________________ 27 310 नहीं दे सका, इसलिये अब मैं क्या करूँ ? कहां जाऊं? इसकी चिन्ता में हूँ। प्रियंगुमंजरी हमेशा इस कामदेव के मंदिर में प्राती है। यहां रहने से किसी समय मिलाप हो सकता है, प्ररन्तु प्रतिहारिये मुझे मारकर बाहर निकाल देती हैं / हे सुन्दर ! यह दुख है मुझे। ये सुनकर श्रीचन्द्र मदनपाल के ऊपर दया लाकर सोचने लगे कि गुणधर गुरु पहले यहां आये थे, अहो ! यह कन्या कितनी बुद्धि मति है / फूल द्वारा अपने भाव प्रदर्शित किये हैं, 'लाल पुष्प से तू स्वयं रक्त है ऐसा मैंने कान से सुना है, परतु मैं देख भी नहीं सकती और स्थान भी नहीं दे सकती इसलिये तू अपना प्रयत्न छोड़ दे ऐसा दर्शाया है / श्वेत कमल दिखा कर उसने यह दर्शाया है कि विरक्त को मैंने रक्त किया है, मैंने कान से सुनकर हृदय में स्थापित कर लिया है ऐसा बताया है। परन्तु अपने आपको पंडित मानता हुआ यह इतना भी नहीं जान सका। ___ श्रीचन्द्र ने कहा अब तू क्या करेगा ? मदनपाल ने कहा, मैंने प्रियंगुमंजरी को देखा है, परन्तु उसने मुझे नहीं देखा। हे मित्र ! मेरा कार्य किस प्रकार सिद्ध होगा? आप परोपकारी लगते हैं इसलिये पाप बता कि मैं क्या करूं? इतने में तो शंख ध्वनि सुन कर, इसलिये यहां से चले चलो, मदनपाल ने कहा / दोनों ने उद्यान में से राजकुमारी को सखियों से युक्त कामदेव के मंदिर में प्रवेश करते हुये देखा वहां वे सब मृदंग, वीणा, नृत्य गीत आदि में मस्त हो गई। कुछ समय बाद वहां एक स्त्री ने जिसके कपड़े धूल से भरे हुए P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust