________________ 985 श्रीचन्द्र सुन कर जल्दी से अपने उतारे पर आये और वहां से उस लाख के महल तक की सुरग बनवा दी / गुप्त रीति से यह कार्य हो गया। पांचवे दिन जय प्रादि के प्राग्रह से राजा ने अवदत सहित महल में प्रवेश किया / बाद में द्वार बन्ध कर राजकुमारों ने आग लगा दी / राजा ने अवदून से पूछा, ऐसा कैसे हो गया ? 'श्रीचन्द्र' ने कहा, राज्यलुब्ध तुम्हारे पुत्रों ने राज्य लेने के लिये षड़यंत्र रचा है / यह लाख का महल आपको और मुझे मारने के लिये बनाया है। कुमारों को धिक्कार है, लोभ वश पिता को भी मारने के लिये तैयार हो गये। राजा ने कहा अब क्या करें ? तत्क्षण अवदूत ने पैर के प्रहार से सुरंग को खोल कर उस गुप्त सुरग में प्रवेश किया, इतने में तो महलं जल कर गिर गया। राजा सोचने लगे, यह विधन किस प्रकार टल गया ? अवदत की बार 2 प्रशंसा करते राजा उसके उतारे पर पहुँचे / राजर्जा को मरा हुआ मानकर, जय भाइयों सहित राज्यसभा में छत्र स्थापन करने लगा, लोग व्याकुल हो उठे, मंत्री लोग बुद्धि हीन हो गये। अंत राजा से कहने लगा, राजन् नगर बरबाद हो जायगा, लुटेरे राज्य और भन्डार को लूटने लगेंगे / राजा ने उसी समय अपने अंग रक्षको को बुलाया, वे आयें और राजा को जीवित देख कर, हर्षित होकर, रानी की आज्ञा से सैनिकों ने जय आदि चारों भाइयों को लकडी के पिंजरे में बन्द कर दिया।...... .... . . .. . P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust