________________ * 48 110 मित्र है, सम्यक्त्व परम पद है, सम्यक्त्व परम ध्यान है, सम्यवत्व श्रेष्ठ सारथी है, सम्यक्त्व श्रेष्ठ बन्धु है, सम्यक्त्व की मती भूषण है, सम्यक्त्व परम दान है, सम्यक्त्व परम शील है, सम्यक्त्व श्रेष्ठ भावना है। चिंतामणी, कल्पतरु, निधि, कामधेनु, नरेन्द्र या इन्द्र पण ये सब इहलौकिक फल देने वाली वस्तुए किसी भी उपाय से इस भव में प्राप्त हो सकती हैं परन्तु सम्यक्त्व प्राप्त करना दुष्कर है / उसे प्राप्त कर जो उसे खो देता है वह अनन्त काल तक संसार में भवभ्रमण करता है। इसलिये सम्यग्दर्शन रूपी रत्न का हमेशा रक्षण करना चाहिये / . 'अगर शीलव्रत का सुन्दर नववाडों से रक्षण होता हो तो वह अच्छी तरह पाला जा सकता है। सागर के बीच नाव में छोटा सा छेद हो जाय तो वह चल नहीं सकती उसी प्रकार क्रियारूपी जीव सम्यक्त्व बिना भव समुद्र से पार नहीं हो सकता / जिस प्रकार महावड़ के वृक्ष का सिर्फ मूल ही उखाड़ा जाय तो भी सारा वृक्ष नाश को प्राप्त होता है उसी प्रकार सम्यक्त्व रूपी मूल अगर नष्ट हो जाय तो शेष चारित्र प्रादि तुरन्त ही नाश को प्राप्त होते हैं। जिस प्रकार स्वामी के मर जाने से या पकड़े जाने से चतुरंगी सेना भाग छूटती है उसी प्रकार सम्यक्त्व के नष्ट होने पर दान, शील, तप और भाव रूप धर्म नाश को प्राप्त होते हैं। 'जिस प्रकार कार्तिक मास के जाने से कमल कान्ति रहित हो विनाश को प्राप्त होता है उसी प्रकार सम्यक्त्व के नष्ट हो जाने पर तो * क्रिया फल बिना की होकर धीरे धीरे नष्ठ हो जाती है। जिस प्रकार P.P.AC..Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust