________________ * 126 10 अपने ही कर्मो से सुख और दुख भोगता है दूसरा कोई कर्म बांधता नहीं और भोगता नहीं इस भव से तीन भव पहले सुलस श्रेष्ठी था, . उससे अगले भव में चन्दन किसी जगह कुलपुत्र था, अशोकश्री उसकी पत्नी थी। उसने उस भव में हास्य से वियोग वाला कर्म बांधा था / वह सुलस के भव में सुभद्रा नामकी उसकी प्रिया बनी तब उसे 24 वर्ष * का वियोग हुा / वह इस प्रकार है। अमरपुरी में ऋषभदत्त सेठ के दीनदेवी प्रिया थी। उनके सुलस नामक पुत्र था उसका पाणिग्रहण सुभद्रा के साथ किया / वे दोनों अति धर्म प्रेमी थे / गुरुमहाराज के पास जाकर उन्होंने ब्रह्मचर्य बत ग्रहण किया, वे दोनों अति उल्लास से धर्म करते थे परन्तु यह सब दीनदेवी को अच्छा नहीं लगा / सुलस को संसार का रंग लगाने के लिये उसे एक जुपारी की संगत में रखा / जिस कारण वह उसकी संगति से कामपताका वेश्या. के साथ 16 साल तक संसार सुख भोगता रहा / उसी के दुख में माता-पिता स्वर्ग सिधार गये / सारा धन भोग में खतम हो गया / निर्धन होने से कामपताका की अक्का ने घर में से निकाल दिया / .. अब सुलस धन प्राप्ति के लिये परदेश को रवाना हो गया। मार्ग में सफेद आकड़े को देखकर, उसके नीचे धन होगा ऐसा सोचकर धरणेन्द्र को नमस्कार करके, वहां जमीन खोद कर गुप्त रीति से हजार सोना मोहरें लेकर आगे को प्रयाण किया। किसी नगर में किसी दुकान पर एक ग्राहक को माल देने में मदद की जिससे सेठ को बहुत लाभ P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust