________________ * 500 सिद्धपुर में आये। वहां उन्होंने सुना कि यहां जिन चैत्य है. उसकी बहुत ही महिमा है, वहां अनेक देशों से लोग यात्रा के लिये प्राकर . पक्षत, वस्त्र, फल और नैवेद्य आदि अनेक प्रकार से पूजा करते हैं। . संघ के जाने के बाद वणिक आदि वहां के लोग देव के द्रव्य को विभाजित कर हमेशा ले लेते थे। उस कारण देव द्रव्य के भक्षण से वे लोग दिन प्रतिदिन निधन हो गये / दुलक्षय होगये, जिससे सिद्धपुर नगर छाया बिना का होगया। उनका ये स्वरूप जानकर श्रीचन्द्र ने प्रिया सहित श्री जिनेश्वरदेव को नमस्कार कर प्रिया से कहने लगे कि, 'इन लोगों के घर देव द्रव्य का भक्षण होता है इसलिये यहां का अन्न पानी लेना योग्य नहीं है। बाद में वृद्ध लोगों से कहा कि 'ये जिन मन्दिर जीर्ण क्यों दिखाई दे रहा है ? यह तो बहुत खराब बात है मथवा यह अशुभ की निशानी है / 'किसी भी प्रकार का कर्ज अशुभ माना गया है, उसमें भी देव द्रव्य का कर्ज विशेष प्रकार से अशुभ है। देव द्रव्य से स्वधन की वृद्धि करनी, उस द्रव्य से प्राप्त हुग्रा धन, वह धन कुल को नाश कर देता है / मृत्यु के बाद वह जीव नर्क में जाता है / आगमों में कहा है कि जिन प्रवचन की वृद्धि करने वाला, ज्ञान दर्शन का प्रभावक और देव द्रव्य का रक्षण करने वाला तीर्थकर पद को प्राप्त करता है / ' . 'देव द्रव्य के भक्षण से और परस्त्री गमन से जीव सातमी नरक में सात बार जाता है / जो श्रावक देव द्रव्य का भक्षण करता है मोर उसकी उपेक्षा करता है वह प्रज्ञाहीन बनता है। कर्म से लिप्त हा P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust