________________ नई 36 10 मंजरी से रक्त श्रष्ठ वाहन में बैठ कर अपने महल की तरफ गए। . ... रास्ते में स्थान 2. पर लोगों के मुख से अद्धभुत वाणी सुनते हुए कि 'रूप, विद्या, कुल, चतुर बुद्धि, : अनुत्तर कांति, मुख्य गुणों और रूप में अनुत्तर, जिस प्रकार इन्द्र और इन्द्राणी का योग, चन्द्र और रोहिणी का योग, सूर्य और रहनादेवी का योग हुमा वैसा ही विधि ने (प्रकृति) यह योग बनाया है। श्रीचन्द्र ने अपने महल में प्रवेश किया / मंगल पूर्वक सब वस्तुओं को उचित स्थान पर रखकर यथा योग्य दान देकर वास. गृह में पाए / हंसते हुए मुख वालो: प्रियं गुमंजरी सखियों से युक्त पलंग पर बैठे हुए पति के पास बैठकर काव्य गोष्ठी करने लगी। इतने में मदनपाल ने भू संज्ञा से "अपने वचन को याद कर" ऐसा संकेत किया श्रीचन्द्र शंका के बहाने बाहर निकले तब प्रियंगुमंजरी पानी लेके इन के पीछे गई। तब श्रीचन्द्र ने कहा तुम यहीं रहो वहां बहुत पानी है। ऐसा कह कर नीचे आकर ससुर के पास से प्राप्त की हुई सब वस्तुएं मदनपाल को देकर और अपने कुन्डल नाम की अगुठी और ससुर की अंगुठी लेकर अपना वेश ग्रहण करके कहा कि हे मदनपाल ! तेरे मन को संतोष होगया ? अब मैं जाता हूं। - मदनपाल. ने कहा कि तुमने बहुत ही सुन्दर किया अब तुम्ह जैसा सुन्दर लगे वैसा करो / आनंद से अांख में अंजन डाल कर श्रीचन्द्र की वेशभूषा को पहन कर मदनपाल जिसके चेहरे पर कोई तेज नहा है, .गंदे हाथ पैर वाला वास गृह में जाकर बैठ गया / उसको इस प्रकार P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust