________________ * 40 110 होश में था उसके हाथ में खडग देकर कहने लगे मुझे मार डालो मैं अपराधी हूँ / बोलने में अशक ऐसे उस पुरुष ने श्रीचन्द्र को खडग अपित कर ऐसा संकेत किया कि यहां अगर जल है तो मुझे पिलादो / ' : जल पिलाकर श्रीचन्द्र बार 2 उमसे क्षमा याचना करने लगे। थोड़ी ही देर में वह पुरुष मृत्यु को प्राम हुअा। कुछ क्षण वहां ठहर कर दुखित हृदय वाले श्रीचन्द्र जलपान किये बिना खडग सहित वहां से रवाना हो गये। उसी रात्रि को किसी वन में पहुंचे / वहां एक वृक्ष की डाल पर दर्भ का विस्तर बिछा हुआ देख वह सोचने लगे कि इसके ऊपर कोई मुसाफिर सोया होगा। तो भी उसे उठाकर चारों त फ देखने लगे / उसी समय उनकी नजर एक खोसल पर पड़ी जिसे लकडे से बंध किया हुआ था उसे आगे' खिसका कर वीर पुरुष ने उसमें प्रवेश किया / गुफा के मुंह पर कुछ क्षण ठहर कर वहां जो बड़ी शिला यी उसे उठाया तो क्या देखते हैं कि नीचे की तरफ रास्ता जा रहा है। उस रास्ते से नीचे उतरे तो वहां पाताल महल देखा / रत्ल के दीपकों से भी तेजस्वी दो मंजिल महल को देखकर पहले तो नीचे वाली में जिल' का निरीक्षण किया फिर ऊपर वाली मंजिल पर गये। वहां मरिणों से जड़ित सिंहासन था, उस पर बैठे कर श्रीचन्द्र ने उसे सार्थक किया। बाद में कुतुहल वश सामने एक कमरा था उसे खोला तो देखते क्या हैं वहीं 'कमरे में रत्नों के पलंग पर एक बंदरी बैठी है। बंदरी पहले तो श्रीचन्द्र के पर पड़ी, बाद वस्त्र के किनारे को पकड़ कर पलंग पर बिठाया। श्रीचन्द्र कहने लगे तू P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust