________________ *101 10 नहीं रही। मदनसुन्दरी सहित वन में आकर, रथ पर आरूढ़ होकर परस्पर अपनी 2 बातें करते कनकपुर की तरफ प्रयाण किया। क्रम से रुद्रपल्ली उपवन में आये। वहां उस नगर के राजा को हाथी और घोड़ो सहित खड़े हुये देखा, एक तरफ अग्नि विना की चिता थी दूसरी तरफ अति दुखी कोमल अंग वाली स्त्री को राजा रोकते हुए दिखाई दिये / ' तीसरी तरफ कोटवाल द्वारा बांधे हुए अद्भुत पुरुष को देखकर श्रीचन्द्र राजा रथ में से उतर कर वृक्ष के नीचे खड़े हो गये और वनपाल से पूछने लगे ये सब क्या है ? उसने कहा हे सज्जनों में मुगट समान ! यह रुद्रपल्ली नगरी है, व्रजसिंह राजा और उनकी क्षेमवती नामकी रानी है उनकी यह हसावली पुत्री है / इतने में रथ और राजा को देखकर वहां के राजा ने पाश्चर्य से मन्त्री और वहां के मुख्य लोगों को वहां भेजा। हरि भाट के भतीजे अंगद ने पहचान कर कहा कि 'कनकपुर में कनकध्वज का राज्य कनकावली पुत्री और देवों का अपित किया हुआ देवी हार का सुख जो भोग रहे हैं वे श्रीचन्द्र जय को प्राप्त हों। वीणापुर में पद्मश्री और तारालोचना को जाति स्मरण से विवाहा वे माता सहित श्रीचन्द्र जय को प्राप्त हों। श्रीगिरि में विजयादेवी के सानिध्य से सदाफल उद्यान, सुवर्ण की खान, मध्य शिखर पर जिन मन्दिर, दो किल्ले भील . की सहायता से मिले वे श्रीचन्द्र जय को प्राप्त हों। श्रीगिरि पर विजया देवी के आदेश से, जिसके हृदय पर नया वस्त्र स्थापित किया वे श्रीचन्द्र जय को प्राप्त हों / श्री चन्द्रपुर नगर के मध्य में प्रथम जिनेश्वर देव का P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust