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________________ * 67 10 उचित दान देव.र नगर में विशाल महोत्सव किया। " शुभ शकुन द्वारा प्रेरित अटवी में प्राकर रात्रि में वड़ वृक्ष के नीचे श्रीचन्द्र प्रासन पर लेट गये। कुजर सारथी को नींद प्रागई और राजा जाग रहे हैं। वहां ढोलक के मधुर स्वर को सुनकर सारथी को कहकर प्रतापसिंह के पुत्र उस दिशा की तरफ गये / किसी गिरि के मध्य में यक्ष के मन्दिर में द्वार बन्द करके श्रीचन्द्र के दोहे सुन्दरिये गा रही थीं। ये अद्भुत क्या है ? उसे देखने के लिये दरवाजे के छेद में से देखते हैं कि मदनसुन्दरी आठ कन्याओं को गीत नत्य प्रादि सिखा रही है / हर्ष को प्राप्त हो विचारने लगे, मेरी प्रिया प्राप्त हो गई। - गोली से अदृश्य होकर प्रभात में जब कन्यायें जाने लगी तो उनके पोछे हो लिये। एफ़ गुफा में प्रवेश कर दूसरे दरवाजे से मणि के दीपकों से प्रकाशित पाताल महल में पाये / महल पर चढ़ कर मदनसुन्दरी कहने लगी मेरा बांया अंग और नेत्र बार 2 स्फुरायमान हो रहा है, इसलिये आज मेरे पति या उन का सन्देश आना चाहिये। उन कन्याओं में मुख्य रत्नचूला ने कहा मुझे भी ऐसा ही प्रतीत होता है आप पायीं हैं उसी दिन से तप आयंबिल आदि कर रही हैं उसके प्रभाव से प्राज आने ही चाहिये / रत्नवेगा ने आकर कहा कि माताजी ने भोजन के लिये सबको बुलाया है / मदनसुन्दरी कहने लगी मुझे अभी भूख नहीं है तुम जाकर भोजन करलो। 2. मदनसुन्दरी के बिना दूसरी कन्यायें भी भोजन के लिये नही जाती। इतने में मा ने आकर कहा हे पुत्री! आज तू भोजन क्यों P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036500
Book TitleVardhaman Tap Mahima Yane Shrichand Kevali Charitram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddharshi Gani
PublisherSthanakvasi Jain Karyalay
Publication Year
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size76 MB
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