________________ : राजा ने पूछा 'हे मंत्रि पुत्र ! तुम अकेले कैसे पाये ? किस 2 मार्ग से होकर आये हो ? तुमने कुशस्थल को कब छोड़ा ? माता पिता कुशल हैं ? तुम्हारी भाभी कहां है ? मेरे प्रयाण के बाद वहां क्या 2 हुआ ? ये सब बातें कहो / ' सब कुछ सुनकर मंत्री पुत्र ने कहा 'आपके आदेश से मैंने खजांची से हिसाब लिया, परन्तु मेरे शरीर में बार 2 पालस आने के कारण प्रभात होते ही आपके घर आया, वहां आपको न देखकर चन्द्रकला भाभी को चिन्तातुर देखकर मैंने पूछा 'हे स्वामिनी ! स्वामी कहां है ? आप जानती होंगी ? मैंने बहुत बार पूछा तब उन्होंने गद् गद् कंठ से मूल से आखिर तक का वृतान्त कह सुनाया। जिससे मैं बहुत दुखी हुआ। मैंने पूछा मेरे बिना स्वामी कैसे चले गये ? तब स्वामिनी ने कहा कि 'तुम्हें पिता का वियोग न हो इसलिये तुम्हे छोड़ कर देशाटन गये हैं। जैसे तैसे भी तुम पति के मित्र होने से तुम्हारे सिवाय और किसी को कहने की मनाई की है। आपके वियोग से सारी रात्रिये दुख में व्यतीत हुई / मैं भाभी को दुखी देखकर बार 2 उनके पास जाता था। 'आपके माता पिता के पास रही हुई चन्द्रकला को चेन न पड़ने के कारण बड़े लोगों के कहने से पद्मिनी राजमहल में गई / महेन्द्रपुर का मन्त्री सुन्दर वहां आया / उससे आपको वहां तक की हकीकत की जानकारी हुई। कुंडलपुर से मन्त्री विशारद आया जो घटना घटी थी कह सुनाई। आपकी बुद्धि से सूर्यवती रानी बहुत ही हर्षित हुई, आपका मिलाप न हो तब तक वेवर, लड्डु घृत आदि के त्याग का अभिग्रह किया है / वे सभगी होने के कारण ज्यादा दुखी हो रही हैं / आपश्री के स्वजन P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust