________________ * 13 10 "हे राजन् ! कुडलगिरि के मुख्य शिखर के मध्य में रत्न और सुवर्ण से भरपूर उसका महल है उसे तुम ग्रहण करो। राक्षस के वचन को स्वीकार कर श्रीचन्द्र ने वहां जाकर सब वस्तुप्रों को ग्रहण करली / उस महल के स्थान पर देवलोक से भी अद्भुत चन्द्रपुर नाम का एक नया नगर बसाया / उसके मध्य भाग में राक्षस के मन्दिर में चोर के शरीर के ऊपर राक्षस की प्रतिमा को स्थापित कर उसका नाम नरवाहन रखा / उसके बाद कुन्डलपुर नगर में आकर कुन्डलेश्वर कुछ दिन ठहर कर सास, पत्नि, सेनापति, सैनिकों आदियों को हित शिक्षा देकर अपनी पादुका सिंहासन पर स्थापित कर श्रीचन्द्र जिस छिपे वेश में आये थे उसी वेश में रात्रि के प्रथम पहर में आगे के लिये प्रयाण कर गये / अनुक्र म से महेन्द्रपुर के पास आए वहां रात्रि व्यतीत करने के लिये किसी वृक्ष के नीचे निद्राधीन हो गए, इतने में जिसने अवस्वापिनी विद्या से लोगों को निद्राधीन किया है ऐसा लोहखुर चोर चोरी करके भार से व्याकुल हुअा वहां पाया और कहने लगा ‘ह अवदूत ! इस भार को तू उठा ले मैं तुझे जमदुरी दे दूंगा / सत्ववानों में सिंह के समान श्रीचन्द्र उस भार को उठा कर चोर के पीछे 2 चले / लोहखुर ने एक गुफा में प्रवेश किया / गुफा के अन्दर भूमि में दीपों से देदीप्यमान रत्न और एक स्त्री थी। उस स्त्री को लोहखुर ने कहा इस पुरुष का तू.. मादर सत्कार कर। स्त्री ने कहा हे स्वामिन ! भोजन आदि करके मेरे साथ खेलो। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust