________________ 121 इतिहास पुराण में कहा है. अहिंसा यह परम धर्म है। अहिंसा यह परम सप है, अहिंसा परम ज्ञान है, अहिंसा परम सुख है, हिंसा " परम दान है, महिंसा परम दम है। महिंसा परम यज्ञ है, अहिंसा परम शुभ है। जो महात्मा अहिंसा के उसमा धर्म का मा वरण करते हैं, वे महात्मा विष्णु लोक में जाते हैं।। .. नग्यडल ग्रन्थ में लिखा है, सब अभक्ष्य त्यागने योग्य हैं / मद्यपान में मस्त लोग, अकार्य में मस्त, हमेशा उन्हें न शौच, न तप, न 'ज्ञान, न बुद्धि, न पुरुषार्थ / मद्यपान से मति भ्रष्ट होती है / उनको ' दया, ध्यान, धर्म और सत् किया तो होती नहीं। मद्यमान करने वाले को क्रोध, मान, लोभ, मोह उत्पन्न हो जाता है। किसी पर किसी समय राग तो किसी समय द्वेष होता है। गंदेवचन निकलने लगते हैं / मनुष्य मद्य पोकर मांस की इच्छा रखता है। उसके लिये नीव को , मारता है। बाद में जब इच्छा. बढ़ जाती है तो जीवों के समुदाय | मारने में भी हिचकिचाहट नहीं करता / मद्य, मांस, बोर छाछ से 3. बाहर निकले हुये मक्खन में अनेक सूक्ष्म : जीवों की पशी उत्पन्न हो जाती है।" S ' , 'मागम में भी इन वस्तुओं में अनंत, जीव उत्पन्न हो जाते है / ऐसा कहा है। महाभारत के मांस अधिकार में कहा है कि मांस: हिंसा वर्धक है. मांस. दुस-वक पोर दुख को उत्पन्न करने वाला है। इसलिये मांस भक्षण नहीं करना चाहिये / तिल और सरसों जितना भी मांस P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust