________________ तो मिला ही नहीं / चोर ने जब यह बात जानी तो उसने कोतवाल के घर ही उस रात चोरी की। इस प्रकार जो कोई भी उसे पकड़ने की प्रतिज्ञा करता उसके घर ही चोर चोरी करने जाता। एक बार रविदत्त मन्त्री ने भी अपने घर को खाली करा कर चोर को पकड़ने की प्रतिज्ञा की। तथा रात्रि को सब जगह चोर की खोज करने लगा परन्तु चोर का कोई पता नहीं चला। पता नहीं चला। चोर जब मंत्री के घर गया और वहां उसे कुछ भी नहीं मिला जिससे वह क्रोधित होकर मेरे मुह तथा हाथों को बांधा और कंधे पर डाल कर अपने यहां ले आया। फिर कहने लगा हे भद्रे ! मैं रत्नखुर घोर हूं। मैंने कहा कि भैया मैं तो कुछ भी नहीं जानती हूं। - इस प्रकार प्रतिदिन किसी समय दृश्य और किसी समय अदृश्य होकर इस समय रोज आता है और कुछ रात्रि रहती है तब लौट जाता है। तीन दिन होगये हैं मैं अपने छोटे पुत्र के वियोग में बहुत दुःखी हूँ। तुम कौन हो ? क्या मेरा भाग्य ही तुम्हें यहां ले माया है ? श्रीचन्द्र ने कहा कि "मैं अवधूत हूं" तब शिवमती ने कहा कि हे भद्र ! अगर तुम इस पापी के पंजे से मुझे मुक्त करोगे तो मेरी मुक्ति का और मुझे पुत्र मिलाप कराने का इस प्रकार दोनों ही दानों का फल तुम्हें प्राप्त होगा। 'श्रीचन्द्र शिवमती को गुफा के बाहर ले आया और उसे उसके घर पहुंचा पाया। रविदत्त मंत्री ने भी 'श्रीचन्द्र' की बहुत प्रशंसा की और शिवमती ने भी यथा योग्य सन्मान कर कुछ भेंट दी P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust