________________ # 42 16 स्वस्त्र क न स मुझे इस महल में रखा है। आज पांचवां दिन मैं रुदन करती थी जिससे वह बोला कि रुदन क्या करती है ? मैं वैताठय पर्वत पर रहने वाला रत्नचूड़ नामक विद्याधर हूँ। अभी हमारी गोत्र के ही एक राजा ने मेरा मरिण भूषण नगर अपने कब्जे में कर लिया है जिससे मैं अपने परिवार महित बाहिर रहता हूं। एक दिन पृथ्वी पर घूमते हुये मैं कुशस्थ न गया। वहां उद्यान में अश्वों, रथों मोर हाथियों से युक्त विशाल सेना को देखा / 'वहां एक सुवर्ण के पलंग पर पुष्पों से क्रीड़ा करती हुयी, सखियों से युक्त, सुसराल से पिता के घर जाती हुई पद्मिनी को देख कर मुझे अतिशय प्रेम उत्पन्न हुआ। मनोहर सुभंग अंग वाली उसको हरण करने के लिये एक दिन मैं वहां अदृश्य पण में रहा। मैंने अपने दो रुप करने का यत्न किया / परन्तु पद्मिनी पति से रक्षित थी और स्वशील की रक्षा वाली थी, जिस कारण मेरे दो रुप नहीं हुये / बाद में उसी के समान रुप वाली स्त्री की मैं खोज में था। पृथ्वी पर निरीक्षण करते हुये तू मिली है अब मैं तुझ से शादी करुंगा। ऐसा कह कर सफेद अंजन डाल कर मुझे बंदरी बना दिया, तीसरे दिन वापिस माकर श्याम अजन डाल कर सुन्दरी बनाकर कहने लगा, हे सुन्दरी लह प्रहण करो, मैं लग्न देखकर माया है। गुरुवार के मध्यान्ह समय शुभ लग्न है। ये सारी सामग्री तू रख, मैं विद्या साधने जाता हैं बुधवार की रात को या गुरुवार प्रातका में मैं आऊंगा। मैंने कहा कि, 'हे विद्याधर ! तू मूर्ख है / या P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust