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________________ * 86 मेरी अपराध क्षमा करिये प्राप कोई महान् तेजस्वी पुरुष हैं, यह मेरी पुत्री प्रापके सिवाय किसी से विवाह करना नहीं पाहती, तो बाप इसे ग्रहण करो / राजा ने कहा हे भीलों के राजा ! ये कन्या भीलनी है, में क्षत्रिय हूं मेरे कुल को कलक लगेगा। .. .. .. .. ... . ... .. - मोहिनी ने कहा 'हे प्रभु ! प्रापका वस्त्र दो उसे मैं वरण करू। जव वस्त्र नहीं मिला तो कहने लगी कि अपनी पादुका दें दीजिये, मैं पादुका लेकर हृदय में धारण कर अपने जन्म को सफल करूंगी / है. नाथ ! आपकी सेविका बनकर महल के बाहर हमेशा कार्य करूंगी, अगर अाप नहीं देंगे तो अग्नि में प्रवेश कर जाऊंगी। यह सुनकर राजा ने पादुका दी वहां बड़ा भारी उत्सव मनाया गया / भील राजा ने कहा कि जो वस्तुए मैंने मोहिनी के लिये तैयार करवाई हैं उन्हें ग्रहण करो। अश्व, हाथी, रथ, रत्न, मोती तरह 2 के कीमती वस्त्र, सेवक मादि श्रीचन्द्र राजा के पास लाकर रखे। / उनमें अपने पंचभद्र प्रश्वो को सुवेग रपे से युक्त देखकर राजा. हर्षित हुए। उन दोनों अश्वा ने भाकर राजा को नमस्कार किया हर्ष से हेषाख नृत्य करने लगे, उन्हें अपने हाथों से स्पर्श कर स्वीकार करते हुए कहा कि अहो / ये अद्भुत प्रश्व कहां से पाए ? भील राजा ने कहा हे देव ! भील लोग एक बार डाका डालने गये थे तब रास्ते में उन्होंने एक गायक से रथ और प्रश्व ले लिये, गायक भाग गया / उन भीलों ने अश्व और रथ मुझे दिये हैं। उस दिन से ही ये प्रश्व बहुत दुखी थे भौर सारी रात इनकी आंखों में से प्रांसू बहते थे। इनकी P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036500
Book TitleVardhaman Tap Mahima Yane Shrichand Kevali Charitram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddharshi Gani
PublisherSthanakvasi Jain Karyalay
Publication Year
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size76 MB
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