________________ * 10890 बाहिर से दृढ़ होकर सैनिकों सहित रणक्षेत्र में पाया / उसे देख श्रीचन्द्र ने भी अपनी सेना को आदेश दे दिया / . बहुत ही भयंकर युद्ध होने लगा, उस समय जय लक्ष्मी घन्टे के दन्ड की तरह इधर उधर फिरने लगी / गुण विभ्रम राजा ने श्रीनगर के सैन्य को तो भगा दिया, पद्मनाभ राजा, ब्रजसिंह राजा लक्ष्मण मंत्री हरिषेण आदि को बाणों द्वारा विदते हुये देकर श्रीचन्द्र हस्ति पर आरूढ़ हो, चन्द्रहास से शोभित हो गुण विभ्रम राजा के सन्मुख आकर सैनिकों को भगाते हुये कहने लगे, तुम उम्न में मेरे से बड़े होने से, मुझे झुककर चले जाओ, वर्ना लड़ना हो तो पहले वार करो। गुण विभ्रम राजा ने कहा, तू बालक है यह क्यों नहीं सोचता? तूंजा क्यों नहीं रहा ? ऐसा कहकर तलवार से प्रहार किया। स्व. मस्तक पर प्राते हुये देख, कुशाग्रबुद्धि वाले श्रीचन्द्र ने चन्द्रहास खडग से उसके हाथ पर प्रहार किया / कवच होने से हाथ तो नहीं कटा परन्तु तलवार के 100 टुकड़े हो गये / यह देख कर राजाधीश ऐसे श्रीचन्द्र ने गुण विभ्रम को गले में धनुष की डोरी डालकर नीचे पटक दिया / उसके हाथी पर से गिरते ही श्रीचन्द्र के सैनिकों ने उसे बांध लिया और लकड़ी के पिंजरे में कैद कर दिया। - चारों तरफ श्रीचन्द्र की जयजयकार होने लगी। चारों दिशाओं में जिनके गुणगान हो रहे हैं ऐसे श्रीचन्द्र कल्याणपुर में स्वाज्ञा और सात देशों में अपनी भाज्ञा मंत्रियों द्वारा पलाते हुये क्रमशः कनकपुर में राजाओं के . P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust