________________ * 774 भाग्य से आप मुझे यहां मिले हैं / हे देव ! प्राप यहां पधारो हरि भाट ने सूर्यवती रानी को पहिचान लिया। रानी और पुत्र सहित वहां का राजा वहां प्राया, सब आपस में मिलकर हर्षित हुए। नगर में ठाठ से प्रवेश किया / हरि भाट श्रीचन्द्र के इस प्रकार गुण गाने लगा 'कुशस्थल में प्रथम जिनेश्वर के पास तोती ने जिन्हें देखा और यह कहा कि अगले भव में ये ही मेरे पति हों और अब राजकुमारी ने उन्हें ही वरण किया है वे श्रीचन्द्र जय को प्राप्त हों। गुरुवचन से अनशन करके तोती इस भव में पद्मश्री राजपुत्री बनी, प्रथम दृष्टि में जिन्हें वर धारण किया और जाति स्मरण ज्ञान से जिन्हें पहचान लिया वे श्रीचन्द्र जय को प्राप्त हों / गर्भ में वीर पुत्र हो तब रक्त में खेलने का बेहद उत्पन्न होता है उस प्रकार से जिन्हें भारण्ड पक्षी दबोच कर श्रीगिरि के नजदीक उन्हें रख गया वह सूर्यवती माता जिन्हें बारह वर्ष बाद मिली वे श्रीचन्द्र जय को प्राप्त हों। - कनकपुर के कनकध्वज राजा की पुत्री कनकावती सहित जो राज्य का पोषण करते हैं और दैवी सुवर्ण के नवलखा हार से श्रेष्ठ शोभा वाले नवलखा देश के स्वामी जय को प्राप्त हों इत्यादि बोलते हुए भाट को सूर्यवती आदि ने बहुत दान दिया। माता के प्राग्रह से पद्मश्री और तारालोचना श्रीचन्द्र को ब्याही और कमलश्री गुणचन्द्र को ब्याही / श्रेणिक राजा ने श्री वर्धमान स्वामी से पूछा कि पूर्व भव के स्नेह के ., कारण पद्मश्री ने श्रीचन्द्र को वरण किया, उसी तरह कमलश्री का पूर्व P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust