________________ * 829. साथ पाणिग्रहण करो। राजा के आग्रह से श्रीचन्द्र ने 6 कन्याओं से विवाह किया / वहां के नगर के लोग और वे चार बहुएं भी देखने आई और कहने लगीं यह योग अद्भुत रूप से हुआ। उन्हें देखकर श्रीचन्द्र विचारने लगे ये चली जायेंगी तब मेरा क्या होगा ? तो मैं भी इन्हीं के साथ जाऊं। . ऐसा सोच कर बुद्धिशाली ने विवाह की विधि के बाद ऊपर महल में प्राकर लग्न वस्त्र पर कुंकुम से 'प्रतापसिंह का पुत्र श्रीचन्द्र कुशस्थल मैं हूं' इस प्रकार लिखकर अल्प रात्रि शेष रही तब स्ववेष धारण कर अपनी अंगूठी कनकसेना को देकर और उसकी अंगूठी लेकर शरीर चिंता के बहाने वहां से बाहर निकले / राजा जल्दी 2 चलकर वृक्ष के पास पहुंचे। वहां 6 स्त्रिये पहले से ही खड़ी थीं। उनमें मुख्य खर्परा, दुसरी उमा और चार वहुए थीं। खर्परा ने कहा हे उमा ! ये बहुएं अपने घर बहुत दुःखी थी। इनके घर में भिक्षा के लिये गई थी इन्होंने बड़े आदर से मुझे उत्तम भिक्षा दी, जिससे मैंने सन्तुष्ट होकर इन्हें विद्या दी / खर्परा न फिर कहा, हे भद्रे ! उमा मेरी शिष्या है। इसके पति के गुम हो जाने पर इसने दूसरा पति कर लिया है। यहां हम आश्चर्य देखने इकट्ठा हुई हैं अब कौतुक देखने कुशस्थल हम चल रही हैं। चारों बहुओ ने पूछा वहां क्या कौतुक है ?; सर्परा ने कहा प्रतापसिंह राजा के सूर्यवती राणी P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust .