________________ * 560 दिया। उसके बाद राजा अपने नगर में चला गया। बाद में राजकन्या ने अर्थी को सुवर्ण मुद्रिका दी। वीणापुर के रास्ते में जाने हुए एक कोतवाल भटक गया। श्रीचन्द्र को देखकर प्राश्चर्य से कहने लगा तू कौन है ? यह खड्ग किसका है ? ये मुझे दे दे। श्रीचन्द्र कहने लगे अगर खड्ग की इच्छा हो तो अपने खड्ग को तैयार कर तो खड्ग भी बताऊं और दे सकू। उन तेजस्वी वचनों को सुनकर वह अधम नगर में गया, राजा की आज्ञा से सेनापति के साथ जल्दी वापस पाया। सेना को आता देख चकित हो कहने लगी 'हे प्रभु / पीछे से क्या विशाल सेना पा रही है ?' युद्ध में समर्थ श्रीचन्द्र ने हंस कर कहा 'तुम घबराओ नहीं, मेरे आगे खड़ी हो जायो / उसे मागे करके खड्ग को दृढ़ता से पकड़ कर श्रीचन्द्र खड़े रहे / 'स्त्री और खड्ग के चोर तू कहां जाता है ? तू अभी मर जायेगा। मारो 2 ऐसा कहते हुए सेना वहां आई / ___ इतने में तो सिंहनाद पूर्वक श्रीचन्द्र सम्मुख होकर सिंह की तरह संग्राम करने लगे। उनके सिंहनाद से भयभीत होकर राजा के हाथी, रथ, अश्व एक दूसरे पर गिरने लगे। कितने ही तो मृत्यु को प्राप्त हो गये / कितने अधमुए हो गए, वे भागते हुए कहने लगे कि हम तो व्यर्थ में ही मारे गये ये तो कोई विद्याधर है / ये दृष्टि से भी दिखाई वहीं देता। जिसकी दोनों भुजायें प्रिया द्वारा पूजित हैं ऐसे श्रीचन्द्र किसी समय जल्दी से कभी धीरे 2 चलते पत्नी सहित चलते हुए P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust