________________ *1051 स्त्री का फेर फार नहीं हो सकता, बुद्धि की भूल से डाला हुआ नमक अन्यथा नहीं होता, परन्तु खारा ही होता है / मीठे पानी से मन से अाटा गूधा हुअा, खारे पानी से गूधा हुआ आटा मोठा नहीं होता परन्तु जैसा होता है वैसा ही दिखता है / जिसके साथ हस्त मिलाप हुआ है वही भर्तार है वह स्त्री दूसरे के लये परस्त्री होती है / हंसावली ने कहा, भेरे चित्त में तो आप ही पति हो, इसके साथ व्याही हूँ पर इसे अपना पति मानती नहीं इसलिये मैं सती हूँ या असती यह तो केवली भगवान जाने / मुझे जो आप पर स्त्री मानते हों तो मुझे अग्नि या तपस्या का ही शरण लेना होगा परन्तु टुसरी कोई गति नहीं / पहले किये हुये कर्म के अन्तराय कैसे तूटे ? हंसावली के शील की दृढ़ता को देखकर श्रीचन्द्र राजा और राजा के पुत्र ने उसी की प्रशंसा की। . . श्रीचन्द्र कहने लगे, हे राजा ! प्राणी विषय से किस प्रकार पीडित होते हैं / जीव धन के लिये, जीवित के लिये. अतृप्त हुये हैं, होते हैं और होंगे। बीच में तीन रेखा हैं, वे तीन मार्ग हैं, विशाल स्तनरुपी बजार है, स्त्रियों की चपल दृष्टि में, मदन पिशाच, स्खलना पाये हुये मनुष्य को छलता है, दारू तीन प्रकार का है, आटे का मद्य और गुड़ का। तीसरा दारू स्त्री है / जिससे जगत मोह को प्राप्त हुआ है, दारू पीने से नशा चढ़ता है, परन्तु स्त्री को देखने मात्र से नशा चढ़ता है जिससे नारी दृष्टि मदा कहलाती है उसे तो देखना भी P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust