________________ * 1079 वाली होऊ / व्रजसिंह राजा ने कहा, हे वीर कोटीर ! हमारा यह . मनो रथ है कि आप चन्द्रावली को वरो। हंसावली और मदनसुन्दरी के अाग्रह से उसकी छोटी बहन से श्रीचन्द्र विस्तार से ब्याहे / रति और प्रीति से युक्त कामदेव की तरह श्रीचन्द्र दो पत्नियों से सुशोभित इन्द्र की तरह, अनेक प्रकार के बाजों से दिशायें गूज उठी हैं, हाथियों, घोड़ों, रथों सैनिकों आदि सहित नवलक्षेश देश की सरहद पर पहोंचे / स्वसमाचार पद्मनाभ, गुण वन्द्र आदि को पहुँचाये / स्वनाथ पधारे ह जानकर हर्ष से सन्सुख आकर स्तुति कर परस्पर सारा वृतान्त सुनाया / गुणचन्द्र ने कहा हे देव ! दुर्जय गुणविभ्रम राजा अभी तक जीता नहीं गया। पहले से दस गुणा दन्ड तरीके मांगता है, वह 6 राजाओं से युक्त है। हम दन्ड स्वीकार कर रहे थे इतने में हमारे भाग्य से आप आ गये / जैसे बादल बिन बरसात हुई है। चन्द्रहास खडग की कान्ति वाले श्रीचन्द्र रूपी सूर्य सैन्य रूपी उदयाचल गिरि पर उदित हुये, प्रताप और देदीप्यमान देह वाले ऐसे श्रीचन्द्र सुशोभित होने लगे / प्रतापसिंह के पुत्र सिंह को प्राया जान कर, शत्रु सेना जैसे पक्षी कांपते है, कम्पित होने लगी / सारी ही सेना दखित हो उठी। श्रीचन्द्र राजा ने गुण विभ्रम राजा को कहलाया कि कनकपुर के राजा के पास से जितना दन्ड लिया है उसका सौ गुणा करके वापस दो, नहीं तो युद्ध के लिये तैयार हो जाओ मैं आया हूं। इन गर्व भरे वचनों को सुनकर अन्दर से तो राजा द्रवित . हो उठा पर P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust