________________ * 46 फिर भोजन करते हैं / वे सरोवर की पाल पर ज्यों ही पाते हैं तो क्या देखते हैं कि दो मुनि बड़ी शान्त मुद्रा वाले उस तरफ ही आरहे हैं / वच्छ और कच्छ नाम के साधुनों को आमंत्रण करके भक्ति और प्रति हर्ष से दोनों ने घी और शक्कर से युक्त घेवर आदि बहाये / बाद में बहुत लोगों को साथ लेकर भोजन किया। बाद में पत्नी के साथ उनके पास जाकर उन्हें नमस्कार कर वहां बैठे। वच्छ मुनि श्री ने धर्म लाभ पूर्वक कहा कि 'चित्त, वित्त और सुपात्र का योग, हे भद्र ! बहुत दुर्लभ है। कहा है कि 'समये सुपात्र दान और सम्यक्त्व से विशुद्ध ऐसा बोधि लाभ और अन्त समय में समाधि मरण अभव्य जीव नहीं प्राप्त कर सकता। उत्तम पात्र साधु साध्वी, मध्यम पात्र श्रावक श्राविका और जघन्य पात्र अविरति सम्यग् दृष्टि जीव होते हैं। इस प्रकार से देशना सुनकर श्रीचन्द्र में विनती की कि 'हे मुनि श्रेष्ठ पापी ऐसे मेरे से अज्ञानतावश उत्तम विद्याधर मारा गया है, उसका मुझे प्रायश्चित दो। वह पाप शल्य की तरह मुझे हमेशा चुभता है। . मुनिश्री ने कहा कि 'हे पुण्यात्मा ! तेरी पाप भीरुता भव्य है, पश्चाताप और दान से तेरी शुद्धि हो गई है। तो भी इस विधि से अरिहंत भगवान आदि को नमस्कार करके, नमस्कार मंत्र का जाप करो / संयोग प्राप्त होने पर अरिहंत भगवान का मन्दिर बनवा देना / सिद्धान्त में इस प्रकार कहा है तो उसे सुनो। महाप्रारम्भ, महापरिग्रह, मांस का आहार करने और पंचेन्द्रिय के वध से जीव नरक P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust