________________ * 650 . 'सरस्वती को रात्रि में स्वप्न में यक्ष ने कहा' मैं तुम्हारे पति को लग्न समय में अपने मन्दिर में प्राज से पांचवे दिन ले ग्राऊंगा। हर्ष से वह स्वप्न प्रातःकाल होने पर सखी से कहा / इस नगर में मत्री. पुत्र श्रीदत्त सरस्वती का प्रेमी था, परन्तु सरस्वती को उस पर कोई प्रेम नहीं था / श्रीदत्त ने लोभ से मुझे वश कर लिया, मैंने उसे राजकुमारी का स्वप्नं बताया। उसके कहे अनुसार मैंने स्वामिनी से कहा कि श्रीदत्त को भी इसी प्रकार: स्वन्न आया है / सरस्वती ने कहा कि अगर यक्ष के वचन इस प्रकार है. तो ठीक है, वह सामग्री सहित आने : वाला था, परन्तु उसके पिता ने उसे आने नहीं दिया होगा जिससे वह : .. आ नही सका ... . सरस्वती ने कहा, हे देव ! यक्ष के वचन अन्यथा कैसे हो सकते : . हैं / श्रीदत्त ने मुझे ठगा था, मेरा भाग्य अच्छा है कि मेरा वर साधा.. ___रण पुरुष नहीं हुअा, यक्ष के दिये हुये.आप ही. मेरे पति हो, मेरा परम . सौभाग्य है परन्तु हम अगर यहां रहेंगे. तो मेरे पिता अनर्थ करेंगे / ... श्रीचन्द्र ने कहा प्रिये ! मैं और वे मनुष्य हैं फिर डरने का क्या काम ? ___तुम डर क्यों रही हो ? देखते हैं उनमें कितना बल है। .. . प्रातःकाल जब.श्र चन्द्र ने मुह धोया तो उनके सूर्य रुपी भाल को देखकर सरस्वती बहुत प्रसन्न हुई / पूजारी ने उनको देखकर, जल्दी से राजा को. सारी बात कह सुनायो / राजा के आदेश से बलवान , सेनापति वहां आया। उसे देखकर, प्रिया के अंग को कांपता देख , श्रीचन्द्र बोले, हे भद्रे ! तू डर नहीं / यह गरीव वेचारा क्या करेगा ?. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust