________________ देशना सुनकर वैराग्य से राजा, सुलस और सुभद्रा ने ससार त्याग कर दीक्षा ग्रहण की। संयम की उच्चतम रुप मे साधना करते हुये, प्राम रस पीते हुये, ज्ञान, ध्यान में प्रगति करते हुये सुलस ने 500 अखंड मांबिल किये और सुभद्रा ने 1000 अखड प्रांबिल किये / संयम की साधना और आयंबिल तप के महान प्रभाव से, वे प्रभावित पुण्य उपार्जन करके क्रमशः काल धर्म को प्राप्त हो, सर्वोत्तम पुण्य के प्रताप से दोनों ने बहुत लम्बे समय तक देवी सुख भोगे / वहां से चव कर सुलस तो तू बना और सुभद्र तेरी पत्नी अशोकश्री बनी। चन्दन पूछने लगा कि अब कर्मों के क्षय का उपाय बताइये / तब आचार्य देव ने फरमाया कि अगर तुम कर्मो का क्षय चाहते हो तो श्री जिनेश्वर देव द्वारा कथित तत्व सुनने, तथा आगम विधि से श्री वर्धमान आयंबिल तप को करने से निकाचित कर्म भी नष्ट हो जाते हैं / गुरु महाराज के आदेशानुसार, चन्दन, अशोकश्री और सगे सम्बन्धियों ने आनंद से महान तप की शुरुआत की / चन्दन की धावमाता, सेठ का सेवक हरी और 16 पड़ोसन स्त्रियों ने भी लज्जा से, इस प्रकार बहुत लोगों ने तप शुरु किया / परन्तु बहुत कम लोगों ने उस महान् तप को पूर्ण किया। दही, दूध, घी पकवान, खादिम, स्वादिम आदि से पूर्ण घर होने पर भी महान तप में तत्पर होकर चन्दन और अशोकश्री ने तप पूर्ण किया / नरदेव राजा ने मित्र के तप की बहुत प्रशंसा की / परन्तु उसमें मुख शुद्धि न होने के कारण कुछ घृणा भी की / चन्दन ने तर Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.