________________ 8 7 * जिसने पूर्व भव के स्नेह के कारण श्रीचन्द्र से विवाह किया वे श्रीचन्द्र जय को प्राप्त हों। इत्यादि तरह 2 की बातें कर रहे थे। किसी ने कहा कि श्रीचन्द्र तो सेठ पुत्र हैं परन्तु तुम राजपुत्र कैसे कह रहे हो ? दुसरे ने कहा कि मैं जब कुशस्थल में था तब पद्मिनी चन्द्रकला का नगर प्रवेश हुआ, श्रीचन्द्र ने वीणारव को दान दिया सबको बड़े प्रादर से भोजन करवाया। उसके बाद दूसरे दिन बिना किसी को कहे विदेश चले गये / कुछ ही दिनों में ज्ञानी महाराज वहां आये उन्होंने अपने मुखाविन्द से फरमाया कि श्रीचन्द्र प्रतापसिंह और सूर्यवती के पुत्र हैं और वह विदेश भ्रमण के लिये गये हैं। एक वर्ष बाद राजा और रानी से मिलेंगे / ऐसा जानकर राजा और रानी आदि सवको जानकर बहुत प्रसन्नता हुई। सब कवि भाट भी इसी प्रकार से स्तवना करते हैं। . . - इन सब बातों को सुनकर श्रीचन्द्र बहुत आनन्दित हुए / और सोचने लगे ये सब बातें ज्ञानी महाराज ही जान सकते हैं। उस शुभ संदेश सुनाने वाले को बहुत सा दान दिया तथा दूसरों को घी और गुड़ देकर उसी वेश में प्रागे के लिये रवाना हो गये। किसी जगह दृश्यमान होकर और कहों अदृश्य होकर चलते हुए एक भयंकर जंगल में पहुंचे / रात्रि व्यतीत करने के लिये एक बड़े वृक्ष के नीचे अपना डेरा डाल दिया। उस वृक्ष पर तोतों का स्थान था। रात्रि शुरु होते ही सब दाना चुग 2 कर आगये। वे सब आपस में हंसी खुशी से तरह 2 की बातें करने लगे। उनमें से एक ने पूछा अच्छा यह बताओ कि कौन 2 कहां 2 गया था। उनमें से एक बृद्ध तोता पो 3 P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust