________________ 52 10 उसे वृक्ष पर चढ़ा कर हाथ में चन्द्रहास खड़ग लेकर बुद्धिशालियों में अग्रसर श्रीचन्द्र योगी के पास गये / श्मशान में कुन्ड की अग्नि से सबको देखते हुए कुड के नजदीक योगी के पास श्रीचन्द्र खड़े हैं तब योगी ने कहा कि हे वीर पुरुष ! मेरी रक्षा करने वाले बनो / श्रीचन्द्र ने कहा कि 'तुम निर्भयता से अपनी इच्छानुसार साधना करो।' विधि अनुसार श्राप होम आदि विधि करके जब अर्ध रात्रि व्यतीत हुई तब राजा के पुत्र से योगी ने कहा कि 'हे वीर ! इस दिशा में प्रसिद्ध महावड़ की शाखा परएक चोर का शव है वह तुम निर्भय होकर लायो। वह कार्य जब तक नहीं होवे तब तक तुम्हें एक बार भी नहीं बोलना है ' श्रीचन्द्र उस वड़ पर चढ़कर चन्द्रहास से शव के बन्धनों को काटकर उसे पृथ्वी पर पटक कर नीचे उतरे उतने ही में शव को फिर शाखा पर लटकते देखा / साहसिक होकर फिर से बंधन छेदकर शव को कभी कन्धे पर, कभी हाथ में लेकर साहस पूर्वक रास्ते के पास आये / इतने में शव अट्टहास्य पूर्वक बोला कि 'हे प्रवीण ! तू राजा का पुत्रभी है और राजा भी है तो मेरी कथा सुनो। परन्तु राजा के पुत्र के चुप रहने से शव फिर से बोला कि 'तुम हैकार तो दो।' .... . क्षिति प्रतिष्ठित नगर का राजपुत्र गुणसुन्दर है / सुबुद्धि वहा के मन्त्री का पुत्र है। वह दोनों घोड़ों के योग से. एक महा अटवी में प्रा पहुंचे तृषा से पीड़ित वह दोनों विशाल सरोवर के पास यक्ष का मन्दिर था वहां बैठे सुबुद्धि पानी पीकर अश्वों की देखभाल करने लगा। गुणसुन्दर उस सरोवर में क्रीड़ा करते सामने किनारे पर गया / वहा उद्यान में कोई कन्या कमल. हाय में लेकर कमल से पैर को, दांतों का P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust