________________ | "चार अंगुलियों से गले को पकड़ा इससे ऐसा प्रतीत होता है कि वह रजस्वला है जिससे नवमी की रात्रि को उस तरह पीछे के द्वार से आने के लिये कहा है / ' मित्र के कहे अनुसार गुण पुन्दर वहां गया / उसे देखकर हर्ष को पायी हुई राजकुमारी ने क्रीड़ा करके पूछा 'हे प्रभु ! मेरे हृदय के भाव आपने किस तरह जाने ? कुमार ने मुग्ध भाव से कहा कि मैंने अपने मित्र 'द्वारा जाने / अच्छी तरह भोजन करवा कर विष युक्त लड्ड देवर के लिये दिये / लड्डू देख कर सुबुद्धि ने कहा कि मेरा नाम क्यों बताया ? 'प्रभात में लड्डू नजदीक रखकर शौच क्रिया से निपट कर आता है तो देखता है उस पर मक्खियां मरी हुई हैं, लड्ड को वहीं जमीन में दबा दिया / सुबुद्धि ने कुमार से कहा कि रात को अच्छी तरह से क्रीड़ा करके जब वह सो जाये तो उसकी जंघा पर तीन रेखा बनाकर एक झांझर निकाल लेना / इस प्रकार करके वह प्रोया / बाद में दोनों योगी बनकर श्मशान में गये। सुबुद्धि गुरु और गुणसुन्दर चेला बना।: : .. .. : : .. चेले ने किसी सोनी की दुकान पर जाकर झांझर बेचनी चाही / सोनी ने 'झांझर पर. राजा का नाम देखकर झांझर राजा को -लेजाकर दिखाई। नाम से अपनी जानकर राजा ने सोनी से पूछा यह झांझर तुम कहां से लाये हो ! उसने कहा एक योगी लाया है जो "दुकान पर बैठा है। राजा ने योगी को बुलवा कर पूछा तो उसने कहा कि ये तो मेरा गुरु जाने मुझे नहीं मालूम / गुरु को बुलाकर पूछा P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust