्त्व परम देव है, सम्यक्त्व परम गुरु है, सम्यक्त्व परम P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #50
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 48 110 मित्र है, सम्यक्त्व परम पद है, सम्यक्त्व परम ध्यान है, सम्यवत्व श्रेष्ठ सारथी है, सम्यक्त्व श्रेष्ठ बन्धु है, सम्यक्त्व की मती भूषण है, सम्यक्त्व परम दान है, सम्यक्त्व परम शील है, सम्यक्त्व श्रेष्ठ भावना है। चिंतामणी, कल्पतरु, निधि, कामधेनु, नरेन्द्र या इन्द्र पण ये सब इहलौकिक फल देने वाली वस्तुए किसी भी उपाय से इस भव में प्राप्त हो सकती हैं परन्तु सम्यक्त्व प्राप्त करना दुष्कर है / उसे प्राप्त कर जो उसे खो देता है वह अनन्त काल तक संसार में भवभ्रमण करता है। इसलिये सम्यग्दर्शन रूपी रत्न का हमेशा रक्षण करना चाहिये / . 'अगर शीलव्रत का सुन्दर नववाडों से रक्षण होता हो तो वह अच्छी तरह पाला जा सकता है। सागर के बीच नाव में छोटा सा छेद हो जाय तो वह चल नहीं सकती उसी प्रकार क्रियारूपी जीव सम्यक्त्व बिना भव समुद्र से पार नहीं हो सकता / जिस प्रकार महावड़ के वृक्ष का सिर्फ मूल ही उखाड़ा जाय तो भी सारा वृक्ष नाश को प्राप्त होता है उसी प्रकार सम्यक्त्व रूपी मूल अगर नष्ट हो जाय तो शेष चारित्र प्रादि तुरन्त ही नाश को प्राप्त होते हैं। जिस प्रकार स्वामी के मर जाने से या पकड़े जाने से चतुरंगी सेना भाग छूटती है उसी प्रकार सम्यक्त्व के नष्ट होने पर दान, शील, तप और भाव रूप धर्म नाश को प्राप्त होते हैं। 'जिस प्रकार कार्तिक मास के जाने से कमल कान्ति रहित हो विनाश को प्राप्त होता है उसी प्रकार सम्यक्त्व के नष्ट हो जाने पर तो * क्रिया फल बिना की होकर धीरे धीरे नष्ठ हो जाती है। जिस प्रकार P.P.AC..Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #51
--------------------------------------------------------------------------
________________ "."46 सुन्दर महल की अगर नींव नष्ट हो जाय तो वह विशाल महल भी तुरन्त नष्ट हो जाता है उसी प्रकार दर्शन के जाने के बाद सब तत्व नाश को प्राप्त होते हैं / जिस प्रकार सारथी बिना का रथ, रण मैदान में शस्त्र बिना का पुरुष और ईधन बिना की अग्नि नाश को प्राप्त होती है सम्यक्त्व बिना के जीव की क्रिया धार पर लीपने जैसी है / अनाज प्राप्त करने के लिये फूतरों को कूटने जैसा है / सम्यक्त्व बिना चाह्य क्रिया करने वाला अंधेरे में नाचना ऐमा करता है। जिस प्रकार मरे हुए देह का पोषण करना व्यर्थ है उसी प्रकार सम्यक्व विना सब मनुष्ठान व्यर्थ हैं / सम्यवत्व प्राप्त होने के पश्चात प्रात्मा के नरक और तिर्य च गति के द्वार बन्द हो जाते हैं / देव और मनुष्य के उत्तम सुख तथा - मोक्ष सुख स्वाधीन बन जाते हैं / अगर पहले आयुष्य न बांधा हो तो सम्यक्त्व को प्राप्त हुआ जीव वैमानिक देव सिवाय दुसरी गति के पायुष्य को भी नहीं बांधता / श्री जिनेश्वर भगवान के सर्व वचन अन्यथा नहीं होते, उनकी कथित सब बातें सच्ची हैं ऐसी जिसकी बुद्धि है उसका सम्यक्त्व निश्चल है। इस प्रकार गुरु के वचनों को सुनकर श्रीचन्द्र ने उन्हें नमस्कार कर प्रायश्चित ग्रहण कर प्रिया सहित मागे को प्रयाण किया। ..:. क्रम से चलते हुए कल्याणपुर में आये वहीं गुणं विभ्रम राजा राज्य करता है उस नगर के मध्य भाग में बने हुए मन्दिर के दर्शन कर 'जब रह दम्पत्ति बाहर आये तो बहुत नर नारी कदम 2 पर उन्हें P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #52
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 5.4 निनिमेष : दृष्टि से देखने लगे। उन दोनों की अद्भुत आकृति देखकर नगर की कोई स्त्री मदनसुन्दरी का, कोई उसके वस्त्र का, कोई उसकी चाल का, कोई उसके. .मुख का,.. कोई उसके रूप का, कोई कुन्डल का, कोई श्रीचन्द्र का, कोई उनकी प्रांखों का और कोई. उनके प्राभूषणों की प्रापस में बातें करने लगे / बाहर उद्यान में पहले की तरह प्रिया के द्वारा तैयार किया हुआ भोजन करके सरोवर की पाल पर बैठे हैं और पनि जितने में पति के आदेश से भोजन करती है इतने में एक योगी वहां आया। 32 लक्षणों से युक्त श्रीचन्द्र को देखकर विचार करने लगा कि इस पुरुष द्वारा मेरा कार्य सिद्ध हो सकता है गुण-विभ्रम राजा का देह भी ऐसे लक्षणों वाला नहीं है। ऐसा सोचकर योगी उनके पास आकर बोलने लगा कि कोई बिरले पुरुष अपने गुण और दोष जानते हैं, कुछ ही मनुष्य दूसरों के कार्य में सहायता करने वाले होते हैं, चन्द मनुष्य दूसरों के 'दुःख से ' दुःखी होते हैं / यह सुनकर श्रीचन्द्र ने कहा 'तुम कौन हो? और ऐसा क्यों बोल रहे हो / ' "योगी ने कहा कि 'मैं त्रिपुर' नामका योगी खर्पर का छोटा भाई हूं। गुरु के पास से प्राप्त हुई विद्या से परोपकार के लिये सुवर्ण सिद्धि के 'लिये भ्रमण करता हुबा में यहां पाया हूं।' ' मेरा उत्तर साधक हो ऐसा कोई पुरुष मुझे मिला नहीं है। परन्तु तुम आकृति पोर शरीर की कान्ति से परोपकारी दिखाई देते हो / देखो चन्दन के वृक्ष को विधाता ने फल और पत्तों से रहित बनाया है तो भी वह अपनी देहासे...लोकों का उपकार करता है / ता अगर तुम आजारातः अगर मेरे. उत्तर साधक बनो..तो मेरा कार्य सिद्ध . P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #53
--------------------------------------------------------------------------
________________ हो सकता है। कहा है कि हे माता ! दूसरे की प्रार्थना को नहीं स्वीकारने वाले पुरुष को तू जन्म देती नहीं और जिसके द्वारा प्रार्थना का भंग होता हो उसे तो उदर में भी धारण नहीं करती / श्रीचन्द्र ने पूछा कि क्या तत्व है ? तेरे क्या कार्य हैं ? तुझे क्या चाहिये ? सुवर्ण सिद्धि किस तरह होती है ?' योगो ने कहा कि 'रात्रि को श्मशान मे श्रेष्ठ पुरुष के मुर्दे से और सत्वशाली पुरुष के सानिध्य में वह सुवर्ण सिद्धि होती है / दूसरी सामग्री सुलभ है / श्रीचन्द्र ने कहा कि हे योगीन्द्र ! तुम वहां जाकर सब सामग्री तैयार करो मैं निश्चय वहां आऊंगा।' जब वह गया तब पत्नी ने पूछा कि हे राजाओं के इन्द्र ! योगी ने क्या कहा था ? श्रीचन्द्र ने योगी का कहा हुआ सारा वृतान्त कह सुनाया / कांपते हुए अंग वाली मदनसुन्दरी ने कहा कि 'हे नाथ ! यह आप क्या कह रहे हैं ?' ये योगी तो हमेशा कूट आचरण वाले और निर्दयी होते हैं / मैं आपको यहां से कहीं भी नहीं जाने दूंगी / इस प्रकार विवाद करते रात्रि शुरु हुई, मदनसुन्दरी ने श्रीचन्द्र के वस्त्र को पकड़ा हुआ है छोड़ती नहीं है। श्रीचन्द्र ने कहा कि हे प्रिये ! उज्जवल आत्मा का भविष्य उज्जवल होता है जिसके मन, वचन और काया शुद्ध है उसे कदम 2 पर संपदा प्राप्त होती है। 'जिसका अन्तर मलीन होता है उसे स्वप्न में भी सुख दुर्लभ है। इसलिये तू दुखी क्यों होती है ! श्री नमस्कार महामंत्र के प्रभाव से जो होगा शुभ ही होगा / तू बन्दरी होकर वृक्ष पर चढ़कर निर्भय हो जा तुझे दुख है. परन्तु योगी को कहाँ हुआ यह कार्य तो करना ही चाहिये / इस प्रकार कहकर अंजन से: मदनसुन्दरी को बन्दरी बनाकर P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #54
--------------------------------------------------------------------------
________________ 52 10 उसे वृक्ष पर चढ़ा कर हाथ में चन्द्रहास खड़ग लेकर बुद्धिशालियों में अग्रसर श्रीचन्द्र योगी के पास गये / श्मशान में कुन्ड की अग्नि से सबको देखते हुए कुड के नजदीक योगी के पास श्रीचन्द्र खड़े हैं तब योगी ने कहा कि हे वीर पुरुष ! मेरी रक्षा करने वाले बनो / श्रीचन्द्र ने कहा कि 'तुम निर्भयता से अपनी इच्छानुसार साधना करो।' विधि अनुसार श्राप होम आदि विधि करके जब अर्ध रात्रि व्यतीत हुई तब राजा के पुत्र से योगी ने कहा कि 'हे वीर ! इस दिशा में प्रसिद्ध महावड़ की शाखा परएक चोर का शव है वह तुम निर्भय होकर लायो। वह कार्य जब तक नहीं होवे तब तक तुम्हें एक बार भी नहीं बोलना है ' श्रीचन्द्र उस वड़ पर चढ़कर चन्द्रहास से शव के बन्धनों को काटकर उसे पृथ्वी पर पटक कर नीचे उतरे उतने ही में शव को फिर शाखा पर लटकते देखा / साहसिक होकर फिर से बंधन छेदकर शव को कभी कन्धे पर, कभी हाथ में लेकर साहस पूर्वक रास्ते के पास आये / इतने में शव अट्टहास्य पूर्वक बोला कि 'हे प्रवीण ! तू राजा का पुत्रभी है और राजा भी है तो मेरी कथा सुनो। परन्तु राजा के पुत्र के चुप रहने से शव फिर से बोला कि 'तुम हैकार तो दो।' .... . क्षिति प्रतिष्ठित नगर का राजपुत्र गुणसुन्दर है / सुबुद्धि वहा के मन्त्री का पुत्र है। वह दोनों घोड़ों के योग से. एक महा अटवी में प्रा पहुंचे तृषा से पीड़ित वह दोनों विशाल सरोवर के पास यक्ष का मन्दिर था वहां बैठे सुबुद्धि पानी पीकर अश्वों की देखभाल करने लगा। गुणसुन्दर उस सरोवर में क्रीड़ा करते सामने किनारे पर गया / वहा उद्यान में कोई कन्या कमल. हाय में लेकर कमल से पैर को, दांतों का P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #55
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 53 * और काम को अनुकम से स्पर्श कर वेग से अपने स्थान को चली गई। परन्तु गुणसुन्दर उसके भाव को समझा नहीं। इसका क्या मतलब होगा? ऐसा मित्र से पूछा / मित्र ने कहा कि, पद्मावती कन्या दन्त नामका नगर और कर्णदेव राजा की पुत्री तेरे पर अनुराग वाली हुई है। कुमार मित्र के साथ उस नगर में गया। माली के घर ठहर कर पूछताछ कर मालरण द्वारा गुणसुन्दर ने कहलाया कि 'सरोवर के किनारे जिन्हें देखा था वो आये हैं।' . पद्मावती ने चन्दन से गीले हाथ से गुस्से से मालण के मस्तक पर मार कर उसे निकाल दिया। मालण ने सारा वृतान्त गुणसुन्दर से कहा / राजपुत्र ने विलक्ष होकर मित्र से कहा / सुबुद्धि ने कहा कि 'शुद पंचमी को आने का कहा है इसलिये तुम अब प्रसन्न होजाओ / दोनों मित्र किराया देकर अलग जगह रह / 'हे मित्र ! शुद पंचमी तुमने किस तरह जारणी ? कुमार ने पूछा। _ मित्र ने कहा कि 'मालण के मस्तक पर लगे हुए सफेद पांच अंगुलियों से जाना।' पंचमी के दिन उन्होंने मालन को बहुत धन देकर फिर भेजा और पुछवाया कि वे किस मार्ग से आये ? पद्मावती ने कुकुम से रंगे हुए हाथ से गले से पकड़ कर कहा कि 'तू ऐसा बोलती है ? सखियों द्वारा अपमान करवा कर घर के पिछले दरवाजे से दूसरे मंज़िल से रस्सी के द्वारा नीचे उताप / मालण ने आकर कहा कि मैं जीवित प्राई ये ही मैरा भाग्य / ' ऐसा सुनकर मित्र ने कहा 'अभी ठहरो'। . . P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #56
--------------------------------------------------------------------------
________________ | "चार अंगुलियों से गले को पकड़ा इससे ऐसा प्रतीत होता है कि वह रजस्वला है जिससे नवमी की रात्रि को उस तरह पीछे के द्वार से आने के लिये कहा है / ' मित्र के कहे अनुसार गुण पुन्दर वहां गया / उसे देखकर हर्ष को पायी हुई राजकुमारी ने क्रीड़ा करके पूछा 'हे प्रभु ! मेरे हृदय के भाव आपने किस तरह जाने ? कुमार ने मुग्ध भाव से कहा कि मैंने अपने मित्र 'द्वारा जाने / अच्छी तरह भोजन करवा कर विष युक्त लड्ड देवर के लिये दिये / लड्डू देख कर सुबुद्धि ने कहा कि मेरा नाम क्यों बताया ? 'प्रभात में लड्डू नजदीक रखकर शौच क्रिया से निपट कर आता है तो देखता है उस पर मक्खियां मरी हुई हैं, लड्ड को वहीं जमीन में दबा दिया / सुबुद्धि ने कुमार से कहा कि रात को अच्छी तरह से क्रीड़ा करके जब वह सो जाये तो उसकी जंघा पर तीन रेखा बनाकर एक झांझर निकाल लेना / इस प्रकार करके वह प्रोया / बाद में दोनों योगी बनकर श्मशान में गये। सुबुद्धि गुरु और गुणसुन्दर चेला बना।: : .. .. : : .. चेले ने किसी सोनी की दुकान पर जाकर झांझर बेचनी चाही / सोनी ने 'झांझर पर. राजा का नाम देखकर झांझर राजा को -लेजाकर दिखाई। नाम से अपनी जानकर राजा ने सोनी से पूछा यह झांझर तुम कहां से लाये हो ! उसने कहा एक योगी लाया है जो "दुकान पर बैठा है। राजा ने योगी को बुलवा कर पूछा तो उसने कहा कि ये तो मेरा गुरु जाने मुझे नहीं मालूम / गुरु को बुलाकर पूछा P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #57
--------------------------------------------------------------------------
________________ .55 * ये झांझर कहां से प्राई ? : गुरु ने कहा कि आज मैं श्मशान में बैठा था तो वहां एक उत्कृष्ट शक्ति आई, मैंने उसका पैर पकड़ कर जंघा पर तीन रेखा कर झांझर निकाल ली इतने में वह पलायन होगई / राजा ने कन्या को सभा में बुलाया। राजा ने गुरु से पूछा तुम कोई विद्या जानते हो ? उसने कहा हां मैं जानता हूँ। राजा कहने लगे अगर तुम मन्त्र जानते हो तो इसको शक्ति के दोष से वजित करो / गुरु ने कहा 'हे राजा ! आज रात्रि को मेरे द्वारा मंत्रित वस्त्र से कन्या का मुख और नेत्रों को बांधकर पूर्व दिशा में देश के आखिरी किनारे पर हाथ बांध कर छोड़ देना / जो छोड़ने जाय उसको पीछे नहीं देखना होगा। पाठ .. पहर के बाद ये कन्या बिना दोष की हो जायेगी। .गुरु चेले स्वस्थान पर गये / राजा ने कन्या को योगी के कहे बनुसार रास्ते में रखवा दी। वे दोनों अश्वों पर चढ़कर वहां पहुंचे बंधन खोल कर स्वदेश: ले गये / कन्या ने कहा देवरजी ! ऐसा काम : क्यों किया ? सुबुद्धि ने कहा कि ये मेरी लड्डु ओं का कार्य है मेरा नहीं। / पाठ पहर व्यतीत होने पर राजा वहां पहूँचा परन्तु पुत्री वहां मिली : नहीं जिससे राजा का हृदय फट गया / ये पापः किसे लगे ? कन्या, को * कुमार को, राजा को या मित्र को ? जानते हुए भी नहीं बोले तो वह / पाप तुम्हें लगेगा। थोड़ी देर ठहर: कर, प्रतापसिंह राजा के पुत्र ने कहा . : कि ये पाप राजा को लगे क्योंकि उसने कुमारी कन्या का इतनी बड़ी : : उमर तक ब्याह नहीं किया इसलिये ; सजा कारण भूता है / दूसरी तरह से देखें तो चारों को लगता है क्योंकि चारों उसमें कारणभूत हैं / कुमार के बोलते ही शव वापस शाखा पर चिपट गया. इस प्रकार तीन बार P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #58
--------------------------------------------------------------------------
________________ हुना / चौथी बार बड़ ऊपर से शव को लेकर चले तो शव ने कहा कि, 'हे राजाधिराज ! तुम योगी के पाम किस तरह आये हो ? यह बहुत धूर्त है। तुमसे साधना सिद्ध कर तुम्हे मार देगा।' उसके वचन सुन श्रीचन्द्र विचारने लग गये। इतने में ही मध्यमवय वाली एक स्त्री आई / श्रीचन्द्र ने पूछा तुम कौन हो ? वह रुदन करती हुई बोली मैं नन्द गांव में रहती हूँ। में मेरा पति है, किसी समय चोरी करता था जिससे राजा ने इसे मार कर पेड़ पर लटकाया है / मैं उसे देखने आई हूं। वह स्त्री जितने में उसे चन्दन लगाती है उतने में ही शव ने उसकी नाक काट ली। वह स्त्री तो गांव में चली गई। श्रीचन्द्र शव को योगी के पास लाये / योगी ने स्नान करा कर उसकी पुष्पों से पूजा कर मांडले में कुन्ड के पास रखा / 13 शव के हाथ में तलवार देकर उसके पर के पास श्रीचन्द्र को दूसरी तरफ देखते हुये खड़े रखकर कहा कि ऐसा चितवन करो कि मेरा कार्य सिद्ध हो पीछे की ओर मुड़कर देखना नहीं।' श्रीचन्द्र ने नवकार मन्त्र से शरीर की रक्षा कर तिरछी दृष्टि से शव पर ध्यान रखा। योगी ने उड़द के दाने मंत्रित करके शव पर डाल कर हुंकार किया। शव थोड़ा खड़ा हुआ चारों तरफ देखकर शान्त होगया / योगी ने श्रीचन्द्र से पूछा 'क्या सोच रहे हो ?' जैसा मन, वैसा ही वचन और वचन जैसा वर्तन हो उसका कार्य सिद्ध हो ऐसा श्रीचन्द्र ने कहा / तब योगी बोला ऐसा कहो कि योगी का कार्य सिद्ध हो / योगी ने मन्त्रित फिर दानेशव पर डाले और हूंकार किया। लाल 2 अांखें कर शव खड़ा P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust ..
Page #59
--------------------------------------------------------------------------
________________ -ॐ 57 हुआ और कहने ल IT 'अरे दुष्ट ! मुझे शल्य वाले शव में उतारता है ? उसका फल तुझे अभी चखाता हूँ। ऐसा कहकर योगी को उठा कर अग्नि कुण्ड में होम दिया / श्रीचन्द्र मना करते रहे / __ योगी सुवर्ण पुरुष होगया / सुवर्ण पुरुष को कहीं दबाकर प्रभात में वंदरी के पास जाकर उसे अंजन से मदनसुन्दरी बनाकर उसे सारा हाल कह सुनाया। ये सुनकर आश्चर्य से प्रिया बोली 'हे नाथ ! सुवर्ण पुरुष का क्या प्रभाव है और उससे क्या होता है ? श्रीचन्द्र ने कहा कि सुवर्ण पुरुष की विधि से पूजा कर उसके चार अंगों को ग्रहण करके वस्त्र से ढक देने से प्रभात में वह सुवर्ण पुरुष फिर से अखंड अगों वाला हो जाता है। इस प्रकार हमेशा करने से वह मनुष्य उसके प्रताप से दाता, भोक्ता और लक्ष्मीवान बनता है।' परन्तु सुवरणं पुरुष पर मेरा मन नहीं है कारण कि अन्याय से उत्पन्न हुआ धन होने से, हिंसा से बने होने से, प्रथम व्रत के खंडन से इसका भोग करना दयालु आत्माओं को योग्य नहीं है / इस प्रकार बातें करते हुए दोनों प्रागे के लिये रवाना हुए। इतने में गुणविभ्रम राजा क्रीड़ा के लिये वहां पाया उसने तालाब की पाल पर दोनों को देखा / जितने समय में आम्न वृक्ष की छाया में बैठने को होता है उतने ही समय में परदेश से आया हुना भाट बोला, 'परस्त्री सहोदर, अनाथ की लक्ष्मी के सामने दृष्टि भी नहीं रखने वाले, अथियों के लिये कामधेनु * ऐसे श्रीचन्द्र जय को प्राप्त हों। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #60
--------------------------------------------------------------------------
________________ . 580 जिस श्रीचन्द्र ने शून्य नगर को देखकर, नगर में जाकर राक्षस को पैर मसलने वाला सेवक बनाया, कुण्डलपुर का राज्य प्राप्त कर चन्द्रमुखी को ब्याहे, स्वनाम से चन्द्रपुर नगर जिसने बसाया, जो राधावेध और धनुर्विद्या में विशारद है। जगत में अजोड़ ऐसे जगत के राजा श्रीचन्द्र जय को प्राप्त हों। प्रतापसिंह राजा के पुत्र श्रीचन्द्र मय को प्राप्त हों। महेन्द्रनगर में त्रिलोचन राजा की जन्म से अन्ध पुत्री की श्रेष्ठ कमल के पत्र जसी अांखें जिसने की वे श्रीचन्द्र जय को प्राप्त हों। विद्याधर वन में जिनके मस्तक पर रायण वृक्ष ने दूध बहाया और चन्द्रलेखा को व्याहे ऐसे श्रीचन्द्र जय को प्राप्त हों। कान्ति नगरी में मदनपाल के लिये अपने बहाने से प्रियं गुमंजरी से परणे सकल स्त्रियों के लक्षणों के जानकार श्रीचन्द्र जय को प्राप्त हों / वह सारी श्रीचन्द्र की कीर्ति सुनकर विस्मित होकर गुणविभ्रम राजा ने पूछा 'हे बारोट ! तुम कहां से आये हो ? वह बोला 'मैं कुण्डलपुर नगर से आया हूँ, अब मैं अपने भाई के पास वीणापुर नगर को जा रहा हूं। मदनसुन्दरी भाट के वचन सुनकर बहुत हर्षित हुई और कहने लगी हे नाथ ! आज आपका चरित्र सुना है, उससे पहले ही मेरा चित्त आप पर अनुरागित था। श्रीचन्द्र ने प्रिया से कहा 'श्रीचन्द्र नामके अनेक मनुष्य होते हैं।' मदनसुन्दरी ने कहा 'हे नाथ ! अभी भी आप अपनी मात्मा को प्रदर्शित नहीं कर रहे हैं ? उसका उत्तर उन्होंने हास्य से P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #61
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 560 दिया। उसके बाद राजा अपने नगर में चला गया। बाद में राजकन्या ने अर्थी को सुवर्ण मुद्रिका दी। वीणापुर के रास्ते में जाने हुए एक कोतवाल भटक गया। श्रीचन्द्र को देखकर प्राश्चर्य से कहने लगा तू कौन है ? यह खड्ग किसका है ? ये मुझे दे दे। श्रीचन्द्र कहने लगे अगर खड्ग की इच्छा हो तो अपने खड्ग को तैयार कर तो खड्ग भी बताऊं और दे सकू। उन तेजस्वी वचनों को सुनकर वह अधम नगर में गया, राजा की आज्ञा से सेनापति के साथ जल्दी वापस पाया। सेना को आता देख चकित हो कहने लगी 'हे प्रभु / पीछे से क्या विशाल सेना पा रही है ?' युद्ध में समर्थ श्रीचन्द्र ने हंस कर कहा 'तुम घबराओ नहीं, मेरे आगे खड़ी हो जायो / उसे मागे करके खड्ग को दृढ़ता से पकड़ कर श्रीचन्द्र खड़े रहे / 'स्त्री और खड्ग के चोर तू कहां जाता है ? तू अभी मर जायेगा। मारो 2 ऐसा कहते हुए सेना वहां आई / ___ इतने में तो सिंहनाद पूर्वक श्रीचन्द्र सम्मुख होकर सिंह की तरह संग्राम करने लगे। उनके सिंहनाद से भयभीत होकर राजा के हाथी, रथ, अश्व एक दूसरे पर गिरने लगे। कितने ही तो मृत्यु को प्राप्त हो गये / कितने अधमुए हो गए, वे भागते हुए कहने लगे कि हम तो व्यर्थ में ही मारे गये ये तो कोई विद्याधर है / ये दृष्टि से भी दिखाई वहीं देता। जिसकी दोनों भुजायें प्रिया द्वारा पूजित हैं ऐसे श्रीचन्द्र किसी समय जल्दी से कभी धीरे 2 चलते पत्नी सहित चलते हुए P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #62
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 500 सिद्धपुर में आये। वहां उन्होंने सुना कि यहां जिन चैत्य है. उसकी बहुत ही महिमा है, वहां अनेक देशों से लोग यात्रा के लिये प्राकर . पक्षत, वस्त्र, फल और नैवेद्य आदि अनेक प्रकार से पूजा करते हैं। . संघ के जाने के बाद वणिक आदि वहां के लोग देव के द्रव्य को विभाजित कर हमेशा ले लेते थे। उस कारण देव द्रव्य के भक्षण से वे लोग दिन प्रतिदिन निधन हो गये / दुलक्षय होगये, जिससे सिद्धपुर नगर छाया बिना का होगया। उनका ये स्वरूप जानकर श्रीचन्द्र ने प्रिया सहित श्री जिनेश्वरदेव को नमस्कार कर प्रिया से कहने लगे कि, 'इन लोगों के घर देव द्रव्य का भक्षण होता है इसलिये यहां का अन्न पानी लेना योग्य नहीं है। बाद में वृद्ध लोगों से कहा कि 'ये जिन मन्दिर जीर्ण क्यों दिखाई दे रहा है ? यह तो बहुत खराब बात है मथवा यह अशुभ की निशानी है / 'किसी भी प्रकार का कर्ज अशुभ माना गया है, उसमें भी देव द्रव्य का कर्ज विशेष प्रकार से अशुभ है। देव द्रव्य से स्वधन की वृद्धि करनी, उस द्रव्य से प्राप्त हुग्रा धन, वह धन कुल को नाश कर देता है / मृत्यु के बाद वह जीव नर्क में जाता है / आगमों में कहा है कि जिन प्रवचन की वृद्धि करने वाला, ज्ञान दर्शन का प्रभावक और देव द्रव्य का रक्षण करने वाला तीर्थकर पद को प्राप्त करता है / ' . 'देव द्रव्य के भक्षण से और परस्त्री गमन से जीव सातमी नरक में सात बार जाता है / जो श्रावक देव द्रव्य का भक्षण करता है मोर उसकी उपेक्षा करता है वह प्रज्ञाहीन बनता है। कर्म से लिप्त हा P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #63
--------------------------------------------------------------------------
________________ जाता है / इसलिये तुम लोग ऐसा कोई उपाय करो जिससे पाप से मुक्ति हो / इस प्रकार कह कर दूसरे ग्राम में जाकर उन्होंने भोजन वि या / वहां से आगे चलते हुए दूसरे दिन वन में से जाते हुए दिन के अस्त होने के कुछ समय पहले मदन पुन्दरी थक गई। जिससे श्रीचन्द्र कहने लगे कि 'प्रिये ! गांव तो अभी दूर है, तुम्हारे पैर थक गये हैं इसलिये इस बड़ वृक्ष के नीचे ही यहां रात्रि र. तीत करते हैं, झोपड़ी की कोई जरुरत नहीं है। वहां ही संथारा करके दोनों लेट गये / प्रथम दो पहर व्यतीत होने पर रास्ते की थकावट के कारण मदनसुन्दरी को तो नींद प्रागई / श्रीचन्द्र जाग रहे थे, चारों तरफ निरीक्षण की दृष्टि से देख रहे थे इतने ही मे दक्षिण दिशा की तरफ रत्न जैसे तेज को देखकर कुतूहल वश वहां गये / वह तेज दौड़ता हुआ कभी दूर तथा कभी पास दिखाई देता था। इस प्रकार देखते हुए बहुत दूर निकल गये, इतने समय में तेज बन्द होता दिखाई दिया / ये इन्द्रजाल है ऐसा मानकर जिस रास्ते से गये थे उसी रास्ते से वापस आगये। प्राकर संथारे पर बैठ कर प्रिया से कहने लगे 'हे प्रियतमे ! कमल की श्रेणियों से सुगन्ध पाने लगी है / पृथ्वी पर कूकड़ बोलने लगे हैं ठंडक होने से अब तुम अच्छी तरह से चल सकोगी, रात्रि व्यतीत होने पर है इसलिये उठो। प्रिया ने कोई जवाब नहीं दिया कुछ क्षण ठहर कर फिर बोले कि 'हिरनियें घास खाने के लिये जा रही हैं, तेजस्वी सूर्य उदयाचल के शिखर को स्पर्श करने की तैयारी में हैं, है P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #64
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 62 10 प्रिया उठो, उत्तर न मिलने से मदनसुन्दरी के संथारे पर हाथ फेरते हैं वहां तो मदन गन्दरी नहीं था। वियोग से दुखी श्रीचन्द्र चारों दिशाओं में निरीक्षण करते हैं परन्तु प्रातःकाल में कहीं पर भी मदन. सुन्दरी के पैर के निशान दिखाई नहीं देते / उन्होंने विचार किया कि मुझे तेज के बहाने भ्रमित और मुग्ध करके किसी ने प्रिया का हरण किया है परन्तु वह वहां किस प्रकार रह सकेगी? कोई भी मनुष्य जिसे मन में भी नहीं ला सकता पौर जहां कवि की कल्पना भी नहीं पहुंच सकती वह कार्य पूर्व कृत कर्म रूपी विधि करती है। अघटित को घटित करती है और सुन्दर वस्तु को बिगाड़ देती है / इस प्रकार विधाता मनुष्यों ने कभी जो सोच। भी म हो वह कर देता है। जो भाग्य में लिखा हो वही लोगों के सामने प्राता है फिर वैसी ही सूझ उत्पन्न होती है। इन सब बातों को सोचकर धीर पुरुष दुख में घबराते नहीं। इस प्रकार उत्सुक चित्त वाले उपाय सोचने लगे। किसके मनोरथ नहीं टूटते ? सब मनोरथ किसके फले हैं / किसे इस लोक में सम्पूर्ण सुख है ? कौन भाग्य द्वारा खंडित नहीं हुआ ? धूर्त लोग भी स्खलना को पा जाते हैं / तत्व को जानने वाले श्रीचन्द्र ने इस प्रकार सोचकर भागे को प्रयाण किया / चलते 2 कनकपुर नगर के पास माये वहां थोड़ी देर के लिये सरोवर की पाल पर वह वृक्ष के नीचे थकान मिटाने के लिये सो गये / उसी समय उस P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #65
--------------------------------------------------------------------------
________________ 63 10 नगर का राजा कनकध्वज दैवयोग से असुत्रिया ही मृत्यु को प्राप्त हो गया मन्त्रियो ने राज्य की अधिष्ठायिक देवी की आराधना की। बह आई तब उससे पूछा कि राज्य पर किसे स्थापित करें। देवी ने कहा कि 'पंचदिव्य को अधिवासित करो। जिसके मस्तक पर हथिनी अभिषेक करे उसे तुम राजा बना दो। पंचदिव्य तीन दिन नगर में भ्रमण करके नगर के बाहर प्राये। पांच दिव्यों ने श्रीचन्द्र पर अभिषेक किया / हथिनी ने श्रीचन्द्र पर कलश से अभिषेक किया / प्रश्व स्वयं हिनहिनाने लगा, छत्र मस्तक पर अपने पाप आगया, चामर अपने आप दोनों तरफ झूमने लगे / श्री चन्द्र सोचने लगे क्या बात है ? मंत्री ने कहा कि 'हे नाथ ! नवलखा देश का राज्य स्वीकार करो। 'इस नगर का कनकध्वज राजा मृत्यु को प्राप्त हुआ है, उनके नवलखा देश में हमारे भाग्य से पाप राजा हुए हो, राजा की कनकावली नाम की पुत्री है उसके साथ पाणिग्रहण करो। लक्षमण आदि मंत्री बहुत ही प्रसन्न हुए। चन्द्रहास खड्ग से देदीप्यमान अंग वाले, कुन्डल पादि से विभूषित और नाम की अंगूठी से श्रीचन्द्र इस प्रकार का अद्भुत नाम जानकर, देखकर हर्ष से विधि पूर्वक श्रीचन्द्र को राज्य पर स्थापित किया। कनकावली को बायीं मोर उत्सव पूर्वक अभिषेक करके बैठाई। राज्याभिषेक का महोत्सव नगर के लोगों ने बड़े ठाठ से P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #66
--------------------------------------------------------------------------
________________ # 64 1 मनाया। बन्दीखाने से बन्दी जनों की मुक्ति, करमोचन, देव पूजा, गीत मृत्य आदि से श्रीचन्द्र राजा का विशाल महोत्सव हुआ / लक्षमण मन्त्री ने राजा से विनती की कि 'हे देव ! आप श्री के सदाचार से स्वयं प्रापश्री की उत्तमता मालूम हो गई है / ' कहा है कि 'याचार कुल को प्रदर्शित करता है, संम्रम स्नेह को बताता है पौर रूप से भोजन का वर्णन हो जाता है फिर भी आदर से गाते हुए लोग आपश्री के वंश और माता पिता के नाम को जानने की इच्छा करते हैं / यह सुनकर राजा ने सारी सभा के समक्ष बताया कि जब हरिबल माछीमार विशाला नगरी में गया तब क्या नगर के लोगों ने माता पिता मोर कुल को जाना था ? इसलिये हे भाग्यवान पुरुषों ! तुम्हें कुल प्रादि का नाम जान कर क्या करना है ? आप लोगों को तो गुण चाहिये दूसरी चीजों से क्या प्रयोजन है ? यह जवाब सुनकर लोग मौन हो गये। एक बार उस नगर में मनोहर आवाज वाला गायक वीणापुर राजा की पुत्री के स्वयंवर में जाता हुआ वहां आया और राजमार्ग में श्रीचन्द्र के प्रबन्ध को गाने लगा।' 'कुशस्थल के राजा प्रतापसिंह की रानी सूर्यवती ने अोरमान पुत्र के भय से पुष्पों के समूह में पुत्र को रखा था वह श्रेष्ठी के घर वृद्धि को प्राप्त हुआ उसका नाम श्री चन्द्र ऐसा प्रसिद्ध हुआ। बाद में राधावेध, पद्मिनी से पाणिग्रहण वीणारव को दान देना और विदेश गमन आदि बात सुनकर नगर के लोगों ने इच्छित दान देकर पूछा कि तुमने 'श्री' श्रीचन्द्र को देखा है ? बड़े P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #67
--------------------------------------------------------------------------
________________ गायक ने कहा कि 'मेरे पिता ने देखा था और दान प्राप्त किया था। उनकी बहुत सी कवितायें हैं परन्तु मुझे नहीं पाती / दूसरे दिन प्रातःकाल मंत्री राज्य सभा में गये तो राजा ने पूछा कल रात को आप क्यों नहीं आये ? मंत्रियों ने जो सुना था कह सुनाया, कुछ हंसकर राजा अवनत मुख होकर मौन रहे / लक्ष्मण मंत्री सोचने लगा ये वे ही होने चाहिये / मंत्री को विचाराधीन देख, राजा चतुरंग सेना सहित वन में गये / अश्वों द्वारा बहुत क्रीड़ा करके विश्रान्ति के लिये प्राम्र वृक्ष के नीचे बैठे और जाति के अनुसार अलग 2 तरह के घोड़े निकालते हैं, इतने में पश्चिम दिशा की तरफ से जिसके कन्धे पर लकड़ी और हाथ में जल पात्र है ऐसे देदीप्यमान गोल मुख वाले और ऊंचे कपाल वाले, एक मुसाफिर को दूर देश से आया हुआ जानकर सैनिकों द्वारा बुलाया। वे जितने में राजा के पास आता है दूर से ही श्रीचन्द्र राजा को देखकर हर्ष के आंसुओं सहित उसने कहा कि 'अहो आज बादल बिना वृष्टि अहो ! पुष्प बिना फल, अहो मेरा पुण्य, मैंने अपने स्वामी को देख लिया / ' उसको श्रेष्ठ गुणचन्द्र जानकर राजा ने तत्काल प्रालिंगन किया। श्रीचन्द्र के चरण कमलों में मस्तक को भ्रमर की तरह बहुत . लम्बे समय तक झुका कर नमस्कार करके उचित प्रासन पर बैठा / राजा के मित्र को मन्त्रियों ने और नगर के लोगो ने बड़े आदर से नमस्कार किया। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #68
--------------------------------------------------------------------------
________________ : राजा ने पूछा 'हे मंत्रि पुत्र ! तुम अकेले कैसे पाये ? किस 2 मार्ग से होकर आये हो ? तुमने कुशस्थल को कब छोड़ा ? माता पिता कुशल हैं ? तुम्हारी भाभी कहां है ? मेरे प्रयाण के बाद वहां क्या 2 हुआ ? ये सब बातें कहो / ' सब कुछ सुनकर मंत्री पुत्र ने कहा 'आपके आदेश से मैंने खजांची से हिसाब लिया, परन्तु मेरे शरीर में बार 2 पालस आने के कारण प्रभात होते ही आपके घर आया, वहां आपको न देखकर चन्द्रकला भाभी को चिन्तातुर देखकर मैंने पूछा 'हे स्वामिनी ! स्वामी कहां है ? आप जानती होंगी ? मैंने बहुत बार पूछा तब उन्होंने गद् गद् कंठ से मूल से आखिर तक का वृतान्त कह सुनाया। जिससे मैं बहुत दुखी हुआ। मैंने पूछा मेरे बिना स्वामी कैसे चले गये ? तब स्वामिनी ने कहा कि 'तुम्हें पिता का वियोग न हो इसलिये तुम्हे छोड़ कर देशाटन गये हैं। जैसे तैसे भी तुम पति के मित्र होने से तुम्हारे सिवाय और किसी को कहने की मनाई की है। आपके वियोग से सारी रात्रिये दुख में व्यतीत हुई / मैं भाभी को दुखी देखकर बार 2 उनके पास जाता था। 'आपके माता पिता के पास रही हुई चन्द्रकला को चेन न पड़ने के कारण बड़े लोगों के कहने से पद्मिनी राजमहल में गई / महेन्द्रपुर का मन्त्री सुन्दर वहां आया / उससे आपको वहां तक की हकीकत की जानकारी हुई। कुंडलपुर से मन्त्री विशारद आया जो घटना घटी थी कह सुनाई। आपकी बुद्धि से सूर्यवती रानी बहुत ही हर्षित हुई, आपका मिलाप न हो तब तक वेवर, लड्डु घृत आदि के त्याग का अभिग्रह किया है / वे सभगी होने के कारण ज्यादा दुखी हो रही हैं / आपश्री के स्वजन P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #69
--------------------------------------------------------------------------
________________ म 67* राजा, श्रेष्ठी आदि सब कुशल मंगल में हैं सिर्फ आपके ही वियोग का दुख है। प्रभु की दिशा जानकाय प्रतापसिंह राजा ने बहुत से सैनिक भेजे हुए हैं। मैं भी आपके स्नेहवश सब धनंजय को सौंप कर बहुत सैनिकों के साथ निकला था। कुन्डलपुर में चन्द्रलेखा और चन्द्रमुखी से आपकी सारी हकीकत जानी महेन्द्रनगर में जाकर सुलोचना राजकुमारी को नमस्कार कर हेमपुर के स्वरूप को प्राप्त कर कान्तिपुर में पाया, प्रियंगुमंजरी बहुत हर्षित हुई उन्हें नमस्कार कर इस दिशा की तरफ आया। मार्ग में दूसरे रास्ते भी निकलते थे उन रास्तों पर सैनिकों को भेजा नगर, गांव, वन इस तरह सब जगह आपकी खोज करते इस नगर में श्रीचन्द्र राजा हैं ऐसा सुनकर हर्ष से जल्दी मैं इस तरफ आया मार्ग में अश्व मृत्यु को प्राप्त हुआ जिससे पैदल चलकर अकेला पाया हूं। आज मापश्री को देखकर कृत्य 2 होगया हूं मुझे जो दुख था अब वह सुख रूप में बदल गया है। ___मन्त्री सामन्तों आदि ने गुणचन्द्र से अपने राजा के माता पिता और कुल जानकर हर्षित होते हुये अपने 2 घर गये / मित्र को महान् अमात्य पद पर स्थापित किया। इस प्रकार किये पूर्व तप के प्रभाव से श्रीचन्द्र राजा विशाल राज्यको मित्र सहित चला रहे हैं / कहा है कि 'धर्म के प्राधार पर ही जगत है, वही धर्म सत्पुरुषों के उपयोग में स्थिर स्वरूप वाला है वे सत्पुरुष जो सत्यनिष्ठ होते हैं वे सत्य सुख रूप सन्तोष को धारण करते हैं अर्थात् सुख रूप सन्तोष उत्पन्न करता है और वह सन्तोष उन्मत्त विषयों के विजय से उपार्जित जय वाला है और वह जय तप से ही साध्य है अर्थात् यह सारी तप की ही महिमा है सारांश यह है कि . उपरोक्त सद्गुण उत्तरोत्तर संबंधित है / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #70
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 68 10 [ चतुर्थ खराड ] कुछ समय व्यतीत होने पर श्री चन्द्र राजा को मदनसुन्दरी याद आई / लक्ष्मण मंत्री को अच्छी तरह समझा कर मित्र सहित दो उत्तम अश्वों पर बैठ कर थोड़ी ही देर में भयंकर अटवी में आये / वहां वृक्ष ____ पास एक योगी को अतिसार रोग से पीड़ित देखकर श्रीचन्द्र योगी की अनेक प्रकार से सेवा करने लगे और दूर रहे हुए भिल्लपति के गांव से पथ्य औषध आदि लाकर अनेक प्रकार से उपचार किया / राजा ने तेल आदि मसल कर स्नान कराकर योगी को स्वस्थ बनाया। जिससे योगी ने अति हर्षित होते हुए कहा 'हे पुण्यात्मा ! मेरा अभी भी भाग्य उदय में है ऐसी दुर्दशा में भी तुम जैसा बुद्धिशाली मिला / यह अति दुर्लभ पारसमणी तुम ग्रहण करो इसके स्पर्श से सब घातुए सुवर्ण के रूप में बदल जाती है। तुम भाग्यशाली हो जिससे मैं तुम्हें यह समर्पित करता हूँ / पृथ्वी को अनृणी करना, जिनालय बनवाना मेरी मृत्यु के पश्चात इस स्थान पर एक मठ बनवाना / इस प्रकार कह कर श्रीचन्द्र के मना करने पर भी जबरदस्ती पारसमणी उन्हें दे दी। श्रीचन्द्र राजा ने योगी के वचन स्वीकार किये। उस योगी के मर जाने पर उसके कहे अनुसार वहां मठ बनवाया। वहां से मित्र के साथ राजा प्रयाण करते हुए एक वन के मध्य भाग में आये / वहां बांस का जाली में 108 पर्व वाला एक बांस पका हुअा और सीधा शास्त्र लक्षणा से युक्त जानकर उसे काट लिया। उसे काट कर उसके बीच में से एक मोती के जोडे को निकाला। मित्र को श्रीचन्द्र ने कहा जो बड़ा है वह P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #71
--------------------------------------------------------------------------
________________ नर है और जो छोटा है वह मादा है। बुद्धिशालियों को यत्न पूर्वक नारी का रक्षण करना चाहिये / नारी जहां है वहां स्वयं नर रात्रि को आता है परन्तु दूसरों को छलने का कारण होने से इससे उत्पन्न हया धन दुष्ट कहलाता है। आगे जाकर जहां वन खतम होता था वहां श्रीगिरी को देखकर श्रीचन्द्र मोहित होगये / वहां गुफानों को देखते हुए प्यास से व्याकुल हो उठे। कुछ ही क्षणों पश्चात् किसी स्त्री के रोने की आवाज सुनाई दी उसका दुख दूर करने के लिये भयंकर पाश्रम में जाकर उससे पूछने लगे कि 'तुम क्यों रो रही हो ?' पानी कहां है क्या तुम जानती हो ? दो महापुरुषों को आया देख गुफा के अन्दर से उसने जल पूर्ण कुम्भ लाकर दिया। परन्तु वह जल उन्होंने नहीं पीया / इसलिये जहां जल था वह जगह बताई वहां जल में स्नान करके वे दोनों स्वस्थ हुए। भीलड़ी ने कहा 'ये महान् श्री पर्वत है, नजदीक़ में वीणापुर नगर में पद्मनाभ राजा है उसका एक गांव यहां भी है / उसके स्वामी का स्वर्ण कुभ चोर चुरा कर ले गये / उनके पैरों के चिन्ह यहां तक आये, परन्तु चोर तो कोई और है और वे लोग मेरे स्वामी को पकड़ कर ले गये हैं उसके पास से स्वर्ण कुम्भ मांगते हैं, उस दुख के कारण मैं रुदन करती थी। श्रीचन्द्र कहने लगे 'हे भद्रे ! तुम लोहे का कुम्भ खाली करके ले प्रायो, वह लोहे का कुम्भ ले आई, पारसमणी के योग से उस कुम्भ को अग्नि की सहायता से सुवर्ण का करके, दूसरों के दुख को P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #72
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 700 दूर करने वाले श्रीचन्द्र ने वह भीलड़ी को दिया / उसको लेकर वह जल्दी से गांव को गई। वीणापुर नगर में सूर्यवती के पुत्र श्रीचन्द्र किल्लों मोहल्लों को देखते हुए मित्र के साथ पवन को खाते हुए आनन्द का अनुभव करते हुए किसी स्थान पर विश्रान्ति लेते हैं इतने में पूर्व भव में जिस तोती ने अनशन किया था इस. भव में वह पद्मनाभ राजा की पुत्री पद्मश्री हुई है वह मंत्री की पुत्री कमलश्री के साथ नगर के बाहर क्रीड़ा करके वापिस जारही थी वहां उसने श्रीचन्द्र को देखा और उन पर मोहित हो गई। उसने चंदन का कटोरा भरकर सखी द्वारा बुद्धि की परीक्षा के लिये भेंट भेजा, उसे देखकर राजा ने पूछा 'ये क्या है ? सखी ने कहा 'पद्मनाभ राजा की रानी पद्मावती की पुत्री पद्मश्री ने आपको यह भेंट भेजी है उसे सफल कीजिये। यह सुनकर राजा ने सोचा 'यह कटोरा भोग के लिये नहीं भेजा गया है अपितु मेरी बुद्धि की परीक्षा के लिये भेजा है। उन्होंने चन्दन के कटोरे के मध्य अपनी छोटी अंगुली की मंगूठी रखकर सखी को कचोले सहित वापिस भेजा / फिर से पद्मश्री ने खुले पुष्प भेजे / राजा ने पुष्पों की माला बनाकर वापस भेजी। तब गुणचन्द्र अमात्य ने पूछा ऐसा आपने क्यों किया ? राजा ने उसको अपना भभिप्राय कह सुनाया, पद्मश्री ने अद्भुत बुद्धि से मेरी परीक्षा ली है / इस चन्दन के कटोरे की तरह यह नगर पहले भी उत्तम पुरुषों से भरा हुआ है उसमें इस अंगूठी की तरह मेरा स्थान अपने पाप हो P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #73
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 71 10 जायेगा / पुष्पों की तरह हम अकेले हैं और गुण बिना के हैं परन्तु पुष्प माला की तरह इकठ्ठ होकर सुगुण वाले बनकर इष्ट वस्तु को प्राप्त कर लेंगे। पद्मश्री के हृदय के भाव को जानने वाले पूर्व भव के इच्छित रूप में सूर्य समान ऐसे तेजस्वी श्रीचन्द्र को पद्मश्री ने मन में पति धारण कर लिया और मन्त्री की पुत्री कमलश्री ने अमात्य गुणचंद्र को पति धारण कर लिया। दोनों कन्यायें उत्तम वरों को बड़े प्रेम से देखने लगीं / वह दोनों कुमारिकायें अपने 2 माता पिता को बताने स्वस्थान पर गयीं। सुवर्णकुम्भ देकर छुड़ाये गये भील को भीलड़ी ने जब सारा वृतान्त सुनाया तो वह भील राजा को नमस्कार करके उन्हें अपने स्थान पर ले गया। प्रभात में पके हुए मधुर प्रानफल उन्हें भेंट किये / फलों से दोनों ने अपनी क्ष धा मिटा कर पूछा कि हेमंत ऋतु में आम्रफल कैसे ? भील ने कहा इस गिरि के पांच शिखर हैं उन सब में जो उच्च शिखर ईशान दिशा की तरफ है वहां श्रीगिरि की अधिष्ठनायिका विजयादेवी का मन्दिर है वहां पर हमेशा फल देने वाला आम का देवी वृक्ष है, उसमें से मैं प्रतिदिन अाम्नफल लाता हूँ। यह पर्वत बहुत ऊंचा और विशाल है चारों तरफ में सिर्फ एक ही मार्ग है, मेरे सिवाय ऊपय जाने में और कोई समर्थ नहीं है, वृद्धों के कहे अनुसार मैं गाऊ आदि जानता हूँ। आइये पधारिये ऊपर जाकर पर्वत की सुन्दरता को देखकर हम आनन्द मनायें। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #74
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 72 ॐ __ मित्र और भील सहित राजा श्रीगिरि पर गुफा, वन, शिखर आदि हर्ष से देखने लगे। बाद में ऐसे तालाब में जहां निर्मल जल में कमल खिले हुये थे उसमें श्रम को दूर करने के लिये स्नान किया उतने में भील सदाफल देने वाले उद्यान में से अमृत जैसी पकी हुई अधपकी द्राक्ष, पके हुए आम्रफल, रायण, केले, खजूर, जामुन, जंबीर, अमृत जैसे बीजोरे, नारंगी, दाड़म, आमली, (इमली), पीलू, फणस, गुन्दे, बोर, खरबूजे, पकी हुई इमली, कितने ही प्रकार के पानी, श्रीफल का पाणी, नागरबेल का पान, इलायची, लविंग, भवली के फल आदि उनके खाने के लिये ले प्राया। कमल के समूह, खिले हुए चंपक, केतकी, मालती, मल्लिका, कुन्द, फूल आदि सब वस्तुएं उपभोग के लिये ले आया। उन सबको राजा ने सफल किया। श्रीगिरी के चारों तरफ सुन्दरता को देखकर राजा सोचने लगा कि देवी के आदेश से समय आने पर सुन्दर नगर स्थापन होगा और उस नगर के मध्य के शिखर पर विधि पूर्वक श्री अरिहन्त परमात्मा का मन्दिर बनवाऊंगा। कुछ समय वहां ठहर कर भील को उचित उपदेश देकर अश्वों पर बैठ कर प्रयाण किया। ताप से व्याकुल होने के कारण वह सरोवर की पाल पर रुके / वहां एक प्रवासी आया उसके हाथ में पोपट और पोपटी का पिंजरा था, शास्त्र युक्ति से उनको बुलाकर बहुत हर्षित हुये / राजा ने पूछा 'इन्हें कहां से प्राप्त किया है ? क्या इन्हें बेचना है ? वह बोला 'नंदीपुर नगर के हरिषेण राजा की पुत्री तारालोचना Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
Page #75
--------------------------------------------------------------------------
________________ 73 31 के ये तोता तोती हैं, मेरी मार्फत वीणापुर में पद्मश्री सखी को भेजे हैं, तारालोचना ने कहलाया है कि तेरे स्वयंवर पर अनेक राजा आयेंगे, तो उस समय मैं जरूर पाऊंगी। वीणापुर में स्वयंवर के लिये मंडप तैयार हो रहा है, उसे देखने राजा मित्र सहित वीणापुर गये / वहां राजा, मंत्रा, सामन्त आदि अनेक प्रकार के लोग आये थे। उन सबको प्राश्चयं युक्त करते हुए श्रीचन्द्र राजा मंडप में पाए / हरि भाट ने उन्हें देखकर कहा 'पात्र में दिया हुआ दान पुण्य को उपा• जन करवाता है। 'गरीब को दिया हुआ दान दया को दर्शाता है, मित्र को दिया हुआ दान प्रीति की वृद्धि करता है शत्र को दिया हुप्रा दान बैर का नाश करता है, भाट को दिया हुप्रा दान यश की प्राप्ति करवाता है, राजा को दिया हुअा दान सन्मान दिलाता है और सेवक को दिया हुआ दान भक्ति उत्पन्न करता है / तो हे श्रीचन्द्र राजा ! आपका दिया हुआ दान किसी भी स्थान पर फल बिना का नहीं होता। .. परनारी सहोदर, दूसरों के दुख देखने में कायर, दूसरों के उपकार के लिये तत्पर, अर्थी के लिये कल्पतरू जैसे श्रीचन्द्र हैं। इत्यादि भाट ने कहा इतने में राजा ने कहा तुम्हारी इच्छा फले ऐसा कह कर भाट को उचित दान दिया / श्रीचन्द्र राजा ने अपने मित्र से कहा कि यहां रहने पर हम लोग पहचाने जायेंगे / ऐसा कहकर श्रीचन्द्र राजा रात्रि में ही उत्तर दिशा की तरफ प्रस्थान कर गये / वहां किसी यक्ष के मन्दिर में बाकर सो गये, प्रात:काल जागने पर रात्रि में जो स्वप्न आया था वह मित्र को बताने लगे कि मेरु गिरीपर P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak' Trust
Page #76
--------------------------------------------------------------------------
________________ 74 10 कल्पवृक्ष की छाया में कोई अद्भुत देवी लक्ष्मी, कुलदेवी या ब्राह्मी ने मुझे गोद में लिया है इस प्रकार का अद्भुत स्वप्न मैंने अभी देखा है जिससे मुझे महान् लाभ होना चाहिये इसमें कोई संशय नहीं है / इतने में अटवी में से कोई चकित लोचन वाली देदीप्यमान आभूषणों से युक्त लाल फटे हुये वस्त्र वाली सगर्भा सधवा स्त्री अति वेग से प्रारही थी। अमृत के अंजन वाली दृष्टि है जिसको ऐसी माता को देखकर श्रीचन्द्र एक दम उठकर सन्मुख गये और दोनों चरणों में नमस्कार करके कहने लगे, हे माता ! दुख और मन का खेद अब गया समझो, भय भी गया अब जाणो, मेरे भाग्य से तुम यहां किस तरह आई ? श्रीचन्द्र के वचन सुनकर और उसे देखकर हर्ष से जितने में मन्दिर में जाने लगती है इतने में श्रीचन्द्र के नाम वाली अंगूठी देखकर पहचान कर अति हर्ष के कारण उसके स्तनों से दूध झरने लगा / ललाट को देखकर पूछने लगी कि क्या तुम लक्ष्मीदत्त सेठ के घर प्रसिद्धि पाये हुए श्रीचन्द्र हो ? राजा ने ऊ कहकर हां कही। पुत्र जानकर हर्ष से आंसू बहाती हुई गोद में लेकर आंसुओं से नहलाती हुई गाढ़ स्वर से रुदन करती हुई कहने लगी 'हे वत्स ! मैं तेरी मां सूर्यवती हूं। तू मेरा पुत्र है, प्राज हे पुत्र ! बारह वर्ष बाद दृष्टि से मिला है। (हस्तलिखित रास में 24 वर्ष लिखा है) ऐसा कह कर दृढ़ आलिंगन कर हर्ष से पागल जैसी होगई / श्रीचन्द्र को भी अपनी मां जानकर बहुत खुशी हुई और कहने लगे हे माता / तुम माता कैसे हो ? लाल वस्त्र वाली किस लिये ?. यह कहा / सूर्यवती ने स्वचरित्र, विवाह आदि, नैमित्तिक की वाणी, स्वप्न, चार P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #77
--------------------------------------------------------------------------
________________ का पान, नाम मुद्रा, पुष्पों के समूह में रखना, देवी का वचन, ज्ञानी मुनि आदि के वचनों को कह सुनाया। ... . 'मैं गर्भवती होने के कारण मुझे विषम प्रकार का दोहद उत्पन्न हुअा कि 'मैं रक्त की नदी में क्रीड़ा करू" राजा ने मंत्रो की बुद्धि से लाख के रस पूर्ण बावड़ी बनवाई उसमे मैं क्रीड़ा कर रही थी, चारों तरफ सैनिकों का पहरा था बहुत समय तक पानी में कीड़ा करके मैं तीर पर आई, मेरे लाल गीले वस्त्रों के कारण मांस की भ्रांति से भारण्ड पक्षी मुझे आकाश में ले गया, भ्रमण करता हुआ भारण्ड पक्षी श्राखिरकार 'नमो अरिहंताण' ऊंची आवाज में बोलने के कारण मुझे शिला पर रखकर एकदम चला गया। गुफा में रात्रि व्यतीत कर प्रातःकाल होते ही मैं इस दिशा की ओर रवाना हुई, दुष्ट पक्षियों के भय से डरती हुई दैवयोग से यहां आ पहुँची हूं। तुझे देखकर हे पुत्र ! __ मैं हर्ष को प्राप्त हुई है और आज मेरे सारे अभिग्रह पूर्ण हुए हैं / मेरे और तेरे वियोग से तेरे पिता बहुत दुखी होंगे / __ श्रीचन्द्र माता की स्तुति करने लगे / हे माता मेरा पुण्य वृक्ष आज फला जिस कारण प्राप मिलीं, मैं धन्य और कृतकृत्य हुपा हूं, कृत पुण्य हुआ हूँ / आज तो मुझ पर बादल बिना की वृष्टि हुई है आज मुझे कैसे मां दिखाई दे गई। जिसने गर्भ को वहन किया जन्म बेला की उग्र पीड़ा को सहन की, फिर जिसके द्वारा पथ्य आहार, स्नान, स्तनपान, श्रादि प्रयत्न पूर्वक करवाया गया, विष्टा, मूत्र प्रादि मलिन कार्य कठिनता से करके पुत्र को जल्दी रक्षण करवाया उस मां की स्तुति में P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #78
--------------------------------------------------------------------------
________________ ___किर शब्दों से करूं? बाद में श्रीचन्द्र का सारा चरित्र गुणचन्द्र ने .. ___ मां को कह सुनाया उसे सुनकर सूर्यवती रानी बहुत ही हर्षित हुई। . पदचिन्हों के जानकार पुरुष पद चिन्हों के अनुसार वहां आये - और कहने लगे हे मंत्रीश्वर ! दोनों जने ये बैठे हैं। बुद्धिसागर मंत्री _ ने देदीप्यमान ललाट से युक्त श्रीचन्द्र राजा को नमस्कार किया और विनती की कि हे देव ! पहले आपको देखकर पद्मश्री आप पर मोहित .. हो गई है मेरी पुत्री अमात्य गुणचन्द्र पर मोहित हैं ऐसा जानकर राजा . ने मुझे आपकी शोध के लिये भेजा है और कहलाया है कि वे स्वयंवर ____ में प्रायें तो पहचान कर वरमाला पहनाना। इतने में नन्दीपुर के हरिषेण राजा की पुत्री तारालोचना द्वारा भेजा हुआ तोता तोती का युगल वीणापुर के राजा के पास पहुँचा / राजा की गोद में बैठी हुई राजकुमारी पद्मश्री उन्हें देखकर बेहोश हो गई हवा आदि उपचारों के द्वारा उसे होश आया / राजा के पूछने पर पद्मश्री ने कहो हे तात ! मुझे पूर्व भव का स्मरण हो पाया है। कर्कोट द्वीप में मैं तोती थी वहां से मैं कुशस्थल में सूर्यवतो रानी के पास आई वहां प्रथम जिनेश्वर के मन्दिर में जिस वर को देख कर मैंने अनशन किया था वे यहां आये हुए हैं उनके साथ ही मैं ब्याह करूंगी ऐसा कहकर उसने भोजन लेना छोड़ दिया। इतने में हरि भाट ने आकर कहा कि स्वयंवर मंडप में मैंने श्रीचन्द्र को मित्र सहित देखा है। रात्रि में ही सेना तथा भाट सहित आपकी खोज करने भेजा है मेरे P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #79
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 774 भाग्य से आप मुझे यहां मिले हैं / हे देव ! प्राप यहां पधारो हरि भाट ने सूर्यवती रानी को पहिचान लिया। रानी और पुत्र सहित वहां का राजा वहां प्राया, सब आपस में मिलकर हर्षित हुए। नगर में ठाठ से प्रवेश किया / हरि भाट श्रीचन्द्र के इस प्रकार गुण गाने लगा 'कुशस्थल में प्रथम जिनेश्वर के पास तोती ने जिन्हें देखा और यह कहा कि अगले भव में ये ही मेरे पति हों और अब राजकुमारी ने उन्हें ही वरण किया है वे श्रीचन्द्र जय को प्राप्त हों। गुरुवचन से अनशन करके तोती इस भव में पद्मश्री राजपुत्री बनी, प्रथम दृष्टि में जिन्हें वर धारण किया और जाति स्मरण ज्ञान से जिन्हें पहचान लिया वे श्रीचन्द्र जय को प्राप्त हों / गर्भ में वीर पुत्र हो तब रक्त में खेलने का बेहद उत्पन्न होता है उस प्रकार से जिन्हें भारण्ड पक्षी दबोच कर श्रीगिरि के नजदीक उन्हें रख गया वह सूर्यवती माता जिन्हें बारह वर्ष बाद मिली वे श्रीचन्द्र जय को प्राप्त हों। - कनकपुर के कनकध्वज राजा की पुत्री कनकावती सहित जो राज्य का पोषण करते हैं और दैवी सुवर्ण के नवलखा हार से श्रेष्ठ शोभा वाले नवलखा देश के स्वामी जय को प्राप्त हों इत्यादि बोलते हुए भाट को सूर्यवती आदि ने बहुत दान दिया। माता के प्राग्रह से पद्मश्री और तारालोचना श्रीचन्द्र को ब्याही और कमलश्री गुणचन्द्र को ब्याही / श्रेणिक राजा ने श्री वर्धमान स्वामी से पूछा कि पूर्व भव के स्नेह के ., कारण पद्मश्री ने श्रीचन्द्र को वरण किया, उसी तरह कमलश्री का पूर्व P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #80
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 78 * भव में गुणचन्द्र के साथ क्या स्नेह था ? भगवान श्री वर्षमान स्वामी ने फर्माया 'पूर्व भव में जो घरण था वह श्री शत्रुजय गिरि पर छठु. अहम के तप और श्री परमेष्ठी मंत्र के ध्यान से दो हत्या के पाप से क्षणवार में मुक्त हो गया जो सिंहपुर में श्रीदेवी थी वह दूसरे भव में श्रानन्दपुर में सुन्दर श्रेष्ठी की जिनदत्ता पुत्री हुई / वह जिनेश्वर भगवान को धर्म क्रिया में रत थी, अनुक्रम से यौवन को प्राप्त हुई। हृदय में पति की इच्छा वाली कुमारी पिता के साथ संघ लेकर यात्रा के लिये श्री सिद्धाचल तीर्थ पर गई / धरण को तीर्थ की सेवा करते देख जाति स्मरण ज्ञान से पूर्व भव के ज्ञान होने से उसका चरित्र और पूर्व भव का योग जान कर धरण ने उसके साथ क्षमापना कर अनशन लिया / बाल ब्रह्मचारिणी ने संलेखना तप किया, घरण उस तीर्थ की महिमा से गुणचन्द्र हुआ, जिनदत्ता यहां कमलश्री बनी। बाद में बडे ठाठ से विवाह हुआ। वहां दान शालाए प्रादि खुलवा कर श्रीचन्द्र वहां के राजा बने / बुद्धिसागर मन्त्री को बहुत ऊंटनियों सहित कुशस्थल प्रतापसिंह रोजा के पास भेजा / और उसे कहा कि कनकपुर में लक्ष्मण मन्त्री का समाचार कह कर कुशस्थल जाना और सारा वृतान्त कह सुनाना। श्रीगिरि में भील ने भीचन्द्र राजा को सुवर्ण की खान बतलाई वहां राजा ने श्रीचन्द्रपुर नामक एक विशाल नगर बसाया / श्रीगिरि के बीच के शिखर पर चार द्वार वाला श्रीचन्द्र प्रभु स्वामी का विशाल P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #81
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 76 10 देरासर बनाया इस प्रकार उन्होंने श्रेष्ठ नगरा बसायी / नगरी के चारों तरफ भयंकर जंगल था। पूर्व पुण्य के प्रभाव से चिंतामणी रत्न से और सुवर्ण की खान द्वारा श्रीचन्द्र राजा ने पुण्य महोत्सव, जैन मन्दिर, दानशालायें, प्याऊ, आश्रम और आराम गृहों से सारी पृथ्वी को सुशोभित बना दिया / दानशाला में एक दिन एक मुसाफिर आया था / उसको राजा ने पूछा, तुम कहां से आये हो ? उसने कहा कि मैं कल्याणपुर से कनकपुर होता हुअा अाया हूं। उस देश का राजा कहीं बाहर गया है, उसके राज्य को लेने के लिये 6 राजा चढ़ आये हैं परन्तु वहां के राज्य का गुणी मन्त्री लक्ष्मण चतुरग सेना से युक्त होकर लड़ाई के मैदान में सामने खड़ा हुआ है। तत्काल राजा ने मन्त्रणा करके शत्रु पर गुणचन्द्र प्रादि सैन्य सहित पद्मनाभ राजा को भेजा / राजा श्री चन्द्र सैन्य को उत्साहित करने के लिये थोड़ी दूर तक उनके साथ गये, फिर सूर्य अस्त होने से पहले वापस कुछ सेना साथ लेकर लौट आए / - श्रीगिरी का चारों ओर से निरीक्षण कर किसी रास्ते के छोटे गांव में ठहरे। वहां एक पास की एक शांत झोंपड़ी के पास आये वहां एक मुसाफिर ने कहा कि कल कुन्तलपुर नगर में सुधन सेठ के घर जबरदस्ती से मैं वहां सोया था / वह सेठ कंजूस है उसके चार पुत्र हैं / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #82
--------------------------------------------------------------------------
________________ मध्य रात्रि में उनकी चारों बहुए स्नान करके, शृगार आदि करके वड़ के वृक्ष पर बैठ कर कहीं गई। मैं डरता हुआ वहां रहा / रात्रि के अन्तिम पहर में बाहिर घूम कर बापस पाई। वहां से निकल कर मैं पंच योजन दूर यहां माया हूं। यह सुनकर श्रोगिरि के राजा श्रीचन्द्र वहां सेना को छोड़ कर अकेले आगे के लिये निकले / अदृश्य गोली के प्रभाव से संध्या समय सुघन श्रेष्ठी के घर पाराम के लिये ठहरे। मध्य रात्रि में बहुए स्नान आदि कर शृगार आदि से सुशोभित होकर घर के बाग में गई। राजा भी उनके पीछे चल पड़ा / शमी वृक्ष पर चढकर परस्पर बातें करने लगी कि कहां चले ? एक ने कहा कि मैंने कर्कोट द्वीप की बातें सुनी हैं इसलिये वहां चलें / श्रीचन्द्र राजा शमी वृक्ष के मूल को पकड कर बैठ गये / ... बहुए बोलीं, योगिनीनों में मुख्य खर्परा, जो विद्या को देने वाली है उसे हमारा नमस्कार हो। ऐसा कहने पर मन्त्र द्वारा वृक्ष आकाश में उड़ने लगा वह कुछ ही क्षणों में कर्कोट द्वीप में पहुंच गया / नगर के नजदीक किसी अच्छे स्थान पर वृक्ष को खड़ा करके, कुतूहल से नगर के अन्दर गयीं, उनके पीछे 2 राजा भी क्रीड़ा करते हुये आये वे आगे गयीं इसलिये राजा ने कुतूहल से उस नगर के मुख्य द्वार से अन्दर प्रवेश किया। विविध जाति के चंदरवों से युक्त आश्चर्यकारी विशाल मंडप में दीपकों की लाइनें थीं। वहां एक सिंहासन रखा हुआ था आगे भाग P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #83
--------------------------------------------------------------------------
________________ में मणी और मतियों से जड़ित पाद पीठ वाले सिंहासन को देखा। श्रीचन्द्र कौतुकवश कुछ सोचकर उस पर बैठ गये और मुंह में से अदृश्यकारिणी गोली निकाल ली। जिसके हाथ में तलवार है ऐसे श्रीचन्द्र निर्भय होकर बैठ गये नजदीक में जो थाल पड़ा था उसमें से तांबुल ग्रहण कर ज्योंही दर्पण में मुख देखने लगते हैं उतने ही में दूसरे पर्दे के पीछे 2 हे हुए सेवकों ने तत्काल प्राकर कहा 'हे वीर, आप जय को प्राप्त हों।' वाजिब नादि साज बजने लगे। गीत, नृत्य, करते हुए उन्होंने कहा कि आज सबका भाग्य फल गया है। इतने ही में नगर का राजा सेना सहित वहां पाया / श्रीचन्द्र ने उसको नमस्कार करके पूछा 'यहां क्या है ? राजा ने सिंहासन पर बैठकर श्रीचन्द्र को गोदी में बैठा कर कहा. तुम हमारे भाग्य से यहां आये हो / कर्कोट द्वीप के प्राभास नगर में मैं रविप्रभा राजा हूँ। मेरे 6 पुत्रियें हैं। कनकसेना, कनकसुन्दरी, कनकमंजरी, कनकप्रभा, कनक प्राभा, कनक माला, कनकरमा, कनकचूला और मनोरमा पुत्रियों के यौवन प्राप्त होते ही मैं चिंतातुर हुा / एक बार एक निमित्तक आया, उससे मैंने पूछा कि इन कन्यानों के पति अलग होंगे या एक ही पति होगा? कुछ विचार कर उसने कहा कि इन सबका एक ही भर्तार होगा। वह परद्वीप में होने से मेरा ज्ञान वहां तक पहुंच नहीं सकता, जिससे नाम, कुल, स्थल आदि बता सकू। परन्तु आज से दसवें दिन. मध्य रात्रि के बाद वह आयेगा / तब से सारी सामग्री तैयार करवाके रखी है, वह शुभ दिन आज ही है सब कुछ सत्य.निकला। इसलिये अब आप कन्याओं के P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #84
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 829. साथ पाणिग्रहण करो। राजा के आग्रह से श्रीचन्द्र ने 6 कन्याओं से विवाह किया / वहां के नगर के लोग और वे चार बहुएं भी देखने आई और कहने लगीं यह योग अद्भुत रूप से हुआ। उन्हें देखकर श्रीचन्द्र विचारने लगे ये चली जायेंगी तब मेरा क्या होगा ? तो मैं भी इन्हीं के साथ जाऊं। . ऐसा सोच कर बुद्धिशाली ने विवाह की विधि के बाद ऊपर महल में प्राकर लग्न वस्त्र पर कुंकुम से 'प्रतापसिंह का पुत्र श्रीचन्द्र कुशस्थल मैं हूं' इस प्रकार लिखकर अल्प रात्रि शेष रही तब स्ववेष धारण कर अपनी अंगूठी कनकसेना को देकर और उसकी अंगूठी लेकर शरीर चिंता के बहाने वहां से बाहर निकले / राजा जल्दी 2 चलकर वृक्ष के पास पहुंचे। वहां 6 स्त्रिये पहले से ही खड़ी थीं। उनमें मुख्य खर्परा, दुसरी उमा और चार वहुए थीं। खर्परा ने कहा हे उमा ! ये बहुएं अपने घर बहुत दुःखी थी। इनके घर में भिक्षा के लिये गई थी इन्होंने बड़े आदर से मुझे उत्तम भिक्षा दी, जिससे मैंने सन्तुष्ट होकर इन्हें विद्या दी / खर्परा न फिर कहा, हे भद्रे ! उमा मेरी शिष्या है। इसके पति के गुम हो जाने पर इसने दूसरा पति कर लिया है। यहां हम आश्चर्य देखने इकट्ठा हुई हैं अब कौतुक देखने कुशस्थल हम चल रही हैं। चारों बहुओ ने पूछा वहां क्या कौतुक है ?; सर्परा ने कहा प्रतापसिंह राजा के सूर्यवती राणी P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust .
Page #85
--------------------------------------------------------------------------
________________ + 83 1. है वह राणी रक्त की बावड़ी में स्नान करके किनारे पर बैठी थीं उसी समय भारण्ड पक्षी ने वहां से उठाकर उनका हरण कर लिया। उसके वियोग से दुखी होकर राजा काष्ट भक्षण के लिये तैयार हुअा है। उसके मंत्रियों ने बड़ी कठिनता से आज प्रभात होने तक रुकने का कहा है / प्रतापसिंह ने मन्त्रियों से कहा कि राज्य सूर्यवती के पुत्र को देना / आज प्रभात में अब राजा काष्ट भक्षण करेंगे। खर्परा उमा सहित वृक्ष पर गई। श्रीचन्द्र ने सोचा मेरे पुण्य से आज मुझे यह वृक्ष मिला है, सचमुच किसी उपाय से पिता को बचाना चाहिये / ऐसा सोचकर अदृश्य पणे में खर्परा के वृक्ष के मूल में दृढ़ता से उसे पकड़ कर बठ गये। कुछ ही क्षणो में कुशस्यल पहुंच गये / वहां क्या देखते हैं कि सैकड़ों लोगों से राजा व्याप्त हैं और काष्ट भक्षण की तैयारी में हैं श्रीचन्द्र अवधूत का वेश बनाकर वहां जाकर बोले ठहरो, कुछ क्षणों के लिये ठहरो। राजा ने कहा तुम क्या जानते हो? श्रीचन्द्र चिन्तन करते हों ऐसी मुद्रा बना कर बोले तुम दुख को छोड़ दो, सूर्यवती पुत्र सहित आपको थोड़े ही दिनों में मिलेगी। क्षेम कुशल के समाचार आठ दिन के अन्दर मिलेंगे। . मन्त्रियों ने हर्षित होकर कहा हे देव ! यह सत्यवादी दिखाई देता है, इसलिये एक सप्ताह और ठहर जाइये / गोत्र देवी ही इन्हें यहां ले आई है। इनके वचन सत्य होंगे / चिता को ठण्डी करके, देवी की स्तुति कर आनन्दित होते हुये राजा ने अवदूत सहित नगर में प्रवेश किया। छुपते हुए श्रीचन्द्र दोनों वृक्षों को देखने गये परन्तु वे दिखे P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #86
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 84 10 नहीं। दोपहर में भूखे राजा तथा प्रवदूत ने भोजन किया / राजा ने पूछा इस छोटी उम्र में पाप योगी कैसे बने / श्रीचन्द्र कहने जिस मनुष्य का पेट भरा हुआ हो तो उसके शरीर में स्नेह, स्वर में मधुरता, बुद्धि, लावण्य, लज्जा, बल, काम, वायु की समानता, क्रोध का अभाव, विलास, धर्म शास्त्र, पवित्रता, प्राचार की चिन्ता, और देवगुरु नमस्कार ये सब बातें संभवित होती हैं। योग की साधना के लिये, गुदे के मूल में चार दल वाला आधार चक, चार अक्षर लिखने मध्य में 'ह' अधिष्ठान चक्र 6 कोने वाला, ब-भ-म-य-र-ल नाभि में मणि पूरक चक्र दश दल में दस अक्षर, 'क से ठ' तक के कंठ में विशिद्धी सोला चक के सोला स्वर, ललाट में आज्ञा चक्र ह और स इस प्रकार योग की साधना की जाती है। जिसमें सकल संसार के हित के करने की शक्ति है, वर्ण रूप है जिसका ऐसे ब्रह्म बीज को नमस्कार करता हूं। राजा इस प्रकार दिन और रात अवदुत से चर्चा करते रहते हैं। परन्तु अपना पुत्र है यह नहीं जानते / अवद्त सारे राज्य का निरीक्षण करता है। किस समय वह अन्तपुर में गये होते हैं वहां जय आदि भाइयों ने मंत्रणा की कि 'राजा की प्रिया के दुख से मृत्यु होने वाली थी, परन्तु अवदूत ने आकर रोक दिया अब हमें राज्य किस तरह मिलेगा ? एक ने कहा कि चार दिन में लाख का महल बनवावें वास्तु मूहर्त के बाहने बीच के कमरे में राजा को बैठाकर द्वार बंधकर उस जला देवें। इस षडयंत्र को 'श्रीचन्द्र' ने अदृश्य रुप से सुन लिया। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #87
--------------------------------------------------------------------------
________________ 985 श्रीचन्द्र सुन कर जल्दी से अपने उतारे पर आये और वहां से उस लाख के महल तक की सुरग बनवा दी / गुप्त रीति से यह कार्य हो गया। पांचवे दिन जय प्रादि के प्राग्रह से राजा ने अवदत सहित महल में प्रवेश किया / बाद में द्वार बन्ध कर राजकुमारों ने आग लगा दी / राजा ने अवदून से पूछा, ऐसा कैसे हो गया ? 'श्रीचन्द्र' ने कहा, राज्यलुब्ध तुम्हारे पुत्रों ने राज्य लेने के लिये षड़यंत्र रचा है / यह लाख का महल आपको और मुझे मारने के लिये बनाया है। कुमारों को धिक्कार है, लोभ वश पिता को भी मारने के लिये तैयार हो गये। राजा ने कहा अब क्या करें ? तत्क्षण अवदूत ने पैर के प्रहार से सुरंग को खोल कर उस गुप्त सुरग में प्रवेश किया, इतने में तो महलं जल कर गिर गया। राजा सोचने लगे, यह विधन किस प्रकार टल गया ? अवदत की बार 2 प्रशंसा करते राजा उसके उतारे पर पहुँचे / राजर्जा को मरा हुआ मानकर, जय भाइयों सहित राज्यसभा में छत्र स्थापन करने लगा, लोग व्याकुल हो उठे, मंत्री लोग बुद्धि हीन हो गये। अंत राजा से कहने लगा, राजन् नगर बरबाद हो जायगा, लुटेरे राज्य और भन्डार को लूटने लगेंगे / राजा ने उसी समय अपने अंग रक्षको को बुलाया, वे आयें और राजा को जीवित देख कर, हर्षित होकर, रानी की आज्ञा से सैनिकों ने जय आदि चारों भाइयों को लकडी के पिंजरे में बन्द कर दिया।...... .... . . .. . P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #88
--------------------------------------------------------------------------
________________ + 86 * - प्रतापसिंह राजा छत्र, चामर और अवदुत सहित सुशोभित हो रहे थे / राजा सुवर्ण, रत्न आदि अवदूत को देते हैं परन्तु वह लेता नहीं है / वे कहने लगे, कार्य सिद्ध होने के बाद लूगा / रोजा ने कहा, तुमने मुझे दो बार मरने से बचाया है, इससे भी बढ़कर कोई कार्य सिद्ध होने वाला है ? इसलिये हे भद्र ! तुम प्राधा राज्य ग्रहण कर मुझे ऋण मुक्त करो। इस प्रकार राजा प्रतिदिन कहते हैं परन्तु वह लेता नहीं है / परोपकारी पुरुर्षों को संपदा हर कदम पर प्राप्त होती हैं / सातवें दिन बुद्धि सागर मंत्री कुशस्थल पहुंचा, उसने द्वारपाल द्वारा कहलाया / राजा के आदेश से मंत्री ने राजसभा में प्रवेश किया, उसे देखकर 'श्रीचन्द्र' हर्षित हुये। राजा के समीप पत्रिका रखकर मंत्री ने कहा हे देव ! वीणापुर में सूर्यवती रानी पुत्र सहित कुशल मंगल में हैं / गुणचन्द्र सहित श्रीचन्द्र राजा जय को प्राप्त हो रहे हैं / मैं कनकपुर में लक्ष्मण मंत्री को समाचार कह कर यहां प्राया हूं। मैं आपके पुत्र को मंत्री हैं, वहां उनके साथ जो घटनायें ही घटी थीं कह सुनायीं / राजा ने श्रेष्ठी पादियों का पत्र उन्हें देकर अपने पुत्र के पत्र को हषं से पढ़ने लगे / मंत्री के साथ आया हुआ हरिभाट सविशेष पद हर्ष से गाने लगा / पुत्र और प्रिया के शुभ समाचार को सुनकर हर्ष के अश्रु ओं से पूर्ण नेत्रों से नगर में विशाल महोत्सव कराया / 'श्रीचन्द्र' ने मंत्री द्वारा कहलाया था उसी अनुसार धनंजय सेनापति ने चन्द्रकला पद्मिनी को उनके पिता के घर से लेकर बुद्धिशाली राजा सहित श्रीगिरि पर जाने के लिये Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC..Gunratnasuri.M.S..
Page #89
--------------------------------------------------------------------------
________________ प्रयारण किया। सब वाजिंत्रों के नाद, से जयकल श हाथी मद से उद्दत होकर, स्थंभ को उखाड़ कर, महावत को मार कर, नगर में घरों, दुकानों, श्रादि को गिराता हुआ सारी नगरी को परेशान करने लगा। तब लोग पीड़ित होते हुये शोर करने लगे। उसे सुनकर प्रतापसिंह राजा ने क्या 2 हैं ? ऐसे कहते हुये महल पर चढ़कर हाथी को देखा / सैनिकों को आदेश दिया, दौड़ो 2 जल्दी पकड़ो, छल से हाथी पर चढ़कर उसे __ अंकुश द्वारा खड़ा करो। मद से परवश बना हुप्रा हाथी सैनिकों को देखकर ओर विगड़ा, अश्वों, रथों, हाथियों, नर-नारियों को कुचलता हुअा, कुशस्थल को बिलोने की तरह मथता हुप्रा, राजद्वार के नजदीक आया हुआ देखकर राजा आकुल व्याकुल हो उठा / राजा ने सपरिवार जीने की आशा छोड़ दी, / परन्तु ज्योंही हाथी राज द्वार के पास आया त्योही अवदुत ने अंकुश युक्त होकर वहां आया / ... .. प्रतापसिंह राजा के मना करने पर तथा लोगों के हा हाकार मचाने पर भी, गज-शिक्षा में दक्ष श्रीचन्द्र स्ववस्त्र से जयकलश को कोपायमान करके, सब लोगों के भय से देखते हुये, उसके मर्म को. जानने वाले ऐसे श्रीचन्द्र उसे अपने कब्जे में कर, जयकलश के कंधे पर चड़ बैठे / श्रीचन्द्र को गिराने की कोशिश कराता, डराता हुआ तथा क्रीड़ा को करता हुअा हाथी बड़े वेग से विशाल अटवी में आया, बहुत जल्दी ही अपने देश को छोड़कर वन में आ पहुंचे / तीसरा दिन था निर्माद होकर जयकलश हाथी ने पर्वत के नजदीक स्वयं खड़े रहकर : - P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #90
--------------------------------------------------------------------------
________________ अपनी मूट से राजा को पानी पीने के लिये उतारा / स्नान करके, पानी पीकर स्ववेप को धारण करके जयकला को आवाज दी यहां प्रायो, और फिर हाथी पर आरुढ़ हो गये। कुशरथल के राजा ने सेना सहित जयकलश का पीछा किया, रात्रि तक सब जगह खोज करवायी, सब सैनिक खाली हाथ वापिस लोटे / राजा निराश होते हुये बोले 'हस्ति रत्न गया उसके लिये मेरा मन उतना दुखी नहीं, उससे अधिक दुख, जीवन रुपी रत्न को बचाने वाले, सत्य को बोलने वाला अवदूत गया उससे हो रहा है / उसका उपकार मैं कुछ भी नहीं चुका सका / उसके उपकार से दवे हुये राजा ने उसकी बड़ो प्रशंसा की / इधर जयकलश पर बैठे हुये श्रीचन्द्र राजा ने लीला करते हुए दूसरे वन में प्रवेश किया। वहां भीलों ने हस्तिरत्न छीनने के लिये कहा कि तुम कहां जा रहे हो ? चारों तरफ बाणों से भीलों को सज्ज देखकर, श्रीचन्द्र राजा स्थिर होकर, प्राते हुये बाणों का नाश करने लगे / हस्ति रत्न को श्रीचन्द्र ने इशारा किया, आज्ञा होते ही वृक्ष की शाखा को धारण कर, पत्थरों आदि के टुकड़ों से उस बलवान राजा ने भीलों को जीता। सब भीलों को दूर कर, वृक्ष के नीचे वे महान क्रान्ति वाले राजा बहुत सुन्दर दिखाई दे रहे थे / भोला को किस ने हटाया ये देखने के लिये वहां भील निये आयी। भील राजा की पुत्री मोहिनी श्रीचन्द्र को देखकर मोहित हो। पिता से कहने लगी मेरे तो यही पति होंगे दूसरा कोई मेरा पति नहीं / जिससे भीलों के राजा ने बड़े वेग से आकर दो हाथ जोड़कर कह P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #91
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 86 मेरी अपराध क्षमा करिये प्राप कोई महान् तेजस्वी पुरुष हैं, यह मेरी पुत्री प्रापके सिवाय किसी से विवाह करना नहीं पाहती, तो बाप इसे ग्रहण करो / राजा ने कहा हे भीलों के राजा ! ये कन्या भीलनी है, में क्षत्रिय हूं मेरे कुल को कलक लगेगा। .. .. .. .. ... . ... .. - मोहिनी ने कहा 'हे प्रभु ! प्रापका वस्त्र दो उसे मैं वरण करू। जव वस्त्र नहीं मिला तो कहने लगी कि अपनी पादुका दें दीजिये, मैं पादुका लेकर हृदय में धारण कर अपने जन्म को सफल करूंगी / है. नाथ ! आपकी सेविका बनकर महल के बाहर हमेशा कार्य करूंगी, अगर अाप नहीं देंगे तो अग्नि में प्रवेश कर जाऊंगी। यह सुनकर राजा ने पादुका दी वहां बड़ा भारी उत्सव मनाया गया / भील राजा ने कहा कि जो वस्तुए मैंने मोहिनी के लिये तैयार करवाई हैं उन्हें ग्रहण करो। अश्व, हाथी, रथ, रत्न, मोती तरह 2 के कीमती वस्त्र, सेवक मादि श्रीचन्द्र राजा के पास लाकर रखे। / उनमें अपने पंचभद्र प्रश्वो को सुवेग रपे से युक्त देखकर राजा. हर्षित हुए। उन दोनों अश्वा ने भाकर राजा को नमस्कार किया हर्ष से हेषाख नृत्य करने लगे, उन्हें अपने हाथों से स्पर्श कर स्वीकार करते हुए कहा कि अहो / ये अद्भुत प्रश्व कहां से पाए ? भील राजा ने कहा हे देव ! भील लोग एक बार डाका डालने गये थे तब रास्ते में उन्होंने एक गायक से रथ और प्रश्व ले लिये, गायक भाग गया / उन भीलों ने अश्व और रथ मुझे दिये हैं। उस दिन से ही ये प्रश्व बहुत दुखी थे भौर सारी रात इनकी आंखों में से प्रांसू बहते थे। इनकी P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #92
--------------------------------------------------------------------------
________________ *ER सेवा में मोहिनी और * सेवक हमेशा तत्पर है। मैंने यह सब मोहिनी क्यों हो रहे हैं ?. प्राप.ही बताइये , राजा ने कहा है भीलों के राजा ! मेरे हृदय के जीवन समान वायुवेग. और महावेग अश्व और सुवेग रथ को मैं अभी ग्रहण करता हूं। बाको सब बाद में / सैनिकों में से कुजर नाम के क्षत्रिय को रथ. का सारधी, बताया / श्रीचन्द्र ने कहा इस जयकलश हाथो को कुशस्थल या कुडलपुर भिजवा देना, मैं अभी कनकपुर जा रहा हूँ / इस अंगूठी, से. मेरा नाम जान लो / श्रीचन्द्र राजा ने कहा, हिंसा का त्याग करना, , चार. पर्वो में आरम्भ न करना / भगवती. सूत्र में कहा है, 8.14-15. और .)) पर्व. , होते हैं / महीने में 6 पर्व होते हैं, एक पक्ष में तीन पर्व आते हैं / विष्णु पुराग में कहा है, 8-14 प्रौर 15 पर्व हैं / रवि संक्रान्ति भी पर्व है / हे राजेन्द्र ! तेल, मांस और सी का भोग जो इन . पर्वो में करता है वह नरक में जाता है, ज / विष्टा-पूत्र ही भोजन है। मनुस्मृति में कहा है, 5-14-15 अौर 0)). पर्व हैं, जो ब्रह्मचारी हो वह / स्नातक द्विजः कहलाता है, किसी भी प्रकार की हिंसा नहीं करनी पाहिये। . महाभारत में कहा है, घातक, अनुमोदना करने वाला, भक्षण, करने वाला, लेने वाला, बेचने वाला, हे युधिष्ठिर ! प्राणी के घातक . कहलाते हैं / पशु के अवयवों में जितने रोम रूपी कुए हैं, उतने हजार. वर्ष पशु घातक को राधा जाता है / विष्णु भरत शान्ति पर्व के पहले P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. : Jun Gun Aaradhak Trust
Page #93
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 1* .. बाद में कहा है, हे भात ! प्राणि वध में अगर धर्म हो और उससे.. स्वर्ग मिलता हो तो हम ससार को छुड़ाने वाले किस तरह स्वर्ग / जायेगे ? पशुओं को मार कर, यज्ञ करके, रक्त बहाकरः अगर स्वर्ग का रास्ता खुलता हो तो नरक में कोण जायेगा ... ... मकंड पुराण में कहा हैं जीवों का रक्षण करना श्रेष्ठ हैं, सब जीव जीने की इच्छा रखते हैं / इसलिये सब दानों में अभयदान प्रशस्त माना गया है। पहेला पुष्प अहिंसा, दूसरा पुप्प इन्द्रियों का निग्रह, तीसरा पुष्प जीव मात्र पर दया है, चौथा, विशेष पुष्प क्षमा करना, .- पांचवां पुष्प ध्यान, छटा तप सातवां पुष्प ज्ञान, आटवां पुष्प सत्य, / जिससे देवता भी तुष्टमान होते हैं / इसलिये हमें हमेशा सब जगह जीवों 1 की रक्षा करनी चाहिये / . vie . महाभारत में कहा है, जू, खटमल आदि जन्तुओं को जो नहीं मारता तथा उनकी पुत्र की तरह रक्षा करता है वह स्वर्गगामी जीव / माना जाता है / 20 आंगुलं चौड़ा और 30 प्रांगुल लम्बा वस्त्रं से जो छान कर पानी पीता है और उस वस्त्र में रहे ये जीवों को फिर से पानी में डाल देता है वह जीव परमगति को प्राप्त होता है / सात गांव जलाने से जितना पाप लगता है, उतना एक दिन पानी छाने बिना पीने से लगता हैं / कसाई को एक वर्ष में जितना पाप लगे, उतना एक दिन 1. छाने बिना पानी संग्रह करने वाले को लगता है। जो मनुष्यः वस्त्र से छाने हुये पानी से सारा कार्य करता है। वह मुनि, महासाधु, योगी और महाव्रती है। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #94
--------------------------------------------------------------------------
________________ 121 इतिहास पुराण में कहा है. अहिंसा यह परम धर्म है। अहिंसा यह परम सप है, अहिंसा परम ज्ञान है, अहिंसा परम सुख है, हिंसा " परम दान है, महिंसा परम दम है। महिंसा परम यज्ञ है, अहिंसा परम शुभ है। जो महात्मा अहिंसा के उसमा धर्म का मा वरण करते हैं, वे महात्मा विष्णु लोक में जाते हैं।। .. नग्यडल ग्रन्थ में लिखा है, सब अभक्ष्य त्यागने योग्य हैं / मद्यपान में मस्त लोग, अकार्य में मस्त, हमेशा उन्हें न शौच, न तप, न 'ज्ञान, न बुद्धि, न पुरुषार्थ / मद्यपान से मति भ्रष्ट होती है / उनको ' दया, ध्यान, धर्म और सत् किया तो होती नहीं। मद्यमान करने वाले को क्रोध, मान, लोभ, मोह उत्पन्न हो जाता है। किसी पर किसी समय राग तो किसी समय द्वेष होता है। गंदेवचन निकलने लगते हैं / मनुष्य मद्य पोकर मांस की इच्छा रखता है। उसके लिये नीव को , मारता है। बाद में जब इच्छा. बढ़ जाती है तो जीवों के समुदाय | मारने में भी हिचकिचाहट नहीं करता / मद्य, मांस, बोर छाछ से 3. बाहर निकले हुये मक्खन में अनेक सूक्ष्म : जीवों की पशी उत्पन्न हो जाती है।" S ' , 'मागम में भी इन वस्तुओं में अनंत, जीव उत्पन्न हो जाते है / ऐसा कहा है। महाभारत के मांस अधिकार में कहा है कि मांस: हिंसा वर्धक है. मांस. दुस-वक पोर दुख को उत्पन्न करने वाला है। इसलिये मांस भक्षण नहीं करना चाहिये / तिल और सरसों जितना भी मांस P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #95
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 63.4 जो भक्षण क ता है / वह घोर नरक में यावत् चन्द्र दिवाकर जब तक है तब तक जाता है। मनु स्मृति में भी मद्य का निषेध है। अग्नि से सात गांव "जलाने से जितना पाप लगता है वह मद्य पान के एक बिन्दु मात्र के भक्षण से लगता है। : इतिहास पुराण में कहा है, श्राद्ध में धर्म इच्छा से मोहित हुआ मद्य को दे तो वह लपट खाने वालों के साथ घोर नरक में जाता है। / रौंगणा, कालिंगा और मूला के भक्षक हैं प्रिया ! वह मूढ आत्मा, " अंतकाल में मेरा स्मरण नहीं करता, जिस घर में अन्न के लिये मूलिये / उबलती हैं, वह घर श्मशानतुल्य हैं और माता-पिता से वर्जित होता है। पद्म पुराण में उड़द, मूग के साथ कच्चा दही, छाछ खाये तो हे / युधिष्ठिर वह मांस समान है ऐसा कहा है। रात्रि भोजन भी नहीं : करना चाहिये। . . .......... ... .. ...... मार्कड पुराण में कहा है, जब सूर्य अस्त हो जाता है तब पानी ... खून समान है और अन्न मांस के. समान है / स्मृति में कहा है, ब्राह्मण 3. जाति को सुबह और सांयकाल भोजन करने का कहा है,. मध्य में नहीं, / मग्नि होम करने वालों की यह विषि है। इत्यादि ऐसा कहकर श्रीचन्द्र .. ; राजा ने भील से कहा कि जब मैं कुशस्थल रहूंगा, तब यह सैनिक मादि .. स्वीकार करुंगा / ऐसी शिक्षा देकर, सुवेग रथ पर. मारुढ होकर कुजब सारथी सहित स्वनगर की रफ़ वेग से प्रयाण करते हुये संध्या समय P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #96
--------------------------------------------------------------------------
________________ कूडलपुर नगर के बाहर उद्यान में रथ रखकर, नगर में गये। . . . ~ ....उस नगर का निरीक्षण कर श्रीचन्द्र को नगर के वाहर यक्ष के मन्दिर सोते अभी थोड़ी ही देर ही हुयी थी इतने में राजा की पुत्री सरस्. वती विवाह की सामग्री से युक्त आयी, उसने बीच में सोये हुये को देखकर कहा, हे श्रीदत्त मंत्रिपुत्र ! तू उठ / और इस कन्या से शादी करः / श्रीचन्द्रः उठे। बलात्कार पूर्वक सरस्वती ने उनसे विवाह किया / 15 बाद में सरस्वती ने कहा, बाहर उ टड़ी है, चलो हम उस पर / बैठ कर कहीं दूर चले / श्रीचन्द्र ने कहा उटडी हांकना मैं नहीं जानता : . तो रात्रि में पंदल भी चलना मुश्किल है, इसलिये, प्रातःकाल चलेंगे / 5. उनके आवाज से, यह कोई.:ोर है : ऐसा प्रतीत होने से रत्नदीप से. १.अनंछी तरह देखा और कहने लगी, हे नाथ ! आपका ललाट. चंदन से. लिप्त नहीं है, यार कहां से आये हैं ? राजा ने कहा, मैं मुसाफिर हूं। कुशंस्थल से पाया है, तुम यहां इस तरह क्यों आयीं ? तुम कौन हो ? "तुम्हें किसको भय है ? मुझ से किसलिये विवाह किया ? सुनामिका और सुरुपा सखियों में से एक ने कहा, हे स्वामी ! इस नगर के अरिमदन गजा की पुत्री सरस्वती हमेशां इस यक्ष की पूजा करती हैं, एक बार राजा ने अपनी गोद में बैठी हुयी पुत्री को देखकर नैमित्तिकं से पूछा कि इसके लायक वर कहां मिलेगा। वह बोला कुशस्थल के प्रतापसिंह राजा का पुत्र जिसे सेठ ने बड़ा किया है वह श्रीचन्द्र महा-त्यागी, "रोषायमान हुये यहां पायेंगे / राजा मौन रहे / Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.
Page #97
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 650 . 'सरस्वती को रात्रि में स्वप्न में यक्ष ने कहा' मैं तुम्हारे पति को लग्न समय में अपने मन्दिर में प्राज से पांचवे दिन ले ग्राऊंगा। हर्ष से वह स्वप्न प्रातःकाल होने पर सखी से कहा / इस नगर में मत्री. पुत्र श्रीदत्त सरस्वती का प्रेमी था, परन्तु सरस्वती को उस पर कोई प्रेम नहीं था / श्रीदत्त ने लोभ से मुझे वश कर लिया, मैंने उसे राजकुमारी का स्वप्नं बताया। उसके कहे अनुसार मैंने स्वामिनी से कहा कि श्रीदत्त को भी इसी प्रकार: स्वन्न आया है / सरस्वती ने कहा कि अगर यक्ष के वचन इस प्रकार है. तो ठीक है, वह सामग्री सहित आने : वाला था, परन्तु उसके पिता ने उसे आने नहीं दिया होगा जिससे वह : .. आ नही सका ... . सरस्वती ने कहा, हे देव ! यक्ष के वचन अन्यथा कैसे हो सकते : . हैं / श्रीदत्त ने मुझे ठगा था, मेरा भाग्य अच्छा है कि मेरा वर साधा.. ___रण पुरुष नहीं हुअा, यक्ष के दिये हुये.आप ही. मेरे पति हो, मेरा परम . सौभाग्य है परन्तु हम अगर यहां रहेंगे. तो मेरे पिता अनर्थ करेंगे / ... श्रीचन्द्र ने कहा प्रिये ! मैं और वे मनुष्य हैं फिर डरने का क्या काम ? ___तुम डर क्यों रही हो ? देखते हैं उनमें कितना बल है। .. . प्रातःकाल जब.श्र चन्द्र ने मुह धोया तो उनके सूर्य रुपी भाल को देखकर सरस्वती बहुत प्रसन्न हुई / पूजारी ने उनको देखकर, जल्दी से राजा को. सारी बात कह सुनायो / राजा के आदेश से बलवान , सेनापति वहां आया। उसे देखकर, प्रिया के अंग को कांपता देख , श्रीचन्द्र बोले, हे भद्रे ! तू डर नहीं / यह गरीव वेचारा क्या करेगा ?. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #98
--------------------------------------------------------------------------
________________ __ * * सैनिक बाहर खड़े रहे हैं अन्दर नहीं पाते / सेनापति ने नाम प्रादि पूछा, परन्तु श्रीचन्द्र तो कुछ भी नहीं बोलते / श्रीचन्द्र ने एक बार सिंहनाद किया जिससे सब संनिक भाग खड़े हुये / यह देख राजा स्वयं पाया। सरस्वती कहने लगी, हे स्वामिन ! पिता यहां आये हैं अब क्या होगा। ... सरस्वती की श्रीचन्द्र ने अपनी मंगूठी दिखा कर, हर्ष से सार रत्न : ग्रहण कर, कान में कुछ कहकर, अदभुत प्रजन से बंदरी बना कर, राजा के पास जाकर, पास पास हे हुये सैनिको को पछाड़ कर, उस गजा के हाथी पर कूद कर, राजा से तलवार छीन, उसे बांध कर चले गये / उन्हें से दुखी ब्राह्मण मंत्री प्रिया को उसके पति के साथ मिलाया और जिन्होंने श्री चन्द्रपुर नगर बसाया, उस कुंडलपुर के अधिपति प्रतासिंह राजा के पुत्र श्रीचन्द्र जय को प्राप्त हों। जिनके पैर के तलुवों को राक्षस ने / भक्ति पूर्वक स्पर्श किया, ऐसे श्रीचन्द्र जय को प्राप्त हों। उसे बहुत लक्ष्मी देकर वन में रथ पर भारुढ होकर वेग से प्रयारण किया। _ मंत्री ने अरिमर्दन राजा के बम्धन खोले श्रीचन्द्र के शौर्य और दान को देखकर हर्ष युक्त बोले 'अहो वह धीर सरस्वती का पति जा रहा है उन्हें वापस लामो / सैनिक दौड़े परन्तु उस उत्तम को कोई प्राप्ति न कर सका / वंदरी को आंसू बहाती देख गजा ने सखी के पास से सारी हकीकत सुन कर उनकी कला की और उनको प्रशंसा करते कहीं ! हे वत्से ! प्रतापसिंह का पुत्र ही तेरा पति है, हाथियों, प्रश्वौं / ' सहित ' मैं तुझे कुशस्थल लेकर चलूगा / इस प्रकार कह कर भाट को P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #99
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 67 10 उचित दान देव.र नगर में विशाल महोत्सव किया। " शुभ शकुन द्वारा प्रेरित अटवी में प्राकर रात्रि में वड़ वृक्ष के नीचे श्रीचन्द्र प्रासन पर लेट गये। कुजर सारथी को नींद प्रागई और राजा जाग रहे हैं। वहां ढोलक के मधुर स्वर को सुनकर सारथी को कहकर प्रतापसिंह के पुत्र उस दिशा की तरफ गये / किसी गिरि के मध्य में यक्ष के मन्दिर में द्वार बन्द करके श्रीचन्द्र के दोहे सुन्दरिये गा रही थीं। ये अद्भुत क्या है ? उसे देखने के लिये दरवाजे के छेद में से देखते हैं कि मदनसुन्दरी आठ कन्याओं को गीत नत्य प्रादि सिखा रही है / हर्ष को प्राप्त हो विचारने लगे, मेरी प्रिया प्राप्त हो गई। - गोली से अदृश्य होकर प्रभात में जब कन्यायें जाने लगी तो उनके पोछे हो लिये। एफ़ गुफा में प्रवेश कर दूसरे दरवाजे से मणि के दीपकों से प्रकाशित पाताल महल में पाये / महल पर चढ़ कर मदनसुन्दरी कहने लगी मेरा बांया अंग और नेत्र बार 2 स्फुरायमान हो रहा है, इसलिये आज मेरे पति या उन का सन्देश आना चाहिये। उन कन्याओं में मुख्य रत्नचूला ने कहा मुझे भी ऐसा ही प्रतीत होता है आप पायीं हैं उसी दिन से तप आयंबिल आदि कर रही हैं उसके प्रभाव से प्राज आने ही चाहिये / रत्नवेगा ने आकर कहा कि माताजी ने भोजन के लिये सबको बुलाया है / मदनसुन्दरी कहने लगी मुझे अभी भूख नहीं है तुम जाकर भोजन करलो। 2. मदनसुन्दरी के बिना दूसरी कन्यायें भी भोजन के लिये नही जाती। इतने में मा ने आकर कहा हे पुत्री! आज तू भोजन क्यों P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #100
--------------------------------------------------------------------------
________________ 68 नहीं कर रही है ? मदनसुन्दरी ने कहा, हे माता आज मुझे बिल्कुल भी भूख नहीं लगी है। उस विद्याधारी ने कहा तेरे पति को ही मेरी कन्याओं ने वरण किया है, नैमित्तक के वचनानुसार भी उन्हीं के द्वारा हमें फिर राज्य प्राप्त होगा / हे पुत्री ! मैं बहुत दुखी और अभागिन हूं। स्थान से भ्रष्ट हुई हूँ और भतार वन में मृत्यु को प्राप्त हुआ है। देवर और पुत्र सुरगिरि पर विद्या की साधना कर रहे हैं / मैं आई हूं तव तक कुशस्थल से कोई समाचार नहीं आये / हे बुद्धिशालिनी इतना जानते हुए भी तू इतना आग्रह करवाती है हमें भी अन्तराय न कर और भोजन के लिये चल / ... मदनसुन्दरी भोजन नहीं करती। विद्याधरी मदनसुन्दरी को छाती से लगा लेती है, दुख से रोने लगती है। राजा सोचने लगे जिस विद्याधर को मैंने भूल से मार दिया था, उसी की पत्नि मुझ पर कितना स्नेह रख रही है। ऐसा सोचकर महल के दरवाजे पर दृश्य पन में प्रगट होकर द्वारपाल को अंगूठी अन्दर दिखाने के लिये कहा, द्वारपाल अन्दर गया। मरिगवेगा ने आकर सुन्दर रूप और प्राकार वाले को देखकर कहा तुम कौन हो ? इतने में मदनसुन्दरी कन्याओं के साथ आई, पति को देखकर हर्षित होती हुई माता से कहने लगी है 'माता ! जिनकी आप हमेशा इच्छा करती थीं वे आपके जमाई आए हैं। हर्ष से विद्याधरी बाहर आकर प्रशंसा करती हुई अन्दर ल और कहने लगी प्रतापसिंह के पुत्र ! तुम हमारे ही भाग्य से आये हा / ऐसा कहकर कन्याओं को आदेश दिया कि श्रीचन्द्र के क.ण्ठ में वरमाला P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #101
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 660 पहनायो / हर्ष से उन्होंने मालायें पहनाई। श्रीचन्द्र राजा ने कहा हे विद्याधर रानी ! यह कौन हैं ? और ऐसी परिस्थिती आप लोगों की कैसे हो गई ? विद्याधरी ने कहा हे वीर शिरोमरिण ! वैताढय गिरि पर मरिण नूषण नगर में रत्नचूड़ राजा और उनका छोटा भाई मणिचूड़ युवराज था / उनके रत्नवेगा और महावेगा स्त्रियां थीं। उनकी रत्नचूला और मणिचूला आदि चार पुत्रिय और रत्नकान्ता भानजी है। : गोत्री विद्याधरों सहित आकाश में विचरते उत्तर श्रेणी के नाथ सुग्रीव राजा ने उन्हें जीता, जिससे सहकुटुम्ब धनादि लेकर इस पाताल नगरी में रहें। स्वदेश प्राप्त करने के लिये रत्नचूड़ अटवी में खड़ग के पास विधिपूर्वक उल्टे मस्तक से विद्या को साधने लगे इतने में तो किसी ने उन्हें मार दिया। हम प्रभात में जब पूजा और उपहारादि की वस्तुएं लेकर गये तो वे वहां मरे हुए थे। उनकी मृत्यु क्रिया कर हम अपने स्थान वापस पाई। ..रत्नचूड़ का पुत्र रत्नध्वज पिता की मृत्यु से व्याकुल अटवी में गया वहां उद्योत के भ्रम से मदनसुन्दरी को पति से अलग करके यहां -- ले प्राया। मैंने अपनी सुशीला पुत्री की तरह उसे रखा / ये हमेशा पति के गुण गाती थी, यह सुनकर प्रेरणा से पाठकन्याओं ने, वे ही पति वरण करने का निश्चय किया। मणिचूड़ ने नेमित्तिक से पूछो, तब उसने कहा जिस वर को इन कन्यानों ने चुना है वही महासात्विक पुरुष तुम्हारा गया हुमा राज्य तुम्हें वापिस दिलाएगा / मणिचूड़ और रत्नध्वज ने बस्ती विना के पवित्र मेरुगिरि के नन्दनवन में विद्या की P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #102
--------------------------------------------------------------------------
________________ #1009 साधना शुरु की है उन्हें चार महिने हो गये हैं और दो महिने बाकी हैं। हमारे भाग्य से आप आए हैं तो अब आप इनसे पाणिग्रहण करो।। चन्द्र के. जैसी कान्ति वाली और यश वाली कन्याओं के साथ पाणिग्रहण किया। प्राग्रह से भोजन आदि कराके महावेगादि ने पहेरामणी देकर पूछा हे राजा ! आप अकेले कैसे ? उन्होंने यथायोग्य चरित्र कह सुनाया। रत्नवेगा ने जब तक मणिचूड़ रत्नध्वज पावे तब तक भाप यहां सुख से रहो। अापके रहने से भविष्य में हमारा हित होगा। श्रीचन्द्र ने कहा हे माता ! मुझे बहुत कार्य है, जिससे मैं विलम्ब नहीं कर सकता कनकपुर नगर मुझे * तत्काल पहुँचना है। विद्याधरों की विद्या सिद्ध करके आने में दो महिने की देर है कुशस्थल मार लोग आ जाएं प्रापका मिलाप हुअा सो. बहुत अच्छा रहा / . . . _ विद्याधरी ने कहा मदनसुन्दरी का. मुझे विरह न हो इतना स्वीकार करो। मुझे इसके साथ स्नेह है। श्रीचन्द्र ने कहा माता ! विवाह आदि आपके स्वाधीन है आपके राज्य मिलने पर ही विवाह होगा अभी नहीं / बड़ी कठिनता से आज्ञा लेकर रवाना होने लगते हैं तो रत्नचूला कहने लगी आपका विरह हमें दुखित करेगा, फिर मदनसुन्दरी भी यहां नहीं होगी तो हमारी गति क्या होगी? राजा ने स्नेह.से : मदनसुन्दरी को वहां, रहते के लिये कहा परन्तु वह वहां रहने में समर्थ नहीं। प्रिय से सती अव अलग कैसे रहे / बाद में अवधि का निश्चय कर जबरदस्ती वहां रहने का कहते हैं परन्तु मदनसुन्दरा P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #103
--------------------------------------------------------------------------
________________ *101 10 नहीं रही। मदनसुन्दरी सहित वन में आकर, रथ पर आरूढ़ होकर परस्पर अपनी 2 बातें करते कनकपुर की तरफ प्रयाण किया। क्रम से रुद्रपल्ली उपवन में आये। वहां उस नगर के राजा को हाथी और घोड़ो सहित खड़े हुये देखा, एक तरफ अग्नि विना की चिता थी दूसरी तरफ अति दुखी कोमल अंग वाली स्त्री को राजा रोकते हुए दिखाई दिये / ' तीसरी तरफ कोटवाल द्वारा बांधे हुए अद्भुत पुरुष को देखकर श्रीचन्द्र राजा रथ में से उतर कर वृक्ष के नीचे खड़े हो गये और वनपाल से पूछने लगे ये सब क्या है ? उसने कहा हे सज्जनों में मुगट समान ! यह रुद्रपल्ली नगरी है, व्रजसिंह राजा और उनकी क्षेमवती नामकी रानी है उनकी यह हसावली पुत्री है / इतने में रथ और राजा को देखकर वहां के राजा ने पाश्चर्य से मन्त्री और वहां के मुख्य लोगों को वहां भेजा। हरि भाट के भतीजे अंगद ने पहचान कर कहा कि 'कनकपुर में कनकध्वज का राज्य कनकावली पुत्री और देवों का अपित किया हुआ देवी हार का सुख जो भोग रहे हैं वे श्रीचन्द्र जय को प्राप्त हों। वीणापुर में पद्मश्री और तारालोचना को जाति स्मरण से विवाहा वे माता सहित श्रीचन्द्र जय को प्राप्त हों। श्रीगिरि में विजयादेवी के सानिध्य से सदाफल उद्यान, सुवर्ण की खान, मध्य शिखर पर जिन मन्दिर, दो किल्ले भील . की सहायता से मिले वे श्रीचन्द्र जय को प्राप्त हों। श्रीगिरि पर विजया देवी के आदेश से, जिसके हृदय पर नया वस्त्र स्थापित किया वे श्रीचन्द्र जय को प्राप्त हों / श्री चन्द्रपुर नगर के मध्य में प्रथम जिनेश्वर देव का P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #104
--------------------------------------------------------------------------
________________ *1021 चार द्वार वाला मनोहर चैत्य जिसने बनवाया वे श्रीचन्द्र जय को प्राप्त हो। . मन्त्रियों ने वहां जाकर पूछा और वापस आकर सारा हाल __ राजा को कह सुनाया / हंसावली सहित राजा को आते देख, श्रीचन्द्र भी सामने गये और परस्पर नमस्कार करके एक स्थान पर बैठे। श्रीचन्द्र ने मदन सुन्दरी को उचित स्थान पर बैठा कर, राजा से पूछने लगे कि राजकुमारी के दुख का क्या कारण है ? राजा ने कहा, हे नवल क्षेश ! मेरी पुत्री हंसावली और कनकावली दोनों सखियें हैं, कनकावली अकस्मात् श्राप से ब्याही, उसे और पिता के राज्य को भोगते हुये, बहुत भाग्यशाली जानकर और आपके गुणों को सुनकर हंसावली ने सर्व साक्षी से कहा, कनकावली के जो पति हैं वे ही मेरे पति हैं / इस प्रकार का विशेष पत्र कनकपुर भेजा। लक्ष्मण मंत्री के पास से अापके परदेश जाने के समाचार जाने / तब से ही अन्तर से दुखी हंसावली अापका नित्य स्मरण करती हैं / कुडील नगर का राजपुत्र चन्द्रसेन जो हंसावली पर अनुरुक्त था, उसने हंसावली की प्रतिज्ञा को सुनकर, दुष्ट कर्म के योग से, दुष्ट बुद्धि उत्पन्न हुई / मित्र आदि से पूछे बिना, रात्रि को चन्द्रसेन ने प्रयाण करके कनकपुर में आपकी सारी हकीकत जानी, दुष्ट बुद्धि से प्रपंच से आपका वेष लेकर एक मनुष्य सहित यहां आया, उसके कपट को हम पहचान नहीं सके / हमने इसे श्रीचन्द्र मानकर हर्ष से विवाह उत्सव मनाया। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #105
--------------------------------------------------------------------------
________________ *10310 - किसी एक व्यापारी ने इस दुष्ट को पहचान कर उसको बांध कर खूब मारा तब वह बोला कि में श्रीच द्र नहीं है बल्कि कुडलेश राजा का पुत्र हूं / अति दुखी हुये हमें यह विवाह बड़ा विषम पड़ गया मन्त्री चिन्तातुर हो गये / इतने में अंगद आया, उसके पास, से आपके गुणों को सुना / उस दुख से दुखी हंसावली मना करने पर भी काष्ट भक्षण के लिये उत्सुक हुई है / जिसका मुख भी देखने योग्य नहीं ऐसे चन्द्रसेन को यहां लाया गया है / अहो? देखो उनका विश्वासघातीपन / अहो उसका छल-कपट,अहो उसका अदीर्घदापन, ग्रहो कुकृत्यपन अहो हमारा अज्ञान हमने पहले कुछ भी सोचा समझा नहीं / बहुत जल्दी की। - ' श्रीचन्द्र राजा ने कहा कि इसमें आपका दोष नहीं परन्तु यह तो कर्म राजा की योजना है / जीव ने पूर्व में अनेक प्रकार के कर्म बांधे हुये होते हैं, उसी प्रकार से बुद्धि उत्पन्न होनी है फिर वैसी भावना तथा वैसी योजना बनती है। जैसी भवितव्यता होती है। वैसे ही बनाव बनते हैं / दूसरों के दुख को न देख सकने वाले ऐसे श्रीचन्द्र ने उस राजा के पुत्र को छुड़ाया, पास में बैठाकर उसे कहने लगे तूने सत्कुल में जन्म लिया फिर इस प्रकार एक स्त्री के लिये ऐसा कपट कैसे किया। बाद में राजकुमारी से कहने लगे, हे भद्रे ! दुख क्यों करती है ? ऐसा अकार्य न कर / आत्म हत्या करके मनुष्य जन्म को क्यों गंवा रही हो? मन और वचन से स्वीकृत पति नहीं हो सकता, परन्तु जिसके साथ पाणिग्नहण होता है वही पति माना जाता है, ऐसी रीति P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #106
--------------------------------------------------------------------------
________________ *1041 है / दूसरे को दी हुई कन्या किसी दूसरे से विवाहित की जा सकती है परन्तु. विवाहित स्त्री दूसरे की पत्नी नहीं बन सकती। काष्ठ की थाली में आग एक बार ही रखी जाती है, कनक में पानी एक वार ही रोपा जाता है वैसे ही कन्या भी एक बार ही ब्याही जाती है / / ... हंसावली ने कहा कुल स्त्री का यह धर्म है और 'सत्य है' जिसे मन में धारण किया उसके सिवाय वह दूसरे को वरती नहीं / मैं मन, वचन और काया से विवाहित और फिर गीत, नृत्य नाम आदि जिसका लिया और जिसका ध्यान किया वही मेरा पति है उसके सिवाय मैं किसी ओर को कैसे सेवू? विपर्यास से ग्रहण किया हुने धन को क्या पंडित पुरुष त्याग नहीं करते ? आपकी भ्रान्ति से हस्त स्पर्श किये हुये का भी उसी प्रकार त्याग किया जा सकता है। मन से वरण किये हुये वर के सिवाय सती स्त्री दूसरे को किस तरह स्वीकार करे ? आपने जो रुठी कहीं है, उस चोथे मंगल फेरे में लोक की स्त्रियें चित्त से जिसे स्वीकार करती हैं वही पति होता है। मन में धारण किया हुप्रा और कहा हुआ कार्य ही फलदायी होता है / और भी कहा 'मन मनुष्य के बंध और मोक्ष का कारण है / जिस तरह वहन और स्त्री को प्रालिंगन किया जाता है परन्तु उसमें सिर्फ मन में फेर होता है / श्री जिनेश्वर देवों ने कहा, हे जो मन सातवीं नरक ले जा सकता है बही भन मोक्ष में भी ले जाता है। ... उस सति को श्रीचन्द्र ने कहा, है सदाचारिणी ! वस्तु का वास्तव में परिवर्तन हो सकता है, मणि सुवर्ण आदि / परन्तु विवाहित P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #107
--------------------------------------------------------------------------
________________ *1051 स्त्री का फेर फार नहीं हो सकता, बुद्धि की भूल से डाला हुआ नमक अन्यथा नहीं होता, परन्तु खारा ही होता है / मीठे पानी से मन से अाटा गूधा हुअा, खारे पानी से गूधा हुआ आटा मोठा नहीं होता परन्तु जैसा होता है वैसा ही दिखता है / जिसके साथ हस्त मिलाप हुआ है वही भर्तार है वह स्त्री दूसरे के लये परस्त्री होती है / हंसावली ने कहा, भेरे चित्त में तो आप ही पति हो, इसके साथ व्याही हूँ पर इसे अपना पति मानती नहीं इसलिये मैं सती हूँ या असती यह तो केवली भगवान जाने / मुझे जो आप पर स्त्री मानते हों तो मुझे अग्नि या तपस्या का ही शरण लेना होगा परन्तु टुसरी कोई गति नहीं / पहले किये हुये कर्म के अन्तराय कैसे तूटे ? हंसावली के शील की दृढ़ता को देखकर श्रीचन्द्र राजा और राजा के पुत्र ने उसी की प्रशंसा की। . . श्रीचन्द्र कहने लगे, हे राजा ! प्राणी विषय से किस प्रकार पीडित होते हैं / जीव धन के लिये, जीवित के लिये. अतृप्त हुये हैं, होते हैं और होंगे। बीच में तीन रेखा हैं, वे तीन मार्ग हैं, विशाल स्तनरुपी बजार है, स्त्रियों की चपल दृष्टि में, मदन पिशाच, स्खलना पाये हुये मनुष्य को छलता है, दारू तीन प्रकार का है, आटे का मद्य और गुड़ का। तीसरा दारू स्त्री है / जिससे जगत मोह को प्राप्त हुआ है, दारू पीने से नशा चढ़ता है, परन्तु स्त्री को देखने मात्र से नशा चढ़ता है जिससे नारी दृष्टि मदा कहलाती है उसे तो देखना भी P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #108
--------------------------------------------------------------------------
________________ नहीं चाहिये / अति संकट हो वहां जाना नहीं, विषम पंय पर जाना नहीं, महापंथ पर जाना नहीं, संम पंथ पर जाना / परस्त्री संकट है, विधवा विषम है, वेश्या महापंथ है और स्वस्त्री पंथ है / अल्प रुप वाली परस्त्री को मन में नहीं विचारना क्योंकि वह अपथ्य है, वह रूप के रोग का कारण होती है, शरीर को क्षीण करती है / इन्द्रियों में रसना इन्द्रिय, कर्म में मोहनीय कर्म व्रत में ब्रह्मचर्य व्रत और गुप्तियों में मनोगुप्ति कठिनता से जीती जा सकती है। पुष्प, फल का रस, दारू, मांस और स्त्री के रस को जिसने पहचान कर त्याग दिया उन महापुरुषों को मैं वन्दन करता हूँ। देव विमान मिलना सुलभ है परन्तु जीवों को श्री जिनेन्द्र का शासन और बोधि बीज दुर्लभ है / इन धर्मवचनों को सुनकर राजा, मंत्री और कन्या आदि ने प्रभावित होकर श्रीचन्द्र को प्रणाम किया। चन्द्रसेन ने कहा हे स्वामिन् ! आप मुझे प्राण देने वाले हो मैं आपका सेवक हूँ। हंसावली ने प्रतिबोध पाकर कहा, हे वर ! अापने कामदेव को त्यागा हुआ है / आपके धर्म उपदेश से आप जीव और धर्म देने वाले हो। आपके कहे अनुसार श्री अरिहंत परमात्मा मेरे देव हैं, उनका फरमाया हुआ, दया मूल धर्म है और आप गुरु हैं, सर्व रत्नों में मुख्य शील रत्न मेरे शरीर का आभूषण हो जिससे मैं शील वृति P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #109
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 1079 वाली होऊ / व्रजसिंह राजा ने कहा, हे वीर कोटीर ! हमारा यह . मनो रथ है कि आप चन्द्रावली को वरो। हंसावली और मदनसुन्दरी के अाग्रह से उसकी छोटी बहन से श्रीचन्द्र विस्तार से ब्याहे / रति और प्रीति से युक्त कामदेव की तरह श्रीचन्द्र दो पत्नियों से सुशोभित इन्द्र की तरह, अनेक प्रकार के बाजों से दिशायें गूज उठी हैं, हाथियों, घोड़ों, रथों सैनिकों आदि सहित नवलक्षेश देश की सरहद पर पहोंचे / स्वसमाचार पद्मनाभ, गुण वन्द्र आदि को पहुँचाये / स्वनाथ पधारे ह जानकर हर्ष से सन्सुख आकर स्तुति कर परस्पर सारा वृतान्त सुनाया / गुणचन्द्र ने कहा हे देव ! दुर्जय गुणविभ्रम राजा अभी तक जीता नहीं गया। पहले से दस गुणा दन्ड तरीके मांगता है, वह 6 राजाओं से युक्त है। हम दन्ड स्वीकार कर रहे थे इतने में हमारे भाग्य से आप आ गये / जैसे बादल बिन बरसात हुई है। चन्द्रहास खडग की कान्ति वाले श्रीचन्द्र रूपी सूर्य सैन्य रूपी उदयाचल गिरि पर उदित हुये, प्रताप और देदीप्यमान देह वाले ऐसे श्रीचन्द्र सुशोभित होने लगे / प्रतापसिंह के पुत्र सिंह को प्राया जान कर, शत्रु सेना जैसे पक्षी कांपते है, कम्पित होने लगी / सारी ही सेना दखित हो उठी। श्रीचन्द्र राजा ने गुण विभ्रम राजा को कहलाया कि कनकपुर के राजा के पास से जितना दन्ड लिया है उसका सौ गुणा करके वापस दो, नहीं तो युद्ध के लिये तैयार हो जाओ मैं आया हूं। इन गर्व भरे वचनों को सुनकर अन्दर से तो राजा द्रवित . हो उठा पर P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #110
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 10890 बाहिर से दृढ़ होकर सैनिकों सहित रणक्षेत्र में पाया / उसे देख श्रीचन्द्र ने भी अपनी सेना को आदेश दे दिया / . बहुत ही भयंकर युद्ध होने लगा, उस समय जय लक्ष्मी घन्टे के दन्ड की तरह इधर उधर फिरने लगी / गुण विभ्रम राजा ने श्रीनगर के सैन्य को तो भगा दिया, पद्मनाभ राजा, ब्रजसिंह राजा लक्ष्मण मंत्री हरिषेण आदि को बाणों द्वारा विदते हुये देकर श्रीचन्द्र हस्ति पर आरूढ़ हो, चन्द्रहास से शोभित हो गुण विभ्रम राजा के सन्मुख आकर सैनिकों को भगाते हुये कहने लगे, तुम उम्न में मेरे से बड़े होने से, मुझे झुककर चले जाओ, वर्ना लड़ना हो तो पहले वार करो। गुण विभ्रम राजा ने कहा, तू बालक है यह क्यों नहीं सोचता? तूंजा क्यों नहीं रहा ? ऐसा कहकर तलवार से प्रहार किया। स्व. मस्तक पर प्राते हुये देख, कुशाग्रबुद्धि वाले श्रीचन्द्र ने चन्द्रहास खडग से उसके हाथ पर प्रहार किया / कवच होने से हाथ तो नहीं कटा परन्तु तलवार के 100 टुकड़े हो गये / यह देख कर राजाधीश ऐसे श्रीचन्द्र ने गुण विभ्रम को गले में धनुष की डोरी डालकर नीचे पटक दिया / उसके हाथी पर से गिरते ही श्रीचन्द्र के सैनिकों ने उसे बांध लिया और लकड़ी के पिंजरे में कैद कर दिया। - चारों तरफ श्रीचन्द्र की जयजयकार होने लगी। चारों दिशाओं में जिनके गुणगान हो रहे हैं ऐसे श्रीचन्द्र कल्याणपुर में स्वाज्ञा और सात देशों में अपनी भाज्ञा मंत्रियों द्वारा पलाते हुये क्रमशः कनकपुर में राजाओं के . P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #111
--------------------------------------------------------------------------
________________ 1061 साथ जय लक्ष्मी रुपी माला आभूषण की तरह जिनके गले में सुशोभित हो रही है ऐसे श्रीचन्द्र नगर में प्रवेश करते अत्यन्त सुशोभित हो रहे : थे / मार्ग में चलते हुये श्री गिरि पर्वत पर जब उन्होंने सुना कि माता सूर्यवती ने पुत्र का जन्म दिया है तो हर्ष से दान देकर महोत्सव किया और जेल में से कैदियों को मुक्त कर दिया / सब जगह मनोहर गीत, नृत्य, जगह 2 तोरण बांधे गये और सब जगह हर्ष का साम्राज्य : फैल गया / उस समय गुण विभ्रम राजा को मुक्त करके उसका संमान किया। यह देख गुण विभ्रम राजा श्रीचन्द्र के चरणों में गिर कर कहने लगा मेरे अपराध क्षमा करो, मैं आपका किंकर हूं। उसे आदर से अपने पास प्रासन दिया। कुडलेश ने श्रीचन्द्रपुर नगर में जाकर अति हर्ष पूर्वक सूर्यवती :: माता को नमस्कार किया / सब बहुओं, मन्त्रियों, राजानों ने भी सूर्यवती रानी को नमस्कार किया। माता ने सारा वृतान्त सुनाकर छोटे भाई को श्रीचन्द्र की गोद में दिया, गोद में लेकर उसके प्रसन्नवदन चेहरे को . देखकर श्रीचन्द्र ने उसका नाम एकांगवीस रखा। बाद में सब जगह / समाचार लिख भेजे जिससे अनेक राजा श्रीचन्द्र की सेवा में भेट नाओं, कन्यांत्रों को लेकर उपस्थित हुये। सब जगह आनन्द मंगल की व. नियां होने लगी। कुछ ही समय बाद पद्मिनी, चन्द्रकला, वामांग, वरचन्द्र, सुधीर, धनंजय; विशाल सैन्य से युक्त तथा सर्व समृद्धि सहित वहां आ पहूँचे : जिससे चारों ओर ज्यादा खुशियां छा गई P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #112
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 110 सूर्य के समान तेजस्वी श्रीचन्द्र ने सब को अलग 2 काम सौंपे / अपने मामा और वामांग को सारे कार्यों की देखभाल धनंजय को सेनापति नियुक्त किया, बाकी के लोगों को अपने अग रक्षक आदि अलग 2 कार्य सौंपे / पद्मिनी चन्द्रकला को पट्टराणी पद पर स्यापन किया / कुजर, मल्ल, और भील को शिक्षा देकर श्रीगिरि पर रख कर श्रीचन्द्र राजा ने सब राजाओं सहित श्री जिनेश्वरदेव को नमस्कार करके माता, भाई, प्रियाओं तथा मित्र सहित कुश स्थल की तरफ प्रयाण किया। श्रीचन्द्र हाथियों, घोड़ों, रथों, गायों, बलदों, ऊंटों, महाभटों पालकियों और विशाल सैन्य के साथ बडे ठाठ बाट से आगे प्रयाण कर रहे थे। प्रयाण से विश्व व्याकुल हो उठा, शेषनाग डगमगाने लगा, कछुआ खेद को प्राप्त होने लगी, पृथ्वी डूबने लगा, समुद्र चंचल हो उठा, पर्वत गिरने लगे दिग हस्ति पाकन्दन करने लगे / आकाश लुप्त हो उठा दिशाएं अदृश्य होगई, सूर्य धूल के कारण ढ़क गया इस प्रकार इतनी बड़ी सेना परिवारों के साथ श्रीचन्द्र आगे बढ़ रहे थे / __रास्ते में श्रीचन्द्र स्थान 2 पर मन्दिर, पाठशालायें मठ, प्याऊ आदि स्थापित करते हुये क्रमशः कनकपुर कुछ दिन ठहर कर फिर वहां से प्रयाण कर कल्याणपुर नगर में आये। वहां गुणविभ्रम राजा ने अपनी पुत्री गुणवती का विशाल महोत्सव पूर्वक श्रीचन्द्र से विवाह / किया / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #113
--------------------------------------------------------------------------
________________ प्रागे आकर मदनसुन्दरी ने वहां के सुवरण पुरुष का वर्णन कह सुनाया जिससे माता राजा अ सब पाश्चर्य को प्राप्त हुये / उस जंगल में से सुवर्ण पुरुष को लेकर, बड़ वृक्ष के नीचे भोयरे में से पाताल महेल में आये / उसमें से सार रत्नों को ग्रहण कर क्रमशः रत्नचूड़ के मृत्यु स्थान पर श्री जिनेश्वर देव का मन्दिर बनवाया / जब आगे आये तो नरसिंह राजा ने आनन्दपूर्वक क्रान्ति नगरी में प्रवेश करवाया / नजदीक में बड़गांव में रहते गुणधर पाठक को प्रियाओं से युक्त जाकर नमस्कार किया / गुरुपत्नी को नमस्कार कर अपूर्व भेंट दी। वहां से प्रियंगुमंजरी रानी और नरसिंह राजा सहित श्रीचन्द्र हेमपुर नगर पाये / वहां मदन सुन्दरी का वृतान्त जान मकरध्वज राजा अति हर्षित हुप्रा / वहां से फिर कंपिलपुर आये वहां जितशत्रु राजा ने महान प्रवेश महोत्सव किया। माता के आग्रह से वहां कनकवती प्रेमवती, धनवती और हेमश्री को श्री चन्द्र बड़े ठाठ से ब्याहे / श्रीचन्द्र को पाये जान वीणारव भी अपने नगर से आनंदित होता हुआ वहां आया और बड़ी सुन्दर ढंग से अपना श्रीचन्द्र काव्य मधुर स्वर में जाकर सुनाने लगा। :: विशाल अश्वों से पृथ्वी खुद गई है, मद से भरे हुये हाथियों के कुभ में मोती झर रहे हैं, मोती के कनियों को लेकर खडग वीज की श्रेणीबो रही है / हे कुडलपति / तीनों लोकों में तुम्हें महान विशालता प्राप्त हुई है,. आपकी कोति रुपी लता की प्राप्ति के लिये P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #114
--------------------------------------------------------------------------
________________ मापकी तलवार बीज बो रही है इस प्रकार बड़े मनोहर ढंग से गुणगान करने लगा / उसे श्रीचन्द्र ने पांच लाख सोना मोहर भेंट की और दूसरों को सुन्दर वस्त्र आदि भेंट दिये / हर्ष को प्राप्त हुआ वीणारव सुवर्ण मोहरों को लेकर अपने उतारे पर पाया। .... उसी रात्रि में वह पांचलाख सोना मोहरें चोर चुरा कर ले गये / यह बात वीणारव ने राजा से कही / जितशत्रु राजा ने कहा, हे देव ! यहां तीन चोरों ने सारे शहर में उत्पात मचा रखा है पकड़ाई में नहीं पाते / श्रीचन्द्र राजा ने यह सुन वीणा रव को दस लाख सोना मोहरें और दान में दी, उनको लेकर वह अपने उतारे पर गया। रात्रि में 'अदृश्य होकर श्रीचन्द्र फिरते 2 तीन पुरुषों को अच्छी तरह देख लेते हैं / उनमें से दो को तो वह पहचानते हैं कि रत्नखुर और लोहखुर चोर हैं, यह तीसरा कौन है यह सोचने लगे / बाद में ये क्या करते हैं यह देखने * के लिये उनके पीछे हो गये। ___ उनमें मुख्य लोहखुर जो था उसने कहा चलो वीणारव को आज दस लाख मोहरें मिली हैं उन्हें ग्रहण करें। तीसरा जो व्रजजंव था उसने कहा, मैंने सुना है जो राजा यहां आया हुआ है उसक भंडार में सुवर्ण पुरुष है वह ग्रहण करते हैं / वह कहने लगा तुम्हारे पास अवस्वापिनी विद्या है मैं तुम्हार। भतीजा गंध से पहचानी हुई वस्तु याद रखता हूँ और तुम्हारा भाई गंध से धन को पहचान जाता है / लोहखुर ने कहा हे भद्र ! श्रीचन्द्र राजा धर्मनिष्ठ, न्यायी, पुण्यशाली है। जिस कारण कोई भी किसी प्रकार से उनकी कोई वस्तु नहीं ले सकता / Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.
Page #115
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 113 310 इस लिये तेरा उद्यम व्यर्थ जायगा / ऐसा कहकर रज को लेकर वीणारष के उतारा की तरफ फूका / रक्षक और वीणारव आदि निद्राधीन हो गये / तब चोर अन्दर गये और गध द्वारा धन को प्राप्त कर नगर से बाहर निकले। उनके मर्म को जानने वाले श्रीचन्द्र ने भी उनका पीछा किया, उनके क गये हुये मठ में आकर पीछे के भाग में धन रखकर, शिला से गुफा को बन्दकर, अवदूत का वेश पहन कर मठ में आकर सो गये / यह सब कुछ देख श्री चन्द्र भी राजमहल में जाकर सो गये / प्रातः होते ही यह बात सब जगह फैल गयी कि आज भी वीणारव का धन चोरों ने चुरा लिया है। गज्य सभा में सब राजा, मन्त्री प्रादि बैठे थे कुण्डल नरेश गुस्से से जिन शत्रु से कहने लगे कैसा तुम्हारा राज्य है जहां प्रजा को कोई सुख नहीं ? जहां चोर बार 2 चोरी कर जाते हैं / जितशत्रु राजा अवनत मुख हो गये / यह देख श्रीचन्द्र बोले जो वीर श्रेष्ठ ताम्बूल ग्रहण कर चोरों को पकड़ कर लाएगा उसे मैं अपने विवाह की पहेरामणी दे दूंगा। सभा में बैठे हुए लोगों ने कहा हे देव ! तांबूल लेने वाला कोई नहीं है आगे भी सब उपाय व्यथ गये हैं / सब सोच में पड़ गये, इस प्रकार दोपहर हो गई। उन सब बातों से अज्ञात सूर्यवती माता ने कहलाया कि देव पूजा का समय होगया है और भोजन का समय होगया है. सबको भूख P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #116
--------------------------------------------------------------------------
________________ *11410 लगी है, इसलिये तू जल्दी पा / 'जो भूख सर्व रूप को नाश करने वाली है, स्मृति को हरने वाली, पांच इन्द्रियों को आकर्षित में करने वाली है, कान और गाल को दीन करने वाली है, वैराग्य को उत्पन्न करने वाली है सम्बन्धियों को छुड़ाने वाली है, परदेश पर्यटन कराने वाली है, पंच. भूतों का दमन करने वाली, चारित्र का नाश करने वाली और प्राणों का भी जिस क्षुधा से नाश हो जाता है वह भूख उत्पन्न हुई है / श्रीचन्द्र कहने लगे मेरी की हुई प्रतिज्ञा अभी तक निष्फल नहीं हुई जब मेरी प्रतिज्ञा पूर्ण होगी तभी मैं भोजन करूंगा / ऐसा कहकर श्रीचन्द्र तत्काल खड़े हो गये। गुणचन्द्र ने कहा हे देव ! साहस से ऐसे वचन न कहो चोर कब पकड़े जायेंगे ? श्रीचन्द्र राजाओं सहित पैदल चलते हुए वन क्रीड़ा करते हुए बाहर मठ में आये। वहां पर दूसरे अवधूतों के साथ उन तोनों को मुह में पान चबाये हुये देख श्रीचन्द्र मठ के बाहर बैठे और उन अवधूतों को अपने पास बुलाया। उन्होंने भाकर राजा को आशीर्वाद दिया और खडे हो गये / तब राजा ने पूछा, कि तुम में योगी कौन और भोगी कौन है ? हम योगी हैं और आप भोगी हैं / राजा बोले तब तुम्हारे मुख में यह तांबुल कैसा ? वह तीनों ही श्याम मुख वाले हो गये, दूसरे अवधूत नहीं तब श्रीचन्द्र की संज्ञा करते ही उन तीनों को चारों तरफ से घेर लिया नमो जिणांरण कहकर राजा ने उठकर मठ का निरीक्षण किया और बाद में पादेश दिया कि यहां बहुत से योगी और मुसाफिर आते P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #117
--------------------------------------------------------------------------
________________ 1150 हैं, इस मठ के नजदीक नई धर्मशाला बनवाप्रो / इतना कहकर वह जो पीछे की तरफ शिला थी उसे उठाकर दूर रखी और पृथ्वी खुदवाते हुये अद्भुत गुफा देखी। उसमें से राजा सवं सुवर्ण मोती आदि वस्तुप्रों को बाहर निकाल कर देखने लगे तो पूर्व की तथा अभी की चोरी हुयी सब वस्तुयें प्राप्त हो गई। हे राजन् अापका पुष्प अपूर्व है, अद्भुत भाग्य है, आपकी परीक्षा भी अद्भुत है और आप परोपकार करने में भी अनन्य हैं इसकी प्रकार की स्वना को कराते हुये, श्रीचन्द्र राजा ने वीणारव और जिस 2 की जो वस्तुयें थी वह सब को दे दी / तीनों अवधूतों को जितशत्रु राजा को सोंपकर महोत्सव पूर्वक अपने महल में आये / जितशत्रु राजा चोरों को चाबुक आदि से सजा देते हैं परन्तु वे अपना नाम आदि कुछ नहीं बताते / राजा उनको चोर जानकर कोटवाल को वध करने के लिये आदेश देता है / ऐसा जानकर बुद्धि शाली श्रीचन्द्र ने चोरों को बुलाकर पूछा, तुम कौन हो ? और तुम्हारा क्या नाम है ? जब उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया तब राजा ने कहा, अहो लोहखुर ! क्या तू मुझे नहीं पहचानता ? मैंने तुझे महेन्द्रपुर की सीमा पर पुत्री सहित जीवित हो जाने दिया ? तेरी अवस्वापिनी विद्या को मैं जानता हूं। हे रत्नखुर! प्रथम के पाम्रफल का दान क्या तुझे याद नहीं है ? ये तीसरा कौन है, यह कहो / वे तीनों राजा के चरणों में झुक पड़े / लोहखुर ने कहा, हमारा P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #118
--------------------------------------------------------------------------
________________ अपराध क्षमा करें। जो लोहजंघ चोर था उसके तीन नूत्र वज्रखर लोहखुर और रत्नखुर अनुक्रम से कुंडल गिरि, तिलक गिरी महेन्द्र गिरी में रहते थे। पहले के पास ताले को खोलने की विद्या थी, वह पहले ही मृत्यु को प्राप्त हो गया। उसका पुत्र यह वज्रजंध है, इसे पिता ने अदृश्य होने की गोली थी लेकिन इसने वह खो दी / मैं लोहखुर हूं इस प्रकार कह कर वे कहने लगे, आप हमारे स्वामी हो / उनको उपदेश देकर उन्हें अपने पास बिठाया और उनके पास से जो विद्यायें थीं वह भी ग्रहण कर ली। वहां से राजा महेन्द्रपुर में गये / सोते, बैठते, उठते और चलते हर समय प्रत्येक कार्य करते समय राजा नमो जिणाणं कहते हैं / पारपर्वी तप करने लगे / अर्हत धर्म की आराधना करते राजा पक्के आस्तिक बन गये / गुफा में से धन निकलवा कर सुलोचना के साथ महोत्सव पूर्वक बड़े बाठ से पाणिग्रहण किया। श्री चन्द्र राजा ने गुणचन्द्र को, अपने 14 राजाओ को सेना सहित लाने के लिये रवाना किया / लक्ष्मण, सुधीराज, सुन्दर और बुद्धिसागर इन चार मंत्रियों को भक्ति से भेंटना देने के लिये प्रतापसिंह राजा के पास भेजा। उन्होंने कुशस्थल जाकर वधामणी दी कि, राजन् ! आप श्री के पुत्र श्रीचन्द्र राजा, माता, भाई प्रादि सहित महेन्द्रपुर में आये हैं, वहां से तिलकपुर और सिंहपुर होकर, अल्प समय में आप श्री के चरणों में नमस्कार करेंगे / इधर गुणचन्द्र ने आकर श्रीचन्द्र राजा से विनती को कि P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #119
--------------------------------------------------------------------------
________________ हैं. 115 11. कुडलपुर में भील जिस गंध हस्ती को लेकर आया था वह हाथी हमारे से तो वहां से आता ही नहीं इसलिये आप स्वयं चलकर उसे शिक्षा दो। उसी समय श्रीचन्द्र राजा ने कुंडलपुर की तरफ प्रयाण किया / __सुवेग पर रथारूढ़ होकर वे वहां आये / सब राजाओं ने उनका बड़ा ही आदर सत्कार किया / गजा को गध हस्ति ने भी नमस्कार किया, श्रीचन्द्र राजा ने गजराजेन्द्र को उसके नाम से पुचका र उस पर मारूढ़ हो गये / चन्द्रमुखी, चन्द्रलेखा, वीरवर्मा के कुटुम्ब और विशा. रद आदि के साथ तिलकपुर में आये / तिलक राजा ने उन्हें बड़े प्रादर __ से नमस्कार किया और एक महान् महोत्सव किया। मार्ग में श्रीचन्द्र राजा चन्द्रकला सहित कई देश के राजाओं से पूजिन होते हुये वसतपुर में वीरवर्मा को राजा बनाकर, गंध हस्ति पर पारुढ़ हुये, मुकुट, कुडल आदि उज्जवल ऋद्धि सहित ऐसे सुशोभित हो रहे थे जिस प्रकार इन्द्र ऐरावण हाथी पर शोभता है / पुत्र का आगमन सुनकर शीघ्र मिलने की उत्कठा वाले प्रतापसिंह राजा ने मंत्रियों, बाजों, अन्तपुर, नगर के लोगों, नाटक मंडलियों आदि सहित कुशस्थल से प्रयारण किया / पुत्र के समाचार प्राप्त कर लक्ष्मीदत्त श्रेणी भी राजा के मादेश से रत्नपुरी से बड़े हर्षोत्सव पूर्वक रवाना हुये। पिता के प्रागमन को देखकर पुत्र सर्व ऋद्धियों सहित सन्मुख माया / श्रीचन्द्र ने जब पिता के हाथी को देखा उसी समय वे अपने हस्ति पर से उत्तर कर पैदल चलने लगे / प्रतापसिंह भी हाथी पर से उत्तर पड़े / उसी समय पुत्र ने पृथ्वी पर झुककर पिता के चरण P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #120
--------------------------------------------------------------------------
________________ 118 19 कमलों में नमस्कार किया / सब को बहुत खुशी हुई / राजा ने सिंहास नारुढ होकर पुत्र को गोद में लेकर आलिंगन करते हुये बहुत समय तक वियोग रुपी दावानल को हर्ष के आसुत्रों से क्षणवार में शान्त किया / हर्ष के प्रांसू गिरती हुई सूर्यवती भी मिली। चन्द्रकला जिनमें मुख्य है ऐसी बहुएं सखियों सहित जिनका वृतान्त सासू, ने राजा को सुनाया उन सब ने ससुर के चरणों में पड़कर नमस्कार किया / पद्मनाभ आदि राजाओं ने और गुणचन्द्र आदि सब मंत्रियों ने राजा के चरण कमल में नमस्कार किया / वरचन्द्र, वामांग, मदनपाल और सेनापति धनंजय ने भी नमस्कार किया कनक और कान्ड देश का राज्य प्रतापसिंह राजा के पास भक्ति पूर्वक लक्ष्मण पौर विशारद मंत्रियों ने भेंट किया। अपूर्ण सुवर्ण पुरुष, रत्न, पारसमणी नर-मादा मोती सुवेग रथ, महावेग, वायुवेग, गंधहस्ति, अश्व प्रादि सर्व कीमती वस्तुयें पिता के चरण कमलों में रखीं। - सूर्यवती रानी सबसे मिली सबने कुशल वार्ता पूछी / गुणचन्द्र ने श्रीचन्द्र का सारा चरित्र कह सुनाया जिससे राजा बहुत हर्षित हुये / बाद में माता के पास से वखीर भाई को लेकर पिता की गोद में रखा / राजा ने पुत्र को स्व-चरित्र कह सुनाया। वे अवधूत की बार 2 प्रशंसा करके स्वमात्म निंदा करने लगे और कहने लगे कि मेरे द्वारा उसका कोई उपकार नहीं हो सका / श्रीचन्द्र ने हंसकर कहा हे तात ! श्रापके प्रताप से भविष्य में सब ठीक होगा। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #121
--------------------------------------------------------------------------
________________ 6 116 दीर्घदर्शी दृष्टि वाले श्रीचन्द्र ने सब को बहुत अच्छी तथा कीमती वस्तुयें भेंट की। तिलक राजा की विनन्ति से राजा पुत्र सहित महोत्सव पूर्वक तिलकपुर नगर में आये / वहां पर रत्नपुरी से पिता लक्ष्मीदत्त श्रेष्ठी को प्राते हुये सुनकर श्रीचन्द्र राजाओं, श्रेष्ठिनों अ.दि सहित सन्मुख जाकर माता-पिता को नमस्कार किया श्रेष्ठी ने भी सबको नमस्कार किया, और जाकर प्रतापसिंह राजा के पास रह / लक्ष्मीवती बहुप्रों के साथ सूर्यवती के पास रही / उस समय सब को कितनी खुशी और हर्ष हुआ होगा यह तो केवली जानें / बहुत से राजाओं में श्रीचन्द्र को कन्यायें व्याही और बहुत भेंटें दीं। सिंहपुर से सुभगांग राजा, दीप शिखा से दीपचन्द्र राजा आदि माये और पुण्यशाली और धन्य ऐसी तिलकमंजरी के साथ श्रीचन्द्र का प्रतापसिंह राजा ने विस्तार से विवाह करवाया। अद्भुत योग हुा / सबके मनोरथ फले / तिलकमंजरी की वरमाला,श्रीचन्द्र को दिन प्रतिदिन यश रुपी सुगंध फैलाती हो ऐसी अद्भुत फूलों को देने वाली बनी / वहा से वे सब रत्नपुर आये / वहां अनेक लौंग, इलायची के मंडपो और तरह 2 के वृक्षों की छाया वाले समुद्री किनारे पर श्रीचन्द्र ने प्रतापपुर नामक नया नगर बसाया। जहां माता-पिता का परस्सर मिलाप हुआ था वहां मेलकपुर नगर बसाया / प्रतापसिंह राजा के सोने और चांदी के सिक्के बनवाये / - कुछ दिनों बाद कर्कोट द्वीप से चित्र आदि 500 जहाजों में, रविप्रभ राजा का पुत्र कनकसेन, नो बहिनों सहित दश हजार हाथियों तीस हजार घोड़ों, करोड़ों सैनिकों सहित यहां किनारे पर पाकर P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #122
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 12040 उतरा / उस समय प्रतापसिंह राजा कोड़ा के लिये वन में गये हुये थे / कर्कोट द्वीप से हाथी, अश्व आये हैं ऐसा सुनकर सब वहां आये और पूछने लगे यहां कैसे पाये हो ? कनकसेन ने कहा हम कर्कोट द्वीप से आये हैं और कुशस्थल प्रतापसिंह राजा ने पास जा रहे हैं / ये नव पत्नियें श्रीचन्द्र राजा की हैं ये सब करमोचन के समय सारी चीजें मामा ने उन्हें दी थीं। वे अकेले आये थे, कन्याओं से ब्याह कर, स्वनाम स्पष्ट अक्षरों में लिख कर किसी दूसरी जगह चले गये हैं / पिताश्री के आदेश से कन्याओं का भाई में सारी समृद्धि सहित उन्हें छोड़ने आया हूं, वे स्वामी कहां हैं ? राजा ने आनंदित होते हुये कहा कि प्रतापसिंह राजा के पुत्र श्रीचन्द्र यहीं हैं वे ही इस नगर के राजा हैं / कनकसेन ने आनंदित होते हुये यह ही प्रतापसिह राजा हैं उनके चरणों में नमस्कार करके कहा हे पूज्य / अपने पुत्र का उपार्जित पाप स्वीकारें / कन्याओं तथा समृद्धि देखकर और चरित्र सुनकर राजा तो बहुत ही आश्चर्य को प्राप्त हुआ। राज वहीं सिंहासन पर बैठकर पुत्र को परिवार सहित बुलवाते हैं / सामंतों और गुणचन्द्र मंत्रियों सहित श्रीचन्द्र हंस की तरह आये / अर्ध उठे हुये पिता को नमस्कार करके उसके पास बैठे / सूर्यवती पठरानी भी वधुओं सहित आयीं कनकसेन ने श्रीचन्द्र को नमस्कार किया। नव बहुमें अद्भुत पति को देखकर बहुत ही हर्षित हुयीं / रुप और कान्ति युक्त उन्होंने सास और ससुर को नमस्कार किया। उनके भाई कनकसेन ने यथातथ्य कहकर हाथी, घोड़े सैनिक मादि दिये / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #123
--------------------------------------------------------------------------
________________ *121 पिता ने श्री चन्द्र से पूछा तुम वहां किस तरह और कब गये थे? श्रीचन्द्र वृक्ष पर चढ़कर जिस तरह वहां गये और कुशस्थल पाये ये सारा वृतान्त कह सुनाया / राजा और सब लोग बहुत ही विस्मित हुये / राजा ने नगर में श्रेष्ठ प्रवेश महोत्सव कराया और तुष्टमान होकर कहने लगे मुझे जो अवधूत के उपकार को न करने का अफसोस था वह दूर हुा / तुम्हारी उपकार परायणा भी कमाल की है तेरे गुणों से उपार्जित किये हुने ये सारे राज्य तू स्वीकार कर | श्री चन्द्र ने अंजली जोड़ कर कहा मैं आपका सेवक हूं, आप श्री के चरण कमल में मुझे राज्य ही है / वहां कई दिन रहकर, इन्द्र की तरह वहां से प्रयाण किया। सूर्यवती के कहने से भीलों के राजा को वासुरी देश देकर सिंहपुर में प्रवेश किया। वहां चन्द्रकला बहुत ही हर्षित हुई / पूर्व जन्म की भूमि देखकर गुणचन्द्र मित्र के पास बेहोश होकर गिर पड़ा / शीत उपचार से जब उसे चेतना पायी तो श्रीचन्द्र ने पूछा क्या हुआ? गुणचन्द्र ने कहा कि पूर्व जन्म की स्मृति हो पाई तथा अपना पूर्ण भव कह सुनाया जिससे कमल श्री को भी पूर्व भव की स्मति हुई कमल श्री ने भी पूर्व भव का वृतान्त कह सुनाया जिससे सब बोध को प्राप्त हुये / यहां जो धरण ज्योतिषी था श्री सिद्धगिरि पर अनशन करके मैं गुण चन्द्र हुा / श्री देवी घरण की पत्नी दूसरे भव में जिनदत्ता और वह इस भव में कमल भी हुई। लोगों ने नमस्कार महामंत्र की मोर शत्रुजय तीथं की महिमा P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #124
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 122 10 गायी / सुभगांग राजा ने श्रीचन्द्र को पहेरामणी देकर विवाह उत्सव मनाया। बाद में श्रीचन्द्र ने दीपशिखा नगरी में प्राकर नानी मां को नमस्कार किया। आनंद से प्रदीपवती रानी ने गोद में लेकर चुबन करके कहा, तेरा विवाह मैंने अजानते किया था वह आज हृदय में अत्यन्त आनंद देने वाला बना है / उस समय मैंने कहा था कि चन्द्रकला को वर,इसके हस्तस्पर्श से तुझे बहुत राजकन्यायें वरेंगीं। पिता के आदेश से कनकदत्त श्रेष्ठी की पुत्री रुपवती से श्रीचन्द्र ने ठाठ से पाणिग्नहण किया / कुछ दिन वहां रहकर फिर कुशस्थल की तरफ प्रयारण किया / वहां जाकर श्रीचन्द्र ने विनती की कि हे पिताजी ! कारागृह में से जय पादि भाइयों को मुक्त करो / वे आत्मनिन्दा करते हुये पिता के सन्मुख पाये। मणिचूड़ और रत्नध्वज विद्याधर मेरुगिरि के नंदनवन से विद्या सिद्ध कर अपने नगर में आये। श्रीचन्द्र का सर्व वृतान्त सुनकर, आन से विमान रच कर, कुशस्थल के बाहर जहां राजा का पड़ाव था, आका। में से उतरते हये रत्नों की कान्ति से आकाश को देदीप्यमान बना दिया। श्रीचन्द्र को परस्पर नमस्कार करके अपनी परिस्थिति बताकर शत्रु जय करने की विनती की। बाद में मित्र, माता-पिता, लक्ष्मीदत्त लगा वती और अपनी प्रियाओं सहित विमान पर प्रारूढ होकर रवाना हये / उधर पाताल नगर में जाकर वे दोनों सर्व सामग्री सहित P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #125
--------------------------------------------------------------------------
________________ ते 123 ताढ्य गिरि पर पहुँचे / वहां उन्होंने मणिभूषण नगर में प्रवेश या / अनेक बाजों के नाद से दिशायें गूज उठी श्रीचन्द्र मणिभूषण नगर के उद्यान में उतरे / वहां उद्यान की मनुष्यों से भरपूर देखते हैं / वरपुरुष ने विनती की कि हे देव ! इस उद्यान में श्री धर्मवोष सूरीश्वर जी विराजमान हैं। उनकी धर्मदेशना सुग्रीव प्रादि विद्याधर भी सुन रहे हैं / राजा भी वहां गये / तब गुरु महाराज तप धर्म पर उपदेश दे रहे थे / श्रीचन्द्र को आया हुआ जानकर उन्होंने विशेष तप के प्रभाव का वर्णन किया / - स्वशक्ति से किये हुये तप से, नीचकुल में जन्म नहीं होता रोम होते नहीं अज्ञानपना भी नहीं रहता दरिद्रता नाश को प्राप्त होती है किसी भी प्रकार का पराभव नहीं होता, पग 2 पर संपदायें प्राप्त होती हैं / इष्ट की प्राप्ति होती है / श्रीचन्द्र की तरह निश्चय की सब कल्याण कारी वस्तुयें मिलती हैं / श्रीचन्द्र की कथा विस्तार से कहकर, स्वयंज्ञानी गुरु ने कहा, हे राजन ! हे सुग्रीव ! वे ये श्रीचन्द्र राजा हैं, पिता प्रता सिंह और सूर्यवती माता, चन्द्रकला और गुणचन्द्र प्रादि हैं / विद्याधरों ने, प्रमोद से श्रीचन्द्र को नमस्कार करके उनकी प्रशंसा की। दुसरों ने भी नमस्कार किया / श्रीचन्द्र राजा ने विनती की कि हे प्रभु ! श्री जिनेश्वर देवों द्वारा वजित पूर्व भव में मैंने कौनसा पुण्य किया था / गुरु फरमाने लगे P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #126
--------------------------------------------------------------------------
________________ *. 1241 कि श्री जंबूद्वीप में, ऐरावत क्षेत्र में, ब्रह्मण नगरी में जयदेव राजा, जयादेवी प्रिया के साथ राज्य करते थे। उनके नरदेव पुत्र था। राजा ने उसे पंडित के पास पढाने भेजा / राजा के वर्धन नामक श्रेष्ठी मित्र था उसके वल्लभा नामकी प्रिया थी उनके चंदन नामक पुत्र था उसे भी उन्होंने उसी पंडित के पास पढाने भेजा, जिस कारण राजपुत्र और श्रेष्ठी पुत्र दोनों मित्र हो गये / क्रमशः सब कलानों में प्रवीण हो गये / उनकी क्रिया, वचन और चित्त भी एक ही समान था / धीरे 2 . वे यौवनावस्था को प्राप्त हुये / क्षितिप्रतिष्ठित नगर में प्रजापाल राजा ने अपनी पुत्री अशोक श्री के विवाह के लिये उद्यान में स्वयंवर मंडप की रचना करायो, कुकुम पत्रिका द्वारा अनेक राजपुत्रों को आमंत्रण देकर बुलाया / वहां नरदेव भी चन्दन सहित आया। वहां पाये हुये सब राजाओं और राजपुत्रों को छोड़कर, पूर्व भव के प्रेम के कारण अशोक श्री ने चन्दन - को वरमाला पहनायो / अपना ही मित्र चुना गया है यह देखकर नरदेव बहुत प्रानंदित हुआ यह देखकर अपनी भानजी श्री कांता नरदेव के लिये चुनी। उन दोनों का बड़े महोत्सव के साथ विवाह किया / बाद में वे अपने नगर में प्राये / 6 महीने बाद पूर्व कर्म के उदय से चन्दन सेवकों सहित पांच जहाजों को लेकर रत्नद्वीप में गया। वहां बहुत लाभ प्राप्त करके, कोणपुर की तरफ रवाना हुआ। परन्तु तूफानी हवा के कारण जहाज संकट में पड़ गये / एक जहाज तो टूट ही गया बाक़ी के सब अलग 2 हो गये / दैवयोग से चन्दन का जहाज सनर मन्दिर के Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.
Page #127
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 125 बन्दर पर पहुँचा / वहां से मोती खरीद कर घूमता हुआ चन्दन बारह वर्ष बाद कोणपुर पहुँचा | टूटे हुये जहाज के लोग लकड़ी के टुकड़ों के सहारे निकल कर पहले ही कोणपुर पहुँच गये थे। उन्होंने चन्दन का जहाज डूबने के समाचार कहे / जिस कारण सेठ मित्रों और अशोक श्री को बहुत दुख हुमा / उन्होंने 6-7 वर्ष तक समुद्र में खोज करायी परन्तु चन्दन का पता ही नहीं लगा / लोक अपवाद से अशोकश्री ने विधवा का वेश पहना परन्तु उसे विश्वास नहीं हो रहा था / चन्दन बाहर वर्ष बाद एक दम पाया जान कर सेठ और अशोक श्री को बहुत . खुशी हुई। __ सेठ, मित्र सास, ससुर नगर के लोग आदि चन्दन को लेने उसके सन्मुख गये / वह उचित दान को देता हुआ महोत्सव पूर्वक नगर में आया। घर में प्रवेश किया / अशोक श्री का धर्म कल्पद्रुम फलीभूत हुआ / कालक्रम से नरदेव राजा हुआ और प्रिय मित्र नगर सेठ हुआ / एक दिन वहां ज्ञानी गुरुदेव पधारे / राजा, भी कान्ता, चन्दन, अशोकश्री ने लोगों सहित आकर गुरू नंदन किया और यथा योग्य स्थान पर सब बैठे। प्राचार्य श्री ने धर्मलाभ पूर्वक धर्मदेशना देते हुये कहा, जिस प्रकार छाछ में से मक्खण, कीचड़ में से कमल, समुद्र में से अमृत, बांस में से मोती, उसी प्रकार मनुष्य भव में धर्म ही सार हैं / अन्त में राजा ने पूछा किस कर्म के योग से चन्दन और अशोकश्री का वियोग हुआ ? और किरा पुण्य से वापस संयोग हुआ ? गुरुदेव फरमाने लगे कि जीव P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #128
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 126 10 अपने ही कर्मो से सुख और दुख भोगता है दूसरा कोई कर्म बांधता नहीं और भोगता नहीं इस भव से तीन भव पहले सुलस श्रेष्ठी था, . उससे अगले भव में चन्दन किसी जगह कुलपुत्र था, अशोकश्री उसकी पत्नी थी। उसने उस भव में हास्य से वियोग वाला कर्म बांधा था / वह सुलस के भव में सुभद्रा नामकी उसकी प्रिया बनी तब उसे 24 वर्ष * का वियोग हुा / वह इस प्रकार है। अमरपुरी में ऋषभदत्त सेठ के दीनदेवी प्रिया थी। उनके सुलस नामक पुत्र था उसका पाणिग्रहण सुभद्रा के साथ किया / वे दोनों अति धर्म प्रेमी थे / गुरुमहाराज के पास जाकर उन्होंने ब्रह्मचर्य बत ग्रहण किया, वे दोनों अति उल्लास से धर्म करते थे परन्तु यह सब दीनदेवी को अच्छा नहीं लगा / सुलस को संसार का रंग लगाने के लिये उसे एक जुपारी की संगत में रखा / जिस कारण वह उसकी संगति से कामपताका वेश्या. के साथ 16 साल तक संसार सुख भोगता रहा / उसी के दुख में माता-पिता स्वर्ग सिधार गये / सारा धन भोग में खतम हो गया / निर्धन होने से कामपताका की अक्का ने घर में से निकाल दिया / .. अब सुलस धन प्राप्ति के लिये परदेश को रवाना हो गया। मार्ग में सफेद आकड़े को देखकर, उसके नीचे धन होगा ऐसा सोचकर धरणेन्द्र को नमस्कार करके, वहां जमीन खोद कर गुप्त रीति से हजार सोना मोहरें लेकर आगे को प्रयाण किया। किसी नगर में किसी दुकान पर एक ग्राहक को माल देने में मदद की जिससे सेठ को बहुत लाभ P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #129
--------------------------------------------------------------------------
________________ . 127 10 हुप्रा / जिससे उसने प्रसन्न होकर पूछा कि किसके मेहमान हो / उसने कहा तुम्हारा ही, सेठ हर्षित होता हुआ उसे घर ले गया स्नान, भोजन प्रादि कराकर, सुलस को एक दुकान खोल कर दी। वहां उस दुकान में बहुत लाभ हुआ, वहां से सुलस ने चलकर तिलकपुर में जाकर जहाजों में करियाना भरकर रत्नद्वीप की तरफ प्रस्थान किया, वहां भी बहुत लाभ हुअा / वहां से रत्न खरीद कर अमरपुरी जा रहा था रास्ते में ही जहाजों के टूट जाने से लट्ठ के सहारे किसी किनारे पर जा लगा / वहां पर केलों से अपनी भूख को शान्त कर चिन्ता ही चिन्ता में आगे बढ़ते एक शव को देखा / उसके वस्त्र के पल्ले में पांच रत्न बन्धे हुये थे उसे लेकर वेलाकुल नगर में प्राया / वहां रत्नों को बेचकर क़रीयाणा खरीद कर अमरपुरी की तरफ प्रयाण किया परन्तु रास्ते में ही भील्लों ने लूट लिया / फिर वह एक सार्थवाह के साथ रवाना हुआ, रास्ते में उसे पारस रस मिला, उसे वेचकर आगे जाते हुये, उसके लाल शरीर को देखकर भारंड पक्षी मांस समझकर उठा कर रोहणगिरी पर रखकर दूसरे भारडं से लड़ने लग गया। .. . ___ इस अवसर का लाभ लेकर, सुलस तत्क्षण वहां से भागकर गुफा में भाग गया। जब भारंड पक्षी उड़ गये तब छुटकारे की सांस लेकर, मुक्त होने से खुश होकर, जहां 2 चोट आयी थी वहां वहां मोषधी लगायी / इतने में एक पुरुष को देखकर पूछने लगा, कि यह कौनसा पर्वत है। उसने कहा ये रोहणगिरी है, यह मिरि हर एक के P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #130
--------------------------------------------------------------------------
________________ . *1289 फ भाग्य के अनुसार रत्न देती है। सुलस ने राजा की प्राज्ञा लेकर पर्वत को खोदना शुरु किया जिससे उसे बहुत से रत्नों की प्राप्ति हुई। उन रत्नों का करियाणा खरीद कर अमरपुरी के तरफ प्रयाण किया। रास्ते में गाढ़ जगल में दावानल से करीयारण भस्मी भूत हो गया। मागे जाते हुये सुलस ने एक अवधूत को देखा, वह रस कुपिका की बातें करता था, जिससे वह आनंदित हुआ। अवद्त ने सुलस को डोली में बिठाकर, हाथ में भेंस की पूछ का दीवा करके कुओ में उतरा / रस की कुपी भरकर सुलस ने जब संज्ञा की तो उसे खींचकर ऊपर ले आया। अवधूत ने पहले कुप्पी देने के लिये कहा परन्तु सुलस ने कहा पहले बाहर निकालो फिर दंगा, जिस कारण अवदूत ने गुस्से से डोली की डोर काट दी / कुछ पुण्य के कारण डोली सहित सुलस रस में न पड़कर किनारे पर ही रह गया। उसमें पहले जिनशेखर नामक व्यक्ति गिरा हुआ था। वह मिला उससे सुलस ने बाहर निकलने का उपाय पूछ। / उसने कहा कि एक ही उपाय है जब द्यो रस पीने प्रावे उसके घर के चिपट जाना, उसके साथ ही बाहर निकला जा सकेगा, परन्तु मेरे अंग रस से गल गये हैं इसलिये मैं अब नहीं बच सकूगा / जब द्यो रस पीने आयी तब उसका पैर पकड़ कर सुलस बाहर निकला / वृक्ष के नीचे स्वस्थ होने के लिये बैठा इतने ही मे एक हाथी वहां आया, उसे देखकर सुलस वहां से पलायन कर गया / इतने में एक सिंह आया उसने हाथी को फाड़ डाला। सुलस ने रात्रि एक वृक्ष Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
Page #131
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 12611 पर व्यतीत की / वहां वह प्रकाशित रत्नों को देखकर उन्हें लेकर शिर्ष नगर में पाया / वहां पातुवादीमों ने धोखे से उससे रत्न छीन लिये जिससे वह अति चिन्ता में पड़ गया। उधर जिनशेखर समाघि पूर्वक मर कर आठवें कल्प में देव रुप उत्पन्न हुआ। सुलस ने एक के बाद एक प्राती हुयी आपत्तियों से घबरा कर / काली च उदश को शमशान में जाकर प्रापघात करने की तैयारी की, उसी समय पुण्ययोग से जिनशेखर का ध्यान सुलस की तरफ पाया, उसने तत्क्षण वहां पाकर सुलस को बचाकर, अपनी हकीकत कही। प्रापघात के लिये ठपका देखकर उसे बहुत धन सहित अमरपुरी में छोड़ा और कहा कि जब जरुरत पड़े मुझे याद करना / ऐसा कहकर देव अन्तरधान हो गया / राजा को भेंटना देकर सुलस घर प्राकर सगे सम्बन्धियों से मिलता है। कामपताका को अपने घर लाकर उसके साथ और सुभद्रा के साथ संसार सुख भोगता है / विलास को भोगते हुये धन खतम हो गया तब वह जिनशेखर देव को याद करता है जिससे देव क्रोड़ द्रव्य की वृष्टि कर देव अंतरधान हो गया / एक समय सुलस ने गुरु महाराज से परिग्रह परिमाण का नियम लिया / एक दिन नगर बाहर शरीर चिन्ता के लिये बाहर गया वहां उसने धन देखा, नियम होने के कारण उसने वह धन नहीं लिया। ये समाचार जब राजा को मिले तो राजा ने प्रेम पूर्वक उसे राज्य का खजानची बनाया / कई वर्ष बीत जाने पर एक ज्ञानी गुरु महाराज पधारे / उनकी P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #132
--------------------------------------------------------------------------
________________ देशना सुनकर वैराग्य से राजा, सुलस और सुभद्रा ने ससार त्याग कर दीक्षा ग्रहण की। संयम की उच्चतम रुप मे साधना करते हुये, प्राम रस पीते हुये, ज्ञान, ध्यान में प्रगति करते हुये सुलस ने 500 अखंड मांबिल किये और सुभद्रा ने 1000 अखड प्रांबिल किये / संयम की साधना और आयंबिल तप के महान प्रभाव से, वे प्रभावित पुण्य उपार्जन करके क्रमशः काल धर्म को प्राप्त हो, सर्वोत्तम पुण्य के प्रताप से दोनों ने बहुत लम्बे समय तक देवी सुख भोगे / वहां से चव कर सुलस तो तू बना और सुभद्र तेरी पत्नी अशोकश्री बनी। चन्दन पूछने लगा कि अब कर्मों के क्षय का उपाय बताइये / तब आचार्य देव ने फरमाया कि अगर तुम कर्मो का क्षय चाहते हो तो श्री जिनेश्वर देव द्वारा कथित तत्व सुनने, तथा आगम विधि से श्री वर्धमान आयंबिल तप को करने से निकाचित कर्म भी नष्ट हो जाते हैं / गुरु महाराज के आदेशानुसार, चन्दन, अशोकश्री और सगे सम्बन्धियों ने आनंद से महान तप की शुरुआत की / चन्दन की धावमाता, सेठ का सेवक हरी और 16 पड़ोसन स्त्रियों ने भी लज्जा से, इस प्रकार बहुत लोगों ने तप शुरु किया / परन्तु बहुत कम लोगों ने उस महान् तप को पूर्ण किया। दही, दूध, घी पकवान, खादिम, स्वादिम आदि से पूर्ण घर होने पर भी महान तप में तत्पर होकर चन्दन और अशोकश्री ने तप पूर्ण किया / नरदेव राजा ने मित्र के तप की बहुत प्रशंसा की / परन्तु उसमें मुख शुद्धि न होने के कारण कुछ घृणा भी की / चन्दन ने तर Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.
Page #133
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 131 10 पूर्ण होने पर विधि पूर्वक बड़े ठाठ से महोत्सव पूर्वक तप का उद्यापन करके, क्षेत्रों का पोषण करके कालधर्म को प्राप्त हो, अच्युत इन्द्र बना और अशोकत्री का जीव सामानिक देव हुआ। बाहरवें देवलोक में देवी सुख भोगकर, श्री धर्मघोष सूरीश्वरजी ने कहा, वह अच्युत इन्द्र वहां से च्यव कर कुशस्थल में श्रीचन्द्र के रुप में जन्मा, तथा सामानिक देव चन्द्रकला पद्मिनी रुप में जन्मा जो तुमारी पट्टराणी हुई है / मित्र नरदेवघृणा करने से. बहुत भवों में भ्रमण कर, सिंहपुर में धरण ब्राह्मण हुा / श्री सिद्धावल तीर्थ पर जाकर अनशन कर इस भव में गुणचन्द्र मंत्री पुत्र, जो तेरा प्राण प्रिय मित्र है / हरी और घावमाता इस भव में लक्ष्मीदत्त और लक्ष्मीवती बने, पूर्ण के स्नेह वश जिन्होंने तेरा पुत्रवत् पालन पोषण किया, पाड़ोसिने राजकुमारियें बन कर तुम्हारी प्रियाए' बनीं / कामपताका जो सुलस के भव में थी वह भील राजा की मोहनी कन्या हुई, इस प्रकार सारा चरित्र कह सुनाया। उस को सुनकर श्रीचन्द्र, चन्द्रकला, गुणचन्द्र आदि को जातिस्मरण ज्ञान होने से अपना पूर्णभव, उसी तरह साक्षात देखा / उन्होंने प्राचार्य देव की बहुत ही स्तवना की / उसी समय सुग्रीव की पुत्री रत्नवती को जाति स्मरण ज्ञान होने से पूर्व भव के स्नेह के कारण उसने श्रीचन्द्र को वरा / श्रीचन्द्र ने रत्नवेग आदि विद्याधरों से अज्ञानता से प्रजानले रत्नचूड़ के वध की हकीकत कहकर उनसे क्षमा याचना की। सुग्रीव और मणीचूड़ ने भी परस्पर क्षमा याचना की। Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.
Page #134
--------------------------------------------------------------------------
________________ 1321 श्रीचन्द्र ने सबके साथ महोत्सव पूर्णक नगर में प्रवेश किया। दक्षिण और उत्तर श्रेणी के अधिपति विद्याधरों ने रत्नों और कन्याओं सहित प्राक़र नमस्कार किया / रत्नवती, रत्नचूला, मरिणचूलिका और रत्नकान्ता आदि और भी विद्याधरों की दुसरी पुत्रियों का श्रीचन्द्र से पाणिग्रहण किया / करमोचन के समय आकाशगामिनी और कामरुपिणी विद्यायें मिलीं / सुग्रीव प दि 110 विद्याधर अधिपतियों ने श्रीचन्द्र महाराजा को,विद्याधरों के चक्रवर्ती रुप में विधि पूर्णक महोत्सव से अभिषेक किया। बाद में श्री सिद्धगिरि शिखर की यात्रा करके, माता-पिता, पत्नियों विद्याधरों सहित, विद्याधरों की विनती से उनके नगरों का निरीक्षण किया / आकाश को चित्र विचित्र करते हुये, विद्याधरों की श्रेष्ठ सेना सहित, रत्नों के अनेक वाजित्रों के नाद से गाजते हुये श्रीचन्द्र रुपी मेघ कुशस्थल माये / ____ कुशस्थल नगर में छोटे-बड़े विशाल मंच बांधे गये / केले के स्थंभ गाड़े गये / बहुत सुन्दर 2 तोरण बन्धे / जिनके हाथों में केसर चमक' .. रहा है, ऐसे हाथों से मोतियों के स्वस्तिक होने लगे / कोई हाथों में पुष्पों की माला लेकर खड़े हैं, तरह 2 के ध्वज लहरा रहे हैं और अनेक गीत नृत्य हो रहे हैं / स्त्रिये धवल मंगल गीत गा रही हैं / स्थान 2 पर चन्दन और कुक म से पवित्र किये हुये राजभुवन हैं, सुन्दर शृंगार से सज्जित ऐसी नारियों और नरों से श्रीचन्द्र ने कुशस्थल में प्रवेश किया / मंगल के लिये किये गये पूर्ण कुभ और अक्षत पात्रों से, राज. Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.
Page #135
--------------------------------------------------------------------------
________________ शा *133* भवन छोटा हो गया। सुहागिन स्त्रियों तथा कन्यानों ने श्रीचन्द्र महाराजा को मोती और अक्षत से वधाया / कवि और भाट लोगों ने स्तुति शुरु की / सिंहासन पर बैठे हुये पिता के चरण कमलों के नजदीक श्रीचन्द्र अत्यन्त ही सुशोभित हो रहे थे / कुछ समय पश्चात द्वारपाल द्वारा सूचना कराकर, कुडलपुर नरेश भेंटगा रखकर, बन्दरी को बिठाकर सभा को प्राश्चर्य चकित कराता हुआ भक्ति से नमस्कार करके कहने लगा, मेरे द्वारा पूर्व में अज्ञानता वश जो अपराध हुआ है उसे क्षमा करें / प्रतापसिंह राजा ने पूछा यह कौन है ? तुमने क्या अपराध किया है ? नरेश ने हाथ जोड़ कर साग हाल कह सुनाया। प्रतापसिंह के कहने से वानरी की प्रांस में अंजन डालकर श्रीचन्द्रं ने उसे फिर सरस्वती बनाया / लज्जा पूर्वक सास-ससुर को नमस्कार कर, चन्द्र कला आदि को नमस्कार कर, सखी सहित वहां रही मोहनी रत्नों और भीलों सहित वहां आयी। उसे श्रीचन्द्र ने अपने महल के द्वार के आगे स्थापन की / ब्राह्मणी शिवमती को नायक नगर अर्पण किया और बाद में चोर की गुफा में से सारा घन मंगवाया / विद्या के बल से विद्याधर राजाओं के बल से, चतुरंगी सैन्य बल से और स्वबुद्धि बल से श्रीचन्द्र ने समुद्र तक तीन खण्ड की भूमि को जीता / सोलह हजार देशों के राजाओं ने श्रीचन्द्र को नमस्कार किया। हाथियों घोड़ों, रथों और सैनिकों सहित श्रीचन्द्र अर्धचनी की तरह शोभने लगे प्रतापसिंह राजा ने एक शुभ दिन, शुभ समय में विद्याधर Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.
Page #136
--------------------------------------------------------------------------
________________ 6 134 राजाओं और दूसरे राजारों के समक्ष श्रीचन्द्र का महान राज्याभिषेक वियो / एक छत्री राज्य को करते हुये र जाधिराज बने। महापट्टणी पद्मिनी चन्द्रकला बनी और सोलह पटरानिये 1 कनकावली 2 पद्मश्री 3 मदनसुन्दरी 4 प्रियंमंजरी 5 रत्नचूला 6 रनवती 7 मणिचूला 8 तारालोचना गुणवती 10 चन्द्रमुखी 11 चन्द्रलेखा 12 तिलकमंजरी 13 कनकवती 14 कनकसेना 15 सुलोचना 16 सरस्वती हुई। चन्द्रावली रत्नकान्ता, धनवती आदि रुप, लावण्य, सौंभाग्य लक्ष्मी की स्थान भूत 1600 •ानियें हुई / चतुग कोविदा आदि सखिये हजारों हुई। पूर्व पूण्य के भोग फल से विद्या से स्वइच्छानुसार रुप बनाकर श्रीचन्द्र राजाधिराज इच्छानुसार भोग भोगते थे / सुग्रीव को उत्तर दिशा का राज्य सौंपा और दक्षिण श्रेणी का राज्य रत्नध्वज और मणिचूल को दिया / जय प्रादि चारों भाइयों को कई देशों का राज्य दिया / सब जगह वह धर्म राज्य को चलाने लगे / सोल हजार मंत्रियों में 1600 मुख्य मंत्री थे, लक्ष्मण आदि 16 अमात्य थे उन सब में मुख्य मंत्रीराज गुणचन्द्र था / 42 लाख हाथी, .2 लाख उत्तम अश्व, 42 लाख रथ, 42 लाख ऊट 42 लाख गाड़े, 10 करोड़ साधारण घोड़े, अड़तालीश करोड़ धनुर्धारी सैनिक, उत्तम सेनाधिपति धनजय सहित हमेशा श्रीचन्द्र राजाधिराज की सेवा करते थे। 42 हजार ऊचे ध्वज, 42 हजार बाजे और उतने ही उनके Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.
Page #137
--------------------------------------------------------------------------
________________ बजाने वाले,४२ हजार छत्र,चामर को धारण कराने वाले पुरुष,४२ हजार महावत शोभते थे, हरि तारक आदि भाट, वीणार व आदि गायक और दुसरे व धियों से स्तुति करवाते हुये श्रीचन्द्र सुशोभित होते थे। __सर्व देशों में, सब जातियों में लोगों को इच्छित दान देकर, सारी पृथ्वी को अऋणी किया। सर्ग निमित्रों और सर्व शास्त्रों के आदि में श्रीचन्द्र संवत्सर अंकित कराया / दानशालायें, प्याऊ, मठ, मन्दिर प्रादि प्रत्येक सोलह 2 हजार कराये / सत्तर वार सब जीवों को बोधिबीज देने वाली मात पिता सहित महायात्रायें की। प्रतिदिन श्री जिन पूजा, पावश्यक किया और मात-पिता की भक्ति, गुरु महाराज की चरण स्थापना को वन्दन सर्व क्रिया को करते थे / सारे देशों में अमारी की घोषणा की और अहिंसा को फैलाया / गांव-गांव में, गिरि-गिरि पर श्री जि.न मन्दिर, जिन बिंबों की स्थापना करके पृथ्वी को श्री जिनेश्वर देव से मंडित की। श्री जिन अाज्ञा के पालक ऐसे वे, सात क्षेत्रों में धन देते हुये, पार पर्वो में कुव्या. पार का निषेध करते हुये, श्री जिन वचन तथा उनके कहे हुये तत्वों में श्रद्धा रखते हुये राज्य पर शासन कर रहे थे / मानन्द पूर्वक बहुत समय व्यतीत हो गया / मुख्य तीन धर्म, अर्थ और काम को भोगते हुये चन्द्र कला की कुक्षि से चन्द्र स्वपन से P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #138
--------------------------------------------------------------------------
________________ सूचित पुत्र रत्न का जन्म हुआ / दादा ने उसका नाम पूर्ण चन्द्र रखा / सर्व देशों में जन्म महोत्सव मनाया गया। दुसरी रानियों के भी अनेक पुत्र जन्मे / श्रीचन्द्र पुत्रों सहित इन्द्र की तरह शोगते थे / महामल्ल राजा और शशिकला रानी के प्रेमकला पुत्री हुई उसके साथ ऐकांगवीर भाई को परणाया / कुटुम्ब के दिन हर्ष पूर्वक व्यतीत हो रहे थे / एक दिन उद्यानपाल ने पाकर सूचना दी कि नगर के उद्यान में मुनि समुदाय से युक्त पुण्य के पुन्ज श्री सुव्रताचार्य पधारे हैं / प्रतापसिंह आदि सब आनन्द को प्राप्त हुये। प्रतापसिंह राजा, श्रीचन्द्र राजा और दूसरे राजाओं और स्वप्रियाओं सहित मंत्रियों, लोगों आदि के साथ पाकर गुरुमहाराज को विधि पूर्वक नमस्कार करके उचित स्थान पर बैठे / धर्मलाभ युक्त गुरुमहाराज ने देशना शुरु की कि विश्व में श्री जिनेश्वर देवों ने साधुः और श्रावक़ दो प्रकार के धर्म कहे हैं / साधु धर्म के पांच महाव्रत, तीन गुप्ति और पांच समिति, श्रावक के 12 व्रत, देव पूजा अादि धर्म कहे हैं। श्री जिनेश्वर देव की पूजा से मन को शान्ति प्राप्त होती है मन की शांति से शुभ ध्यान उत्पन्न होता है, शुभ ध्यान से मोक्ष का अव्याबाध सुख प्राप्त होता है / द्रव्य स्तवना से उत्कृष्ट अच्युत देवलोक तक जा सकते हैं और भाव स्तवना अन्तर मुहू त में केवल ज्ञान प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त होता है। श्री जिन मन्दिर जाने की मन से इच्छा करे तो एक उपवास का प.ल. उठने से बेले का फूल: प्रयाण के प्रारम्भ में तेले का फल, चलतः Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.
Page #139
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 1375 हुये 10 उपवास का फल, मार्ग में 15 उपवास का फल, देरासर का दर्शन होते महीने के उपवास का फल, श्री जिनेश्वर प्रभु के दर्शन से 1 वर्ष के उपवास का फन, तीन प्रदिक्षणा से एक सौ वर्ष के उपवास का फल, श्री जिनेश्वर देव की पूजा से हजार वर्ष का फल और श्री जिन स्तवना से अनंतगुणा फल प्राप्त होता है / कहा है कि न्हवरण स्नात्र करने से एक सो गुणा विलेपन से हजार गुना, पुष्प माला पहनाने से लाख गुना और गीत, नृत्य, वाजिंत्र प्रादि भावपूजा से अनंतगुणा 'कंचन मरिण और सुवर्ण के हजार यमों वाला,' सुवर्ण की तल भूमि, श्री जिन भवन कराये उससे भी तप और संयम अधिक है / , यह सुनकर बलात्कार श्री चन्द्र की अनुमति लेकर प्रतापसिंह राजा, और सूर्यवती पटरानी आदि अनेक रानिओं, लक्ष्मीदत्त प्रिया सहित, और मति राज आदि मत्रियों ने दीक्षा ग्रहण की। कितनों ने सर्व विरति कईयों ने सम्यक्त्व और देश विरति यथाशक्ति व्रत लिये / श्रीचन्द्र राजाधिराज ने प्रियाओं सहित श्रावक धर्म स्वीकार किया / सम्यक्त्व मूल पांच व्रत सात उत्तर व्रत इस !हार श्रावक के 12 व्रत लिये / श्री अरिहंत भगवान को नमस्कार करके अभिग्रह किया प्रमाण करते हैं / 'अरिहंत मेरे श्रेष्ट देव हैं, निग्रेन्थ सुसाधू मेरे गुरु हैं और जिनेश्वर' देवों ने जो कहा है वह ही तत्व है / इस प्रकार जावजीव सम्यक्त्व को धारण किया / श्री जिनेश्वर देव की त्रिकाल पूजा करुगा, उभयकाल आवश्यक क्रिया करूंगा / श्री जिनेश्वर देव के गर्भ गृह में दश विध प्राशातना टालूगा / तंबोल, मशुची डालना विकथा, नींद भोजन पानी कीड़ा कलह, जूती और हास्यकथाये दश P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #140
--------------------------------------------------------------------------
________________ *138 110 आशातना टालूगा / प्रतिदिन एक हजार श्री महामन्त्र नमस्कार का जाप करुंगा / 300 गाथा का स्वाध्याय करुंगा / एक लाख द्रव्य सात क्षेत्रों में खर्च करुंगा / पहेला स्थूल प्रणातिपात विरमण व्रत, अपराध बिना किसी भी जीव का विकल्प पूर्णक वध नहीं करूंगा और नहीं कराऊंगा / दूसरा स्थूल मृषीवाद विरमण व्रत, पांच प्रकार के बड़े झूठ नहीं बोलूगा / तीसरा स्थूल अदत्तादान विरमण ब्रत , अपराधी सिवायें, कोई भी वस्तु दिये सिवाय ग्रहण नहीं करूंगा / चोथा स्थूल ब्रह्मचर्य व्रत, स्वपत्नियों को छोड़कर जावजीव शीलव्रत पालूगा / पांचवां परिग्रह परिमाण व्रत, नवविध परिग्रह में से तीन खण्ड राज्य के सिवाय का परिग्रह कम करूगा / धन धान्य, रूपा, सुवर्ण, खेत महेल दो पैर वाले, चार पैर वालों आदि का भी प्रमाण रखा / हट्टा दिग परिमाण व्रत, तीन खन्ड में नीचे एक कोस से ज्यादा नहीं, ऊपर नेताढ्य भूमि को छोडकर श्री जिनेश्वर देव की यात्रा सिवाय जाऊंगा नहीं / सातवां भोगोपभोग विरमण व्रत में अनंत काय, अभक्ष्य भोजन का त्याग वस्त्र प्राभूषण का परिमाम, सचित्त वस्तुओं का त्याग, कंद, सूरनकंद, हरी, सोंठ, हरी हल्दी, हरा काचरा, सतावली. वीराली, कुवार पाठा, अदरक, थोर गिलोय, विरूध, लस्सन्न, वांस, करेला, गाजर, लोग्रेन की भाजो, लोढ़ की भाजी, गिरिकरण, कोमल पान, किसलय कोमल-वनशेरुग, थेग, अल मोया, भूमिरुपा, वथुप्रा की भाजी, . Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.
Page #141
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 1361 पंल्यक की भाजी, कोमल इमली इस प्रकार 32 अनंतकाय, का त्याग / 1 मध, 2 मदिरा 3 मांस 4 मक्खन 5 उदुंबर वृक्ष के पांव अंग, रात्रि भोजन, बोल अथाणा, बोल अठा, बर्फ, करा, कच्ची मिट्टी, कच्चा दूध-दही साथ में द्विदल फुग वाला, चलित रस वाला, अज्ञात फल, तुच्छफल, बहुवीज फल इस प्रकार 32 अभक्ष्य का त्याग किया / 15 कर्मादान, अंगार कर्म, वन कर्म, शकट कर्म, गाड़ी अश्व आदि किराये पर फिने खेती, बोरीग पृथ्वी खुदवाना, दन्त वाणिज्य, कस्तुरी, दांतवाले, पंख, ऊन, हिलते, चलते प्राणी के अंग का व्यापार नहीं करना / मद्य, मक्खन, मांस, द्ध, घी, तेल आदि का व्यापार नहीं करना / विष, अफीम, सोमल, शस्त्र, हल, खुदाली, फावड़े आदि का व्यापार नहीं करना। जिन, चक्की, घाणी, पशु पंखी की पूछ काटनी, पीठ गालना, डाम देना. खसी करना, दव, धन, खेत में अग्नि, कुए, तालाब खुदबाना,नहर कडवाना,पानी सुकवाना,असती का पोषण, मैना,पोपट, वेश्या आदि का पोषण मोर उसकी कमाई लेने आदि धन्धे का त्याग किया। ___प्राठवां अनर्थदण्ड विरमण व्रत, मार्तध्यान, रौद्रध्यान, पाप * का उपदेश नहीं करना, हिंसक वस्तुओं का दान नहीं देना, प्रमाद नहीं करना। शस्त्र, अग्नि, सांबेला, यन्त्र प्रौषध, पक्षियों का युद्ध करुगा नहीं, फराऊगा नहीं। P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #142
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 140 नवमा सामायिक व्रत प्रार्ता, रौद्र ध्यान छोड़कर मुहंत मात्र (48 मिनिट) समभाव में यथाशक्ति रहूंगा / दसवां देशावकाशिक व्रत, दिशिव्रत का परिमाण, दिन में संक्षेप और रात्रि का अभिग्रह करूंगा। चउदह नियमों में भोजन, विगई, वाहन, सचित वस्तुओं का दिशा आदि का प्रमाण, द्रव्य, बोल, आसन, विलेपन, जूतियें, स्नान, सुगन्धी, की मर्यादा ब्रह्मचर्य, 1-2 सचित्त का त्याग, विगई 2-3 सिवाय त्याग, चार पैर वाले, फल फूल आदि की यतना, शय्या पांच, प्रासन पाठ, द्रव्य दश इस प्रकार नियम लिये। ग्यारहवां पौषधोपवास व्रत चार पर्वो में पाप कर्म का व्यापार नहीं करूंगा, नहीं कराऊंगा। पौषध करुंगा। बारहवां अतिथि संविभाग व्रत उस दिन अतिथि, साधु, साध्वी जी को आहार पानी, वसति, शयन, प्रासन, वस्त्र, पात्र, दुगा, इस प्रकार पांच अणुव्रत, चार शिक्षा व्रत, पोय तीन गुणव्रत कुल बारह व्रत हुये। बाकी के शेष प्रारम्भों में त्रस स्थावर,जीवों की यतना पूर्णक रक्षा करुंगा। राजा, गुरु,गण समुदाय के बल से, देव के बल से, कार्यवश सब प्रकार के समाधि के कारण सिवाय मुझे वनमें जाने के लिये नियम है / .P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #143
--------------------------------------------------------------------------
________________ 161414 मरिहंत, सिद्ध, साधु, सम्यग् दृष्टि देवों की और स्व की साक्षी से श्रीचन्द्र ने ये व्रत ग्रहण किये। जिसमें सम्यक्त्व मूल है, गुण रुपी क्यारियें हैं, शील रूपी प्रवाल है व्रतरूपी जिस की शाखायें हैं / ऐसा श्रावक धर्म जो कल्पवृक्ष के समान है, वह मुझे शाश्वत सुख देने वाला बने / ऐसा कहकर गुणचन्द्र सहित गुरू महाराज को नमस्कार करके, प्रतापसिंह राजर्षि आदि नवदीक्षित साधुनों और सूर्यवती आदि साध्वीजी आदि प्रत्येक को वन्दन करके, जिनके नेत्रों से आंसू झर रहे हैं ऐसे श्रीचन्द्र राजाधिराज उनके गुणों को याद करते हुये महल में गये / श्री सुव्रताचार्य आदि राजा की अनुमति लेकर पृथ्वी तल पर विहार कर गये / श्रीचन्द्र राजाधिराज श्रावक धर्म को पालते हुये, प्राक'श गामिनी विद्या से भाईयों से युक्त श्री संघ को लेकर, श्री सिद्ध क्षेत्र आदि तीर्थों की और विंध्याचल नदीश्वर द्वीप आदि शाश्वत तीर्थों की यात्रा करते थे / पिता के दीक्षा लेने के पश्चात 18 लब्धियों से युक्त अपने राज्य का सुख पूर्वक पालन करते हुये बहुत समय व्यतीत हो गया प्रतापसिंह राजषि, सूर्यवती साध्वीजी आदि शुद्ध चारित्र पालकर जहां एकावतारी हुये इस स्थान विशेष की शुद्धि के लिये महान स्सूप बनवाकर, सब देशों में रथ यात्रा करायी। पद्मिनी चन्द्रकला प्रादि ने भी मलग 2 रथ यात्रायें करवायीं। कम से भीचन्द्र राजाधिराज के 1600. पुत्र पुत्रियें हुई। उसमें सत्तर अद्भुत पुत्र हुये / श्रीचन्द्र रूपी इन्द्र ने बारह वर्ष कुमार P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #144
--------------------------------------------------------------------------
________________ पन में सब कलायें प्राप्त कर लीं। एक सौ वर्ष एक छत्री राज्य का पालन कर, वैराग्य से युक्त मन वाले श्रीचन्द्र राजा ने भाई ऐकांगवीर को श्री गिरि में श्री चन्द्रपुर नगर दिया। स्वय दीक्षा की इच्छा वाले श्रीचन्द्र ने कुशस्थल में चन्द्रकला के पुत्र पूर्णचन्द्र का बड़े महोत्सव से राज्याभिषेक किया। कनकसेन को कनकपुर का राज्याभिषेक कर,नवलक्ष देश का राजा बनाया। वैताठ्य गिरि की उत्तर और दक्षिण श्रेणी का राज्य रत्नचूला के पुत्र को दिया / रत्नपुर का राज्य रत्नमाला के पुत्र को दिया / मदनचन्द्र को मलय देश का राज्य दिया। ताराचन्द्र को नंदीपुर का र ज्य दिया / इस प्रकार अपने पुत्रों को अलग 2 राज्य देकर उन पर उनकी स्थापना कर श्रीचन्द्र राजराजेन्द्र ने 6 प्रकार के परिग्रह का त्याग करके चन्द्रकला आदि रानियों, गुणचन्द्र आदि मंत्रिों सहित, पाठ हजार पुरुर्षों और चार हजार नारियों के साथ श्री धर्मघोषसूरीश्वरजी के पास दीक्षा लेकर उनके साथ पृथ्वी तल पर विचरने लगे। श्रीचन्द्र राजर्षिने द्वादशांगी श्रु त किया और अति दारुण तप करके आठ वर्ष छदमस्थपर्याय पालकर, चार घाती कर्मो का क्षय करके अति उत्तम केवलज्ञान को प्राप्त किया / देवों और राजायों ने महान महोत्सव किया देवों ने स्वर्ण कमल पर सिंहासन आदि की रचना की। श्रीचन्द्र केवली ने विचरते हुये 16 हजार साधुयों और 8 हजार साध्वीजी को कुल 24 हजार धर्म देशना की शक्ति से दीक्षायें दी। बहुतों को समकित आदि क्रियायें समझाकर श्रावक बनाये / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #145
--------------------------------------------------------------------------
________________ गुणचन्द्र प्रादि बहुत साघुत्रों में और चन्द्रकला प्रादि बहुत . साध्वीजी ने कर्मक्षय करके केवलज्ञान प्राप्त किया / कमलश्री और मोहनी शीलबत पालकर पहले देवलोक में गयी। वहां से ज्यव कर मोक्ष में जायेंगी। श्रीचन्द्र पैतीस वर्ष केवली पर्याय पालकर, भव्य जीवों को प्रतिबोध करते हुये, सम्पूर्ण प्रायुष्य 155 वर्ष का परिपूर्ण करके निर्वाण - पद को प्राप्त हुये (श्री शंखेश्वर पार्श्व प्रभु की शीतल छाया में औय उनकी असीम कृपा से वीर सं० 2487 विक्रम स० 2017 के चैत्र वद 5 गुरुवार को प्रभात में 11 बजे यह ग्रन्थ थोड़ा ही लिखा गया था इतने ही में देवी पुष्पों की सुगन्ध महक उठीं वह पांच मिनिट तक रही देरासर से 6 कदम दूर / देरासर में खोज की, परन्तु ऐसी सुगन्ध के पुष्प दिखाई नहीं दिये / अर्थात् श्री वर्धमान तप के प्रेमी, श्री वर्धमान सूरी का जीव जो कि अभी वहां के अधिष्ठायक यक्ष हैं वे पांच मिनिट पधारे थे उनके गले में और हाथ में पुष्प की माला थी उसकी मुझे शायद . सुगन्ध पायी / उस समय में प्रथम प्रावृति की प्रेस कापी लिख : रहा था ) / 100 वर्ष तक तीन खन्ड के सब राजाओं ने जिनके चरण कमलों की सेवा की चन्द्र की तरह एक छत्री राज्य को पालने वाले श्री चन्द्र जय को प्राप्त हों। योगरुपी शस्त्र से पाठ कर्मों की गांठे जिन्होंने नष्ट की ऐसे श्रीचन्द्र केवली जय को प्राप्त हों। भविक रुपी कमल को विकसित करते और सूर्य की तरह बोध देते जो विचरे थे ऐसे श्रीचन्द्र राजर्षि को मैं वन्दन करता हूं। 155 वर्ष का सम्पूर्ण आयुष्य पूर्ण करके, निर्वाण रुपी धर्म तीर्थ में जो सिद्ध पद को प्राप्त हुये उन महान श्रीचन्द्र को हमेशा मेरा नमस्कार हो। श्रीचन्द्र के समय 6 हाथ की काया थी: श्रीचन्द्र केवली ने जिन्हें दीक्षा दी उनमें से कितने तो केवल P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #146
--------------------------------------------------------------------------
________________ * 144 10 ज्ञान प्राप्त करके मोक्ष में गये / कितनों ने सर्वार्थ सिद्ध देव विमान प्राप्त किया। बाकी के सब देवलोक में गये / वे एकावतारी होकर सब सिद्धि पद को प्राप्त होंगे। इस प्रकार श्री आयंबिल वर्धमान तप की कथा श्री वीर स्वामी ने पहले श्रेणिक महाराज को सुनायी थी, उसी प्रकार हे चेटक ! तेरे बोध के लिये श्रीचन्द्र कैवली की कथा मैंने (गौतम स्वामी गणधर ने) कही है। श्रीचन्द्र केवली की कथा 800 चौवीशी तक इस तप को करते ज्ञानियों द्वारा कही जायेगी / इसे सुन चेटक महाराज तप को करने के लिये उद्यमी बनें। श्री सिद्धर्षि गणी ने 598 वर्ष पूर्व प्राकत चरित्र की रचना करके उसमें से यह रचा गया है / जिसमें विविध अर्थ की रचना की रचना की गई है, उसमें से उध्धृत करायी हुयी कथा में कुछ त्रुटि हो गई हो तो वह मिथ्या दुष्कृत हो / जहां दया रुपी इलायची, क्षमारुपी लवली वृक्ष, सत्यरुपी श्रेष्ठ लोंग, कारुण्यरुपी सुपारी है / हे भव्यजनों ! मुनिरूपी कपूर, उत्तम गुणरूपी शील, सुपात्र के समूह श्री जिनेश्वर देव द्वारा कथित गुण के करने वाले ऐसे तांबुल को ग्रहण करो। यह संघ गुण रुपी रत्नों का रोहणाचल गिरि है, सज्जनों का भूषण है, ये प्रबल प्रतापी सूर्य है, महामंगल है, इच्छित दान को देने वाला कल्पवृक्ष है, गुरूमों का भी गुरू है ऐसा श्री जिनेश्वर से पूजित श्री संघ लम्बे समय तक जय को प्राप्त हो / MAR 13. .P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust