________________ 68 नहीं कर रही है ? मदनसुन्दरी ने कहा, हे माता आज मुझे बिल्कुल भी भूख नहीं लगी है। उस विद्याधारी ने कहा तेरे पति को ही मेरी कन्याओं ने वरण किया है, नैमित्तक के वचनानुसार भी उन्हीं के द्वारा हमें फिर राज्य प्राप्त होगा / हे पुत्री ! मैं बहुत दुखी और अभागिन हूं। स्थान से भ्रष्ट हुई हूँ और भतार वन में मृत्यु को प्राप्त हुआ है। देवर और पुत्र सुरगिरि पर विद्या की साधना कर रहे हैं / मैं आई हूं तव तक कुशस्थल से कोई समाचार नहीं आये / हे बुद्धिशालिनी इतना जानते हुए भी तू इतना आग्रह करवाती है हमें भी अन्तराय न कर और भोजन के लिये चल / ... मदनसुन्दरी भोजन नहीं करती। विद्याधरी मदनसुन्दरी को छाती से लगा लेती है, दुख से रोने लगती है। राजा सोचने लगे जिस विद्याधर को मैंने भूल से मार दिया था, उसी की पत्नि मुझ पर कितना स्नेह रख रही है। ऐसा सोचकर महल के दरवाजे पर दृश्य पन में प्रगट होकर द्वारपाल को अंगूठी अन्दर दिखाने के लिये कहा, द्वारपाल अन्दर गया। मरिगवेगा ने आकर सुन्दर रूप और प्राकार वाले को देखकर कहा तुम कौन हो ? इतने में मदनसुन्दरी कन्याओं के साथ आई, पति को देखकर हर्षित होती हुई माता से कहने लगी है 'माता ! जिनकी आप हमेशा इच्छा करती थीं वे आपके जमाई आए हैं। हर्ष से विद्याधरी बाहर आकर प्रशंसा करती हुई अन्दर ल और कहने लगी प्रतापसिंह के पुत्र ! तुम हमारे ही भाग्य से आये हा / ऐसा कहकर कन्याओं को आदेश दिया कि श्रीचन्द्र के क.ण्ठ में वरमाला P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust