________________ * 122 10 गायी / सुभगांग राजा ने श्रीचन्द्र को पहेरामणी देकर विवाह उत्सव मनाया। बाद में श्रीचन्द्र ने दीपशिखा नगरी में प्राकर नानी मां को नमस्कार किया। आनंद से प्रदीपवती रानी ने गोद में लेकर चुबन करके कहा, तेरा विवाह मैंने अजानते किया था वह आज हृदय में अत्यन्त आनंद देने वाला बना है / उस समय मैंने कहा था कि चन्द्रकला को वर,इसके हस्तस्पर्श से तुझे बहुत राजकन्यायें वरेंगीं। पिता के आदेश से कनकदत्त श्रेष्ठी की पुत्री रुपवती से श्रीचन्द्र ने ठाठ से पाणिग्नहण किया / कुछ दिन वहां रहकर फिर कुशस्थल की तरफ प्रयारण किया / वहां जाकर श्रीचन्द्र ने विनती की कि हे पिताजी ! कारागृह में से जय पादि भाइयों को मुक्त करो / वे आत्मनिन्दा करते हुये पिता के सन्मुख पाये। मणिचूड़ और रत्नध्वज विद्याधर मेरुगिरि के नंदनवन से विद्या सिद्ध कर अपने नगर में आये। श्रीचन्द्र का सर्व वृतान्त सुनकर, आन से विमान रच कर, कुशस्थल के बाहर जहां राजा का पड़ाव था, आका। में से उतरते हये रत्नों की कान्ति से आकाश को देदीप्यमान बना दिया। श्रीचन्द्र को परस्पर नमस्कार करके अपनी परिस्थिति बताकर शत्रु जय करने की विनती की। बाद में मित्र, माता-पिता, लक्ष्मीदत्त लगा वती और अपनी प्रियाओं सहित विमान पर प्रारूढ होकर रवाना हये / उधर पाताल नगर में जाकर वे दोनों सर्व सामग्री सहित P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust