________________ . *1289 फ भाग्य के अनुसार रत्न देती है। सुलस ने राजा की प्राज्ञा लेकर पर्वत को खोदना शुरु किया जिससे उसे बहुत से रत्नों की प्राप्ति हुई। उन रत्नों का करियाणा खरीद कर अमरपुरी के तरफ प्रयाण किया। रास्ते में गाढ़ जगल में दावानल से करीयारण भस्मी भूत हो गया। मागे जाते हुये सुलस ने एक अवधूत को देखा, वह रस कुपिका की बातें करता था, जिससे वह आनंदित हुआ। अवद्त ने सुलस को डोली में बिठाकर, हाथ में भेंस की पूछ का दीवा करके कुओ में उतरा / रस की कुपी भरकर सुलस ने जब संज्ञा की तो उसे खींचकर ऊपर ले आया। अवधूत ने पहले कुप्पी देने के लिये कहा परन्तु सुलस ने कहा पहले बाहर निकालो फिर दंगा, जिस कारण अवदूत ने गुस्से से डोली की डोर काट दी / कुछ पुण्य के कारण डोली सहित सुलस रस में न पड़कर किनारे पर ही रह गया। उसमें पहले जिनशेखर नामक व्यक्ति गिरा हुआ था। वह मिला उससे सुलस ने बाहर निकलने का उपाय पूछ। / उसने कहा कि एक ही उपाय है जब द्यो रस पीने प्रावे उसके घर के चिपट जाना, उसके साथ ही बाहर निकला जा सकेगा, परन्तु मेरे अंग रस से गल गये हैं इसलिये मैं अब नहीं बच सकूगा / जब द्यो रस पीने आयी तब उसका पैर पकड़ कर सुलस बाहर निकला / वृक्ष के नीचे स्वस्थ होने के लिये बैठा इतने ही मे एक हाथी वहां आया, उसे देखकर सुलस वहां से पलायन कर गया / इतने में एक सिंह आया उसने हाथी को फाड़ डाला। सुलस ने रात्रि एक वृक्ष Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.