________________ * 5.4 निनिमेष : दृष्टि से देखने लगे। उन दोनों की अद्भुत आकृति देखकर नगर की कोई स्त्री मदनसुन्दरी का, कोई उसके वस्त्र का, कोई उसकी चाल का, कोई उसके. .मुख का,.. कोई उसके रूप का, कोई कुन्डल का, कोई श्रीचन्द्र का, कोई उनकी प्रांखों का और कोई. उनके प्राभूषणों की प्रापस में बातें करने लगे / बाहर उद्यान में पहले की तरह प्रिया के द्वारा तैयार किया हुआ भोजन करके सरोवर की पाल पर बैठे हैं और पनि जितने में पति के आदेश से भोजन करती है इतने में एक योगी वहां आया। 32 लक्षणों से युक्त श्रीचन्द्र को देखकर विचार करने लगा कि इस पुरुष द्वारा मेरा कार्य सिद्ध हो सकता है गुण-विभ्रम राजा का देह भी ऐसे लक्षणों वाला नहीं है। ऐसा सोचकर योगी उनके पास आकर बोलने लगा कि कोई बिरले पुरुष अपने गुण और दोष जानते हैं, कुछ ही मनुष्य दूसरों के कार्य में सहायता करने वाले होते हैं, चन्द मनुष्य दूसरों के 'दुःख से ' दुःखी होते हैं / यह सुनकर श्रीचन्द्र ने कहा 'तुम कौन हो? और ऐसा क्यों बोल रहे हो / ' "योगी ने कहा कि 'मैं त्रिपुर' नामका योगी खर्पर का छोटा भाई हूं। गुरु के पास से प्राप्त हुई विद्या से परोपकार के लिये सुवर्ण सिद्धि के 'लिये भ्रमण करता हुबा में यहां पाया हूं।' ' मेरा उत्तर साधक हो ऐसा कोई पुरुष मुझे मिला नहीं है। परन्तु तुम आकृति पोर शरीर की कान्ति से परोपकारी दिखाई देते हो / देखो चन्दन के वृक्ष को विधाता ने फल और पत्तों से रहित बनाया है तो भी वह अपनी देहासे...लोकों का उपकार करता है / ता अगर तुम आजारातः अगर मेरे. उत्तर साधक बनो..तो मेरा कार्य सिद्ध . P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust