________________ * 660 पहनायो / हर्ष से उन्होंने मालायें पहनाई। श्रीचन्द्र राजा ने कहा हे विद्याधर रानी ! यह कौन हैं ? और ऐसी परिस्थिती आप लोगों की कैसे हो गई ? विद्याधरी ने कहा हे वीर शिरोमरिण ! वैताढय गिरि पर मरिण नूषण नगर में रत्नचूड़ राजा और उनका छोटा भाई मणिचूड़ युवराज था / उनके रत्नवेगा और महावेगा स्त्रियां थीं। उनकी रत्नचूला और मणिचूला आदि चार पुत्रिय और रत्नकान्ता भानजी है। : गोत्री विद्याधरों सहित आकाश में विचरते उत्तर श्रेणी के नाथ सुग्रीव राजा ने उन्हें जीता, जिससे सहकुटुम्ब धनादि लेकर इस पाताल नगरी में रहें। स्वदेश प्राप्त करने के लिये रत्नचूड़ अटवी में खड़ग के पास विधिपूर्वक उल्टे मस्तक से विद्या को साधने लगे इतने में तो किसी ने उन्हें मार दिया। हम प्रभात में जब पूजा और उपहारादि की वस्तुएं लेकर गये तो वे वहां मरे हुए थे। उनकी मृत्यु क्रिया कर हम अपने स्थान वापस पाई। ..रत्नचूड़ का पुत्र रत्नध्वज पिता की मृत्यु से व्याकुल अटवी में गया वहां उद्योत के भ्रम से मदनसुन्दरी को पति से अलग करके यहां -- ले प्राया। मैंने अपनी सुशीला पुत्री की तरह उसे रखा / ये हमेशा पति के गुण गाती थी, यह सुनकर प्रेरणा से पाठकन्याओं ने, वे ही पति वरण करने का निश्चय किया। मणिचूड़ ने नेमित्तिक से पूछो, तब उसने कहा जिस वर को इन कन्यानों ने चुना है वही महासात्विक पुरुष तुम्हारा गया हुमा राज्य तुम्हें वापिस दिलाएगा / मणिचूड़ और रत्नध्वज ने बस्ती विना के पवित्र मेरुगिरि के नन्दनवन में विद्या की P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust