________________ * 21 10 तुम चन्द्रलेखा का पति मानना श्लोक पत्र लेकर उसका सत्कार कर हम यहां आये हैं। . चन्द्रलेखा कभी अपने वेष में कभी पुरुष वेष में सखियों के साथ तरह 2 क्रीड़ा करती हुई रहती है। श्रीचन्द्र ने सोचा मुझे यहां नहीं रहना चाहिये / ऐसा सोचकर ज्योंही खड़े हुये त्योंही रायगण वृक्ष में से दुघ झरने लगा। जिस प्रकार बहुत समय पश्चात् पुत्र मिलने पर माता के नेत्रों में से अश्रुधारा बहने लगती है वही हाल उन सब लोगों का हुआ और उन्होंने बड़े प्रानन्द से कहा कि, चन्द्रलेखा को पति प्राप्त हो गया / ' लज्जा से चन्द्रलेखा का सिर झुक गया। माता के आदेश से पति को पुष्पों की माला पहना कर, अनेक प्रकार के फलों से भक्ति की। बाद में श्रीचन्द्र ने अपने नाम की अंगूठी दिखलाई। - चन्द्रलेखा के हस्तमिलाप के समय सास ने विष को हरने वाली मणी दी। रानी वीरमती ने अपने पुत्र को श्रीचन्द्र की गोद में बैठा कर कहा कि इस कुमार को भी अपने जैसा उदार, वीरों में शिरोमणी बनाना / सास के वचन को स्वीकार कर प्रतापसिंह राजा के पुत्र ने कहा कि 'हे मासा ! उसी प्रकार का होगा, धीरज रखो। भविष्य में जो होगा अच्छा ही होगा। आप मंत्री सहित कुण्डलपुर जाकर सुख से रहो। .. . . मुझे अभी आगे जाने की चिन्ता है इसलिये मुझे आज्ञा दीजिये। ऐसा कहकर कुन्डलपुर के मन्त्री के नाम पत्र लिखकर सदामती मंत्री को दिया ! कुछ दिन वहां ठहर कर पहले के ही वेष में आगे प्रयाण P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust