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“અહો શ્રુતજ્ઞાનમ” ગ્રંથ જીર્ણોધ્ધાર ૨૫
વ્યાકરણ ગ્રંથ
પ્રાકૃત વ્યાકરણ
દ્રવ્ય સહાયક :
પરમપૂજ્ય તપા. ગચ્છાધિપતિ આ.ભ.શ્રી રામસૂરીશ્વરજી મ.સા.
(ડહેલાવાળા)ના સમુદાયના પ.પૂ. ગચ્છાધિપતિ આ.ભ.શ્રી અભયદેવસૂરીશ્વરજી મ.સા.ના આજ્ઞાનુવર્તિની પ.પૂ.સા. શ્રી નિર્મલાશ્રીજી મ.ના સદુપદેશથી ભૂરીબાઈ બહેનોના ઉપાશ્રયના જ્ઞાનખાતાની ઉપજમાંથી
- સંયોજક : શાહ બાબુલાલ સરેમલ બેડાવાળા
શ્રી આશાપૂરણ પાર્શ્વનાથ જૈન જ્ઞાન ભંડાર શા. વીમળાબેન સરેમલ જવેરચંદજી બેડાવાળા ભવન
હીરાજૈન સોસાયટી, સાબરમતી, અમદાવાદ-૩૮૦૦૦૫ (મો.) ૯૪ર૬પ૮૫૯૦૪ (ઓ.) ૨૨૧૩૨૫૪૩ (રહે.) ૨૭૫૦૫૭૨૦ સંવત ૨૦૬પ ઈ.સ. ૨૦૦૯
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प्राकृत व्याकरण
लेखक पंडित बेचरदास जीवराज दोशी
गुजरात पुरातत्त्व मंदिर
अमदावाद
प्रथमावृत्ति
प्रत ११००] संवत् १९८१-सने १९२५ । मूल्य रू. ४-०-,
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प्रकाशक, कोठारी विठ्ठलदास मगनलाल गूजरात विद्यापीठ, अमदावाद.
: मुद्रणस्थानः आदित्यमुद्रणालय : :: रायखडरोड-अहमदाबाद. :: मुद्रक, गजानन विश्वनाथ पाठक,
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विज्ञापन गूजरातपुरातत्त्वमंदिरनी प्रबंध समितिना संवत १९७९ ना भादरवा वद १३ नी बेठकना ठराव १ ( परिशिष्ट १) मुनव आ पुस्तक प्रसिद्ध करवामां आवे छे. गुजरात विद्यापीठ कार्यालय,
अमदावाद. आसो वद १२; सं. १९८१..
प्रकाशक.
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________________ प्रवेश प्राकृतव्याकरणना शिक्षक अने शिष्य माटे आ पुस्तकना परिचय पुरती थोडी माहिती आ प्रमाणे छे: अहीं नीचेना चार मुद्दाओ विषे क्रमवार लखवानुं छे-- 1 रचनाशैली 2 प्राकृतभाषा 3 अर्धमागधी भाषा 4 प्राकृतभाषानां व्याकरणो 1 रचनाशैली आचार्य हेमचंद्रना प्राकृतव्याकरणने सामे राखीने आ पुस्तक लखवामां आव्युं छे पण क्रमने फेरववामां आव्यो छे. हेमचंद्रना प्राकृतव्याकरणमा सौथी पहेलां प्राकृतभाषानुं व्याकरण आपेलं छे अने पछी क्रमे शौरसेनी, मागधी, पैशाची-चूलिका पैशाची अने छल्ले अपभ्रंशनुं व्याकरण आपवामां आवेलुं छे त्यारे प्रस्तुत पुस्तकमां ए बधां व्याकरणोने साथे साथे समाववामां आव्यां छे एटले आ पुस्तकमां प्राकृतनुं व्याकरण आपतांजे जे नियममा शौरसेनी, मागधी, पैशाची-चूलिका पैशाची अने अपभ्रंशनी विशेषता होय ते पण साथे साये--प्राकृतभाषाना नियमनी साथे-ज आपवामां आवी छे. जेमके प्राकृतमा साधारण रीते क, ग, च, ज, त, द, प, ब, य अने व नो लोप थाय छे (जूओ पृ० 10) आ नियम आपवानी साथे ज तुलना थइ शके ए दृष्टिए एम पण जणाव्युं छे के, शौरसेनीमा त 'नो 'द' थाय छे, मागधीमा 'ज' नो 'य' थाय छे, पैशाचीमा 'द' नी त ' थाय छ अमे अपभ्रंशमां * क' नो ग' थाय छे (जो पृ० 12 अने 13)
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आ रीते वर्णविकारने लगता वधा नियमोने आपवामां आव्या छ. नियमोमां सौथी पहेला सर्व साधारण नियमोने आपवामां आव्या छे अने पछी विशेष ( आपवादिक ) नियमोने मूकवामां आव्या छे. नाम अने आख्यातना प्रकरणमा प्राकृत, शौरसेनी वगेरेनां रूपोनी साधना बताव्या पछी क्रमवार प्राकृत, शौरसेनी वगेरेनां रूपोने मूकवामां आब्यां छे अने केटलेक ठेकाणे ए बधां रूपोने साथे साथे एक ज ओळमां पण मूकलां छे (जओ पृ० १२५-१२६-१२८१२९ -१३०-१३२-१३३ नामप्रकरण अने पृ० १४१ तथा पृ० २५१ आख्यात प्रकरण)
खास विशेषता (विशेषताओने टिप्पणमा मूकेली छे )
(१) पालिनी साथे सरखामणी
प्राकृतभाषाना वर्णविकारना नियमोने पालिभाषाना वर्णविकारना नियमोनी साथे सरखाववामां आव्या छे अने केटलेक स्थळे तो पालि शब्दोने पण मूकवामां आव्या छे ( पालिशब्दो माटे जओ पृ०-८१५-१८ वगेरे)
नामनां, धातुनो, कृदंतनां अने तद्धितनां रूपोने पालिरूपोनी साथे मूकवामां आव्यां छे अने केटलीक जग्याए पालिना प्रत्ययो आपीने पण सरखामणी बतावी छे (प्रत्ययो माटे जूओ पृ० २४८ अने ३२४ ) संधिप्रकरणमां अने बोने पण संभावित स्थळे सरखामणी माटे पालिना नियमोने आपवामां आव्या छे. एकंदर रीते पालिनी अने प्राकृतनी सरखामणी सविस्तर दर्शाववामां आवी छे अमे ते एटलाज माटे के प्राकृतमो अभ्यासी साथे साये पालिने पण सर्वांशे शीखी शके.
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(२) वैदिक संस्कृत अने प्राकृतनो संबंध जनामां जना वररुचिथी छेक छेल्ला मार्कंडेय सुधीना बधा प्राकृतव्याकरणकारोए प्राकृतरूपोनी साधना माटे लौकिक (वैदिकेतर) संस्कृतनो ज उपयोग करेलो छ, तदनुसार आ पुस्तकमां पण ए न शैलीने मान्य राखवामां आवी छे. परंतु अत्यारनां विपुल साधनोथी एम जणाय छे के, प्राकृतभाषानो संबंध वैदिक संस्कृतनी साथे पण छे (जूओ आर्यविद्याव्याख्यानमाळा पृ० १९४-२०९) तेथी प्राकृतरूपोनी साधना माटे वैदिक शब्दोने पण मूळभूत राखवा ए, सरखामणीनी दृष्टिए विशेष अगत्यनुं छे. आ वातने सूचववा वैदिक संस्कृतने मुळभूत राखीने पण सरखामणी करवामां आवी छे. (जओ पृ० ४९-९४-३०९)
प्राकृतना एवा तो घणा य नियमो छे जे वैदिक संस्कृतनां रूपो साथे मळता आवे छे, [ जेमके; अंत्यव्यंजनलोप ( जूओ पृ० १. नि. १)
वैदिकरूपो
पश्वा ( पश्चात् ) • उच्चा (उच्चात् ) नीचा (नीचात् ) युष्मा (युष्मान् )
देवकर्मेभिः ( देवकर्मभिः) आ बधां वैदिक रूपोमां अंत्यव्यंजननो लोप थएलो छे.
'र' 'य' नो लोप (जूओ पृ० १६ नि. ५ तथा पृ० १५ नि. ४)
अपगल्भ ( अप्रगल्भ)
तृच् (न्युच् ) पेला रूपमा 'र' नो अने बीजामा 'य'नो लोप थएलो. छे.
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संयुक्तनी पूर्वे ह्रस्व ( जूओ पृ० ४ नि० १ ) रोदसिप्रा ( रोदसीप्रा )
L
1
6 'द 'नो 'ड
अमत्र
ऋ' नो ' उ
( अमात्र )
' ( जूओ पृ० ७ नि० ८ )
वुन्द
( वृन्द )
3
( जूओ पृ० ६८-६९ द - विकार )
दुदभ, दूडभ पुरोदाश, पुरोडाश
वगेरे.
उपर्युक्त उदाहरणोनां वैदिक स्थळो माटे अने विशेष उदाहरणो माटे जूओ आर्यविद्याव्याख्यानमाळा पृ० २०३ थी २०८ ]
पण पुस्तक वधी जाय अने प्रवेश करनारने कठण लागे एथी ए बधा नियमोने अहीं नथी आपवामां आव्या.
(३) आदेशो करवा करतां मूळ शब्द उपरथी ज विकृत शब्दने बताववो
जूना वैयाकरणोए संस्कृत शब्दोना आदेशो करीने प्राकृत शब्दो बनाववानी रीत स्वीकारी छे पण भाषानुं ऐतिहासिक अने शास्त्रीय दृष्टिए निरूपण कर होय तो जे जे शब्दोनी सरखामणी करी शकाती होय त्यां आदेशो करवा करतां ए मूळ शब्दोना ज उच्चारणजन्य वर्णविकारोने बताववा जोइए. जेम के;
'
' ओळ ' सूचक प्राकृत ' ओलि शब्दनी साधना माटे नका, आळस, निरर्थक, प्रामाणिक, वींछी, मधमाखी, सखी, श्रेणि, लींटो, पुल, डक्को अने कुल एटला अर्थमा (अर्थो माटे जुओ आप्टेनो कोश ) वपराता ' आलि' शब्द उपरथी ' पंक्ति' अर्थमां ' ओलि' बनाववानी भलामण करवी ए करतां ' पंक्ति' अर्थवाळा
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ज आवलि' शब्दना : आउलि ' 'ओलि' रूपो बतावीने . । ओलि' शब्द बनाववानी रीत ऐतिहासिक अने भाषाशास्त्रनी दृष्टिए वधारे मुसंगत लागे छे.
सक्ष्म ' ना 'ऊ' नो 'अ' करीने सह ' रूप बनाववा करतां ' श्लक्ष्ण' नुं सहन भावे थतुं 'सह ' रूप ज अधिक संगत लागे छे.
आम करवाथी उच्चारणोथी थता क्रमिक वर्णविकारो कळी शकाय छे अने व्याकरणमा आवतो गौरवदोष पण अटकी शके छे. ___ आ हकीकत अहीं मात्र एक उदाहरण द्वारा ज दविवामां आवी छे ( जओ पृ० ५४)
(४) आगमोनां नहि सघाएलां रूपोनी साधना
जैन आगमोना केटलांक रूपो जे अत्यार सुधी अणसाध्या हतां तेने पालिभाषानां रूपो द्वारा साधवानो प्रयत्न करवामां आव्यो छे (जूओ पृ० १३६ अने २६४)
२ प्राकृतभाषा शौरसेनी अने मागधीन क्षेत्र एना नाम उपरथी ज जाणितुं छे. पैशाचीन क्षेत्र-- " पाण्ड्य केकय-बाल्हीक-सिंह-नेपाल-कुन्तलाः । सुधेष्ण-भोज--गान्धार-हैव-कन्नोजनास्तथा ॥ एते पिशाचदेशाः स्युस्तद्देश्यस्तद्गणो भवेत् "।
( षड्भाषाचंद्रिका पृ० ४ श्लो० २९-३०) - आ श्लोकमां जणावेलुं छे. साधारण प्राकृत अने अपभ्रंशन क्षेत्र व्यापक छे एटले ए माटे कोई देशने निर्देशी शकाय नहि.
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वैयाकरणोए शब्दशास्त्रनी दृष्टिए प्राकृतना प्रण प्रकार मणाषेला छः .१ संस्कृतजन्यप्राकृत, २ संस्कृतसमप्राकृत अने. ३ देश्यप्राकृत.
१ जेनी व्युत्पत्तिनो वधारे संबंध बन्ने प्रकारना संस्कृत साथे छे ते संस्कृतजन्यप्राकृत.
२ संस्कृतनी जेवु प्राकृत ते समसंस्कृतप्राकृत. नीचेना एक अश्लोक द्वारा संस्कृतसमप्राकृतनो परिचय थई जाय छे. " चारुसमीरणरमणे हरिणकलङ्ककिरणावलीसविलासा । आबद्धराममोहा वेलमूले विभावरी परिहीणा" ॥ १ ॥
. (भट्टिकाव्य १३ मो सर्ग) ३ देश्यप्राकृतनो नमूनो आ प्रमाणे छ : " रे खेआलुअ खोसल इमाण खोट्टीण मज्झमावडिओ। छुट्टिस्ससि कह व तुमं अकुट्टिओ टक्कराहि फुड " ॥
(देशीनाममाला पृ. ९८ श्लो० ६५ ] प्रस्तुत व्याकरण पेला प्रकारने लगतुं छे. बीजो प्रकार तो संस्कृत व्याकरणथी ज सिद्ध छे अने त्रीजा प्रकारचें प्राकृत हजु सुधी शास्त्रीय गवेषणानो विषय न बनेलं होवाथी आमां तेनुं निरूपण करवू योग्य धार्यु नथी. एना बोध माटे देशीनाममाला वगेरे देशी भाषाना कोशोथी न चलावी लेवु पडे एम छे.
३ अर्धमागधी भाषा प्राकृत, शौरसेनी वगेरे भाषाओगें व्याकरण लखतां आमां क्यांय अर्धमागधी विषे लखवामां नथी आन्यु, एथी कोइ एम तो न ज समनी ल्ये के, अर्धमागधी कोई भाषा ज नथी.
* भट्टिकाव्यना आ सर्गमां समसंस्कृतप्राकृतनां आवां अनेक काव्यो छे, आ सर्गनुं नाम ज ' भाषासंनिवेश' छे,
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___ जैनसूत्रोमा केटलेक ठेकाणे अर्धमागधीने भाषा तरीके जणावी छे अने साथे एम पण कहेवामां आव्यु छ के, ' भगवान् महावीर अर्धमागधी भाषामां उपदेश करता हता.'
अर्धमागधीने लगता जैनसूत्रोना उल्लेखो आ प्रमाणे छः " भगवं च णं
" भगवान् अर्धमागधीभाषाअद्धमागहीए भासाए द्वारा धर्मने कहे छे." धम्ममाइक्खइ" (समवाय-अंगसूत्र
पृ० ६० समिति) प्र.-" देवा णं भंते कयराए “हे भगवन् । देवो कइ
भासाए भासंति ? भाषामां बोले छे ? कयरा वा भासा
अथवा बोलाती भाषामां भासिज्जमाणी .
कइ भाषा विशिष्ट छे ? विसिस्सति ? उ.---गोयमा ! देवा णं अद्ध- हे गौतम ! देवो अर्ध
मागहाए भासाए भासंति, मागधीभाषामां बोले छे सा विय णं अद्धमागही अने बोलाती भाषामां भासा भासिज्जमाण पण ते ज भाषा-अर्धविसिस्सइ"
मागधीभाषा-विशिष्ट छे." ( भगवती--अंगसूत्र
श० ५ उ० ४ पृ० १८१ प्रश्न२० राय० अने समिति पृ० २३१ सू० १९१)
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" तए णं समणे भमवं "त्यार पछी भगवान महावीर
महावीरे कणिअस्स भंभसारपुत्र कोणिकने अर्धभंभसारपुत्तस्स मागधीभाषामां धर्म कहे छे" अद्धमागहाए भासाए भासति" (औपपातिक-उपांग
सूत्र पृ० ७७ समिति) प्र.-" से किं तं भासारिया ? " भाषानी दृष्टिए आर्यों कोने
कहेवा ? उ०—भासारिया जे णं नेओ अर्धमागधीभाषामां
अद्धमागहाए बोले छे तेओने भाषानी मासाए भासेंति" दृष्टिए आर्यों समजवा" (प्रज्ञापना-उपांगसूत्र
पृ० ५६ समिति) आ उपरथी । अर्धमागधी' ने भाषा तरीके अने : महावीर अर्धमागधीभाषामां उपदेश करता हता' ए बन्ने वातो स्वीकारी शकाय एवी छे पण 'अर्धमागधी' ना भाषा तरीकेना उल्लेख मात्री न कांइ एनुं व्याकरण लखी शकाय नहि.
व्याकरण लखवा माटे तो एना विपुल साहित्यने सामे राखवू जोइए, जेथी बीजी भाषाओ करतां अर्धमागधीनी जे खास खास विशेषताओ होय ते बधी साधी शकाय. काइ बे चार रूपोनी विशेघताने लीधे कोइ एक भाषाने बीजी भाषाथी जुदी पाडी शकाय नहि तेम ज बे चार रूपोने साधवा माटे जु९ व्याकरण पण लखी शकाय नहि, जो फक्त बे चार रूपोनी ज विशेषताने लीधे एक
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भाषा बीजी भाषाथी जुदी गणावी शकाती होय अने एनुं व्याकरण पण लखी शकातुं होय तो भाषाओनो अने व्याकरणोनो अंत ज केम आवत ?
आ संबंधमां आचार्य हेमचंद्रनुंज उदाहरण बस छे: श्री हेमचंद्रे प्राकृत, शौरसेनी, मागधी, पैशाची अने अपभ्रंशनां व्याकरणो लख्यां छे तेम साथे साथे आर्षप्राकृतने पण लीधुं छे. साधारण प्राकृत करतां आर्षप्राकृतमां कांइक विशेषता जरुर छे पण ते एटली नजीवी छे के, तेनुं जुदुं व्याकरण करवुं तेमने योग्य नथी जणायुं. आज कारणथी साधारण प्राकृतना पेटामां आर्षप्राकृतने पण एमणे मेळवी दीधुं छे.
हेमचंद्र जेवा जैन वैयाकरण शौरसेनी, मागधी अने पैशाची जेवी प्रायः जैनेतर ग्रंथोमां वपराएली के नाटकीय भाषाओनुं व्याकरण लखवा प्रेराय अने जैन आगमोनी भाषानुं व्याकरण न लखे ए कांइ अर्थविनानी वात नथी.
जैन परंपरामां अर्धमागधीना साहित्य तरीके प्रसिद्धि पामेलु समस्त आगमसाहित्य एमनी सामे ज हतुं, ए विषेनो भाषानो अने भावनो मनो अभ्यास पण गंभीर हतो छतां य एम ए साहित्यने लगतुं एक जनुं व्याकरण केम न लख्युं ! ए प्रश्न एमने माटे थवो सहज छे.
ए प्रश्ननो उत्तर आचार्य हेमचंद्रे पोतानी कृतिद्वारा ज आपी दीघेलो छे. आपणे जेम आगळ जोइ गया के, आर्षप्राकृतमा जुटुं व्याकरण करवा जेवी खास विशेषता न जणायाथी जेम एने साधा - रण प्राकृतना पेटामा समावी दीधुं छे तेम आगमसाहित्यनी भाषामा पण ए बन्ने प्राकृतो करतां एवी विशिष्ट विशेषता न जणायाथी
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एमणे ए भाषाने ए बन्ने प्राकृतोमा भेळवी दीधी छे अने ए नकारणथी एनुं जुईं व्याकरण करवा तेओ प्रेराया पण नथी.
एमना समयनुं वातावरण जोतां तो जरुर ए पाणिनिना वैदिक व्याकरणनी पेठे जैनागमोनी भाषानुं पण व्याकरण लखवाने प्रेराया होत.
जैनपरंपरामां आचार्य हेमचंद्र ज एक एवा प्रतिष्ठापक पुरुष छे जेमणे जैनोनी साहित्यने लगती प्रतिष्ठा साचववानो भगीरथ प्रयत्न सेन्यो छे. नवु व्याकरण, नवु छंदःशास्त्र, नवु अलंकारशास्त्र, नर्बु धातुपारायण, नवा कोशो, नवो निघंटु, नवु पुराण अने नवं योगशास्त्र वगेरे ए बधुं जैनोनी विशेषताने खातर नवु नवु लख्या छतां आगमोनी भाषाना ज प्रसंगमा एमणे वृद्धप्रवादनी सामे पण जे मौन बताव्यु छे ते न आपणा ए प्रश्नना पूर्वोक्त उत्तर माटे पूरतुं छे.
वळी, आचार्य हेमचंद्र पोते एम पण मानता लागे छ के, आगमोनी भाषा अर्धमागधी तो जरुर कही शकाय पम जो एमां 'अर्धमागधी' नामने योग्य केटलीक विशेषताओ मागधी भाषानी पण भळेली होय. आ विशेषताओ तपासतां एमने तो फक्त मागधीनी एक ज विशेषता मुख्यपणे जणाणी छे. ते विशेषता-प्रथमाना एकवचनमा मागधीना 'ए' प्रत्ययनो प्रयोग. जेमके; जीवे, अनीवे, लोए, अलोए, आसवे, संवरे, बंधे, मोक्खे वगेरे. पण आ एक ज विशेषताने लीधे तेओ आगमोनी भाषाने अर्धमागधी कहेवी योग्य धारता नथी अने प्राकृत के आर्षप्राकृतथी जुदी पण गणी शकता नथी. माटे ज एमणे आगमोनी भाषाने माटे पोताना व्याकरणमां कोई खास स्थान आपेलु मथी. साथे साये एटलं पण जणानी देवू जोइए के, हेमचंद्रना
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ध्यानमां आवेली ए एक विशेषता पण कांइ आगमोनी भाषामां व्यापक रीते आवेली नथी, एमां तो 'ए'ना प्रयोगनी पेठे प्राकृतना 'ओ' प्रत्ययवाळां पण वणां रूपो-ते पण आचारांग जेवा प्राचीन सूत्रमा य-मळी आवे छे. जेमके: निक्खतो, उद्देसो, अप्पमाओ, निरामगंधी, उवरओ, उवेहमाणो, आलीणगुतो, सहिओ, नाणागमो, संथवो, दोसो, हव्ववाहो, दुरणुचरो, मग्गो वगेरे (आचारांग सूत्र पृ०४१-१२४-१२७-१३०-१५५-१६८-१८३-१८४१८५-१९०-१९२ समितिनु). एमणे न आ संबंधमा एम जणाव्यु छे के, " प्रायोऽस्यैव विधानात् न वक्ष्यमाणलक्षणस्य" (प्रा० व्या० पृ० १५९ सू० २८७) अर्थात् " आर्ष प्रवचनमा प्रायः मागधीना 'ए' प्रत्ययर्नु ज विधान छे, पण मागधीनां बीजां बीजां लक्षणोनु नथी." आ उल्लेखमां वपराएलो प्रायः' शब्द आगमोमां 'ए' प्रत्ययनी वपराशनो पण संकोच बतावे छे अने एथी ज एम जणाय छे के उपर्युक्त · ओ' प्रत्ययनी वपराशनुं आगमिक क्षेत्र पण कांइ हेमचंद्रना ध्यान बहार छे एम नथी.
सार आ छे के, आचार्य हेमचंद्रे पोताने उद्भवेला जैन आगमोनी भाषाने लगता प्रश्ननो खुलासो आम वे रीते करी बताव्यो छः __एक तो जैन आगमोनी कहेवाती अर्धमागधीने पोतानी कृतिमां खास जदं स्थान नहि आपीने. बीजु, एमां जोइए तेटला प्रमाणमां मागधीनी विशेषताओ न होवार्नु जणावीने,
* आ आगमोनी भाषा अर्धमागधी नयी पण प्राकृत के आर्षप्राकृत छे' एम स्पष्ट शब्दोमां कहेवा जेई जैन समाजनुं वातावरण अत्यारे पण नथी तो संप्रदाय भक्तिना बारमा सैकामां तो शी रीते होय छतां य एक जवाबदार अने प्रामाणिक वैयाकरण तरीके आचार्य
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हेमचंद्रे उपयुक्त सादी हकीकतने पण आगळ जणावेली भंगिए आबाद रीते जणावेली छे अने साथे वृद्धप्रवादना अनुसंधाननी युक्ति पण बतावेली छे, आ संबंधमा एमनो आखो उल्लेख आ प्रमाणे छे: “ यदपि - पोराणमद्धमागहभासानिययं हवइ मुत्तं ५ इत्यादिना आपम्य अर्धमागधभाषानियतत्वमाम्नायि. वृद्वैस्तदपि प्रायोऽस्यैव विधानात् न वक्ष्यमाणलक्षणस्य "
( प्राकृत व्या० पृ० १५९ सू० २८७) १. आ उल्लेख निशीथचूर्णिमा छ, जुओ लिखित प्रति पा० ३५२ पूना भां० प्रा० वि०म० सं०. ए उल्लेखमांना 'अद्धमागह' शब्दनी व्याख्या करतां श्रीजिनदास महत्तरे जणाव्युं छे के; " मगहद्धविसयभासानिबद्धं अद्धमागहं" अथवा "अहारसदेसीभासाणियतं अद्धमागधं" अर्थात् एमणे ' अर्धमागध' शब्दनी बे व्याख्या करी छः पहेली--- मगध देशनी अडधी भाषामां नियत ते अर्धमागध. बीजी--अटार जातनी देशी भाषामां नियत ते अर्धमागध.
वर्तमान आगमोनी भाषामा पहेली व्याख्या तो घटती नथी एम हेमचंद्र पोते कहे छे.
बीजी व्याख्या पण जो आगमोनी भाषामां घटी शके तेवी होत तो जरुर तेने प्रधानमद आपी आचार्य हेमचंद्र ए विषे काइक जुर्दु लखत अने ए. रीते वृद्धग्रवादनु ज समर्थन करत. पण ए प्रखर वैयाकरण ए व्याख्या तरफ उदासीन रह्या छे, एथी जणाय छे के, ..ए व्याख्या पण आगमोनी भाषामां घटती नहि होय अथवा ए व्याख्यामां कहेला अढार देश क्या समजवा ? ए प्रश्न ज गुंचवाळो छ,
राजकुमारोना विद्याध्ययनना प्रसंगमा 'अट्ठारसदेसीभासाविसारए' शहद जैन सूत्रग्रंथोमां मळे छे. त्यां तेनो अर्थ · अढार (जातनी) १ देशी भाषामां विशारद' थाय छे. ए शब्दना संबंधमां ए सिवाय बीजी
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कशी वीगत टीकाकारोए आपी नथी तेम अढार जातनी देशी भाषाने अर्धमागधी तरीके ओळखावी पण नथी.
'अट्ठारसदेसीभासाविसारए 'नो उल्लेख ज्ञातासूत्रमा अने औषपातिक सूत्रमा मळे छः
"तते णं से भेहे कुमारे "त्यार पछी ते मेघ कुमार बावत्तरिकलापंडिए*अट्ठारसवि- बोतेर कळामां प्रवीण थयो अने हिप्पगारदेसीभासाविसारए" अढार प्रकारनी देशी भाषामा
निपुण थयो” ज्ञातासूत्र पृ० ३८
[टीकाकारना मत प्रमाणे समिति ___'अढार जातनी भाषामां नहि पण ठीका पृ. ४२, अढार जातनी लिपिमा' प्रवीण
थयो. आ अढार जातनी लिपिनो उल्लेख प्रज्ञापना सूत्रमा अने नंदी
सूत्रमा मळे छे] “तए णं से दढपइण्णे “त्यार पछी ते दृढप्रतिज्ञ दारए बावत्तरिकलापंडिए* नामनो कुमार बोतेर · कळामां अट्ठारसदेसीभासाविसारए” प्रवीण थयो अने अढार प्रकारनी औपपातिक सूत्र पृ०९८ देशी भाषामां निपुण थयो "
समिति
सूचना ए उल्लेखो जोता अढार देशने लगती आपणी ए गुंच उकली शकती नथी पण एटलं कल्पी शकाय छे के, कदाच आ उल्लेखोने जोइने ज श्रीजिनदास महत्तरे पोतानी चूर्णिमा अढार जातनी देशी भाषाने 'अर्धमागधी' नुं नाम आप्यु होय.
श्रीहरिभद्रना विद्याथी अने समसमयी तथा श्रीशीलांक अपर नाम तत्त्वादित्यना शिष्य श्रीदाक्षिण्यांचढ्नसूरिए बनावेली 'प्राकृत कुवलयमाला' ने जोतां अढार देशने लगती आपणी ए गुंच कदाच उकली शके,
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पण याद राखवू जोइए के प्रस्तुत अर्धमागधीनी चर्चा साथे कुवलयमालामां आवता अढार देशने लगता ए. उल्लेखनो कशो ज संबंध नथी,
कुवलयमालामां ए देशोनी गणना आ प्रमाणे करेली छः
" लाडा कनाडा वि य " लाटदेश, कर्णाटकदेश, मालविया कन्नुज-गोल्लया । मालवदेश, कनोजदेश, गोल्लदेश, करय मरहट्ट य सोरट्टा ढक्का करय (कारवाड ?) देश, महा. किरि अंग सेंधवया ॥" राष्ट्रदेश, सोरठदेश, ढक्कदेश,
कु० लि. प्रति पृ० ७५ किरदेश, अंगदेश अने सिंधदेश" पेली बाजु पं० ५ पूना भा० प्रा० वि० मं० सं०
आ उल्लेखमां मान बार देशोने गणाधवामां आव्या छे परंतु आ पछीना एक बीजा उल्लेखमां (पृ० ७६) एथी वधारे देशोने मूकेला छे. आ नीचेना उल्लेखमां देशोनां नामो साथे तेने देशना मनुष्योनो स्वभाव अने भाषाना एक बे शब्दोने पण भूकवामां आव्या छे अने छेवटे उपसंहारमा जणावेलुं छे के,
" इय अट्ठारसदेसी- "ए प्रमाणे श्रीदत्त नामनो भासाउ पुलइऊण सिरिदत्ते ।। कोइ गृहस्थ अढार देशनी भाषाअन्ने इ य पुलएती जवस-पारस- ओने जोइने (सांभळीने) बीजाबब्बरातीए ॥"
ओनी पण-एटले अनार्यों पैकी जवस, पारस अने बर्बर लोकोनी पण-भाषाने जुए छे (सांभळे
के)" ग्रंथकारे उपसंहारमा आम अढार देशी भाषानो उल्लेख कयों छे अने देशोनो गणनाना प्रसंगमा मात्र सोळ देशो ज जणावेला छे तेर्नु कारण समजातुं नथी.
जे उल्लेखमां ए देशोने जणावेला छे ते उल्लेख आ प्रमाणे छः
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" तत्थ य पविसमाणेणं त्यां प्रवेश करता श्रीदते दिहा अणेयदेसभासालविखए, अनेक देशनी भाषाना जाणकार देसवणिय । तं जहा
ते ते देशना वणिकोने जोया. कसिणा निगुरवयणे बहुकसमर (?) ते जेमके; प्रथम गोल देशना भुजए अलजे य ।
लोकोने जोया, ए लोको निष्टुर 'अरडे' ति उलयंले अह भाषी, काळा, समरभोगी (?) पेच्छइ गोलए तत्थ ।।
अने निर्लज होय छे तथा णयनीइसंधिविग्गहपडुए बहुजं- 'अरडे ' एवं बोलनारा होय छे. पए य पयईए।
पछी मध्यदेशना लोकोने जोया, 'तेरे मेरे आउ' ति पिरे ए लोको नय, नीति, संधि अने मझदेसे य ।।
विग्रहमां चतुर, बहुबोला अने 'तेरे मेरे आउ' एबु बोलनारा
होय छे. नीहरियपोट्ट-दुवन्न- ___ पछी मगधना लोकोने जोया, मडहए सुरयकेलितल्लिच्छे । ए लोको दुर्वर्ण, वधेला पेटवाळा, 'एसेले' जंपुले अह पेच्छइ लिंगणा, सुरतप्रिय अने 'एसेले' मागहे कुमरो ॥
एवं बोलनारा होय छे. कविले पिंगलनयणे लोयण- पछी अंतर्वेदिना एटले गंगा कहदिन्नमेत्तवावारे (?)। जमनानी वच्चेना प्रदेशमा रहे
'किं ते कि मो : पि य जंपिरे नारा लोकोने जोया, ए लोको व अंतवेए य ॥
वर्णे कपिल, मांजरी आंखवाळा अने ' कि ते किं मो' एबुं बोल
नारा होय छे. उत्तुंगथूलघोणे कणयवन्ने य पछी कीरदेशना लोकोने जोया, भारवाहे य ।
ए लोको र्णे कनकवर्णा, उंची
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3
सरि पारि जपिरे कीरे
कुमारो पोइ ||
दक्खिन्नदाणपारुस - विन्नाण
दयाविवज्जियसरीरे ।
' एहं तेह
उण पेच्छइ कुमरो ||
3
चवंते ढके
सललियमिउमद्दवए गंधव्व
पिए सएसायचित्ते ।
' से दइणो' भणिरे सुहसे
अह धत्रे दिट्ठे ||
कवेंजडे ( ? ) य जड्डे बहुभोई कढिपीरूणंगे ।
'अम्मां तुप्पां' भणिरे अह
पेच्छइ कारु तत्तो ॥
संधिविग्ग
C
घयलोणिय पुगे धम्मपरे उणे |
न उ रे भलडं '
अह पेच्छइ गुज्जरे अवरे ||
भणिरे
व्हा ओलित्तविलित्ते कयसीमंते सोहियंगत्ते ।
२२
अने जाडी नासिकावाळा, भार
वहनारा अने ' सरि पारि' एवं बोलनारा होय छे.
पछी उक्क देशना लोकोने
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जोया, ए लोको दाक्षिण्य, दान, पौरुष, विज्ञान अने दया विनाना
होय छे अने ' एहं तेहं ' एम बोलनारा होय छे.
ए
पछी सिंधना लोकोने जोया, लोको ललित, मृदु, गांधर्वप्रिय,
स्वदेशपरायण, हसमुखा अने 'से
"
एम बोलनारा होय छे.
दो
S
पछी कारुदेशना लोकोने जोया,
ए. लोको कपिंजल (?) जड्डु, बहुभोजी, कठण अने पुष्ट अंगवाळा तथा 'अप्पां तुप्पां' एम बोलनारा होय छे.
पछी गुर्जरलोकोने जोया, ए लोको घी अने माखणथी पुष्ट शरीरवाळा, धर्मपरायण, संधि
विग्रहमां निपुण अने न उरे भल्लउं ' एम बोलनारा होय छे.
पछी लाटना लोकोने जोया, ए लोको (माथामा ) थो
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'अम्हं काउं तुम्हं' भणिरे पाडनारा, लेपन करनारा, सुशोअह अच्छइ लाडे ।
भित शरीरवाळा अने 'अम्हं काउं
तुम्ह' एम बोलनारा होय छे. तणुसाममडदेहे कोवणए ____ पछी माळवाना लोकोने जोया, माणजीवणे रोहे।
ए. लोको, काळा अने नाना शरीर'भाइ य भणी तुन्भे' वाळा, क्रोधी, अभिमानी, रौद्र भणिरे अह मालवे दिहे ॥ अने 'भाइ य भइणी तुब्भे'
एम बोलनारा होय छे. उक्कडप्पे पियमोहणे य पछी कर्णाटकना लोकोने रोद्दे पयंगवित्ती य । जोया, ए लोको दर्पवाळा, मोह
'अडिपांडि रमरे' भणिरे वाळा, रौद्र, चंचळ अने 'आडेपेच्छइ कनाडए अण्णे । पांडि रमरे' एम बोलनारा
होय छे. कुप्पातपाउयंगे मासणइ (१) ___पछी ताइ लोकोने जोया, ए पाणमयणतलिच्छे ।
लोको कंचुक पहेरनारा अने ' असि 'असि किसि मणि' भण. किसि मणि' एम बोलनारा माणे अह पेच्छइ ताइए अवरे || होय छे.
सव्वकलापब्भटे माणी पिय- पछी कोशलदेशना लोकोने कोयणे कढिणदेहे ।
जोया, ए लोको सर्वकलाहीन, . 'जल तल ले' भणमाणे मानी, कोपी अने 'जल तल ले' कोसलए पुलइए अवरे ॥ एम बोलनारा होय छे.. : “दटमडहसामलंगे सहिए पछी महाराष्ट्रना लोकोने अह; माणकलहसीले य। जोया, ए लोको शरीरे दृढ, ...: दिन्नलले गहियल्ले' उल्ल- नाना अने काळा : होय छे तथा विरे तत्थ मरहहें ॥ ........: खहितमा मान-कलहशील अने
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हवे । वर्तमान जैन आगमोने महावीर भाषित समजीने कोई ए आगमोनी ज भाषाने अर्धमागधी कहे अने ए उपरथी ज एनां व्याकरण अने कोष बनावे तो न बनी शके ? ' ए प्रश्ननुं समाधान आचार्य हेमचंद्रे पोतानी कृतिद्वारा अने उपर्युक्त उल्लेखद्वारा पण करी नांख्युं छे एथी आ आगमोनी भाषाने अर्धमागधी समजवी के एम समजी:ए विपेनां पुस्तको लखवां ए भाषाना इतिहासमा गोटाळो करवा सिवाय बीजु शु होई शके ? ___ आचार्य हेमचंद्रना पूर्ववर्ती अने अंगसूत्रोना टीकाकार आचार्य अमयदेवे पण अर्धमागधी. नाम धरावती भाषाने प्राकृत लक्षणनी बहुलतावाळी जणावी छे. तेमणे लख्यु छे के
'दिन्नल्ले गहियल्ले' एम बोल.
नारा होय छे. पियमहिलासंगामे सुंदरगोत्ते य __ पछी आंध्रना लोकोने जोया, भायणे रोहे।
ए लोकोने स्त्री अने संग्राम बन्ने 'अदि माद' भगति अवरे प्रिय होय छे, एमनां गोत्रो सुंदर अंधे कुमारो पलोएइ ॥ होय छे, अने ए लोको रौद्र तथा
भयंकर अने 'अदि माद' एम
बोलनारा होय छे. उपरना उल्लेखमां गोल्ल (गौड ?), मध्यदेश, मगध, अन्तर्वोद, कीर, ढक, सिंध, कारु (कारवाड), गूर्जर, लाट, मालव, कर्णाटक, ताइअ (१) कोशल, महाराष्ट्र अने आंध्र एम सोळ देशोने जणावेला छे.
कुवलयमालानो आ उल्लेख अहीं एटला माटे आप्यो छे के, एमां ए देशोनी गणना ए रीते करेली छे. ( आचार्य जिनविजयजीनी एक नोंधद्वारा आ उल्लेखने हुँ "कुवलयमाला'माथी मेळवी शक्यो है)
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"र-सो-लेशौ मागध्याम् ' इत्यादि यत् मागधभाषालक्षणं तेन अपरिपूर्णा प्राकृतभाषालक्षणबहुला अर्धमागधी" ।
.. ( औषपातिक टीका पृ० ७८ समिति) अभयदेवे आगमोनी भाषा उपरथी नक्की करेलु अर्धमाग-- धीन स्वरूप जोता तो : अर्धमागधी' नाम 'देवादार 'ना 'रणछोड ' ( ऋणने छोडनार ) नाम जेवू लागे छे. तेओ साफ साफ 'कहे छे के, आगमोनी भाषा प्राकृतलक्षणनी बहुलतावाळी छे अने एक लक्षण सिवाय मागधीनां बीजां खास लक्षणोने एमां काइ स्थान नथी, एथी ज वांचनार समजी शकशे के, वर्तमान आगमानी भाषाने अर्धमागधी कहेवी के प्राकृत कहेवी ? ..
आगमो प्राकृत छे' ए मत तो आज घणा समयथी चाल्यो आवे छे अने हेमचंद्र अने अभयदेव करतां य प्राचीन अने प्रामाणिकः आचार्योए ए मतने स्वीकारेलो छे. ए संबंधमा आचार्य हरिभद्र जणावे छे के,
“ प्राकृतनिबन्धोऽपि बालादिसाधारणः " इति १ दशवकालिकनी टीकामां जे प्रसंगे आचाय हरिभद्रे आ उल्लेख कयों छे ते प्रसंग आ. छः
" दर्शनाचारना आठ प्रकार छे, तेमां पेहेलो प्रकार निशिंकित रहे ते, 'निःशंकित'नुं विवरण करतां कह्यु छ के, शंकाना बे प्रकार छे-सर्वशंका अने देशशंका. सर्वशंका एटले सर्व प्रकारे शंका अने देशशंका एटले अंशथी शंका. तेमां ' सर्वशंका 'नु स्वरूप बतावतां जणायु
छ के,
"सर्वशङ्का तु प्राकृतनिबद्धत्वात् सर्वमेवेदं परिकल्पितं भविष्यतीति।"
अर्थात् 'प्राकृत भाषामां रचेलं होबाथी आ बधु य बनावटी केम न होय ?' आवी जे जिनागम प्रत्ये शंका करवी ते सर्वशंका, आनु समाधान करता हरिभद्रे उपर्युक्त उल्लेखने टांकी बताव्यो छे.
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आटलं लख्या पछी ए आचार्यवर :. उक्तं च" कहीने पोताना उल्लेखना पोषणमा एक जना संवादने टांकी बतावे छे--
" बालस्त्रीमूढमूर्खाणां नृणां चारित्रकाशिणाम्। अनुग्रहार्थ तत्त्वज्ञैः सिद्धान्तः प्राकृतः कृतः ॥"
(दशवैकालिक टीका पृ० ११३ बाबु.) आ उपरथी आपणे जोइ शकीए छीए के आपणो आ मत हरिभद्र करतां य जूनो ठरे छे.
जे प्रसंगमा हरिभद्रे उपर्युक्त उल्लेखने मूकेलो छे ते ज प्रसंगमा वादिदेवसूरिना गुरु आचार्य मुनिचंद्र पण ए न उल्लेखने ( हरिभद्रना 'धर्मबिंदुनी टीकामां ) मूके छे. धर्मबिंदु पृ० ७७, द्वितीय अध्याय आत्मानंद समानी आवृत्ति.
आचार्य मलयगिरि. पण प्रज्ञापनानी पोतानी टीकामां एवा न प्रसंगमां ए ज वातने नणावे छे-प्रज्ञापनासूत्र टीका समितिनु पृ०६०.
हेमचंद्रनी पछी थयेला आचार्यों द्वारा पण ए ज मतने टेको आपवामां आव्यो छे— ____ आचार्य प्रभाचंद्रे बनावेला अने श्रीप्रद्युम्नसूरिए शोधेला प्रभावकचरित्रमा (पृ० ९८-९९) जणाव्यु छ के, " अन्यदा लोकवाक्येन जातिप्रत्ययतस्तथा । आबाल्यात् संस्कृताभ्यासी कर्मदोषात प्रबो(बा)धितः।।१०९
१ उपरना बधा उल्लेखोमां वपराएलो 'प्राकृत' शब्द प्राकृतभाषानो सूचक छे, अनुयोगद्वारसूत्रमा 'प्राकृत' शब्द प्राकृतभाषाना अर्थमां वपराएलो छे. (पृ० १३१ स०) वैयाकरण वररुचिना समयथी तो ए शब्द ए अर्थमां वपरातो आव्यो छे, अने ए पछीना आचार्योए पण ए शब्दने ए ज अर्थमां वापरेलो छे. माटे कोइए अहीं ए शब्दने भरडवो नहि.
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सिद्धान्तं संस्कृतं कर्तुमिच्छन् संघ व्यनिज्ञपत् । प्राकृते केवलज्ञानिभाषितेऽपि निरादरः ॥ ११०
यदि (इदं) विश्रुतमम्माभिः पूर्वेषां संप्रदायतः । चतुर्दशापि पूर्वाणि संस्कृतानि पुराऽभवन् ॥ ११४ प्रज्ञातिशयसाध्यानि तान्युच्छिन्नानि कालतः। अधुनैकादशाङ्गचस्ति सुधर्मस्वामिभाषिता ॥ ११५ बालस्त्रीमूढमूर्खादिननानुग्रहणाय सः । प्राकृतां तामिहाऽकार्षीदनास्थाऽत्र कथं हि वः " ॥ ११६ अर्थात् “ सिद्धसेन दिवाकर नामना सुप्रसिद्ध जैनाचार्य प्राकृत जैन आगमोने संस्कृतमा करवानी इच्छा करी" आटलुं जणाबी ग्रंथकार पोताना तरफथी वधु जणावतां कहे छ के, “ बाल, स्त्री, अने मूर्ख वगेरेनी सगवडताने माटे पूर्व पुरुषोए-सुधर्मस्वामिए-ए आगमोने प्राकृतमा रच्यां छे, तो एमां आपणे शामाटे अनास्था करवी ?"
" यत उक्तमागमे " अर्थात् ' आगममां कर्तुं छे के' एम लखीने श्रीविजयानंदसूरि पोताना तत्त्वनिर्णयप्रासादमा जणावे छे के,
मुत्तूण दिविवायं कालिय-उकालियंगसिद्धंतं ।
थीबालवायणत्थं पाययमुइयं निणवरेहिं ॥ अने साथे हरिभद्रे उद्धरेलो श्लोक पण टांके छे. (खरी रीते तो आ प्राकृत गाथाने हरिभद्रनी पहेला ज मूकवी जोइए पण मने एनुं मूळ स्थान न जडवार्थी एना उध्धृत करनारना काळक्रममां एने मूकवामां आवी छे.)
अनुयोगद्वार सूत्रमा जणान्युं छे के, " सक्कया पायया चेव भणिइओ होति दोणि वा"
(पृ. १३१ समिति)
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अर्थात् ' संस्कृत अने प्राकृत बे भाषाओ छे.''
आ उल्लेख गीतनी भाषाना प्रसंगमा छे. आ उपरथी एटलुं तो जरुर तारवी शकाय के, अनुयोगद्वारना समयमां अर्धमागधीने प्राकृतथी जुदी ज गणवामां आवती होत तो सूत्रकार प्राकृतनी साथे ज पोतानी प्रिय अने देवभाषा तरीके प्रसिद्धि पामेली अर्धमागधीने पण सूचववी भूले खरा ?
आ प्रमाणे एक नहि पण अनेक जैनाचार्योए वर्तमान आगमोनी भाषाने स्पष्ट शब्दमा प्राकृत कहेली छे माटे अमे पण अहीं ए ज मतने स्वीकारेलो छ, अने तेथी ज प्रस्तुत व्याकरणमां पण जैन आगमोना केटलांक विशिष्ट रूपोने प्राकृतना व्याकरण साथे ज नोंधेला छे.
आ तो जैनाचार्योनी न दृष्टिए आगमोमां आवेली भाषाना संबंधमा चर्चा थइ, तदुपरांत बीजी त्रण दृष्टिए पण अर्धमागधी भाषानी चर्चा थइ शके छे. तेमां
पहेली दृष्टि भरतना नाट्यशास्त्रनी, बीजी दृष्टि प्राकृत भाषानां व्याकरणोनी अने त्रीजी दृष्टेि अशोकनी धर्मलिपिओनी. भरतना नाट्यशास्त्रमा कडं छे के, " चेटानां राजपुत्राणां श्रेष्ठिनां चार्धमागधी"
भरतना० अध्याय १७ श्लो० ५० नाटकोमा पात्र तरीके आवता चेटो, राजपुत्रो अने शेठियाओ अर्धमागधी भाषा बोले छे. भरतना आ उल्लेखथी आपणे नाटकोनां ते ते पात्रोनी भाषाद्वारा अर्धमागधीना स्वरूपने कळी शकीरों.
नाटकोनी भाषाना नमूना---
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( भासनुं प्रतिज्ञायौगंधरायण) भटः--को काळो अहं भट्टिदारिआए वासवदताए उदए कोळिदु___ कामाए भद्दवदीपरिचारअं गत्तसेवअंण पेक्खामि । भाव पुप्फ
दंतअ गत्तसेवों ण पेक्खामि । किं भणासि एसो गत्तसेवओ
कण्डिळसुंडिगिणीए गेहं पविसिअ सुरं पिबदि ति । पृ० १०२ भट:----सव्वं दाव चिट्टटु राअउळे भद्दपीठिअं ण णिकमिअ कुदो
अअं आहिण्डदि त्ति । पृ० १०६ भट:---कि णु खु एवं + होदु,. इमं वुत्तत्तं अमञ्चम्स णिवेदेमि । - पृ० १०६
( भासतुं चारुदत्त ) चेटः-अम्मो अय्यमत्तेओ। चेद:--अम्मो भट्टिदारओ। पृ० ६७ चेटः-सुहौदेसु पादेसु भूमीए पोट्टिदव्वं । पृ० ६८ .
_( भासतुं स्वप्नवासवदत्त) भटौ-उस्सरह उम्सरह अय्या उस्सरह । पृ० ८ चेटी-एटु एदु भट्टिदारआ इदं अस्समपदं पविसदु । पृ० १५ चेटी-अस्थि राओ पज्जादो णाम उज्जइगीए सो दारअस्स कारणादो . दूदसंपादं करेदि पृ० १७
(शूद्रकनुं मृच्छकटिक ) चेट:-अज्नुए चिश्ट, चिश्ट।
उत्ताशिता गच्छशि अंतिका मे शंपुण्णपुच्छा विभ गिम्हमोरी। ओवगदी शामिअ भश्टके मे । वणे गडे कुक्कुरशावके व ॥ पृ० २७
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चेटः-लामेहि अ लाअवलहं तो खाहिशि मच्छमंशकं । - एदेहि मच्छमंशकेहिं शुणआ मडअंण शेवंदि । पृ. ३१
आ वधी भाषा चेटोनी छे. राजपुत्रनी भाषा आ प्रमाणे छः
(काळीदासर्नु शाकुंतल ) बाल:-जिंभ जिंभ दंदाणि ते गणइस्सं पृ० २९५ बालः-बळिअं भीद म्हि पृ० २९६
वाल:-इमिणा एव दाव कीलिम्स पृ. २९८ हवे शेठियाओनी भाषानो नमुनो
(शूद्रकनुं मृच्छकटिक) चन्दनदासः-जेदु अज्जो चन्दनदासः-किं ण जाणादि अज्जो जह अणुचिदो उवआरो
परिहवादो वि महंतं दुःखं उप्पादेदि। ता इह य्येक
उचिदाए भूमीए उवविसामि।। चन्दनदास-अह इं अज्जस्स प्पसाएण अखण्डिदा वणिज्जा । पृ०१४ चन्दनदासः- आणवेदु अज्जो कि केत्तिों इमादो जणादो इच्छी
अदि ति। चन्दनदासः--अज्न अलिअं एवं केणवि अणज्जेण अज्जस्स.
णिवेदिदं । पृ० १५ चन्दनदासः-फलेण संवादिदं सोहदि दे विकत्थिदं । पृ० १७
नाट्यशास्त्रकार भरतना उल्लेख प्रमाणे चेट, राजपुत्र अने शेठनी भाषाने अर्धमागधी कहेवामां आवे छे. एना नमुना उपर आपवामां आव्या छे. उपरना नमुनानी भाषा साथे आपणे आगमोनी भाषाने सरखावीए तो केवळ सांभळवा मात्रथी ज शुं नथी जणातुं के,
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ए नाटकोनां पात्रोनी भाषामा अने आगमोनी भाषामा केटलो बor तफावत छ ? ___ हवे आपणे जोईए के, प्राकृत व्याकरणोनी दृष्टिए आगमोनी भाषाने अर्धमागधीनुं नाम आपी शकाय के केम ? __प्राकृत व्याकरणो तो घणां छे, ए वधांनां नामो पण हवे पछी आपवानां छे. बधां प्राकृत व्याकरणोमां वररुचिनो प्राकृतप्रकाश वधारे प्राचीन छे. एमां ‘मागधी' नी प्रकृति तरीके शौरसेनीने कही छे अने शौरसेनी करतां जे विशेषता छे ते आ प्रमाणे. बतावी छे:१ मागधीमा ‘प' अने 'स' ने बदले 'श' बोलवो.
, 'ज' ने बदले प्रायः 'य' बोलवो. , चवर्गना कोइ अक्षरनो लोप न करतां जेम होय
तेम ज बोलवं. र्य' अने ' द्य' नो : य्य ' बोलवो. .. 'क्ष' ने बदले ' स्क' बोलवो. अकारांत शब्दना प्रथमाना एक वचनमा 'इ'
अने 'ए' प्रत्यय वापरवो. मागधीमां अकारान्त भूतकृदंतना प्रथमाना एक वचनमा उपरना बे प्रत्ययो उपरांत 'उ' प्रत्यय पण वापरवो. षष्ठीना एकवचनमा 'ह' प्रत्यय वापरवो. संबोधनना एकवचनमा अन्त्य 'अ' नो 'आ' करवो.. ' स्था' ने बदले प्राकृतमा वपराता ‘चिट्ठ' ना. स्थानमा 'चिष्ठ' धातु वापरवो.
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,
११ , कृत' ने बदले । कड' मृत' ने बदले 'मड'
अने ‘गत ' ने बदले : गड ' रूपो वापरवां, संबंधक भूतकृदंतने सूचववा त्वा' प्रत्ययने
बदले ' दाणि ' प्रत्यय वापरवो. १३ , 'हृदय' ने बदले “ हडक्क,' 'अहं' ने बदले
'हके' 'हो' 'अहके ' अने · शगाल' ने
बदले 'शिआल' तथा 'शिआलक' शब्दो वापरा. वररुचिए बतावेलुं मागधीनुं स्वरूप उपर प्रमाणे छे, आ सिवाय शौरसेनीना ने नियमो वररुचिए आपेला छे तेमांना निरपवाद नियमो मागधीमां पण उमेरी लेवाना छे. आगमोनी भाषाने जोतां तेमां फक्त वररुचिए बतावेली ६ वी विशेषतानो य अमुक अंश ('ए' नी वपराश ) जोवामां आवे छे, तो मागधीना एक ज अंशनी वपराशने लीधे आगमोनी भाषा अर्धमागधी कहेवाय के नहि ? ए साक्षरो ज विचारी ले.
वर्तमान आगमोनी भाषामा माग भाषानुं स्वरूप केटले अंशे देखाय छे ?' ए प्रश्ननी परीक्षा करता आपणे भास वगेरेनां नाटको जोयां, प्राचीन वैयाकरण वररुचिने तपास्यो. हवे अशोकनी धर्मलिपिओनी भाषाने पग आपणे जोइ जइए. ए लिपिओनी भाषाने 'कई भाषा कहेवी ?' ए प्रश्न हनी विवादग्रस्त छे तो पण एने 'प्राचीनमागधी' कहेवामां कांइ दोष जणातो नथी-बौद्धोनां त्रिपि
१ मागधीने लगतुं स्वरूप अने उदाहरणो माटे जुओ प्राकृत. प्रकाश पृ० १२८ थी १३२ तथा १३२ थी १३७ अथवा ११ मो परिच्छेद अने बारमो परिच्छेद. - २ आगमानी भापानां उदाहरणो माटे जूओ “जैन आगम साहित्यनी मूळ भाषा कइ ' ए लेख (जैन साहित्यसंशोधक पु०१ अं. १ पृ. ३१ थी ३७)
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टकनी भाषा ए लिपिओनी साथे सरखामणीमां आवी शके एवी छे. त्रिपिटकमां पण 'मागधी' भाषानो उपयोग थयानुं नीचेनी गाया जणावे छे'. .
अशोकनी धर्मलिपिओमां वपराएली भाषानुं बंधारण तपासतां आ नीचे जणावेला मुख्य नियमो उपनी शके छः
१ अद्विर्भाव ( वर्णन नहि बेवडावू) 'संयुक्त अक्षर अनादिमा होय अने संयुक्त अक्षरमांनो एक अक्षर लोपाय त्यारे जे शेष अक्षर होय छे ते बेवडाय के अथवा संयुक्त अक्षरनी पहेलांनो हस्व स्वर दीर्घ थाय छे'
प्राकृत भाषाओनो आ एक साधारण नियम छे. अशोकनी धर्मलिपिओनी भाषामा ए नियम क्वचित् ज सचवाएलो जोवाय छे पण जैन आगमानी भाषामा प्राकृतना नियम प्रमाणे ए नियम बराबर सचवाएलो छे.
लिपिओनी भाषामा वपराएलां एवां द्विर्भाव विनानां अने दीर्वस्वर विनानां रूपो आ प्रमाणे छः लिपिओनी भाषा आगमभाषा संस्कृतरूप अप
अप्प
अल्प कप
कप्प १ “सा मागधी मूलभासा नरा यायाऽऽदिकप्पिका ।
ब्रह्मना चस्सुतालापा संबुद्धा चापि भासरे " ।।
२ आमां अशोकनी धम्मलिपिमाथी जे रूपो आप्यां छे ते उदाहरण रूपे छे, एने मळतां बीजां अनेक रूपो छे. पण बधा अहीं विस्तार भयथा आप्या नथी. बीजी ए एक यात लक्ष्यमा राखवानी जरुर छ के, अशोकना प्रान्तीय पाठ भेद पण केटलेक ठेकाणे छे; जो के में बने त्यां सुधी सर्व साधारण रूपो लेवानो प्रयत्न को छे.
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________________
आ०
जुत
युक्त निखम
निक्खम निष्क्रम कलाण
कल्लाण
कल्याण २.र'नो वैकल्पिक ' ल ।
अशोकनी लिपिओमा : र' ना स्थाने सर्वत्र · ल' नो प्रयोग वैकल्पिक रोते थएलो देखाय छे त्यारे जैन आगमोमां प्राकृत भाषाना धोरणनी पेठे (र' नो ज प्रयोग कायम रहेलो छः लि.
सं० आदिकले आइकरे
आदिकरः आदिकरे
आइगरे परिसा
परिसा पलिसा चरणं चरण
चरणम् चलनं हिलंन हिरण
हिरण्य हिरण मरणं ] मरणं
मरणम्
पर्षत्
मलने
३ अनादि-असंयुक्त व्यंजननो लोप
अशोकनी धर्मलिपिओमां अनादि-असंयुक्त क, ग, च, ज, त, द, प, ब, म अने व लोपाता नथी त्यारे आगमोनी भाषामां प्राकृत भाषानी पेठे ए बधा अक्षरो लोपाएला छे:
आ०
सुकृतम् मिगे
मृगः
सं०
सुकतं
सुकयं मिए
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________________
उचावचछंदो समाजसि
एते
विवादे
पापुनाति
पशु
पसु
शत
सत
दोस
दोष
४ श, स, ष नो उपयोग
अशोकनी धर्मलिपिओमां श, ष, अने स नो उपयोग थएलो
छे त्यारे आगमनी भाषामां प्राकृत भाषानी पेठे मात्र एक 'स' न ज उपयोग थलो छेः
लि०
ओषढिनि ओसघानि
सार
शाल
३५
उच्चावयच्छंदो समायम्मि
पंचस
पंत्रषु
एए
विवाओ
पाउणइ
आ०
पसु
सय
दोस
ओसहाणि
सार
उच्चावचच्छन्दः
समाजे
एते
पंचसु
विवादः
प्राप्नोति
वगेरे
सं०
पशु
शत
दोष
औषधानि
सार
पञ्चसु
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________________
५ विजातीय संयुक्त व्यंजननी वपराश
अशोकनी धर्मलिपिओमां विजातीय संयुक्त व्यजनोनी वैकल्पिक वपराश घणी छे त्यारे जैन आगमोनी भाषामां प्राकृत भाषाना बंधारण प्रमाणे ए वपराश ज नथी.
आ० प्राण पान दिव्यानि । दिवाई
दिव्यानि दिवियानि । सेठे । सेठू
श्रेष्ठः ।
सं०
। पाण
पाण
प्राण
सेस्टे
... अस्ति
सहस्राणि
अस्ति । अस्थि अत्यि . सहसानि । सहस्साई सहस्रानि । पुत्र । पुत्त पुत । मित । मित्त मित्र नास्ति । नत्थि नथि समण । समण
मित्र
नास्ति
श्रमण
श्रमण
।
वगेरे
६ 'ख' '' '' 'भ' नो ह
अशोकनी धर्मलिपिओमा 'ख' थ'ध' अने भ' कायम
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________________
रहे छे त्यारे जैन आगमोनी भाषामा प्राकृत भाषा प्रमाणे ए चारेने स्थाने 'ह' थएलो छः
लि.
आ० लिहि
सं० लिखित
लिखित
सुह
सुख
यथा .
साहु
यथा
जहा तथा तहा
तथा बहुविध बहुविह
बहुविध वध वह
वध साधु
साधु आलाभितु आलहिउ
आलभताम्
वगरे ७ 'न' नोण'
अशोकनी धर्मलिपिओमां न' नो 'ण' नथी थएलो त्यारे जैन आगमोनी भाषामा प्राकृतना नियम प्रमाणे 'न' नो 'ण' यएलो छः
आ० देवानं
देवाणं
देवानाम् पियेन
प्रियेण अनुदिवसं
अणुदिवसं अनुदिवस
बहूणि दानं
दानम् महानससि
महाणससि महानसे ८ 'ण' नो न
लि.
पियेण
बहुनि
बहूनि
दाणं
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________________
लि.
लि.
अशोकनी धर्मलिपिओमा 'ण' ने स्थाने 'न' पण वपराएलो छे त्यारे आगमोनी भाषामां तेम नथी जणातुंः
অা
सं० गननास । गणने
गणने गणनसि । ९ 'त' नोट
अशोकनी धर्मलिपिओमा एकला 'त' नो के संयुक्त 'त' नो 'ट' थएलो छे त्यारे जैन आगमोनी भाषामा ए स्थळे प्राकृतनी प्रक्रिया प्रमाणे एकला 'त' नो 'ड' थएलो छे अने संयुक्त 'त' नो 'त' थएलो छः
आ०
.. सं० पटिवेदना पडिविअणा प्रतिवेदना पटिपाति पडिवत्ति
प्रतिपत्ति कट कड, कय
कृत मट
मड, मय कटव
कायन
कर्तव्य कटविय किति
कित्ति
कीर्ति किटी
वगेरे १० 'प' नो व
अशोकनी धर्मलिपिओमां प'नो 'व' नथी थएलो पण जैन आगमोनी भाषामा प्राकृतनी पेठे प नो 'व' थएलो छः लि०
आ०
सं० लिपि लिवि
लिपि कूपा कूवा
कूपाः पापम्
मृत
पा
पावं
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________________
प्रेरक प्रक्रिया ) आप ना प्रत्ययो
}
आपे
सामीप
हति
मञति
मनति
११ ' ' नो य
अशोकनी धर्मलपिओमां ' द्य' नो 'य' थलो छे त्यारे जैन आगमोनी भाषामा प्राकृतनी पद्धति प्रमाणे ' द्य' नो' ज्ज ' करवामां आवेलो छेः
अञ
अन
३९
हिरञ
पुञ
पुन
आव
आवे
सामीवं
०
आ०
उद्यान
उज्जाण
उयाम
उज्जम
१२ ' अ ' नो उपयोग अशोकनी धर्मलपिओमां
न्य
ण्य' अने '
' ने स्थाने
त्यारे जैन आगमोनी भाषामां ए
7
'ञ' नो पण उपयोग थएलो छे त्रणेने स्थाने प्राकृतनी प्रमाणे 'न्त्र, व्यवहार थलो छे:
'ण' के ' ण्ण' नो ज
सि०
अ०
हणंति, हन्नंति
मन्नइ
12
अण्ण, अन्न
हिरण्ण
पुन्न, पुण्ण
सं०
उद्यान
उद्यम
समीपम् वगेरे
ज्ञ
सं०
घ्नन्ति
मन्यते
अन्य
हिरण्य
पुण्य
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________________
जाति
नाति
रञो
१३ ति अने तु
नाइ
रण्णो
}
अशोकनी धर्मलिपिओनां क्रियापदोमां ' ति ' अने
आ०
होउ
होइ
करेइ
प्रत्ययो वपराएला छे त्यारे आगमोनी भाषामा प्राकृतनी शैली प्रमाणे ' इ ' अने ' उ ' प्रत्ययो वपराएला छे:
लि०
भोतु
होतु
होति
भाति
कलेति
आ०
सच्च
ज्ञाति
अच्चइअ
राज्ञः
वगेरे
निच्च
८
सं०
भवतु
भवति
१४ त्य नो च
अशोकनी धर्मलपिओमां ' त्य' नो 'वैकल्पिक रोते पराएलो छे त्यारे आगमोनी भाषामां प्राकृतना वोरण प्रमाणे 'त्य'
नो 'च' ज करवामां आवेली छे:
लि०
सातिय
सतिय
आचायिक अतियायिक
निच
करोति
वगेरे
च
सं०
सत्य
6
आत्यायिक
तु
नित्य
,
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________________
चन तिन
।
चय
त्यज
वगैरे
आ.
१५ नामने लगता प्रत्ययो प्रथमाना एकवचननो प्रत्यय--
चतुर्थीना एकवचननो प्रत्यय--
ए
स्त्रीलिंगी नामने लगता तृतीयाथी सप्तमी मुधीना
'प्रत्ययो-- य
१६ ' राजन् ' नां रूपो
अशोकनी धर्मलिपिओमां · राजन् ' शब्दनां ने जातमा रूयो मळे छे तेमांनुं एक रूप पण आगमोनी भाषामां मळतुं नयी ने मळे छे ते बघां प्राकृतनां धोरणे सघाएलां छः ।
लि. आ० लाजा.
राया लाजानो । रायाणो राजानो
सं० राजा
राजानः
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________________
लाजिना । रण्णा
राजा
रण्णो
लानिने लाजाने रो । रणो रानो आ उपरांत-~
ए धर्मलिपिभोमां अनादि ‘ट' नो 'ट' ज रहेलो छ (घटिते) त्यारे जैन आगमोनी भाषामा प्राकृत प्रमाणे 'ट' ने बदले 'ड' थएलो छे (घडिए)
.ए धर्मलिपिओमां 'अहं' ने बदले • हवं' रूप पण वपराएलु छे त्यारे आगमोनी भाषामां क्यांय ए रूपनो उपयोग ज नथी थएलो. _आ रीते अशोकनी धर्मलिपिओनी प्राचीन मागधीनुं स्वरूप 'पण वर्तमान आगमोनी भाषामां एने अर्धमागधी कहेवराववा पूरतुं य घटी शकतुं नथी, ए हकीकत उपर जणावेलां उदाहरणांथी ज जाणी शकाय एम छे. - ए आगमोनी छेल्ली संकलना थया पहेला, एमां जेवी भाषा अत्यारे छे तेवी नहि होय ए हकीकत तो आगमोमां रहेला केटलांक जूनां रूपो उपरथी ज जाणी शकाय एवी छे..
आगमोनी रचनासमयनी भाषाना अने देवर्धिगणिनी संकलना-. समयनी भाषाना अंतरने समनवा माटे गुजराती भाषानुं नीचेनुं उदाहरण बस छेः
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________________
४३
सं. १७३९ नी भाषा " समवसरगर्नु हुउं रे मंडाण, माणिक हेम रजत सुप्रमाण । सिंहासनी बईठा जिनवीर, दिई देशना अरथ गंभीर ॥ विद्युनमाली सुर तिहां आवइ, निन वांदी आनंद बहु पावइ। चरम केवली कुण प्रभु थास्यइ, श्रेणिक पूछई मन उल्लासइ॥ प्रभु कहइ सुणिश्रेणिक नृपचंद, ब्रह्मलोक सामानिक इंद ।। चउदेवीयुत विद्युनमाली, .. सातमे दिनि एचवी शुभशाली।। ऋषभदत सुत तुज पुर ठामई, चरम केवली जंबू नामई ।। होस्यइ ते सुणि देव अनाढी, हरषइ परखई निज कुल आढी॥" ( यशोविजयनीए रचेली अने तेमनी हस्तलिखित प्रतिमांथी । उतारेली)
सं. १९४४ नी भाषा समवसरणनो हुओ रे मंडाण, माणिक हेम रजत सुप्रमाण । सिंहासन बेठा जिन वीर, दीए देशना अर्थ गंभीर ।। विद्युन्माली सुर तीहां आवे, जिन वंदी आनंद बहु पाये। चरमकेवली कुण प्रुभ था, श्रेणिक पूछे मन उल्लासे ॥ प्रुभ कहे सुण श्रेणिक नृपचंद, ब्रह्मलोक सामानिक इंद। चउदेवीयुत विद्युन्माली, सातमे दिने ए चवी शुभशाली।। ऋषभदत्तसुत तुज पुर अमे, चरम केवली जंबू नामे। होस्ये ते सुणी देव अनाढी, हरखे परखी निजकुल आढी" ( यशोविजयजीए रचेली अने जंबुस्वामिना रासनी चोपडीमाथी उतारेली)
१ जूओ छट्ठी गूजराती साहित्यपरिषदनो रिपोर्ट पृ० ५२ . मुनि कल्याणविजयजीनो निबंध.
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उपर आपेली कविता एक न कर्तानो छे, छतां एमां काळभेदने लीधे केवो फेरफार थएलो छे, ए, जाडा अक्षरोमां मूकेलां रूपो उपरथी जणाइ आवे छे.
___ जो के २० मा सैकानी असरथी रूपांतर पामेली ए कवितामा १८ मा सैकानी कविनी भाषानां केटलां य रूपो जळवाइ रह्या छ तो पण रूपांतर पामेली ए कवितानी भाषाने काइ १८ मा सैकानी नहि कहेवाय तेम १८ मा सैकानी भाषाथी मिश्रित पण नहि कहे. वाय ते ज रीते श्री वीरना १००० मा सैकामां रूपांतरने पामेला ए. आगमोमां भगवान महावीरना समये रचाएला आगमोनी भाषानां केटलां य रूपो जळवाइ रह्यां होय तो पण ए वीरना १००० मा सैकामां रूपांतरने पामेला आगमोनी भाषाने काइ वीरना समयनी भाषा नहि कहेवाय तेम वीरना समयनी भाषाथी मिश्रित पण नहि कहेवाय. तात्पर्य ए छे के, भास वगेरे प्राचीन कविओनी, वररुचिनी अने छेवट अशोकनी धर्मलिपिओनी मागधी भाषानु थोडे घj पण स्वरूप वर्तमान आगमोमा रहेलुं होय तेम जगातुं नथी तो पछी आगमोनी भाषाने ' अर्धमागधी' नाम कइ रीते अपाय ?
अत्यार सुधी तो आपणे · अर्धमागधी' ना संबंधमां पुरातन ग्रंथ, लेख अने व्याकरणने आधारे विचार कर्यो, पण हवे ए संरंधमां आधुनिक ग्रंथकारोनो अभिप्राय पण जोइ लइए: ___ फक्त मार्कडेय अने क्रमदीश्वर सिवाय बीजा कोइ अर्वाचीन वैयाकरणे अर्धमागधीना स्वरूपने लगतो काइ उल्लेख को जणातो नथी.
मार्कडेय कहे छे के:-- ___“ शौरसेन्या अदूरत्वाद् इयमेवार्धमागधी ॥
प्राकृतसर्वस्व पृ० १०३
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________________
आम लखीने एज ग्रंथकार अर्धमागधीना उदाहरण तरीके आ वाक्य आपे छे----
" अय्न वि णो शामिणीए हिलिम्बादेवीए पुश्तघडुक्कअशोए 'ण उवशमदि" ( वेणीसंहार तृतीय अंक )
अने साथे-- __“ राक्षसी-श्रेष्ठि-चेटाऽनुकादरर्धमागधी " ए भरतनुं वाक्य पण टांकी बतावे छे. क्रमवीधर पोताना संक्षिप्तसारप्राकृतपादमा जणावे छे के,
___महाराष्ट्रीमिश्राऽर्धमागधी" ५-९८
आ उल्लेखनी व्याख्या करतां आचार्य विधुशेखर भट्टाचार्य आ प्रमाणे जणावे छे---
" अर्धमागधी शब्द टि द्वाराई जानिते पारा याईते छे ये; ए भाषार शब्दप्रभृतिर अर्धे अंश ठीक मागधी अर्थात् प्राकृतमागधी । तवे ताहार पर अपर अर्ध अंश कि ? क्रमदीश्वर बलियाछेन ताहा महाराष्ट्री-प्राकृतमागधी महाराष्ट्री सहित मिश्रित हईया अर्धमागधी नाम धारण करे।
ताहार उदाहरणलभशवशनमिलशुलशिलविअलिदमंदाललाजिदंहिजुगे । वीलजिने पक्खालदु मम शयलमवजनंवालं ॥"
पालिप्रकाशनी प्रस्तावना पृ० १६-१७ उपर्युक्त बने वैयाकरणोए जणावेलु अर्धमागधीन स्वरूप आगमोनी भाषामां घटी शके खरूं ? आ प्रश्ननो उत्तर आ० विधुशेखरजीए जणावेली उपर्युक्त गाथा ज आपी रही छे.
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________________
आ उपरथी वाचको जाणी शक्या हशे के, वैयाकरणोए अर्धमागधीनुं जे लक्षण नक्की कयु छे ते आगमोनी भाषामां घटे छ के नहि ?
मार्कंडेय वगेरेए नक्की करेलु अर्धमागधीन स्वरूप आ पुस्तकमा शौरसेनीमां अने मागधीमां आवी जाय छे, एथी पण अहीं अर्धमागधीने माटे जुदुं प्रकरण राखवामां नथी आन्युं.
नाम
कर्ता
चंड
प्राकृतना केटलांक व्याकरणोनां अने तेनी वृत्तिओनां नामो
संवाद १ प्राकृतप्रकाश वररुचि प्रसिद्ध छे २ प्राकृतलक्षण ३ प्राकृतव्याकरण हेमचंद्र ४ प्राकृतसंजीवनी वसंतराज आनो उल्लेख
मार्कंडेयना 'प्राकृत सर्वस्व'मांछे पृ० १
श्लो० ३. ५ प्राकृतकामधेनु लंकेश्वर ६ प्राकृतव्याकरण समंतभद्र ७ , वृत्ति त्रिविक्रमदेव
प्राकृत प्रक्रियावृत्ति उदयसौभाग्य प्रसिद्ध छे ...... (ढुंढिका)
९ प्राकृतप्रबोध नरचंद्र १० प्राकृतकल्पतरु रामतर्कवागशि
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________________
४७
११ प्राकृतचंद्रिका कृष्णपंडित (शेषकृष्ण) १२ ॥
वामनाचार्य १३ प्राकृतमनोरमा भामह भानो उल्लेख मार्क
डेयना । प्राकृत सर्वस्व 'मां छे पृ.
१ श्लो० ३. १४ प्राकृरूतपावतार
सिंहराज
प्रसिद्ध छ १५ प्राकृतदीपिका चंडीवरशर्मा १६ प्राकृतमंजरी कात्यायन प्रसिद्ध छे १७ प्राकृतसर्वस्व मार्कडेय १८ प्राकृतानंद रघुनाथशर्मा १९ प्राकृतप्रदीपिका नरसिंह २० प्राकृतमणिदीपिका चिन्नवोम्मभूपाल ‘षड्भाषाचंद्रिका'नी
प्रस्तावना पृ० १७
टि० पृ० १८ टि. २१ प्राकृतमणिदीप अप्पयज्वन् २२ षड्भाषामंजरी २३ षड्भाषावार्तिक २४ षड्भाषाचंद्रिका लक्ष्मीधर प्रसिद्ध छे २५ षड्भाषाचंद्रिका भामकवि २६ षड्भाषासुबतादर्श २७ षड्माषारूपमालिका दुर्गणाचार्य षड्भाषाचंद्रिका पृ०
२२-२-२-९ सूत्रनी वृत्ति.
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________________
४८
२८ संक्षिप्तसारप्राकृतपाद क्रमदीश्वर आ० विधुशेखरनीना
पालिप्रकाशनी प्रस्ता
वना पृ० १६ टि. २९ प्राकृतव्याकरण शुभचंद्र . जोएलु छे
आ उपरांत शाकल्य, भरत, कोहल (मार्कंडेयर्नु प्राकृत सर्वस्व पृ. १ श्लो० ३) भोज अने पुष्पवननाथ (षड्भाषाचंद्रिकानी प्रस्तावना पृ० १७ टि० ) आ पंडितोए पण प्राकृत व्याकरणो लखेला छे.
जे व्याकरगोना नाम अहीं आप्यां छे एमांना फक्त ६ के ७ जोवामां आव्यां छे, नामो तो बधां - बंगीय विश्वकोश' अने • केटलोगस् केटलोगोरम'माथी लईने मूकलां छे.
आ पुस्तकमां पालिप्रकाशनो उपयोग बहु करवामां आव्यो छे तेथी एना कर्ता आचार्य विधुशेखरजी तरफ मारी पूरी कृतज्ञता छ, ए सिवाय ने सजनाए मने बहु मूल्य सूचनो कर्या छे तेओ वधा तरफ पण हुँ पूर्ण कृतज्ञ छु,
आ पुस्तकमां खास करीने प्राकृतभाषा संबंधे ज सविशेष लख. वामां आव्यु छे अने बीजी बीजी भाषाओने लगता मात्र विशेष नियमो न दर्शाव्यां छे, उदाहरणो दर्शाव्यां छे खरां पण ते प्राकृत जेटलां नहि. अपभ्रंशने समजवा माटे सविशेष शब्दो अने उदाहरणो जरुर मूकवां जोइए पण स्थानाभावने लीधे अहीं तेम नथी बनी शक्यु.
माकृत भाषाना प्रथम अभ्यासीए प्रथम प्राकृत भाषाना ज नियमो तरफ विशेष लक्ष्य राखQ अने पछी बीजा वाचन वखते बीजी वीजी भाषाओने साथे लेची.
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________________
४९
আমাৰ बनारसमां अभ्यास करती वखते प्राकृतना प्राथमिक अभ्यास माटे प्राकृतमार्गोपदेशिका' नामे एक पुस्तक में आजथी १५ वर्ष पूर्वे लख्यु हतुं. ते पुस्तक करतां वधारे विगतवाळु अने विस्तृत व्याकरण लखवा माटे मुंबइनी जैनश्वेतांबर कॉन्फरन्स ऑफीसे मने प्रेरणा करी, तेथी सं० १९७७-७८ मां में कॉन्फरन्स ऑफीस माटे आचार्य हेमचंद्रनाज क्रम प्रमाणे मूळ आ व्याकरण तैयार कर्यु हतुं. पाछळथी ए पुस्तक रा० रा०केशवलाल प्रेमचंद मोदी तरफथी पुरातत्त्वमंदिरने छापवा माटे आपवामां आव्यु, मंदिरे एने छपाववानो निर्णय को अने 'आखं पुस्तक हुं फरी एकवार जोइ जाउं अने साथे साथे तुलनात्मक पद्धतिनो पण एमां उपयोग करूं' एवी सूचना मने मंदिरना मंत्री भाइ श्रीरसिकलाल परीख तरफथी करवामां आवी, जे मने एक रीते विशेप उपयोगी लागी अने तेना परिणामे पूर्वे लखेलं आखं पुस्तक फरी तपासी तेमां आवश्यक सुधारा वधारा करी हालना रूपमा ए प्रकट करवामां आवे छे. ए माटे ए बधा प्रेरकोने साभार धन्यवाद घटे छे.
बेचरदास जीवराज दोशी
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________________
५०
विषयानुक्रम
प्रकरण १ लुं पृ० १-३ वर्णपरिचय , प्रकरण २ जुं पृ० ४-९
सामान्य स्वरविकार नियमांक उद्देश्य . विधेय
दीर्घस्वर = हूस्वस्वर दीर्घस्वर = हस्वस्वर (पालि)टि०१+ हस्वस्वर = दीर्घस्वर हस्वस्वर = दीर्घस्वर (पालि) टि० २
ॐo
r
ए (पालि) टि. १
HHHH 444 mins
ओ ओ (पालि) टि०२ अ अ (पालि) टि. ३
rarur krinar,
-
रि (पालि) टि. १
9 |
+ 'टि० ' एटले टिप्पण
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८
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९
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९.
Page #52
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________________
• प्रकरण ३ जुं पृ० १०-२८
सामान्य व्यंजनविकार नियमांक उद्देश्य विधेय
अंत्यव्यंजन = लोप अंत्यव्यंजन - लोप (पालि) टि० १ १० असंयुक्त कादि' = लोप (१) त = द (शौरसनी, अपभ्रंश)
त = द (पालि) टि० १ १२ __ = य ( मागधी) __= य (पालि) टि० ३ ___ = त ( पैशाची) द = त ( . , ) द = त (पालि ) टि० ४ १२ ___ = क ( चूलिकापैशाची) १३
__ = क ( पालि) टि० १ १३ __ ज = च (चूलिकापैशाची) १३
ज = च ( पालि ) टि० २ १३ (५) क = ग ( अपभ्रंश) १३
क = ग ( पालि ) टि० ३ १३ संयुक्त कादि' = लोप
क्त = त* (पालि ) टि० १ १
क्थ = त्थ (,) , १४ * 'क्त' वगेरे संयुक्त अक्षरोने स्थाने 'त' वगेरेने स्थापित करवा माटे प्राकृतव्याकरणमां आद्याक्षरना लोपनी अने द्विभाविनी प्रक्रिया दर्शावेली छे अने ए ज कामने सारु पालिप्रकाशमां 'क्त' वगेरेना 'त' वगेरे आदेशो करेला छे.
55 vivFF
Page #53
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________________
१४ १४
म
Kirwww BP
0
- प्फ(,) टि ४ - = ग (.,) टि० ५ = त (,) टि. ६ -- च्छ (पालि ) टि० १ = म (,) टि० २ = छ (,) टि० ३ = 8 (,) ,, , = कर ,,), " = प्प (.), " = ख (,) टि. ५ = क (,) , , = प्प (,) ,, , = थ (,,) ,, ,
= त्थ (,), " संयुक्त मादि' - लोप
= स्स*( पालि ) टि०७ = ग. ( ,,) टि० २
= ड्ड (.,) टि० ३ संयुक्त · लादि' = लोप
= क ( पालि ) टि० ४ = ध (,) टि. ५ = ६ (,) टि०६ = क (,) टि० १
= क (,) टि. २ * जूआ आगला पृष्ठ- टिप्पण,
Page #54
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________________
r or or or or
- (१) २'
लोप ( अपभ्रंश) = लोप
= लोप (पालि) टि० २ • अंत्यव्यंजन ' नो । अ 'कादि' नो 'य'
= य (पालि ) टि. ४
= य ( पालि ) टि० ५ खादि' नो 'ह'
= ह (पालि ) टि. ३ = ह (") दि. ४ = ह (,) टि०५ = ध ( शौरसेनी) - ख ( चूलिकांपैशाची) = थ (..)
फ (,) छ (1)
_ee
or ora-or
r
& e
04 ल4 ना 444444444 .
or M
ड (पालि ) टि०१ = तु (पैशाची)
अननस
१
.२२
ee
= क (पालि ) टि० १ - ट ( चूलिकापैशाची) - 8 (,) = न ( पैशाची ) .
M M
(१) ण
२३
Page #55
--------------------------------------------------------------------------
________________
= न ( पालि ) टि० १
CU
३
(पालि ) टि० २
(पालि ) टि० ३
ब ( अपभ्रंश)
: भ ( अपभ्रंश) = प ( चूलिकापैशाची) = प ( पालि ) टि० १
mmnAcccccccwwwwws
Seeeee
२५
२५
- व (पालि) टि० २ व ( अपभ्रंश)
ज (पालि) टि० १ २६ य (मागधी) = ल ( मागधी, पैशाची) २६ ळ (पैशाची)
= स = स ( पालि ) टि० १ २७ -- स (,) , २७
Page #56
--------------------------------------------------------------------------
________________
स = श ( मागधी)
२७
२१
प्रकरण ४ थु पृ. २९-४३
संयुक्त व्यजनोना सामान्य फेरफारो नियमांक उद्देश्य
विधेय == ख, क्ख
२९-३० = छ, च्छ
२९-३० झ, ज्झ
२९-३० - ख, क्ख (पालि) टि० १ २९-३० == छ, च्छ (") ., २९-३० = झ, ज्झ (,), २९-३० = च (,) टि० २ २९ = = क (मागधी) = ख, क्ख = ख, क्ख = ख, क्ख (पालि) टि० ३ ३०
= ख, क्ख (पालि) टि० ३ ३० (१) संयुक्त 'घ' = स ( मागधी)
" (पालि ) टि० १ ३१ संयुक्त 'स' - स ( मागधी)
, (पालि ) टि. १ -- च, च = च, च्च (पालि) टि० ४ ३१
= च, च त्व . = च ( पालि ) टि. १ ३२
०
० ०
स्क
"
२४
र
र
॥
और
त्व
॥
Page #57
--------------------------------------------------------------------------
________________
##
WW WWWW
२६
= च्छ ( पालि ) टि० ३ = च्छ = च्छ ( पालि ) टि० ३
च्छ ( पालि ) टि० ३
३२
اللي
S
س له،
س ل ولی
س
لس س
= च्छ (पालि ) टि० ३ == श्च ( मागधी) = ज, ज्ज = ज, ज्ज = ज, ज्ज = ज, ज्ज ( पालि ) टि० १ ३३. = य्य (,) ,, , ३३ = यिर, य. रिय (,) टि० २ ३३ = य्य ( शौरसेनी) ३४ = य्य ( पालि (टि०१ ३ = य्य ( मागधी) = य्य ( पालि । टि० २ ३४ = झ, ज्झ = झ, ज्झ (पालि) टि०.३ ३४ = झ, ज्झ = यह ( पालि) दि० ५ ३४
३
Page #58
--------------------------------------------------------------------------
________________
-921 22n
= ट (पालि ) टि. २ = न्द (शौरसेनी) = ण, पण = न (पालि) टि. १ ३६ = ण, पण = ण (पालि) टि. १ ३६ = ञ (मागधी) ३६ = ञ (पालि) टि. १ ३६ = न ( मागधी) ३६ = न "
३६ = ञ (पालि) टि ४ ३६ = ञ (मागधी) ३१ = ञ (पालि) टि.४ ३९ == थ, त्य - थ त्य (पालि) टि० १ ३७ = स्त (मागधी) - स्त (,) = ठ, = (पालि) टि० ३ = १ (पालि) टि०४ = स्ट (मागधी) -स्ट (,) - सट (पैशाची) = प, प
A
Naca or or nnm
(१) ४ ३३ . ड्रम
Page #59
--------------------------------------------------------------------------
________________
३८
= प, प्प = डुम (पालि) टि० १-२ ३८ = कुम (,)" , ३८ = च्म (पालि) टि. ३ ३८ = फ, प्फ = फ, प्फ = प्फ (पालि) टि० १ ३९ = क, फ (..) " , ३९ - प्प टि० २ १९ = प्प टि. २ = प्प (पालि) टि० २ -प्प (") " = भ, ब्भ = म ( पालि) टि०.३ - म्म = म्म (पालि) टि. ४
गुम (पालि) टि०५
= म्ह (पालि) टि० १ - म्ह ( ") ""
Page #60
--------------------------------------------------------------------------
________________
== म्भ ( अपभ्रंश)
०२
SATHot
.
०
ore occcccc occccc
०
Y
== ण्ह, ह (पालि )टि० ३ ४० = ण्ह (,), , ४० == ण्ह (पालि) टि० ३ ४० = छह (,) टि० ३ ४० = ण्ह (")", ४० = ण्ह (,) , , ४० = सिन ( पैशाची ) ४१ = सिन ( पालि ) टि० १ ४१ = ल्ह = हिल ( पालिटि४१
AAEENo oil - AADH
- ज (पालि ) टि० ३ ४१ = रिह रह, रिह (पालि) टि. ४ ४१
४२
-रिस - रिस
= रिस ( पाटि) टि. १ ४२ - रिस (1) , , ४२
Page #61
--------------------------------------------------------------------------
________________
४४
४५
४६
४७
४८
संयुक्त 'ल'
र्य
(१) र्य
फ
र्य
hd h
ह्य
ह्य
संयुक्त 'बी'
(क) अ
( ख ) अ
( ग ) अ
(घ ) अ
(ङ) अ
(च) अ
(छ) अ
( ज ) अ
( झ ) 'अ'
६१
ल ऊ ऊ ऊ
=
=
1
रिअ
रिय ( पैशाची )
= रिय ( पालि ) टि० ४
=
-
यह
= यह (पालि ) टि० १
उवी
=
प्रकरण ५ मुँ ४४-६२
स्वरना विशेष विकारो
'अ' विकार
आ
=
इल
1
hops D
11
=
=
" ( पालि ) टि० २
3
इ
ई
ए
ओ
= अइ
आइ
लोप
आ ( पालि ) टि० १
इ ( ) टि० ० १
97
" ) टि० २
= उ (
= ए (
73
) टि ०
४२
४२
૪૨
४३
४२
४४--४७
१
ર્
**
४३
४४
४५
४५
**
Page #62
--------------------------------------------------------------------------
________________
mor" 60ल
॥
॥
'आ' विकार
४७-४९ (क) आ (ख) आ (ग) आ (च) आ
(छ) आ । (ज) आ (स) आ = ओ
आ = अ (पालि) टि० २ ४७ आ - ए ( ,, ) टि० २ ४९ 'इ' विकार
४९-५१ (क)इ
= अ (ख) इ (ग)इ (३)इ (ङ) इ . = ओ (च) नि
= अ (पालि) टि०६ ___ : उ (., ) टि. २ ५० __ए (,) टि. १ ५१ इ = ओ (, ) टि० २ ५१ 'ई' विकार
५१-५३ (क)ई - अ (ख) ई (ग)ई
___www
Surve
hr hr hr hur
Page #63
--------------------------------------------------------------------------
________________
"
(क) ई
Arwew
६२
= अ (पालि) टि.४ ११ 'उ' विकार
५२-५४ (क) उ (ख) उ (ग) उ (घ) उ
Shortur HD
(च)
उ - अ (पालि) टि.१ ५३ उ - इ (पालि) टि०२ ५३ उ =ओ ( पालि) टि.१ ५४ 'ऊ' विकार
१४-१.५ (क)
-
*
(ख) ऊ
hop ups
m
(ग) ऊ (५) ऊ (ङ) ऊ (च)
= अ (पालि) टि०२ ५४
= अ (संस्कृत) टि० २ ५४ ___= ओ (पालि) टि०२ ५५
બ બ
બ
9
Page #64
--------------------------------------------------------------------------
________________
५४
५५
५६
( क ) ऋ
( ख ) ऋ
( ग ) ऋ
(त्र ) ऋ
(ङ) ऋ
(च) ऋ
(छ) ऋ
( ज ) ऋ
( झ ) ऋ
( १ ) ऋ
我
ऋ
( क ) ए
(ख) ए
Ꭼ
( क ) ऐ ( ख ) ऐ
( ग ) ऐ
(घ) ऐ
ऐ
૬
'ऋ' विकार
= आ
- इ
11
=
ए
ओ
अरि
दि
= रि
= इ ( पैशाची )
= इ (पालि) टि० ३
= उ ( पालि ) टि० १
= ए (पालि ) टि० २
-
=
=
'ए' विकार
=
उ
=
=
=
ऊ'
'ऐ' विकार
= अअ
ऊ
ओ (पालि ) टि० २
-
-
इ
ho s
इ
अइ
इ (पालि) टि० १
२
ई (,, )
"
५५-५९
१९
५५
५७
५७
१९
५९
५९
५९-६०
६०
६०
Page #65
--------------------------------------------------------------------------
________________
५७
'ओ' विकार (क:) ओ(ख) ओ = ऊ (ग) ओ = अउ, आअ ‘औ' विकार (क) औ __= अउ
- आ
(ख) औ
(ग)
(घ)
AVM
= आव = अ (पालि) टि० १ - आ ( , ), १ = उ (,) टि० १
औ
६१ ६२
प्रकरण ६९ पृ० ६३-७४
असंयुक्त व्यंजनोना विशेष फेरफारो नियमांक उद्देश्य विधेय ५९ क' विकार
क = ख क = ग
FFr
Page #66
--------------------------------------------------------------------------
________________
६०
६ १
६२
६४
६५
ts If
क
6
क
'ख' विकार
ख
'ग' विकार
५५
ग
ग
ग
च' विकार
च
च
च
च
च
'ज' विकार
ज
'ट' विकार
ट
ट
ट
'ठ' विकार
04 of
ठ
ठ
'ण' विकार
156
ण
६६
= ख (पालि) टि० १
= ग ( " ) दि० ३
= क
= म
= ल
=
= ज
ट
11
=
=
स
= ज (पालि) टि० ३
#
=
=
व
11
=
Is
=
= ल
झ
८५
he
ल, ळ (पालि) टि० १
ल
ह
= ल
ण = ळ (पालि) टि० ३
६३
६३
६४
v
६४-६५
६४
६५
६
૧
६५
६५
६५.
६५.
Page #67
--------------------------------------------------------------------------
________________
'त' विकार
६५-६७
AA
A
स
NMAA 94
२
- ट (पालि) टि. १
६६
त 'थ' विकार
थ थ
थ 'द' विकार
= - ध - ठ (पालि) टि० ३.
७०
६७
(क) द (ख) द
v_s_
s
o
vishr
= ड (पालि) टि० १ - ळ (पालि) टि० ५
६८ ६८
Page #68
--------------------------------------------------------------------------
________________
६८
10.
ध
'ध' विकार
= ढ न' विकार
न न
- ल
= ल (पालि) टि० १ प' विकार
६९
प
- म
प
६९
= फ (पालि ) टि० २ '' विकार
१४
व = म ब - य
__= भ ( पालि) टि. ४ 'भ' विकार म - व
म' विकार म = 3
म. = स * म ' अनुनासिक
Page #69
--------------------------------------------------------------------------
________________
७७
७०-७१.
'य' विकार य = आह य =ज्ज
2
य य
-ल = व
44 4
= र टि० १ - ल (पालि) टि० ३
= व ( , ) , ४ ७० र' विकार
७१-७२
७.
'ल' विकार
___ = न ( पालि) टि० १ ।। 'व' विकार
Page #70
--------------------------------------------------------------------------
________________
'श' विकार
७२-७३
= छ (पालि) टेि० ५ 'प' विकार
७३
७३
छ (पालि ) टि. १ 'स' विकार
स
= छ
ह' विकार
७३-७४
'क' लोप .
Page #71
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रकरण ७ मुं संयुक्त व्यंजनोना विशेष फेरफार
उद्देश्य विधेय
नियमांक
पृष्ठ
(क)क्त (ख ) ग्ण (घ)ष्ट
- क = क (पालि) टि. १ = मग (पालि) टि. २
क्ख, ख - क्ख = ख
८७
७५-७६
(क) क्ष्ण (ख) स्त (ग) स्थ (घ) स्फ
(क) क्त (ख) ल्क
( पालि) टि० २
(क) (ख) थ्य
च्छ, छ
(क) स्थ (ख) प (ग) स्प
Page #72
--------------------------------------------------------------------------
________________
९१
९२
९३
९४
९५
९६
९७
न्य
न्य
न्ध
ে
( क )
( ख )
( ग ) स्त
त
1595
(क) र्थ
(ख) स्त
( ग ) स्थ
25
स्थ
र्थ
स्थ
स्थ
( क ) र्त
(ख) र्द
( क ) र्ध
7
७२
Lot
ज्झा
1
il
ज्ज
ञ्ज ( पालि ) टि० २
M
1=
- ट्ट
ढ
-
ञ्ज.
= ह्
= ट (पालि) टि० २
ड, ठ
=7
ज्झा
!M 11
ञ्चु
=
ड
= ठ
kad
=
tvo
ट्ठ
=
ड (पालि ) दि० ३ ट (पालि) टि० ४
ho
ठ
Foo
중
ठ्ठ (,, ) टि० ४
פט
{, =
how
७६
७७
७७
७८
७७
७७-७८
1060
७८
७८
७९
Page #73
--------------------------------------------------------------------------
________________
९८
९९
ܘ ܘ ܐ
ܐܘܐ
१०२
ग्ध
व्ध
(ख)
दू
दक्ष जुज्ञ
ग्व
The hote
دنا
न्द्र
( क ) च
(ख) त
(ग) ह्न
न्त
( क ) त्स
( ख ) त्म
12
ट
न्य
हून
त्म
म
૭૩
11
pra29 - -ি hত ধত ফির রি
11
= ट्रु
3
एट, ण्ड ण्ण
?
= पट
ण्ड
10
|
ड्ड ( पालि ) टि० १
ण्ण
ण्ण
far
2214 22
= ण्ण
= ण्ट ( पालि ) टि० २
त्थ
त्थ
== त्य
द्ध
51
द्ध
न्त, न्ध
सन्त
F#
प्प, प्फः फ
- प्प
- घ्फ
""
39 29
ܕܕ ܕܕ
७८
७९-८०
७९. <0.
:
८०.
८०.
८०-८१
Page #74
--------------------------------------------------------------------------
________________
१०३
१०४
१०५
१०६.
१०७
( क )
( ख )
( ग )
F10155
( घ )
म
(ङ)
स्म
त्म
( क ) इम
( ख ) ह्म
म्र
र्ध्व
( क ) र्थ
(ख) है
( ग ) त्र
म्र
व्भ, स्व, म्भ
ण्ड
र्य
र्य
७४
स्प
- फ
H
C
H
H
टप
तुम ( पालि ) टि० ४
=
= म्ब (पालि) टि० २
कभ
= र
र
- र
ल. ल
= ल
ho
म्भ
म्भ
=
= ( पालि ) टि० १
स्स
ल
इस
क्ष ह
ख÷ ह
ह
ह
i=8 र्ष ह
=
८०
८१
८१
८१
८२
८२
८२
८२-८३
Page #75
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्प = ह
(च) (छ) म = ह द्विर्भाव
८१-८४ (क) जुदा जुदा शब्दोमां द्विर्भाव
सामासिक शब्दोमां द्विर्भाव शब्द-विशेषविकार
८४-८६ " " (पालि) टि० १ ८५ " , (पालि) टि. १ ८६ शब्द-पर्वथाविकार . ८६-८७ " " (पालि ) टि० ३ ८७
अन्तःश्वरवृद्धि
८८-९० " (पालि ) टि. १ ८८
३-६-६-७ " (पालि ) टि० १-२ ८९
९० ०-९१
११२
(१)
" (पालि) टि०२-३ अक्षर-व्यत्यय
अपभ्रंश-आदेशो अपभ्रंशनां उमेरणो 'व' नो वधारो 'अ' नो वधारो र' ना वधारो
--
-
--
-
-
Page #76
--------------------------------------------------------------------------
________________
१
३-४-९ ६-७-८-६-१०
११-१९
११
१२-१३
**
(8
kr
विसर्ग
""
ू
G
संधि प्रकरण ८ मुं
स्वर संधि
ञ
ण
न
'ण'
'न'
6
"5
ह्रस्व-दीर्घविधान
ह्रस्व 'नो दीर्घ
""
"
12
""
11
" ( पालि ) टि० १
77
'दीर्घ' नो ह्रस्व (वैदिक सं०) टि० २
" (संस्कृत) दि०२
संधिनिषेध
स्वरलोप
=
(पालि ) टि० २
( पालि ) टि० १
=
=
,, (वैदिकसं ० ) टि०१
""
-
19 ""
व्यंजन संधि
ओ
अनुस्वार
९२ - १०१
९२-९३
९२:
९३.
९३-९९.
( संस्कृत ) टि० १
,, (पालि ) टि० १-२
,, १
""
37
९६-९७
९६
९७
९७-१०१
33
अनुस्वार
= अनुस्वार
== अनुस्वार
अनुस्वार
आगम (शौरसेनी )
९४
९४.
९ ४
९४
९४.
६५
(पालि ) टि०३ ९७
९८
( पालि ) टि० १ ९८
Page #77
--------------------------------------------------------------------------
________________
७७
१५-१६
अनुस्वारआगम " , (पालि) टि. १ ९९ 'म' आगम अनुनासिकविधान
, , (पालि ) टि०२ १०० 'अनुस्वार' लोप
१००-१०१ " (पालि) टि० ३ १०० ,, (संस्कृत) टि०४ १००
१९
प्रकरण ९ मुं १०२-१२२ उपसर्ग-अव्यय-निपात उपसर्ग
१०२-१०३ अव्यय
१०३-११९ निपात
११९-१२१ अपभ्रंशमां आवता केटलाक निपातो १२१-१२२
नामप्रकरण१०
मुं नामना प्रकारो नामना अन्त्यस्वरनो फेरफार नामनी जातिओ वचन-विभक्तिओ प्राकृत भाषाना प्रत्ययो शौरसेनी भाषाना प्रत्ययो मागधी भाषाना प्रत्ययो पैशाची भाषाना प्रत्ययो
१२३-२३८
१२३ १२३ १२३ १२४ १२५ १२५ १२५
१२६
Page #78
--------------------------------------------------------------------------
________________
७८
१२६
१२८
अपभ्रंश भाषाना प्रत्ययो
१२६ प्राकृत प्रत्ययोने लगता नियमो प्रत्ययो लागतां नामना मूळ अंगमां थता फेरफारो
१२७ शौरसेनी प्रत्ययने लगता नियमो १२८ मागधी प्रत्ययने लगता नियमो पैशाची , " "
१२८ अपभ्रंश , , ,
१२९ अपभ्रंश प्रत्यय लागतां अंगमां थता फेरफारो १२९
स्वरांतशब्दो १३०-१८१ अकारांत शब्दनां रूपाख्यानो प्राकृत ( पुलिंग ) १३० ,, ,, (पालिरूपाख्यानो पुंलिंग) टि० १ १३० वध' शब्दनी विशेषता
१३१ चतुर्थी- आर्षप्राकृतरूप
१३१ पीर (शौरसेनीरूपो)
१३२ वील ( मागधीरूपो)
१३२ वीर (पैशाचीरूपो) पीर ( अपभ्रंशरूपो)
१३३ अकारांत शब्दनां प्राकृत रूपाख्यानो ( नपुंसकलिंग ) १३३ कुल प्राकृतरूयो
१३४ कुल (पालिरूपो) टि. २ 'मणसा' वगेरे आर्षरूपो (टि०१) 'मनसा' ,, पालिरूपो ( ,,,) 'कम्मुणा' वगेरे आर्षरूपो (टि०) 'कम्मुना' , पालिरूपो (,)
१३४
१३५
१३५ १३६
१३६
Page #79
--------------------------------------------------------------------------
________________
कुल ( अपभ्रंशरूपो) कुलभ ( अपभ्रंशरूपो) अकारांत-सर्वादि-शब्द
उवह (टि०२) 'त्या' सर्वनाम (पालि) टि०.४ सव्व प्राकृतरूपो सव्व ( पालिरूपो) टि. ३ सव्व ( शौरसेनीरूपो) शव्व ( मागधीरूपो) सव्व (पैशाचीरूपो ) सव्व, साह ( अपभ्रंशरूपो) त, ण प्राकृतरूपो त, न (पालिरूपो) टि०१ त (अपभ्रंशरूपो) ज प्राकृतरूपो ज ( पालिरूपो) टि० ३ ज ( अपभ्रंशरूपो) के प्राकृतरू क ( पालिरूपो) टि. ३ क, कवण, काई ( अपभ्रंशरूपो) इम प्राकृतरूपो इम ( पालिरूपो) टि०१ आय ( अपभ्रंशरूपो) एअ प्राकृतरूपो एअ ( पालिरूपो ) टि० १ . .
२
१४२
१४३
ccc
oc
१४५ १४६ १४६
Page #80
--------------------------------------------------------------------------
________________
१५१
१५३
१५३
१५६
१५६
एद, एअ ( अपभ्रंशरूपो)
२४७ अकारांत सर्वादि (नपुंसकलिंग) १४८-१५१
तुम्ह प्राकृतरूपो तुम्ह ( पालिरूपो) टि० ३
१५१ अम्ह प्राकृतरूपो अम्ह ( पालिरूमो ) टि० ३ तुम्ह ( अपभ्रंश)
१५५ अम्ह (अपभ्रंश)
१५५ आकारांत शब्दनां रूपाख्यानो ( पुंलिंग)
हाहा
षड्भाषाचंद्रिकानो मत टि०१ इकारांत, उकारांत शब्दना रूपाख्यानो ( पुंलिंग) १५७
प्राकृत भाषाना प्रत्ययो प्राकृत प्रत्ययोने लगता नियमो
इसि प्राकृतरूपो इसि ( पालिरूपो ) टि०१ अग्गि ( , ) टि. मुनि ( , ) टि० आदि (,) गिरि ( , ), रंसि ( " ) , सखि ( , )
१६०-२६१ गामनी (, ),
१६१ कुच्छिसि आर्षरूप टि० १
१५७
Page #81
--------------------------------------------------------------------------
________________
१६६
'इन्' छेडावाळां नामोनी विशेषता (शौरसेनी वगेरेमां)
१६२ दडि ( पालिरूपो) टि. १ १६२-१६३ भाणु प्राकृतरूपो
१६३ भानु ( पालिरूपो ) टि. २
१६३ हेतु ( , ) ,
१६४ जंतु ( , ),
१६४ अभिभू ( , ) , १६४-१६५ महभू ( . ) सव्व ( , ), अमु प्राकृतरूपो
अमु ( पालिरूपो ) टि.? इकारांत उकारांत शब्दने लागता अपभ्रंश प्रत्ययो १६७
इसि ( अपभ्रंशरूपो) भाणु ( , )
१६८ इकारांत, उकारांत शब्दनां रूपाख्यानो (नपुंसकलिंग) १६९
दहि प्राकृतरूपो दधि ( पालिरूपो) टि० २ गामनी ( , ) टि० २
१६९ महु प्राकृतरूपो
१७० मधु ( पालिरूपो ) टि. १
१७० गोत्रभ ( पालिरूपो) टि. १ अमु प्राकृतरूपो अमु ( पालिरूपो) टि०१ दहि ( अपभ्रंशरूपो) महु ( ५ )
१७१
१६९
१६९
१७०
१७१
१७१
Page #82
--------------------------------------------------------------------------
________________
८२
१७३. १७३
१७४
ऋकारांत शब्दना रूपाख्यानो (पुंलिंग)
विशेष्यवाचक ऋकारांत पिउ, पिअर प्राकृतरूपो पितु (पालिरूपो) टि. १ विशेषणवाचक ऋकारांत दाउ, दायार प्राकृतरूपो दातु ( पालिरूपो) टि. १ पि पिद पिइ पिदि पिउ अपभ्रंश
१७५
१७५.
१७६-१७७
पिअर पिदर
१७८
ऋकारांत शब्दनां रूपाख्यानो (नपुंसकलिंग )
१७८ सुपिअर प्राकृतरूपो दायार ,
. १७८ एकारांत अने ओकारांत शब्दना रूपाख्यानो
गो ( पालिरूपो) टि०१ १७९-१८० सुरेअ प्राकृतरूपो
१८० 'गो' अने नौ'नां आर्षरूपो दि० १८० गिलोअ प्राकृतरूपो
१८१ व्यंजनांत शब्दो
१८१-२०३ षड्भाषाचंद्रिकानो मत टि. १
१८१
Page #83
--------------------------------------------------------------------------
________________
भगवंत
प्राकृतरूपा
भयवंत । प्राकृतरूपो
'अत्' छेडावाळां नामो
१८२ " " नामोनां आर्षरूपो १८२ , नामानी शौरसेनीमां विशेषता १८२
१८३ भगवंत (पालिरूपो) टि० १ भवंत प्राकृतरूपो भवंत (पालिरूपो) टि० ? मंत " " " भवंत ( वर्तमान कृदंत) गच्छंत ( पालिरूपो) टि. ? महंत , ) ,, ,, अरहंत ( , ). " भवमाण प्राकृतरूपो
भविस्समाण , 'अत्' छेडावाळां नामो (नपुंसकलिंग)
भगवंत प्राकृतरूपो
, (पालिरूपो) टि० ?
गच्छेत ( , ) , " 'अत्' छेडावाळां नामो ( अपभ्रंशरूपो )
भगवंत (पुंलिंग)
भगवंत (नपुंसकलिंग) ' अन् ' छेडावाळां नामो (पुंलिंग)
अद्धाण प्राकृतरूपो रायाण " मुकम्माण प्राकृतरूपो
Vofo
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--------------------------------------------------------------------------
________________
१९१
१९२
१९४
'अन् ' छेडावाळां नामोने लागता विशेष प्रत्ययो १९०
पूस प्राकृतरूपो महव "
१९१ अप्प ,
अत्त, आतुम (पालिरूपो) टि० १ 'राय' शब्दनी प्रक्रिया अने विशेषता १९३-१९५ राज ( पालिरूपो) टि० (२)
१९३ ब्रह्म ( , ) टि० अद्ध ( , ) टि. युव ( , ) टि. मुद्ध ( , ) टि. सा ( " ) टि. राय प्राकृतरूपो राय (पैशाचीरूपो) मुपूस प्राकृतरूपो (नपुंसकलिंग) मुअप्प , मुअप्पाण" सुराय , पूस, पूसाण (अपभ्रंशरूपो) मुपूस ( , नपुंसकलिंग ) २०१ मुपसाण ( , )
२०१ ' अस्' छेडावाळां नामो पुम (पालिरूपो) टि० ३
૨૦૨ स्त्रीलिंग
२०३-२२८ आकारांत शब्दोनी प्रक्रिया
२०३
७
२००
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________________
०
०
०
०
०
०
०
०
०
०
०
ईकारांत , , स्त्रीलिंगी नामोने लागता प्राकृत प्रत्ययो प्राकृत प्रत्ययोने लगता नियमो विशेषता अपभ्रंशना प्रत्ययो अपभ्रंशना प्रत्ययोने लगता नियमो माला प्राकृतरूपो ,, (पालिरूपो) टि०१ वाया प्राकृतरूपो गइ प्राकृतरूपो रति (पालिरूपो) टि. १ घेणु प्राकृतरूपो यागु (पालिरूपो) टि. १ नई प्राकृतरूपो नदी (पालिरूपो) टि० १ वढू प्राकृतरूपो वधू ( पालिरूपो ) टि. २ माला (अपभ्रंशरूप) मइ ( ,) पइट्टी ( , ) वेणु ( " ) बहू ( " ) मर्वादि (स्त्रीलिंग) सन्वा (पालिरूपो) टि० १ .
२१२
२१२
२१३
२१३ २१५
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________________
ती, ता ।
प्राकृतरूपो
२१९
२१९
२२०
२२१ २२१ २२१
२२३
णी, णा ता ( पालिरूगो) टि० ३ जी, जा प्राकृतरूपो की, का , इमा, इमी , इमा ( पालिरूपो) टि०२ एआ, एई प्राकृतरूपो एता (पालिरूपो) टि०१ अमु प्राकृतरूपो अमु (पालिरूपो) टि०२ ऋकारांत स्त्रीलिंग माआ, मायरा प्राकृतरूपो मातु (पालिरूपो) टि. २ षड्भाषाचंद्रिकानो मत (टि. १) धूआ प्राकृतरूपो धातु (पालिरूपो) टि०२ गउ प्राकृतरूपो गाई ,
२२३ २२३
२२४ २२४ २२४
२२६
२२६
२२६
२२७
गोणी ."
૨૨૭ २२७
२७
२
गो ( पालिरूप) टि. १ नावा प्राकृतरूपो
संख्यावाचक शब्दो इक्क प्राकृतरूपो
२२९-२३८
२२९
उभ
"
२२९
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________________
उभ ( पालिरूपो) टि०१ दु प्राकृतरूपो द्वि (पालिरूपो) टि. १ ति प्राकृतरूपो ति (पालिरूपो) टि०१ चर प्राकृतरूपो चतु ( पालिरूपो) टि० १ पंच प्राकृतरूपो पंच ( पालिरूपो) टि. १ कई प्राकृत रूपो कति (पारिरूगो) टि०१ संख्यावाचक शब्दोनी यादी
२२९ २३० २३० २३१ २३१ २३२ २३२
२३३
२२२ २३४
२३४ २३४-२४८
कारक-विभक्त्यर्थ प्रकरण ११ मुं० २३९-२४१ १ जुदा जुदा अर्थमां षष्ठी विभक्तिनो प्रयोग २३९
" , , , (संस्कृत) टि०१ २३९ २ , , सप्तमी ., प्रयोग २३९ ३ पंचमीने बदले तृतीया अने सप्तमीनो प्रयोग .४ सप्तमीने बदले द्वितीयानो प्रयोग । तेणं कालेणं ते समएणं' नी विभक्तिनो
विचार टि०५ २४०-२४१
c ०
२४०
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--------------------------------------------------------------------------
________________
८८
आख्यात प्रकरण १२ मुं
२४२-२९८
संस्कृत, पालि अने प्राकृतमां धातुना प्रकार २४२
विभक्तिओ
२४३.
कर्तरि रूप
व्यंजनांत धातुनी प्रक्रिया
स्वरांत धातनी प्रक्रिया
उवणीत " कवर्णीत ५- १० धातुओने लगतां केटांक कार्यों
४
"
??
वर्तमानकाळ
वर्तमानकाळना प्रत्ययो प्राकृत
१ - २-३ प्रत्ययोने लगतुं कार्य शौरसेनी-मागधी
पैशाची
अपभ्रंश
>>
,
व्यंजनांत धातुनां रूपाख्यानो हसू प्राकृतरूपो
” (शौरसेनी रूपो )
"
( मागधी
>
23
( पैशाची " )
( अपभ्रंश " )
""
स्वरांत धातुनां रूपाख्यानो हो प्राकृतरूपो
(पालि ) टि० २
२४४
२४४
२४५
२४५
२४६
२४६ - २४८
२.४८
२४८
२४९
२५०
२५०
२५०
२९१–२६४
२५४-२९।
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________________
( शौरसेनी ,,) ( मागधी ) (पैशाची ,,) ( अपभ्रंश ,,)
भूतकाळ स्वरांत अने व्यंजनांत धातुने लागता प्रत्यय
पालि प्रत्ययो (टि. २-३) हा प्राकृतरूपो
२६२-२६५
२६२
हो
।
ठा
,
ने
"
or
ला , उड्डे , हो ( पालिरूपो) टि.
२६३ आर्ष प्रयोगोमां आवता त्या, इत्थ, इत्था, इंसु अने अंसु प्रत्ययोनो पालिप्रत्ययो साथे संबंध टि०१ २६४ भू ( पालिरू यो ) टि० . गम्, केटलांक आर्षरूरो संस्कृत अन्य केटलांक आर्षरूपो ।
___ भविष्यत्काळ २६६-२७४ प्राकृत प्रत्ययों ए प्राकृत प्रत्ययोवाळा पालिरूपो (टि० १) २६६ शौरसेनी अने मागधीना भविष्यत्काळना प्रत्ययो २६७
or or
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________________
aar
पालिना प्रत्ययो टि०२ पैशाचीना भविष्यत्काळना प्रत्ययो अपभ्रंशना " ,
२६८ भणू प्राकृतरूपो
२६९-२७३ (शौरसेनी रूपो) (मागधी) (पेशाची)
(अपभ्रंश) हो प्राकृतरूपो अने शौरसेनी वगेरेनां रूपो २७३-२७४ संस्कृतजन्य केटलांक आपरूगो
२७४ क्रियातिपत्ति
२७५ प्राकृत वगेरेना प्रत्ययो आज्ञार्थ-विध्यर्थ
२७६-२७९ प्राकृत वगेरेना प्रत्ययो २७५-२७६ आज्ञार्थ (पालि प्रत्ययो )टि..१ २७५ वित्यर्थ , . " हम् प्राकृतरूपो
२७६
२७७ शौरमेनी, मागधी अने पैशाचीनां रूपो २७७ हस । अपभ्रंशनां रूपी
२७७
केटलक आर्षरूपो
२७८ अनियमित रूपों
९-२८३ अत (वर्तमान)
२७९ " (भूत) ., (विध्यर्ष, आज्ञार्थ अने भविष्यकाल) ९८०
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________________
९१
अस् ( पालिरूपो ) टि० कृ ( भूतकाळ )
( भविष्यत्काळ )
( पालिरूपो ) टि० २
39
27
दा ( भविष्यत्काळ )
केटलाक आदेशो ( भविष्यत्काळ )
पालिअंगो
भूतकाळ
भविष्यत्काळ
क्रियातिपत्ति
विध्यर्थ- आज्ञार्थ
प्रेरकरूपो
प्रेरक अंग बनाववानी रीत
प्रेरक अंगों
पालिनां प्रेरक अंगो ( टि० १ ) उपत्यस्वरवाळां प्रेरक अंगो
वर्तमानकाळ
37
नामधातु वगेरे मत वगेरेनां पालिरूपो ( टि० १ ) सह्यभेद
महाभेद ( पालि टि० १ )
पेशाचीनी विशेषता
अपभ्रंशनी
सह्यभेदी अंगो वर्तमानकाळ
दि० १
ܕ:
२८०
२८१
२८१
२८१
२८१
२८२
२८२
२८३-२८७
२८३
२८४
२८३-२८४
२८५
२८६
27
17
२८७
२८७
२८८-२९०
२८८
२९०–२९८
२९०
२९१
२९१
२९२
२९२
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--------------------------------------------------------------------------
________________
विध्यर्थ
आज्ञार्थ
भूत ( ह्यस्तन ) प्रेरक सह्यभेद
९२
नां रूपो
53
अनियमित सहाभेदी अंगो
कृदंत प्रकरण १३ मुं वर्तमानकृदंत
कर्तरि वर्तमान कृदंत
कर्तरिवर्तमानकृदंत ( पालि ) टि० २
प्रेरक कर्तरिवर्तमानकृदंत
सह्यभेदी वर्तमानकृदंत प्रेरक सह्यभेदी
=9
भूतकृदंत
कर्तरिभूतकृदंत सह्यभेदी भूतकृदंत भूतकृदंत (पालि) टि० १
प्रेरकभूतकृदंत
केटलांक संस्कृतजन्य भूतकृदंतो
भविष्यत्कृदंत
भविष्यत्कृदंत प्राकृत
भविष्यत्कृदंत ( पालि ) टि० १
२९३
२९३
२९४
२९४
२९६
२९६
२९९-३२३
२९९-३०४
२९९
२९९
३०३
३०३
३०४
३०४-३०७
३०४
"T
ܟܘܪ
३०६
३०६
३०६
३०७
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--------------------------------------------------------------------------
________________
३०७
हेत्वर्थकृदंत
३०७-३११ हेत्वर्थकृदंत प्राकृत तुं-दु-तए प्रत्ययो
३०७ हेत्वर्थकृदंत (पालि) टि. २ अनियमित हेत्वर्थ कृदंत 'त्तए' प्रत्ययांत रूपो
३०९ 'तवे' अने 'तए' प्रत्यय (टि० १) ३०९ हेत्वर्थकृदंत ( अपभ्रंश) ३१०-३११
संबंधकभूतकृदंत ३११-३१८ संबंधकभूतकृदंत प्राकृत तुं-अ-तूण-तुआण-इत्ता-इत्ताण-आय- 1 ३१२.
आए प्रत्ययो संत्रंधकभूतकृदन्त (शौरसेनी-मागधी)
(पालि) टि० २ (पैशाची) ३१३
(अपभ्रंश) अपवाद-शौरसेनी अपवाद-पैशाची
३१३ अपवाद--अपभ्रंश
भाषावार उदाहरणो ३१४-३१७ प्राकृत शौरसेनी-मागधी
पैशाची
अपभ्रंश अनियमित संबंधभूतकृदंत प्राकृत
३१३
-
..
..
.७
४
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--------------------------------------------------------------------------
________________
३१९-३२१
३१९
०
केटलांक संस्कृतजन्य संबंधकभूतकृदंतो
विध्यर्थकृदंत विध्यर्थकृदंत प्राकृत
,, (पालि) टि०२ केटलांक संस्कृतजन्य विध्यर्थकृदंत . तव्य
अणिज, अणी
०
०
०
०
..
अनियमित विध्यर्थकंदत विध्यर्थकदंत ( अपभ्रंश)
कर्तरिकृदंत कतरिकृदंत प्राकृत
" (पालि) टि० ? " (अपभ्रंश)
३२२--३२३
३२३ :२२
तद्धित प्रकरण १४ मुं ३२ ३-३३१ इदमर्थक 'कर' प्रत्यय
३२३ __, आर ,, ( अपभ्रंश) ३२३
, ईय , (पालि) टि०१ भवार्थक : इल्ल' · उल्ल'
३२३ ल्ल (पालि) टि० ३
इम (:, ) टि. १ ३२४ तत्सदृशार्थक • व्व'
३२४ भावार्थक इमा, त, तण
३२४ प्पण (अपभ्रंश) ३२४
اسم سی ام
३२३
ا
س
اس
ع
Page #95
--------------------------------------------------------------------------
________________
वारार्थक
"3
हुत्त
क्खत्तुं (पालि ) टि० २
खुतो आर्ष ( टि० २ ) मत्वर्थीयप्रत्ययो
तो, दो प्रत्यय
हि, ह
स्थ
९५
71
एल
स्वार्थिक प्रत्यय स्वार्थिक ( पैशाची )
स्वार्थिक (अपभ्रंश ) अनियमित तद्धितांतरूपो केलांक संस्कृतजन्य तद्वितांतरूप
धातुपाठ
:"
३२५
३२५
३२५
३२५
३२६
३२७
३२७
३२७
३२८
३२८
३२९
३३०-३३१
३३१-३५३
Page #96
--------------------------------------------------------------------------
Page #97
--------------------------------------------------------------------------
________________
त्प
व
शुद्धिपत्र अशुद्ध
शुद्ध- पृष्ठ- पंक्तिव्यञ्जनम्
व्यजनम् १० १९
१४ २१ न-धृष्टद्युम्नः धट्ठज्जुणो आ उदाहरण १६
अने ए उपरन टिप्पण पृ०३६मां पं. ४ म्न-ना उदाहरणमां मूको 'र' लोप १७ ५ मी पंक्ति
पछी मथाळु वधार अपभ्रंशमां (१) अपभ्रंशमा १७ ७. थ्य, श्व, त्स प्स-च्छ ३२ १० मी पंक्ति
पछी मथाळु वधारवं. ए' म्ह' ४० १०
टिप्पण ३ पृ० ४४
पृ० ४५
टिप्पण
दश तन्ध
उ - आ विद्रुतः विहाओ ५३ २१ मी पंक्ति
पछी वधार. दस ७३ १०१ न्त न्ध ८०
आपछी बधा अंको सुधारीने वाचवा..
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--------------------------------------------------------------------------
________________
अर्थात्
उत्तिष्टविश आ निज्ञानी
अर्थात् ९२ १५ १ण . ९८
उत्तिष्ठोपविश १०६ * आ निशानी १२० १२८ २२ मी पंक्ति
पछी xxx
x x न जोइए. शौ० १४१ २ गामनी १६९ २२
२२४ १३ तन्व ३२० १२
३ गामनी
-
यह
'तव्य
पहुह . अग्ध
अग्ध विसुर
३३७ अंक ७४ ३३९ ,१०० ३४३ ,,१३२
विसूर
.
उसिक्क
हववव लोट्ट
उस्मिक हक्खुव आयम्ब
४४४ , १४७
Page #99
--------------------------------------------------------------------------
________________
आ पुस्तकमां वपराएला ग्रंथो अने तेना संकेतोनो खुलासो
अमरको
आ०
अजितशांतिस्तव अमरकोश आचारांगसूत्र उत्तराध्ययनसूत्र उपासकदशांगसूत्रटीका काशिका चतुर्विशतिस्तव जीवविचार पाणिनीय अष्टाध्यायी
का०
| पाणि.
। पाणिनि.
वैदिकप्र०
पाणिनीय वैदिक प्रक्रिया पालिकोश पालिप्रकाश
पालीप्र० पालिप्र० पा०प्र०
पालिव्याकरण ( कात्यायन) प्राकृतकथासंग्रह प्राकृतरूपावतार भगवतीसूत्र
भगव०
भग.
लालितवि०
मुनिवंदनसूत्र ललितविस्तर (बौद्रग्रंथ) विसुदिपम्ग अमणसूत्र
Page #100
--------------------------------------------------------------------------
________________
षड्भाषाचंद्रिका सूत्रकृतांगसूत्र
सूत्र सूत्रकृ.
सूर्यप्रज्ञप्तिटीका हेमचंद्र प्राकृत व्याकरण
। हे० प्रा० व्या. हे० सं०
हेमचंद्र संस्कृत व्याकरण
(२)
.
अध्ययन, अध्याय उद्देश
.
गाथा
.
.
द्वितीय नियम पालिप्रकाश संधिकल्प
पालि० सं० पृ० प्र० रा० मि
प्रथम रायचंद्र जिनागमसंग्रह
राय
श्रुतस्कंघ
मात्र
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--------------------------------------------------------------------------
________________
प्राकृत-व्याकरण.
प्रकरण १
वर्णपरिचय प्राकृत भाषाओमां नीचे प्रमाणे स्वरो अने व्यंजनो वपराय छे. 'स्वर---
- अ, इ, उ. ( हूस्व) आ, ई, ऊ, ए, ओ, ( दीर्घ)
१ प्राकृतमा 'ऋ' नो विकार अ, इ, के उ थाय छे अने 'लु' नो विकार ' इलि' थाय छे माटे ए बे स्वतंत्र स्वर नथी. 'ऐ' नो विकार 'ए' के ' अइ ' थाय छे अने ' औ' नो विकार 'ओ' के 'अउ' थाय छे तेथी ए बे पण स्वतंत्र स्वर नथी.
२ 'एको' 'सेव्वा' 'सोतं' 'सो चिअ' वगेरे शब्दोमा आवेला 'ए' अने 'ओ' एकमात्रिक छे एम आचार्य शुभचंद्र जणावे छः (-शुभचंद्रनुं प्राकृत व्याकरण अ० १-२-४०-लिखित पृ० ४) आ उपरथी 'ए' अने 'ओ'नी एकमात्रिकता पण व्याजबी जणाय छे. उच्चारणनी दृष्टिए तो द्विर्भावने पामेला व्यजननी पूर्वनो द्विमात्रिक स्वर एकमात्रिक ज होवो जोइए; अन्यथा एवे ठेकाणे आवेला द्विमात्रिकनो उच्चार ज द्विमात्रिकनी रीते थइ शकतो नथी. आचार्य हेमचंद्र जणावे छे के, कोइ वैयाकरणो प्राकृतमां पण 'ऐ' अने ' औ 'ना उपयोगने इष्ट गणे छ (८-१-१) आचार्य हेमचंद्र पण ' अयि 'ना प्राकृतरूप 'ऐ' ने सम्मल गणे छे ( ८-१-१६९) तो पण तेमने ए सिवाय क्यांय 'ऐ' अने ' औ' नो व्यवहार इष्ट नथी,
प्रा. १
Page #102
--------------------------------------------------------------------------
________________
[ २ ]
व्यंजन
क, ख, ग, घ, ङ ( कवर्ग) च, छ, ज, झी ( चवर्ग)
१ आचार्य हेमचंद्रना जणाव्या प्रमाणे प्राकृतमा स्वररहित व्यंजननो एटले खोडा व्यंजननो के बे तद्दन विजातीयसंयुक्त व्यंजननो-क्त, क्न, त्म वगेरेनो-प्रयोग थतो नथी तो पण 'म्ह' ह' अने ' ल्ह 'नो प्रयोग होवानुं तो हेमचंद्रे पण स्वीकायु छः ( जूओ ८-२-७४७५-७६)' अकस्मात् ' शब्दने मगधदेशीय होवान आचार्य शीलांके जणावेलं छे. ( जूओ-" इत्थ वि जाणह अकस्मात् ” मू• आ० पृ० २६६ तथा एनी टीका पृ० २६७ स०) एथी प्राकृतमा ए ए स्थळे खोडो व्यंजन पण आवे छे. 'म्ह, छह अने ल्ह' उपरांत मागधीमां 'स्त' 'स्म' वगेरे संयुक्त व्यंजनो पण वपराय छे. ए विप्रे संयुक्त व्यंजनना विकारोने जणावतां आगळ जणावीरों, ए सिवाय जे जे शौरसेनी बगेरे भाषाओमां व्यंजननी वपराशमां प्राकृत करतां विशेष फेरफार छे ते विषे पण आ पुस्तकमां ते ते ठेकाणे जणावीशं. 'ड'नो 'ल' थतो होवाथी एने मूर्धन्य पण कहेवामां आवे छे. पालीमां ए 'ल' ने ज जूदो गणीने ३३ व्यंजनोने गणाववामां आव्या छे. ( जूओ कच्चा० पा. व्या० सू० ६)
२ 'प्राङ्, 'प्रत्यङ् । 'क्रुङ्' 'उदङ्-वगेरेनी पेठे प्राकृतमा कोइ पण शब्दमां स्वतंत्र रीते 'अ' वर्णनो उच्चार थतो नी, किंतु संखो, सलो. पंको, पङ्को. अंगणं, अड्.गणं, लंघणं, लड्.धणं.वगेरे शब्दोमां स्ववर्यसंयुक्त 'ड्. 'नो प्रयोग शिष्टसंमल छे. संस्कृतनी पेठे प्राकृतमा 'इ. 'नो प्रयोग अमुक शब्दोमां ज थतो होवार्थी ए. बन्ने भाषामां स्वतंत्र 'डनी वपराश विरल कहेवाय.
३ 'डु' धातुनां ('जुडुवे' वगेरे ) परोक्ष रूपो सिवाय संस्कृतमां क्यांय पण स्वतंत्र 'ना' नो प्रयोग मळतो नथी तेम प्राकृतमा
Page #103
--------------------------------------------------------------------------
________________
[ ३ ]
ट, ठ, ड, ढ, ण (
)
त, थ, द, ध, न ( तवर्ग )
प, फ, ब, भ, म ( पवर्ग )
य, र, ल, व ( अंत:स्थ )
टवर्ग
स ह ( ऊष्माक्षर )
अनुस्वार
7
2
पण क्याय स्वतंत्र ' अ ' प्रयोजातो नथी. कञ्चुकः, लाञ्छनम्, जञ्जपूकः - वगेरे प्रयोगोनी पेठे प्राकृतमां कञ्चुओ, लच्हणं, जञ्जवृओ वगेरे प्रयोगो सुव्यवहृत छे. मात्र पालीमा जाति ( ज्ञाति ), आत ( ज्ञात ), आण ( ज्ञान ) वगेरे प्रयोगों संस्कृतना 'डुबे जेवा पण मळी आवे छे. संस्कृतमां अने प्राकृतमां एकला 'ञ' करतां स्ववर्ग्यसंयुक्त 'ञ' नो प्रयोग विशेष प्रचलित छे: अहिमञ्जु (अभिमन्यु) पुञ ( पुण्य ), अवञ्ञा ( अवज्ञा ), अञ्जली ( अञ्जलि ) - मागधी अने ज्ञान ( ज्ञान ) विज्ञान ( विज्ञान ) - पैशाची. ञ्ञ 'ना प्रयोगमां पाली, मागधी अने पैशाची विशेष समानता धरावे छे.( ८-४-२९३ तथा ३०३ ) तथा (पालिप्र० पृ० २३-२४ )
2
१ पालीमा ' अनुस्वार 'ने व्यंजनमां गणावीने ' निग्रहीत 'नी संज्ञा आपेली छे अने ललितविस्तरमहापुराणमां तो एने ( अनुस्वारने ) अने विसर्गने स्वरोनी साथै ज गणावेला छे. आ ग्रंथमां वर्णवेली बाराक्षरी आपणी गुजराती बाराखडी जेवी छे.(जुओ ललितवि००१२७)
Page #104
--------------------------------------------------------------------------
________________
[ 8 ]
प्रकरण २
सामान्य स्वरविकार.
दीर्घस्वर-ह्रस्वस्वर'
१. संस्कृतना संयुक्त व्यंजननी पूर्वे आवेला दीर्घस्वरो प्राकृतमां प्रायः ह्रस्व थई आय छे अर्थात् संयुक्त व्यंजननी पूर्वे आवेला 'आ 'नो अ, 'ई' नो इ, 'ऊ 'नो उ, 'ए' नो इ अने 'ओ' नो उथई जाय छे. जेमके :
आ=अ-आम्रम् अम्बं । आस्यम् अस्सं । ताम्रम् तम्बं । विरहाग्निः विरहगी |
ई - इ - तीर्थम् तित्थं । मुनीन्द्रः मुणिंदो । ऊ - उ - गुरूल्लापा : गुरुलावा | चूर्णः चुण्णो ।
ए - इ - नरेन्द्रः नरिंदो । म्लेच्छः मिलिच्छो ।
ओ - उ - अधरोष्ठः अहरुद्वं । नीलोत्पलम् नीलुप्पलं ।
=
--
|
ह्रस्वस्वर=दीर्घस्वर.
२. संस्कृतना श्य, शू, र्श, ध, श्श, प्य, षू, र्ष, ध्व, प्षः स्य, स्त्र, से, स्व, अनेस्सनी पूर्वे रहेलो ह्रस्वस्वर प्राकृतमां प्रायः दीर्घभाव पामे छे. उदाहरणो नीचे प्रमाणे छे:श्य — आवश्यकम् आवासयं । कश्यपः कासवो । पश्यति पास । श - मिश्रम् मसिं । विश्रामः वीसामो । विश्रान्यति वीसमइ । --- संस्पर्शः संफासो ।
१ जूओ पालीप्रकाश पृ० ८, नियम - ११ ( दीर्घस्वर स्वस्वर) तथा पृ० ५५ ( ए=इ ) अने ( ओ = उ ) अने पृ० ५ ( औ = उ ) २ जूओ पालीप्र० पृ० ११ - ( परामर्श : रामासो ) टिप्पण.
Page #105
--------------------------------------------------------------------------
________________
[ ]
५.
६ - अधः आसो । विश्वसिति वसिसइ । विश्वासः वीसासो । श्श - दुश्शासनः दूसासणो । मनश्शिला मणासिला । प्य पुष्यः पूसो । मनुष्यः मणूसो । शिष्यः सीसो । — कर्षक: कासओ । वर्षः वासो । वर्षाः वासा | व - विष्वक् वसुं । विष्वाणः - वीसाणो । ष - निष्पिक्तः नीसितो ।
स्य कस्यचित् कासइ । सस्यम् सासं ।
त्र - उत्र: ऊसो । विस्रम्भः वसंभो ।
स्व — निस्वः नीसो । विकस्वर : विकारो ।
रस - निस्सह: नीसहो ।
आ-अ.
--
३. संस्कृतना भाववाचक अकारान्त पुंलिंगी शब्दना आदिना ' आ 'नो प्राकृतमां विकल्पे 'अ' थाय छे. जेमके :प्रकार : पयारो, पयरो | प्रचारः पयारों, पयरो | प्रहार : पहारो, पहरो । प्रवाहः पवाहो, पवहो । प्रस्ताव: पत्थावो, पत्थवो ।
इ = ए.
४. संस्कृतना संयुक्त व्यंजननी पूर्वे आवेला '३' नो विकल्पे 'ए' थाय छे. जेमके :
'डिण्डिम:- डेण्डिमो, डिण्डिमो । धम्मिल्लम् धम्मेलं, धम्मिल्लं । पिष्टम् पेठ्ठे, पिट्ठं । पिण्डम् पेंड, पिंडं । बिल्वम् बेल्लें, बिलं । विष्णु: वेहू, विडू | सिन्दूरम सेंदूरं, सिंदूरं ।
१ जूओ पालीप्र० पृ० ५३ - ( इ = ए )
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________________
[ ६ ]
उ=ऊ.
५. संस्कृत शब्दोमां रहेला 'त्स अने च्छ नी पूर्वना 'उ'नो 'ऊ' थाय छे:
न्स - उत्सरति ऊसर । उत्सवः ऊसवो ।
उत्सिक्तः ऊसितो । उत्सुकः ऊओ ।
च्छ - उच्छ्वासति उससइ । उच्छ्वास उसाको उच्छुक: ऊसुओ ।
उ=ओ.
६. संस्कृतना संयुक्त व्यंजननी पूर्वे रहेला 'उ' तो प्राकृतमां 'ओ' थाय छे. जेमके :
I
* कुट्टिमम् कोट्टिमं । कुण्ठः कोंढो । कुन्तः कोंतो । तुण्डम् तोर्ड | पुद्गलम् पोम्गलं । पुष्करम् पोक्खरं । |
पुस्तकः पोत्थओ । मुण्डम् मोंडें । मुद्गरः मोग्गरो । मुस्ता मोत्था । लुब्धकः लोद्धओ | व्युत्क्रान्तम् वोक्तं ।
"ऋ=अ
७. संस्कृत शब्दना आदिभागमां आवेला 'ऋ' नो प्राकृतमां 'अ' थाय छे.
। घृतम् घयं । घृष्टः घट्टो |
कृतम् कयं तृणम् तणं । मृगः मओ । मृष्टम् मठ्ठे । वृषभः सहो ।
१ आ नियम आ बे शब्दोसा लागतो नथी:
उत्साहः उच्छाहो | २ जूओ पालीप्र
३ जूओ पालीप्र० ५०
० ०
५४ - ( उ =ओ )
१- (ऋ =अ)
:- उत्सन्नः उच्छन्नो ।
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________________
[ ७ ]
ऋ-र ८. सामासिक अने गौण संस्कृत शब्दना भत्य 'ऋ' नो
प्राकृतमा 'उ' थाय छे. पितृगृहम् पिउघरं । पितृपतिः पिउवई । पितृवनम् पिउवणं । पितृप्वसा पिउसिआ। मातृगृहम् माउघरं । मातृप्वप्ता माउसिआ । मातृमण्डलम् माउमंडलं ।
'ऋ-रि ९. संस्कृतना केवल-व्यंजन वगरना-'ऋ' नो प्राकृतमा रि'
थाय छे, ऋक्ष: रिच्छो । ऋद्धिः रिद्धी । ऋषभः रिसहो।
ल-इलि. १०. संस्कृतना · ल. 'नो प्राकृतमा - इलि' थाय छे:-~
क्लन्नः किलिन्नो । क्लप्तः किलित्तो।
११. संस्कृतना · ऐ 'नो प्राकृतमा 'ए' थाय छे:
ऐरावणः एरावणो । कैटभः केवो । कैलासः केलासो। त्रैलोक्यम् तेलुक्कं । वैद्यः वेजो । वैधव्यम् वेहव्वं । शैलाः सेला।
औ ओ. १२. संस्कृतना · औ 'नो प्राकृतमां · ओ' थइ जाय छे..
१ जूओ पालीप्र. पृ० ३-( रि) टिपरण. २ जूओ मालीप्र० पृ. ३- (ऐ=ए) ३ जूओ पालीप्र. पृ० ५-( औ=ओ)
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________________
[ ८ ] क्रौञ्चः कोंचो । कौमुदी कोमुई । कौशाम्बी कोसम्बी । कौशिकः कोसिओ । कौस्तुभः कोत्युहो । यौवनम् जोव्वणं ।
उपर जणावेला बधा स्वरविकारो शौरसेनी, मागधी, पैशाची अने चूलिकापैशाचीमां पण एक सरखी रीते लागु थाय छे, अपभ्रंशमा ए नियमोनु प्रवर्तन नियत रीते एटले जे रीते जणान्युं छे ते रीते थतुं नथी. तेमां क्यांय क्याय अ'नो इ, ई, उ; 'उ'नो अ, आ; 'ऋ' नो अ, आ, इ, उ, ऋ 'ल.'नो इ, इलि; 'ए'नो इ, ई; अने • औ'नो अउ अने ओ थाय छः [ स्वरविकारनी दृष्टिए आ प्रवर्तन सरखं छे, पण अनियतताने लीधे एने प्राकृतथी जू, पाडी शकाय छे.
सं० प्रा०
अ० वचनम् अणं ( वइणं) वेणं ।
(वईणं ) वीणं । शयनम् सअणं (. सइनं ) सेनं' । नयनम् नअणं नइणं ( नइनं ) नेनं ।
नवनीतम् नअणीअं ( नउणीअं) लोणीअं । [ वस्तुतः आ रूपो 'र' अने 'व' ना संप्रसारणथी बनेला छे ] उ-अ, आ
बाहुः--बाहा ( स्त्री० ) बाहा, बाह, बाहु । ऋ-अ, आ, इ, उ, ऋ
___ कृत्यम् किच्चं कच्च, काचु । १ जूओ विमुद्धिमग्ग पा० पृ० २४.
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________________
ल-इ, इलि
एइ, ई-
औ--अउ,
तृणम् तणं तिथु, तणु, तृणु । सुकृतम् सुकयं सुकिउ, सुकिदु, सुकृदु ।
क्लन्नः किलिन्नो किन्नो, किलिन्नाओ ।
रेखा लेहा लिह, लीह, लेह ।
ओ---
गोरी गोरी गउरी, गोरी ।
व्यंजनविकारोना प्रसंगमां तो ज्यां ज्यां प्राकृत करतां शौरसेनी, मागधी, पैशाची, चूलिकापैशाची अने अपभ्रंशमां विशेपता छे तेने ते ते स्थळे जणाववाना छीए.
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________________
प्रकरण ३.
- :सामान्य व्यंजनविकार.
'अंत्यव्यंजनलोप १. संस्कृत शब्दना छेवटना व्यंजननो प्राकृतमा लोप था,
अन्तर्-उपरि अन्त-उपरि अंतोवरि । अन्तर--गतम् अन्त-गयं अंतग्गय । जन्मन् जम्म-जम्मो। तमम् तम--तमो। तावत् ताव । हुनर पुण। न पुनर् न उण। यशस् जस-जसो । यावत् जाव ।
__ असंयुक्त कादि'लोप. २. स्वरथी पर आवेला अने एक ज पदमा रहेला असंयुक्त
क, ग, च, ज, त, द, प, व, र अने व-एटला व्यंजनोनो प्राकृतमा प्रायः लोप थई जाय छे. उदाहरणो क्रमशः नीचे प्रमाणे छे:--..
१ जू पालीग्र० पृ. ६ (नियम ७. विद्युत्--विज्जु । तावत्-ताब ।
इत्यादि) २ आ नियम क्यांय क्यांय लागलो पण नथी. जेमके; सुकुसुमम् । प्रयागजलम् पयागजलं । सुगतः मुगओ । अगरू: अगरू। सचापम् सचावं । ध्यानम् विजणं । सुतारम् सुतारं । विदुरः विदुरो । सपापम् सावं | समवायः समवायो । देवः देवो । दानवः दाणवो ।
आ शब्दोमां प्रस्तुत नियमने लगाडवाथी अर्थभ्रम थचानो संभव छे, आ गते अनिा प्रत्येक नियमनो उपयोग करतां क्यांय पण पथभ्रम न थान लेवो ग्यास व्याल गलवानो छे.
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________________
क-तीर्थकरः तित्थयरो। लोकः लोओ। ग-नगः नओ। नगरम् नयरं । मृगाङ्कः मयंको । च-कचग्रहः कयग्गहो। शंची सई।। ज--गजः गओ । प्रजापतिः पयावई। रजतम् रययं । त-धात्री धाती-धाई । यतिः जई । रसातलम् रमायलं ।
रात्रिः राति--राई । वितानम् विआणं। द-गदा गया । मदनः मयणो। प-रिपुः रिऊ । सुपुरुषः सुररिसो । ब-विवुधः विउहो । य-वियोगः विओओ। व-वडवानलः वलयाणलो । लावण्यम् लायणं ।
( आ बीजो नियम अने एवा बीजा असंयुक्त व्यंजनना विकारने लगता सामान्य के विशेष नियमो पैशाची भाषामा लागता नथी, जेमके - सं०
प्रा०
पै. मकरकेतुः- मयरकेऊ--- मकरकेतू । सगरपुत्रवचनम् ---- सयरपुत्तवयणं-- सगरपुतवचनं । विजयसेनेन लपितम्-विजयसेणेण लवियं-- विजयसेनेन लपितं । पापम्--- पावं
पापं--- आयुधम् ---- आउहं- आयुधं । ) ___ पूर्वोक्त नियम द्वारा प्राकृतमा : क' 'ज' त' अने 'द' नो लोप जणावलो छ तो पण प्राकृतना पेटाभेदरूप शौरसेनी, मागधी, पैशाची, चूलिकांपैशाची अने अपभ्रंशमां ते वर्णो लोपाता नथी, किंतु बीजा बीजा वर्णोना रूपमा फेरवाइ जाय छः
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________________
थाय छे:
सं०
१२
'त-द.
( १ ) शौरसेनीमा अने क्यांय अपभ्रंशमां ' त' नो ' दं '
प्रा०
कथितम् कहिअं
ततः तओ
पूरित: पूरिओ
थाय छे:
सं०
अने
शौ०, अप०
कधिदं ।
तदो ।
पूरिदो ।
प्रा०
जणवओ
सं०
प्रतिज्ञा
मारुतिः
मन्त्रितः मन्त्रितः
"ज-य.
जनपदः
जानाति जाणइ
गर्जितः गज्जिओ गरियदे |
मा० सं०
यणवदे । दुर्जन:
यादि । वर्जितः
( २ ) मागधीमां आदिस्थित के अनादिस्थित 'ज' नो 'य'
प्रा०
शौ०, अप०
पदिण्णा ।
|
पहण्णा
मारुई
मंतिओ
३ जूओ पा० प्र० ४० ५७ ( जय )
४ ओ० ० ६२ (द)
मारुदी |
मंतिदो ।
।
प्रा० मा०
दुज्जणो
वज्जिओ
दुय्यणे ।
वय्यिदे |
त, द-त.
( ३ ) पैशाचीमा अने चूलिकापैशाचीमां 'त' कायम रहे छे
6
ढ़ नो पण ' त' थाय छे:
१ जूओ पा० प्र० प्र० ५९ ( )
२ शौरसेनीने लगता दरेक नियमो मागधी, पैशाची, चूलिकापैशाची
अने अपभ्रंशमां पण लागु भई शके ले.
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________________
सं० प्रा० पै०,-चू० ० सं०. प्रा० पै०,-चू० पै० भगवती भगवई भगवती । प्रदेशः - पदेसो पतेसो । पार्वती पबई पवती। मदनः । मदणो मतनो । शतम् सयं सत। क्दनकम् वदमयं वतनकं । दामोदरः दामोदरो तामोतरो। सदनम् सदणं सतनं ।
'ग-क, ज-च.' ( ४ ) चूलिकांपैशाचीमा 'ग' नो ' क ' थाय छे अने 'ज' नो 'च' थाय छः सं० प्रा० चू० पै० सं० प्रा० . चू० पै० गिरितटम् गिरितडं किरितडं । जर्जरम् जज्जरं चश्चरं । नगरम् नयरं नकरं। जीमूतः जीमूओ चीमूतो । मार्गणः मम्गणो मक्कनो। नियोजितम् नियोजिअं राजा राया राचा ।
नियोचितं ।
क-.
(५) अपभ्रंशमां क्याय 'क' नो 'ग' थाय छे.
सं० प्रा० अ० विक्षोभकरः विच्छोहयरो विच्छोहगरो।
१ जूओ पा० प्र० पृ०५६ (गक ) २ जूओ पा० प्र० पृ. ५७ (ज-च) ३ जूओ पाप.. ५५ ( 7)
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________________
संयुक्त ' कादि' लोप:
३ संयुक्त व्यंजनमां पूर्ववर्ती कं, ग, ट, ड, त, दु, प, श, ष अनेस एटला व्यंजनोनो प्राकृतमां प्रायः लोप थई जाय छे अने लोप थया पछी बाकी रहेला अनादिना व्यंजननो द्विर्भाव थाय छे. जेमके;
क- भुक्तम् भुत भुतं | मुक्त: मुत-मुतो ।
शक्तः सत-सचो ।
'सिक्थम् सिथ्यं - सित्थं ।
ड - खड्ग : खगो-खग्गो ।
षड्जः सजो- सज्जो |
ग- दुग्धम् दुध - दुद्धं ।
"मुद्गरः - मुगरो - मुग्गरो ।
मुग्धम् मुच्ध-मुद्धं । ट-कैट्फलम् कफ्फल-कप्फलं । प-गुप्तः गुत-गुत्तो ।
षट्पदः छपओ - छप्पओ ।
सुप्तः - सुत--मुत्तो ।
त- उत्पलम् उपलं- उप्पलं । उत्पाद: उपाओ - उप्पाओ
अने भ थाय छे.
१ जूओ पालीप्र० पृ० ४१ ( त=त ) ( कथथ )
२ ख्ख, छछ, छ, थ्थ अने फ्फ ना स्थानमा अनुक्रमे क्ख, च्छ, छ,
स्थ तथा फ थाय छे.
द- मद्गुः मगु -- मभा ।
३ ध्घ, इझ, व, ध्ध अने म्भ ना स्थानमा अनुक्रमे घ, ज्झ,
ܕ
४ जूओ पालीप्र० पृ० २४ ( नियम - ३० )
५ जु०पा० प्र० पृ० २५ ( नियम - ३१ )
६० प्र० प्र० प्र०.४१ (
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श--- आश्लिष्टः आलिद्धो । निष्ठुर : निठुर निहुरो | 'निश्चल: निवल-निच्चलो । निष्पुंसनम् निपुंसन - निष्पुंसणं ।
श्रोतति चुअइ |
।
श्मश्रु मस्सू | श्मशानम् मसाणं । हरिश्चन्द्रः हरिअन्दो |
लक्षणम् लहं ।
गोष्ठी गोठी-गोडी ।
तुष्टः तु तुट्टो |
१५.
म - युग्मम् युग युगं । रश्मिः रमि रम्मी' ।
स
-
शुष्कम् सुक - सुकं ।
षष्ठः छठ - छडो ।
निस्पृहः निपह - निप्पहो ।
141
स्कन्दः कंदो ।
स्खलितः खलिओ ।
संयुक्त ' मादि ' लोप.
४. संयुक्त व्यंजनमां परवर्ती मन अनेय नो प्राकृतमां प्रायः लोप थई जाय छे। अने लोप थया पी बाकी रहेला
अनादिना व्यंजननो द्विर्भाव थाय छे. नेमके
१ ० ० ० ० ३८ ( २ उमश्रु मस्तु १० प्र० प्र० ५१ ३ जू० पा० पृ० ३७ ( एक
४ शुष्कम् सुक्वं
स्तवः तत्रो ।
स्नेहः नेहो ।
स्मरः सरो । स्मेरम् सेरं ।
छ ) - निच्छलो ।
टिपण.
प्र० प्र० २६- नि० ३२ - ( = = ३) नि० ४५ ) पृ० ३९ (नि०४८ )
( पा० प्र० प्र० ३७ )
५ जू० पा० प्र० ५० ३६ ( स ) ० ३७ (स्क= क ) पृ० ३९ ( स्व नि०४८) १०२८ (स्थ=थ
)
६ स्कन्दः खंदो, बी- पालीप्र० प्र० ३६ टिप्पण
2
७ जू०पा० प्र० प्र० ५०- ( स्म = स्स)
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________________
१६
न - - पृष्टद्युम्नः घट्टज्जुणो' । "य – कुड्यम् कुडकुड
नग्नः नगनगो ।
व्यावः वाहो ।
लग्न: लगलगो ।
श्यामा सामा ।
संयुक्त लादि' लोप.
५. संयुक्त व्यंजनना पूर्ववर्ती वा परवर्ती ल, व, व, विसर्ग अने र नो प्रायः लोप धई जाय छे अने लोप थया पछी बाकी रहेला अनादिना व्यंजननो द्विर्भाव थाय छे. उदाहरण:---
------
-उल्का उका- - उक्का । वल्कलम् वकल-वक्कलं ।
'लै - विक्लवः विकa - विकत्रो ।
लक्ष्णम् सहं ।
"वस्तः धन्य पक्वम् पिक पिक्कं ।
वेटकः खेडओ |
earch: खोडओ | ध्वजः धओ ।
Com
अब्द: अद -- अहो | लुब्धकः लुब्धअ-लुद्धओ । शब्दः सद--- सद्दो | स्तब्धः थध – थद्वो ।
-
त्यो । विसर्ग- दुःखितः दुखिअ - दुक्खओ ।
।
दु:सह: दुसह दुस्सहो ।
निःसहम् निसह- निस्सहं ।
निःसरति निसरह - निम्सरइ ।
१ आ शमां ' ण 'नो दिर्भाव थतो नथी,
२ जू० पा० प्र० प्र० ४८ ( नि० ६६ )
३ जू० पा० प्र० १० २१ (नि० २५ )
४ जू० पा० प्र० पृ० ३०-३१ ( नि० ३६-३७ )
५ जू० पा० प्र० पृ० ३२-३३ (नि० ३८-३९ )
६ जु० पा० प्र० पृ० ३५ ( नि० ४२ )
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'र---अर्कः अक---अक्को। र-क्रिया किया ।
वर्गः वग-वग्गो । ग्रहः गहो । दीर्घः दिघ---दिग्यो । चक्रम् चक-चक्र । वार्ता वता-वत्ता । रात्रिः रति-रत्ती। सामर्थ्यम् सामथ्थ-सामत्थं । धात्री धति-धत्ती । अपभ्रंशमा प्रायः परवर्ती 'र' नो लोप विकल्पे थाय छे:
प्रियः पिओ प्रिउ, पिउ । { सूचना-~~-ज्यां पूर्ववर्ती अने परवर्ती एम बे जातना व्यंजननो लोप
प्राप्त होय त्यां प्रयोगो प्रमाणे लोपर्नु विधान करवू जोईए. जेमके; पूवताना लाप-. पूर्ववर्तीनो लोप-. .
परवतानो लोप--- “द---उद्विग्नः उविग-उविग्गो। य-काव्यम् कव-कव्वं । द्विगुणः विउणो ।
माल्यम् मल-मल्लं । द्वितीयः बीओ। व-द्विजातिः दुआई । ल-कल्मषम् कमस-कम्मसं। द्विपः दिओ ।
शुल्वम् सुव-सुव्वं । र-सर्वम् सव-सव्वं ।
पूर्ववर्ती अने परवर्तीनो वारा फरती लोप--- न-उद्विग्नः--उविग---उब्विग्गो । द-द्वारम् बारं । ग-उद्विग्नः उविण-उविण्णो । व-द्वारम् दारं ।
आ बधा उदाहरणोमां त्रीजो, चोथो अने पांचमो; एत्रणमाथी कोइ एक नियम द्वारा लोपनो संभव छे. ]
१ जू. पा. प्र. पृ. १० (नि. १२) २ जू० पा. प्र. पृ० १२-१३ (नि० १५-१६ ) प्रा.३
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છૂટ
'द्र' लोप' 'द्र'वाळा संस्कृत शब्दना 'द्र' ना 'र' नो लोप प्राकृतम विकल्पे थाय छे:
८.
T
चन्द्रः चन्द्रो, चंदो | द्रवः द्रवो, दवो । द्रहः द्रहो,
दहो । द्रुमः द्रुमो, दुमो । भद्रम् भद्रं भदं । रुद्रः रुद्रो, रुहो । समुद्रः समुद्रो, समुहो ।
' अंत्यव्यंजन ' नो ' अ
७. केटलाक संस्कृत शब्दोना छेवटना व्यंजननो 'अ' थाय छे:शरत् सरओ। भिषक" भिओ । इत्यादि. ' कादि ' नो ' य '
अवर्णथी पर आवेला, एक ज पदमा रहेला, असंयुक्त अने अवर्णान्त क, ग, च, ज, त, द, व, य अने व-एटला व्यंजनोनो प्राकृतमां सामान्य रीते 'य' थाय छे. उदाहरणो आ प्रमाणे छेः
- तीर्थकरः तित्थयरो । शकटम् सयढं ।
ग -- नगरम् नयरं । मृगाङ्कः मयंको
1
च - कचग्रहः कयाहो । काचमणिः कायमणी ।
जै -- प्रजापतिः पयावई । रजतम् रययं ।
१ आ नियम एक 'वन्द्र' शब्दने लागतो नथीः बन्द्रम् वन्द्रं ।
२ जू० पा० प्र० पृ० १२ (नि० १५ )
३ भित्रभिसको (पालीकोश )
४ जूओ पा० प्र० पृ० ५६ ( क=य ) ५ जू० ० ० ० ५७ - ( जन्य )
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________________
त-- पातालम्, पायालं । रसातलम् रसायलं ।
द- गढ़ा गया । मदनः मयणो ।
ये - नयनम् नयणं । दयालुः दयालु ! वे - लावण्यम् लायण्णं ।
९..
खादिनो 'ह'
स्वरथी पर आवेला, एक ज पदमा रहेला अने असंयुक्त ख, घ, थ, ध, अने भ- एटला व्यंजनोनो प्राकृतमां 'ह' थाय छे. जेमके:
ख - मुखम् मुहं । मेखला मेहला । लिखति लिहा । शाखा साहा घ - जघनम् जहणं । माघः माहो । मेघः मेहो । लाघते लाहइ । थ - कथयति कहइ । आवसथः आवसहो । नाथः नाही । मिथुनम् मिहुणं ।
I
- इन्द्रधनुः इन्दहणू । बधिरः बहिरोः । बाधते बाहर | व्याधः वाही | साधुः साहू |
भें - स्तनभरः थणहरो । नभस् नहं । सभा सहा | स्वभावः सहावो । शोभते सोहर |
१ आ विधान ( 'य' नो पण 'य' करवानुं विधान ) बीजा नियमनो बाध करे हे.
२ क्या कोई एकाद शब्दमां इकारथी पर आवेला : ब नो पण 'य' थई जाय छे: -- त्रिति पिय |
३ जू०० प्र० १० ५६ ( घन्ह )
४
६० (चन्ह )
६२ ( भन्छ )
५.
""
१९
#7
72
37
>>
31
"
""
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[ प्राकृतमांख, च, थ, व अने भ नो 'ह' थवानुं जणान्युं छे तो पण शौरसेनी, चूलिकांपैशाची अने अपभ्रंशमां तेम थतुं नथी.]
थ-ध
(१) शौरसेनीमां विकल्पे अने अपभ्रंशमां क्यांय क्यांय शब्द मध्यस्थित 'थ' नो 'घ' थाय छे.
सं ०
कहं
कथं,
कथम् कथयति कहे कधेदि, कथितम् कहिअं कधिदं
नाथः
नाहो नाधो राजपथ : रायपो राजपवो
नो फ' थाय छे:
घ --
ध-
सं
लागतो नथी.
घ- ख, ध-- थ, भ-फ'
(२) चूलिका पैशाचीमां 'व' नो 'ख', 'घ' तो 'य' अने 'भ'
धर्मः
मेघः
:
স०
व्याघ्रः
मधुरम्
बान्धवः
धली
प्रा०
धम्मो
शौ
हो
वस्त्रो
c
महुरं
वन्धवो
चूली
अ०
कहं ।
कधेड़, कहे
कहिअं ।
नाहो ।
राजपहो ।
० पे०
खम्मो ।
मेखो ।
।
मथुरं ।
पंथवो ।
थली |
१ केटलाक वैयाकरणोने मते शब्दनी आदिमां आ नियम
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________________
__२१
सं० . प्रा. चू०१० भ- रभसः रहसो रफसो।
रम्भा रंभा रंफा । भगवती भगवई फकवती
झ-छ (३) केटलाकने मते चूलिकापैशाचीमा 'झ' नो 'छ' थाय छे:
झर्झरः झज्झरो छच्छरो। निर्झरः निझरो निच्छरो।
१०. स्वरथी पर आवेला, एक ज पदमा रहेला अने असंयुक्त ___ट' नो प्राकृतमा ड थाय छः ट-घटः घडो । घटते घडइ । नटः नडो । भटः भडो ।
(१) पैशाचीमा 'टु' नो 'तु' पण थाय छः
सं० प्रा० पैशाची. कुटुम्बकम् कुटुंबकं कुतुंबकं, कुटुबकं । कटुकम् कडुअं कतुअं, कटुअं । पटु पड्डु पटु पतु ।
११. स्वरथी पर आवेला, एकपदम्थित अने असंयुक्त 'ठ'
__ नो प्राकृतमा 'न' थाय हे:
१ पालीमां तो क्यांय संयुक्त 'ट' नो पण 'टु थाय छे:लेष्टुः लेह निघण्टः निघण्ड । पा० प्र० पृ० ५८ (ट-३ )
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________________
૨૨
ठ -- कमठः कमढो । कुठारः कुढारो । पठति पढइ । मठः मढो । शठः सहो ।
ई-ल.
6
१२. स्वरथी पर आवेला एकपदस्थित अने असंयुक्त ट नो 'ल' थाय छे:
ड - क्रीडति कीलड़ | गरुड: गरुलो । तडागम् तलायं ।
वडवामुखम् वलयामुहं ।
ड--ट
(१) चूलिकांपैशाचीमां ' ' नोट' थाय छे एम केटलाक वैयाकरणो माने छे:
सं०
डमरुकः
तडागम्
प्रतिमा
मण्डलम्
प्रा०.
डमरुओ
तलायं
पडिमा
मंडल
प्र० ५० ४३
ढ-उ
(२) केटलाकने मते चूलिकापैशाचीमां 'ढ' नो 'ठ' थाय छे:
सं ० प्रा० चु०प०
प्रा० च० पै०
गाढम् गाढं काठं ।
ठक्का ।
दंष्ट्रा दाढा दाठा
दो संठो ।
सं०
चू० पे०
दुका
षण्ढः
टमरुको ।
तटाकं ।
पटिमा ।
मंटलं ।
दका
१. पाली प्रायः सर्वत्र ड नो ळ थाय छे:- ( जू० पा०
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(३) पैशाचीमा 'ण' नो न' थाय छेः
सं० प्रा० पै. गणः गणो
गनो। गुणः गुणो . गुनो ।
स्वरपरवती, एकपदस्थित अने असंयुक्त 'न' नोज' थाय छः कनकम् कणयं । नयनम् नयणं । मदनः मयणो । मानते माणइ । वचनम् वयणं । वदनम् वयणं ।
१४. संस्कृतमा शब्दनी आदिमां रहेला असंयुक्त 'न' नो
विकरपे 'ण' थाय छः नदी गई, नई । नरः गरो, नरो । नयति णेइ, नेइ।
स्वरपरवर्ती, असंयुक्त अने एकपदस्थित :' नो प्राकृतमा 'व' थाय छ । उपमा उवमा । उपसर्गः उवसग्गो । गोपतिः गोवई । प्रदीपः पईवो । महिपालः महिवालो।
१. जूओ. पा. प्र. ० ५८ (णम्न) २. जू० पा० प्र० पृ०६१ (न=ण ) ३. , , , , ६१ (प-व)
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'प-च १६. अवर्णथी पर आवेला, असंयुक्त अने एकपदस्थित 'ए'
नो प्राकृतमां व ज थाय छः कलापः कलावो । कपालम् कवालं । कपिलम् कविलं। काश्यपः कासवो। कुणपम् कुणवं । तपति नवइ । पापम् पावं । शपथः सवहो । शापः सावो ।
(१) अपभ्रंशमां तो प' ने स्याने 'ब' पण बोलाय छे:
सं० प्रा० अ० शपथः सवहो सबधु, सवधु ।
फ-भ, ह. १७. स्वरथी पर आवेला, असंयुक्त अने एकपदस्थित 'क' नो
प्रयोगानुसार भ' अने 'ह' थाय छः फ-भ-रेफः रेभो । शिफा सिभा । फ-ह-मुक्ताफलम् मुत्ताहलं । फ-भ, हगुफति गुभइ, गुहइ । शफरी सभरी, सहरी । सफलम् समलं, सहलं । शेफालिका सेभालिआ सेहालिआ।
फ-भ (१) अपभ्रंशमां पण 'फ' नो भ' थाय छेः
सं०मा० अ० • सफलम् समलं । सभा
१. आ नियम पन्नरमा नियमनो अपवाद छे.
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4-4 (१) केटलाक वैयाकरणोने मते चूलिकांपैशाचीमा '' ने स्पाने प' थाय छः
सं० प्रा० चू०पै. मालकः बालओ पालओ। बान्धवः बन्धवो पन्थवो ।
२८. स्वरपरवर्ती, एक पदस्थित अने असंयुक्त 'ब' नो ।'
थाय छः अलावूः अलावू । शवलम् सवलं ।
म-बैं(१) अपभ्रंशमां 'म' ने बदले , पण बोलाय छ:
सं० प्रा० अ० कमलम् . कमलं कलु, कमलु । तथा तह तहा, ति, तिम । भ्रमरः भमरो, भसलो, मरु, भमरु । यथा जह जहा, जिव, जिम ।
१ जू० पा० प्र० पृ० ६२ (44) २ ,, ,, ,, ,, ,, (बव) ३ , , , , ,, अलाबुः अलाए ।
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यादि।
१९. संस्कृत शब्दनी आदिमां आवेलाय'नो प्राकृतमा जथाय छे: यमः जमो । यश: जसो । याति जाइ ।
य-य (१) मागधीमां 2' नो 'ज' न थतां य ज रहे छे:
प्रा० मा० याति जाइ यथास्वरूपम् जहासरूवं यधाशलूवं । यानपात्रम् जाणवतं याणवतं ।
. रल (१) मागधीमा 'र' नो 'ल' थाय छे; अने पैशाचीमां तो ए विकल्पे थाय छः
सं० प्रा० मा० ० करः करो , कलो करो कलो। नरः नरो नलो नरो नलो। विचारः विआरो विआलो विचालो विचारो।
(१) पैशाचीमा 'ल' नो 'ळ' थाय छे: कमलम् कमलं - कमळं । कुलम् कुलं
कुळं । १ गवयः गरजो गवयो पाली प्र० पृ० ६२.
२ आ नियम केटलेक ठेकाणे तो लागतो पण नथी : यथाख्यातम् अहक्खायं । यथाजातम् अहाजायं । पृ० १०मां जणावेलो बीजो नियम क्यांय शद्वनी आदिमां. पण लागे छे एथी अहीं ' यथारख्यात' अने 'यथाजात' नो आदिनो 'य' लोपाएलो छे.
३ जूओ पा. प्र. पृ० ४३ (डळ)
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२७
जलं
जलम्
जळं। शीलम् सीलं सळिं। सलिलम् सलिल सळिळं ।
'श-स ष-स २०. संस्कृतमां वपराता 'श' अने 'प' नो प्राकृतमा 'स' थाय छः
श-~-कुशः कुसो । दश दस । नृशंसः निसंसो । विशति विसइ। वंशः वंसो । शब्दः सहो ।
श्यामा सामा । शुद्धम् सुद्धं । शोमते सोहइ। ष-कषायः कसायो । घोषति घोसइ । निकषः निहसो ।
पण्डः संडो। श, प-विशेष: विसेसो। शेषः सेसो।
स-श - (१) मागीमा तो 'स' नो 'श' थाय छे अने पैशाचीमा तो प्राकृतनी प्रमाणे छे:
सं०
प्रा०
मा०
पुरुषः
पुलिशे।
पुरिसो सारसो
शालशे।
शुदं।
सारसः श्रुतम् शोभनम् हंसः
सुअं सोहणं हंसो
शोभण ।
हशे।
१ जू० पा. प्र. पृ. ६ (श-स, प-स)
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२१. संस्कृतमा अनुस्वारथी पर आवेला 'ह' नो प्राकृतमा विकल्प
'घ' थाय छे: संहारः-संघारो, संहारो। सिंहः-सिंघो, सीहो ।
१ एवो पण एकाद प्रयोग मळे छे, ज्यां स्वरथी पर आवेला 'ह' नो पण 'घ' थाय छः दाहः --दायो, दाहो।
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प्रकरण ४
संयुक्त व्यंजनोना सामान्य फेरफारी
२२. संस्कृतना 'क्ष' नो विशेषे करीने प्राकृतमां 'ख' थाय छे अने क्यांय क्यांय तो प्रयोगानुसारे 'क्ष'नो 'छ' अने 'झ' पण थाय छे तथा पद्मध्यस्थित 'क्ष' नो 'ख' 'च्छ' अने 'झ' थाय छेः ર 'अख क्षछ' क्ष झ
क्षयः खओ । क्षीणम् खीणं । क्षीरम् खीरं । क्ष्वेटकः खेडओ | वोटक: खोडओ |
·
1
*क्षणः छणो, [खणो] । क्षतम् छयं । 'क्षमा छमा [खमा ] |
क्षारः छारो । क्षीणम् छीणं । क्षीरम् छीरं । क्षुण्णः छुण्णो । क्षुतम् छीअं । क्षुधू छुहा । क्षुरः छुरो । क्षेत्रम् छेत्तं ।
• क्षीयते झिज्जइ । क्षीणम् झीणं ।
१ जू०पा० प्र० पृ० १७ (क्षत्र, क्षन्छ ) क्ष=म - टिप्पण १० १६.
२ पालीभाषामा 'क्ष' नो 'च' पण थाय छे:- ( जू० पा० प्र० पृ० १७ क्ष=च )
३ 'क्षण' शब्दनो 'उत्सव' अर्थ होय त्यारे तेनुं रूप 'छण' थाय छे अने समय अर्थ होय तो 'खण' रूप थाय छे. जू० पा० प्र० पृ. १७ - (क्ष, क्षणः खणो छणो )
४ 'क्षमा' शब्दनो 'पृथिवी' अर्थ होय त्यारे तेनुं ' छमा ' रूप थाय छे अने खमवुं क्षमाकरवी - अर्थमां तो 'ख़मा' रूप ज वपराय छे.
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'क्ष-ख, क्ष-च्छ, क्ष-ज्झ इक्षुः इक्खू । ऋक्षः रिक्खो। ऋक्षम् रिक्खं । मक्षिका मक्खिआ। लक्षणम् लक्षणं । प्रक्षीणम् पक्खीण ! प्रक्षेपः पक्खेवो। सादृश्यम् सारिक्वं ।
अक्षि अच्छि । इक्षुः उच्छु । उक्षा उच्छा । ऋक्ष: रिच्छो । ऋक्षम् रिच्छं । कक्ष: कच्छो । कक्षा कच्छा । कुक्षिः कुच्छी । कोक्षेयकम् कुच्छे अयं । दक्षः दच्छो । प्रक्षीणम् पच्छीणं । मक्षिका मच्छिआ। लक्ष्मीः लच्छी। वक्षः वच्छं। वृक्षः वच्छो । सदृक्षः सरिच्छो । सादृश्यम् मारिच्छं। प्रक्षीणम् पज्झीणं ।
क्ष-xक (१) मागधीमां तो 'क्ष' नोक थाय छे:
यक्षः मक्खो य:के।
राक्षसः रक्खसोल कशे । २३. संस्कृतना वस्तुवाचक शब्दना 'क' अने 'स्क' नो प्राकृतमा
'ख' थाय छे तथा पदमध्यस्थित प्क अने ‘स्क' नोक्ख' थाय छेः
__ष्क-ख, क्ख स्क-ख, क्ख निष्कम् निक्खं। पुष्करम् पोक्खरं । पुष्करिणी पोखरिणी। अवस्कन्दः अवक्खंदो। स्कन्दः खंदो। स्कन्धो खंधो । स्कन्धावारः खंधावारो।
१ जू० पा० प्र० पृ० १७-(क्ष-क्ख, क्ष-ग्छ, क्ष ज्झ-टिप्पण)
२ अक्षः अच्छो, इको । ध्वाङ्गः धंको । लाक्षा लाखा । पा. प्र० पृ० १८
३ जू० पा० प्र० पृ. ३६-३७ (क-यख, स्क:-रव, स्कन्दरत्र)
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निष्फलम् विष्णुः
विण्ह
संयुक्त प, स-स' (१) मागधीमा संयुक्त 'ष' के 'स' ने स्थाने 'स' थाय छे" उष्मा
उम्हा उस्मा। कष्टम् कट्ठे
कस्टं। धनुप्खण्डम् धणुक्खंड
धनुस्वंदं । निष्फले निस्फलं ।
विस्नु । शप्पम् सप्फ
सम्पं । शुष्कम् . मुकं
मुस्कं। प्रस्खलति
पक्खलइ पस्वलदि। बृहस्पतिः बुहप्फई बुहन्पढ़ी। मस्करी मक्खरी मन्कली। विस्मयः विम्यो
विस्मये । हस्ती
हस्ती । २४ . संस्कृत शब्दना 'त्य' नो प्राकृतमा 'च' थाय छे अने पदमध्यस्थित 'त्य' नो च थाय छे:'.
त्य-च त्यागः चाओ। त्यागी चाई । त्यति चयइ ।
त्य-च प्रत्ययः पञ्चओ। प्रत्यूषः पच्चसो। सत्यम् सच्चं । १ जूओ. पा. प्र. पृ० ५१ नि. ६८. २ एक 'ग्राम' शब्दने आ नियम नथी लागतो.
३ आ नियम 'चैत्य' शब्दने लागतो नधीः चैत्यम चइत्तं, बेरअं-(ऐ=अइ अने अन्तःस्वरवृद्धि.)
४ जू० पा० प्र० पृ. २८--(त्यचत्यच)
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२५. प्रयोगानुसारे क्यांय त्व' नो 'च,' 'ब' नो 'छ,' 'द्व' नो
'ज' अने व नो 'झ' थाय छे तथा पदमध्यस्थित 'त्व' नो च्च,
व' नो 'च्छ,' 'नो 'ज' अने 'व' नो 'म' थाय छे.
कृत्वा किच्चा। चत्वरम् चच्च। ज्ञात्वा णच्चा। दत्त्वा च्चा ।
भुक्त्वा भोचा। श्रुत्वा सोच्चा ।
थ्वच्छ
बझ पृथ्वी पिच्छी।
वन: झओ।
वज्झ विद्वान् विज्ज । बुबा बुज्झा । साध्वसम् ममसं । २६. संस्कृतमा हम्ब स्वरथी पर आवेला 'थ्य', 'श्च', 'स' अने
'प्स' नो प्राकृतमा च्छ' थाय छे. थ्य-पथ्यम् पच्छं। पथ्या पच्छा । मिथ्या मिच्छा। .
सामर्थ्यम् सामथ्य-सामच्छं । *श्च----आश्चर्यम् अच्छेरं । पश्चात् पच्छा। पश्चिमम् पच्छिमं ।
__वृश्चिकः विछिओ।
................................
१ जू० पा० प्र० पृ० ३४ (टिप्पण-चत्वरम् चच्चरं ) २ ध्वजः धजो-(पा० प्र० पृ. ३२-नि० ३८)
३ जू० प प्र० पृ. २१ (४च्छ) पृ० ३८-( श्व-च्छ) पृ० २९-(त्स-च्छ ] पृ० ३८-(स-च्छ )
४ एक मात्र 'निश्चल' शब्दने आ नियम लागतो नथी:: निश्चल:-निचलो, पाली-निको
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३३
रस-उत्सवः उच्छवो । उत्साहः उच्छाहो । उत्सुकः उच्छुओ । चिकित्सति चिइच्छइ । मत्सरः मच्छरो : संवत्सर: संवच्छरो ।
प्स- अप्सराः अच्छरा । जुगुप्सति जुगुच्छइ । लिप्सति लिच्छइ ।
च्छ---श्व
(१) प्राकृतमां 'च' नो 'च्छ' थाय छे त्यारे मागधीमां तो एथी उल थाय छे एटले 'च्छ' नो 'च' थाय छेः
उच्छलति
उच्छलइ
गच्छ
तिरिच्छि
पिच्छिलो
गच्छ
तिर्यक्
पिच्छिलः
पृच्छति
वत्सल:
पुच्छइ
वच्छलो
उश्चलदि ।
गश्च ।
तिरिश्चि ।
पिश्विले |
पुश्चदि ।
बश्वले |
'द्य, य्य, ये-ज
२७. पदनी आदिमा रहेला 'द्य', 'य्य' अने 'ये' नो 'ज' थाय छे तथा पदमध्यस्थित 'द्य' य्य' अने 'ये' नो 'ज' थाय छे:
द्य-द्युति:- जुई । द्योतः - जोओ ।
द्य-अवद्यम् अवज्जं । मद्यम् मज्जं । वैद्यः वेज्जो 1
य्य - जय्यः जज्जो । शय्या सेज्जा ।
I
र्य कार्यम् कज्जं । पर्याप्तम् पज्जतं । पर्याय: पज्जाओ । भार्या भज्जा । मर्यादा मज्जाया । वर्यम् वज्जं ।
१ जू० पा० प्र० पृ० १८ - ( द्य=ज, द्य = ज ) पालीमा केटलेक ठेकाणे 'द्य' तो 'स्य' पण थाय छे - पृ० १९ - ( यय्य टिप्पण ) २ पालीमा तो ''नो 'थिर' 'य्य' के 'रिय' थाय छे - ( जू० पा० प्र० पृ० १५-१६ )
प्रा. ५.
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र्य-य्य (१) शौरसेनीमा 'य' नो विकल्पे 'य्य थाय छे:
आर्यपुत्रः अजउत्तो अय्यउत्तो, अजउत्तो । कार्यम् . कज्ज
कय्यं, कज्ज । पर्याकुलः पज्जाउलो भय्याकुलो, पज्जाकुलो । सूर्यः मुज्जो सुय्यो, सुज्जो ।
घ--य्य' (१) मागधीमा 'ध' नो 'ग्य' थाय छ: अद्य
अज्ज अय्य । मद्यम् मज्जं मय्यं ।
विजाहरो विय्याहले ।
'ध्य, ह्य-झ २८. पदादिभुत 'व्य' अने 'ह्य' नो 'झ' याय छे अने पदमध्यस्थित
'व्य' तथा 'ह्य' नो 'झ' थाय छेः ध्य-ध्यानम् झाणं । ध्यायति झायइ । उपाध्यायः उवज्झायो । कथ्यते बज्झइ । विन्ध्यः विंझो । साध्यम् सज्झं । स्वाध्यायः सज्झाओ। य-गुह्यम् गुज्झं । नाति नज्झइ । मद्यम् मज्झं । सह्यः सज्झो। १ जूओ टिप्पण २ जुं पृ. ३३ । २ जूओ टिप्पण १ लुं पृ. ३३ । ३ जू० पा० प्र० पृ० १९-(ध्यक्ष, ध्य-ज्झ )
४ अनुस्वारथी अने गुरु के दीर्घवरथी पर आवेला कोइ पण व्यंजनना स्थानमां अहीं जणावेलां द्विरुक्त(ख, ज्झ वगेरे ) विधानो थतांनथी. माटे ज 'विन्ध्यः' नुं 'विज्झो' नहि पण 'वियो' थयु. जुओ पा. प्र. पृ० १९ टि. संध्या संझा।
५ पालीमा '' नो 'यह' थाय छे-(पा० प्र० पृ० २२-स-यह)
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२९ संस्कृतना त" नो प्राकृतमा सामान्य रीते 'दृ थाय छः
कैवर्तः केवट्टो। जतः नहो । नर्तकी नट्टई। प्रवर्तते पयट्टइ। राजवर्तकम् रायवट्टयं । वर्ती वट्टी । वर्तुलम् वटुलं । वार्ता षट्टा । संवर्तितम् संवट्टि।
महान्
(१) शौरसेनीमां क्याय क्याय 'न्त' नो 'द' थाय छे:
अन्तःपुरम् अन्तेउरं अन्देउरं । निश्चिन्तः निञ्चितो निच्चिदो ।
महंतो महंदो। १ २९ मो नियम नीचे जणावेला शब्दोमां लागतो नथी अर्थात् नीचेना शब्दोमां 'त' नो '' थतो नथीः
आवर्तकः आवत्तओ। प्रवर्तकः पवत्तओ। आवर्तनम् आवत्तणं । प्रवर्तनम् पवत्तणं । उत्कर्तितम् उक्कत्ति। मुहूर्तः मुहुत्तो। कर्तरी कत्तरी ।
मूर्तः मुत्तो। कार्तिकः कत्तिओ। मूर्तिः मुत्ती। कीर्तिः कित्ती ।
वर्तिका वत्तिआ। धूर्तः धुत्तो।
बार्तिकम् वत्ति अं। निवर्तकः निवत्तओ। संवर्तकः संवत्तओ। निवर्तनम् निवत्तणं । संवर्तनम् संवत्तणं । निवर्तकः निव्वत्तओ। ( जूओ पृ० १६ नि० ५, संयुक्त ' लादि । लोप) २ जू० पा० प्र० पृ. ५८ (तर)
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प्रज्ञा
'म्न, ज्ञ-ण ३० - संस्कृतना म्न' अने 'ज्ञ' नो प्राकृतमा 'ण' थाय छे अने
पदमध्यस्थित न' अने 'ज्ञ' नो : एण' थाय छः म्न-निन्नम् निण्णं । प्रद्युम्न पज्जुण्णो । ज्ञ-प्रज्ञा पण्णा । विज्ञानम् विष्णाणं। आज्ञा आणा । ज्ञानम् णाणं । संज्ञा संणा।
... 'ज्ञ, ञ, ण्य, न्य--अ (१) प्राकृतमा 'ज्ञ' नो 'ण' थाय छे त्यारे मागीमा 'ज्ञ नो 'ज' थाय छे अने 'ज,' 'एय' अने 'न्य नो पण 'अ' थाय छः ज्ञ----अवज्ञा अवण्णा अवज्ञआ।
पण्णा
पञआ। सर्वज्ञः सवण्ण
शब्वम् । ज..-अजलिः
अञ्जली
अञ्जली। धनञ्जयः धणंजयो घणबए।
प्राञ्जल: पंजलो पञले । ज्य--अब्रह्मण्यम् । अबम्हण्ण अबम्हनं ।
पुण्यम् पुण्णं पुझं।
पुण्यवान् पुण्णवतो पुजवते । न्य--अभिमन्युः अहिमन्नू अहिम ।
कन्यका कन्नया कञया । सामान्यम् सामन्नं शामबं । १ जू. पा. प्र. पृ० ४८ (
म्न म) टिप्पण. जू० पा. प्र. पृ. २४ ( ज्ञ=ण) टिमण.
२.-३ जूओं पृ. ३४ टिपण ४ धुं. ४ जुओ पा० प्र० पृ० २३-२४ (जन, ज्य-ज, न्य-ञ )
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३१ संस्कृतना स्तनो प्राकृतमा 'थ' थाय छे अने पदमध्यस्थित स्त नो 'थ' थाय छे'
म्तवः थवो । स्तम्भः थंभो। स्तब्धः थद्धो ठद्धो] स्तुतिः थुई । स्तोकम् थोअं । स्तोत्रम् थोत्तं । स्त्यानम् यणिं ।
अस्ति अस्थि । पर्यस्तः पल्लत्यो । प्रशस्तः पसत्थो । प्रस्तरः पत्थरो । स्वस्ति सत्थि । हस्तः हत्थो । .
र्थ, स्थ-स्त (१) 'थ' अने 'स्थ' नो मागधीमां 'स्त' थाय छेः अर्थपतिः अत्थवई अस्तवदी। सार्थवाहः सत्यवाहो शस्तवाहे । उपस्थितः
उहिओ उवस्तिदे। सुस्थितः सुडिओ
सुस्तिदे।
३२ संस्कृतना ष्ट' नो प्राकृतमा 'ठ' थाय छे अने पदमध्यस्थित 'ष्ट'
नो 'टु' थाय छे'
१ जू० पा० प्र० पृ. २७-(स्त-थ, स्त-स्थ )
२ 'समस्त' अने 'स्तम्ब' शब्दना 'स्त नो 'थ' थतो नथीः समस्तम् समत्तं । स्तम्बः तम्बो ।
३ ज. पा. प्र. पृ. २६ (-)
४ इष्टा, उष्ट्र अने संदष्ट शब्दना '' नो 'दृ' थतो नथीः इष्टा इटा 1 उष्ट्रः उहो । संदष्टम् संदर्दृ । जूओ पा०प्र० पृ. २६ टिप्पण ।
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अनिष्टम् अणिठं । इष्टः इहो । कष्टम् कळं । काष्टम् कहूँ । दष्टः दहो । दृष्टिः दिट्ठी । पुष्टः पुट्ठो । मुष्टिः मुट्ठी। यष्टिः लट्ठी । सुराष्ट्राः सुरठा । सृष्टिः सिट्ठी। __
है, ष्ठ--स्ट (१) 'ट्ट' अने 'छ' नो मागधीमा 'स्ट' थाय छ: दृ-पट्टः पट्टो पस्टे। भट्टारिका भट्टारिया भस्टालिका
भट्टिनी भट्टिणी भस्टिणी । ष्ठ--कोष्ठागारम् कोडागारं कोस्टागालं । सुछु. सुट्ठ शुस्टु ।
ट-सट (१) पैशाचीमा 'ष्ट' ना स्थाने 'सट' बोलाय छे;
कष्टम् कहें कसट । दृष्टम् दिढे दिसटं।
'ङ्म, 'म-प ३३ संस्कृतना 'ड्म अने 'क्म'नो' प्राकृतमा 'प' थाय छे अने पदमा ध्यस्थित 'ड्म' अने 'क्म' नो 'प्प' थाय छेः
'कुड्मलम् कुंपलं । रुक्मिणी रुपिणी ।
१-२ पालामा तो 'म' नो 'डुम' अने 'म' नो 'कुम' थाय छे.. (जू० पा० पृ. ४९ )
३ कोई एक ठेकाणे 'म' नो 'म' पण थाय छे:-रुक्मी हमी, रुप्पी.
४ कुइमलम्-कुडुमलं (पा. प्र. पृ. ४३ टिप्पण)
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__ 'प्प, स्प-फ ३४ संस्कृतना :प' अने स्प' नो 'फ' थाय छे अने पदमध्यस्थित
प' तथा 'स्प' नो एफ'. थाय छः प--निष्पावः निप्फावो | निप्पेषः निष्फेसो । पुष्पम् पुप्फ ।
शप्पम् सफ। स्प-स्पन्दनम् फंदणं । प्रतिस्पर्धी पडिप्फद्धी ।
बृहस्पतिः बुहप्फई ।
३५ प्राकृतमा 'ह' नो 'भ' अने पद्मध्यस्थित 'ह 'नो 'म'
विकल्पे थाय छः . . . जिह्वा निब्मा जीहा । विह्वल: विन्मलो, विहलो ।
न्म-म्म ३६ संस्कृतना 'म' नो ‘म्म थाय छे: . जन्म जम्मो । मन्मथः वम्महो । मन्मनः मम्मणं ।
"ग्म-म्न ३७ संस्कृतना 'राम' नो म्म' विकल्पे थाय छे:
तिग्मम् तिम्म, तिग्गं । युग्मम् जुम्मं, जुग्गं । १ सूओ पा० प्र० पृ. ३९ ( स्प-फ, स्पफ, प=फ) २ पदमध्यस्थित 'स्प' अने 'ए' नो प्रायः 'म' पण थाय छे निष्पुंसनम् नि घुसणं । परस्परम् परोप्परं । निष्प्रभः निप्पो ।
बृहस्पतिः बुप्पई। निस्पृहः निम्पिहो । जू० पाली प्र० पृ०३९ ३ जूओ पा० प्र० पृ० ३५-(गह्वरम् गभरं ) टिप्पण तथा पृ. ६४-ह=भ)
४ जूओ पा०प्र० पृ. ४६-(न्म-म्म) ५ पालीमा प्रायः 'रम' नो 'गुम' थाय छे:-(जू० पा०प्र० पृ.४१)
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४०
'इम, ष्म, स्म, म, क्ष्य-म्ह
३८ संस्कृतमां प्रयोजाता 'श्म', 'म', 'स्म', 'ह्म' अने पक्ष्मना 'क्ष्म'नो प्राकृतमां 'म्ह' 'थाय छे:
इम - - कश्मीराः कम्हारा । कुश्मानः कुम्हाणो ।
ष्म -- ऊष्मा उम्हा | ग्रीष्मः गिम्हो |
स्म --- अस्मादृशः अम्हारियो । विस्मयः विम्हओ ।
ह्म —— ब्रह्मा बम्हा । ब्राह्मणः चम्हणो । ब्रह्मचर्यम् बम्हरं सुझाः सुम्हा |
क्ष्म --- पक्ष्मलम् पम्हलं । पक्ष्माणि पहा |
(१) अपभ्रंशमां 'स्म' ना स्थाने 'म्भ' पण बोलाय छे:
गिम्हो
सिम्हो
ग्रीष्मः
श्लेष्मा
गिम्भो,
सिम्भो,
गिम्हो |
सिम्हो |
"इन, ष्ण, स्न, ह, ह, क्ष्ण, क्ष्म-ह ३९ संस्कृतमां प्रयोजाता 'इन', 'प्ण', 'स्त', 'ह्न', 'ह', 'क्ष्ण' अने
सूक्ष्मना 'क्ष्म'नो 'ह' थाय छे:
इन - प्रश्नः परहो । शिश्न: सिहो ।
ष्ण – उष्णीषम् उण्हीसं । कृष्णः कण्हो । जिष्णुः जिन्हू विष्णुः विण्हू
न -- ज्योत्स्ना जोण्हा । प्रस्तुतः पण्हुओ । स्नात: व्हाओ । जाहू । वह्निः वही ।
ลี
जनुः
१ जूओ पा० प्र० पृ० २ आ नियम केटलेक स्मरः सरो-- जूओ पाली प्र० पृ० ५०- ( स )
३ जूओ पा० प्र० पृ० ४६ ( नियम - ६३ ) तथा पृ० ४७ नह, म्ह ष्ण ह. पृ० ४८ टिप्पण तीक्ष्णः तिक्विणो, तिक्खो, तिण्डो । पृ० ४९ टिप्पण पूर्वाह्नः मुव्ही -1
५०- ( इम=म्ह, म=म्ह, स्म=म्ह ) ठेकाणे लागतो नथी: - रहिमः रस्सी |
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ह.- अपराह्नः अवरण्हो । पूर्वाह्नः पुटवण्हो । क्षग--- तीक्ष्णम् तिह। श्लक्ष्णम् सह । क्ष्म--- सक्ष्मम् साई।
'स्न--सिन (१) प्राकृतमा स्न' नो 'ह' थाय छे त्यारे पैशाचीमा तो क्यांय क्यांय स्न' ने बदले सिन' बोलाय छः स्नातम
व्हायं सिनातं । सुण्हा, "हुसा सिनुमा, सनुसा ।
स्नुपा
४० संस्कृतना हल'नो प्राकृतमा 'लह' थाय छः
कलारम् कल्हारं । प्रहलादः पल्हाओ ।।
४१ संस्कृतना 'ज्ञ' नो प्राकृतमा 'ज' विकल्पे थाय छे अने पदम
ध्यस्थित 'ज्ञ' नो 'ज' थाय छे:
अभिज्ञः अहिजो, अहिष्णू । आज्ञा अज्जा, आणा । आत्मज्ञः अप्पज्जो, अप्पणू । इङ्गितज्ञः इङ्गिअजो, इङ्गिअण्णू । दैवज्ञः देवज्जो, देवष्णू । प्रज्ञा पजा, पण्णा । प्राज्ञः पज्जो, पणो । मनोज्ञम् मणोज, मगुण्गं । सर्वज्ञः सबज्जो, सव्वष्णू । संज्ञा संजा, संणा।
४२ 'ह' व्यंजननो प्राकृतमा रिह' थाय छे:
अर्हति अरिहइ । अर्हः अरिहो । गर्दा गरिहा। वहः वरिहो।
१ जूओ प्रा०प्र० पृ० ४६ (नि० ६३ ) स्नानम् ।सनानं ! स्नुपा मुणिसा, सुहा, ( हुसा )
२ पालीमां ' छल 'नो 'हिल' थाय छः हादः हिलादो-पा. प्र० पृ. ३२
३ जू० पाली प्र० पृ. २४ टिप्पण-प्रज्ञानम् पजानं । ४ ओ पा. प्र. पृ० ११ (नियम १३) प्रा.६
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श, प-रिस ४३ संस्कृतना 'श' अने 'प' नो प्राकृतमा रिस' विकल्पे थाय छेः
-आदर्शः आयरिसो, आयसो । दर्शनम् दरिसणं, दसणं । . सुदर्शनः सुदरिसणो, सुदंसणो । ---वर्षम् वरिसं, वासं । वर्षशतम् वरिससयं, वाममयं ।
वर्षा वरिसा, वासा ।।
४४ संस्कृतना संयुक्त 'ल' नो इल' "थाय छः
___ अम्लम् अविलं । क्लाम्यति किलम्मइ । क्लाम्यत् किलंतं । क्लिष्टम् किलिटुं । विलन्दम् किंलिन्नं । क्लेशः किलेसो । ग्लायति गिलाइ । ग्लानम् गिलाणं । प्लुष्टम् पिलुई। प्लोपः पिलोमो । म्लायति मिलाइ । म्लानम् मिलाणं । श्लेषः सिलेमो। श्लेष्मा सिलि. म्हा । श्लोकः सिलोओ । शिष्टम् सिलिटं । शुनलम् सुइलं ।
ये-रिअ ४५ संस्कृतना र्य' व्यंजननो प्राकृतमा रिअ' थाय छे:
आचार्यः आयरिओ गाम्भीर्यम् गंभीरि। गाभार्यम् गहीरि। चौर्यम् चोरिअं । धैर्यम् धीरिअं । ब्रह्मचर्यम् बम्हचरिअं। भार्या भारिआ। वर्यम् वरिअं । वीर्यम् वारि । स्थैर्यम् थेरि । सूर्यः सुरिओ । सौन्दर्यम् मुंदरिअं । शार्यम् सोरिअं ।
१ जू. पा. प्र. पृ० ११ टिप्पण--अर्शः अरिसो । आर्षम् आरिसं।
२ ,, ,, ,, ,, ३१ (नि. ३०)
३ आ नियम क्यांय क्यांय लागतो पण नथी:-बलमः कमो । प्लयःपयो ।
४ ओ पृ० ३३-२७ मा नियम उभग्नु टिप्पण
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-
-
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र्य-रिय (१) प्राकृतनी पेठे पैशाचीमां पण क्यांय क्यांय य ने बदले 'रिय' बोलाय छः
भार्या भज्जा भारिया, भज्जा।
ह-रह
४६ ' ह्य ' नो ' यह ' प्राकृतमां विकल्पे थाय छे;
गुह्यम् गुय्हं, गुज्झं। सह्यः सय्हो, सज्झो ।
वी-उवी ४७ स्त्रीलिङ्गि पदने अते वर्तता संयुक्त 'वी'नो प्राकृतमा उत्री'
थाय छेः गुर्वी गुरुवी । तन्वी तणुवी । पृथ्वी पुहुवी । बह्वी बहुवी । लवी लहुवी । मृद्वी मउवी ।
१ जूओ पृ० ३४... मुं टिप्नण । २ जूओ नि० २८-पृ. ३४ ३ पटुः पटुनी (पालि प्र. पृ. २६२ स्त्रीप्रत्यय)
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प्रकरण ५
उपर स्टले प्रकरण २ - ३ - ४मां आपेला नियमो सामान्य नियमो कहे यछे एटले ज्यां कोई बीजो खास नियम न लागतो होय त्यां ए ज नियमो लागू थाय छे. आ नीचे जे नियमो आपवामां आवे छे ते विशेष नियमो छे एटले ज्यां आ नियमोनी प्राप्ति थती होय त्यां सामान्य नियमो न लगाडतां प्रथम आ ज नियमो लगाबवाना छे. स्वरना विशेष विकारो
४८ 'अ' विकार
(क) 'अ=आ----
नीचे जणावेला शब्दोमां आदिना ' अ ' नो विकल्पे 'आ' थाय छे:
अभियातिः आहिआई, अहिआई । प्रतिस्पर्धी पाडिष्फद्धी, पाडेफद्धी । अस्पर्शः आफंसो, अफसो। प्रवचनम् पावयणं
पाराहो,
चतुरन्तम् चाउरंतं, चउरतं । प्ररोह: दक्षिण: दाहिणो, दक्खिण | प्रवासी परकीयम् पारकेरं, परकेरें । प्रसिद्धि:
परकीयम् पारकं, परकं ।
पुनः
पुणा, दु ।
प्रकटम् पायर्ड, पयई । प्रतिपत् पाडवआ, पडिवआ। समृद्धिः प्रतिसिद्धिः पाडिसिद्धी, पडिसिद्धी । सदृक्ष :
पावासू,
पासिद्धी,
१पाली ०५२- ( अन्आ )
पवयणं ।
परोहों ।
प्रसुप्तः पासुतो, पसुतो ।
मनवी माणसी मणंसी । मनस्विनी मासिनी, मणसिणी ।
समिद्धी, समिद्धी ।
सारिच्छो, सरिच्छो इत्यादि ।
पवासू ।
पसिद्धी ।
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नीचे जणावेला शब्दोमा बिहिनत 'अ' नो इ थाय छे-ते क्यांय नित्ये थाय छे अने क्याय विकल्पे थाय छे:
ईपत् इसि । उत्तमः उत्तिमो । कतमः कइयो । कृपणः क्रिविणो। दत्तम् दिण्णं । मरिचम् मिरि । मध्यमः मज्झिमो । मृदङ्गः मुइंगो। वेतसः वेडिसो । व्यजनम् विअणं । व्यलीकम् विलीअं स्वप्नः सिविणो। वैकल्पिक उदाहरणोः
अङ्गारः इंगारो, अंगारो। ललाटम् णिडालं, णडालं । पक्वम् पिकं, पकं । सप्तपर्णः छत्तिवण्णो, छत्तवण्णो । (ग) अ-ईनीचे आपेला शब्दना आद्य 'अ' नो विकल्पे ई थाय छेः
हरः हीरो, हरो।
नीचे सूचवेला शब्दोमां चिह्नित 'अ' नो 'उ' थाय छेते क्याय नित्य थाय छे अने क्याय विकल्पे थाय छः
अभिज्ञः अहिण्णू। गवयः गउओ । आगमज्ञः आगमण्णू। गवयाः गउआ कृतज्ञः कयण्णू । ध्वनिः . विज्ञः विष्ण। विष्वक वीसं. सर्वज्ञः सव्वष्णू ।
"इत्यादि।
झुणी।
१ माली प्र• पृ० ५२- ( अ-इ) २ पाली प्र. पृ. ५२-(अ ) ३ बीजा पण प्रयोगानुसारी शन्दो 'आदि' शब्दधी समजवाना छ।
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वैकल्पिक उदाहरणोः
સદ્.
खण्डितः खुडिओ,
चुडं,
चण्डम्
प्रथमम्
स्वपिति
मं, पहुमं, पुदुमं,
सुवइ,
खांडेओ ।
चंडं |
(ङ) 'अ=ए—
नीचे जावेला शब्दमां चिह्नित 'अ' नो 'ए' थाय छे-ते
एत्थ |
बह्मचर्यम्
अन्तउरं । शय्या
अंतेआरी ।
गेन्दुअं ।
पदमं ।
सोइ ।
क्यांय नित्ये थाय छे अने क्याय विकल्पे थाय छेः
अत्र
अन्तःपुरम्
अन्तश्वारी
कन्दुकम् वैकल्पिक उदाहरणो---
आश्चर्यम् अच्छेरें, अच्छरिअं । पर्यन्तः पेरतो, पज्जतो । उत्करः उकेरो, उकरो । बल्ली वेली, वल्ली । (च) अ=ओ---
१ पाली म० ० ५२ - (अमर) १ शासेय्य (पाली)
बम्हरं | सेज्जा |
सौन्दर्यम् सुन्दरं ।
नीचे जणावेला शब्दोमां चिह्नित 'अ' नो 'ओ' थाय छेते क्याय नित्ये थाय छे अने क्यांय विकल्पे थाय छे:
परस्परम् परोपरं ।
नमस्कार : नमोकारो । पद्मम् पोम्मं ।
वैकल्पिक उदाहरणो
अर्पयति ओप्पेइ अप्पे । श्वपिति सोव, सुबइ । अर्पितम् ओप्पि, अपिअं ।
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(छ) अ=अद
'मय' प्रत्ययांत शब्दमां आवेला 'म' ना 'अ' नो विकल्पे 'अ'
थाय छे:
जलमयम् विषमयम्
दुःखमयम् सुखमयम्
(ज) अ-आइ---
AWAJ
(झ) 'अ' लोप
9
न पुनः न उणाइ, न उणो । पुन:- पुणाइ, पुणो ।
h
जलमइअं,
विसमअं,
दुहमइअं,
सुहमइअं.
अरण्यम् - रणं, अरण्णं ।
अलाबू:- लाऊ, अलाऊ । ४९ 'आ' विकार-
"आचार्यः आयरिओ | कांसिक: कंसिभ ।
कांस्यम् कंसं ।
पाण्डव: पंडवो ।
पांसनः पंसणो ।
पांसुः पंसू |
(*) 377-37
नीचे सूचवेला शब्दोमा अने अन्ययोमां चिह्नित 'आ' नो 'अ' थाय छे ते क्यांय नित्ये अने क्या विकल्ये थाय छे:
पृ० २६ टिप्पण २ जुं ।
जलमयं ।
विसम |
दुहमयं ।
सुहमयं ।
महाराष्ट्र: मरहट्टो । मांसम् मंस |
वांशिक: वंसिओ ।
श्यामाकः सामओ । सांयात्रिक: संजत्तिओ । सांसिद्धिकः संसिद्धिओ इत्यादि ।
१ अहीं 'पुनः' शब्दना आदि ' ५ 'नो लोप थलो छे- जूओ
२ पाली प्र० १० ५२ [ आ=अ ]
३ जूओ ० ४ नि० १ |
४ जूओ टिप्पण ( अ
) पृ० ४४
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वैकल्पिक उदाहरणोउत्खातम् उक्खय, उक्खायं । पूर्वाहः पुत्वण्हो, 'पुवाहो। कालक: कलओ, कालओ। बलाका बलया, बलाया। कुमारः कुमरो. कुमारो। ब्राह्मणः बम्हणो, बाम्हणो । खादिरम् खरं, खाइरं । स्थापितः ठविओ, ठाविओ । चामर: चमरो, चामरो। -(परिष्ठापितः परिविओ, परिठ्ठाविओ। तालवृन्तम् तलवेट, तालवेटं । संस्थापितः संठविओ, संठाविओ । ) नाराच: नराओ, नाराओ। हालिकः हलिओ, हालिओ इत्यादि. प्राकृतम् पययं, पाययं। अध्ययो---
अथवा अहव, अहवा । तथा तह, तहा । यथा जह, नहा । वा व, वा । हा हा हा इत्यादि । (ख) आई.-- नीचेना शब्दोमां चिह्नित 'आ' नो विकल्पे 'इ' थाय छे:
आचार्थः आइरिओ, आयरिओ। कासः कुप्पिसो, कुप्पासो ।
निशाकरः निसिअरो, निसाअरो। (ग) आई..---
खल्वाटः खल्लीडो।
म्त्यानम् ठीण ( थीण)। (च) आ-उ
आर्द्रम् उल्लं । साना सुण्हा । स्तावकः युवओ।
१ आ बन्ने रूपो आचार्य हेमचंद्रने संमत नथीः प्रा० च्या ० अ. ८-१-६७-पृ. १३
२ ओ पृ० ३७ नि. ३१
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(छ) आ-ऊ--- __ आर्या अज्जू ।
आसार: उसारो, आमारो ( वैकल्पिक) (ज) आ-ए--
___ ग्राह्यम् गेझं । वैकल्पिक--
असहायः असहेजो, असहजो । एतावन्मात्रम् एतिअमेत्तं, एत्तिअमत्तं । भोजनमात्रम् भोअणमेतं, भोअणमतं । द्वारम् देरं, दारं । पारापतः पारेवओ, पारावओ। पश्चात्कर्म पच्छेकम्मं, पच्छाकम्म ।
पुराकर्म पुरेकम्म, पुराकम्मं । (झ) आ-ओ__ आर्द्रम् ओलं । आली ओली ।
५० इ-विकार (क) इ-अइति' इभ । तितिरिः तित्तिर-तित्तिरो । पथिन् पह-- १ आ शब्दनो प्रयोग — सासू' अर्थमां ज थाय छे । २ पा प्रि. पृ० .३ [ आए]
३ वैदिक 'गृह्यम् ' (का० ३-१-११८) उपरथी प्रा. गिझं गेझ' विशेष सुकर जणाय छे.
४ जूओ पृ. ३३ नि० २७
५ आ शब्दने ‘क्ति' अर्थमा ज वापरवानो छ। ....ओली .. J• ओळ, ओळवू ।
६ पाली प्र. पृ. ५३.- ( इ.) ७ आ अध्ययने वाक्यनी आदिमां ज वापरलानु छे. प्रा. ७
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पहो । पृथिवी हई । प्रतिश्रुत पशुआ । विभीतकः बहेडी | मूषिकः मूसओ । हरिद्रा हलहा ।
वैकल्पिक -
---
इङ्गुदम्
अंगुअं,
सदिलं,
शिथिलम् [ प्रशिथिलम् पसदिलं,
(ख) 'इई–
जिह्वा
विंशति
वैकल्पिक --
जीहा ।
बीमा |
निम्सरति
निःसहम्
(ग) इः-उ
नीसरइ.
नीसहं,
इक्षुः उच्छ ।
* दु ।
द्विजातिः दुआई ।
द्विधा "हा |
द्विमात्रः दुमतो |
द्विरेख: दुरेहो । द्विवचनम् दुवयणं ।
शि
सिंहः
सिंहदत्तो | सिंहराजः सिंहराओ ।
इंगुअं |
सिढिलं |
पसिढिलं | ]
तीसा |
सीहो ।
निस्सरइ ।
निस्सहं ।
द्विविधः दुविहो ।
निणु
नि नु ।
निमज्जति णुमज्जइ ।
निमग्नः मन्नो ।
प्रवासिन् पावासु - पावासू ।
प्रवासिकः पावासुओ |
१ संज्ञासूचक शब्दोमां आ नियम लगतो नश्रीः- -सिंहदत्तः
२ पाळी ० ० ५३ - ( इ-उ )
३ इक्षुः उच्छु (पाली ) ४० पाली प्र० पृ० ३२ - ( टिपण. ) ५ जुओ पृ० ५१ टिपण ३--( इ==ओ )
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वैकल्पिक ---- युधिष्ठिरः जहिलो, जहिडिलो। द्विगुणः दुउणो, विउणो ।
द्वितीयः दुइओ बिइभो। (घ) 'इ-ए--- मिरा मेरा वैकल्पिक--
किंशुकम् केमुझं, किंमुअं । (ङ) =ओ---
द्विवचनम् दोवयणं। वैकल्पिक
द्विधा दोहा, दुहा। (च) नि-ओवैकल्पिकनिर्झरः ओझरो, निझरो ।
___५१ ई-विकार
(क) ई-अ
हरीतकी
हरडई।
१ पाली प्र. पृ. ५३-(इ-ए) २ पाली प्र. पृ. ५३-- (इओ) ३ साधारण रीते आ बन्ने शब्दनो प्रयोग 'कृ' धातुनी पूर्व थाय छे:-- द्विधा क्रियते दुहा किजइ, दोहा कि.जह । द्विधा कृतम्
दुहा इ(कि) अं, दोहा इ(कि) अं। ४ पाली प्र. ५३-ई-अ) ५ हरीतकी हरी टकी (पाली)
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(ख) ई--आ---
कराराः कम्हारा । (ग) ई-इ
नीचेना शब्दोमां ई' नो 'इ' थाय छे-ते क्याय नित्ये अने क्याय विकल्पे थाय छे:
अवसीदत् ओसिअंतं । द्वितीयम् दुइअं । आनीतम् आणि। प्रदीपितम् पलिवि। गभीरम् गहिरं । प्रसीद पसि। जीवतु जियउ। वल्मीकः वम्मिओ। तदानीम् तयाणि । वीडितम् विलिअं। तृतीयम् तइ। शिरीषः सिरिसो । वैकल्पिक---
अलीकम् अलिअं, अली। उपनीतम् उवणिअं, उवणी। करीप: करिसो, करीसो। जीवति
जीवइ । पानीयम् पाणि, पाणी।
जिवह,
जर्णिम्
जुम्णं'
जिण्णं ।
तीर्थम्
तृह'
१ अण्णं (पाली)
२ तीर्थ' शादर्नु 'तूह ' रूप सेना ' 2 नो 'ह' थया पछी न थाय छ, अन्यथा-'तित्थं ।
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वैकल्पिकविहीनः विहणो, विहीणो ।
हीनः हूणो, हीणो । (च) ई-ए.
आपीड: आमेलो। ईशः एरिसो । कीदृशः केरिसो। पीयूषम् पेजसं । विर्भातकः बहेडओ। वैकल्पिक
नीडम् नेडं, नीडं। पीठम् पे, पीद।
५२ उ-विकार (क)'उ-अ
नीचेना शब्दोमां चिह्नित 'उ'नो 'अ' थाय छे-ते क्यांय नित्ये अने क्याय विकल्पे थाय छे:
अगुरु अगरे। गुडूची गलोई। मुकुल: मउलो। गुर्वी गई।
मुकुलम् मउलं । मुकुटः मउडो । युधिष्ठिरः बहुट्ठिलो ।
मुकुरम् मउरं । सौकुमार्यम् सोअमलं । वैकल्पिक---- उपरि अवरिं, उवरि । गुरुकः गरुओ, गुरुओ।
'पुरुष: पुरिसो। पौरुषम् परिसं । भृकुटिः भिउडी ।
१ मुकुलम् मकुलं (पाली प्र० पृ. ५३-3-अ) २ राली प्र० पू० ५४ (उद)
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(ग) उ-ई-क्षुतम् छी ।
(घ) उ=ऊ --
दुर्भगः गृहवो, दुहओ | मुसलम् मूसल, मुसलं | (ङ) उ=ओ
कुतूहलम् कोउहलं, कुऊहलं । ५३ ऊ-विकार
(क) अ-
टुकूलम दुअलं, दुउलं । सूक्ष्मम् सहं, मुहं ।
( ख ) ऊ=३---
नूपुरम् निउरं, नूउरं ।
(ग) ऊ =ई
उद्वयूढम् उनी, उब्बू ।
(घ) ॐ =उ-
दुस्सहः दूसो, दुस्सहो । सुभगः सुहवो, सुहओ ।
नीचेना शब्दोमां 'ऊ' नो 'उ' थाय छे ते क्याय नित्ये अने
क्या विकल्पे थाय छे:
'कण्डूयते कंडुअइ । कण्डूया कंडुया |
कण्डूयनम् कंडुयणं ।
भ्रूकुदिः भ्रकुटिः ।
भ्रूः भुमया । वातूलः वाउलो | हनूमान् हणुमंतो ।
१ पाली प्र० पृ० ५४ ( उ=ओ )
२ पाली प्र० १० ५५ (ऊ-अ ) सरखावो भ्रूतः भ्रकुंसः ।
!
३ ' सूक्ष्म अर्थने सूचवता'
शब्द उपरथी सह रूपने उताखुं विशेष सरल लागे छे - ("श्लक्ष्णं सूक्ष्मं दक्षं कृशं तनु" ६१
अमरको० तृतीयकाण्ड )
४ अहीं 'कण्डूय' धातुनां बधां रूप समजवानां छे.
3
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वैकल्पिक:
कुतूहलम् कोहल, कोहलं । मधूकम् महुअं, महीं ।
(ङ) ऊ-एनूपुरम् नेउरं, भूउरं ।
(च) ऊ=ओ --
नीना शब्दमां 'ऊ' नो 'ओ' थाय छे ते क्यांय नित्ये अने
क्यांय विकल्पे थाय छे:--
'कर्परम् कोप्परं ।
कूष्माण्डी कोहण्डी ।
'गुडूची गोई ।
वैकल्पिक -
तूणम् तोणं, तूर्णं ।
(क) ऋ=आ
ताम्बूलम् तंबोलं ।
तूणीरम् तोणीरं ।
कृशा कासा, किसा ।
मृदुकम् माउक, मउअं ।
मूल्यम् मोल्लं ।
स्थूलम् थोरं ।
स्थूणा थोणा, थूणा ।
५४ ऋ - विकार
मृदुत्वम् माउक्के, मउत्तणं ।
(ख) "ऋ-इ---
नीचेना शब्दोमा 'ऋ' नो 'इ' थाय छे ते क्याय नित्ये अने
क्यांय विकल्पे थाय छे:
उत्कृष्टम् उकिटं । ऋद्धिः इद्धी । ऋषिः इसी ।
१ कूर्परः कप्परों (पाली )
२ गुडुची गोळोची -- पाली प्र० प्र०५५ (ऊ= ओ ) ३ पाली प्र० प्र० २ ( ऋ=इ )
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कृच्छम् किच्छं । कृतिः किंई। कृत्तिः किच्ची । कृत्या किचा । कृपः किवो । कृपणः किविणो । कृपा किवा । कृपाणम् किवाणं । कृशः किसो । कृशानुः किसाणू । कृषितः किसिओ । कृसरा कित्सरा। गृष्टि: गिट्ठी। शृद्धिः गिद्धी । घुसणम् सिणं । घृणा घिणा । तृप्तम् तितं । दृष्टम् दिटुं । दृष्टिः दिछी । धृतिः थिई । नप्तकः नत्तिओ। नृपः निवो । नशंसः निसंसो । पृथक् पिहं । पृथ्वी पिच्छी । वृहितः बिंहिओ । भृङ्गः भिंगो । भृङ्गारः भिंगारो । भृगुः भिऊ । मातृ माई ( मातृणाम् माईणं) मृदङ्गः मिइंगो । मृष्टम् 'मिट्ट । वितृष्णः विइण्हो । वृश्चिकः विचओ । वृत्तम् वित्तं । वृत्तिः वित्ती । वृद्धकविः विद्धकई । वृष्टः विट्ठो । वृष्टिः विट्ठी । वृसी विसी । व्याहृतम् वाहिअं (सं) । शगालः सिआलो। शृङ्गार; सिंगारो । सकृत् सइ । समृद्धिः समिद्धी। सृष्टम् सिटुं । सृष्टिः सिट्ठी । स्टहा छिहा । हृतम् हि । हृदयम् हिअयं । . वकल्पिक--
धृष्टः धिट्ठो, धठे। । पृष्टम् पिढें, पढें । [ पृष्टिः पिट्टी, पट्टी ] बृहस्पतिः बिहफई, वहफई । मसृणम् मसिणं, मसणं । 'मातृगृहम् माइहरं, माउहरं । मातृमण्डलम् माइमंडलं, माउमंडलं । मातृप्वसा माहसिआ, माउसिआ । मृगाङ्कः मिअंको । मयंको ।
१ आ शब्द, रसने सूचचे छ: मीठो रस, रस सिवाय बीजा अर्थमां ए. रूप वपरातुं नथी.
२ आ रूम समासमां पूर्वपद तरिके बराय ले, उत्तरपद तरिके नयी वनरातुं: महिपृष्ठम्-महिव(प) हैं।
३ ज्वारे 'मातृ' शब्द गौण होय त्यारे क्षेथी बनेला बधा रूपमा ना 'ऋ' नो 'उ'अने 'दृ' थाय ले.
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मृत्युः मिच्चू, मच्नू । वृद्धः विद्धो, बुढो । वृन्तम् विटं, वेट । शृङ्गम् सिंगं, संगं । (ग) 'ऋ-उ-- नीचेना शब्दोमां 'ऋ' नो (उ' थाय छः
ऋजुः उज्जू । ऋतुः उऊ । ऋषभः उसहो । जामातृक: जामाउओ । नप्तृकः नत्तुओ। निभृतम् निहु । निवृतम् निउअं । निर्वृतम् निव्वुअं । निर्वृतिः निव्वुई । परभृतः परहुओ । परामृष्टः परामुट्ठो । पितृकः पिउओ। पृथक पुहं । पृथिवी पुहई । पृथ्वी पहुवी । प्रभृति पहुडि । प्रवृत्तिः पउत्ती । प्रवृष्टः परहो । प्राभृतम् बाहुडं । प्रावृतः पाउओ । प्रावृष् पाउसो। भृतिः भुई । भ्रातृकः भाउओ। मातृकः माउओ। मातृका माआ। मृणालम् मुणालं। मृदङ्गः मुइंगो। वृत्तान्तः वुत्तंतो। वृद्धः वुडो । वृद्धिः वुड्डी । वृन्दम् बुदं । वृन्दावनः बुंदावणो। विवृतम् विउअं। वृष्टः बुट्टो । वृष्टि: बुट्ठी । स्पृष्टः पुट्ठो । संवृतम् संवुअं । इत्यादि।
वैकल्पिक.- . निवृत्तम् निउत्तं, निअत्तं । बृहस्पतिः बुहप्फई, बहप्फई । मृषा मुप्ता, मोसा। वृन्दारकाः बुंदारया, वंदारया । वृषभः उसहो, वसहो। (ब) -ऊ--
मृषा मूसा, मुसा। (०) (ङ) 'ऋ-ए
वृन्तम् वेट, विटं। (..) १ पाली प्र० पृ. २ ( उ) २ पाली प्र० पृ० ३ (ऋ-ए) टिप्पण । प्रा.
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(च) -ओ
मृपा मोसा, मुसा । वृन्तम् वॉट विंटं । ( वै०) (छ) ऋ अरि
हप्तः दरिओ। (ज) ऋ-हि- आवृतः आदिओ। (अ) ऋ-रि----
नीना शब्दोमा ऋ' नो रि' थाय छे-ते क्याय नित्ये. अने क्याय विकल्पे थाय छः
'अन्यादृशः अन्नारिसो। अन्यादृक्ष: अन्नारिच्छो। अन्यादृक् अन्नारि । अमृदृशः अमरिसो । अमदृक्षः अमूरिच्छो । अमदृक् अमूरि । अमादृशः अम्हारिसो। अस्माक्षः अम्हारिच्छो । अस्माहक अम्हारि । ईदृश: एरिसो। ईदृक्षः परिच्छो। ईदृक् एरि । एतादृशः एआरितो । एतादृक्ष: एआरिच्छो। एतादृक् एआरि। कीदृशः केरिसो। कीक्षः केरिच्छो। कहिक केरि। तादृशः तारिसो। तादृक्ष: तारिन्छो । तादृक् तारि। भवादृशः भवारिसो। भदादृक्षः भवारिच्छो। भवाहक भवारि। यादृशः जारिसो। यादृक्षः जारिच्छो । यादृक् जारि । युप्मादृशः तुम्हारिसो । युप्मादृक्षः तुम्हारिच्छो । युप्मादृक् तुम्हारि । सदृशः सरिसो। सदृक्षः सरिच्छो। सदृक् सरि ।
वैकल्पिक:---
ऋजुः रिज्जू , उज्जू । ऋणम् रिणं, अणं । ऋतु: रिऊ, उऊ । ऋषभः रिसहो, उसहो । ऋषिः रिसी, इसी।
१ अहीं · अन्यादृश वगेरे शब्दोमां स्वतन्त्र 'ऋ' नथी किन्तु 'दृ' मा 'नर' ले, 'द' लोप माटे जुओ पृ. १० नि० २। ।
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(१) उपर्युक्त अस्मादृश' थी मांडी सहक सुधीना बधा शब्दोना '' ना 'ऋ नो पैशाचीमा 'इ' थाय छेः
अम्मादृशः अम्हारिसो अम्हादिसो--अम्हातिसो । अन्यादृशः अन्नारिमो
अनातिसो। ईदृशः एरिसो
एतिसो । कीदृशः केरिसो
केतिसो। तादृशः तारिसो
तातिसो । भवादृशः भवारिसो
भवातिसो । यादशः जारिसो
जातिसो । गुप्मादृशः तुम्हारिसो तुम्हातिसो सदृशः सरिसो
सतिसो . ५५ ए-विकार (क) 'ए-इ. केसरम् किसरं, केसर । चपेटा चविडा, चवेडा । देवरः दिअरो, देवरो । वेदना विअणा, वेअणा । ( वै०) (ख) ए-3--
स्तेनः थूणो, थेणो । (वै.)
५६ ऐ-विकार-- (क) ऐ अअ--
उच्चस् उच्चअं। नीचेस् नीच। . १ जुओ पृ०१२ (त, द-त) . २ पालीमां कोइ ठेकाणे 'ए' नो 'ओ' थाय छः द्वेपदोसी(पा. प्र. पृ. ५५-ए-ओ)
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..शनैश्चरः सणिच्छरो । सैन्धवम् सिंधवं ।
सन्यम् सिन्न, सेन्नं । (वै०) (ग) २ऐ-ई--
धर्यम् धीरं । चैत्यवन्दनम् चीवंदणं, चेइयवंदणं । ( वै० ) (ब) ऐ अइ---
नीचेना शब्दोमा 'ऐ नो 'अइ' थाय छः
ऐश्वर्यम् अइसरिअं। कैतवम् कइअव । चैत्यम् चइत्तं । दैत्यः दइच्छो । दैन्यम् दइन्नं । दैवतम् दइअवं । भैरवः भइरवो। वैजवनः वइजवणो । वैतालीयम् वइआलीअं । वैदर्भ: वइदभो। चैदेशः वइए.सो । वैदेहः वइएहो । वैशाखः वइसाहो । वैशाल: वइसालो । वैश्वानरः वइम्साणरो । स्वरम् सइरं । इत्यादि.
वैकल्पिक-----
करवम् कहरवं, केरवं । कैलासः कइलासो, केलासो। चैत्रः चइत्तो, चेतो।देवम् दइव्वं, देव्वं । वैतालिकः वइआलिओ, वेआलिओ। वैरम् वइरं, वेरं । वैशम्पायन: वइसंपायणो, वेसंपायणो । वैश्रवणः वइसवणो, वेसवणो । वैशिकम् वइसिअं, वेसिअं। इत्यादि.
५७ ओ-विकार(क) ओ=अ---
वैकल्पिक---- अन्योन्यम् अन्नन्न, अन्नुन्नं । आतौद्यम् आवजं, आउज्जं । 'प्रकोष्ठः पवट्टो, पउट्टो, । मनोहरम् मणहरं, मणोहरं । १ पाली प्र. ० ४ (ऐ=) २ पाली प्र. पृ० ४ (ऐ ई ) ... ३ ज्यारे आ वे शब्दमां को नो 'अ थाय छे त्यारे ज तेना 'त' अने 'क नो 'व' पण थाय छे.
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शिरोवेदना सिरविअणा, सिरोविअणा।
सरोरुहम् सररुह, सरोरुहं । (ख) ओ=3
सोच्छवासः सूसासो । (ग) ओ=अउ, आअओ=अउ.-~~-गोकः गउओ । गोकाः गउआ । गो मउगऊ। ओ-आअ-गो गाअ-गाओ (पुंलिंग ):
गो गाअ-गाई ( स्त्रीलिंग)
५८ औ-विकार--- (क) औ=अउ
नांचेना शब्दोना औ नो 'अ' थाय छ: कौक्षेयकम् कउच्छेअयं । पौरः पउरो। कौरवः कउरवो।
परिसं। कउलो।
मउणं । कौशलम् कउसलं। मौलिः मउली। गउडो।
सउहं। गौरवम् गउरवं ।
सौराः
सउरा। (ख) 'औ-आ--
गौरवम् गारवम्
पौरुषम् मौनम्
कौलः
गौडः
सौधम्
१ पाली प्र० पृ० ५ (औ=आ) टिप्पण. पालीमां कोई कोई ठेकाणे 'औ' नो 'अ' पण थाय छः (औ-अ)-पाली प्र पृ. ५ टिपण.
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नांचना शब्दोमां 'ओ' नो 'उ' थाय :
दौवारिकः दुवारिओ। पौलोमी पुलोमी । मौजायनः मुंजायणो । शौण्डः सुंडो । शौद्धोदनिः सुद्धोअणी । सौगन्ध्यम् सुगन्धत्तणं । सौन्दर्यम् सुंदरं । सौवर्णिकः सुवाणिओ।
कौक्षेयकम् कुच्छेअयं, कोच्छेअयं । (वै०) (घ) औ=आव
नौः नावा।
-
१ माली प्र०पू०५-(औ-3)
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प्रकरण ६ असंयुक्त व्यंजनोना विशेष फेरफारो
५९ क-विकार--- 'कख
कर्परम् खप्परं । कील: खीलो।
कीलकः खीलओ। कुब्जः खुजो। . '-T
अमुकः अमुगो। कन्दुकम् गेंदुअं ।.... असुकः असुमो। तीर्थकरः तित्थगरो। आकर्षः आगरिसो। दुकुलम् दुगुलं । -... आकारः आगारो। मदकल: मयगलो। उपासकः उवासगो। मरकतम् मरगयं । एकः एगो। ... श्रावकः सावमो। एकत्वम् एगत्तं ।
लोकः लोगो। क-च--
'किरातः चिलाओ। कम
शीकरः सीभरो, सीअरो। (वै०) क-म----
चन्द्रिका चंदिमा।
१ पाली प्र० पृ. ५५ (क-ख) २ 'खुज' शब्द 'कुबडा' अर्थमां ज चपराय छे. ३ पाली प्र. पृ० ५५ (कग) ४ 'चिलाअ' शब्द 'भिल्ल अर्थमा ज वपराय छे.
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क------
प्रकोष्ठः पवट्ठो, पउद्यो। कन्हैचिकुरः चिहुरो। निकषः निहसो। स्फटिकः फलिहो। शीकरः सीहरो, सीअरो । (वै०)
६० ख-विकारख-क-- शृङ्खलम् संकलं । शृङ्खला संकला ।
६१ ग-विकार--- ग=म---
पुंनागानि पुनामाई । भागिनी भामिणी । ग-ल---
छागः छालो । छागी छाली। ग-वदुर्भगः 'दूहवो । सुभगः सूहयो ।
६२ च-विकार--- च-ज
पिशाची पिसाजी, पिसाई । (वै० ) च-ट
आकुञ्चनम् आउंटणं । च=ल
पिशाचः पिसल्लो, पिसाओ। (वे.) १ जूओ पृ० ६०-टिप्पण ३।
२ ज्यारे 'दु 'नो 'दू' अने 'सुनो 'सू' यतो नधी त्यारे 'ग' नो 'व' पण थतो नथी-जुओ 3--विकार (घ) उ ऊ पृ. ५४
३ पाली प्र०. पृ० ५६ (च-ज)
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च-स-
६५
खचितः खसिओ, खइओ । (वै० )
६३ ज-विकार
ज=झ
जटिल : झाडलो, जडिलो ।
६४ ट-विकार
ट - कॅटमः केवो । शंकटः सयढो । सदा सदा ।
'ट-ल – स्फटिकः फलिहो ।
चपेटा
चविला,
पाटयति फालेइ,
चविडा | (वै० )
फालेइ |
६५ उ-विकार
ट-ल-अङ्कोट : अंकोलो । अङ्कोउतैलम्
ट-ह-- पिठरः पिहडो, पिढरो ( ० )
६६ ण-विकार
(वै० )
अंकोलतेल्लं ।
'ण - ल - वेणुः वेलू, वेणू । (वै० )
६७ त-विकार
तच
तुच्छम्
चुच्छं ।
त-छ-
तुच्छम्
छुच्छं ।
त= 2 -- तगर : टगरो । तूबर : टूबरो ।
'ळ' पण थाय छे: - ( दळ पृ० ५८ )
-
ܕ
सरः टसरो ।
१ पाली प्र० १० ५८ - ( दल) पालीमा केटलेक ठेकाणे 'ट'नो
२ अहीं 'पार्टि' धातुनां वर्धा रूप समजवानां है.
३ पाली प्र० पृ० ५८ (पळ ) वेणुः बेदु - पाली
प्रा. ९,
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त-इ..
नपिना शब्दोमां त' नो 'ड' थाय छे ते वयांय नित्ये अने क्यांय विकल्पे थाय छे:----
पताका पड़ाया । 'प्रति पडि ।
[प्रतिकरोति पडिकरइ । प्रतिनिवृत्तम् पडिनिअत्तं ! प्रतिपत् पडिवया । प्रतिपन्नम् पडिवन्नं । प्रतिभासः पडिहासो । प्रतिमा पडिमा ! प्रतिश्रुत् पहुंमुआ । प्रतिसारः पहिसारो। प्रतिस्पर्धी पाडिप्फद्धी । प्रतिहासः पडिहासो । प्रतिहारः पडिहारो।]
प्रभृति पहुडि । भृतकम् मडयं । प्राभृतम् पाहुई। व्याटतः वावडो। विभीतकः बहे ओ। सूत्रकृतम् मुत्त (सूअ) गडं ।
हरीतकी हरडई। इत्यादि. वैकल्पिक-...
अवहृतम् अवहर्ड, अवहयं । अवहृतम् ओहई, ओयं । आहनग आहई,
आहयं । कृतम् कई,
कयं । दुप्कृतम्
दुरयं । मृतम् मई, मयं । वेतसः वेडिमो, वेअसो ।
सुकृतम् सुकडं सुक्यं । १ प्रतिदि - (-2) पाली प्र. पृ. ५८.
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________________
तण
अतिमुक्तकम् अणिउतयं । गर्भितः गम्भिणो ।
मप्ततिः
सत्तरी ।
तर-----
त-ल
अतसी अलसी ।
सातवाहनी
11
वैकल्पिक ----
पलितम्
तव - आतोद्यम्
पीतलम्
त= ह-
www
वैकल्पिक
६७
maggred
सातवाहनः
सालआहणी
पलिलं,
'आवज्जे,
पीवलं,
कातरः
काहलो,
भरतः भर हो,
मातुलिङ्गम् माहुलिगं,
वसतिः
वसही,
थ-विकार
निशीथः
पृथिवी
`वितस्तिः विहृत्थी |
निसीहो,
पुढवी,
-
पलिअं ।
आउज्जे ।
पीअलं ।
सालवाहणो ।
सालाहणी ।
६८
थ-ठ
प्रथमः पदम । मेथिः मेढी । शिथिर: (ल: ) सिढिलो |
}
वैकल्लिक
कायरो |
भरओ ।
१
० ६०, ३ टिप्पण |
२ वितरितः विदा () पाली ०
३ पृथिवीपी - (
) पाली
माउलिंगं ।
बसर्ड् ।
निसीहो ।
हवी |
० ५१.
५९
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________________
थ----- - पृथक् पिध, पिहं ।
६९ द-विकार 'द-ड--- .. 'दंश डंस इत्यादि. दह डह
इत्यादि. वैकल्पिक-कदनम् कडणं, कयणं । दग्धः डड्रो, दड्रो। दण्डः डंडो,
दंडो। दम्भः डम्भो, दम्भो। दर्भः डभो, दभो। दष्टः डट्ठो दह्रो । दरः डरो, दरो। दशनम् इसणं, दसणं। दाहः डाहो,
दाहो । दोला डोला, दोला । दोहदः डोहलो, दोहलो। द-ध-दीप धीप, दीप् । दीप्यते विप्पइ, दिप्पइ । (वै०) (क) द-र--संख्यावाचक शब्दना अनादिभुत, असंयुक्त अने
एकपदस्थित एवा :द' नो 'र' थाय छ:
एकादश एआरह । द्वादश बारह । त्रयोदश तेरह । (ख) द=र-कदली करली । गद्गदम् गगारं । दल-प्रदीपयति पलीवेइ । प्रदीप्तम् पलित्तं। दोहदः दोहलो।
कदम्बः कलम्बो, कयम्बो। (वै० ) दव-कदर्थितः कवट्टिओ । . द-ह-~~-ककुदम् कउहं ।
१ पाली प्र० पृ० ५९-(द-) २ अही आ बन्ने धानुनां बधों रूपो समजवानां छे. ३ अहीं 'दीप' धानुनां बयां रूपो समजवानां छे. ४ आ शब्दनो अर्थ 'केळ' थतो नथी. ५ पाली प्र. पृ० ६५-(दळ-दोहदः दोहळो) ६ अहीं 'प्रदीप्' धातुनां बयां रूपो समजवानां छे.
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७० ध-विकार ध=--- निषधः निसढो । औषधम् ओसद, ओसहं । ( वै०)
७१ न-विकार न-ह-नापितः पहाविओ, नाविओ। (वै० ) 'नल -निम्बः लिंबो, निंत्रो । (वै०)
___ ७२ प-विकार 'प-फ--पनसः फणसो । परिवः फलिहो । परिखा फलिहा ।
परुपः फरुसो । 'पाटि फाडि । [ पाटयति फाडेइ
इत्यादि ] पारिभद्रः फालिहहो । प=म—आपीडः आमेलो, आवेडो । नीपः नीमो, नीवो। (वै०) प-व-प्रभूतम् वहुतं । प-र--पापद्धिः पारद्धी ।
__७३ व-विकार "व-भ-विसिनी भिसिणी। ब-म-~-कबन्धः कमन्धो। ब-य---कबन्धः कयन्धो । (वै०)
७४ भ-विकार. भ-4 --- कैटमः केन्यो। १ पाली प्र०१० ६१-(नम्) २ साली प्र० पृ० ४०-(-फ) परुषः-फरुसो (पाली) ३ अहीं 'पाट' घातुना बधां स.पो समजवानां छे, ४ पाली प्र. पृ. ६२-( भ)
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७०
७९. म-विकार
मह - विषमः विसदो, विसमो । (वै० ) म- - - मन्मथः वम्महो ।
(
अभिमन्युः अहिबन्नू, अहिमन्नू । म=स - भ्रमरः भसलो, भमरो। (वै० ) ७६ म - अनुनासिक
नीचेना शब्दोमां 'सु' ना 'म' नो लोपथाय छे अने 'म'नो लोप थया पछी शेष रहेल ( 'मु' ना) 'उ' ने स्थाने अनुनासिक 'उ' (उँ) थाय छे:
वं ० )
०
अतिमुक्तकम् अणिउँत्तयं । कामुकः काउँओ ।
चामुण्डा चाउँण्डा | यमुना जउँणा । ७७ य-विकार
य आह-- कतिपयम् कइवाहं ।
य= - - उत्तरीयम् उत्तरिजं, उत्तरीअं। (वे० ) तृतीयः तइज्जो, तइओ । द्वितीय विइज्जो, बीओ । (वै० )
यः त - - युष्मदीयः तुम्हरो । युष्मादृशः- तुम्हारिसो। 'युमद्-तुम्ह | इत्यादि ।
"यल --- यष्टिः लठ्ठी ।
ये - व -- फतिपयम् - कइअ (वै० )
१ कोइ एकाद शब्दमां 'य' नो
स्नायुः - "हार- [ पाली सिनेक ]
२ अहीं ' शुष्मद् शब्दनां बधी जातनां रूपाने पण समजवानां छे:
युमत्पुत्र:- तुम्हपुत्त इत्या
३ पाली प्र० ५०
४ माली प्र० पृ०
६३ - यन्त्र ) ६२ - ९ य-व )
f
3 र पण यह जाय छे:
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य-ह--छाया 'छाही, छाया । सच्छायम् सच्छाह, सच्छायं ( वै०)
७८ र-विकार र-ह-किरिः किडी। पितरः पिहडो । भेर: भेडो। र डा.-....पर्याणम् पड़ायाणं, पल्लाणं । रण - करवीरः कणवीरो। १र-ल-नीचेना शब्दोमा र' नी 'ल' थाय रे-ते क्याय नित्ये
__ अने क्यांय विकल्पे थाय छः अपहारम् अवद्दालं। भ्रम: भसलो। अङ्गारः इंगालो। मुखरः मुहलो। करुणः कलुणो। युधिष्ठिरः जहुहिलो। कातरः काहलो। रुग्ण : लुको । किरातः चिलाओ। वरुणः वलुणो। चरणः चलणो। शिथिर: सिढिलो। दरिद्रः दलिदो । सत्कारः सकालो। दरिद्राति दलिद्दाइ। सुकुमारः सोमालो। दारित्र्यम् दालिदं । स्थूरः धूलो। परिखा फलिहा । स्थूरभद्रः थूलभदो। परिषः फलिहों। हरिद्रः हलिदो । पारिभद्रः फालिहद्दो। हरिद्रा हलिहा। इत्यादि. ५ आ शब्दनो अर्थ 'शोले' के 'छांयो' ज थाय छे.
२ पिचर शब्द न रूप 'पिहाथ य छे, पण 'पिड' तुं नधी :- ओ पृ०६५ (क )
३ सरग्यायो मागधी र... (पृ. २६) ४ 'भ्रमर शन रूम मसल' थाय पण 'भमल' ने थाय.
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________________
निष्ठुरः
वैकल्पिकजठरम् जदलं, जढरं ।
निहलो, निट्ठरो। बटरः बढलो, बहरो।
७९ ल-विकार 'ल=ण-नीचेना शब्दोमां आदिना ‘ल नो नित्ये अने विकल्पे
__ 'ण' थाय छेः
ललाटम् णलाडं, 'णिलाई । वैकल्पिक-- .
लाङ्गलम् मङ्गलं, लंगलं । लाङ्गलम् णशूलं, लंगूलं ।
लाहल: णाहलो, लाहलो । ल-र--- स्थूलम् थोरं ।
८० व-विकार व-भ-विह्वलः भिन्मलो, विमलो, विहलो । (वै०) व-म-शवरः समरो । वैश्रवणः बेसमणो. नीवी नीमी, नीवी । स्वतः सिमिणो, सिविणो ( वै०)
८१ श-विकार .. श-छ...--शमी छमी। शावः छावो। .
शिरा छिरा, सिरा ( वै० ) १ पाली प्र० पृ० ६३. (लम्ज)--ललाटम् नलाटं । २ जओ पृ. ४५ (अ ) ३ लाङ्गलम् नाग: पाली
[पृ० ३९ ४ 'बिहबल' शहदनु 'भिहल रूम यतुं नथी:-शुओ हव-भ, ५ पाली प्र० पृ० ६३-(२ ) शावः छायो ।
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________________
तरह, तरस इत्यादि ।
श-ह--एकादश एआरह, एआरस । दश दह, दश । दशबलः
दहबलो, दसबलो। दशमुखः दहमुहो, दसमुहो। दशरथः दहरहो, दसरहो । द्वादश बारह, बारस । त्रयोदश तेरह, तेरस इत्यादि।
८२ प-विकार. 'प-छ- 'षट् छ [षट्पदः छप्पओ । पण्मुहो छंमुहो। पष्ठः
छट्टो । षष्ठी छट्टी] ष=ण्ह---स्नुषा सुहा, सुसा । (40) .. प-है-~-पाषाणः पाहाणो, पासाणो। प्रत्यूषः पच्चूहो,पच्चूसो (२०) ... . ... ८३ स-विकार । सम्छ–सप्तपर्णः छत्तिवण्णो । सुधा छुहा । स-ह-दिवसः दिवहो, दिवसो । (वै०)
८४ ह-विकार ह-र--उत्साई: उत्थारो, उच्छाहो ।
८५ लोप नीचेना शब्दोमां नीचे जणावेला व्यंजनोनो लोप विकल्पे पाय छः । 'क' लोप--प्राकारः पारो, पायारो।
व्याकरणम् वारणं, वायरणं । ग' लोप---आगतः आओ, आगओ
१ पाली प्र. पृ. ६४-(प-छ) षट् छ । २ अहीं 'पट्' शध्दनां दधा रूमो समजवानां छे. ३ जूओ पृ० ४ १ 'ल-सिन' अने एन टिप्पण | ४ . उत्साह' शब्दनु ' उच्छार ' २८.५ थाय नहि. प्रा० १०
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________________
ज-लोप.-~दनुजः दणू, दणुओ । दनुजवधः दणुवहो, दणुअव हो। ... भाजनम् भाणं, भायणं । राजकु.लम् राउलं, रायउलं । द' लोप---उदुम्बरः उम्वरो, उबरो । दुर्गादेवी दुग्गावी,
दुग्गादे (ए) वी । पादपतनम् पावडणं, पायवडणं ।
पादपीठम् पाहिं, पायवी । 'य' लोप---किसलयम् किसलं, किसलयं । - कालायसम् कालासं, कालायसं ।
हृदयम् हि हिअयं । सहृदयः सहिओ, सहिभयो । 'ब' लोप--- ___अवटः अडो, अवडो । आवर्तमानः अत्तमाणो, आवत्तमाणो । एवमेव एमेव, एवमेव । जीवितम् जी, जीवि। तावत् ता, ताव । देवकुलम् देउलं, देवरलं । प्रावारकः पारओ, पावारओ । यावत् जा, जाव । लोप--
केटलेक टेकाणे शब्दना आदि व्यंजननो पण लोप थई जाय छ:
च अ । चिह्नम् इंधं । पुनः उणो इत्यादि ।
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प्रकरण ७ संयुक्त व्यंजनोना विशेष फेरफार [ सूचना:-आ नीचे संयुक्त व्यंजनोना विशेष फेरफारोने आपवामां आवे छे अने साथे जे जे शब्दोनां वैकल्पिक बब्बे रूपो थाय छे तेओनुं बीजं रूप लक्ष्यमा रहे ए माटे तेने पग अहीं आवा [ ] कौंसमां जणावी दीधुं छे. ]
(क)क्तक
मुक्तः मुक्को [ मुत्तो ] । शक्तः सको [ सत्तो ] । (ख) णक
रुग्णः लुको . [लुगो । (ग) त्व-क__मृदुत्वम् माउकं [माउत्तणं ] । (घ) टकदष्टः डको [दहो ] ।
८७ क्ख, ख (क) क्ष्ण-क्ख
तीशम् तिखं, [ तिण्हं] । (ख) स्त-व
स्तम्भः खंभो भो ।
१ पाली प्र० पृ. ४१ (टिप्पण) २ रुग्णः लुग्गो ( पाली प्र. पृ. ४९ टिप्पण रणग) ३ जूयो पृ. ४०-३ टिप्पण
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(ग) स्थ-ख
स्थाणुः खाणू। (घ) फ-ख-~
स्फेटक: खेडओ। स्फेटिकः खेडिओ। स्फोटकः खोडओ।
८८ ग, ङ्ग (क) क्त-ग्ग--
रक्तः रगो . [रतो]
शुल्कम्सु
ङ्गं,
(चुंगी-हिं० ) [ सुक्कं ]
(क) त=_----
कृत्तिः किंची। (ख) थ्य-च
तथ्यम तच्चं तच्छं ]
९० च्छ, छ ( क ) स्थ-छ- स्थगितम् छइअं[ थइअं] (ख) स्प-छ-स्पृहा छिहा । (ग) पच्छ--निम्पृहः निच्छिहो । निष्पिहो] ।
९१ज, न न्य-ज, अ
अभिमन्यः अहिमज्जू, अहिमञ्जू [ आहेमन्नू ]
१ आ शब्द 'महादेव ने सूचवतो होय त्यारे ते 'खाणु' न घदले 'थाणु' रूप थाय छ ।
२ शुल्कम् सुटके-(पाली प्र० पृ. ३०-टिमण) ३ अभिमन्युः अभिमान (न्यम्न-माली 4. पृ० २३)
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فف
९२ ज्झा न्ध ज्झा--- (धातु) इन्छ इज्झा (समिन्ध् समिज्झाइ । वि+इन्ध विज्झाइ)
श्चि=चु--- 'वृश्चिकः विचुओ, [विछिओ ]
चतुर्थः
( क ) ----पत्तनम् पट्टणं। मृत्तिका मट्टिआ ।
__ वृत्तः वट्टो। (ख) र्थदृ-कर्थितः कवडिओ। (ग) स्त-ट्ट-पर्यस्तः . पल्लट्टो ।
९५४, ठ. ( क ) र्थ---- अर्थः अट्ठो अत्यो
चउहो [चउत्थो (ख) स्त-ठ----
स्तम्भ्यते ठभिज्जा। स्तब्धः ठड्ढो [थद्धो ] १ वृश्चिकः विच्छिको (पाली). २ पाली प्र. पृ. ५८-(-2) ३ अर्थः अत्थो, अहो, अष्टो-(पाली प्र. पृ. १. पिरण)
४ 'अट्ठ' शब्दनो प्रयोग 'प्रयोजन' अर्थमां थाय छे अने 'अस्थ' शब्दनो 'धन' अर्थमां थाय छे.
५ लब्धा थो । स्तम्भः शंभो-स्तव्य पाली प्र. पृ. २७)
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सम्म ठंभ (धातु) स्तम्भः ठभो। स्त्यानम् ठीणं । [थीणं ] (ग) स्थ---विसंस्थुलम् विसंठुलं ।
स्थ-दु-- अस्थि अढि ।
(क) त-हु- .
गतः गड्डो। (ख) र्द-हु
कपर्दः कबड्डो । गर्दभः गड्डहो . [गद्दहो।
छड् (धातु) छर्दयति छोइ । छर्दिः
छड्डी। मर्दितः मड्डिओ। विच्छदः विच्छ हो । वितर्दिः विअडी। संमर्दः संमड्डो। १ आ ' स्तम्भ ' धातुने अहीं अस्संदार्थक. ज लेवानो छे.
२ ' स्तम्भ' शब्दनो अर्थ पण 'स्तम्भ' धातुनी जेबो ज समजवानो के
३ पाली प्र. पृ. २८-( स्थ-3) .: अभि अद्धि (पाली प. पू. २९-१५ )
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नीचे जणावेला शब्दोमां. संयुक्त 'ध' वो ड्ढ अने द थाय छे:(क) र्ध, द्ध, ग्य, ध न ...
अर्धम् अहें . [ अद्धं ] ऋद्धिः इड्ढी, इद्धी ] दग्धः दड्डो । विदग्धः विअड्डो वृद्धः । बुड्ढो, विद्धो
वुड्दी। श्रद्धाः सदा, . [सद्धा]
स्तब्धः ठड्ढो । (ख) धब्द-मूधी मुंढा, [ मुद्धा]
९८ ण्ट, ण्ड, पण न्त-एट
वृन्तम् वेण्टं ( तालवृन्तम् तालवेण्टं)
वृद्धिः
कन्दरिका कण्डलिआ ।
भिन्दिपालः भिण्डिवालो। (क) श्व-गण---
पञ्चदश पण्णरह । पञ्चाशत् पण्णासा।
. १ पाली प्र० पृ० ४२- (द-इढ, र्ध=ढ, ग्ध-ड)
२ वृतम् वाटं-(पाली प. पृ० ५८, लम्ट) .....
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(ख) तण
'दत्तम् दिण्णं । (ग) ल-गणमध्याह्नः मझण्णो, [ मज्झण्हे। ]
९९ स्थ (क) त्स=त्थ
उत्साहः उत्थारो। (ख) त्म=त्यअध्यात्म अज्झत्थं [ अज्झप्पं ]
१०० द्ध ष्ट-द्ध- आश्लिष्टः आलिद्धो ।
न्त, न्ध
मन्युः मन्त । [ मन्नू ] ह्न-न्ध --- चिह्नम् चिन्ध [ चिहं]
१०१ प, फ, फ त्म-प्प
आत्मा अप्पा । [ अत्ता]
आत्मानः अप्पाणो [ अत्ताणों ] १ 'दत्त' शाब्दनु 'दा' के 'दित्तं ' रूप यतुं नथी. २ उत्साहः-उत्साहो-(पाली प्र० पृ० ३० ) .. ३ जूओ पृ० ३६, ने एy चाधु टिप्पण।
४ पालीभाषामां .त्म नो 'तुम' यतो जणाय छे:-आत्मा आतुमा, अत्ता--(पाली प्र० पृ. ५०)
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एम-प्फ, फ--
भीष्मः भिष्फो।
श्लेप्मा' सेफो [ सिलिम्हो] स्म-प्प-- भम्म भप्पो [ भस्सो]
१०२ बभ, म्व, म्भ ध्व-भ
ऊर्ध्वम् उम्भ [ उद्धं] भ्र=म्ब--
आम्रम् अवं ।
ताम्रम् तंत्र । (क) ३म=म्भ
कश्मीराः कम्भारा [ कम्हारा] (ख) म-म्भ
ब्राह्मणः बम्भणो [ बम्हणो] ब्रह्मचर्यम् बम्भचेरं [ बम्हचेरं]
१०३ र
आश्चर्यम् अच्छेरं । तूर्यम् तूरं । धैर्यम् धीरं, [ धिज्ज ] पर्यन्तः पेरंतो। [ पजतो ] ब्रह्मचर्यम् बम्हचेरं । शौण्डीर्यम्
सोंडीरं । सौन्दर्यम् सुन्दरं । (ख) ई-र--
दशाहः दसारो । (ग) त्र-र---
धात्री धारी। १ श्लेमा सिलेसुमा, सेम्हो-(पाली प्र० पृ. ४९, म-उम् ) २ पाली प्र. पृ० १५-(म्र-म्ब नि० १८)
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१०४ ल, ल्ल
ण्ड-ल
कूष्माण्डी कोहली [ कोहण्डी]
'पर्यस्तम् पल्लहं, [ पल्लत्यं] पर्याणम् पल्लाण । सौकुमार्यम् सोअमलं ।
१०५ रस
बृहस्पतिः वहस्सई [ वहप्फई वनस्पतिः वणस्सई [ वणप्फई ]
(क) क्ष-ह- दक्षिणः दाहिणो [ दक्षिणो] (ख) ख-ह- दुःखम् दुहं [ दुक्खं ]
दुःखितः दुहिओ [ दुविखओ ] (ग) र्थ ह- तीर्थम् तूहं [ तित्थं (घ) =ह- दीर्घः दोहो, [विग्यो ] (ङ) पंह- कार्षापणः काहावणो । (च) प्प-ह- वाप्पः बाहो
१ पर्यस्तिका पल्लस्थिका-(पाली प्र० पृ. १६-टिप्पण) २ वनस्पतिः वनति-(पाली प्र० पृ. ३९- स्प='प) ३ पाली प्र० पृ. ८--नियम १० (ख)
४ आ शब्द, ये अर्थमां प्रसिद्ध छे-एक तो आंसु अने बीजो बाफ: तेमां ज्यारे ए. वाफ-गरमी-नो वाचक होय त्यारे तेनुं 'बाह ने बदले 'यप्फ' रूप थाय छे ।
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एआ
(छ) म-है- कुप्माण्डी कोहण्डी ।
कुष्माण्डम् कोहण्डं ।
१०७ द्विभाव (क) नीचे जणाव्या प्रमाणे चिह्नित व्यंजनोनो द्विर्भाव थाय छे--
ते क्यांय नित्ये अने क्याय विकल्पे थाय छे:--- ऋजुः उज्जू । यौवनम् जुब्वणं । तेलम् तेलं। विचकिलम् वेइल्लं । प्रभूतम् बहुतं। बीडा विड्डा इत्यादि। प्रेम पेम्मं ।
मण्डूकः मंडूको। वैकल्पिक:-अस्मदीयम् अम्हकेर अम्हक्केर, अम्हकेरं । एकः
एओ। कर्णिकारः . कणिआरो, कणिआरो । कुतूहलम् कोउहल्लं, कोउहलं । चिअ
चिअ (एव) चे चेअ, चेअ (एव) तणीकः तुहिक्को, तुण्हिओ। दइव्वं,
दइवं । नखः नक्खो , नहो । निहितम् निहितं, निहि। नीडम् नेड,
नीडं। १ 'चिअ' अने 'चेअ' ए. बन्ने अवधारण सूचक :अव्यय छे (हे० ८-२-१८४) अने संस्कृतमां वपराता 'चैव' साथे विशेष समानता धराये छे-उच्चारना कारणने लीधे ए. बन्ने 'व' माथी पण था शके छे,
चिअ,
देवम्
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वाहित्तो, 'सेवा,
स्रोतस्
सोअं।
थिण्णं,
मूकः मुक्को, मूओ। मृदुकम् माउकं, माउ। व्याकुलः वाउल्लो, वाउलो। व्याहृतः
वाहिओ। सेवा
सेवा । सोतं, स्त्यानम्
थीणं । स्थलः थुल्ला,
थोरो। स्थाणुः
खण्णू, खाणू । हूतम्
हूअं इत्यादि। (ख) समासमां आवेला उत्तरपदना आदिना व्यंजननो द्विर्भाव
विकल्पे थाय छे:आलान-स्तम्भः आणाल-खंभो, आणाल-वखंभो। कुसुम-प्रकरः कुसुम-पयरो, कुसुम-प्पयरो। दुः-सहः
दु-रसहो। देव-स्तुतिः देव-थुई,
देव-त्थुई। नदी-ग्रामः नइ-गामो, नइ-ग्गामो। निः-सहम् नि.सह, निस्सहं । हर-स्कन्दाः हर-खंदा, हर-वखंदा।
१०८ शब्द-विशेष विकार जे शब्दोमां कोई पण सामान्य के विशेष नियम न लागु पडतां चिह्नित भागना केटलाक विशेष विकारो थाय छे, ते आ नीचे आपवामां आवे छे:अयस्कारः
एकारो। आश्चर्यम् अच्छअरं, अच्छरिअं, अच्छरिजं अच्छरीअं ।
१ जूओ पृ. १-टिप्पण २ जें।
२ आश्चर्यम् अच्छरियं, अच्छयिरं, अच्छेरं- ( पाली प्र. पृ. ४४ टिपण)
दु-सहो,
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ओहलो
केली,
कोहलं,
चोत्थो,
चतुर्दश
उदखलः
[उऊहलो उलूखलम् ओक्खलं [उलूहलं ] कदलम् केलं,
[ कयलं ] कदली
[ कयली ] कर्णिकारः कण्णेरो, [ कणिआरो] कुतूहलम्
[ कोउहलं ] चतुर्गुणः चोग्गुणो, [च उग्गुणो] चतुर्थः
[ चउत्यो] चतुर्थी चोत्थी,
[ चउत्थी ] चोदह, [ चउदह ] चतुर्दशी चोदसी, [चउद्दसी ] चतुर्वारः चोव्वारो, [चडव्वारो] त्रयस्त्रिंशत् तेतीसा। त्रयोदश त्रयोविंशतिः तेवीसा। त्रिंशत्
तीसा। नवनीतम् नोणीअं, लोणी। 'नवफलिका नोहलिआ। नवमालिका नोमालिआ। निषण्णः गुमण्णो ,
[णिसण्णो] पूगफलम्
पोप्फले। पूगफली पोप्फली। पूतरः पोरो। मावरणम् पहरणं, पाउरणं, पावरण] । १ अशो -पाली प्र . ४४ नि० ५७
तेरह ।
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वदरम्
बदरी
मयूखः
रुदितम्
लवणम्
विचकिलम्
विंशतिः
सुकुमारः
'स्थविर:
८६
बोरं ।
बोरी !
मोहो,
रुष्णं ।
लोणं
वेइ ं ।
वीसा ।
सोमालो
थेरो ।
[ मऊहो ]
[ लवणं ]
[ सुकुमालो ]
१०९ शब्द - सर्वथाविकार
आ नीचे ते शब्दो आपवामां आवे छे जे केटलेक अंशे के सर्वथा ( पोताना मूळ रूपथी ) अन्य रूपवाळा थई जाय छेः अधस् हे ।
त्रस्तम् हित्यं, तङ्कं [ तत्थं ]
अप ओ, [ अ ]
दिशा दिसा |
अप्सरस् अच्छरसा, अच्छरा । ऐ ।
दुहिता धूआ, [दुहिआ ]
दशा दावा |
अयि अब ओ, [ अ ]
द्रहः हरो ।
आयुः आउ, [ आऊ ]
द्रहक: हरओ ।
धनुष वणुहं, [ घणू ]
आरब्धः आढतो, [ आरद्धो ] इदानीम् एहि, एत्ता, दाणिं [इआणि] धृतिः दिही, [धिइ]
शौ० दाणिं ।
१ स्थविरः = थेरो - (पाली )
२ आ सिवाय वीजे क्यांय 'ऐ' नो प्रयोग इष्ट नथी - ( जुओ पृ० १ - टिप्पण )
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ईषत् कर, [ ईसि] बहिस् बाहिं, बाहिरं। उत ओ, [ उअ ] बृहस्पतिः भयस्सई [ बहस्सई] उप ऊ, ओ, [उव] भगिनी बहिणी, [ भइणी] उभयम् अवहं, उवहं, उभयं] मलिनम् मइल[ मलिणं ] ककुभ् करहा। मातृष्वसा माउच्छा, माउसिआ। क्षिप्तम् छुई [ खित्तं] मार्जारः मंजरो, वंजरो [मज्जारो] क्षुथ् छुहा ।
बनिता विलया, वणिआ] गृहम् घरं ।
विद्रुतः विदाओ। छुप्तः छिको [ छुत्तो ] वृक्षः रुक्खो, [वच्छो] तिर्यक तिरिआ, तिरिच्छि। बैडुर्यम् वेरुलिअं, वेउज्जं । पदातिः पाइको पयाई शुक्तिः सिप्पी, [ सुत्ती] प्राण पाउसो। स्तोकम् थेवं, थोवं, थोक्कं [थो पितृष्वसा पिउच्छा, पिउसिआ। स्त्री इत्थी [थी ] पूर्वम् पुरिमं पुब्वं । शौ० पुरवं । श्मशानम् सीआणं, सुसाणं [मसाणं]
हृदयम् हिअयं पै० हितपं, हितपकं ।
१ विशेषणसूचक 'इंपत् शब्दनु ज 'कूर' रूप थाय छे, किंतु विशेष्यमून कनुं नहि.
२ 'गृहपति' शब्द- 'घरवई ने अदले 'गहवइ रूप थाय छे. ३ तिर्यक् तिरियो-(पाली) पाः प्र० पृ० १६ नि० १९) ४ पितृष्वसा पितुच्छा-( पा० प्र० पृ० ३४ टिप्पण) 'स्तोकम् थोकं-(स्त--मा०प्र० पृ. २७) ६ दमशानम् मस.नं. मुसानं-(पा. प्र. पृ. ५१-टिप्पण)
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•
११० अन्तः स्वरवृद्धि-
नीचेना शब्दोमा चिह्नित संयुक्त व्यंजननी बच्चे नीचे जणाव्या प्रमाणे स्वरो उमराय छेः
उमेरातो स्वरः
अ
'अग्नि अगणी [ अम्गी ] अर्हन् अरहन्तो अरिहंतो, अरुहंतो । अ, इ, उ
"अर्ह अरह, अरिह, अरुह । कृत्स्न: कसिणो ।
इ
कृष्णः कसणो, कसिणो [ किण्हो ] अ, इ
क्रिया: किरिया
[ किया ]
इ
अ
क्ष्मा
चैत्यम्
छद्म
"ज्या
तप्तः
" द्वारम्
द्वादश
दिप्रया
पद्मम्
छमा ।
चेइअं ।
छउमं
जीआ ।
तविओ
दुवारं
दुवालस।
दिट्ठिआ ।
पउमं
[ तत्तो ]
[ दारं ]
[ छम्मं ] उ
[ पोम्मं ]
77
hr
५. ज्या जिया - ( पा० प्र० पृ० ४४- य इ )
६ द्वारं दुवार, द्वार ( पा० प्र० पृ० ३२ टिप्पण ) ७ पा० प्र० प्र० ४९ - ( म= उम् - पद्मम् पदुमं )
I cry
इ
to b
उ
151
इ
उ
१ अग्निः अग्गि, अग्गिनि, गिनि - ( पा० प्र० पृ० ४९ ) २ अहीं 'अहं' धातुनां बधां रूपी समजवानां छे.
३ कृत्स्नः कसिणो, किन् हो, सिणो- ( मा० प्र० पृ० ४७ )
४ आ बन्ने पो वर्ण के रंग अर्थमां ज बपराय छे.
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रत्नं
5
वज्रम्
वरं
x
5
*श्री
942123141
nr 1n
उमेरातो स्वरः 'लक्षः पलक्खो ।
अ भव्यः भविओ। [भवो इ मूर्खः मुरुक्खो , [ मुक्खो ] उ रयणं ।
[ वजं ] शार्ङ्गम् सारंग!
सिरी।
सुवे। श्लाघा
सलाहा। 'स्निग्धम् सणिद्धं, सिणिद्धं, [निद्धं ] अ, इ स्नुषा "सुनुसा [सुण्हा, ण्हुसा सुसा ] उ 'सूक्ष्मम्
मुहुमं, सुहमं । उ, अ स्नेहः सणेहो. नेहो । स्याद् सिआ १ प्लक्षः पिलखो-(प्रा. प्र० पृ. ३१ नि. ३७) २ वज्रः वजिरो-(पा० पृ. १३ टिपण ) ३ श्रीः सिरी-(पा० पृ० १३ टिप्पण)
४ श्वः सुवे, स्वे-(पा० पृ. ३३ टिप्पण) श्वः सुव-सुवे-- जुओ पृ० ४६ अमए
५ श्लाघा सिलाघा-(पा. पृ. ३१) ६ स्निग्धम् सिनितो, निद्धो-(पा. पृ० ४६ नि. ५३ ) ७ जूओ पृ० ७३ तथा ४१ ८ सूक्ष्मम्= सुखुमं--(पा. पृ. १८ टिप्पण) ९ स्नेहः सिनेहो, स्नेहो, सनेहो-(पा० पृ० ४६ नि० ५३)
5
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मुरुग्धं ।
tury
:
उमरातो स्वरः स्याद्वादः सिआवाओ। इ सुघ्नम्
सुवो।
सवे | " स्वप्नः
सिविणो। 'यः हिओ [ यहो] ,
हिरी इ
१११ अक्षर- व्यत्यय-- आ नीचे जे शब्दोमां चिह्नित अक्षरोनो परस्पर व्यत्यय--- पूर्वापरभाव-थइ जाय छे ते आपवामां आवे छे:----
अचलपुरम् . अलच पुरं । आलानः आणालो. करेणूः कणेरू। महाराष्ट्रम् मरहट्ठ । . लघुकम् हलुअं लहुअं] "ललाटम् णडालं [णलाडं वाराणसी वाणारसी। हरितालः हलिआरो हरिआलो ]
हृदः द्रहो [हरो ]
१ समासान्तर्गत 'स्व'श- दनुं 'सुब' ने बदले 'स' रूप थाय छ। स्वजनः सजणो
२ .यः हीयो, हिट्यो-(५. पृ० २२ टिपण ) ३ हो: हिरी-(पा० पृ० १३ टिप्पण) .. . ४ जुयो पृ. ७२ ल="
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अन्याश
एह ।
ईदृश
अपभ्रंश-आदेशो , (१) नीचे जणावेला शब्दोनों अपभ्रंश रूपो आ प्रमाणे छः अन्यादृश ('अन्नादि (इ) स ) अन्नाइस ।
अवराइस । ३दृक्
(ईदि (इ) स) अइस । कीहक् कीदृश (कीदि (इ) स) कइस । ताइक् . . . ... ... . तेह ।। तादृश . ( तादि (३):सः), तइस ।। यादृक् यादृश . (जादि (इ) स ) मइस । वर्म
विच। विषण्ण
बुन्न । अपभ्रंशनां उमेरणो . (१) अपभ्रंशमा कोइ कोइ शब्दमां कोई कोई अक्षरनो वधारा तरीके उमेरो थइ जाय छे:--
उक्तम् उस वुत्तं (व' नो वधारो) परस्परं परोप्परं अपरोप्परं .. ('अ' नो वधारो) व्यासः . वासो बासु, वासु (र' नो वधारो ):
जेह ।
- १ आ ( ) काउंसमां आपेलां रूपो अपभ्रंशरूपोनी पूर्वाधा स्थाना सूचक छे, आ शठदोनों प्राकृतरूपा जोषा माटे जूओ पृ० ५८ ऋ-रि पृ० ५९ ऋ-इ। . . . . . . . . . . . . : ..
__ २ जेम 'अन्य' शब्दनु अन्याश' रुप थाय छे तेम आ ' अवराइस ' शब्द जोतां तेना मूळरूप तरीके ' अपरादृश' रूप पण कल्पी शकाय।
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संधि प्रकरण ८ १ प्राकृतमा जूदां जूदां ये 'पदोना स्वरोनो संधि थाय छे अने ते पण प्रयोगानुसारे विकल्पे थाय छे:---
स्वरसंधिअ+अ आ-मगह+अहिवई-मगहाहिवई, मगहअहिवई [ मग
धाधिपतिः ]
दंड+अहीसो-दंडाहीसो, दण्डअहीसो दण्डाशिः) अ-आ-आ--विसम+आयवो-विसमायवो,विसमआयवो विषमातपः] आ+अ आरमा+अहीणो-रमाहीणो, रमाअहीणो [ रमाधीनः ] आ+आ-आ----रमा+आरामोरमारामो, रमाआरामो [ रमारामः ] इ+इ-ई -मुणि+इणो-मुणीणो, मुणिइणो [ मुनीनः ] इ+ई-ई-मुणि+ईसरो-मुणीसरो, मुणिईसरो [ मुनीश्वरः ]
दहि+ईसरो--दहीसरो, दहिईसरो [ दधीश्वरः]
१ जे चे पदोना स्वरोमां संधि थवानो छे, ते बेपदो सामासिक होय के असामासिक होय अर्थात् कोई प्रकारे जूदां जदा होवां जाइए. . जेमके; सामासिक-दंड+अहीसो दंडाहीसो, इंडअहीसो ।
असामासिक-दंडस्स+ईसो-६उत्सेसो, दंडस्स ईसो ।
प्राकृत साहित्यमा विशेष करीने सामासिक पदोना स्वरोमां संधि थएलो जणाय छे अने असामासिक पशेमां तो तेनो प्रयोग घणो ज विरल थएलो छे. असामासिक पदोमां संधि करवा जतां धणे ठेकाणे अर्थबोध दुर्लभ थई जाय छे माटे ज असामासिक करतां सामासिक पदोमां संधि-प्रयोगनो प्रचार वधु थएलो लागे छे अने ए अनुसारे अही उदाहरणामां पण सामासिक पदोनी नोंध विशेष करेली छ, कोई ठेकाणे तो फक्त एक ज पदमां पण संधि थएलो छे:----
काहि+इ--काही, काहिद [ करिष्यति ]
वि+इओ-बीओ विडओ [ द्वितीयः] २ जूओ पालिप्र. संधिकल्प नि० ३-० ५८
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ई+३-ई-- गामणी+इइहासो-गामणीइहासो, गामणी इइहासो
ग्रामणीतिहासः ] ई-1-ई-ई-- गामणी+ईसरो-गामणीसरो, गामणीईसरो [ग्रामणीश्वरः ] उ+1=3-माणु+उवज्झायो-भाणूवज्झायो, भाणुउवज्झायो ।
[भानूपाध्यायः साउ+उअयं-साऊअयं, साउउअयं [ स्वादूदकम् ] उ+ज-उ--साहु+ऊसवो, साहसवो, साहुउसवो [ साधूत्सवः ] ऊ+उ-ऊ-बहु उअरं-वहूअरं, वहूउअर [वधूदरम् ] उ+ऊ-3-कणेरू+असिअं-कणेरूसिअंकणेरूङसिकरेणूच्छूितम्] अ+इ=ए.-वास+इसी-वासेसी, वासइसी व्यासर्षिः ] आ+इ-ए-रामा इअरो,-रामेअरो रामाइअरो रामेतरः ] अ+ई-ए-वासरईसरो-वासरेसरो, वासरईसरो वासरेश्वरः ) आ+इ=ए-विलया+ईसो-क्लियेसो, विलयाईसो [वनितेशः ] अ+उ--ओ-गूढ+उअरं--गूढोअरं, गूढउअरं गूढोदरम् ] आ+उ-ओ-रमा+उवचिअं-रमोवचिों,रमाउवाचिों रिमोपचितम्] अ+3=ओ-सास+ऊसासा-सासोसासा,सासऊ.सासा,श्वासोच्छवासौं ] आ+3=ओ-विज्जुला+मुंभिभ-विज्नुलोसुंमिश्र,विज्जुलाउसुमि
विधुदुल्लसितम्] हस्व-दीर्घ विधान-- __ २ प्राकृतमा सामासिक शब्दोमा प्रयोगानुसारे (क्यांय नित्ये अने क्याय विकल्पे) हस्व स्वरनो दीर्घ स्वर थाय छे अने दीर्घ वरनो इस्व स्वर थाय छे:---
१ जुओ पालि प्र० संधि नि० २ पृ० ५७
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'हस्वनो दीर्घ-अन्त-वई -अन्तावेई [ अन्तवैदिः .
सत्त+वीसा-सत्तावीसा [ सप्तविंशतिः पइहरं- पईहरं, पइहरं . . [पतिगृहम् । भुअ+यंत-भुआयतं, भुअयंत मुंजायन्त्रम् ] वारि+मई-वारीमई, वारिमई [वारिमती]
वेलु+वणं-वेलूवणं, वेल्लुवणं वेगुवनम् । दीर्धनो हस्व-गोरी हरं-गोरिहरं, गोरीहरं [गौरीगृहम् ] १ सरखावो वैदिक प्रयोग--
अष्ट+कपालम्-अष्टाकपालम् । अष्ट+हिरण्या-अष्टादिरण्या ।
अष्ट+पदी-अष्टापदी (काशिका-६-३- १२६) सरखावो संस्कृत प्रयोग-~दान+कर्णः-दानाकर्णः । उप+नतू-उपानत् । केश+केशि--केशाकेशि । वगेरे (काशिका-६-३-- ११५ थी १३९) सरखाको पाली प्रयोग
सम्म+धम्मो-सम्माधम्मो । सम्म+संबुद्धो-सम्मा संबुद्धो । (पा० प्र० ७४ संधिकल्प,
नि० ११ तथा आ नियमनु टिप्पण) २ सरखायो वैदिक प्रयोग
अजा+सीरेण अजाण । ऊर्णा+नंदा-ऊणम्रदा।
जा+त्वन-यजत्वम् ।-(का. ६-३-६३-६४) . सरखावो संस्कृत प्रयोग-..... शिला- वहम् --~-शिलवहम् ग्रामणी+पुत्रः-प्रामणि पुत्रः। ब्रह्मवन्धू+पुत्रः--ब्रह्मबन्धुपुत्रः ।
(का० ६-३-६१ थी ६६ तथा ४३-४५)
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जउँणा+यडं-जउणयई, जउंगासडं [ यमुनातटम् ] नई-सोत्त- नइसत्तं, नईसोतं . . [ नदीश्रोतः ] मणा+सिला-मणसिला, मणासिला [ मनःशिला] वहून मुहं-वहुमुहे, वहुमूह [वधूमुखम् ] सिला+खलिअ-सिलखलिअं, सिलाखलिअं.
[शिलास्खलितम् । संधिनिषेध-- ३ .इ'ई' के 'उ' ऊ पछी कोई विजातीय स्वर आवे तो संधि थत्तो नथी अने 'ए' के 'ओ' पछी कोई पण स्वर आवे तो संधि थनो नथी... . पहावलि+अरुणो-पहावलिअरुणो [प्रभावल्यम्णः
वह+अवजढो-वहुअवऊदो [वध्ववगूढः ] वणे अडइ-वणे अडइ
वनेऽटति ] . अहोअच्छरिअं-- अहो अच्छरिअं [अहो आश्चर्यम् ] ४ स्वर पर रहेता क्रियापदमा स्वरनो संधि थतो नथी:
.. होइ+इह-होइ इह [ भवति इहं भवतीहं ] ५ उद्वृत्त स्वर पर रहेता प्रायः पूर्वना स्वरनो संधि थतो नथी:
निसा-+अरो-निसाअरो [ निशांक (च) र: १ स्वरनी साथे हेलो व्रजन लोपाया छी जे सदर थे. हे छे तेनुं नाम उद्वृत्त स्वर छे:-(असंयुक्त 'कादि' लोप-पृ० १०)
२ केटलेक ठेकाणे तो उवृत्त स्वर पर रहेता पण 'संधि थई गए लो छे:---
. कुम्भ आरो=कुम्भारो (कुम्भकारः.). चक्क+आओ-चक्काओ ( चक्रवाकः ) साल+आहणो=सालाह णो (सातवाहनः) सुनउरिसो-सरिसो ( सुपरुपः )इत्यादि
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'स्वरलोप---- ६ स्वर पर रहेता पूर्ववर्ती स्वरनो प्रयोगानुसारे लोप थाय छ:
तिअस+ईसो-तिअसांसो [ त्रिदशेशः ] नीसास उसासा-नीसासूसासा [ निश्श्वासोच्छ्वासौ ] ७ पदथीं पर आवेला 'अपि' शब्दना 'अ' नो लोप विकल्पे थाय के
केण+अवि-केणपि, केणावि [ केनापि ] कह+अपि-कहंपि, कहमवि कथमपि ] कि+अपिं-किं पि, किमवि [किमपि]
तं+अपि-तं पि, तमवि [ तदपि] ८ स्वरांत पदथी पर आवेला 'इति' शब्दना 'ई' नो लोप थइ 'ति' ने स्थाने ति' थाय छेः
तहा+इति-तहात्ति, तहत्ति [ तथेति ] पिओइति–पिओ ति, पिउति [प्रिय इति ]
पुरिसो इति पुरिसोत्ति, पुरिमुति [ पुरुष इति] ९ व्यंजनांत पदथी पर आवेला इति' शब्दना इनो लोपथाय छे:
किं+इति-किंति [ किमिति] ज+इति-जति [ यदिति] दिट्ठ+इति-दिठंति [ दृष्टमिति]
न मुत्तं+इति-न जुतं ति [न युक्तमिति] १० त्यदादि अने अव्ययथी पर आवेला त्यदादि अने अव्ययना
आदि स्वरना प्रायः लोप थई जाय छे:---- त्यदादि-त्यदादिः एस+इमो-एसमो [ एषोऽयम् ] १ जूओ पालि. सं. नि० १ (क) पृ. ५५ । २ जूओ , , , २६ पृ० ८३ ।
-
-
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९७
त्यदादि - अव्ययः अम्हे' एत्थ अम्हेत्थ | वयमत्र ] अव्यय - अव्ययः जइ एत्थ जइत्थ [ यद्यत्र ] अव्यय - त्यदादिः जइ अहं जइहं [ यद्यहम् ] जइ इमा जइमा [ यदीयम् ]
व्यंजन संधि
विसर्ग-भो
११ अकारथी पर आवेला ' विसर्ग 'नो ओ थाय छे:---
अग्रतः अग्गओ ।
अन्तः+विस्रम्भः=अंतोषी संभो ।
पुरत:-पुरओ | मनःशिला=मणोसिला | मार्गतः माओ | सर्वतः सव्वओ |
म=अनुस्वार
१२ पदने अंते रहेला मकारनो अनुस्वार थाय छे:गिरिम् = गिरिं । जलम् =जलं । फलम् = फलं । वृक्षम् = वच्छं |
१३ स्वर पर रहेता अन्त्य 'म' नो अनुस्वार विकल्पे थाय छे: उसभम्+अजिअं=उसभं अजिअं, उसममजिअं [ऋषभमजितम् ]
१ पालि प्र० सं० नि० १ (ख) पृ० ६५ - ते+अहं=तेहं |
1
२ कोई ठेकाणे डबल अनुस्वार थंई जाय छे. जेमके - वर्णामिवर्णमि ( वने )
प्रा. १३
é
म्म' नी आदिमा रहेला 'म्' नो पण
३ जूओ पालि प्र० सं० पृ० ७७ यं आहुव्यमाहु ( यदाहुः )
धनं+एवनमेव |
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ङ, अ, ण, न-अनुस्वार १५ व्यंजन पर रहेतां 'ह', 'a', 'ण' अने 'न' ने स्थाने अनुस्वार
थाय छेः ह-पङ्क्ति पति-पंती। पराङ्मुख-परंमुह-परंमुहो। न-कञ्चुक-कंचुक-कंचुओ । लाञ्छन-लंकण-लक्षणं । ण-षण्मुख छंमुख-छमुहो । उत्कण्ठा उक्कंठा। न-विन्ध्य विंझ-विंझो । सन्ध्या-संझा। ( १) शौरसेनीमा 'इ' अने 'ए' पर रहेता अन्त्य 'म' पछी
विकल्पे ' ण' उमेराय छः युक्तम् इदम् जुत्त+इणं ।
( = जुतं णिणं, जुत्तं इणं । जुत्तमिणं ।
सरिसं+इण । - मरिसं णिणं, सरिसं इणं । सक्षम् इदम्
सरिसमिणं । . किम् एतत्
किं + ए = किंणेदं किमेदं ।
किमेअं । एवम् एतत्
एवं + एअं] एव । = एवं णेदं, एक्मेदं। एवमे ।
अनुस्वार आगम. १५ नीचे जणावेला शब्दोना अन्त्य व्यंजननो लोप थइ अंत्य स्वर
उपर अनुस्वार थाय छः ऋधक् इहं । ऋधकक इहयं । तत् तं। पृथक् पिह। यत् । विष्वक् वीसुं । सम्यक् सम्मं । साक्षात् सवखं ।
१ जूओ पा० प्र० सं० नि० २. पृ० ८.---चिरं आयति-चिरं नायति, चिरन्नायति ।
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१६ नीचे जणावेला शब्दोना प्रथम स्वर उपर, द्वितीय स्वर उपर - अने तृतीय स्वर उपर प्रयोगानुसारे (विकल्पे के नित्ये) ___ अनुस्वार थाय छः प्रथम स्वर उपर-अश्रु अंसु । कर्कोटः ककोडो। कुड्मलम् कुंपलं ।
गुच्छम् गुंछ । गृष्टिः गिंठी, गिट्ठी। व्यत्रम् तंसं । दर्शनम् दसणं । पुच्छम् पुंछ । पशुः पंसू । बुघ्नम् बुंध । मार्जारः मंजारो, मज्जारो। मूर्धा मुंढा ।
वक्रम्-वकं । वृश्चिक:-विंछिओ । श्मश्रु मंसू । द्वितीय स्वर उपर-इह इहं [ इहमेगेसि] प्रतिश्रुत् पडंसुआ ।
मनस्वी--मणंसी । मनस्विनी मणंसिणी ।
मनःशिला मणसिला, मणासिला । वयस्यः वयंसो। तृतीय स्वर उपर---अतिमुक्तकम्-अणिउँतयं, अइमुंतयं, अइमुतयं।
। उपरि-अवरि । कोइ स्थळे मात्र छंदनी पूरवणी माटे पण अनुस्वार थाय छे
देवनागसुवन्नकिन्नरगणस्सन्भूअभावच्चिए-- - देघनागसुवन्न किन्नरगणस्सब्भूअभावच्चिए'।
[ देवनागसुवर्णकिन्नरगणसद्भूतभावार्चिते ] १७ जे स्थळे स्वरथी शरु यतुं पद बेवडायुं होय त्यां पच्चे 'म'
विकल्पे उमेराय छः एक+एक एक्कमेकं, एकेक (एकैकम् ) एक+एक्केण एकमेक्केण, एकेकेण ( एकैकेन ) अंग+अंगम्मि अंगमंगम्मि, अंगअंगम्मि ( अङ्गे अङ्गे) इत्यादि।
१ जूओ पा. प्र. सं. नि. १८ पृ. ७८, नि० २४ --पृ.० ८.१ २ ' श्रुतस्तव'ना छेला श्लोकन बी चरण छे----
जूओ पुस्खरवरदीवड्डे-(प्रतिक्रमण)
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१००
अनुनासिकविधान
१८ कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग अने पवर्ग पर रहेता अनुस्वारने स्थाने अनुक्रमे ङ, ञ, ण, न अने म विकल्पे थाय छे: कवर्ग — अङ्कणम् अंगणं, अङ्गणं । पङ्कः पंको, पङ्को । लङ्कनम् लंघणं, लङ्कणं । शङ्खः संखो, सङ्खो ।
चवर्ग- - कञ्चुकः कंचुओ, कओ । लाञ्छनम् लंडणं, लञ्छृणं । अजितम् अंजिअं, अजिअ । संध्या संझा, सन्झा
टवर्ग --- कण्टकः कंटओ, कण्टओ । उत्कण्ठा उक्कंठा, उक्कण्ठा । काण्डम् कांडे, काण्डे । पण्डः दो, सण्डो |
तवर्ग- -अन्तरम् अंतर, अन्तरं । पन्थः पयो, पन्थो । चन्द्रः चंदो, चन्दो | बान्धवः बंधवो, बंन्धवो ।
पवर्ग कम्पते कंपइ, कम्पड़ | फइ, वम्फइ [ काङ्क्षति ] कदम्बः कलंबो, कलम्बो । आरम्भः आरंभो, आरम्भो ।
▬▬▬
'अनुस्वार' लोप
१९ नीचे जणावेला शब्दोमा प्रयोगानुसारे ( विकल्पे के नित्ये ) अनुस्वारनो लोप थाय छे:
त्रिंशत् - तीसा | विंशतिः वीसा | संस्कृतम् - सक्कयं ।
संस्कारः --- सक्करो । इत्यादि ।
वैकल्पिक
इदानीं आणि, इआणिं ।
एवं एवं, एवं ।
१ आ नियमने कोइ नित्य विधिरूपे स्वीकारे छे.
२ जूओ पा०प्र० सं०नि० १३-५० ७५ । ३ जूओ पा० प्र० सं०नि० २५-०८२ । ४ सरखाबो रु+त्कर्ता-स्कर्ता ।
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कथम् कह, कहं । कांस्यम् कासं, कसं । किं कि, किं। किंशुकम् के अं, किंसुअं। दाणि दाणि, दाणिं [इदानीम्] नूनं नूण, नूणं ।
पांसूः पांस, पंसू। मांसलम् मासलं, मंसलं । मांसम् मासं, मंसं,। संमुखम् समुह, संमुहं । सिंहः---सीहो, सिंघो ।
इत्यादि।
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१०२ प्रकरण ९ उपसर्ग-अव्यय निपात
उक्सग्गाप-प्र---परवेइ (प्ररूपयति) पभासेइ (प्रभाषते) परा-परा---पराघाओ. (पराघातः) परानिणइ (पराजयते) भो, अव-अप- ओसरइ, अवसरइ (अपसरति)
ओसरिअं, अवसरिअं (अपसृतम् ) सं-सम्–संखिवइ (संक्षिपति) संखित्तं (संक्षिप्तम् ) अणु, अनु-अनु--अणुनाणइ (अनुनानाति) अनुमई (अनुमतिः) ओ, अव-अव-ओअरइ (अवतरति) ओआरो ( अवतारः)
ओआसो, अवयासो ( अवकाशः) ओ, नि, नी-निर-ओमलं, निम्मल्लं (निर्माल्यम् )
निग्गओ (निर्गतः) नीसहो (निस्सहः) दु, दू-दुर्-दुन्नयो (दुर्नयः) दूहवो (दुर्भगः) अभि, अहि-अभि--अभिहणइ (अभिहन्ति) अहिप्पाओ (अभिप्रायः) वि-वि --विकुब्बइ(विकुर्वति)विणओ (विनयः) वेणइआ (वैनयिकी) अधि, अहि-अधि---अज्झायो ( अध्यायः) अहीइ ( अधीते) सु, सू-सु-सुकरं ( सुकरम् ) सूहवो (सुभगः ) उ-उत्--उग्गच्छद ( उद्गच्छति ) उग्गओ ( उद्गतः) उप्प
तिआ ( औत्पत्तिकी) अइ, अति-अति--अईओ (अतीतः ) वइकतो (व्यतिक्रान्तः)
अतिसओ (अतिशयः) अञ्चन्तं (अत्यन्तम् ) णि, नि-नि-णिवेसो (निवेशः) संनिवेसो (संनिवेशः) निवि
सइ (निविशते) १ फक्त 'माल्य' शब्दनी पूर्वना ज 'निर' नो 'ओ' थाय छे,
manmainamain
-
-
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१०३ पडि, पति, परि-प्रति-पडिमा (प्रतिमा), पतिट्ठा (प्रतिष्ठा )
परिहा (प्रतिष्ठा) . . . .. परि, पलि-परि-परिवुडो (परिवृतः ) पलिहो ( परिघः) इ, पि, वि, अपि अवि-अपि-पिहेइ (पिदधाति) पिहिता (पिधाय)
किंपि, किमवि, किमपि (किमपि) कोइ, कोवि (कोऽपि) ऊ, ओ, उव--उप---उझायो, ओज्झायो, उवज्झायो (उपाध्यायः) आ-आ-आवासो ( आवासः) आयतो ( आचान्तः ) .
धात्वर्थे बाघते कश्चित् कश्चित् तमनुवर्तते । तमेव विशिनष्ट्यन्योऽनर्थकोऽन्यः प्रयुज्यते ।।
- अन्वयाइं ( अव्ययानि) अहो, हहो, हा, है, नाम, अहह, हीसि,अहह अने अरिरिहो विगेरे अनेक अन्ययो छे अने ते वधानो प्रयोग संस्कृतनी पेठे प्राकृतमां पण थाय छे, तो पण अहीं नीचे केटलाक विशेष अव्ययोनी नोंध करीए छीए:अइ
अतिशय. अइ
अयि संभावना. अईव
अतीव विशेष. अओ
अतः आथी, एथी. अकट्ट
अकृत्वा . नहि करीने. अग्गओ
अग्रतः आगळथी. अग्गे
आघे, आगळ.
संबोधन. अज
अद्य
आज.
अति
अने
अंग
अङ्ग
१ फक्त 'स्था' धानुनी पूर्वना ज 'प्रति' नो 'परि' थाय छे.
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अण (नाम्-): অামৃত अण्णहा अणंतरं अतीव
निषेध. अन्योन्य. विपरीत. आंतरा विना.
अन अन्योऽन्यम् अन्यथा अनन्तरम् अतीव अस्तम् अस्ति अस्तु
अत्थं
अस्थि अत्यु
अदर्शन, आथम, सत्तासूचक, विधिसूचक, निषेधसूचक.
अदु
अदः
अदुवा।
अथवा
पक्षांतर.
अदुव
अद्धा अन्तरम्
अद्धा अंतरं अंतो अनहा
समय.
आंतरं. अंदर, बच्चे. विपरीत
अन्तर
अन्यथा
अन्नु
(अप०)
अन्यथा
अन्नहर
आत्मनः अपरेयुः
अप्येवम्
अप्पणो अपरज्नु अप्पेव अभिक्ख अभितो अम्मो अम्महे ( शौ०)
अभीक्ष्णम् अभितः
आपणे जाते-पोते. परमदिवसे. संशय. वारंवार. चारे बाजु. आश्चर्य. 'एं हैं हं'हर्षनुं सूचना संभाषण.
अरे
अरे
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१०५
अलं
रतिकलह. सामर्थ, निषेध, परतुं. निवारण, निषेध. अवश्य.
अरति ( अरइ)
अलम् अलाहि अलंहि अवम्स अवश्यम् अवसे । (अप०) अवशेन अवस अवश्यम् अवरि उपरि अन्वो
उपर, सूचना, पश्चात्ताप, संभाषण, विम्मम, संताप, आदर, भय, अपराध, खेद, दुःख, आनंद. अनेकवार. आरंभ. नीचे. पक्षांतर.
असकृत् अथ अधस्तात्
असई अह अहत्ता अहवइ (अप०) अहव । अहवा, अहा अहे
অথবা
সা ।
जेम.
अधः,
नीचे.
अहो
अहो
आम
ओम् आविः
आहत्य आहरजाहर(अप०) एहिरेयाहिरे
आवि आहच्च
ओहो (आश्चर्य) स्वीकार. प्रकट. बलात्कार. आवरोजावरो. पादपूरक. आथी, एथी, वाक्यारंभ,
इतः
प्रा. १४
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________________
इक्कसरि इत्यत्तं इच्चत्यो
१०६ एकसृतम् (१) इत्थंत्वम् इत्यर्थः
संप्रति. ए प्रकारे. ए अर्थ. हमणां.
इयाणि
इदानीम्
पम्वहि अप०)
किल
निश्चय.
इह
अही.
सत्य.
इहयं
ऋधक् ऋधका इतरथा किम्
इहरा
अन्यथा. प्रश्न, गर्दा. थोडं
ईपत्
उत उठ्वइस (अप०) उत्तिष्ठविश उत्तरओ उत्तरतः उत्तरसुवे उत्तरश्वः
रत
तो. पश्य--जो. ऊठबेश. उत्तरथी, उत्तरमां. आवती काल पछी. विकल्प, अपि.. विकल्प, उपर.
उदाहु
उदाहो
उपि
उपरि
उरि
गर्दा, क्षेप, विस्मय, सूचना.
एतत्
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________________
एक खत.
संप्रति.
एकवार.
एक वखत.
एकइआ) एक्कइआ एकदा एकया ) एकसरिों एकसतम् (2) एक्कसि। इक्कसि (अप०)एकशः एकसि। इक्कसि । एकदा एक्कसि। " इक्कसि। एगइआ । एकदा एगया । एगयओ एकैकतः एगंततो एकान्ततः एगझं
ऐकथ्यम् एतावता। एतावता एयावया) एत्थं । अत्र
एक वरखत.
एक एक. एक तरफी. एक प्रकार. एटले.
अही.
एत्थ
।
एत्थु। एत्तहे ( अप० )अत्र एतहे (अप०) इतः
आथी, एथी, बाक्यारंभ. एव एवं
नक्की, एज प्रमाणे. व्येव' (शौ०) ,, १ जूओ रा. प्र. पृ० ७८ नि०१७
वा + एव वा येव । तेमु + एवम्तेसु येव । न + एवम्न येव । ते + एवन्ते येव ! बोधि + एवबोधि येव । सो+ एवम् सो येव ।
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ज "तासु जि" तेनो ज, एम, एप्रमाणे
जि (अप०) एवं एम्ब (अप०) एवमेव एमेव एम्वइ ( अप०)
एवम् .
, एवमेव
एम ज.
,
अगि
संभावना. सूचना, पश्चात्ताप. क्याथी.
कओ
कुतः
कर
कोइ ठेकाणे.
कहतिहु । कत्था कल्लं कह ।
कुत्रचित् कल्यम् कथम्
काले.
केम, केवी रीते.
कहं ।
क्यां.
केम, केम्ब, ) , किम, किम्व किह, किव )(अप०) कहि । कुत्र कहिं । केत्थु (अप) " कालओ कालतः
कहि (1) किं किनि किंचित्
काहे
काले करीने, वखते. क्यारे. प्रश्न, गहा.
कोई.
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________________
किंणा ) किन्नु
प्रश्न.
प्रश्न.
किण्णा किणो )
किल
नक्री
"
किल केवश्चिरं केवञ्चिरेण
केटला लांबा समय सुधी.
कियचिरम् । कियचिरेण
केवलं
केहि ( अर०)
एकल. तादीसूचन "सग्गहो केहिं" स्वर्गने माटे. नक्की .
खलु
वळी.
खाइअं (यं) खाई (अप०) खेत्तओ
क्षेत्रतः
अनर्थक-स्थलपूरणे क्षेत्रमा, क्षेत्री. नक्की गंधे.
गंधभो
गन्धतः
गुणओ
गुणतः
घई ( अप०) घुग्घ (अप०)
अनर्थक-स्थलपूरकः - घुघु-~-चेष्टानुं अनुकरण, अने. नकी.
चिओ
थे
।
छुड्डु (अप०) मओ
मेथी, कारण के
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________________
जणि
(अप०)
जाण्ये, 'इव'नुं सूचन.
जणु
।
जत्थ
जेथु
ज्यां-जेमां.
ज्या-जेमां.
जत्तु । (अप.)
जति
जो.
जदि जह
जेम, जे रीते.
जहा।
जेम, जेम्ब,) जिम, निम्ब, (अप०) .. जिह, जिध)
यथैव
जहेव
यत
जे, के.
यावत्
ज्यांसुधी.
नाव नाम नाउं भामहि (अप०) নাৰ जुअंजु
यावजीवम् युतंयुतम् (१)
जेण
ने अगिति
जीवतां सुधी. पृथक्पृथक्-जूदुजदं. जे तरफ. पादपूरक. संप्रति. शीघ्र-झट. निषेध. अवधारणा
प्रति
झटिति
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________________
णं (शौ०) प,मो णवर गरि
वाक्यालंकार वितर्क नमस्कार, केवल, अनंतर. विशेष. विपरीतता. निषेध.
णवरं
नवरम्
वि
णाइ
नैव (?)
णाई णाणा णिञ्च
जूढुंज.
नाना नित्यम्
नित्य.
नूनम्
नक्की. तर्क.
णणं
निषेध. . वाक्यारंभ, ते. जेमके. त्यारे, त्यास्पछी.
तद्यथा
तंजहा तए
ता
तेथी.
तादर्थ्य सूचन. ल, तेमां.
तत्र
ततो तत्तो নাগ (ঘ) तत्य तेतहे (अ१०) तप्पमिई तह नहा :
तत्प्रभृति तथा
त्यारथी, तेम, तेवी रीते.
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________________
तेम, तेम्ब)
तेम, तेवी रीते
तिम, तिम्ब
(अप०) तथा
तिह, विध तहेव
तथैव
तेम, तेवी रीते. त्यां-तेमां.
तत्र
त्यांसुधी. वाक्यारंभ,
तहिं . " ताव
तावत् ताउं ) ताम ( अप०) तावत् तामहिं) तिरियं । तिर्यक तिरो तिरः ती
अतीतम्
वाकुं.
छूपा. अतीत. नो. ते तरफ. त्यां-तेमां.
तेन
ततु । (अप.) तत्र
तेहिं तो
(अप०)
तादर्थ्य सूचन.
तो (अप०)
ततः, तदा
थूत्
दर
दर
तेथी, त्यारे. तिरस्कार. अडधु, ओछु. रात-दिवस. दिवस.
दिवारत्तं दिवारात्रम् दिवा, दिआ, दिवा दिवा दिवे (अप०) "
दुष्ट, खराब,
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________________
दुहओ
दुहा
दे
धणियं
धुवं
ध्रुवु (अप)
न
नउ
नाइ
नावइ
नं
( अप० )
नत्थ
नहि
नाहिं (अप ० )
निश्चं
नून
नूनं
नेव
नो
द्विवा
पहुअ
पञ्चलिउ ( अप० >
पगे
पच्छा
पच्छइ ( अप० )
प्रा. १५
""
ܕܪ
ध्रुवम्
""
न
ज्ञायते (?)
नास्ति
नहि
""
नित्यम्
नृनम्
37
नैव
नो
११३
प्रत्युत
93
प्रगे
पश्चात्
""
बन्ने बाजुथी.
बन्ने रीते, वे भागे.
संमुखीकरण, संबोधन.
बाद.
ध्रुव, चोकस.
निषेध.
गू० नो. जाण्ये, 'इव' अर्धनुं सूचन.
हिं० नांइ.
नश्री.
निषेध.
21
""
नित्य.
वितर्क,
नहि ज.
निषेध.
उल्टुं.
प्रात:
पछी.
11
काळे.
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--------------------------------------------------------------------------
________________
११४ प्रतिरूपम्
सरखं.
पडिरूवं (पं)) पतिरूवं (पं) पविरूवं (पं)) परन
परम दिवसे.
परेयुः परम्
परंतु.
पर (अप
)
परंमुहं
पराङ्मखम् परश्वः परितः
पराङ्मुख, विमुख. आवता परम दिवसे. चारे बाजु.
परसवे परितो परोप्परं । परुप्परं । अवरोप्परं ।
परस्परम्
परम्पर.
अवरुप्परं
((अप०)
,
प्रसा
पसरह पाडिकं । पाडिएक
प्रत्येकम्
हटात्. एकएक.
पातो
प्रात:
सवारे.
प्रायः
. प्रायः, घणुं करीने.
पायो पाओ प्रार प्राइव प्राइम्व पग्गिव
(अप०)
,
पिव
अपि+इस
अपि
सरा , जेवू. पण. फरीने. वळी.
एण
पुनः
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--------------------------------------------------------------------------
________________
११५
पुनरुक्तम् पुनः
" कृतकरण. फरीने, वळी.
पुणरुत्तं पुणो पुणु (अप०) पुणरवि पुरओ
पुनरपि पुरतः पुरस्तात्
फरीपण, वळीपण. आगळ.
पुरत्था पुरा
पुरा
पहेलां, भूतकाळ.
पृथक
"
परलोके. निर्धारण--चूंटी काढy, निश्चय. बहार.
बहिर्धा
बहिद्धा बहिया बहिं
भुजो
भूयः
भोः
फरीने. आमंत्रण. पाछळ.
मम्मतो
मार्गतः मनाक
मणयं
थोडु.
मणाउं (अप० )
मणे
मने
माई
माऽति
विमर्श. निषेध. सखीन संबोधन.
मामि
मा+इव
अg.
पा
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--------------------------------------------------------------------------
________________
मुहु
मूसा
मा
मं ( अप० )
मोरउल्ला
मोसा
य
यहो
र
रहो
रे
रे
रेसि, रेसिं (अप० )
लहु
व
व्व
वणे
वा
वि
(
मुहुः
मृषा
मा
विअ
त्रिणा
विणु ( अप० )
विव
वीसुं
मा
मुधा,
मृषा
त्र
ह्यः
र
रहः
रे
11
लघु
वा
गुप्त.
संभाषण.
रति + इ = रे रतिकलह.
इव
व
वा,
अपि
इव
विना
૬
वहिल ( अप० ) शीघ्रम् पढमिल्ल(?) वहेलं.
15
वारंवार.
खोडं.
इन
विष्वक
निषेध.
31
फोकट.
खोटुं.
अने.
गई काले.
पादपूरक.
तादर्थ्य सूचन
•
शीघ्र.
विकल्प, जेवुं.
जे बुं.
अनुकंपा, निश्चय, विकल्प,
संभावना.
विकल्प, जेवुं.
पण.
जे.
वगर.
"
जेवु.
व्याप्ति.
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--------------------------------------------------------------------------
________________
वे
वेव्व
वेत्रे
सइ
सइ
सक्खं
सज्जो
सनियं
सार्द्धं
सपखि
सपद्रिसिं
समं
समाशुं ( अप० )
सम्म
सयं
सया
सव्वओ
सव्वत्थ
सव्वेत हे ( अप० )
सह
सहु ( अप०
सहसा
सायं
मिय (अ)
>
वै
सदा
सकृत्
साक्षात्
सद्यः
शनैः
सार्धम्
११७
सपक्षम्
सप्रतिदिग्
समम्
समानम्
सम्यक्
स्वयम्
सदा
सर्वतः
सर्वत्र
11
सह
27
सहसा
सायम्
स्यां
निश्वय,
आमंत्रण.
भय, वारण, विषाद,
आमंत्रण.
सदा.
एकवार.
प्रत्यक्ष.
शीघ्र.
धीरे.
साथे .
बराबर सामे
12
साथे
་
17
ठीक, सां.
जाते. पोते.
सदा
बधे, बधेथी.
बघे.
་
""
साथे.
32
अविमर्श, शीघ्र, त्वरा
संध्या, सांज.
कदाच.
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--------------------------------------------------------------------------
________________
सिया ( आ )
सुवस्थि
सुवे
से
सेवं
हजे (शी० )
हंता
हंद
हंदि
हद्धी
हरे
हला
हले
हव्वं
हाहा
हिर
ही माणहे (शौ ० )
हीही (शी ० )
हु
हुहुरु (अप०)
AUCT
डा
"1
स्वस्ति
श्रः
तदेवं
""
१६८
हन्त
हन्त
हन्त
हाधिक
हारे
हाssले !
हव्यम्
हाहा
अयः
""
कल्याण.
आवती काले.
अथ, वाक्यारंभ.
समाप्ति, स्वीकार,
दासीनुं आमंत्रण. कोमलामंत्रण - हा.
गृहाणले.
खेद, विकल्प पश्चात्ताप,
3
निश्चय, सत्य, गृहाण.
खेद, निर्वेद.
क्षेप, संभाषण, रतिकलह.
एला- सखीनुं संबोधन,
एली - १
शीघ्र
खेद.
निश्वय.
विस्मय, निवेद.
खीखी ( विदूषकनुं हसवु )
निश्वय, वितर्क, विस्मय,
संभावना.
'सुरुरु' के 'सरर' अवा
जनुं अनुकरण.
दान, पृच्छा, निवारण.
नीचे
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--------------------------------------------------------------------------
________________
१९९
आ उपरांत ते बीजां सर्वादिशब्दजन्य ( यदा कदा विगेरे ) अव्ययो छे, तेनो उल्लेख तद्धित प्रकरणमां आवनारो है, खरुं
विचारिए तो
८८
―――
कड्डुं
* कत्थई
* कन्दुई
* ककुथं
करसी * खड्डुओ * खेडुं
इयन्त इति संख्यान निपातानां न विद्यते
निपात
आगळ जणाच्या प्रमाणे देश्यप्राकृत ए, प्रस्तुत प्राकृतनुं एक अंग छे. तेमां जे जे शब्दोनो प्रयोग थएलो छे ते बधा शब्दो 'निपात' ने नामे ओळखाय छे. कारण के, ए शब्दोनी रचना, कोई जातनी व्युत्पत्ति के वर्णविकारनी अपेक्षा राखती नथी. किंतु ए, लौकिक संकेत अने उच्चारण उपर निर्भर छे. अहीं एवा-देश्यप्राकृतमा पराता केटलाक - निपातो आपीए छीए:
अर्थ-
अगया
अत्य (च्छ) कं
अलं
*313
* आसीसा
* उज्जलो
अमुरा:
अकाण्डम्
आपः
आशी:
उज्ज्वल:-बली
कुतूहलम्
क्वचित्
कन्दोत्थम्
""
ककुदम्
श्मशानम
क्षुल्लकः
वेलम्
अकाले.
दिन,
पाणी.
आशिष.
बलवान्.
कोड.
उत्पल.
घ.
क्रीडा.
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________________
गौः
छिलई
*गोणो *गावी *घायणो
गायन: चश्चिक
स्थासकः
कुंभारनुं एक जातवें
उपकरण. छिछि
धिकधिक पुंश्चली
छिनाळ. *जम्मणं
जन्म झसुरं
ताम्बूलम् णामुक्कसि
कार्यम् गेलच्छो
पण्डकः नपुंसक, हीजडो. *तेआलीसा अयश्चत्वारिंशत् तेताळीश. *तेवण्णा
त्रिपश्चाशत् ते (त्रे) पन. तिमिच्छि
पोप्पं रजः पुष्पनी रज. *द्धिद्धि
विधिक *धिरत्थु
धिगम्तु *निहेलणं
निलयनम्
घर. *पक्कलो
पक्वल:
समर्थः *पश्चावण्णा
पश्चपञ्चाशत् *पणपन्ना पलही
कपास. *पडिसिद्धी
प्रतिस्पर्धा पाडिसिद्धी * भिमोरो
हिमोरः *बइलो
बलीवर्दः *भट्टिओ
भर्तृकः *आ निशानीवाळा शब्दो संस्कृत शब्दो साथै समानता धरावे छे.
पंचावन.
"
कर्षासः
बळद.
विष्णु.
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________________
तमे.
व्युत्सर्गः
१२६ भवंतो
भवान् যক্তি । बहिर्धा मैथुन, बहि. मघोणो
मरवा महन्तो
महान् मुन्वह
उद्वहति लज्जालुइणी लज्जावती लाजवंतीनो छोड, विउसग्गो
त्याग. वोसिरणं व्युत्सर्जनम् वम्हलो
अपस्मारः रोगविशेष-वाई. वायरं
बृहत्तरम् वडेरं. वढो
वटः सक्खिणो साक्षी साहुली
शाखा अपभ्रंशमा आवता केटलाक निपातो
देश्य शब्दो अप्पण
आत्मीय आपणुं.
कौतुक कोड. . खेड्ड
क्रीडा खेल, रमत. जाइडिआ यदृष्टिका जे जे जोयु. झकट
अद्भुत दडवड
अवस्कन्द दडवडवू. द्रवक्क
दृष्टि
कोड
ढक्करि
भय
टेहि
प्रा. १६
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________________
निच्चट्ट
१२२ नवख
नवक नोवं, नबुं. हिं ० अनोखा. नालि
मूढ
(नित्यस्थ--निचट्ठ) गाढ, मम्मीस
मा भैषीः मा बीश-भय न पाम, रवण्ण
रमण रम्य. वट
( वट ?) मूढ.
वटाळ, वटला.
असाधारण. (हे आले!) हे सखी. आ उपरांत बीजा पण देश्यप्राकृत शब्दो छे अने ते अनेक छे. ते माटेनी विशेष माहिती, हेमचंद्रकृत · देशीनाममाला' ने जोवाथी मळी शके तेम छे, आवा केटलाक शब्दो षड्भाषाचंद्रिका' मां पण नोंधाएला छे.
विट्टाल'
- १ आ शब्दनो विशेष संबंध सं. 'विपरिवर्त' के 'परिवर्त' साये होइ शके. बदला, पलटावू अने वटलावू ए त्रणेनी उत्पत्ति एक सरखी लागे छे.
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________________
१२३
नाम प्रकरण १०
नामना प्रकारो संस्कृत भाषामां नामोना बे विभाग ले. जेमके-स्वरांत नाम अने व्यंजनांत नाम. पण प्राकृतभाषामा तेम नथी. कारण के, व्यंजनांत नाममात्र कोइ रीते स्वरांत थया सिवाय प्राकृतभाषामां प्रयोजातुं ज नथी, एथी प्राकृतमा बधां नामो स्वरांत होय छे माटे प्राकृत नामोनो विभाग आ प्रमाणे छः ___ अकारांत, आकारांत, इकारांत. ईकारांत, उकारांत, ऊकारांत, एकारांत अने ओकारांत. [ संस्कृत ऋकारांत नामो प्राकृतमा रूपाख्यानने प्रसंगे अकारांत, आकारांत, इकारांत के उकारांत थतां होवाथी एने उपरनी गणत्रीमां जूदां गण्या नथी. ]
नामना अन्त्यस्वरनो फेरफार. १ . ग्रामणी,' खलपू' ए ज प्रकारना बीजा अनेक शब्दो ( सेनानी, सुधी; कारभू, कटपू वगेरे ) नो अन्त्य स्वर रूपाख्यानने प्रसंगे हस्व थाय छे.
२ नान्यतरजातिमां वपरातां नामोनो अन्त्य दीर्घ स्वर हस्व थाय छे.
नामनी जातिओ प्राकृत नामोनी जातिओ संस्कृत नामोनी जेवी छे. ने विशेषता छे ते आ प्रमाणे छः १ नकारांत अने सकारांत नामो प्राकृतमां नरजातिना गणाय छे. २ तरणि, प्रावृष् अने शरत् एत्रण नागो प्राकृतमां नरजातिमां
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--------------------------------------------------------------------------
________________
३ नेत्रवाचक शब्दो तेनी खास जाति उपरांत नरजातिमां पण
वपराय छे. ४ वचन, विद्युत्, कुल, छन्दस् माहात्म्य, दुःख अने भाजन वगेरे
शब्दो पोत पोतानी खास जाति उपरांत नरजातिमां पण रहे छे. ५ गुण, देव, बिंदु, खड्ग, मण्डलाय, कररुह अने वृक्ष वगेरे
शब्दो पोतानी जाति उपरांत नान्यतरजातिमां पण वपराय छे. ६ गरिमन्, महिमन् वगेरे · इमन् ' छेडावाळां नामोने अने पीणिमा (पीनत्व), पुप्फिमा ( पुष्पत्व ) वगेरे — इमा' छेडावाळां नामोने
तेओनी खास जाति उपरांत नारीजातिमां पण समनवानां छे. ७ अञ्जलि, पृष्ठ, अक्षि, प्रश्न, चौर्य, कुक्षि, बलि, निधि, विधि, रश्मि अने प्रन्थि वगेरे नामो पोत पोतानी जाति उपरांत नारीजातिमां पण वपराय छे.
वचन-विभक्तिओ गूजरातीनी पेठे प्राकृतमां द्विवचननो प्रयोग ज नथी, तेने बदले सर्वत्र बहुवचनी काम चलावाय छे अने । द्वित्व ' अर्थनी विशेष स्पष्टता माटे बहुवचनांत नामनी साथे तेना विशेषणरूपे विभक्त्यंत : द्वि' शब्दनो व्यवहार थाय छे. चतुर्थी अने षष्ठी ए बन्ने विभक्तिना प्रत्ययो एक सरखा होवार्थी चतुर्थी विभक्ति, षष्ठी विभक्तिमां समाई जाय छे तो पण कोइ स्थळे अर्थविशेषमा नाममात्रनुं चतुर्थीनुं एकवचन संस्कृतनी जेवू पण थतुं होवाथी ए बन्ने विभक्तिओने जदी जुदी गणावेली छे एथी विभक्तिओनी संख्यामां प्राकृत अने संस्कृतनी समानता छ,
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________________
प्रत्ययो नीचे जणावेला प्रत्ययो नरजातिनां अने नान्यतरजातिनां दरेक अकारांत नामोथी योजी शकाय छे.
प्राकृत भाषाना प्रत्ययो विभक्ति, एकवचन, बहुवचन, . पढमा बीआ
ण हि, हिं, हि. चउत्थी।
छठ्ठी पंचमी
त्तो, ओ, उ, हि, तो, ओ, उ. हि,
हिंतो, ० हितो, सुतो. सत्तमी सि. म्मि,
सु. संबोहण ( संबोधन ) .
तइआ
स्स, ०
शौरसेनी, मामधी, पैशाची अने अपभ्रंशमा प्रत्दयोनी विशेपता आ प्रमाणे छः
शौरसेनी पंचमी
दो, दु.
मागधी
पढ़मा घउत्थी। छठी ।
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________________
१२६ पैशाची तो, तु.
पंचमी
.
अपभ्रंश
उ, ०
पढमा
o
उ, ०
h
ण, म् सु, स्सु, हो, .
d
बीआ तइआ चउत्थी)
छट्ठी । पंचमी सत्तमी संबोहण
___
hination
उ, .
M
प्राकृत प्रत्ययोने लगता नियमो ज्या ज्या प्राकृत प्रत्ययोमा ० छे त्यां आ प्रमाणे समजवान छः पढमा-पुंलिंगी प्रत्येक अकारांत नामनुं प्रथमार्नु एकवचन ओका
संत थाय छे, अने बहुबचन आकारांत थाय छे.... बीआ-पुंलिंगी अकारांत नामनुं द्वितीयान बहुवचन आकारांत अने
एकारांत थाय छे. चउत्थी-मात्र तादीने सूचववा माटे अकारांत नामनुं चोथीन
एकवचन संस्कृतनी जेवू पण थाय छे. मात्र एक · वध' शब्दथी तादर्थ्य अर्थमा संस्कृतना आय' प्रत्ययनी नेवो वधारानो 'आइ' प्रत्यय पण लागे छे. आर्षप्राकृतमां तो केटलेक स्थळे आ ‘आइ ' प्रत्ययने बदले · आए' प्रत्यय पण वपराय छ अने ते हरकोई शब्दने लागी शके छे.
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--------------------------------------------------------------------------
________________
१२७
पंचमी---अकारांत नामर्नु पंचमीनु एकवचन आकारांत पण थाय छे. सत्तमी-~~-अकारांत नामर्नु सप्तमीनु एकवचन एकारांत पण थाय छे, संबोहण-पुंलिंगी अकारांत नामर्नु संबोधन- एकवचन आकारांत
अने ओकारांत थाय छे तथा संबोधनमा विभक्ति विनानु ए अकारांत नाम पण वराय छे अने संबोधननां
बहुवचननां रूपो प्रथमा ( पढमा ) नी जेवां थाय छे. प्रत्ययो लागतां नामना मूल अंगमां थता फेरफारो तइया---तृतीया विभक्तिना प्रत्ययो पर रहेतां अकारांत नामना
अन्त्य · अ? नो 'ए' थाय छे. पंचमी-पंचमीना एकवचननी पूर्वना अकारांत नामना अन्त्य
'अ'नो 'आ' थाय छे अने बहुवचनना स्वरादि
प्रत्ययो पर रहेतां पण अंत्य 'अ' नो 'आ' थाय छे. पंचमीना बहुवचनना · स' अने 'ह' थी शरु थता प्रत्ययो पर रहेतां अकारांत नामना अन्त्य 'अ' नो 'आ' अने 'ए' थाय छे.
का / तृतीयाना एकवचनना 'ण' उपर अने षष्ठीना छठ्ठी
तथा सप्तमीना बहुवचन उपर अनुम्वार विकल्पे थाय छे. छट्टी-छट्टीना बहुवचननो प्रत्यय पर रहेता पूर्वना नामनो कोइ
पण अन्त्य स्वर दीर्घ थाय छे. सत्तमी---सप्तमीना एकवचननो 'सि' प्रत्यय लागतां मूळ अंगना
छेवटना स्वर उपर अनुस्वार थाय छे. आ· सि' प्रत्ययवाळु
रूप विशेषे करीने 'आर्षप्राकृतमां वपरायुं छे. ... १ "एयावंती सव्वावंती लोगसि"-आ० प्र० श्रु० प्र० अ० उ० १. " लोगसि परमदंसी " आ. प्र. श्रुत: अ. उ. २.
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--------------------------------------------------------------------------
________________
१२८
सप्तर्माना बहुवचननो प्रत्यय पर रहेतां अकारांत नामना अन्त्य ¿ अ 'नो 'ए' बाय छे. शौरसेनी - प्रत्ययने लगता नियमो
पंचमी - प्राकृतमां पंचमीना एकवचनना प्रत्ययो लागतां मूळ अंगनो जे फेरफार जणान्यो छे ते शौरसेनीमां पण लागु थाय छे. बाकी बधां शौरसेनीनां रूपाख्यानो प्राकृतनी प्रमाणे छे.
मागधी - प्रत्ययने लगता नियमो
पढमा - ज्यां शून्य छे त्यां मागधीमां पुंलिंगी अकारांत नामनुं प्रथमानुं अने संबोधननुं एकवचन 'एकारांत' थाय छे. मागधीनुं आ एकारांत रूप आर्षप्राकृतमां पण वपराएलुं छे अने आ एक ज रूपनी पराशने ल िए आर्थप्राकृतने पण अर्धमागधी ' तरीके जणाववामां आवेलं छे.'
6
छठ्ठी
चउत्थी ) मागधीमां चोथी अने छठ्ठी विभक्तिमां अकारांत के आकारांत नामथी एकवचनमां 'ह' अने बहुवचनमां ' हैं ' प्रत्यय विकल्पे लागे छे अने ते ने प्रत्ययो लागतां पूर्वना स्वरनो दीर्घ थाय छे. बाकीनां बधां मागधी रूप शौरसेनी प्रमाणे समजी लेवानां छे उपर जणावेलो बहुवचननो 'हँ ' प्रत्यय प्राकृतमां पण वापरी शकाय छे. पैशाची - प्रत्ययने लगता नियमो
पंचमी - शौरसेनीमां पंचमीना एकवचनमां जे फेरफार जणान्यो छे ते पैशाची पण समजवानो छे. बाकी बधां पैशाचीनां
X
x
X
X
रूपाख्यानो शौरसेनी प्रमाणे समजवानां के.
१ जूओ हे० प्रा० व्या ० अ० ८, पा० ४, सू० २८७.
X
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________________
१२९ अपभ्रंश-प्रत्ययने लगता नियमो पढमा । ज्यां शून्य छे त्यां अपभ्रंशमां प्रथमा अने द्वितीया बीआ विभक्तिमा ( एकवचन अने बहुवचनमा ) अकारांत नाम
आकारांत थइने वपराय छे अने एमने एम पण वपराय छे. तथा प्रथमाना एकवचनमां पुंलिंगी अकारांत नाम
प्राकृतनी पेठे ओकारांत थइने पण बपराय छे. चउत्थी) ज्यां शन्य छे त्यां मूळ अंग जेमन तेम वपराय छछी छे अने दीर्वात थइने पण वपराय छे. सत्तमी-ज्यां शून्य छे त्यां मूळ अंग इकारांत अने एकारांत थइने
वपराय छे. संबोहण--ज्यां शून्य छे त्यां संबोधननां बधों रूपाख्यानो प्रथमा
विभक्ति जेवां समजवानां छे.
अपभ्रंश-प्रत्यय लागतां अंगमां थता फेरफारो । तइया-तृतीया विभक्तिना प्राकृत प्रत्ययो लागतां मूळ अंगमां के
प्रत्ययोमा जे फेरफार थाय छे ते न फेरफार अपभ्रंशना ए प्रत्ययो लागतां पण समजवानो छे अने ए उपरांत तृतीयाना बहुवचननो प्रत्यय लागतां मूळ अंग आकारांत थाय छे
अने एमनुं एम पण वपराय छे. चउत्थी । चोथी, पांचमी अने छट्ठी विभक्तिना एकवचनना पंचमी (अने बहुवचनना प्रत्ययो लागतां मूळ अंगना अंत्यस्वरनो छठ्ठी (दीर्घ विकल्पे थाय छे तथा सातमीना बहुवचननो ज सत्तमी । प्रत्यय लागतां पण मूळ अंगमां पूर्वोक्त फेरफार थाय छे. संबोहण-अपभ्रंशनुं ( एकवचन अने बहुवचन- ) संबोधनी रूप
प्रथमानी पेठे समजवानुं छे अने बहुवचननो 'हो' प्रत्यय लागतां मूळ अंगना अंत्य स्वरनो दीर्घ विकल्पे थाय छे.
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________________
वार
पुंलिंग अने नपुंसकलिंग अकारांत शब्दनां प्राकृत रूपाख्यानो (पुंलिंग-नरजाति)
वीर एकव०
बहुव० १० वीरो, ( वीरे)
वीरा. श्री वीरं
वीरे, वीरा. त० वीरेण, वीरेणं
वीरेहि, वीरेहि, वीरेहि. च०छ० वीरस्स
वीराण,वीराणं, (नीराहँ.) ता० च० वीराय, वीरस्स १ 'वीर 'नां पालिरूपो
वीरा ( वीरसे). वीरं
वीरे. धीरेहि, वीरेभि.
..-
.-.-.-.-...--
-
-
-
----
-
-...
वीरो
वीरेन बीराय,
वीरानं.
वीरस्स
वीरा, वीरस्मा, वीहि, वीरोभि.
धीरम्हा वीरस्स
वीरानं. वीरे,
वीरेसु. बारस्मि,
वीर्गम्ह ८ सं. वीर, वांग वीरा.
ओ पालिप नामकल्प अकारांत 'बुद्ध' शब्द अने ते रूपो उपरनां टिप्पणो.
२ ( ) आ निशानमा आमेलां रूपो बाहुलिक छे. ३ धीर+ - वीर (जओ प्रकरण ८, म -- अनुस्वार--१२)
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________________
वीरत्तो, वीराओ, वीराउ, वीराहि, वीराहिंतो,
वीरा स० वीरांस, वीरम्मि..
वीरे संबो० वीरो, (वीरे)
वीर, वीरा
दीरत्तो, वीराओ, वीराउ, वीराहि, वीरेहि, वीराहितो, वीरेहितो, वीरासुंतो, वीरेसुंतो. वीरेसु, वीरेसुं.
वीरा.
• वह ' ( वध ) शब्दनां रूपो ( वीर ' शब्दनी जेवां ज समजी लेवा. जे विशेष छे ते आ प्रमाणेः
ता० च० वहाय, वहाइ, वहस्स ( एकवचन.)
आर्षप्राकृतमा जे शब्दने ता० चतुर्थीनो सूचक · आए'. प्रत्यय लागेलो छे तेनुं रूप आ प्रमाणे छ: ता. च० मोक्ख-मोक्खाए, मोक्खाय, मोक्रवस्स ( एकवचन)
,, हिअय-हिअयाए हिअयाय, हिअयम्स ,
१ जूओ प्रकरण २, दीर्घस्वर-हस्वस्वर-१. २ जुओ प्रकरण ८, म=अनुस्वार--१२. ( टिप्पण) ३ जूओ सूत्रकृतांगसूत्र प्र. श्रु० तु. अ. तु० उ० गा० २१__"उवसग्गे नियामित्ता आमोक्रवाए परिव्वएज्जा'' इत्यादि, ४ जूओ आचारांगसूत्र प्र० श्रु० प्र० अ० उ. ६-' से बेमिः
अप्पेगे अजिणाए, वहति, मंसाए * सोणियाए * एवं दिययाए " इत्यादि.
Page #232
--------------------------------------------------------------------------
________________
ता० च० मंस----मंसाए, मंसाय,. मंसम्स (एकवचन) , अजिण--- अजिणाए, आजणाय, अजिणम्स ,
ए प्रमाणे अरिहंत (अर्हत् ), धम्म (धर्म), गंधव्व (गन्धर्व), मणुस्स ( मनुष्य ), पिसाअ (पिशाच), नायपुत्त ( ज्ञातपुत्र ), सुगत, गोण, गउअ, गाअ ( गो ), भिसअ ( भिषक् ), सरअ ( शरत् ), संघ, नर, सुर, असुर, उरग (-य), नाग (-य), जक्ख (यक्ष), किंनर वगेरे बधा अकारांत पुंलिंग शब्दोनों रूपो समजी लेवां.
वीर ( शौरसेनीरूपो) पं० ए० वीरादो, वीरादु
- बाकी बधां प्राकृत प्रमाणे.
वील ( वीर ) ( मागधीरूपो) १० ए० वीले
वीलाह, वीलम्स वीलाह, वीलाण, वीलाणं.
बाकी बधां शौरसेनी प्रमाणे.
वीर (पैशाचीरूपो ) पं० ए० वीरातो, वीरातु
बाकी बधां शौरसेनी प्रमाणे.
१ शौरसेनी, मागधी वगेरेनां जे रूपो प्राकृतथी जूदां थाय छे
से ज अहीं जगावेला छे. २ जूओ पृ० २६ र-ल.
३ पैशाचीमा 'ण' प्रत्ययनो उपयोग करती बखले (पृ. २३) 'ण-न' नियमने जूओ. ३ बीर+ण-वीरेन.
६ वीर+णबीरान,
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________________
१
२
३
४ - ६
१.३३
वीर (अपभ्रंशरूपो)
एकव ०
'वीरु, वीरो,
वीर,
वीरा
वीरु, वीर,
वीरा,
वीरेण, वीरेणं,
वीरें.
७
८ (सं०)
वीरस्सु, बीरासु,
वीरसु वीराहो, वीरहो.
वीर, वीरा
वीराहु, वीरहु,
वीराहे, वीरहे
वीर, वीरे
बहुव०
वीर, वीरा.
वीर, वीरा.
वीरेहिं, वीराहिं,
वीरहिं.
वीराहं, वीरहं,
वीर, वीरा.
वीराहु, वीरहुं.
वीराहिं, वीरहिं.
वीरु ! वीरो ! वीर ! वीरा !
वीराहो ! वीरहो ! वीर ! वीरा !
'वीर' शब्दनां उपर जणावेलां बधी जातनां रूपो प्रमाणे प्रत्येक पुंलिंगी अकारांत शब्दनां शौरसेनी रूपों, मागधीरूपो, पैशाची रूपो अने अपभ्रंश रूपो समजी लेवानां छे.
अकारांत शब्दनां प्राकृत रूपाख्यानो (नपुंसकलिंगनान्यतरजाति )
अकारांत नपुंसक नामोनां बधी जातनां रूपाख्यानो बनाववानी सघळी प्रक्रिया उपर प्रमाणे छे. जे कांइ खास भेद छे ते आ प्रमाणे छेः
१ वीर + उ = वीर - जुओ स्वर - ६१० ९६.
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________________
१३४
प्रत्ययो
बी०
, , १ अकारांत नान्यतरजातिना नामने लागता उपर जणावेला
बधा प्रत्ययो कोई पण नान्यतरजातिना नामने लगाडवाना छे. २ शौरसेनी', मागधी अने पैशाचीमां पण ए ज प्रत्ययोनो उपयोग
थाय छे. ३ ‘णि, इ, ई ' प्रत्ययोनी पूर्वना अंगनो अन्त्य म्वर दीर्घ
थाय छे. ४ संवोधनमां-ज्यां शून्य छे त्यां-एकवचनमा नान्यतर नामोनू
मूळ रूप ज वपराय छे अने बहुवचन, प्रथमानी जेवु थाय छे.
एकव०
बहुव० कुलाणि, कुलाई, कुलाई.
कुलं'
सं०
. १ शौरसेनी, मागधी, पैशाची अने अपभ्रंशनां रूपाख्यानो करती वखते ते ते भाषाना स्वरविकार अने व्यंजनविकारना नियमो तरफ लक्ष्य राखवू जोईए. २ नपुंसकलिंगी अकारांतनां पालिरूपो
कुला, कुलानि. बी. कुलं
कुले, कुलानि. शेष 'वीर' नां पालिरूगनी जेवां-जओ पालिप, पृ० ११२, क्लीबलिंग 'चित्त ' शब्द.
३ कुल-म्-कुलं-जओ मः अनुम्बार--- १.२ १.० १७.
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________________
बाकी बधां रूपो ते ते भाषा प्रमाणे · वीर ' नी जेवां थाय छे.
ए रीते गुण, देव, सोमव (सोमपा), गोव (गोपा), कररुह, 'सिर (शिरस् ), नभ, नह (नभस् ), दाम (दामन्), सेय (श्रेयस् ), क्य ( वचस्-वयस् ), सुमण ( सुमनस् ), सम्म ( शर्मन् ), चम्म ( चर्मन् ) वगेरे शब्दोनां रूपो जाणी लेवानां छे.
अपभ्रंश नान्यतरजातिनां रूपाख्यानोनी अपभ्रंशमा जे खास विशेषता छे ते आ प्रमाणेः १ प्रथमा अने द्वितीयाना बहुवचनमा प्राकृतनी पेठे अण प्रत्ययो
न लागतां मात्र एक • ई' प्रत्यय लागे छे अने एनी पूर्वनो
स्वर विकल्पे दीर्घ थाय छे. २ जे नान्यतर शब्दने छेडे ' क ' प्रत्यय लागेलो होय तेने प्रथमा
अने द्वितीयाना एकवचनमा ‘' प्रत्यय लागे छे.
१ जे शब्दो 'अस्' अने 'अन्' छेडावाळा छे ते प्राकृतमा नरजातिना भणाय छ (पृ. १२३-नामनी जातिओ) पण पालिमां एवा ' अस छेडावाळा शब्दोने (मनोगणने) नरजातिना अने नान्यतरजातिना गणवामां आव्या छेः पालिप्र. पृ० १३३-१३४ अने तेनु टिप्पण.
प्राकृतमा अने पालिमा ए 'अस्' अने 'अन्' छेडावाळा शादोनां बघां रूपो 'वीर' अने 'कुल' नी जेवां थाय छे तो पण आर्षप्राकृतमां अने पालिमा ए शब्दोनों केटलांक रूपो 'वीर' अने 'कुल' थी जुदां थाय छे. जेमके;
मण, मन (मनस् ) पालि आर्षमा
संस्कृत नक ५० ए. मनसा तु. ए. मणसा (मनसा)
पं. प. मणको (मनसः)
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________________
१३६
रूपाख्यानो
कुल . 'कुलु, कुल, कुला . कुलाई, कुलई. " " "
" "
१ २
(मनसः)
च. छ० ए० मनसो स० ए० मनसि
च. छ. ए. मनसो स० ए० मणसि
(मनसि )
संस्कृत
कम्म ( कर्मन् ) . पालि
অষ্টম तृ० ए० कम्मना, कम्मुना तृ० ए० कम्मणा, कम्मुणा (कर्मणा) च. छ. ए. कम्मुनो च. छ० ए० कम्मुणो (कर्मणः) पं० ए० कम्मना, कम्मुना पं० ए० कम्मणा, कम्मुणो (कर्मणः) स. ए. कम्मनि स. ए. कम्मणि (कर्माण) उदाहरण-" सिरसा, मणसा मत्थएण वंदामि "-मुनिवंदनसूत्र.
"मणसि काउं गुलियं खाइ" प्राकृतकथासंग्रह-उदायननी कथा पृ० १२, पं० २२. " कम्मुणा बंभणो होइ कम्मुणा होइ खत्तिओ"
उत्तराध्ययन अ० २५, गा० ३३. आ आर्ष रूपोनी सिद्धिने माटे आ० हेमचंद्रे " शेषं संस्कृतवत् सिद्धम् " (८-४-४४८) ए सूत्रने रचेलु छे.
'स्थामन्' वगेरे शब्दनां पालिरूपानी विशेषता माटे जुओ पालिप्र. पृ० १३५, अं० ९१-९२.
आघप्राकृतमां पण केटलेक स्थळे ' स्थामन् ' वगेरे शब्दनां रूपो ए पालिरूपोनी जेवां वपराएलां छे.
५ जी अपभ्रंश-प्रत्ययने लगता नियमो---पढमा बीआ-पृ. १२५.
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________________
१३७
कुलअ ( कुलक)
कुलआई, कुलअइं.
बाकी बधां रूपो 'वीर' ना अपभ्रंश रूपोनी पेठे समजी लेवानां छे.
अकारांत-सर्वादि-शब्द नचिना शब्दोने । सर्वादि' तरीके गणवामां आवे छे: सव्व-अप० साहु, सव्व ( सर्व ), वीस (विश्व ), उह, उभ (उभ), अवह, उवह, उभय (उभय), अण्ण, अन्न (अन्य), अण्ण (न) यर (अन्यतर), इअर (इतर), कयर (कतर), कइम (कतम), णेम, नेम (नेम), सम, सिम, पुरिम, पुत्व ( पूर्व ) अवर (अपर), दाहिण, दक्खिण (दक्षिण), उत्तर, अवर, अहर (अधर), ससुव (स्व), अंतर, त ( तद् ), ज ( यद् ) अमु ( अदस् ), इम (इदम् ), एत
१ कुलअ + 5 = कुलउं-जूओ स्वरलोप-६ पृ० ९६.
२ 'उवह' रूप आ० हेमचंद्रने संमत नथी-हे. प्रा. व्या. ८-२-१३८ पृ० ६५. आर्षप्राकृतमां 'उभयोकालं' प्रयोगमा 'उभय' ने बदले 'उभयो ' के 'उभओ' ("उभओकालं पि अजिअसंतिथयं"अजितशांतिस्तवन गा० ३९) रूप पण वपराएलुं छे.
३ जूओ पृ० ८७ शब्द-सर्वथा विकार.
४ जेम संस्कृतमा ' तद् ' नी जेवू 'त्यद् ' पण एक सर्वनाम छे तेम ए सर्वनाम पालिमां पण छे, एनां रूपो 'त' नी जेवां थाय छः
स्यो त्ये
त्यं त्ये -पालिप्र. पृ० १४३ नुं छेल्लु टिप्पण. प्राकृतमां तो आ 'त्य' सर्वनाम मळतुं नथी.
५ आ शब्दनां रूपो उकारांत शब्दोना प्रसंगे आवनारां छे.
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१३८
( एतद् ), इक्क, एक, एग, एअ (एक), दु ( द्वि ) तुम्ह ( युष्मद् ), अम्ह ( अस्मद् ) कि, अप० काई, कवण ( किम), भवन्त ( भवतु ). १ सर्वादि शब्दो विशेषणरूप होवाथी त्रणे लिंगे वापरी शकाय छे. २ 'अमु' अने 'दु' शब्द सिवाय ए बधा सर्वादि शब्दो अकारांत छे,
तेथी तेनां बधी जातनां बधां रूपाख्यानो पुंलिंगमां 'वीर' अने नपुंसकमा 'कुल' नी जेवां समजवानां छे. ज्यां जे विशेषता छे ते आ प्रमाणे छेः
"
३ प्रथमाना बहुवचनमां सर्वादि शब्दोना अन्त्य अ 'नो 'ए थाय छे अने ए एक ज रूप प्रथमाना बहुवचनमां वपराय छे. ४ सर्वादि शब्दोने छट्ठीना बहुवचनमां एसिं' प्रत्यय विकल्पे लागे छे.
"
५ सर्वादि शब्दोने सप्तमीना एकवचनमां 'त्थ' 'सि' 'हिं' अने 'मि' प्रत्यय लागे छे.
रूपाख्यानो (नरजाति )
सव्व ( प्राकृत )
एकव ०
प० - सम्वो (सव्वे )
बी० - सव्वं
बहुव०
सव्वे.
सब्वे, सव्वा.
१ संख्यावाचक शब्दोना प्रकरणमां ' उभ ' अने 'दु ' शब्दनां रूपो आवशे.
२ ओ ० १२१ भवतो ।
३ ' सव्व ' शब्दनां पालि रूप माटे जूओ पृ० १३० उपरनं पेलं टिप्पण. खास भेद आ छेः
१० तथा सं० बहुव० सव्वे.
छ०
सब्बे, सव्वेसानं.
तथा पंचमीना एकवचनमां 'वीरा' नो पेढे 'सब्वा' अने सप्तमोना एकवचनमां' वीरे ' नी पेठे ' सत्रे' रूप थतां नथी.
"5
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________________
त०-सव्वेण, सम्वेणं च० छ०-सव्वस्स
पं०-मन्वत्तो,
सव्वाउ. सव्वाओ, सव्वाहि, सव्वाहितो,
सव्वा स०-सव्वत्थ, सव्वस्सि, सव्वहि,
सम्वम्मि
सव्वेहि, सव्वेहि, सव्वेहि. सव्वेसि, सन्वाण, सव्वाणं, (सव्वाहँ ). सव्वत्तो, सव्वाउ, सव्वाओ, सव्वाहि, सव्वेहि, सव्वाहितो, सव्वेहितो सव्वासुंतो, सव्वेसुंतो. सव्वेसु, सव्वेसुं.
सव्व ( शौरसेनी) शौरसेनीमा : सव' शब्दनां बधां रूपो - सव्व ' नां प्राकृत रूपो जेवां छे. पंचमीना एकवचनमा विशेषता छे ते : 'वीर' ना शौरसेनीरूप प्रमाणे समजवी.
शव्य ( मागधी) प्रथमाना एकवचनमां अने छट्ठी विभक्तिमा 'शव' नां मागधी रूपो · वीर 'नां मागधी रूपो जेवां जाणवां अने बाकी बधां सव' नां शौरसेनी रूपो प्रमाणे समजवां.
१ जूओ पृ० १३२.
२ जूओ पृ० १३२.
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________________
१४०
सच (पैशाची) पंचर्मानुं एकवचन ' 'वीर' ना पैशाचीरूप प्रमाणे अने बाकी बधा : सव्व ' नां शौरसेनी रूपो प्रमाणे.
सब, साह (अपभ्रंश) एकव०
बहुव० सव्वु, सव्वो, सत्वे, सब्व, सव्वा. सव्व, सव्वा सव्वु, सव्व,
सव्व, सव्वा. सव्वा सव्वेण, सम्वेणं, सव्वेहिं,
सव्वाहि, सव्वहिं. सव्वस्सु, सब्वासु.
सव्वेसिं, सव्वसु,
सव्वहं, सव्वाहं, सव्वहो, सव्वाहो. मन्व, सव्वा. सव, सव्वा सव्वहां, सव्वाहां
सव्वहुं, सव्वाहुं. सव्वहिं, सव्वाहिं
सव्वहिं, सव्वाहि.
सब्वे
बाकी बीजा बधा सर्वादिओनां रूपो पण ए ' सव्व' (प्राकृत, शौरसेनी) शव (मागधी ) अने सव्व ( अपभ्रंश) नी पेठे करी लेवानां छे. तो पण केटलाक प्रसिद्ध प्रसिद्ध सर्वादिनां रूपो नीचे प्रमाणे आपीए छीए:
१ जूओ पृ. १३२.
२ अपभ्रंशमां 'सब ने स्थाने ' साह' शब्द पण वपराय छे अने एनां बधों रूपो 'सव्य : नां अपभ्रंश रूपोनी पेठे थाय छे.
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________________
१
२
३
स, सो ( मा० शे )
तं, णं
तेण. तेणं, तिणा पेण, णेणं
( पै० नेन )
४-६ तरस, तास ( मा० ताह )
णस्स
१४१
त, णं (तत्)
से
तो, तम्हा, तत्तो.
ताओ, ताउ
ताहि,
ताहिंतो
ता
( शौ० मा० तादो, तादु ) (पै० तातो, तातु )
छे: - हे० प्रा० व्या० ८-३७०-५० ९५.
4
केटलाक प्रयोगोने अनुसारे त' ने बदले
( तद् ) शब्दः
प०
बी०
त०
ते, णे.
ते, ता, णे, णा.
तेहि, तेहि, तेहि.
णेहि, णेहि, हि.
तास, तेसिं, ताण, ताणं, सिं, णाण, otroi,
सिं ( मा० ताह ).
ततो,
ताओ, ताउ,
ताहि, तेहि,
ताहिंतो, तेहिंतो, तामुतो, तेसुंतो,
सो
तं, नं
तेन, नेन
८
त' नां पालिरूपों मांटे जुओ पालि० पू० १४१ - १४२ त
८
ण पण वपराय
ते.
ते, ने.
तेहि, तेभि
नेहि, नेभि इत्यादि.
२ आ ' तास ' ने बदले ' से ' रूप पण कोइ वैयाकरण वापरे छेः
हे० प्रा० व्या० ८-३-८१-१० ९७.
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________________
णत्तो,
गाओ, णाउ, णाहि, णाहितो,
णत्तो, णाओ, गाउ, णाहि, णेहि, णाहितो, हितो, णासुंतो, संतो. तेसु, तेसुं,
णा
ताहे, ताला, तइआ तम्मि, तस्सि, तहिं, तत्थ, णम्मि, णम्सि, णहिं, णत्थ
सु, गेसुं.
• त ' शब्दनां प्राकृतरूपो साथे शौरसेनी, मागधी अने पैशाचीनां पण विशेष रूपो जणावेलां छे.
सव्व ' ना अपभ्रंशरूपोनी पेठेत' शब्दना अपभ्रंशरूपो पण समजी लेवां, जे फेर छे ते आ प्रमाणेः प० ए०
सु, सो, स, सा, त्रं.' बी० ए०
सु, स, सा, त्रं.
जै ( यत् ) जो ( मा० जे) बी० जं
जा, जे. त०
जेण, जेणं, जिणा जेहि, जेहिं, जेहि . च० छ० जम्स, जास (मा० जाह) जेसि, जाण, जाणं,
( मा० जाहँ). १ आ त्रणे सो ' तदा' ना अर्थमां ज वपराय छे. २ आ '' रूप त्रणे लिंगमां काम आवे छे.
३ 'ज' नां पालिरूपो माटे जूओ पालिप्र० पृ० १४१ य ( यद् ) शब्द.
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________________
पं०
म०
जम्हा, जत्तो,
जाओ जाउ
जाहि, जाहितो, जा (शौ० मा० जादो जादु)
"
१४३
जाहि, जेहि,
जाहितो, जेहिंतो,
जासुतो, जेसुंतो.
जेसु, जेसुं.
'ज' नां अपभ्रंशरूपो ' सव्व' नां अपभ्रंशरूपोनी पेठे करी
(पै० जातो, जातु ) जम्मि, जस्स, जहिं, जत्थ
जहे जाला, जइआ,
लेवा. विशेषता आ प्रमाणे.
२
प० ए० - जु, जो, ज, जा, धुं
बी० ० – १
१०-को ( मा० के )
बी० - कं
त० केण, केणं, किणा
ܕܐ ܕ ܕ
च० छ०- करस, कास
( मा० काह )
जत्तो,
जाओ, जाउ,
(क) किम्
के.
के, का. केहि, केहिं, केहि
कास, केसि, काण, काणं. ( मा० काहँ )
१ आ त्रणे रूप ' यदा' ना अर्थमां ज वपराय छे.
२ आ रूप णे लिंगमां सरखुं छे.
३ जेवां 'सव्व' नां पालिरूपो छे तेवां ' क' नां पण छे. विशेषता एटली छे के, च० ए० किस्स. स० ए० किस्मि, किहिवधारानां थाय छे - पालि० पृ० १४९.
इ-आ रूपो
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________________
कतो,
पं०-कन्हा, किणो, कीस, कत्तो,
काओ, काउ, काहि, काहिंतो, का (शौ० मा० कादो, कादु) (पै० कातो, कातु) स० कम्मि, कस्सिं, कहिं, कत्थ
'काहे, काला, कइआ
काओ, काउ, काहि, केहि, काहितो, केहितो, कासुतो, केसुतो.
केसु, केसुं.
क, कवण, काई (किम् ) अपभ्रंश अपभ्रंश रूपाख्यानने प्रसंगे ' क ' ने स्थाने 'कवण' अने * काई' शब्द पण वपराय छे.
'क' मा अपभ्रंशरूपो अने : सव्व' नां अपभ्रंशरूपो बन्ने सरखां छे. जे विशेषता छे ते आ प्रमाणेः ५० ए० कु, को, क, का
कवणु, कवणो, कवण, कवणा बी० ए० कु, क, का
कवणु, कवण, कवणा पं० ए० किहे कहां, काहां
___ कवणिहे, कवणहां, कवणाहां
१. आ त्रण रूपी 'कदा' ना अर्थमा ज वपराय छे.
२ 'काइ' (काई ) नां रूपाख्यानो इकारांत नामनां अपभ्रंश रूपोनी जेवां जाणवानां .
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________________
'इम (इदम् ) प०-अय, इमो (मा० इमे) इमे बी०-इमं, इणं, णं
इमे, इमा, णे, णा. त०-इमेण, इमेणं, इमिणा इमेहि, इमेहि, इमेहि. णेण. जेणं
(पहि, एहिं, एहि) (पै० नेन)
णेहि, हिं, णेहि. च० छ ०-इमस्स, अस्स, से सिं, इमोसि, (मा० इमाह)
इमाण, इमाणं.
(मा० इमाहँ) इमत्तो, इमाउ, इमाओ इमत्तो, इमाउ, इमाओ, इमाहि, इमाहितो इमाहि, इमेहि, इमा
इमाहितो, इमेहितो (शौ० मा० इमादो, इमादु) इमासुंतो, इमेसुंतो.
(पै० इमातो, इमातु) स०- इमस्सि, इमम्मि, अस्सि, इह इमेसु, इमेसु,
(एसु, एसुं). १ ' इम' नां पालिरूपो 'सब्ब 'नां पालिरूपो जेवां छे. 'सव्व' नां रूपो करता जे विशेष छे ते आ छः
प०-अयं
त०--अनेन, इमिना एहि, एभि, इमेह, इमेभि. च० छ०--अस्स, इमस्स . एस, एसाने, इमेस, इमेसानं, पं०-अस्मा, अम्हा एहि, एभि, इमेहि, इमेभि.
इमस्मा, इमम्हा स०-आस्म, आम्ह . एसु. इमेसु __ इमस्मि, इमम्हि --पालिप्र० पृ. १४४-१४५ इम (इदम् ) शब्द. प्रा० १२
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________________
१६
आय (इदम् ) अपभ्रंश
सव्व ' नां अपभ्रंश रूपीनी पेठे । आय ' ना अपभ्रंश रूपो समजी लेवां. ५०-आयु, आयो आये, आय, आया.
आय, आया बी०-आयु, आय, आया आय, आया.
आयेण, आयेणं, आयहिं, आयहिं, आयाहिं
आयें
वगेरे.
'एअ (एतद् ) प०--एस, एसो, एए (शौ० मा० एदे ) ।
इणं, इणमो ( मा० एशे, एश') (पै० एते) बी०--एअं एए, एआ.
(शौ० मा० एदं) (शौ० मा० एदे, एदा)
(पै० एतं) (पै० एते, एता) त०-एएणं, एएणं, एइणा एएहि, एएहि, एएहि.
१ आ ' एअ' शब्दने शौरसेनी अने मागधीमा रूपाख्यानने प्रसंगे 'एद ' शब्द समजवानो छे अने पैशाचीमा 'एत' शब्द समजवानो छे.
'एत ' नां पालिरूपो ' सब ' नां पालिरूपोनी जेवां छः प. एसो एते. बी. एतं एते वगेरे.
जेम संस्कृतमा अन्वादेशने सूचवा ' एत' ने बदले 'एन' रूप वधराय छे तेम पालिमां पण छे-जूओ पालिप्र० पृ. १४४ एत ( एतद् ) शब्द अने ए उपरटिप्पण.
२ एसएश-जूओ स-श. पृ. २७
Page #247
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________________
१४७ (शौ० मा० एदेण, एदेणं, (शौ० मा० एदेहि, एदेहि,
एदिणा) एदेहिँ) (पै० एतेन, एतिना) (पै० एतेहि, एतेहिं, एतेहिं ) च० छ०-से, एअस्स सिं, एएसिं, एआण, एआणं. .
(शौ० एदस्स) (शौ० एदेसि, एदाण, एदाणं) (मा० शे, एदाह) (मा० शि, एदाहँ, (पै० एतस्स ) एदाण, एदाणं )
(पै० एतेसिं, एतान) पं०-एत्तो, एत्ताहे, एअत्तो एअत्तो,
एआउ, एआओ, एआउ, एआओ,
एआहि, एआहिंतो, एआ एआहि, एएहि, (शौ० मा० एदादु, एदादो) एआहितो, एएहितो, (पै० एतातु, एतातो) एआसुतो, एएसुतो. स०-एत्थ, अयम्मि, ईअम्मि एएसु, एएसं.
एम्भि, एअस्ति
एद, एअ (एतत् ) अपभ्रंश 'सव्व' नां अपभ्रंश रूपोनी पेठे । एद' के ' एअ' नां अपभ्रंश रूपो करी लेवां. जे फेरफार ले ते आ प्रमाणेः
प०-एहो बी०-,
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________________
अकारांत-सर्वादि-शब्द ( नान्यतर जाति ) सर्वादि शब्दनां बधी जातनां नपुंसकलिंगी रूपाख्यानो पुंलिंगी सर्वादि प्रमाणे छे. मात्र प्रथमा अने द्वितीयामां जे विशेष छे ते • 'कुल' नी पेठे समजी लेवानो छे. जेमके;
सव्व (सर्व) प०- सव्वं
सव्वाणि, सव्वाइँ, सव्वाई. बी०- ,
बाकीनां, · सव्व ' नां प्राकृत, शौरसेनी, मागधी अने पैशाची रूपो प्रमाणे.
सव्व ( अपभ्रंश). ५०- सव्वु, सम्ब, सव्वा सव्वाइं, सव्वई. बी०- , , , , "
सव्वअ ( सर्वक-अपभ्रंश) प०- सव्वलं, सव्वआई, सव्वअई. बी०- , बाकीनां, ' सव्व : नां 'अपभ्रंश रूपो प्रमाणे.
त ( तत् ) प०- तं, णं ताणि, ताइँ, ताई.
णाणि, गाइँ, णाई.
,,
बी०- तं, णं
, ,, ___ बाकी बधां पुलिंगी 'त' प्रमाणे.
१ जूओ पृ० १३४. २ जुओ पृ० १३८-१४०, ३ जूओ पृ० १४०, ४ जूओ पृ० १४१.
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________________
त ( अपभ्रंश) ५०- 'त्रं, तु, त, ता बी०- , " : "
ताई, तई.
तअ (तक-अपभ्रंश)
सआई, तअई.
प०-- त्रं, तउं
बी०-
,
,
बाकी अधांत' नां अपभ्रंश रूपो प्रमाणे.
ज (यत्) १०- जं
जाणि, जाइँ, जाई. बी०- नं
जाणि, जाइँ, जाई. बाकीनां, पुंलिंगी : 'ज' प्रमाणे.
१०- बी०-
ज ( अपभ्रंश) , जु, ज, जा जाई, जई, , ,, , , ,
जअ १०- ध्रु, जरं
जआई, जअई बी०- , ,
,, बाकीनां, "ज' ना अपभ्रंश रूपो प्रमाणे.
१ जूओ पृ. १४२. २ जूओ पृ० १४२. ३ जूओ पृ० १४२~१४३. ४ जओ पृ० १४३. ५ जूओ पृ० १४३,
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________________
१५०
किं प०- किं
काणि, काइँ, काई. बी०- , __ बाकीनां, पुंलिंगी । 'क' नी पेठे
किं ( अपभ्रंश) १०- किं, 'काई, कवणु, कवण, कवणा काइं, कई,
कवणाई, कवणई, काईइं, काइइं,
कीई, किइं. बी०- किं, काइं, कवणु, कवण, कवणा ,
बाकी बधां, 'क' नां अपभ्रंश रूपो प्रमाणे.
इम (इदम् ) प.- इणं, इणमो, इदं इमाणि, इमाइँ, इमाई. बी०- , , ,
शेष, पुंलिंगी इम' नी जेवां,
इम, इमअ ( अपभ्रंश) प०- इमु
आयाई, आयई. बी०- ,
बाकीनां, 'इम ' नां अपभ्रंश रूपोनी पेठे.
१ जूओ पृ. १४३-१४४. २ जूओ पृ० १४४. ३ का + ईई-कीइं-जूओ पृ० ९६ स्वरलोप. ४ जुओ पृ० १४४. ५ जुगे पृ० १४५. ६ जूओं पृ० १४६.
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________________
एअ (एतत् ) प०- एस, एअं, इणं, इणमो एआणि, एआइँ, एआई. बी०- एअं
शेष, पुंलिंगी · 'एअ' नी पेठे.
एद, एअ ( अपभ्रंश) प०- एहु ए ईई, एइइं. बी०- ,,
, , शेष 'एअ' नां अपभ्रंश रूपोनी पेठे. ‘युष्मद् ' अने — अस्मद् ' नां रूपो त्रणे लिंगमां एक सरखां थाय छे अने ए आ प्रमाणे छे.
तुम्ह ( युष्मद् ) प- एकव०-तं, तुं, तुवं, तुह, तुमं (त्वम् ) १ जूओ पृ. १४६, २ जूओ पृ. १४७.
३ तुम्ह ( युष्मद् )-पालिरूपो १ त्वं
तुम्हे (वो) नुवं त्वं ( तुम्हं)
तुम्हे, तुम्हाकं (तुम्हं)
( वो) तवं
त
तुम्हेहि, तुम्हेभि (त०-वो)
३-५ त्वया, तया (पं०-त्वम्हा)
(त०-ते) ४-६ तव, तुरहं, तुम्हं (ते ) ७ त्वयि, तयि जूओ पालिप्र. पृ० १५१.
तुम्हाकं ( वो) तुम्हेसु
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________________
बहुव०-भे, 'तुब्भे, तुज्झ, तुम्ह, तुम्हे, उय्हे ( यूयम् ) दु- एकव०-तं, तुं, तुम, तुवं, तुह, तुमे, तुए ( त्वाम् )
बहुव०--वो, तुज्झ, तुब्भे, तुम्हे, उय्हे, भे (युष्मान्-वः) त- एकव०--भे, दि, दे, ते, तइ, तए, तुमं, तुमइ, तुमए. तुमे,
तुमाइ ( त्वया) बहुव०-~-भे, तुम्भेहि, उज्झेहिं, उन्हेहिं, तुम्हेहिं,
उय्हेहिं-(युष्माभिः) पं- एकव०-तुम्ह, तुब्भ, तहिंतो,
( त्वत् ) तइत्तो, तइओ, तइउ, तईहितो. तुवत्तो, तुवाओ, तुवाउ, तुवाहि, तुवाहितो, तुवा. तुमत्तो, तुमाओ, तुमाउ, तुमाहि, तुमाहितो, तुमा. तुहत्तो, तुहाओ, तुहाउ, तुहाहि, तुहाहिंतो, तुहा. तुधभत्तो, तुब्भाओ, तुभाउ, तुब्भाहि,
तुब्भाहितो, तुन्भा. बहुव०-तुभत्तो, तुब्भाओ, तुन्माउ, तुबमाहि,
तुब्भेहि, तुब्भाहिंतो, तुब्भेहितो, तुम्भासुंतो, तुब्भेसुंतो.
(युष्मत् ) तुय्हत्तो, तुम्हाओ, तुम्हाउ, तुम्हाहि, तुम्हेहि, तुम्हाहितो, तुम्हेहितो, तुम्हासुंतो, तुम्हेसुंतो. उहत्तो, उहाओ, उय्हाउ, उय्हाहि, उव्हेहि, उहाहितो, उव्हेहितो, उहासंतो, उय्हेसुतो. उम्हत्तो, उन्हाओ, उन्हाउ, उम्हाहि, उन्हेहि,
उम्हाहितो, उम्हहिंतो. उम्हासुंतो, उन्हेसुंतो. १ युष्मद-शब्दनां रूपोमां आवेला 'भ' नो विकल्पे ' ज्झ', अने 'म्ह' थाय छ: तुभे, तुझे, तुम्हे इत्यादि,
Titel jitiliitto
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१५३
च० छ०-एकव०-तइ, तु, ते तुम्हं, तुह, तुहं, तुव, तुम, तुमे, ___ तुमो, तुमाइ, दि, दे, इ, ए. तुब्भ, उन्भ, उयह
.. ( तुभ्यम्-तव-ते.) बहुव०-तु, वो, भे, तुब्म, तुब्भं, तुम्भाण, तुम्भाणं,
तुवाण, तुवाणं, तुमाण, तुमाणं, तुहाण, तुहाणं, उम्हाण, उम्हाणं, तुम्हाहँ
(युष्मभ्यम्-युष्माकम्-व:) स०-- एकव०--तुमे, तुमए, तुमाइ, तइ, तए (त्वाय)
तुम्मि, तुवम्मि, तुमम्मि, तुहम्मि, तुब्भम्मि बहुव०-तुसु, तुवेसु, तुमेसु, तुहेसु, तुब्मेसु (युष्मासु)
'तुवसु, तुमसु, तुहसु, तुब्भसु, तुब्भासु.
'अम्ह ( अस्मद् ) प- एकव०-म्मि, अम्मि, अम्हि, हं, अहं, अहयं (अहम् )
(मा० हगे) १-२ आ रूपो आ० हेमचंद्रनां मते थतां नथी-हे. प्रा. व्या• ८-३-१०३, पृ० १०२.
३ अम्ह ( अस्मद् )-पालिरूपो १ अहं
मयं, अम्हे (अस्मा ) (नो) २ मं, ममं (अम्हं) अम्हाकं, अम्हे ( अम्हं) (अस्मा)
(नो) ३-५-मया (तमे) अम्हेहि, अम्हेभि ( त०-नो) ४-६-मम, ममं (मे) अस्माकं, अम्हाकं (च०-नो)
मव्हं, अहं ७ माय
अम्हेसु ( अस्मासु) -जूओ गालिप्र० पृ. १५३-१५४ मा. २०
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________________
૬.
बहुव० - अम्ह, अम्हे, अम्हो, मो, वयं, मे ( मा० हगे )
दु एकव०-- णे णं, मि, अम्मि, अम्ह, मम्ह, मं, ममं, मिम, अहं - ( माम् - मा)
बहुव ० - अम्हे, अम्हो, अम्ह, णे
0
( अस्मान् -नः )
त - एकव – मि, मे, ममं, ममए, ममाइ, मइ, मए, मयाइ, णे (मया )
11
बहुष० - अम्हेहि, अम्हाहि, अम्ह, अम्हे, णे
(अस्माभिः )
पं- एकव० - मइतो, मइओ, मइउ, मईहिंतो.
( वयम् )
( मत् ) ममतो, ममाओ, ममाउ, ममाहि, ममाहिंतो, ममा. महत्तो, महाओ, महाउ, महाहि, महाहिंतो, महा. मज्झतो, मज्झाओ, मज्झाउ, मज्झाहि, मज्झाहितो,
मज्झा.
बहुव० ममतो, ममाओ, ममाउ, ममाहि, ममेहि, - ( अस्मत् ) ममाहिंतो ममेहिंतो, ममासुतो, ममेसुंतो.
अम्हतो, अम्हाउ, अम्हाओ, अम्हाहि, अम्हेहि,
अम्हार्हितो, अम्हेहिंतो, अम्हासुंतो, अम्हेसुंतो.
स- एकव ०.
,
च, छ एकव० मे, मइ, मम, महं, मज्झ, मज्झं, अम्ह, अम्हं ( मह्यम् - मे --मम )
बहुव०-णे, णो, मज्झ, अम्ह, अम्हं अम्हे, अम्हो,
अम्हाण, -णं, ममाण, णं, महाण, -णं, मज्झाण-णं, अम्हा ( अस्मभ्यम् - अस्माकम् नः )
( मयि )
-मि, मइ, ममाइ, मए, मे अहम्मि, ममम्मि, महम्मि, मज्झम्मि.
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________________
बहुव०---'अम्हेसु, ममेसु, महेसु, मझेसु (अस्मासु)
'अम्हसु, ममसु, महसु, मज्झसु, अम्हासु.
तुम्ह (गुष्मद् ) अपभ्रंश प०--तुहुं
तुम्हई, तुम्हे. वी०-पई, तई
त०-,
"
तुम्हेहिं.
.
तुम्हहं.
छ-तउ, तुज्झ, तुध्र पं०-" , " स०-पई, तइं
हासु, तुम्हासु
अम्ह ( अस्मद् ) अपभ्रंश प०-हउं
अम्हइं, अम्हे. बी०-मई त०~-मई
अम्हेहिं. च० छ.-महु, मझु
अम्हह. पं0---, " स०--मई,
अम्हासु, अम्हासुं.
आकारांत शब्दनां प्राकृत रूपाख्यानो ( नरजाति)
आकारांत नामोनां रूपाख्यानोनो प्रयोग विशेष विरल छे तो पण प्रसंगवशे तेनां रूपाख्यानोनी प्रक्रिया जणावीए छीए:
१ जओ पृ. १२७-तइया छ। सत्तमी,
२-३ जूओ पृ० १५३ नुं टिप्पणः हे० प्रा० व्या० ८-३११७, पृ० १०४,
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________________
२ अकारांत नामने लागता प्रत्ययो आकारांत नामने लगाडवाथी
तेनां रूपाख्यानो तैयार थाय छे. २ मात्र एक पंचमीनो 'हि' प्रत्यय आकारांत नामने __ लागतो नथी. ३ प्रत्यय विनाने स्थळे एटले ज्यां शन्य छे त्या मुळ आने ज
रूपाख्यान तरीके समजबु. ४ संबोधननां रूपो प्रथमानी जेवां थाय छे.
हाहा
प०-हाहा
हाहा. बी०-हाहां सं०-हाहाण, हाहाणं हाहाहिं, हाहाहिं, हाहाह. १० छ०-हाहस्स
हाहाण, हाहाणं. [ला० च० हाहे, हाहस्स पं०-हाहत्तो, हाहाओ, हाहत्तो हाहाओ, हाहाउ, हाहाहितो हाहाउ, हाहाहितो.
हाहासंतो. स०-हाहा (ह) मि हाहासु, हाहासुं. सं०-हे हाहा !
हे हाहा ! ए रीते किलालवा ('किलालपा ) गोवा (गोपा) अने सोमवा ( सोमपा) वगेरे शब्दोनां रूपो समजवां.
१ षड्भाषाचंद्रिकाने मते कृदंतथी बनेला नामनो अंत्य स्वर इस्व थाय छे एथी 'किलालपा'' गोपा' अने ' सोमपा' नुं प्राकृत
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१५७ नान्यतर जातिमां तो कोइ शब्द आकारांत होतो ज नथी (जूओ पृ० १२३-नामना अन्त्यस्वरनो फेरफार-नि० २)
आकारांत शब्दनां शौरसेनी, मागधी अने पैशाचीनां रूपो 'हाहा' नां प्राकृत रूपो जेवां थाय छे, ज्यां जे विशेष छे ते । वीर' नी पेठे समजवानो छे.
आकारांत शब्दनां अपभ्रंशनां रूपो 'वीर' नां अपभ्रंश रूपोनी जेवां प्रायः दनाववानां छे. इकारांत, उकारांत शब्दनां प्राकृत रूपाख्यानो (नरजाति)
प्रत्ययो. नरजातिनां अने नान्यतरजातिनां दरेक इकारांत अने उकारांत नामोने नीचे जणावेला प्रत्ययो लगाडवाना छे...
प्राकृत भाषाना प्रत्ययो. एकवचन
बहुवचन . प.---.
अउ, अओ, णो, ० बी०
+ ___णो, .
.
.
रूप 'किलालप' 'गोप' अने' सोमप' बने छे अने आम थतुं होबाथी ए त्रणे शब्दोनां रूपो बराबर 'वीर' नी जेवां थाय छः. " क्विषः” २-२-४७, पृ० ८५ षड्भाषाच.
षड्भा० ५० ए० किलालवो.
प० ए० किलालवा. , गोवो.
, गोवा, , सोमवो.
, सोमपा. . घड्भाषा०ना उपर्युक्त नियमने बदले आ० हेमचंद्र जे नियम करे छे ते माटे जूओ. पृ० १२३-नामना अंत्यस्वरनो फेरफार-नि० १.
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________________
त०
च० छ०
पं०
स०
सं०
१५८
णा
णो, +
णो, +
+
*
+
+
+
अउ, अओ, णो, ०
प्राकृत प्रत्ययोने लगता नियमो.
१ ज्यां ज्यां • छे त्यां मूळ अंगने, अंते दीर्घ करीने वापरवानुं छे.
२ ज्यां ज्यां + छे त्यां अकारांत नामने लागता 'प्रत्ययो पण समजवानां छे. मात्र पंचमीनो एक ' हि ' प्रत्यय लेवानो नथी. ३ ज्यां छे त्यां (संबोधनना एकवचनमां) मूळ अंगने अंते विकल्पे दीर्घ करवानो छे.
४ पंचमीना स्वरादि, सकारादि अने हकारादि प्रत्ययो पर रहेतां अंत्य 'इ' अने 'उ' नो दीर्घ थाय छे,
५ तृतीया, पंछी अने सप्तमीना बहुवचनना प्रत्ययो पर रहेता अंत्य 'इ' अने 'उ' नो दीर्घ थाय छे.
६ उकारांत नामोने प्रथमाना बहुवचनमां एक ' अवो ' प्रत्यय पण वधारे लागे छे: - भाणु + अवो भाणवो (सं० भानवः )
(
१ जूओ पृ० १२५. प्राकृत प्रत्ययोने लगता नियमो ' ना मथाळा नीचे ( पृ० १२६ मां ) जणावेलु कार्य अहिं-इकारांत अने उकारांतमां-थतुं नथी.
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________________
१५९ रूपाख्यानो
इसि (ऋषि) प०. इसी इसउ, इसओ, इसिणो, इसी. बी० इसिं
इसिणो, इसी. त० इसिणा इसीहि, इसीहिं, इसीहिं. १०, छ० इसिणो, इसिस्स इसीण, इसीणं.
१ कोईने मते इकारांत अने उकारांत शब्दोन प्रथमान एकवचन द्वितीयाना एकवचननी जेवू पण थाय छः-जेमके-इसी, इसि । विहू, विहुं । हे० प्रा० व्या० ८-३-१९, पृ. ८४.
इकारांतनां पालिरूपो.
इसि १ इसि
इसी, इसयो. २ इसिं
इसी, इसयो. ३ झसिना
इसीहि, इसीभि. ४-६ इनिनो,
इसीनं. . इसिस्स ५ इसिना, इसिस्मा, इसिम्हा इसीही, इसीभि. ७ इसिस्मि, इसिम्हि
इसिसु, इसीसु. सं० इसि !, इसे !
इसी !, इसयो!
प्राकृतना 'णो' प्रत्ययनी पेठे पालिमां पण प्रथमाना अने द्वितीयाना बहुवचनमां 'नो' प्रत्यय अपराएलो छेः " सारमतिनो, सम्मदिछिनो, मिच्छादिठिनो, बजिरबुद्धिनो, अधिपतिनो, जानिपतिनो" वगेरे.
पालिमा अग्गि (अमि), मुनि, आदि, गिरि, रंसि (रश्मि) सख (सखि) अंने गामनि (मणी) शब्दोनां रूपोमां विशेषता छे ते ओ प्रमाणे:
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________________
१६०
[ ता० च०
इसये, इसिणो, इसिस्स
च० छ०
( माग ० इशिह )
पं० इसिणो, इसित्तो, इसीओ, इसीउ, इसीहिन्तो
एकव ०
प०- अग्गिनि, गिनि
स ० -- अग्गिनि
सं०- अग्गि !
छ० – मुने ( मुनेः )
स० - आदो (आदौ )
आदु
आदि
आदिनि
स०
गिरेः
त० - रंसेन
प०-सखा
बी० - सखारं
सुखानं
सखायं
सखं
अग्गि.
मुनि
आदि
गिरि
रंसि
लखि
इसीण, इसणिं ] ( मा० इशिहँ )
इसितो, इसीओ, इसीउ, इसी हिन्तो, इसीसुंतो.
बहुव ०
अग्गियो ( वधारानां रूपो )
"
( वधारानां रूपो )
( वधारानां रूपो )
( बधारानां रूपो )
( वघारानां रूपो )
सखायो, सखानो,
सखिनो, सखा.
सखानो, सखिनो,
सखायो,
सखी.
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--------------------------------------------------------------------------
________________
पं० - (शौर० ( माग० ( पैशा० स० 'इर्सिसि, इसिम्मि
सं० हे इसि ! हे इसी !
च० छ० - सखिस्स
सखिनो
सखे
त० पं० - सखिना ( १० - सखारा, सखारस्मा ) सखेहि,
स०
०
सं ०
१६१
इसिदो, इसिदु ) इशिदो, इशिदु )
इसितो, इसितु )
० सख !, सखे !,
सखा !, सखि !
सखी !
प० गामनी
बी० गामनीनं,
पं० - गामनिना
स०
सं०- गामनि !
उपरना टिप्पणी.
गामनि
इसीसु, इसीसुं.
हे इसउ ! हे इसओ ! हे इसिणो ! हे इसी !
गामनी
सखेभि; सखारेहि, सखारेभि. सखीनं, सखारानं.
सखेसु, सखारेसु.
सखायो !
सखानो !,
सखिनो !
गामनी,
बाकीनां ' 'इसि ' प्रमाणे.
ए बधां रूपो माटे जूओ पालिप्र० पृ०
23
गामनिनो.
11
गामनीसु
गामनी !, गामनिनो !
८७-९१ अने ते
"
१ जूओ पृ० १२७, सत्तमीना 'सि' प्रत्ययने लगतुं लखाण" तिसलाए खत्तियाणीए कुच्छिसि गभे आचारांग सूत्र, त्रीजी चूलिका - महावीरनो अधिकार,
प्रा. २१
Page #262
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________________
१६२
खास विशेषता: [शौरसेनी, मागधी, पैशाची अने अपभ्रंशमा · इन् ' छेडावाळां' इकारांत' नामोना अंत्य 'न् ' नो संबोधनना एकवचनमां विकल्पे 'आ' थाय छे
हे दंडिआ ! हे दंडि! हे सुहिआ ! हे सुहि ( सुखिन् ) हे तवस्सिआ ! हे तवस्सि ! हे कंचुइआ ! हे कंचुइ ! ( कञ्चुकिन् )
हे मणस्सिआ ! हे मणस्सि ! (मनस्विन् ) ] ए प्रमाणे अग्गि ( अग्नि), मुणि (मुनि), बोहि (बोधि ), संधि, रासि (राशि), गिरि, रवि, कइ (कवि) कवि, (कपि-कवि), अरि, तिमि, समाहि ( समाधि ), निहि (निधि), विहि (विधि), 'दडि (दण्डिन् ), करि ( करिन् ), तवस्सि (तपस्विन् ),
१ प्राकृतमां अने पालिमां 'दंडि' वगेरे 'इन् ' छेडावाळा शब्दोनां रूपो साधारण इकारांत शब्दनी पेठे थाय छे. तो पण पालिमां ए 'इन् ' छेडावाळा शब्दोनां केटलांक वधारानां रूपो साधारण इकारांत करतां जुदां पडे छे अने ते बधां आ प्रमाणे छः (जे रूपो जुदां पडे तेने वधारे मोटा अक्षरोमां मूकेला छे). १ दंडी
दंडी, दंडियो, दंडिनो. २ दंडियं, दंडिनं, दंडि दंडी, दंडिये, दंडिने, दंडिनो. ३ दंडिना
दंडीहि, दंडीभि. ४ दंडिनो, दंडिस्स दंडीनं ५ दंडिना, दंडिम्हा, दंडाहि, दंडीमि.
दडिस्मा ६ सिनो, दंडिस दंडीन
Page #263
--------------------------------------------------------------------------
________________
१६३ 'गामणि (ग्रामणी), पणि (प्रणी), सेणाणि (सेनानी), पहि (अधी) अने सुहि ( सुधी) वगेरे शब्दोनां प्राकृत, शौरसेनी, मागधी अने पैशाचीनां रूपो समजवानां छे.
भाणु ( भानु) ५०-भाणू
भाणुमो, मानवो, माणओ,
भाणउ, माणू, बी०-भा'
भाणुणो, भाणू. त०-भाणुणा भाणूहि, भाणूहि, भाणूहिँ . च० छ०-भाणूणो, भाणुस्स भाणूण, भाणूणं.
७ दंडिनि, दंडिने दंडीसु, दंडिनेसु. __ दांडस्मिं, दंडिम्हि सं० दंडि !
दंडी ! दंडिनो! -मालिप्र० पृ. १३२ 'दंडी' अने तेनुं टिप्पण, १ आ छेल्ला पांच शहदोना संबोधनना एकवचनमां ते ते शब्दनु एकलुं मूळ अंग ज वपराय छः हे गामणि ! हे पणि ! हे सेणाणि ! वगेरे.
२ उकारांतनां पालिरूपो
भानु १ भानु
भानू, भानवो. , २ भानु ३-५ भानुना
भानूहि, भानूभि. " ५ भानुस्मा, भानुम्हा
४-६ मानुनो, भानुस्स भानूनं.
"
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--------------------------------------------------------------------------
________________
( माग० भाणुह )
पं० - भाणुणो, भाणुत्तो, भाणूओ, भाणूड, भाणूहितो
१६४
[ ता० च० - भाणवे भाणुणो, भाणुस्स ]
(शौर भाणुदो, भाणुदु ) ( माग० भाणुदो, भाणुदु ) ( पैशा० भानुतो, भानुतु )
७ भानुरिंग, भानुम्हि भानु !
सं०
बहुवचन
१ हेतुयो, जंतुयो
37
प्राकृतना 'जो , द्वितीयाना बहुवचनमा 'नो' प्रत्यय वपराएलो छेः " गरुनो " वगेरे.
( माग० भाणुहँ ) भाणुतो, भाणूओ,
भाउ, भाणूहिंतो माणूसुतो.
पालिमां हेतु, जन्तु, अभिभू, सहभू, सध्वज्ञू शब्दोनां रूपोमां विशेषता छे ते आ प्रमाणे:
हेतु, जंतु
27
१ अभिभू
२ अभिभुं
भानूसु. भानू ! भानवे ! मानवो !
प्रत्ययानी पेठे पालिमां पण प्रथमाना अने
एकवचन
७ हेतो सं० ( हेतौ )
हेतुनो, जन्तुनो,
( वधारानां रूपो )
( वधारानां रूपो )
अभिभू ( वधारानां रूपो )
अभिभू, अभिभुवो'
27
33
Page #265
--------------------------------------------------------------------------
________________
१६५ स०-भाणुसि, भाणुम्मि भाणूमु, माणूसु. सं०-भाणु ! भाणू ! भाणुणो ! भाणवो ! भाणओ!
भाणउ ! भाणू ! ए प्रमाणे नउ (यदु), धम्मण्णु (धर्मज्ञ), सव्वण्णु (सर्वज्ञ ), दइवण्णु (दैवज्ञ), गुरु, गउ (गो), साहु ( साधु ), बन्धु, वपु ( वपुष् ), मेरु, कारु, धणु (धनुष्), सिंधु, केउ (केतु), विजु ( विद्युत् ), राहु, संकु (शङ्कु), उच्छु ( इक्षु ), पवासु ( प्रवासिन्), वेलु (वेणु ), सेड (सेतु), मच्चु (मृत्यु), 'खलपु ( खलपू ), गोत्तमु (गोत्रभू ), सरभु (शरभू ), अभिभु ( अभिभू ), अने सयंभु ( स्वयंभू ) वगेरे शब्दोनां प्राकृत, शौरसेनी, मागधी अने पैशाचीनां रूपो समजवानां छे.
५ अभिभुना
अभिभू ! अभिभूवो! बाकीनां 'भानु' प्रमाणे. सहभू , सन्वत
(धारानां) १-२-सं० बहुवचन सहभुनो १-२-सं० ,
सव्वळू , सव्यधुनो -पालिप्र० पृ० ९२-९३.
बाकीनां ' अभिभू' प्रमाणे.
१ आ छेल्ला पांच शब्दोना संबोधनना एकवचनमां ते ते शब्दनुं एकलु मूळ अंग ज वपराय छे; हे खलपु ! हे गोत्तभु ! हे सरभु ! वगेरे,
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'अमु ( अदस्) [ आ शब्द सर्वादिमा छे छतां एनां रूपो विशेषे करीने । भाणु ' नां रूपो साथे मळतां आवे छे माटे एने । भाणु नां रूपो पछी मूकवामां आव्यो छे.] प०- अह, अमू , असो अमुणो, अमवो, अमउ, अमओ,
अमू . बी०- अमुं
अमुणो, अमू . स०- अयम्मि,
अमूसु, अमूसुं. इअम्मि, अमुम्मि
शेष रूपो ' भाणु ' नी जेवां
१ अमु (अदस् ) नां पालिरूपोः १ असु
अमू , अमुयो २ अमुं
" " ३ अमुना
अमूहि, अमाभ. ४-६ असुनो
अमूस, अमूसानं. अमुस्स ( सं० अमुष्य) ५ अमुना,
अमूहि, अभि. अमुस्मा (सं० अमुष्मात् )
अमुम्हा ७ अमुस्मि (सं० अमुष्मिन्)
अमूअमुम्हि
जूओ पालिप्र० पृ. १४७. २ आ आर्षरूप सं० ' असौ' उपरथी थयलं छे-जूओ पृ० ७ नि० १२ औ=ओ. " असो तत्तमकासी य" सूत्रक० अ० १, उ० ३, गा. ८.
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१६७ 'इसि ' अने ' भाणु' शब्दनां प्राकृत रूपोनी साथे ज शौरसेनी, मागधी अने पैशाचीनां वधारानां रूपो जणावेलां छे. अपभ्रंशमा जे विशेषता ले ते आ प्रमाणे:
__ अपभ्रंशभाषाना प्रत्ययो. एकव०
बहुव०
हिं.
' hay •sy che
बी०- ० त०- ण, एं, म् च० छ०-० पं०- हे स०- हि सं०- .
हो, .. ज्या ज्यां ० छे त्यां मूळ अंगने ज अंते विकल्पे दीर्घ करीने वापरवानुं छे.
अपभ्रंशना बधा प्रत्ययो पर रहेतां मूळ अंगने अंते विकल्पे दीर्घ थाय छे.
अपभ्रंश-रूपाख्यानो
इसि
इसि, इसी.
इसिहिं, इसीहिं.
प०- इसि, इसी बी०- , . , त०- इसिण, इसिणं,
इसीण, इसीणं, इसिएं, इसीएं, इसिं, इसी
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.च० छ०-इसि, इसी
इसिहं, इसीहुँ;
इसिहं, इसीहं. पं०- इसिहे, इसीहे इसिहं, इसीहुं. स०- इसिहि, इसीहि इसिहिं, इसीहिं;
( इसिहं, इसीहुं) सं०- इसि ! इसी ! इसिहो ! इसीहो !
इसि ! इसी ! ए प्रमाणे दरेक इकारांत पुंलिंगी शब्दना अपभ्रंश रूपो समजवानां छे.
भाणु. १०- भाणु, भाणू
भाणु, भाणू. बी०- , "
भाणुण, भाणुणं, भाणूहिं, भाणूहिं. भाणूण, भाणूणं, भाणूएं, भाणूएं,
भाणु, भाणूं च० छ०-भाणु, भाणू
माणुहुं, भागृहुं
भाणुहं, भाणूहं. ५०-- भाणुहे, माणूहे
भाणुहुं, भाणूहुँ, स०- भाणुहि, भाणूहि भाणुहिं, भाणूहि,
( भाणुहुं, भागूहुं) सं०- भाणु ! भाणू ! भाणुहो ! भागृहो !
भाणु ! भाणू ! ए प्रमाणे दरेक उकारांत पुलिंगी शब्दना अपभ्रंश रूपो समजवानां छे.
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१६९
इकारांत अने उकारांत शब्दनां प्राकृत रूपाख्यानो ( नान्यतर जाति ) 'दहि ( दधि )
"दहणि, दही, दहीई.
१ हिं
२ ११
सं०-दहि !
33
बाकी बधां ते ते भाषा प्रमाणे इकारांत पुंलिंगी 'इसि ' नी जेवा.
दहिं, दहिं
महुँ, महुँ
"}
"9
!
प्रा० २२
१ दधि ( दधिं ) दधी, दधीनि
२ दधि
गामनि
गामनि
25
१ जूओ अकारांत नपुंसक नामानुं प्रकरण अने तेने लगता प्रत्ययो तथा नियमों-- पृ० १३३ -१३४
२ कोइने मते इकारांत अने उकारांत नपुंसक नामोनां प्रथमाना अने द्वितीयाना एकवचनमां आवां वे रूपो थाय छे:
(सं०: दधि, दीिँ )
( सं० मधु, मधु )
33
३ गार्मनी' नां पालिरूपो
(
- हे० प्रा० व्या०-८-३-२५, पृ० ८५.
तादर्श्य अर्थमां संस्कृतना रूपने मळतुं ' दहिणे ' ( दघ्ने ) अने 'महुणे ' ( मधुने ) रूप पण वपराय छे. नपुंसकलिंगी इकारांतनां अने उकारांतनां पालिरूपो ' दधि '
";
""
I
शेष, इकारांत पुंलिंगी इसि ? प्रमाणे,
!
25
23
शेष इकारांत पुंलिंगी ' गामनी ? प्रमाणे.
12
गामनी, गामनानि
!
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________________
१७० ए प्रमाणे सत्थि (सक्थि), वारि, अच्छि ( अक्षि ), सुरि ( सुरि), अइरि ( अतिरि ) अने गामणि (ग्रामणी) वगेरे शब्दोनां रूपो पण समजवां.
महु (मधु)
महणि, महू, महूई.
१
महुं
सं० महु ! , , ,
बाकी बधां ते ते भाषा प्रमाणे उकारांत पुंलिंगी ' भाणु ' नी जेवां.
ए प्रमाणे दारु, वत्थु (वस्तु ), चित्तगु (चित्रगु), सुगु, वसु, अंबु, अंसु-अस्सु ( अश्रु) जउ (जतु), बहु अने लहु ( लघु ) वगेरे शब्दोनां रूपो पण समजवां.
१ 'मधु' १. मधु मधू , मधूनि.
२ मधु शेष, उकारांत पुंलिंगी 'भानु ' प्रमाणे,
गोत्रभू ना पालिरूपो गोत्रभु गोत्रभू , गोत्रभूनि.
गोत्र/ गोत्रभू , गोत्रभूनि. शेष, उकारांत पुंलिंगी ' अमिभू ' प्रमाणे:जूओ पालिप्र० पृ० ११३-११५ अने एमां टिप्पण.
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१७१
'अमु (अदस्) ५०- अह, अमुं अमूई, अमूइँ, अमणि बी०- अमुं
बाकी बधां पुलिंगी अमु ' नी पेठे.
दहि ( अपभ्रंश) १ दहि
दहीई, दहिई २ ,
बाकी बधां : इसि' नां अपभ्रंश रूपोनी जेवां,
महु ( अपभ्रंश) १ महु
___ महूई महुई २ ,
बाकी बधां ' भाणु' नां अपभ्रंश रूपोनी मेवां.
ऋकारांत शब्दनां प्राकृत रूपाख्यानो (नरजाति)
ऋकारांत नामोनी बे जात छे-केटलांक ऋकारांत नाम विशेष्यरूपे वपराय छे अने केटलांक ऋकारांत नाम विशेषणरूपे वपराय छः
१ 'अमु' ना पालिरूपो १ अमु २ ,
शेष पुंलिंगी ' 'अमु' पेठे-जूओ पालिप्र० पृ० १४८ २ जूओ पृ० १६६ ३ जूओ पृ० १२३ नामना प्रकारो.
अमू
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२७२
विशेष्यरूप----जामायर ( जामातृ ), पियर (पितृ ), भायर (भ्रातृ) वगेरे ।
विशेषणरूप-कतार (कर्तृ), दायार (दातृ), भत्तार ( भर्तृ)
वगेरे ।
आ भेदने लीधे एक जातनां पण ए. बन्ने नामोनां रूपोमां विशेष अंतर छ.]
ऋकारांत ( विशेष्यवाचक ). १. प्रथमानुं अंने द्वितीयानु एकवचन बाद करतां बधी विभक्ति
ओमां विशेष्यवाचक ऋकारांत नामना अन्त्य 'ऋ'नो विकल्पे 'उ' थाय छे. प्रथमाथी लइने बधी विभक्तिओमां विशेष्यवाचक ऋकारांत
नामना अंत्य 'ऋ' नो । अर' थाय छे. ३. प्रथमाना एकवचनमा विशेष्यवाचक ऋकारांत नामर्नु आकारांत
रूप पण चिकल्पे वधराय छे. ४. संबोधनना एकवचनमा विशेष्यवाचक ऋकारांत नामना अंत्य
ऋ नो 'अ' भने 'अरं' विकल्पे थायं छे. [ सूचना -उपर जणाव्या प्रमाणे प्रथमाथी लइने बधी विभक्तिओमां
ऋकारांत नाम अकारांत अने उकारांत बने छे माटे तेनां रूपाख्यानोनी प्रक्रिया, ' जिण' अने । भाणु ' नां रूपा. ख्यानोनी प्रक्रिया जेवी समजवानी छे, अहीं तो मात्र सरळता माटे तेनां रूपाख्यानो आपीए छीए. ]
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१७३
'पिर, पिअर (पितृ) प०- पिआ, पिअरो पिअरा, पिउणी, पिअवो,
(मा० पिअले) पिअओ, पिअर्ड, पिऊ. बी०- पिअरं
पिअरे, पिअरा, पिउणो, पिऊ. त०- पिअरेण, पिअरेणं, .. पिअरेहि, पिअरेहि, पिअरेहिँ , पिउणा
पिऊहि, पिऊहिं, पिऊहि. च०, छ०-पिअरस्स (मा० पिअलाह) पिअराण, पिअराणं,
(मा० पिअलाहँ) पिउणो, पिउम्स पिऊण, पिऊणं. पं०-- पिउणो, पिउत्तो, पिऊओ, पिउत्तो, पिऊओ, पिऊ3, पिऊउ, पिऊहिंतो, पिऊहितो, पिऊसुंतो. १ ऋकारांतनां पालिरूपो
पितु १ पिता
पितरो (पिता). २ पितरं
पितरो, पितरे. ३ पितरा (पित्या, पेत्या) पितरेहि, पितरेभि. पितुना
पितूहि, पितूभि. ४-६ पितु, पितुनो, पितुस्स पितरानं, पितानं.
पितूनं, पितुन्नं. ५ पितरा (पित्या, पेत्या) पितरेहि, पितरेभि.
पितूहि, पितृभि. ७ पितरि
पितरेसु,
पितुसु, पितू सु. सं०-हे पिस ! पिता!
पितरो ! --जूओ पालिप्र. पृ० ९४ अने एनुं टिप्पण,
पितुना
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________________
१७४
पिअरत्तो, पिअराओ, पिअरत्तो, पिअराओ, पिअराउ,
पिअराउ, पिअराहि,
पिअराहि, पिअरेहि, पिअराहिंतो,
पिअराहिंतो, पिअरेहितो, पिअरा
पिअरामुतो, पिअरेसुतो. (शौ० पिअरादो, पिअरादु) (मा० पिअलादो, पिअलादु)
(पै० पिअरातो, पिअरातु) स०- पिअरे,
पिअरेसु, पिअरेसुं, पिअरंसि, पिअरम्मि, पिऊसु, पिऊसं.
पिउंसि पिउम्मि, सं०-हे पिअ ! पिअरं ! पिअरो! पिअरा ! पिउणो ! पिअवो,
पिअरा ! पिअर ! पिअओ, पिअउ, पिऊ ।
ए रीते जामायर, जामाउ (जामातृ), भायर, भाउ, (भ्रातृ) वगेरे शब्दोनों रूपो समनवानां छे.
___ऋकारांत (विशेषणवाचक) १. प्रथमानु अने द्वितीयानुं एकवचन बाद करतां बधी विभक्ति
ओमां विशेषणवाचक ऋकारांत नामना अंत्य 'ऋ'नो विकल्प 'उ' थाय छे. प्रथमाथी लइने बधी विभक्तिओमां ऋकारांत नामना अन्त्य
'ऋ'नो • आर ' थाय छे. ३. प्रथमाना एकवचनमां विशेषणवाचक ऋकारांत नाम, आका
रांत रूप पण विकल्पे बने छे. ४. संबोधनना एकवचनमा विशेषणवाचक ऋकारांत नामना अंत्य
'ऋ' नो विकल्पे 'अ' थाय छे,
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प० - दाया दायारो ( मा० दायाले)
बी० - दायारं
त० - दायारेण, दायारेणं,
दाउणा
च० छ० - दायारस्स,
१७५
'दाउ, दायार (दातृ)
( मा० दायालाह ) दाउणो, दाउस्स.
पं०- दायारतो, दायाराओ,
दायाराउ,
दायाराहि,
दायाराहिंतो,
दायारा,
१
२
३ दातारा, दातुना
४-६ दातु, दातुनो, दातुस्स
५ दातारा
दाता
दातारं
७ दातरि
सं० हे दात !
दाता !
दायारा, दाउणो, दायवो, दायओ, दायउ, दाऊ.
दायारे, दायारा, दाउणो, दाऊ.
दायारेहि, दायारेहिं, दायारेहि
दाऊहि, दाऊहिं, दाऊहि.
१ ऋकारांत विशेषणनां पालिरूपो
दातु
दायाराण, दायाराणं,
( मा० दायालाएँ )
दाऊण, दाऊणं.
दायारतो, दायाराओ,
दायाराउ,
दायाराहि, दायारेहि,
दायाराहिंतो, दायारेहिंतो.
दायारासुंतो, दायारेसुंतो,
दातारो.
दातारो, दातारे.
दातारोह, दातारेभि.
दातारानं, दातानं, दातूनं. दातारेहिं', दातारेभि.
दातारेसु, दातूसु.
दातारो !
-जूओ पालिप्र० पृ० ९५ अने एनं टिप्पण
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________________
१७६ दाउणो, दाउत्तो, दाउत्तो, दाऊओ, दाऊउ, दाऊओ, दाऊउ, दाऊहिंतो
दाऊहितो, दाउसुंतो. (शौ० दायारादो, दायारादु) (मा० दायालादो, दायालादु)
(पै० तायारातो, तायारातु) स०- दायारे, दायारंसि, दायारम्मि, दायारेसु, दायारेसुं,
दाउंसि दाउम्मि .. दाऊमु, दाऊमुं.. सं०- हे दाय !, दायार !, दायारा, दाउणो, दायवो,
दायारो !, दायारा! दायओ, दायउ, दाऊ.
ए रीते कत्तार, कतु, ( कर्तृ ), भत्तार, भत्तु ( भर्तृ ) वगेरे शब्दोनां रूपो समजवानां छे. .
ऋकारांतनां प्राकृत रूपाख्यानोनी साथे ज (तेनां ) शौरसेनी, मागधी अने पैशाचीनां पण विशेषतावाळां रूपाख्यानो आपेलां छे.
ऋकारांतना अपभ्रंशरूपाख्यानो आ प्रमाणे छे
आगळ का प्रमाणे दरेक ऋकारांत अंग, अकारांत अने उकारांत थया पछीज प्राकृतमां वापरी शकाय छे, तो ए--मूळ ऋकाशंतना-अकारांत अंगनां अपभ्रंशरूपो वीर 'नां अपभ्रंशरूपो जेवां करवानां हे अने ए उकारांत अंगनां, 'माणु 'नां अपभ्रंशरूपो जेवां समजवानां छे. कदाच कोई मूक ऋकारांत अंग प्राकृतमा आवता इकारांत थतुं होय तो तेनां अपभ्रंशरूपो । इसि' नां अपभ्रंशरूपो नेवां जाणी लेवा.
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१७७ उदाहरण तरीके एक 'पितृ ' शब्दनां नीचे जणाव्या प्रमाणे आठ अंगो संभवी शके छे:
पिअ, पिदः पिइ, पिदि; पिउ, पिदुः पिअर, पिदर.
ए आठमांना ‘पिअ'. अने : पिद' तथा : पिअर' अने 'पिदर' नां अपभ्रंशरूपो वीर 'नां अपभ्रंश रूपो जेवां जाणवां. 'पिइ' : पिदि' नां अपभ्रंशरूपो 'इसि' नां अपभ्रंशरूपो जेवां समजवां अने ‘पिड' ने 'पिदु' नां अपभ्रंशरूपो ‘ भाणु ' नां अपभ्रंशरूपो जेवां करी लेवां.
(कोइ पण 'ऋकारांत शब्दना अपभ्रंशअंगो करती वखते तेनां प्राकृत अंगो तरफ अने प्रयोगो तरफ लक्ष्य राखq.)
कर्तृ
नेतृ
पोत
१ केटलाक ऋकारांत शब्दोनों अपभ्रंश अंगोने अहीं आपीए छीए:
कत्त, कत्ति, कत्तु. कट्ट, कहि, कडु, नेअ, नेइ, नेउ. नेद, नेदि, नेदु. पोद, पोदु.
पाअ, पोउ. भर्तृ= भत्त, भत्ति, भत्तु.
भट्ट, मट्टि, भड. भ्रातृ= भाय, भाइ, भाउ.
भाद, भादि, भादु. होद, होदु, .. होअ, होउ,
होतृ
प्रा० ३३
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________________
१७८
ऋकारांत शब्दनां प्राकृत रूपाख्यानो (नान्यतरजाति)
सुपिअर, सुपिउ (सुपितृ) . प०- सुपिअरं सुपिअराई, सुपिअराइँ, सुपिअराणि,
सुपिऊई, सुपिउइँ, सुपिऊणि. बी०- सुपिअरं सुपिअराई, मुपिअराइँ, सुपिअराणि,
सुपिउइं, सुपिउइँ, सुपिऊणि. सं0- सुपिअरं! सुपिअ! सुपिअराई, सुपिअराइँ, सुपिअराणि,
सुपिअर ! सुपिऊई, सुपिऊ, सुपिऊणि. शेष रूपो, ते ते भाषा प्रमाणे पुंलिंगी पिउ, पिअर (पितृ)नी जेवां छे.
दायार, दाउ (दातृ) प०~ दायारं दायाराई, दायाराइँ, दायाराणि,
दाऊइं, दाउ, दाऊणि. बी० -- दायारं दायाराइं, दायाराइँ, दायाराणि,
दाऊई, दाउइँ, दाऊणि. सं०- हे दाय! दायाराइं, दायारा, दायाराणि,
हे दायार! दाऊई, दाऊइँ, दाऊणि. शेष रूपो, ते ते भाषा प्रमाणे पुंलिंगी दायार, दाउ (दातृ) नी जेवां छे.
नपुंसकलिंगी ऋकारांतनां अपभ्रंशरूपो · कुल', 'दहि', अने । महु ' नां अपभ्रंशरूपो जेवां जाणवानां छे. (जओ पुंलिंगी ऋकारांतना अपभ्रंशरूपो विषेनुं लखाण ),
-
-
-
-
-
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________________
१७९
एकारांत अने 'ओकारांतनां प्राकृत रूपाख्यानो
एकारांत अने ओकारांत नामोनां रूपाख्यानो प्राकृतमां उपलब्ध थतां नथी, तो पण ए शब्दोने छेडे ' अ ' ( स्वार्थिक-क) लगाडी तेनां रूपाख्यानो बनावाय के अने ते ते भाषा प्रमाणे ते बधां रूपाख्यानो पुंलिंगमां अकारांत ( • जिण') नी जेवां के, नपुंसकमां अकारांत ( ' कुल ' ) नी जेषां छे अने स्त्रीलिंगमां स्त्रीलिंगनी प्रक्रिया प्रमाणे बने छे.
१ प्राकृतमा 'गो' शब्दना 'गोण' 'गाअ' 'गउ' एवां त्रण अंगो बने छ ( जूओ पृ. १२० पं० १ तथा पृ० ६१ ओ=अउ, आअ ) अने रूपाख्यानने प्रसंगे पण ए त्रण अंगो चपराय छे तेम पालिमां 'गो' शब्दनां 'गोण' (गोन) 'गु' अने 'गवय' एवां अंगो बने छ (जुओ पालिप्र० पृ० ९८ अं० ३२ अने तेनुं टिप्पण) अने रूपाख्यानने प्रसंगे वपराय छे. प्राकृतमा रूपाख्यानने प्रसंगे मूळ 'गो' अंग नथी वपरातुं. आर्षप्राकृतमां मूळ 'गो' अंग अने ते द्वारा थएलां रूपो पण (जूओ पृ० १३६ ' कम्म' नां आर्षरूपो माटेर्नु टिप्पण) मळी आवे छे तेम पालिमां ए मूळ 'गो' अंगनां पण रूपो-जे रूपो आर्षप्राकृतमां वपराएलां छे-छे अने ते आ प्रमाणे:
गो
२ गावं
गावो, गवो. गावो, गवो.
रावं
गावेन गवेन
गोहि, गोभि.
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________________
जेमके-सं० सुरै-प्रा० सुरेअ। सं० ग्लो-प्रा. गिलोभ । इत्यादि ।
सुरेभ
सुरेओ
सुरेआ। सुरेअं,
सुरेए, सुरेआ। सुरेएण, सुरेएणं सुरेएहि, सुरेएहि, सुरेएहि ।
शेष रूपो, ते ते भाषा प्रमाणे 'वीर' नी समान छे.
गवस्त
४-६ गावस्स
गोनं, गुन्नं,
गवं. ५ गावा, गावस्मा, गोहि, गोभि.
गात्रम्हा
गवा, गवस्मा, गवम्हा गयेहि, गबोम, - ७ गावे. गावस्मिं, गावम्हि गावेसु गवे, गवस्मिं, गवम्हि गवेसु
गोसु. सं०-गो!
गायो, गयो. जूओ पालिप्र० पृ. ९७-९८ . आर्षप्राकृतन उदाहरण--" अबले होइ गवं पचोइए "--
सूत्र० प्र० श्रु० अ० २, उ०३ गा० ५. "गो-महिस-गवेलयप्पभूया "भगव० शत० २, उ० ५ तुंगियानो
अधिकार. (पृ. २७७ रा० जि०) औकारांत 'नौ' शब्दनुं प्राकृत अंग 'नाव' बने छ (जूओ पृ० ६२ औ-आव) " एगं महं नावं सयासवं *सा णा(ना)वा तेहि " भगव० श० १, उ० ६ (प्रश्नोत्तर-२२७ पृ० १७१ रा. जि.)
२ जूओ षड्भाषाचं० पृ. ९६,
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________________
१८१
गिलोअ
गिलोओ
गिलोअं
गिलोएण, गिलोएणं,
गिलोआ ।
गिलोए, गिलोआ ।
गिलो एहि, गिलोए हिं
गिलो एहि ।
शेष रूपो; ते ते भाषा प्रमाणे ' वीर' नी समान छे.
२. केटलेक ठेकाणे एकारांत अने ओकारांत नामोनुं प्राकृतरूप, संस्कृतना सिद्धरूप उपरथी पण बनाववामां आवे छेः सुराहि (सं० सुराभिः ) सुरासु (सं० सुरासु ) इत्यादि.
व्यंजनांत शब्दो
प्राकृतमां रूपाख्यानने प्रसंगे कोई शब्द व्यंजनांत संभवी शकतो नथी,' एथी एनां ते ते भाषानां बधां रूपो पूर्वोक्त स्वरांत शब्दनी पेठे समजवानां छे. फक्त ' अत् ' अने ' ' छेडावाळां नामोनां रूपोमा विशेषता छे अने ए आ प्रमाणे छे:
अन्
१ जूओ प्रकरण ३-अंत्यध्यंजनलोप. षड्भाषाचंद्रिकाने मते छेडे धातुवाळां व्यंजनांत नामोना छेवटना व्यंजनमा ' अ ' उमेराय छे अने बीजां व्यंजनांत नामोने छेडे स्वार्थिक ' अ ' ( क ) प्रत्यय उमेराय
"
छे एथी ए बधां नामोनां रूपों अकारांत नामनी जेवां थाय छे: ( पृ० ११६ “हलोऽक् " ) धातु-गोदुहू + अ = गोदुह. अधातु- सुगिर् + अ = सुगिर. सुदिब् + अ = सुज्जुअ ( सुहाक )
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________________
'अत्' छेडावाला नामो ( नरजासि ) जे नामो 'मत्वर्थाय । अत् ' छेडावाळां छे के वर्तमानकृदंत तरीके वा भविष्यत्कृदंत तरीके : अत्' छेडावाळां छे ते नामोना अंत्य ' अत् ' नो प्राकृतमा · अंत' गाय छे, तेथी एनां बधों रूपो ते ते भाषा प्रमाणे अकारांत · वीर' मी जेवां बने छे.
फक्त आषप्राकृतमां एवां केटलांक नामोनां रूपो संस्कृतनां सिद्धरूपो उपरथी पण बनाववामां आवेलां छः भगवन्त:
भगवंतो भगवता
भगवया मगवतः
भगवओ इत्यादि.
शौरसेनी शौरसेनीमां कृतवत् , भवत् , भगवत् अने संपादितवत् शब्दना अंत्य व्यंजननो मात्र प्रथमाना एकवचनमां अनुस्वार थाय छः कयवं
( कृतवान् )
( भवान् ) • भगवं
(भगवान् ) १ आ 'अंत' उपरांत मत्वर्थीय बीजा पण अनेक आदेशो थाय छे ते माटे जूओ तद्धितप्रकरणमा 'मतु 'ना आदेशो.
२ " थेरा भगवंतो" " भगवया महावीरेणं " " भगवओ महावरिस्स"-(भगव० राय० पृ० २३९-२४१-२४५)
३ शौरसनीने लगती अपवाद विनानी बधी प्रक्रिया मागधी, पैशाची अने अपभ्रंशमां पण समजी लेवी.
४ आ रूप आर्षप्राकृतमा प्रथमामा अने द्वितीयामां पण वपराएलु छः " भगवं महावीरे " " भगवं गोयमं "-(भगव० राय. पृ० २३२)
भवं
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१८३ संपाइअवं (संपादितवान्) संपादिदवं
रूपाख्यानो 'भगवंत ( भगवत्)
भयवंत १ भगवंतो
भगवंता. (शौ० मा० पै० भगवं).
(मा० भगवते) २ भगवंतं
भगवते, भगवंता. अत्' छेडावाळां नामनां पालिरूपोः
१ भगवंत १ भगया . भगवंतो, भगवंता. २ भगवंतं
भगवंते. ३ भगवता
भगवंतेहि, भगवंतेभि. भगवंतेन ४-६ भगवतो
भगवतं, भगवंतानं. भगवंतस्स ५ भगवता, भगवंता भगवंतहि, भगवंतेभि.
भगवंतस्मा, भगवंतम्हा ७ भगवति, भगवंते भगवतेसु.
भगवंतस्मि, भगवंतम्हि सं० भगवं, भगव . भगवंतो
भगवा ( भगवंत) भगवंता.
[ जूओ पृ० १८२ 'भगवंत' नां आर्षरूपो] -जूओ पालिप्र० पृ० ११६-११७-११८ अने एनां टिप्पण,
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१८४
३ भगवतेण, भगवतेणं भगवंतेहि, भगवंतेहि,
भगवंतेहि . सं०- भगवंत!,
भगवंता. . भगवंता !, भगवंतो !
( शौ० मा० पै० भगवं, भगव ! ) ए प्रमाणे बधां, ते ते भाषा प्रमाणे 'वीर' नी प्रमाणे.
। 'भवंत (भवतु) १ भवतो . भवते.
(शौ० मा० पै० भवं)
(मा० भवते) २ भवंत
मवंते, भवंता. ३ भयंतेण, भवतेणं भवंतेहि, भवंतेहि
भवंतेहि. सं० भवन्त,
भवंता ! भवंता, भवंतो.
१ पालिमा 'भवंत' शदनां विशेष रूपो आ प्रमाणे छः १ भयंतो, भाँतो, भयंता (बहुवचन) ३ भवता, भोता, भवंतेन (एकवचन) ४-६ भवतो, भोतो, भवंतस्स ( , ) सं०-भो !, भंते !, भोत ! (, )। " भवंतो, भोतो, भवंता, भोता (बहुवचन) __ 'संत' शब्द- पालिमां (सं० ‘सद्भिः' उपरथी) · सहिभ' रूप पण वपराय छ:-जूओ पालिप्र० पृ० ११८-११९-१२० अने तैना टिप्पणों
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१८५ (शौ० मा० पै० भवं, भव )
( मा० भवंते, भंते) ए प्रमाणे बधां, ते ते भाषा प्रमाणे · सव्व ' नी पेठे.
भवंता.
'भवंत ( भवतृ-वर्तमानकृदंत) १ भवतो
भवंता. (मा० भवते) २ भवंत
भवते, भवंता ३ भवतेण, भवतेणं भवंतेहि, भवतेहिं,
भवतेहिं. सं• भवन्त ! भवंतो!
भवंता !
(मा० भवंते !) ए प्रमाणे बघा ते ते भाषा प्रमाणे · वीर' नी जेवां. 'अत्' छेडाघाळां वर्तमानकूदतनां पालिरूपोः १ गच्छंत (गच्छत्-वर्तमानकृरत) १ गच्छं, गच्छंतो गच्छंतो (गच्छं)
गच्छता. २ गच्छतं
गच्छंते. शेष अधां 'भगवंत' प्रमाणे,
-
केटलांक 'अत् ' छेडावाळा नामोनां मालिरूपोनी विशेषता भा प्रमागे छः
' महंत' (महत् ) अने अरहंत (अर्हत् ) शब्दना प्रथमाना एकवचनमा 'महा' अने 'अरहा' (आर्षप्रा० अरहा) रूप वधारे थाय छे..पालि प्र. पृ० ११८-१.१९.
प्रा० २४
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१८६ 'भवमाण (भवतृ-वर्तमानकृदंत) १ भवमाणो,
भवमाणा. (मा० भवमाणे) २ भवमाणं
भवमाणे, भवमाणा. भवमाणेण, भवमाणेहि, भवाणहिं, भवमाणेणं भवमाणेहि. शेष, ते ते भाषा प्रमाणे 'वीर' नी जेवां.
भविस्संत ( भविष्यत्-भविष्यत्कृदंत) १ भविस्संतो
भविस्संता. (मा० भविस्संते) २ भविस्सतं
भविस्संते, भविस्संता. ३ भविस्संतेण, भविस्संतेहि, भविस्संतेणं भविस्संतेहिं,
भविसंतेहिं. सं० भविस्सत ! भविस्संतो! भास्सिंता.
भविस्संतो!
(मा० भविस्संते) . ( शौ० मा० पै० भविस्सं !' भविस्स ! )
ए प्रमाणे वधां वीर' प्रमाणे.
भविस्समाण ( भविष्यत्-भविष्यत्कृदंत)
भविस्समाणो भविस्समाणा. १ कदंतना आ 'अतृ' ने स्थाने 'अंत' अने 'माण' एवा बे आदेशो थाय छे-जओ कृदंतप्रकरण, '
२. संस्कृत 'भविष्यत् !' उपरथी,
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१८७
( मा० भविस्समाणे )
१
भविस्समाणे,
भविस्समाणा.
भविस्समाणेहि,
भविस्समाणेोहिं,
भविस्समाणेहि.
शेष, ते ते भाषा प्रमाणे 'वीर' नी पेठे,
भविस्समाणं
भविस्समाणेण, भावस्समाणेणं
नान्यतरजाति
उपर जणावेलां नामोनां क्लीवलिंगी रूपो प्रथमा अने द्वितीयामां बराबर ' कुल ' नी जेवां थाय छे अने बाकी बधां ते ते भाषा प्रमाणे पुंलिंगी रूपोनी जेवां थाय छे, जेमके;
'भगवंत
भगवंतं
'भगवंत ' ना पालिरूपो ( नान्यतरजाति )
भगवंतं
भगवंता, भगवंतानि.
भगवंति.
भगवंते, भगवंतानि,
भगवति.
१ भगवं,
भगवंताणि, भगवंताइँ, भगवंताई.
२ भगवंतं
शेष, ' भगवंत ' नी पेठे.
' गच्छंत ' ( गच्छत् ) नां पालिरूपो
१ गच्छं, गच्छंतं
गच्छंता, गच्छंतानि.
२ गच्छंत
गच्छंते, गच्छंतानि,
शेष, पुंलिंगी ' गच्छंत ' नी पेठे :- जुओ पालिप्र० पृ० १३८ अने एनां टिप्पण
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१८८ २ भगवंतं
भगवंताणि, भगवंता,
भगवंताई. सं० भगवंत! भगवंताणि, भगवंता,
भगवंताई. बाकी बधां पुंलिंगी ' भगवंत' नी पेठे.
अपभ्रंशरूपो अपभ्रंशरूपो पण 'वीर' अने 'कुल' नी नेवां थाय छे.
जेमके
सा
...
भगवंत (नरजाति) १ भगवंतु, भगवंतो भगवंत, भगवंता.
भगवंत, भगवंता २ भगवंतु, भगवंत, भगवंत, भगवंता.
भगवंता ३ भगवंतेण, भगवतेणं भगवंतेहिं, भगवंताहिं, भगवंते
भगवंतहिं. ४-६ भगवंतासु, भगवंतसु, भगवंताहं, भगवंतह,
भगवंतस्सु, भगवंताहो, भगवंतहो, भगवंत, भगवंता भगवंत, भगवंता.
भगवंताहु, भगवंतहु, भगवंताहुं, भगवंतहुं. __ भगवंताहे, भगवंतहे ७ भगवंति, भगवते भगवंताहिं, भगवंतहिं. सं० भगवंतु, भगवंतो, भगवंताहो, भगवंराहो,
भगवंत, भगवंता भागवंत, भगवंता.
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भगवंत ( नान्यतरजाति) भगवंतु, भगवंत, भगवंताई, भगवंतइं.
भगवंता २ भगवंतु, भगवंत, भगवंताई, भगवंतई.
भगवंता बाकी बधां - भगवंत ' नां अपभ्रंशरूपो प्रमाणे.
'अन् । छेडावाळां नामो (नरजाति ) १ । अन् ! छेडावाळां नामोना नकारांत अंगना छेवटना । अन् ' नो · आण' विकल्पे थाय छे:
अद्धाण, अद्ध (अध्वन् ), अप्पाण, अप्प ( आत्मन् ), उच्छाण, उच्छ ( उक्षन् ), गावाण, गाव (ग्रावन ) जुवाण, जुव (युवन् ) तक्खाण, तक्ख (तक्षन् ) पूसाण, पूस (पूषन् ) वम्हाण, वम्ह (ब्रह्मन् ), महवाण, महब (मघवन् ), मुद्धाण, मुद्ध (मूर्द्धन्) रायाण, राय ( राजन् ) साण, स (वन् ), सुकम्माण, सुकम्म (सुकर्मन् ) इत्यादि.
२. अन् ' नो ‘ आण' थया पछी ए ' आण' छेडावाळां नामोनां रूपो ते ते भाषा प्रमाणे · वीर' नी जेवां जाणवानां छे. जेमके
अद्धाण १ अद्धाणो
अद्धाणा. (मा० अद्धाणे) २ अद्धाणं
अद्धाणे, अद्धाणा, इत्यादि.
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१९०
रायाण १ रायाणो
रायाणा (मा० लायाणे) २ रायाणं
रायाणे, रायाणा. इत्यादि.
सुकम्माण १ सुकम्माणो
सुकम्माणा (मा० शुकम्माणे ) २ सुकम्माणं
मुकम्माणे, सुकम्माणा. इत्यादि.
०
+
०
३ ज्यारे · आण' यतो नथी त्यारे ए ' अन् ' छेडावाळां नामोनां रूपो बनाववानी रीत आ प्रमाणे छः
प्रत्ययो प०
णो, . बी०- इणं, ० . त०- णा, ० च०, छ- णो, पं0- णो, . स०- ० सं०- +,
णो, . १. ज्यां शून्य छे त्यां अकारांत · वीर 'नी जेवी प्रक्रिया समजवानी छे.
२. ज्यां + आ निशान छे त्यां 'अन्' छेडावाळा नामना अंत्य - ' नो । आ' विकल्पे थाय छे.
:
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________________
३. णो' प्रत्यय पर रहेतां पूर्वना स्वरनो दीर्घ थाय छे. ४. ' इणं' प्रत्यय पर रहेता पूर्वनो स्वर लोपाय छे.
णं' प्रत्यय पूस (पूतन माणो, पूसा।
पूसा
१०- पूसा, पूसो
पूसाणो, पूसा। . (मा०-पृशे) बी०-- पूसिणं, पूसं पूसाणो, पूसे, पूसा । त०- पूसणा, पूसेण, पूसेणं पूसेहि, पूसेहि, पूसेहि । च०, छ०--पूसाणो, पूसस्स . पूसिणं, पूसाण, पूसाणं ।
__ (मा० पूशाह) (मा० पूशाहँ) पं०- पमाणो, पूसत्तो, पूसत्तो,
पूसाओ, पसाउ, पूसाओ, पूसाउ, पूसाहि,
पूसाहि, पूसेहि, पूसाहितो, पूसाहितो, पूसेहितो,
पूसासुंतो, पूससुतो। (शौ० पूसादो, पूसादु) . (मा० पूशादो, पूशादु)
(पै० पूसातो, पूसातु) स०-- पूसे, पूसम्मि पूसेसु, पूसेसुं ।
पसंसि . सं०- हे पूसा ! हे पूसो, हे पूसाणो, हे पूसा । पूस !
महव १ महवा, महवो महवाणो, महवा.
( शौ० 'महवं )
(मा० महवे ) १ मघवं' पण थाय छे. आ रूप आर्षप्राकृतमां पण वपराएलु छ: "मंघवं पागसासणे" कल्पसूत्र.
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________________
२ महविणं, महवं महवाणो, महवे, महवा. ३ महवणा, महवेणं, महवेहि, महवेहि, महवेण
महवेहि. ४-६ महवाणो, महवस्स महविणं, महवाण,
महवाणं. (मा० महवाह) (मा० महवाह)
बाकी बधां - पूस' प्रमाणे
'अप्प (आत्मन् ) १. • आत्मन् ' शब्दने तृतीयाना एकवचनमा ‘णिआ' अने 'जइआ' प्रत्यय वधारे लागे छे.
१ 'अन् ' छेडाबाळां नामोनां पालिरूपोः
[ अन् ' छेडावाळां नामोनां पालिरूपो विशेष अनियमित होवायी अहीं जरा वीगतथी आपेलां छे:-]
__ अत्त, आतुम ( आत्मन् ) १ अत्ता,
अत्ता, अत्तानो, आतुमा
आनुमानो. अत्तानं,
अत्तानो, अत्तं
अत्ते, आतुमानं, आतुमं आतुमानो. अत्तमा
अत्तनेहि, अत्तनेभि, अत्तेन
अत्तेहि, अत्तेभि, आतुमेन
आतुमेहि, आतुमेभि. ४-६ अत्तनो
अत्तानं अत्तरस
आतुमानं. आतुमस्स
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________________
4. अप्पा, अप्पो अप्पाणो, अपा।
(मा० अप्पे) बी० अप्पिणं, अप्पं अप्पाणो, अप्पे, अप्पा । त० अप्पणिआ, अप्पणइआ, अप्पेहि, अप्पेहिं,
अप्पणा, अप्पेण, अप्पेहिं ।
अप्पेणं च०, छ०-अप्पाणो, अप्पस्स अप्पिणं, अप्पाण, अप्पाणं ।
(मा० अप्पाह) (मा० अप्पाहँ) इत्यादि बधां रूपो ते ते भाषा प्रमाणे · पूस' नी समान छे.
२ राय ( राजन् ) १. तृतीया, पंचमी, षष्ठी अने सप्तमीना बहुवचनमा ‘राजन्' शब्दनो · राई ' आदेश विकल्पे थाय छे. ५ अत्तना
अत्तनेहि, अत्तनेभि, अत्तस्मा, अत्तम्हा, अत्तहि, अत्तेभि,
आतुमस्मा, आतुमम्हा आतुमेहि, आतुमभि ७ अत्तनि, अत्ते, अत्तने
अत्तस्मिं, अत्तम्हि आतुमेसु आतुमे, आतुमस्मि,
आतुमम्हि ८ सं० अत्त ! अत्ता ! अत्तानो ! अत्ता ! आतुम ! आतुमा ! आतुमानो !
२ राज ( राजन् ) १ राजा . राजानो, राजा. २ राजानं राज राजानो. ३ रञा, राजेन, राहि, राजभि, राजिना .
राजेहि, राजेभि. प्रा० २५
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________________
१९४
२. 'णा' अने पंचमी तथा षष्ठीना ' णो प्रत्यय पर रहेता
'
' राजन् ' शब्दनो ' रण् ' आदेश विकल्पे थाय छे.
४६
८
७
सं०
रञो (रज्ञस्स)
राजिनो, राजस्स
रञा
४-६
राजस्मा,
रज्ञ, राजिनि,
राजस्मि, राजम्हि
० राज, राजा
6 ू
१
ब्रह्मा
२ ब्रह्मानं ब्रह्म
J
३-५ बना ( ब्रह्मना )
राजम्हा
ब्रह्मस्स
ब्रह्मनो
ब्रह्मनि ब्रह्मे
१.
२
३-५ अद्भुना
४-६ अर्जुनो
अद्धा
अद्धानं
ब्रह्म
८ सं० ब्रह्म ( ब्रह्मा )
७
८ सं० अद्ध !
अद्धनि अद्धाने
रज्ञ,
राजूनं राजानं.
राजूहि, राजूभि,
राजेहि, राजेभि.
राजुसु,
राजेसु.
राजानो, राजा.
ब्रह्मन् प्रा० बम्ह )
ब्रह्मानो (ब्रह्मा)
""
ब्रह्मेहि, ब्रोभि.
( हि ब्रह्मभि )
·
ब्रह्मानं.
ब्रह्मनं.
ब्रह्मेसु
ब्रह्मानो (ब्रह्मा)
अद्ध (अध्वन् )
अदा, अद्धानो
अद्धाने
अद्धानेहि,
अद्धानं
अद्धानेसु
अद्धा ! अह्नानो !
अद्धानेभि.
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३. 'णो', 'गा' अने सप्तमीना एकवचनमां : राजन् ' शब्दनो ।' राइ' आदेश विकल्पे थाय छे.
. विशेषताः [शौरसेनी, मागधी, पैशाची अने अपभ्रंशमा । अन् ' छेडावाळां नामोना अंत्य 'न् ' नो संबोधनना एकवचनमां विकल्प अनुस्वार थाय छः
युव (युवन्-प्रा० जुव) १ युवा (यूनो) युवा,
युवानो, युवाना २ युवानं, युवं
युवाने, युवे. ३ युवाना, युवानेन, युवानेहि, युवानेभि. युवेन
युवेहि, युवेभि. ४-६ युवानस्स, युवस्स युवानानं, युवानं. ५ युवाना, युवानस्मा, युवानेहि, युवानेभि. युवानम्हा
युवेहि, युवेभि. ७ युवाने, युवानम्मि, युवानेसु
युवानम्हि,
युवे, युवस्मिं, युवम्हि युवासु, युवसु. ८ सं० युव, युवा,
युवानो युवान, युवाना युवाता. [ 'मघर' (मघवन् ) नां रूपो 'युव' जेवां अने 'मघवंत' (मघवन् ) नां रूपो ‘गुणवंत 'नी जेवां.]
मुद्ध ( मूर्धन्प्रा० मुंढा) १ मुद्धा
मुद्धा, मुद्धानो. २ मुद्धं
मुद्धाने.
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१९६
हे अप्पं !, अप्प ! (सं० भवन् ) भवं, भव !] (सं० भगवन् ) हे मयवं!, भयव !. हे राय !, राय !. हे सुकम्म !, सुकम्म !.
३-५ मुद्धना
७ मुद्धनि
मुद्धानेसु शेप 'वीर' नी जेवां.
सानं
सा (श्वन्-प्रा. स, साण) १ सा,
सा, सानो २ सं, सानं 'से, साने ३ सेन, साना सेहि, सेभि. (साहि, साभि)
सानहि, सानेभि. ४-६ सस्त
४-साय ५ सा, सस्मा, सेहि, सेमि
सम्हा, साना सानोहि, सानेभि ७ से, सस्मि ,
सासु सम्हि, साने ८ सं. स
सा, सानो
आ उपरांत दळ्धम्म (दढधम्म), पञ्चक्खधम्म, गांडीवधन्व, विस्सकम्म, विवत्तच्छद्द (विवृत्तछद्म-विअट्टछउम), पृथुलोम, अथव्वन ( अहव्वण) अने वत्तह (वृत्रहन् ) वगेरे अनेक शब्दो 'अन्' छेडावाळा छे. तेमा 'पञ्चक्खधम्म' अने 'गांडीवधन्य' नां रूपो 'सा'
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________________
रायाणो. राइणो, राया.
१०- राया,
रायो
( मा० लाये) वी०- राइणं,
रायं राइणा, रण्णा
रायेण, रायेणं च० छ ०-रण्णो, राइणो
त०
रायाणो, 'राइणो, राये, राया. राईहि, राईहिं, राईहिं. रायेहि, रायहिं, रायेहि राईण, राईणं. रायाण, रायाणं.
रायस्स
पं०--
( ता०-रण्णे ) ( मा० लायाह) रण्णो, राइणो, रायत्तो, रायाओ, रायाउ, रायाहि, रायाहिंतो, राया
(मा० लायाहँ) राइतो, राईओ, राईउ, राईहि, राईहितो, राईमुंतो, रायत्तो, रायाओ, रायाउ, रायाहि, रायेहि, रायाहितो, रायेहितो. रायासुंतो, रायेसुंतो.
(श्वन् ) नी जेवां थाय छे. 'विस्सकम्म ' थी 'अहव्वन' सुधीना शब्दोनां रूपो 'वार' नी जेवां थाय छे अने बाकी रहेला 'दहधम्म'" अने 'वत्तह' नां रूपोमां थोडी विशेषता छे ते पालिप्रकाशथी समजी लेवी-जूओ पालिप्र० पृ० १२१-१२९ अने एनां टिप्पणो.
१ सं० 'राज्ञः ' उपरथी 'रण्णो' रूप पण थाय छे-जओ . म्न, ज्ञ-ण पृ० ३६ तथा पृ० ९७ विसर्ग ओ.
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________________
१९८ ( शौ० ग़यादो, रायादु) ( मा० लायादो, लायादु)
(पै० रायातो, रायातु) स०- राइंसि, राइन्मि राईसु, राईमुं
रायसि, रायम्मि, राये रायेमु, रायसुं. सं०- राया, रायो, राय, रायाणो, राइणो, राया.
( शौ० पै० राय, राय, राया, रायो )
( मा० लायं, लाय, लाया, लाये ) ' अन् ' छेडावाळां नामोनां प्राकृत रूपोनी साथे ज शौरसेनी, मागधी अने पैशाचीनां साधारण रूपो आपेलां छे फक्त : राजन् ' शब्दनां पैशाचीरूपोमां आ एक खास विशेषता छ :
पैशाचीः एकवचन
बहुवचन त०-'राचित्रा, रञा' (राज्ञा) बी०-राचिओ, रो (राज्ञः) च० छ०-राचियो, रञो (राज्ञः) पं०- , , , सं०- राचिनि, रन्जि (राज्ञि)
नान्यतरजाति उपर जणावेलां ' अन् । छेडावाळां नामोनां क्लीबलिंगी रूपो प्रथमा अने द्वितीयामां बराबर ‘कुल ' नी जेवां थाय छे अने बाकी बधां ते ते भाषा प्रमाणे पुंलिंगी रूपोनी जेवां थाय छे. जेमके
१ सरखावो 'राजन् ' ना पालिरूपो-पृ० १९३
२ जूओ ज्ञ=ञ मागधी ( पृ० ३६) मागधीनी पेठे पैशाचीमां पण ' ज्ञ,' 'ण्य' अने 'न्य' नो 'ज' थाय छे
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सुपूस, सुपूसाण (सुपूषन् ) 'सुपूसं,
सुपूसाणि, सुपूसाई
१
सुपूसाई
सुपूसाणं
२
सुपूसाणाणि, सुपूसाणा
सुपूसाणाई सुपूसं,
सुपूसाणि, सुपूसाइँ
सुपूसाइं . सुपसाणं
सुपूसाणाणि, सुपूसाणाइँ
सुपसाणाई शेष रूपो, ते ते भाषा प्रमाणे · पूस ' नी पेठे.
सुअप्प सुअप्पाण (सुआत्मन् ) १ सुअप्पं सुअप्पाणि, सुअप्पाइँ,
सुअप्पाइं सुअप्पाणं
सुअप्पाणाणि, सुअप्पाणा,
सुअप्पाणाई. २ सुअप्पं
सुअप्पाणि, सुअप्पाइँ,
सुअप्पाई सुअप्पाणं
मुअप्पाणाणि, सुअप्पाणा,
सुअप्पाणाई. शेष, पुंलिंगी : अप्प' नी पेटे
१ सुपूसं गयणं. २ मुअप्पं कुर्ल.
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________________
सुराय, सुरायाण ( सुराजन् ) १ मुराय' सुरायाणि, सुरायाइँ,
सुरायाई सुरायाणाणि, सुरायाणा,
सुरायाणाई. सुरायं
मुरायाणि, सुरायाइँ,
सुरायाणं
मुरायाई
मुरायाणं
सुरायाणाणि, सुरायाणा,
सुरायाणाई. शेष बधां पुंलिंगी ' राजन् ' नी जेवां
__ अपभ्रंशरूपो ए नामोना अपभ्रंशरूपो पण 'वीर' अने 'कुल' नी गेवः थाय छे. जेमके
पूस, पूसाण (पूषन्-नरजाति) १ पूसु, पूसो, पूस, पूस, पूसा पूसा,
पूसाण, पूसाणा. पूसाणु, पूसाणो, पूसाण, पूसाणा पूसु, पूस, पूसा पूस, पूसा . पूसाणु, पूताण, पूसाणा पूसाण, पूसाणा पूसेण, पूसेणं, पूमें पूसेहि, पूसाहि, पूसहि पूसाणेण, पूसाणेण पूसाणेहि, पूसाणाहिं
पूसाणाहिं. १ सुरायं नवरं.
पूसाणे
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________________
४-६ पूसासु, पूससु, पूसस्सु पूसाह, पूसहं पूसाहो, पूसहो,
पूस, पूसा पूस, पूसा, पूसाणासु, पूसाण, पूसाणाहं, पूसाणहं पूसाणस्सु, पूसाणाहो, पूसाणहो, पूसाण, पूसाणा. पूसाण, पूसाणा पूसाहु, पूसहु,
पूसाहुं, पूसहुं पूसाहे, पूसहे
पूसाणाहुं, पूसाणहुं पूसाणाहु, पूसाणहु,
पूसाणाहे, पूसाणहे ७ पूसि, पूसे
पूसाहिं, पूसहिं पूसाणि, पूसाणे पूसाणाहिं, पूसाणहिं. ८ (सं०) पूमु, पूसो, .
पूसाहो, पूसहो पूस, पूसा
पूस, पूसा पूसाणु, पूसाणो,
पूसाणाहो, पूसाणहो, पूसाण, पूसाणा
पूसाण, पूसाणा.
१
सुपूस, सुपूसाण (नान्यतरजाति) सुपूमु,
सुपूसाई, सुपूसई सुपूस, सुपूसा
मुपूसाई, सुपूसई सुपूस, सुपूसा बाकी वां, 'पूस 'नां अपभ्रंश रूपो प्रमाणे.
प्रा० २६
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________________
२०२
एज प्रमाणे राय, अप्प वगेरे । अन् ' छेडावाळां नामोनां बधा अपभ्रंश रूपो करी लेवानां छे.
[पूस, अप्प, राय वगेरे शब्दोनां शौरसेनीरूपोनो पण अपभ्रंशमां उपयोग थइ शके छे ]
' अस्' छेडावाला नामो ('नरजाति) प्राकृतमां अने पालिमा । अस्' छेडावाळां नामोनां रूपो अकारांत शब्दोंनी जेवां थाय छे. जेमके
सुमण ( सुमनस् ) १ सुमणो
सुमणा २ सुमणं
मुमणे, सुमणा ३ सुमणेण, सुमणेणं सुमणेहि, सुमणेहिं,
सुमणेहिँ
इत्यादि बधां ते ते भाषा प्रमाणे 'वीर' नी जेवां समजवा.
१ जूओ पृ० १२३ (नामनी जातिओ) २ पृ०१०-अंत्यव्यंजनलोप. ३ पालिमा 'पुमस्' (सं० सु) शब्दनां रूपोमां विशेषता छ ते आ प्रमाणे:
पुम (पुमस्) १ पुमा
पुमा पुमो
पुमानो २ पुमान पुमं
पुमाने, पुमे पुमाना
पुमानेहि, पुमुना
पुमानेभि, पुमेन
पुमेह, पीमि
पुमानो
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... ए प्रमाणे सुवय ( सुवचम् ) सुमेह (ध) (सुमेधस् ) विमण (विमनस् ) पवय (प्रवयम् ) अने दुव्वय ( दुर्वचस् ) वगेरे शब्दोनां रूपो ममजवां.
स्त्रीलिंग स्त्रीलिंग नामो पांच प्रकारनां छे, जेमके-आकारांत, इकारांत, ईकारांत, उकारांत, ऊकारांत ।
आकारांत १ प्राकृतमा आकारांत नामो वे जातनां छे, जेमके–केटलांक आकारांत नामोनु मूळरूप ( संस्कृतमा) अकारांत होय छे ते अने केटलांक आकारांत नामोर्नु मूळरूप (संस्कृतमा) अकारांत नथी ४-६ पुमुनो
पुमानं पुमस्स पुमाना
पुमानेहि, पुमानेभि पुमुना पुमा, पुमस्मा
मेहि, पुमेभि पुमम्हा पुमाने
पुमानेसु पुमे
पुमासु, पुमेसु पुमत्मि, पुमम्हि • ८ सं०--पुमं, पुम
पुमा
पुमानो
'चन्द्रमस्' शब्दनुं प्रथमाना एकवचनमा 'चदिमा' रूप थाय छे अने याकीनां रूपो अकारांतनी जेवां थाय छ:-जुआ पालिप्र. पृ. १३०-१३१ अने एनां टिप्पणो.
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૨૦૪ .होतुं ते. [ए बन्ने जातनां आकारांत नामोनां रूपोमां थोडं अंतर छे माटे ज अहीं ए विभाग जणाव्यो छे. ]
२ स्त्रीलिंगे थनार (संस्कृत ) अकारांत नामना छेक्टना 'अ'नो 'आ' थाय छेः रम=रमा इत्यादि। .. ३ : विद्युत् ' शब्दने वर्गाने स्त्रीलिंगी व्यंजनांत शब्दना छेवटना व्यंजननो 'आ' के 'या' थाय छे: वाच्=वाआ, वाया इत्यादि।
४ स्त्रीलिंगी रकारांत शब्दना छेवटना र ' नोरा' थाय छे गि-गिरा । धुर-धुरा । युर-पुरा इत्यादि। ... ५ नीचेनां संस्कृत नामोनां प्राकृत रूपो आ रीते थाय छः . 'अप्सरस्-अच्छरसा । आशिष्-आसिसा । दुहित-दुहिआ, धूआ । ननान्द-नणंदा । नौ-नावा । पितृप्वम–पिउसिआ, पिउच्छा। बाहु-बाहा । माता-माआ', 'माय ( अ ) रा । मातृष्वंस -माउसिआ, माउच्छा । स्वस--ससा ।
ईकारांत १ स्त्रीलिंगे थनारा विशेषणवाचक अने व्यक्तिवाचक शब्दो प्राकृतमा आकारांत अने ईकारांत बने छः
नीला, नीली ( नीला ), हसमाणी, हसमाणा (हसमाना) सव्वी, सव्वा ( सर्वा ) सुप्पणही, सुप्पणहा ( शूर्पनखा ) इत्यादि ।
२ संस्कृतमा जे शब्दो आ जणावेला (हेम ० २-४-२० .. अने पाणि० ४-१-१५ (सूत्रांक-४७०) सूत्रथी ईकारांत बने छे ते शब्दोने प्राकृतमा आकारांत अने ईकारांत समजवाना छ
१ आ शब्दोमांना केटलाक शब्दो तो आगळ आधी गया छेजूओ शब्दविशेषविकार पृ० ८४-८६ नि० १०८-१०९ .. २ आ शब्दनो माता-जननी-अर्थ छे.
३ आ शब्दनो देवी अर्थ छे.
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ओपगवी, ओपगवा (औपगवी ), वेई, वेआ (वेदी), सुप्पणेयी, सुप्पणेया ( सौपर्णी), अविखई, अक्खिआ (आक्षिकी), थेणी, थेणा (स्वणी ) पुण्ही, पुंण्डा (पौंस्नी ), साहणी, साहणा (साधनी) कुरुचरी, कुरुचरा ( कुरुचरी) इत्यादि ।
३ छाया अने हरिद्रा शब्द प्राकृतमा ईकागंत पण बने छः हाही, छाया (छाया), हलद्दी, हलद्दा (हरिद्रा )
स्त्रीलिंगी नामोने लागता प्राकृत प्रत्ययो प.-- . . 'आ, उ, ओ, . वी०- म
'आ, उ, ओ, त०- अ, आ, इ, ए हि, हिं, हिं च०, छ ०- अ, आ, इ ए ण, णं पं०- अ, आ, इ, ए, तो, तो, ओ, उ, हिंतो
ओ, उ, हिंतो संतो । स०- अ, आ, इ, ए मु, मुं
प्राकृत प्रत्ययोने लगता नियमो १ 'तो' अने ' म् ' सिवायना प्रत्ययो पर रहेतां पूर्वनो हस्व स्वर दीर्घ थाय छे.
२ म्' प्रत्यय पर रहेता पूर्वनो दीर्घ स्वर हस्व थाय छे. __३ ज्यां शून्य (०) छे त्यां शब्दो, मूळरूप पण वपराय छे अने जो मूळरूप हम्वांत होय तो तेने दीघीत करीने वापरवानुं छे.
१ आ प्रत्यय ईकारांत नामने ज लागी शके छे. २ आ प्रत्ययने आकारांत नागने लगाइवानो नथी.
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२०६
४ संबोधनना एकवचनमां ईकारांत अने उकारांत नामोनो अत्य स्वर ह्रस्व, थाय छे अने बहुवचन प्रथमानी जेवुं थाय छे.
५ संबोधनना एकवचनमां इकारांत अने उकारांत नामोना अंत्य स्वरनो दीर्घ विकल्पे थाय छे अने बहुवचन प्रथमानी सरखं थाय छे.
६ जे आकारांत शब्दोनुं मूळ (संस्कृत) रूप अकारांत होय छे, ते शब्दोना अत्य ' आ ' कारनो, संबोधनना एकवचनमां 'ए' विकरूपे थाय छे अने बहुवचन प्रथमानी सरखुं थाय छे.
७ संबोधनना एकवचनमां, बीजा 'आकारांत शब्दोनुं मूळरूप ज वपराय छे अने बहुवचन प्रथमानी सरर्खु थाय छे. विशेषता
शौरसेनी, पैशाची अने मागधीमां पण स्त्रीलिंगी नामोने प्राकृतना ज प्रत्ययो लगाडवाना छे. मात्र मागधीमां छट्ठी विभक्तिमां फेर छे अने ए आ प्रमाणे छे:
फक्त आकारांत नामोने मागधीमा छट्ठीना एकवचनमां ह
:
1
?
;
प्रत्यय अने बहुवचनमां हैं प्रत्यय लागे छे जेमके,
मालाह
माला हूँ
स्त्रीलिंगी नामोने लागता अपभ्रंश प्रत्ययो
एकव ०
प०
बी० -
०
O
१ जूओ पृ० २०४ मि० ५,
बहुव०
उ, ओ,
ङ, ओ,
०
०
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________________
२०७
hts are
त०- ए च० छ०- हे, . पं०- हे स० हि सं०- .
अपभ्रंश प्रत्ययने लगता नियमोः १ अपभ्रंशना प्रत्ययो लागतां नामनो अंत्य स्वर ह्रस्व अने दीर्घ थाय छे.
२ ज्यां शून्य छे त्यां पग उपरनो नियम लागु थाय छे,
प्राकृत रूपाख्यानो
माला प०- माला
मालाउ, मालाओ, माला बी०- मालं
मालाउ, मालाओ, माला ९ आकारांत स्त्रीलिंगी शब्दना पालिरूपोः
माला
१ माला
२ मालं
३-५ मालाय .... ४-६ मालाय
७ मालाय
मालायं ८ सं०-माले
माला, मालायो. माला, मालायो. मालाहि, मालाभि. मालानं. मालामु.
माला, मालायो. ओ पालिप्र० पृ. ९९-१००-१०१
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________________
त C मालाअ, मालाइ,
मालाए
च०,६०- मालाअ, मालाइ,
मालाए
पं0
स-
मालाअ, मालाइ,
मालाए
सं०- माले ! माला !
( मा० मालाह )
मालाअ, मालाइ, मालाए, मालतो,
मालाओ, मालाउ,
मालाहिंतो
२
'हूँ' प्रत्यय पण लागे. छे.
माला + मालाण, माला है ।
थाय छे,
२०८
ए रीते नावा (नौ) गउआ ( गोका ) सद्धा ( श्रद्धा ), मेहा ( मेघा ) पण्णा ( प्रज्ञा ), तन्हा (तृष्णा), विज्जा ( विद्या ), पुच्छा ( पृच्छा) चिंता. छुहा ( क्षुधू छुह ) कउहा ( ककुभ् - कउह ), निसा ( निशा ) अने दिसा ( दिशा ) वगेरे आकारांत शब्दोनां रूपाख्यानो माला' नी पेठे छे.
i
मालाहि मालाहिं,
मालाहि
'मालाण, मालाणं
१ आकारांत स्त्रीलिंगी शब्दोने पष्ठीना बहुवचनमां मागधीनो जेमके - सरिआ + सरिआणं, सरिआएँ ।
( मा० मालाहँ )
मालतो, मालाओ,
मालाउ, मालाहिंतो
मालासुंतो
-
मालासु, मालासुं
मालाउ !, मालाओ !,
माला !
"
अम्मा शरवनुं संबोधनमुं एकवचन
'अम्मो पण
>
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२०९
वाया ( वाचा) १०- वाया
वायाउ, वायाओ, वाया. सं0- वाया
वायाउ, वायाओ, वाया. शेष रूपो माला' नी जेवा. ए रीते अच्छरसा ( अप्सरम् ), आसिसा (आशिष् ), धूआ, दुहिआ ( ( दुहित), नणंदा ( ननान्ड ), नावा (नौ), पिउच्छा, पिउसिआ (पितृप्वसृ ), बाहा (बाहु), माआ,माअ (य) रा, (मातृ) माउसिआ, माउन्च्छा (मातृष्वस) अने ससा ( स्वस) वगेरे भाकारांत शब्दोनां रूपाख्यानो समजवानां छे.
१०- गई बी०- गई
'गइ (गति)
गईउ, गईओ, गई गईउ, गईओ, गई
१ इकारांत स्त्रीलिंगी शहदना पालिरूपो:
रत्ति (रात्रि) १ रत्ति
रत्ती, रत्तियो २ रति ३-५ रत्तिया
रत्तीहि, रत्तीभि. ४-६ रत्तिया
रत्तीनं ७ रत्तिया
रत्तीसु रतिय ८ रत्ति
रत्ती, रत्तियो --जूओ पालिप्र० पृ० १०१-१०२ प्रा० २७
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गईहि, गईहिं गईहिं गईण, गईणं
त०- गईअ, गईआ,
गईइ, गईए च०, छ०- गईअ, गईआ,
गईइ, गईए पं.- गईअ, गईआ,
गईइ, गईए गइत्तो, गईओ,
गईउ, गईहितो स०- गईअ, गईआ,
गईइ, गईए . सं०- गई ! गइ !
गइत्तो, गईओ, गईउ, गईहितो, गईसुंतो गईसु, गईसुं ('गइसु, गइसुं) गईउ, गईओ, गई
ए प्रमाणे जुत्ति ( युक्ति) माइ (मातृ ) भूमि, जुवइ (युवति) धूलि, रइ (रति ), बुद्धि, मइ (मति), दिहि, धिइ (धृति) अने सिप्पि, सुत्ति (शुक्ति) वगेरे इकारांत शब्दोनों रूपाख्यानो समजवानां छे.
[सं० 'राज्यः' उपरथी पालिमां 'रत्यो,' 'रात्र्या' अने 'राव्याः' उपरथी 'रत्या,' 'रात्र्याम् ' उपरथी रत्यं भने ' रत्ति' तथा ' रात्रौ' उपरथी 'रत्तो' रूपो पण बने छ ]
१ जूओ हे. प्रा. व्या. ८-३-१६
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प०
घेण
बी० - घेणं
त०
सo -
घेणूअ, घेणूआ, वेणू, वेणू
च०, छ० - वेणू, वेणूआ, वेणू, वेणूए
पं० - घेणूअ, वेणूआ, वेणू, वेणू
घेणूतो, वेणूओ, घेणू, वेणूहिंतो
स०
सo - घेणूअ घेणूआ, वेणू, वेणू
सं७ - घेणू ! घेणु !
!
यागु
२ यागुं
पेणु ( धेनु )
३-५ यागुया
४-६
यागुया
७ यागुया
यागुयं
८ सं० यागु
, ओ,
१ उकारांत स्त्रीलिंगी शब्दनां पालिरूपोः
यागु (यबागू )
ओ, वेणू
वेणू, हि, वेणूहिं, घेहि
घेणूण, घेणूणं
"
वेणूस घेणूओ, घेणूउ हितो, वेणूसंतो घेणूस. वेणू सं
घेणू, घेणूओ, घेणू
यागू
यागुयो.
J
यागूहि, याभूमि.
यागूनं.
या सु.
""
यागू, यागुयो.
- जूओ पालिप्र० पृ० १०६-१०७
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________________
२१२
ए प्रमाणे गउ, कच्छु, विजु (विद्युत् ), उज्जु (ऋजु), पियंगु (प्रियङ्ग) माउ (मातृ) दुदु (द९) पड्डु (पटु), गुरु, लहु (लघु) अने कण्ड वगेरे उकारांत शब्दोनां रूपो ' घेणु' नी पेठे समजवानां छे.
ܕܕ
ܕܕ
ܕܕ
'नई (नदी) प०- नई
नईआ, नईउ, नईओ, नई बी०- नई
नईआ, नईउ, नईओ, नई त०- नईअ, नईआ, नईहि, नईहिं, नईहि
नईइ, नईए १ ईकारांत स्त्रीलिंगी शब्दना पालिरूपोः
नदी १ नदी
नदी, नदियो (नजो) नदिं, नदियं ३-५ नदिया ( नजा) नदीहि, नदीभि. ४-६ नदिया (नजा) नदीन ७ नदिया
(नजा)
(नज्ज) ८ सं० नदि
नदी, नदियो (नज्जो) -~-जूओ पालिप्र० पृ० १०३-१०४-१०५-१०६ तथा एनां टिप्पणो.
[सं० नद्यः, नद्या, नद्याः अने नद्याम् उपरथी पालिमा उपर्युक्त नज्जो, नज्जा, नज्जा अने नजं रूपो वनेला छे-जुओ पृ. ३३ अं० २७ –य, य्य, यज ]
नदीसु,
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________________
२१३
नईण, नईणं
च०, छ०-- नईअ, नईआ,
नईइ, नईए पं0- नईअ, नईआ.
नईइ, नईए, नईत्तो, नईओ,
नई उ, नईहितो स०-. नईअ, नईआ,
नईइ, नईए सं०- नइ !
नइतो, नईओ, नईउ, नईहितो, नईमुतो नईमुं, नईसु
नईआ, नईउ, नईओ, नई
ए प्रमाणे गाई (गो) वावी (वापी ), कयली (कदली), नारी, कुमारी, तरुणी, समणी (श्रमणी), साहुवी, 'साहुणी( साध्वी), पुहवी ( पृथ्वी), वाराणसी, तणुवी (तन्वी ), इत्थी,थी (स्त्री) अने बहिणी ( भगिनी) वगैरे ईकारांत शब्दोनां रूपाख्यानो · नई 'नी पेठे छे.
वहू (वधू) ५०- वह
वहूउ, वहूओ, वहू बी०- वहुं
वहूउ, वहूओ, वहू १ जूओ पृ० ४३-वी-उवी अने ते उपरनुं टिप्पण. ___२ अकारांत स्त्रीलिंगी शब्दनां पालिरूपोः
___वधू (प्रा. वहू) १ वधू
वधू, वधुयो. २ वर्षा ३-५ वधुया
वधूहि, वधूमि, ४-६ वधुया
वधूनं.
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________________
૨૧
त०- वहूअ, वहूआ, वहूहि, वहूहिं, वहूहि
वहूइ. वहूए च००-- वहूअ, वहुआ, वहूण, वहूणं
___ वहूइ, वहुए पं०- वहअ, वहूआ,
. वहूइ, वहूए
वहुत्तो, वहूओ, वहुत्तो, बहूओ, वहूर,
वहूउ, वहूहितो वहूहितो, वह तो स०- वहूअ, वहूआ, वहूम, वसुं
वहूइ, वहए सं०- बहु :
वहूआ, वहूउ, वहओ, वहू __ए प्रमाणे अज्जू ( आर्या ) पङ्ग, कणेरू, वामोरू, कद्दू (कद्दू) पीणोरू ( पीनोरू ) अने कक्कंधू (कर्कन्धू) वगेरे ऊकारांत शब्दोनां रूपाख्यानो समजवानां छे.
प्राकृतनां स्त्रीलिंगी रूपाख्यानोनी पेठे शौरसेनी, मागधी अने पैशाचीनां पण रूपाख्यानो समजवानां छे-शौरसेनीमां, मागधीमां अने अपभ्रंशमां पंचमीना एकवचनमां (प्राकृतना ओ' अने 'उ' ने बदले) 'दो' अने 'दु' प्रत्यय वापरवाना छे, पैशाचीमा एने बदले 'तो' अने 'तु' वापरवाना छे अने मागधीनी जे खास विशेषता छे ते जणावी छे.'
वधूसु.
७ वधुया
वधुयं ८ स--वधु
वधू, वधुयो -जूओ पालिप्र. पृ० १०७--१०८
१ जओ पृ० २०६
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________________
२१०
अपभ्रंशरूपाख्यानो
माला १ माला, माल
मालाउ, माल, मालाओ, मालओ
माल, माला. २ माला, माल
मालाउ, मालउ, मालाओ, मालओ
माल, माला. ३ मालाए, मालए मालाहिं, मालहिं. ४-६ मालाहे, मालहे मालाहु, मालहु, माला, माल
माला, माल मालाहे, मालहे मालाहु, मालहु मालत्तो, मालादो मालतो, मालादो मालादु,
मालादु मालाहितो,
मालाहितो, मालासुंतो ७ मालाहि, मालहि मालाहि, मालहिं ( सं० माला, माल मालाहो, मालहो
माल, माला
१
मइ, मई
२
मइ, मई
मइउ, मईउ मइआ, मईओ मइ, मई मइउ, मईउ मइओ, मईओ मइ, मई माहि, मईहिं
३
मइए, मईए
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________________
४-६ मइहे, मईहे मइहु, मईहु. मइ, मई
मइ, मई. ५ 'मइहे, मईहे मइहु, मईहु.
७ मइहि, मईहि मइहिं, मईहिं. ८ सं० मइ, मई
मइहो, मईहो,
मइ, मई. पइट्टी (प्रविष्टा-पविठ्ठा) १ पइट्ठी, पइटि. पइटिउ, पट्टीउ,
पइटिओ, पइट्ठीओ,
पट्टी, पइदि. २ पइट्ठी, पइट्ठि
पइट्ठिउ, पइट्ठीउ, पहिओ, पइट्टीओ,
पइट्ठी, पइट्टि. ३ पइट्ठिए, पट्टीए पइद्विहिं, पइट्टीहिं. • ४-६ पइट्ठिहे, पइट्टीहे
पइट्ठिहु, पइट्ठीहु, पइट्ठी, पइट्टि पइट्ठी, पइडि. ५ 'पइटिहे, पइट्ठीहे पट्टिहु, पट्टीहु.
७ पइट्ठिहि, पइट्ठीहि पट्ठिहिं, पइट्टीहिं ८ सं० पइडि, पइट्ठी पइट्ठिहो, पइट्टीहो
पट्टी, पइदि
घेणु
१ घेणु, घेणू घेणुउ, घेणूउ
धेणुओ, घेणूओ १ ' माला 'नां पंचमीना रूपोनी पेठे अहीं भइत्तो, पइहित्तो वगेरे रूपो पण समजवां-जूओ पृ. २१५
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________________
२९७
२ घेणु, घेणू
३ धेणुए, धेणूए ४-६ धेगुहे, घेणूहे
घेणु, घेणू ५ धेणुहे, घेणूहे
७ घेणुहि, धेहि ८ सं०-घेणु, घेणू
घेणु, घेणू. धेणुउ, घेणूउ घेणुओ, घेणूओ. धेणु, धेणू. घेणुहिं, घेणूहि. धेणुहु, घेणूहु, घेणु, घेणू - घेणुहु, घेणूहु. घेणुहिं, घेणूहिं. धेणुहो, घेणूहो, घेणु, घेणू.
वह
१
वह , बहु
२
वहू, वहु
वहुउ, वहूउ बहुओ, वहूओ, वहु, वहू. वहुउ, वहूउ वहुओ, वहूओ, वहु, वहू. वहुहिं, वहूहिं. वहुहु, वहूहु; वहु, वहू. वहुहु, वहूहु
३ वहुए, वहए ४-६ वहुहे, वहूहे,
वहु, बहू .६ पहुहे, वहहे . प्रा० २८ . .
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________________
७ वहुहि, वहूहि ८ सं०-वहु, वहू
वहुहिं, वहूहिं. वहुहो, वहहो वहु, वहू.
ए प्रमाणे बधा आकारांत, इकारांत, ईकारांत, उकारांत अने उकारांत शब्दोनां अपभ्रंशरूपो बनावी लेवानां छे.
'सर्वादि (स्त्रीलिंग) स्त्रीलिंगी सर्वादि शब्दोनां प्राकृतरूपो, शौरसेनीरूपो, मागधीरूपो, पैशाचीरूपो, अने अपभ्रंशरूपो पूर्व जणावेला साधारण स्त्रीलिंगी शब्दो प्रमाणे समजवानां छे.
केटलाक स्त्रीलिंगी सर्वादि शब्दोनां प्राकृत रूपोनी विशेषता आ प्रमाणे छः
[स्त्रीलिंगी सर्वादि शब्दोना · आकारांत ' अंगनां रूपो — माला ' नी जेवां करवानां छे. ईकारांत अंगनां रूपो नई 'नी जेवां करवानां छे अने उकारांत अंगनां रूपो ‘घेणु' नी जेवां करवानां छे].
१ स्त्रीलिंगी सर्वादि शब्दोनों पालिरूपो--
सध्या ( सर्वा) नां धधारानां रूपोः ४.-६ सत्यम्सा ( सं . सर्वस्याः) सव्यास (सं० सर्वासाम् )
सव्वासान ७ सध्वस्सं (सं० सर्वस्याम)-ओ पालिप्र० पृ. १४० अने टिप्पण,
बाकी बधां 'माला' नां पालिरूपो जेयां..
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________________
'ती, ता, णी, णा (तत्)
तीआ, तीउ, तीओ, ती,
ताउ, ताओ, ता. १ पेली अने बीजीना एकवचनमां तथा छट्ठीना बहुवचनमा आ ईकारांत अंगनो प्रयोग थतो नथी. २ जूओ पु. १४१ नुं 'ण' उपरतुं टिप्पण,
३ ता ( तद्) नां वधारामां रूपोः
४
-
६
ताय
३-५ तस्ता (सं० तस्याः) ताहि, तामि. ताय
नाहि, नाभि. नस्सा नाय अस्सा तस्साय, तस्ता | सं० तस्यै । तासं ( सं० तासाम् )
। तस्याः तासानं नस्साय, नस्ता
नासं, नासानं नाय अस्साय, अस्सा
आसं, आसान तिस्साय, तिस्सा
सानं तस्सं (सं० तस्याम्) तस्सा नस्सं, नस्सा अस्सं, अस्सा तिस्सं, तिस्सा तायं, ताय नायं, नाय
बाकी बघां 'माला' नी पेठे. . .-जूओ पालिप्र० पृ. १४३ अने टिप्पण,
Page #320
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________________
२२०
तीआ, तीउ, तोओ, ती,
ताउ, ताओ, ता. ३ तीअ, तीआ, तीइ, तीए, तीहि, तीहिं, तीहि, ताअ, ताइ, ताए ताहि, ताहिं, ताहि. (पै० नाए)
सिं,
(तास) तिम्सा, तीसे (तेसिं) तीअ, तीआ, तीइ, तीए,
ताअ, ताइ, ताए ताण, ताणं. स०-(ताहिं) तीअ, तीआ,
तीइ, तीए, ताअ, ताई, ताए.
शेष रूपो · नई' अने । माला 'नी पेठे.
णी' अने 'णा' अंगनां रूपो पण 'नई' अने 'माला'नी पेठे थाय छ ।
'जी, जा ( यत्) ? जा
जीआ, जीउ, जीओ, जी, जाउ जाओ, जा. जीआ, जीउ, जीओ, जी,
जाउ, जाओ, जा. ४-६ जिस्सा, जीसे, जाण, जाणं.
जीअ, जीआ, जीइ, जीए, जाअ, जाइ, जाए
१ जूओ पृ० २१९ उपरर्नु टिप्पण १.
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________________
67
१
२
૨૨૨
(जाहिं), जीअ, जीआ,
जीव, जीए,
जाअ, जाइ,
जाए
शेष रूप 'नई ' नी अने 'माला' नी जेवा.
का
की, का ( किम् )
४ - ६ किस्सा, कीसे, (कास) कीअ, की आ, की, कीए
काअ, काई, कोए
७ ( काहिं), कीअ, कीआ, कीई, कीए,
काअ, काई, काए
अयं
इमं
कीआ, कीट, कीओ, की,
कार,
काओ, का.
कीआ, कीउ, कीओ, की, काउ, काओ, का.
१ इमिआ, इमा, इमी
काण,
शेष रूपो नई ' अने 'माला' नी जेवां.
.
इमा, इमी (इदम्)
काणं.
१ जूओ ० २१९ उपरनुं टिप्पण १.
इमीआ, इमीउ, इमीओ, इमी,
२ इम. (इदम्) नां पालिरूपो :
इमा:
इमायो.
:>
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________________
રરર
इमाउ, इमाओ,
इमा. ३ इमीअ, इमीआ, इमीइ, इमीहि, इमीहि, इमीए,
इमीहिँ इमाअ, इमाइ, इमाए इमाहि, इमाति, (पै० नाए)
इमाहि ( आहि, आहिं, आहिँ)
सिं. इमीअ, इमीआ, इमीइ, इमीए. इमर्माण, इमीणं, इमाअ, इमाइ, इमाए इमाण, इमाणं, शेष रूपो 'नई' अने माला 'नी जेवां.
३-५
इमाय
इमाहि, इमाभि. इमाय,
इमास, इमासानं. इमिस्सा, इमिस्साय अस्सा, (सं० अस्याः) अस्साय (सं• अस्य) इमायं,
इमासु इमिस्सं, अस्सं (सं० अस्याम् ) -
जूओ पालिप्र० पृ. १४५–१४६,
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________________
२२३
एआ, 'एई १ एसा, एस, इणं, इणमो एईआ, एईउ, एईओ, एई,
एआउ, एआओ, एआ.
एईअ, एईआ, एईइ, एईए, एईण, एईणं, एआअ, एआइ, एआए एआण, एआणं.
शेष रूपो नई' अने 'माला' नी जेवां
१
अह, अमू
'अमु (अदस्)
अमूड, अमूओ, अमू. शेष · घेणु' वत्
१ एता (एतद् ) नां पालिरूपोः १ एसा . ३-... एताय, एतिस्सा (सं० एतस्याः ) ४-६ एताय, एतिस्सा, एतिस्साय ( सं० एतस्यै ।
1 एतस्याः । ७ एताय, एतायं
एतिस्सं, एतस्सं (सं० एतस्याम् ) बाकी बधां 'माला'नी पेठे -जूओ पालिप्र० पृ. १४४.
[जओ पृ० १४६, १ टिप्पण ]
१
२ ३-५ ४-६
२ 'अमु'नां पालिरूपाः अस, अमु,
अमू , अमुयो. अमुं
अम् , अमुयो. अमुया
अमूहि, अमूभि. अमुया, अमुस्सा अमूसं; अमूसानं
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________________
२२४
ऋकारांत (स्त्रीलिंग )
ऋकारांत स्त्रीलिंगी 'मातृ ' शब्दनां ' माआ ' अने 'मायरा ' आवां वे रूपो जूदा जूदा अर्थमां थाय छे ए 'आगळ जणावेलुं छे, एथी एनां शौरसेनी वगेरेनां बधां रूपो 'वाया' नी जेवां समजवानां छे, जेमके
प० माआ,
मायरा
माआउ, माआओ, माआ, मायराउ, मायराओ, मायरा.
अमू सु
- जूओ पालिप्र० पृ० १४८
१ जुओ पृ० २०४, नि० ५- 'मायर' ने बदले 'माअर' पण
७
यह शके छे.
१
भाता
२ मातरं
३-५
४-६
अमुयं अस्सं
મ
२ ऋकारांत स्त्रीलिंगी 'मातृ ' शब्दनां पालिरूपोः
मातु (मातृ )
माआ, मायरा (मातृ )
मातरा
मानुया
मत्या
मातु
मातुया
मत्या
मातरि
मानुया
मत्या
मातुयं,
माता, मातरो.
माता,
मातरे.
मातरेहि, मातरेभि.
मातृहि, मातृभि.
मातरानं, मातानं,
मातूनं
मातरेस,
मातू सु.
मस्य
८ सं०- मात, माता
माता, मातरो.
- जूओ पालिप्र० प्र० १०८-१०९०११० अने एनां टिप्पण,
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________________
રર
पं०
बी०- मा
माआउ, माआओ, माआ, मायरं .
मायराउ, मायराओ, मायरा. त०- माआअ, माआइ. माआहि, माहिं, माआहि, माआए,
मायराहि, मायराहिं, मायराहि. मायराअ, मायराइ, मायराए च०७०--माआअ, माआइ, माआण, माआणं माआए.
('माईणं) मायराअ, मायराइ, मायगए मायराण, मायराणं. माआअ, माआइ, माआए, माअत्तो, माआओ, माअत्तो, माआओ, माआउ, माआहितो, माआउ, माआहितो. माआसुतो, मायराअ, मायराइ, मायरत्तो, मायराओ, मायराए,
मायराउ, मायरत्तो, मायराओ, मायराड, मायराहिंतो, मायराहिंतो
मायरासुंतो. स.--- माआअ, माआइ माआए, माआसु, माआसुं
मायगअ. मागगइ. मायगए. मायरासु, मायरासुं. स... पाआ.
पाआउ, माआओ.
पाआ, मायरा
मायराउ, मायराओ, मायरा. [माआ ( मातृ-माता+माआ) नुं : माया' बनावीने पण 'माआ' नी जेवां ज रूपो बनावी शकाय छे. ]
१ जूओ पृ० ५६ मातृ माइ+माईणं (सं० मातृणाम् )
२ जूओ पृ० १८ ' कादि 'नो 'य' ०८ प्रा० २९
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________________
२२६
[ 'मातृ' शब्दनां 'माइ' अने 'माउ' एवां पण बे अंगो बने छे, पण रूपाख्यानने प्रसंगे ते बन्नेनो प्रयोग विरल जणाय छे' . ]
सं० " दुहितृ ' नुं प्राकृत रूप ' धूआ ' थाय छे ए आगळ जणावे छे एथी एनां बधां रूपो ' माला ' नी जेवां थाय छे.
ओकारांत 'गो' शब्दनां स्त्रीलिंगी अंगो त्रण थाय छे नेमके; "गोणी, गाई अने गउ. एमांना ' गउ' नां शौरसेनी वगेरेनां बधां १ जूओ हे० प्रा० व्या० ८–३-४६--" माईण समन्निभं वंदे " " भाषाचंद्रिका' मां तो ए बन्ने अंगोंने ख्यानने प्रसंगे बधी विभक्तिओमां वापरेला छे-" इदुद् मातुः १-२-८३ १० १०८. माइ नां रूपों 'इ' नी जेवां अने माउ 'नां रूपो ar 'नी जेवा थाय छे.
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२
ܘܐܚ 3
ご
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२ धीतु ( दुहितृ) नां पालिरूपों
श्रीता
धीतरं,
श्रीतरा,
श्रतिया
श्रील
पीत्या
चीतार,
पीतुया
धीतुरं
धी तं
३ जूओ पृ० २०४ नि ५.
वीता, श्रीतरी.
वीतरो, धीतरे.
धीत रेहि, धीतरेभि,
धीतूहि,
धीतुभि.
भीतनं
श्रीतानं,
धीतमु,
धीतरेस.
धीतराज
जूओ पालिप्र० पृ० ११०-१११
77
"भाऊए.
पा
४ 'गो' शब्दनां प्राकृत रूपांतरोमा 'गावी' 'गोणी' 'गोता' अने 'गोपोलिका'ने पण गणावेला छे:-महाभाष्य पृ० ५०
"
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________________
ર૭ रूपो बराबर · धेणु' नी जेवां थाय छे अने · गोणी ' 'गाई' नां पण शौरसेनी वगेरेनां बधां रूपो बराबर : नई ' नी नेवां बने छे;
जेमके;
गउ (गो) प०- गऊ
गऊउ, गऊओ, गऊ. बी०- गउं
गऊउ, गऊओ, गऊ. त..- गऊअ, गउआ गऊहि, गडहिं, गऊहिं,
गऊइ, गऊए च०७०- गऊअ, गऊआ. गऊण, गऊगं.
गऊइ, गऊए गऊअ, गऊआ गऊतो, गऊओ, गऊउ, गऊइ, गऊए गऊहिंतो, गऊमुंतो. गऊत्तो, गऊओ
गऊउ, गऊहितो म.- गऊअ, गऊआ गउसु, गऊमुं.
गऊइ, गऊए सं०- गऊ, गउ, गऊउ, गऊओ. गल.
गाई, गोणी प.- गाई, गाई,
गाईआ, गाईड,
गाईओ, गाई. १. स्त्रीलिंगी 'गो' शब्दना पालिम्पोः
गो १ गो, गावी
गावी, गावो, गवो. २ गावि, गावं, गवं गावी, गावो, गयो.
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२२८
गोणी
गोणीआ, गोणीउ,
गोणीओ, गोणी. बी.- गाई,
गाईआ, गाईड,
गाईओ, गाई. गोणि
गोणीआ, गोणीउ,
गोणीओ, गोणी. न० -- गाईअ, गाईआ, गाईहि, गाईहिं,
गाईइ, गाईए गोणीअ, गोणीआ, गोणीहि, गोणीहिं, गोणीइ, गोणीए. गोणीहि .
इत्यादि वधां · नई ' नी जेवां. नौ' शब्दनुं स्त्रीलिंगी प्राकृत अंग · नावा' थाय छे अने एनां बधां रूपो बराबर माला ' नी जेवां बने छे, जेमके प- नावा
नावाउ, नावाओ, नावा बी०- नावं
नावाउ, नावाओ, नावा त०- नावाअ, नावाइ, नावाहि, नाबाहि, नावाहि नावाए
इत्यादि बधा : माला' नी जेवां.
३ गावि, गावं, गवं गोहि, गोभि. ४ गावि, गावं, गवं गवं, गोनं, गुन्नं. ५ गावि, गावं, गवं गोहि, गोभि. ६ गाविं, गावं, गवं गवं, गोनं, गुन्नं.
५ गावि, गावं, गवं गोसु. ८ सं. गो!, गावं, गवं गावी, गावो, गवो.
-जओ पालिप्र० पृ. १११ नुं टिप्पण
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२२९
संख्यावाचक शब्दो विशेषताः
१ अट्ठारस (अष्टादश) सुधीना संख्यावाचक शब्दोने षष्ठीना बहुवचनमा - एह ' अने । छहं' प्रत्यय लागे छेः "गण्ह, एगण्हं । दुण्ह, दुण्हं । उभयण्ह, उभयण्हं वगेरे.
इक, एक, एग, एअ (एक) __ आ शब्दना ते ते भाषानां पुंलिंगी रूपो — सव्व' नी जेवां थाय छे, स्त्रीलिंगी रूपो · माला ' नी जेवां थाय छे अने नपुंसकलिंगी रूपो नपुंसकी सव्व ' नी जेवां थाय छे. प प्रमाणे बधा संख्यावाचक शब्दोमां यथासंभव समजवानुं छे.
'उभ, उह ( उभ) ___ आ शब्दनां रूपो बहुवचनमांज थाय छे अने ए । मन्वनी पेठे छे.
१ संख्यावाचकशब्दनां पालिरूपो (पालिप्रकाशमां पृ. १५५ थी १६८ सुधीमा संख्यावाचक शब्दोनों रूपो आपेलां छे.)
'उभ नां पालिरूपों ...२ उभो ।
उभे । ३-५ उभोहि, उभोभि,
उभेहि, उभेभि । ४-६ उभिन्नं। ७ उभोसु, उभेसु ।
--ओ पालिपः पृ० ५५५
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________________
१०- उभे। बी०- उभे, उभा । त०- उभेहि, उभेहिं, उभेहि । च० छ०-उभण्ह, उभण्हं । पं०- उभतो, उभाओ, उभाउ,
उभाहि, उभेहि, उमाहितो, उभेहितो,
उभासुंतो, उभेसुंतो। स०- उभेसु, उभेसु । 'उभ' नां अपभ्रंश रूपो ' सव्व 'नां अपभ्रंश रूपोनी पेठे छे.
दु (द्वि) त्रणे लिंगनां रूपो आ शब्दनां रूपो बहुवचनमांज थाय छे. ५०- दुवे, दोण्णि, दुण्णि, बेण्णि, विष्णि, दो, वे । बी०- दुवे, दोण्णि, दुण्णि, पेण्णि, विण्णि, दो, दे । त०- दोहि, दोहिं, दोहिँ ,
वेहि, वेहिं, वेहि।
१ 'हि'नां पालिरूपो १-२ दुवे,
दे । ३-५ दीहि, द्वीभि । ४.६ दुविनं, द्विन्नं । ___५ द्वीसु ।
--जओ पालिप्र. १० १५१
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________________
N
च० छ० - दोण्ह, दोण्हं, दुण्ह, दुण्हं, वेव्ह, वेण्हं, विह, विहं ।
प० - दुसो, दोओ, दोउ, दोहितो, दोसुंतो, वितो, वेओ, वेउ, वेहिंतो, वेसुंतो ।
म० - दोसु, दोसुं,
सु, सुं ।
'दु' नां अपभ्रंश वगेरेनां रूपो ' भाणु ' नां बहुवचनांत रूपो जेवा छे.
१०
बी० --
० छ० - तिन्ह, तिन्हं ।
शेष रूपो ते ते भाषा प्रमाणे 'इसि' नां बहुवचन रूपो जेवां छे.
'ति (त्रि ) त्रणे लिंगनां रूपो
१-२
३-५
४-६
} तिष्णि ।
अने नपुंसकलिंगमां जदी जदां थाय छे, जेमके
१ पालिमां तो 'ति ' ( त्रि) शब्दनां रूपो पुंलिंगमां, स्त्रीलिंगमां
ति (पुंलिंग )
तयो ।
तीहि
तीभि ।
तिण्णं
तिण्णन्नं
तीसु
ति (स्त्रीलिंग )
तिस्सो ।
नि (नपुंसकलिंग )
तीज
ती हि,
तीमि :
तिणं
तिष्णनं ।
तीसु ।
तीहि,
तीभि ।
( तिस्सं )
तिरसन्नं ।
तीसु ।
-जूओ पालिप्र० पृ० १५७
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________________
२३२ 'चउ (चतुर् ) त्रणे लिंगना रूपो तृतीया, पंचमी अने सप्तमीना प्रत्ययो पर रहेतां आ शब्दना अंत्य · उ' नो दीर्घ विकल्पे थाय छे.
१ चत्तारो, चउरो, चत्तारि ।
त०-- चऊहि, चहि, चऊहिं,
चउहि, चउहिं, चउहि । च० छ०-चउण्ह, चउण्हं.
शेष रूपो ते ते भाषा प्रमाणे : भाणु 'नां बहुवचनांत रूपो जेवा छे.
१ पालिमां ' चतु' (चतुर) शब्दनां पण त्रणे लिंगमा रूपो जुदां जुदां थाय छे, जेमके
तु (पुंलिंग) संत (स्त्रीलिंग) नत (नपुंसकलिंग ) १- २ वत्तारों,
तस्सो । नतारि। चतुरो। ३-५ चहि, चतूहि, चतूहि,
चभि । चतूभि । चतूभि । चतुन्नं ।
चतस्सन्नं । चतुन्न । चतूसु ।
चतूसु :
-~-जूओ पालिप्र० पृ. १५७-१५८
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________________
पंच ( पञ्च ) त्रणे लिंगनां रूपो
प०-
पंच।
त०- पंचेहि, पंचेहि, पंचेहि,
पंचहि, पंचहि, पंचेहि । च० छ०-पंचण्ह, पंचण्हं ।
शेष रूपो ते ते भाषा प्रमाणे · जिण 'नां बहुवचनांत रूपो जेवां छे.
ए रीते छ (षट्), सत्त (सप्तन् ), अट्ठ (अष्टन् ),नव (नवन् ), दह, दस (दशन् ), एआरह, एगारह, एआरस (एकादश), दुवालस, बारह, बारस (द्वादश), तेरह, तेरस (त्रयोदश), चोद्दह, चोइस, चउद्दह, चउद्दस (चतुर्दश), पण्णरह, पण्णरस (पञ्चदश).
१ पंच (त्रणे लिंगे सरखा) १-२ पंच । ३-५ पंचहि, पंचभि । ४-६ पंचन्न । ७ धंचमु ।
--जुओ पालिप० पृ. १५८ २ व्याकरणनो नियम जोता तो 'पंचेहि ' वगैरे 'ए' कार. वाला रूपो ल श शके छे, आर्षप्राकृतमा 'पंचहि ' र 'ए'आर. विनानां ग रूपो वपराएलां रे जेमके
[" चाहि कामगुणेहिं"
पंचहिं महव्यएहिं " " पंचाहिँ किरिआहि "
" पंचहिं समईहिं "---श्रमणसूत्र ] माटे अहीं ए बन्ने रूपो ताथे देखाडेला छे. प्रा० ३०
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________________
२३४ सोलस, सोलह (षोडशै ), सत्तरस, सत्तरह (सप्तदश) अने अट्ठारस, अट्ठारह (अष्टादश) ए बधां शब्दोनां रूपो 'पंच' नी पेठे समजवानां छे.
का (कति) (आ शब्दनां रूपो बहुवचनमांज थाय छे)
१०-
, कई
च० छ.--कइण्ह, कइण्हं
शेषरूपो, ते ते भाषा प्रमाणे ' इसि' ना बहुवचनांत रूपो जेवां छे.
नीचे जणावेला शब्दोमां ने शब्दो आकारांत छे तेनां रूपो 'माला' नी जेवां जाणवानां छे अने जे शब्दो इकारांत छे तेनां रूपो 'गइ' नी जेवां जाणवानां छे. एगूणवीसा ( एकोनविंशति) एगवीसा ) वीसा (विंशति)
इक्कवीसा (एकविंशति)
वाता एकवीसा)
१ 'कति' नां पालिरूपो (त्रणे लिंगे)
कति । मतीहि, कृतीभि । कतीनं, कति । कलीयु ।
--जूओ पालिप्र. पृ० . १५६. २ जुओं पालिप्र० पृ० १५९-१६५
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________________
बावीसा
तेवीसा
'उवीसा
चोवीसा
पणवीसा
छवीसा
सत्तावीसा
( द्वाविंशति )
( त्रयोविंशति)
} (चतुर्विंशति)
( पंचविंशति)
( षडविंशति )
( सप्तविंशति )
अट्ठावीसा
अट्टवीसा (अष्टाविंशति )
अडवीसा
एगुणतीसा
तीसा
एगतीसा
एकतीसा ( एकत्रिंशत् )
एकतीसा
बत्तीसा
•
( एकोनत्रिंशत्)
( त्रिंशत् )
२३५.
( द्वात्रिंशत् )
तेतीसा
तित्तीसा ),(लयस्त्रिंशत् )
चउतीसा चोचीसा (चतुस्त्रिंशत् )
।
पणतीसा
छत्तीसा
सत्ततीसा
अट्टतीसा
अडतीसा
} (अष्टत्रिंशत्)
एगुणचत्तालिसा (एकोनचत्वारिंशत्)
। चचालिसा
( चत्वारिंशत् )
एगचत्तालिसा
इकतालिसा एकचत्तालिमा
इगयाला
(पञ्चत्रिंशत् )
( षटत्रिंशत् )
( सप्तत्रिंशत् )
7
१ पालिभाषामा 4. चउवसा शब्दनुं प्रथमानुं एकवचन 'चडवी ' थाय छे (जुओ पालिप्र० पृ० १६० नि० १२७ ) अने ए रूप प्राकृतसाहित्यमां पण वपराएलुं छे. जेमके; "चडवी पिजिणवरा" ( चतुर्विंशतिस्तव )
(एकचत्वारिंशत्)
आचार्य हेमचंद्र ए 'चउवीसं' रूपने 'द्वितीया विभक्तिवाकुं समजे छे अने उपर्युक्त वाक्यमां 'द्वितीया' नो अर्थ घटतो नथी पण C प्रथमा ' नो अर्थ घटे छे तेथी "क्यांय 'प्रथमा ' ने बदले 'द्वितीया' पण वपराय छे " एम ए वाक्य आपीने ज जणावे छे.- ( जओ है - प्रा०व्या ८-३-१३७ १० १०८ )
"
Page #336
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________________
चोआला
पणयाला
(पञ्चचत्वारिंशत) अट्ठावन्ना )
छचत्तालिसा । (षटचत्वारिंशत्)
बेआलिसा)
| चोवण्णा । बेआला (द्विचत्वारिंशत् ) चउपण्णासा। (चतुष्पञ्चाशत्) दुचत्तालिसा)
। पणपण्णा ) तिचत्तालिसा)
पणपण्णासा (पञ्चपश्चाशत्) तेआलिसा (त्रिचत्वारिंशत्).
पंचावण्णा तेआला )
छप्पण्णा चउचत्तालिसा!
(षट्पञ्चाशत्)
লামা चोआलिसा चतुश्चत्वारिंशत)
सत्तावना चउआला
सत्तपण्णासा । (सप्तपञ्चाशत् ) पणचत्तालिसा
अडवन्ना (अष्टपञ्चाशत् )
अट्ठपण्णासा) छायाला (पट्चत्वारिंशत्)
एगृणसट्ठि ( एकोनषष्टि) सत्तचत्तालिसा ।।
(सप्तचत्वारिंशत) सहि (पष्टि) सगयाला ।
- एगसहि । अट्टचत्तालिसा
(एकषष्टि)
बासट्टि (द्विषष्टि) एगूणपण्णाम्सा (एकोनपञ्चाशत्)
(त्रिषष्टि) पण्णासा (पञ्चाशत्) एगपण्णासा । इक्कपण्णासा (एकपञ्चाशत्)
पणसद्धि ( पञ्चषष्टि) एक्कपण्णासा एगावण्णा
छासट्टि (षट्षष्टि) बावण्णा
सत्तसष्टि (सप्तपष्टि) अडसहि
(अष्टषष्टि) , अट्ठसहि । , एगुणसत्तरि (एकोनसप्तति)
अडयाला
(अष्टचत्वारिंशत् ) इगसट्टि
तेसहि चउसाह । चतुःषष्टि) चोसहि ।
दुप्पण्णासा । (द्विपञ्चाशत् )
तेवण्णा
त्रिपञ्चाशत)
तिपण्णासा) (त्रिए
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________________
इक्कसत्तरि । (एकसप्तति)
बावत्तरि
(द्विसप्तति)
एगणवइ. (एकनवति)
चउणवइ
रचतर्नवति)
૨૩૭ सत्तरि (सप्तति) सत्तासीद
(सप्ताशीति) एग सतरि
___अहासीइ (अष्टाशीति)
नवासीइ (नवाशीति) वा(बि)सत्तरि)
· एगणनवइ (एकोननवति) नवई
(नवति) तिसत्तरि (त्रिसप्तति) चोसतरि ।
इगणवइ चरसत्तरि । । (चतु:सप्तति)
(द्विनवति) पण्णसत्तरि (पञ्चसप्तति) । तेणवइ (त्रिनवति) छसत्तरि (षट्सप्तति)
चोणवइ सत्तसत्तरि (सप्तसप्तति)
पण्ण व अट्ठसत्तरि (अष्टसप्तति)
( पञ्चनवति) एगणासीइ (एकोनाऽशीति)। छण्णवइ (पण्णवति) असीइ ( अशीति) सत्त(त्ता)गवइ (सप्तनवति) एगासीइ ( एकाशीति) ! अट्ठ(ड)णवइ (अष्टनवति) बासीइ (द्वयशीति) ण(न)वणवइ (नवनवति) तेसीई (व्यशीति)
एगूणसय (एकोनशत) चउरासीइ ।
सय
(शत) (चतुरशीति)
दुमय . (द्विशत) पणसीइ (पञ्चाशीति)
(त्रिशत) छासीइ (षडशीति) । वे सयाई-बसें- (द्विशत)
पञ्चणवई
चोरासइि ।
१ 'सत्तरि' ने बदले 'इत्तरि' शब्द पण प्रयोगानुसारे । वपराय छे.
Page #338
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________________
२३८
तिणि सयाई - त्रणसें (त्रिशत ) | चचारि सयाई - चारसें (चतुश्शत )
इत्यादि.
सहस्स
दह ( स ) सहस्स
अयुअ (त)
( सहस्र )
( दशसहस्र )
( अयुत )
लक्ख
दस (ह) लक्ख
पयुअ (त)
कोडि
कोडकोडि
( लक्ष )
( दशलक्ष )
( प्रयुत)
( कोटि)
( कोटाकोटि )
Page #339
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________________
२३९
प्रकरण ११
कारक - विभक्त्यर्थ
जैम संस्कृतमा छ कारक छे तेम अहीं प्राकृतमां पण छे अने तेनी बधी व्यवस्था संस्कृतने अनुसारे समजी लेवानी छे. परंतु ने केटलाक खास विभक्त्यर्थो छे तेने अहीं जणावी दईए छीए:
→→→→
१. प्राकृतमां केटलेक ठेकाणे द्वितीया, तृतीया, पंचमी अने सप्तमीने स्थाने पण षष्ठी विभक्ति पराय छे:सीमाधरस्स वंदे [ सीमाधरं वन्दे ] aणस्स लद्धो [ धनेन लब्धः ] चोरस्स बीहs [ चौराट् बिभेति ]
अंतेउरस्स रमिउं आअओ [ अन्तःपुरे रन्तुमागतः ] २. कोई कोई ठेकाणे द्वितीया अने तृतीयाने बदले सप्तमी वपराय छे:
१ संस्कृतमां पण षष्ठी विभक्तिनो आवो ज उपयोग थएलो छे: मातरं स्मरति
ने बदले
अन्नं नो देहि
फलैस्तृप्त :
अर्दीव्यति
( हे० सं० २-२५८१ )
पृ० १६२ ।
J3
31
वृक्षात् पत
महत्सु विभावत
--जय पी शे" (पाणि ०
福
!.
"
27
"
२ जूबों पभाषाचन्द्रिका
(6
मातुः स्मरति ।
अन्नस्य नो देहि |
फलाना
}
वृसः अक्षाणां दीव्यति ।
वृक्षस्यपणे पतति ।
महतां विभाषते ।
२ - ३ - ५०) तथा " शेषे "
क्वचिदसादेः
ܕܪ
२-३-१८
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'नयरे न जामि [नगरं न यामि]
तेसु अलंकिआ पुह्वी [ तैरलंकृता पृथ्वी ] ३. क्यांय क्यांय पंचमीने बदले तृतीया अने सप्तमी वपराय छे:
'चोरण बीहइ [चौराद् विभेति ] अंतेउरे रमिडं आगओ राया [अन्तःपुराद रन्त्वा
आगतो राजा ४. कोई ठेकाणे तो सप्तमीने म्थाने द्वितीया पण वपराय छ:--
___ विज्जुजोयं भरइ रत्तिं [ विद्युदुद्द्योते स्मरति रात्रिम् ]
१ संस्कृतनी रीते पण आ वाक्यमां नगर ने 'कर्म' कही शकाय अने 'आधार'. पण कही शकाय एटले ' नगरे न यामि' अने ' नगरं न यामि' ए बन्ने वाक्यो शिष्टसंमत छे.
२ आ वाक्यमां जो 'तेषु सत्सु' ('तेओनी विद्यमानतामा ) एवो अर्थ विवक्षित होय तो संस्कृतमां पण 'तैः अलंकृता पृथ्वी ' आ वाक्यने बदले 'गु अलंकृता पृथ्वी' आयु सप्तमीवाळु वाक्य यह शके छे.
-४ अहा तो चोर ने भयना करण' तरीके अने ' अंत:पुर ने रमनारना अपार' तरीके कहेवानो आशय होय तो संस्कृतमा रण - डोग विभनि ' असे 'अन्तःपरे रन्त्वा' वगरे वाक्य थइ सके थे. __५ आर्यप्रातमः उकठेकजे आ 'तणं कालेणं तणं समएणं' प्रयोग वपराएलो छ, एनो अर्थ 'ते काले अने ते समये' थाय छे, तेथी आ अने आवा बीजा प्रयोगोमा 'सप्तमी' विभक्तिने बदले 'तृतीया' विभक्ति यपराएली हे एम आचार्य हेमचंद्र जणावे छे. -(जूओं हे० प्रा० व्या ८-३-१३७ पृ. १०८) त्यारे आ प्रयोगर्नु
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विवरण करतां नवांगी टीकाकार आचार्य अभयदेव ए प्रयोगमा आवेला 'णं' ने वाक्यालंकाररूपे माना ए प्रयोगने ' सप्तमी ' विभक्तिवाळो पण जणावे छे. आचार्य अभयदेवनी दृष्टिए ए पदोनो पदच्छेद आ प्रमाणे छः ' ते णं काले णं, ते णं समए थे''ते' इति प्राकृतशैलीवशात् ' तस्मिर' x x x ‘णं' कारोऽन्यत्रापि वाक्यालंकारार्थः, * * काले अवसर्पिणीचतुर्थविभागलक्षणे, x x x समये कालस्यैव विशिष्टे भागे "-जूओ भगवती सूत्र रा० पृ० १८ टीका, शाता० सूत्र टीका पृ० १ समिति, उपासकदशासूत्र टीका पृ० १ समिति.
ए प्रयोगर्नु विवरण करतां आचार्य मलयगिरि पण आचार्य अमरदेवनी पेठे पूर्व प्रमाणे जणावे छः-जूओ सूर्यप्रतिनी टीका पृ०: १ समिति.
आचार्य अभयदेव ए पदोन संस्कृत - लेन कालेन तेन समयेन' पण करे छे अने आ पक्षमां तेओं आ बाक्यमां तृतीयानो अर्थ घटावे छे पण 'तृतीया' ने स्थान ‘सप्तमी' होवाना सूचना करता नी -- " अथवा तृतीयैवेयम्, ततः 'तेन कालेन हेतुभूतेन, तेन समयेन हेतुभूतेनैव”-जूओ भगवतीसूत्र रा० पृ०.१८ टीका.'
मा० ३१
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२४२
प्रकरण १२
आख्यात संस्कृतभाषामा धातुओना अनेक प्रकार छे, जेमके, पेला गणना, बीजा गणना, चोथा गणना, छट्ठा गणना वगेरे. तेमां पण प्रत्येक गणमां धातुओना त्रण पेटा प्रकार छः परस्मैपदी, आत्मनेपदी अने उभयपदी. आम होवाथी संस्कृतमां धातुनां रूपाख्यानो अनेक प्रकारनां थाय छे. कारण के, तेमां प्रत्येक गणनी निशानीओ ( विकरण प्रत्ययो) जुदी जुदी छे, प्रक्रियाओ जुदी जुदी छे, आत्मनेपद तथा परस्मैपदना प्रत्ययो पण जुदा जुदा छे.
पालिमा केटलुक संस्कृतनी जे छ पण तेमां वैदिक संस्कृतनी पेठे आत्मनेपद अने परस्मैपदनो नियम अचोक्कस छे, प्राकृतमा तो आत्मनेपद अने परस्मैपदनो कोई नियम ज नथी. जो के प्राकृतमा वर्तमानकाळना केटलाक प्रत्ययों संस्कृतना आत्मनेपदी प्रत्ययो साथे पळता आवे छे पण ए प्रत्ययो दरेक धातुने लगाडी शकाय छे.
पालिव्याकरणमां' आपेला नियमो उपरथी समजी शकाय छे के, संस्कृतनी पेठे गणभेदने लोधे पालिमां ते ते धातुनां रूपो जुदा जुदां बने छे पण प्राकृत व्याकरणना नियमोमां तेम नथी. प्राकृतव्याकरणमां तो पेला गणना के चोथा गणना धातुनी एक सरखी प्रक्रिया छे, पण एटलं खरं के, ते ले धातुनां रूपो उपरथी सरस्खामणीने लीधे आपणे संस्कृतमां वपरातो ए वातुनो गण जरुर कळी शकी.'
१ अभी का-यायन पालिव्याकरण-आख्यातकल्प. २ दिव्यद (दीव्यति) चिणइ (चिनोति) जाणइ ( जानाति )
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२४३
एकंदर रीते संस्कृत करतां पालिनी आख्यातप्रक्रिया सरळ के अने प्राकृतमां तो ए सविशेष सरळ के.
विभक्तिओं
वर्तमाना, सप्तमी, पंचमी, ह्यस्तनी, अद्यतनी, परोक्षा, आशी: ( आशिरर्थ ), श्वस्तनी, भविष्यन्ती अने क्रियातिपत्ति एम 'दस विभक्तिओ संस्कृतमां छे, पालिमा आशिरर्थं अने श्वस्तनीनो प्रयोग नथी अने प्राकृतमां पंचमी अने सप्तमी एक सरखी है, ह्यस्तनी, अद्यतनी अने परोक्षा एक सरखी छे, अस्तनी अने भविष्यन्ती एक सरखी छे एटले वर्तमाना, आज्ञार्थ - विन्यर्थ, भूतकाळ, भविष्यत्काळ अने क्रियातिपत्ति ए पांच ज विभक्तिओ क्रियापदने लगती छे. आख्यातने लगतो विभक्तिप्रयोग संस्कृतमां जे झणिक्थी करवामां आवे छे तेवी झीणवट पालि के प्राकृतमां नथी, पालिमा ए दरेक विभक्तिना प्रत्ययो जुदा जुढ़ा छे पण प्राकृतमां तो आगळ जणाच्या प्रमाणे ए पांच विभक्तिओमां ज संस्कृतनी बधी विभक्तिओ समाएली छे.
आ चालु प्रकरणमां आख्यात विषे अने केलांक कृदंत विषे समजाववानुं छे पण धातुओथी बनतां हरेक नामो विषे कांई कहेवानं नथी माटे ज धातुना उपयोगनो विभाग करतां अहीं जणाववामां आवे छे के साहित्यमां धातुओनो उपयोग खास करीने बे प्रकारे थलो छे: क्रियापदरूपे अने कुतरूपे,
१ पाणिनिना संकेत प्रमाणे ए दस विभक्तिओनां नाम आ प्रमाणे छेः लट्, विधिलिङ्, लोट, लद्द, लिट्, आशीलिंड्, लुटू लट्, लड्·, अने लुड्..
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क्रियापदरूपे वपराता धातुना रूपाख्यानन नाम 'आख्यात' छे अने कृदंतरूपे वपराता धातुना रूपाख्यानने 'नाम' कहेवामां आवे छे.
आख्यातरूपे वपराता धातुना रूपाख्याननी विविधता आ प्रमाणे :
कर्तरिरूप, कर्मणिरूप, भावेरूप ( महाभेद ), प्रेरककर्तरिरूप, प्रेरककर्मणिरूप, प्रेरकभावेरूप (प्रेरक सह्यभेद ) इत्यादि । . . __कृदंतरूपे वपराता धातुना रूपाख्यानना अनेक प्रकार आ रीते छः
वर्तमानकृदंत, प्रेरकवर्तमानकृदंत, कर्तृसूचकरूप, कतार । भविष्यत्कृदंत, प्रेरकभविष्यत्कृदंत ।
वर्तमानकृदंत, भविष्यत्कृदंत, प्रेरकवर्तमानकृदंत, भावे-सह्य भेद ।
प्रेरकभविष्यत्कृदंत, भूतकृदंत, विध्यर्थकृदंत, प्रेरक
") भूतकृदंत, प्रेरकविध्यर्थकृदंत । भावेरूप हेत्वर्थकृदंत अने संबंधकभूतकृदंत । ___ आ प्रकरणमा अही जणावेला क्रम प्रमाणे रूपाख्यानोनी समजूती आपवानी छे.
कर्तरिरूप प्राकृतमां धातुओनी वे जात छः व्यंजनांत धातु अने स्वरांत धातु १ व्यंजनांत धातुना छेक्टना व्यंजनमा 'अ'कार उमेराया पछी न
तेनां रूपाख्यानो थाय छे अने ए उमेरातो 'अ'कार विकरणरूप लेखाय हे
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२४५
भग् + अ-भण-भणइ (भणति ) कह + अ-कह-कहइ (कथयति ) सम् + अ-समइ (शाम्यति) हस + अ-हस-हसइ ( हसति ) आव + अ-आव-आवइ ( आप्नोति ) सिंच् + अ--सिंच-सिंचइ (सिञ्चति ) रूध् + अरुन्ध-रुन्धइ ( रुणद्धि) मुस +अ-मुस-मुसइ (मुष्णाति)
नण + अ-तण-तणइ (तनोति) अकारांत सिवाय बाकीना स्वरांत धातुओने पण विकरण 'अ' विकल्पे लागे छः
पा+ अ-पाअ--पाअइ, पाइ (पाति) जा + अ-जाअ-जाअइ, जाइ (याति) धा + अ-धाअ-धाअइ, धाइ (धयति, धावति, दधाति) झा + अ-झाअ-झाअइ, झाइ (ध्यायति) जम्मा + अ-जम्भाअ-जम्भाइ (जम्भते ) वाअ + अ-वाअ-वाअइ, वाइ (वाति) ... " मिला + अ-मिलाअ-मिलाअइ, मिलाइ-(म्लायति ) विक्की+विक्के + विक्केअ--विक्केअइ, विक्केइ (विक्रीणाति) हो + अ-होअ-होअइ, होइ (भवति) :.
हो + अ-होअ-होइऊण, होऊण ( भूत्वा.) : ३ उवांत धातुना अंत्य उवर्णनो · अव् ' थाय छेः ....
ण्हु-हत्+अण्हव-हवइ ( नुते ) निण्हवइ (निहनुते)
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ક્
छुहब्- हव-हवइ ( जुहोति ) निहवइ ( निजुहोति )
चु- चव्-चव - चवइ ( च्यवते ) रु-रव-रव-रवइ ( रौति )
कु - कव् - कव - कवइ ( कौति ) सू - सव् सव - सवई ( सुते ) पवई (प्रसूते )
• ऋत धातुना अंत्य ऋवर्णनो 'अर्' थाय छे:
कु - कर्-कर - करइ (करोति ) धृ-धर्-घर-घर (वरति ) मृ-मर्मर-मर ( म्रियते ) ब्रु-वर्-वर-वरइ (वृणोति, वृणुते ) - सर सर सर (सरत )
ह - हर्-हर-हरइ ( हरति ) तृ-वर्-तर-तरइ ( तरति ) नृ - जर्जर - जरइ ( जीर्यति )
५ उपांत्यमां ऋवर्णवाळा धातुना ऋवर्णनो ' अरि ' धाय छे:
कृष-करिस्— करिस - करिसइ ( कर्षति ) मृष्- मरिस्-मरिसइ (मृष्यते ) तृष्-वरिस्-वरिसइ ( वर्षति ) हृष्- हरिस्- हरिसइ ( हृप्यति )
६ धातुना 'इवर्ण' अने 'उवर्ण' नो अनुक्रमे 'ए' अने 'ओ' थाय छेः
नी - नेइ ( नयति ) नेंति ( नयन्ति )
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२४७
उड्डी-उडेइ (उड्डयते) उठेति ( उड्डयन्ते) जि-जेऊण (जित्वा)
नी-नेऊण (नीत्वा) केटलाक धातुना उपांत्य स्वरनो दीर्घ थाय छेः
रुष्-रूस्-रूस-रूसइ ( रुप्यति ) तुष्--तूस-तूस-तूसइ (तुष्यति) शुष्-सूस्-सूस-सूसइ (शुष्यति ) दुष्-दूस्-दूस-दूसइ (दुप्यति ) पुष्-पूस्-पृस-पूसइ (पुष्यति )
सीसइ (शिष्यते) इत्यादि । ८ धातुना नियत स्वरने स्थाने प्रयोगानुसारे बीजो स्वर पण
थाय छः वि०-हवइ-हिवइ ( भवति)
चिणइ-चुणइ (चिनोति) सहहणं-सदहाणं (श्रद्धानम् ) धावइ-धुवइ (धावति)
रुवइ-रोवइ (रोदीति) इत्यादि । निक-दा-दे-देई (ददाति, दाति, धति)
ला-ले-लेइ. ( लाति) विहा-विहे--विहेइ (विदधाति, विभाति.)
बृ-वे-वेमि (ब्रवीमि ) इत्यादि । ९ केटलाक धातुओनो अंत्य व्यंजन प्रयोगानुसारे बेवडो थाय छ। वि०-फुडइ, फुटइ ( स्फुटति)
चलइ, बल्लइ (चलति)
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२४८ पमीलइ पमिल्लइ (प्रमीलति) निमीलइ, निमिल्लइ (निमीलति) संमीलइ, संमिल्लइ, (समीलति)
उम्मीलइ, उम्मिल्लइ (उन्मीलति) इत्यादि। नि०-जिम्मइ (जमति) परिअट्टइ (पर्यटति)
सकइ ( शक्नोति) पलोट्टा (प्रलोटति) लग्गइ (लगति) तुइ (त्रुटति) मग्गइ ( मृगयते )। नट्टइ ( नटति ) नस्सइ (नश्यति) सिव्वइ (सीव्यति ) कुष्पइ (कुष्यति)
इत्यादि । १० केटलाक धातुओना (प्रायः संस्कृतनों विकरण उमेराया पछी : ' छेडावाळा धातुओना ) अंत्य व्यंजननो प्रयोगानुसारे
ज' थाय छः संपजइ ('संपद्यते) सिजइ (स्विद्यति) खिज्जइ (खिद्यते) सिज्जिरी ( स्वेत्त्री, स्वेदायित्री )
. . इत्यादि । ११ उपरना नियमोथी तैयार थएला धातुना अंगने वर्तमानकाळम
जीचे जणावेला कर्तृवोधक प्रत्ययो लांगे छे:-. ...
१ जूओ पृ० ३३-द्य, श्य, -ज (नि० २७) २ पालिमा 'वर्तमाना' ना प्रत्ययो आप्रमाणे छः परस्मैपद ..
.. आत्मनेपद एकव. बहुव०
एकम० . बढुव०
अंति जो पालि
, ते अंते (हे पृ०.१७१ नि ११.
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२
३
२४९
एकव ०
'मि.
सि, से,
इ, ए
सर्वपुरुष - सर्ववचन-ज्ज, जा.
१
घुरुष
२ पुरुष
३ पुरुष
१
' मि' प्रत्यय पर रहेतां धातुना अकारांत अंगना अत्य ' अ ' नो विकल्पे ' आ ' थाय छे.
बहुव०
मो, मु, म. इत्था, ह.
न्ति, न्ते, इरे*.
'मो', ' मु' अने 'म' प्रत्यय पर रहेतां धातुना अकारांत अंगना अंत्य ' अ ' नो विकल्पे 'आ' अने 'इ' थाय छे. उपर जणावेला बधा प्रत्ययो पर रहेतां धातुना अकारांत अंगना अंत्य ' अ ' नो विकल्पे 'ए' थाय छे.
[नामनां रूपोमा पालिमां अने प्राकृतमां मविशेष समानता छे तेथी नामना प्रकरणमा स्थळे स्थळे समानता बताववा पालिना रूपी सविस्तर मूकेला छे पण धातुनां रूपोमा तेस नथी, तेथी आ प्रकरणम ज्यां ज्यां जेटली समानता हे तेटलो उल्लेख करवामां आवशे पण धातुनां पालिरूपोनी बीगतथी नोंध नहि करवामां आवे 1
१. क्रेटलेक ठेकाणे 'मि' प्रत्ययने बदले 'मू' प्रत्यय पण वपरालो छे:-मरं, मरामि ( म्रिये ) । सकं, तक्कामि ( शक्नोमि ) ।
२ ' से ' अने 'ए' तथा शौरसेनीनो 'दे' अने पैशाचीनो ' ते ' प्रत्यय, धातुना अकारांत अंगनेज लगाडवाना छे अर्थात् अकारांत सिवायना धातुना अगने ए बन्ने प्रत्ययों लागता नथीः
पा + सि-बसि ! पा + इ-पाइ ( मासे, अने पाए, रूप थाय नहि ). ३ कोई ठेकाणे आ ' इत्था ' प्रत्यय त्रीजा पुरुषना एकधचनमां पण वपराएलो छे:-रोहत्था रोय, रोयए - ( रोचते ).
"
४. आ. 'इरे' प्रत्यय क्वचित् क्वचित् त्रीजा पुरुषना एकवच नमां पण पराएलो छे. जेमके-सूसह, सूसइरे - (शुष्यति ).
aro ३२
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२५०
४ 'ज' अने 'जा' प्रत्यय पर रहेतां तो धातुना अकारांत अंगना __ अंत्य 'अ'नो 'ए' थाय छे.
शौरसेनी, मागधी, पैशाची अने अपभ्रंशमाषामा वर्तमानकाळने लगती विशेषतावाळी प्रक्रिया आ प्रमाणे छे:
शौरसेनी-मागधी
मो, मु, म ।
इत्था, ध, ह। ३. पु० दि, दे
न्ति, न्ते, इरे।
पैशाची १...पु.०... शौरसेनी प्रमाणे
३ पु० ति, ते शौरसेनी प्रमाणे
...... . अपभ्रंश १ पु० उं, मि हुं, मो, मु, म । २ पु० हि, सि, से हु, ह, ध, इत्था । ६ पु० दि, दे, इ, ए. हिं, न्ति, न्ले, इरे।
प्राकृतमा वर्तमानकाळना प्रत्यया लागता वातुना अंगमा जे जे केरफार थवानु जणाब्यु छे ते बधुं शौरसेनी, मागधी, पैशाची अने अपभ्रंशना वर्तमानकाळना प्रत्ययो लागतां पण समजी लेवानुं छे.
यातुने लागता कोई पण प्रत्ययो लगाया यहेला पण प्राकतमा धातुने लगती जे में प्रक्रिया ( विकास बोरेनी प्रक्रिया )
१ जूओ पृ. २७ स-श. २ नूओ पृ० २४९, २ टिप्पण.
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हसेज,
२५१ जणावी छे ते बधी शौरसेनी, पैशाची, मागधी अने. अपभ्रंशमां समजी लेवानी छे. व्यंजनांत धातुना रूपाच्यानो
हस् एकवचन प्राकृतरू०- शौरसेनीरू. ० - पेशा बीरू. ० - अपभ्रंशरू०
'मागधीरू१ पुरुष-हसमि, प्राकृत प्रमाणे प्राकृत प्रमाणे हसलं,
हसामि, हसेमि,
हसमि, हसेज,
हसामि, हसेज्जा ।
हसेमि, इसेज,
हमेज्जा। २ पुरुष-हससि, प्राकृत प्राकृत हसहि,
हसेसि. प्रमाणे प्रमाणे हसेहि, हससे,
हससि, हसेसे, हसेज,
हससे, हसेज्जा ।
हसेसे, हसेज,
हसेज्जा । ३ पुरुष-हसइ, हसदि,
हसदि, हसेइ, हसेदि, हसेति, हसेदि, . १ जुओ स-दा पृ० २७ नि० (१)-हशमि वगेरे,
हसेमि,
हसति,
.
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हसदे,
हसेइ,
२५२ हसए, हसदे, हसते, हसेए, हसेदे, हसेते, हसेज, हसेज, हसेज, हसइ, हसेज्जा। हसेजा। हमेजा ।
हसए, हमेए, हमेज,
हसेज्जा। वहुवचन प्राकृतरू०- शौरसेनीरू - पैशाचीरू०- अपभ्रंशरू०
मागधीरू०१ पुरुष-हसमो, प्राकृत प्राकृत हसहं, हसामो, रूपो
हसेहं; हसिमो, प्रमाणे
हसमो, हसेमोः
हसामो, हसमु,
हसिमो,
हमेमो; हसिमु,
हसामु, हसम: हसाम, हसिम, हसेम;
हसाम,
प्रमाणे
हसामु,
हसमु,
हसेमु,
हसेमुः
हसमा
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________________
२५३
हसेज,
हसिम, हसेम;
हसेज्जा ।
हसेज, हसेज्जा ।
शौरसेनी
प्रमाणे
हसइत्था, हसिस्था, हसेत्था, हसध,
२ पुरुष-हसइत्या, हसइत्था,
हसित्था, हसिस्था, हसेइत्था, हसेत्था, हसह, हसध, हसेह, हसेध, हसेज, हसह, हसेजा। हसेह,
हसेज्ज, हसेज्जा।
हसेध,
हसह,
हसेह, हसहु, हसेह, हसेज,
शौरसेनी
३ पुरुष-हसन्ति,
हसेंति, 'हसिंति, हसते,
प्राकृत रूपो प्रमाणे
रूपो
हसेज्जा। हसहि, हसेहिं, हसंति, हसेति,
प्रमाणे
१ जूओ पृ० ९६ स्वरलोप नि० ६-हस + इत्था=इसित्था ।
२ प्राकृतना हसति, हसते वगेरे रूपो उपरथी शौरसेनीमां हसंदि, वगेरे रूपो पण प्रायः यथासंभव थइ शके छे-जूओ पृ० ३५ नि० (१) न्त-न्द ।
३ जूओ पृ० ४ नि० १-हसेंति + हसिति ।
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होते,
हसिंते, हसरे,
हसइरे.
हसेज, हसेज्जा ।
हमिति, हसते,
होते. हसिरे,
हसिंते, हसेइरे
हसिरे, हसेइरे, हसेज,
हसेना । आ रीते आगळ जणावेल बधां व्यंजनांत (धातुनां ) अंगोनां वर्तमानकाळनां रूपो समजवानां छे.
स्वरांत धातुना रूपाख्यानो
हो (भू) स्वरांत धातुओनी प्रक्रिया व्यंजनांत धातुनी ( 'हस्' नी ) सरखी छे. मात्र फेर आ छेः
स्वरांत धातु अने पुरुषबोधक प्रत्यय--ए बेनी-बच्चे पण 'ज' 'जा' विकल्पे उमेराय छे.
एकवचन प्राकृतरू.- शौरसैनीरू०- पैशाचीरू०- अपभ्रंशरू.--
मागधीरू.१ पुरुष-'होअमि, प्राकृत प्राकृत होअउं
होआमि, रूपो रूपो होएउं होएमि, प्रमाणे प्रमाणे होअमि
....--
१ पेलेयी नव रूपो विकरणवाळां छे अने बाकी वां विकरण विनानां छे. विकरण माटे जूओ पृ. २४५ नि० २
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(ज) होए ज्जमि,
होएज्जामि,
होएज्जेमि, होएज्ज,
(जा) होएज्जामि,
होएज्जा,
होमि,
(ज) होज्जमि, (हुज्जमि )
होज्जामि,
होज्जे,
होज्ज ( हुज्ज ) ( ज्जा) होज्जामि
होज्जा (हुज्जा )
एकवचन
प्राकृतरू० - शौरसेनीरू० मागधी रू०
२ पुरुष होअसि
→
होएसि
होअसे
होएसे
होएज्जसि होएज्जेसि
२५५
प्राकृत
रूपो
बीजे
होएज्जउं, होएब्जमि
होएज्जामि
होएज्जेउं होएज्जेमि
होएज्ज
होआमि
होम
होज्जाउं होज्जामि
होएज्ना
होउं
होमि
होज्जयं होज्जमि होज्जामि
होज्जेउं, होज्जेमि
होज्ज
हो जाउं होज्जामि होज्जा |
पैशाचीरू०
पैशाची अपभ्रंशरू० --
प्राकृत.
रूपो
रांजे
-
होअहि.
होएहि,
होअसि
होसि
होअसे
होए
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________________
होसि
होहि,
होएज्जसे
होएज्जहि होएज्जेसे
होएज्जेहि होएज्जासि
होएजसि
होएजसि होज्नसि
होएज्जसे होज्जसि
होएज्जेसे होज्नसे
होएज्जाहि होज्नेसे
होएज्जासि होज्जासि होज्ज होज्जा
होज्जहि, होज्जास होजेहि, होज्जमि
होजसे
होज्जेसे होनाहि, होज्जासि
होज्न
होज्जा। ३ पुरुष-होअइ होअदि होअति होअइ, होअदि
होए होएदि होएति होएइ, होएदि होअए होअदे होते " होअए, होअदे होएए होएदे होएते . होएए, होएदे होएज्जइ होएज्जदि होएज्जति होएज्नइ, होएजदि होएज्जेइ होएज्जेदि होएग्जेति होएज्जेइ, होएजेदि होएज्जए होएज्जदे होएज्जते होएज्जए, होएज्जदे होएज्जेइ होएज्जेदे होएज्जेते होएज्जेए, होएज्जेदे
TELELIII 11111111
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होएज्जाइ होएज्जादि होएज्जाति होएज्जाइ, होएज्जादि
होइ,
होदि
होइ होदि होति होज्जइ होज्जदि होज्जति होज्जइ, होज्जदि
होज्जेइ होज्जेदि होज्जेति
होज्जेइ, होज्जेदि
होज्जए, होज्जदे
होज्जए होज्जदे होज्जते होज्जेए होज्जेदे होज्जेते होज्जाइ होज्जादि होज्जाति होज्ज होज्ज होउज होज्जा होज्जा
होज्जेए, होज्जेदे होज्जाइ, होज्जादि
होमा
१ पुरुष - होअमु
होभामु
होमु, होमु
होअमो
बहुवचन
प्राकृतरू० - शौरसेनीरू० पैशाचीरू० अपभ्रंशरू०
मागधीरू०
होआमो
होइमो, होमो
होम
होआम
होइम, होएम
होएज्जमु
होएज्जामु
होएज्जमु
प्रा० ३३
२५७
प्राकृत
रूपो
प्रमाणे
होज्ज
होज्जा
प्राकृत
रूपो
प्रमाणे
होअहुँ
होहुं
हो मु
होआमु
होइमु
होएम
होअमो
होआमो
होमो
होमो
होम
होआम
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________________
हाइम
होएम
होएज्जेमु होएज्जमो होएज्जामो होएज्जिमो होएज्जेमो होएज्जम होएज्जाम होएज्जिम होएजेम
होएज्जडें होएज्जेहुँ होएज्जा होएज्जामु होएज्जिमु होएज्जेमु होएजमो होएजामो होएजिमो होएजेमो होएजम होएज्जाम होएज्जिम होएज्जेम
होमो
होम होज्जमु होज्जामु होज्जिमु
होई
होज्जेमु होज्नमो होज्जामो होज्जिमो होज्जेमो होज्जम होज्जाम
होमु . होमो होम होज्जहुं
होज्नेहुं
होजिम
होज्जेम
होज्जमु होज्जामु होमिमु
होज्न
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________________
२५९
होज्जा
होज्जा
होज्नेम होज्जमो होज्जामो होजिमो होज्जेमो होज्जम होज्जाम होज्जिम होज्जेम होज्जाहुं
होज्ज
होज्जा।
बहुवचन प्राकृतरू०- शौरसेनीरू०- पैशाचीरू०- अपभ्रंशरू०
मागधीरू०२ पुरुष-होअह होअह, होअध शौरसेनी होअहु
होएह होएह, होएध प्रमाणे होहु होएजह होएज्नह, होएज्जध होएज्जहु, होएज्जेहु होएज्जेह होएज्जेह, होएजेध होएज्जाहु होएज्जाह होएज्जाह, होएज्जाध होज्जहु, होज्जेहु होज्जह होज्जह, होज्जध
होज्जाहु होज्नेह होज्नेह, होज्जेध होज्जाह होज्जाह, होजाध होअह, होअध होह होह, होध
होएह, होएध होअहस्था होअइत्था
होएजह, होएजध
होहु
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________________
होएत्या होएइत्था
होएज्जइत्था होएज्जइत्था
होएज्जेइत्था होएज्जेइस्था
होएज्जाइत्था होएज्जाइत्था
होज्जइत्था
होज्नेइत्था
होज्जेइत्था होज्जइत्था
होज्जाइत्था होज्जाइत्था
होइत्था (होत्था' ) होइत्था
होज्ज होज्जा
३ पुरुष - होअंति
होएंति
होते
२६०
होते
होअरे
होरे
होएज्जति
होज्ज, होज्जा
प्राकृत शौरसेनी
रूपो
प्रमाणे
प्रमाणे
ओ भूतकाळनं प्रकरण पृ० २६४.
हो, होएजे होएजाह, होएजाध
होज्जह, होज्जध
"
होज्जेह, होज्जेध
state, stotra
होह, होध
२ जूओ पृ० २५३, २ टिप्पण.
हो इत्था
होएत्था
होएज्जइत्था
होएज्जेइत्था
होएज्जइत्था
होज्जेइत्था
होज्जइत्था
होज्जाइस्था
१ आ प्रयोग आग्रंथोमां ' अभूत् ' अर्थमां वपराएलो छे
था
हो अहिं
होए हिं
होज्जहिं
होएज्जेहिं
होएज्जाहिं
होज्जहिं
होज्जेहिं
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________________
२६१
होएजेंति होएज्जते होएजेते होएज्जइरे होएज्जेइरे होएज्जांति होएज्जाते होएज्जाइरे होति (हुंति) होते (हुंते) होइरे होज्नति, होजेति होजते, होज्जेते होज्नहरे, होज्नेहरे होज्जांति होज्जांते होज्जाइरे होज्ज होज्जा।
होज्जाहिं
होहिं होअंति, होएंति होते, होएते होअइरे, होएड्रे होएज्जंति, होएजति होएज्जते, होएज्जेते होएज्जइरे, होएज्जेइरे
होएज्जांति होएज्जाते
होएज्जाइरे होति (हुति) होते (हुते)
होइरे होज्जति, होज्जेति होज्जते, होज्जेते होज्जइरे, होज्जेहरे
होज्जांति होज्जाते होज्जाइरे
होज्जा
एं रीते दरेक स्वरांत धातुनी (दा, पा, नी, जा, वू वगेरेनी) वर्तमानकाळनी बधी प्रक्रिया हो 'नी पेठे समजवानी छे.
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२६२
भूतकाळ (स्वरांत अने व्यंजनांत धातुने लागता प्रत्ययो)
१ संस्कृतमां भूतकाळना त्रण प्रकार छे, जेमके-यस्तनभूत, अद्यतनभूत अने परोक्षभूत. ए त्रणे काळना प्रत्ययो अने प्रक्रिया पण संस्कृतमा तद्दन जूदां जूदां छे. परंतु प्राकृत, शौरसेनी, मागधी, पैशाची के अपभ्रंश भाषामां तेम नथी. तेमां तो ते त्रणे काळ माटे एक सरखा ज प्रत्ययो छे, एटलुंज नहि पण ते त्रणे काळना, त्रणे पुरुषोना अने त्रणे वचनोना पण एक सरखा ज प्रत्ययो छे अर्थात् भूतकाळनी प्रक्रिया के रूपमा प्राकृत, शौरसेनी वगेरे भाषामां क्यांय कशो भेद जणातो नथी.
प्राकृत, शौरसेनी, मागधी, पैशाची अने अपभ्रंशमां भूतकाळना ए प्रत्ययो आ प्रमाणे छे:
..................
२ पु० ई (व्यंजनांत धातुने लागतो प्रत्यय) ३ पु०) __, सी, ही, हीअ (स्वरांत धातुने लागता प्रत्ययो)
१ कोईनो मत एवो छ के, वर्तमानकाळनी पेठे भूतकाळमां पण 'ज' अने 'जा' प्रत्यय वपराय छेः-होज, होजा-(अभूत्)
२ पालिमां त्रीजा पुरुषना एकवचनमा 'ई' अने 'इ' एम वे परस्मैपदी प्रत्ययो छे अने ए, प्राकृतना — ईअ ' प्रत्यय साथे मळता आवे छेः पालिप्र० पृ. २१७ नि० १७६
३ पालिमा श्रीजा पुरुषना अने बीजा पुरुषना एकवचनमां परस्मैपदी 'सि' प्रत्यय वपराएलो छे अने ए, प्राकृतना 'सी' प्रत्यय साथे मळतो आवे छे. जेम प्राकृतमां त्रणे पुरुषमा एक सरखो 'सी' । प्रत्यय स्वरांत धातुने लगाडवामां आवे छे तेम पालिमां त्रणे पुरुषमा एक सरखो 'सि' प्रत्यय स्वरांत धातुने लगाडवामां आवे छे. मात्र पालिनो ए 'सि' प्रत्यय प्रथम पुरुपना एकवचनमां अनुस्वारवाळो (सिं) वपराय छे एटलो ज भेद छः पालिप्र० २१८ नि० १७९
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२६३ व्यंजनांत धातु-हस् + ईअ-हसीअ ।
कर + ईअ-करीअ।
भण् + ईअ-भणीअ । ए रीते व्यंजनांत धातुनां भूतकाळनां रूपो साधवानां छे. स्वरांत धातु-हो + सी-होसी हो+ही-होही हो-हीअ-होहीअ]
होअमी होअही होअही पा+ सी-पासी) पा + ही–पाही ] पा + हीअ-पाही) ___पासी पाही पाअही ठा + सी-ठासी ठा+ही--ठाही । ठा + हीअ-ठाही!
ठाअसी । ठाअही ठाअही ने + सी-नेसी | ने + ही-नेही ) ने + हीअ-नेही
नेअसी नेअही | नेअही लासी, लाही, लाहीअ, लाअसी, लाअही, लाअही। उड्डे + सी-उड्डेसी, उड्डेअसी, उड्डेही, उड्डेअही, उड्डेहीअ, उड्डेअहीअ। ए रीते स्वरांत धातुनां भूतकाळनां रूपो साधवानां छे.
उपर जणावेला भूतकाळना प्रत्ययो करतां केटलाक जूदा प्रत्ययो पण आर्षग्रंथोमां वपराएला छे, आर्षरूपोमां विशेषे करीने
पालिरूपो
एकव० १ अहोसि २ अहोसि
३ अहोसिं --जूओ पालिप्र० पृ० २१८ नि० १८०-पृ० २१९ नि० १८१
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२६४ त्या, इत्थ, इत्था, इंसु अने अंसु; ए चार प्रत्ययो वपराएला छे. तेमां ' त्था ' अने । इत्था, ' घणे ठेकाणे एकवचनमां वपराया छे अने इंसु ' तथा ' अंसु' घणे ठेकाणे बहुवचनमां वपराया छे. ए जातना केटलाएक आर्षरूपो जोवाथी एवं अनुमान बांधी शकाय छे के, त्रीजा पुरुषना एकवचनमा 'त्या' अने : इत्था' वपराया छे अने बहुवचनमां इंसु' अने · अंसु' वपराया छे. जेमके:
हो + स्था-होत्था ( अभवत् , अभूत् , बभूव)
भुञ्ज + इत्था-भुल्लित्था (भुक्तवान् )
१ आ ' होत्था ' ' पहारित्य' 'विहरित्या' वगेरे एकवचनी रूपोनी अने 'करिंसु ' ' पुच्छिसु ' 'आहंसु' वगेरे बहुवचनी रूपोनी साधना पालिव्याकरण द्वारा शोधी शकाय छे. पालिभाषामां त्रीजा पुरुषना एकवचनमां आत्मनेपदी 'इत्थ' अने बहुवचनमा परस्मैपदी ' इंसु,'' इसुं,' अने 'अंसुः' प्रत्ययो वपराएलाछे. उपर्युक्त आर्षरूपोमां वपराएलो ' इत्था' पालिना ए ' इत्थ 'नुं रूपांतर जणाय छे, 'पहा. रित्य' रूपमां तो पालिनो जेवोने तेवो ' इत्य' प्रत्यय ज वपराएलो छे अने पालिना 'इंसु' अने 'असु' ए बे प्रत्ययो एमने एम ए आर्षरूपोमा वपराया छे. जेम संस्कृतमा यस्तनी, अद्यतनी अने क्रियातिपत्तिनां रूपाख्यानोमां धातुनी पूर्वे 'अ' उमेराय छे तेम पालिमा छे पण प्राकृतमां नथी.
पालिरूपो भू एकव० ३ अभवित्थ ('इत्य' प्रत्ययवाळु) बहुव० ३ अगमिसु, अगमंसु ( 'इंसु' अने 'अंसु' प्रत्ययवाळू)
-जूओ पालिप्र० पृ. २१७ नि० १७६-१७५ तथा पृ. २२० 'गम' ना रूपो अमे टिप्पण.
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________________
२६५
7
से + इत्था - रीइत्था ( अरयिष्ट )
विहर् + इत्था - विहरित्या ( विहृतवान् ) सेव् + इत्था - सेवित्था ( सेवितवान् )
पहार् + इत्थ = पहारेत्व ( प्रधारितवान् )
यम् - बच्छ + इंसु गच्छ्सुि ( अगच्छन्, अगमन्, जग्मुः )
Am
प्रच्छ-पुच्छ + इंसु-पुच्छि (पृष्टवन्तः )
कृ-कर + इंसु-कारेंसु ( अकुर्वन्, अकार्षुः, चक्रुः ) नृत्य - नच्च + इंसु - चिंसु ( नृतवन्तः )
ब्रू-आह + अंसु - आहंसु (आहुः )
संस्कृतमां भूतकाळनां जे रूपाख्यानो तैयार थाय छे, ते उपरथी सीधी रीते पण वर्णविकारना नियमो द्वारा प्राकृतरूपाख्यानो बनावी शकाच छे. जेमके :
सं०- अब्रवीत्
अकार्षीत्
अभूत्
अवोचत्
राएली छे.
अद्राक्षुः
अकार्षम् -
अब्बवी ( प्रा० )
अकासी ( ११ )
अहू (",)
अवोच (,, )
अदुक्ख (,, )
अकरिस्सं (,, ) इत्यादि.
प्राचीन प्राकृतमां- आर्धग्रंथोमां - आवां रूपाख्यानो घणां वप
१ श्री हेमचंद्रे पोताना प्राकृत-व्याकरणमां आ आर्षरूपो माटे कोई नातनों उल्लेख कर्यो जणातो नथी.
રૂઢ
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________________
२६६
भविष्यत्काळ संस्कृतमा भविष्यकाळना त्रण प्रकार छे, जेमके-श्वस्तनभविष्य, अद्यतनभविष्य अने परोक्षभविष्य ( क्रियातिपत्ति ). ए त्रणे भविष्यना पुरुषबोधक प्रत्ययो अने प्रक्रिया पण शूदां जूदां छे. परंतु प्राकृत, शौरसेनी, मागधी, पैशाची के अपभ्रंशमां तेम नथी-तेमां तो मात्र परोक्षभविष्यना ज प्रत्ययो अने प्रक्रिया नोखां नोखां छे अने श्वस्तन तथा अद्यतन भविष्यनी प्रक्रिया, प्रत्ययो तो तद्दन सरखां छे,
प्राकृतना भविष्यत्काळना प्रत्ययोः १ पु० स्स, सामि, हामि, हिमि' स्सामो, हामो, हिमो,
म्सामु, हामु, हिमः स्साम, हाम, हिम,
हिस्सा, हित्था १ भविष्यत्काळना उपर जणावेला प्रत्ययो धातुमात्रने लागे छे त्यारे पालिमां तो एवा प्रत्ययो मात्र 'भू' धानुनेज लागेला छे:
मू पालिरूपो ( भविष्यकाळ) १ होहामि,
होहाम, होहिस्सामि
होहिस्साम. २ होहिसि, होहिस्ससि
होहिस्सथ, ३ होहिति,
होहिंति, होहिस्सति - होहिस्संति. वगेरेः
जूओ पालिप्र० पृ. २०६ ‘होहिति' वगेरे रूपी,
होहिथ,
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________________
२६७
२ पु० हिसि, हिसे' हित्था, हिह ३ पु० हिइ, हिए हिंति, हिते, हिइरे सर्वपुरुष ।
एन. ना सर्ववचन । शौरसेनी अने मागधीना भविष्यत्काळना प्रत्ययोः
शौरसेनीना वर्तमानकाळना प्रत्ययोनी आदिमां : स्सि' उमेस्वाथी ते बधा प्रत्ययो भविष्यत्काळना थाय छे. ए उपरांत पहेला पुरुषना एकवचनमा एक - सं ' प्रत्यय जुदो पण छे. जेमके; १ पु० स्सं, सिमि स्सिमो, स्सिमु, स्सिम । २ पु० सिसि, मिससे स्सिह, सिध, स्सिइत्था । ३ पु० सिदि, स्सिदे स्सिति, सिते, रिसइरे ।
स्साम
१ प्राकृत, शौरमेनी वगेरेना 'से' 'ए' तथा 'दे' प्रत्ययो माटे जूओ पृ० २४९, २ टिप्पण
२ संस्कृतना भविष्यत्काळना प्रत्ययो अने पालिना भविष्यत्काळना प्रत्ययो एक सरस्खा छे, मात्र संस्कृतना ‘स्य ' ने बदले पालिमा 'स' वपराय छः
( १ स्सामि परस्मैपद २२ स्ससि
स्सथ (३ स्सति स्संति
स्साम्हे ) आत्मनेपद २२ स्ससे
स्सव्हे ) ( ३ स्सते शौरसेनीना उपर जणावेला प्रत्ययो साथे पालिना आ प्रत्ययो मळता आवे छेः--
जूओ पालिन. २०४ नि० १३०
स्संते )
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पैशाचीना भविष्यकाळना प्रत्ययोः १ पु० शौरसेनी प्रमाणे २ पु० , ३ पु० एय्य
शौरसेनी प्रमाणे
अपभ्रंशना भविष्यत्काळमा प्रत्ययोः अपभ्रंशना वर्तमानकाळना प्रत्ययोनी आदिमां स' अने 'रिस' उमेरवाथी ते बधा प्रत्ययो भविष्यत्काळना थाय छे. जेमके, १ पु० सउं, सिउं, समि, सिमि सहुं, सिहं,
समो, सिमो, समु, स्सिमु,
सम, सिम । २ पु० सहि, सिसहि, सहु, स्सिहु,
ससि, स्सिसि, सह, स्त्रिह, ससे, स्सिसे
सध, सिध,
सइत्था, स्तिइत्वा । ३ पु० सदि, सदे,
साहिं, संति, सइ, सए
संते, खहरे। स्सिदि, सिसदे, स्सिहिं, सिते, स्सिइ, स्सिए सिते, सिमइरे,
उपर जणावेला भविष्यत्काळना बधा प्रत्ययो पर रहेतां पूर्वना 'अ'नो 'इ' अने 'ए' थाय छे.
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रूपाख्यानो
भण एकवचन प्रातरू.- शौरसेनीरू०- पैशाचीरू ०.- अपभ्रंशरू०
मागधीरू.१ पुरुष-भणिसं, भणिसं शौरसेनी भणिस, भणेस्सं, भणेस्त्रं प्रमाणे
भणेसउं, भणिस्सामि, भणिस्सिमि
भणिस्सि मणेस्सामि, भोस्सिमि
भणेस्सि भणिहामि,
मणिसमि भणेहामि,
भणेसमि भणिहिमि,
भणिस्सिमि भणेहिमि
भणेस्सिमि सर्व पुरुष अने । भणेज सर्व वचन । भणेज्जा २ पुरुष-मणिहिसि भणिस्सिसि शौरसेनी भाणिसहि,
भणेहिसि भणेस्सिसि प्रमाणे भणेसहि, भणिहिसे भणिस्सिसे
भणिसिसहि भणेहिसे मणेस्सिसे
भणेस्सिहि भणिसास भणेससि भणिस्सिसि भणेस्सिसि भणिससे भणेससे
Page #370
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________________
२७०
३ पुरुष-भणिहिइ भणिस्सिदि 'भनेय्य
भणेहिइ भणेस्सिदि मणिहिए भणिस्सिदे भणेहिए भणेस्सिदे
भणिस्सिसे भणेस्सिसे भणिसदि भणेसदि भणिसदे भणेसदे भणिसइ भणेसइ
भणिसए
भणेसए भणिस्सिदि भणेस्सिदि भणिस्सिदे भणेस्सिदे मणिस्सिई भणेस्सिद भणिस्सिए
भणेस्सिए बहुवचन प्राकृतरू०- शौरसेनीरू०-- पैशाचीरू०- अपभ्रंशरू०
मागधीरू०१ पुरुष-मणिस्सामो भणिस्सिमो शौरसेनी भणिसहुं
भणेस्सामो भणेस्सिमो प्रमाणे भणेसहं मणिहामो भणिस्सिमु भणेहामो भणेस्तिमु १ जूओ पृ. २३ नि० (१)
भणिसिहं भणेस्सिहुं
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________________
ર૭૨ भणिहिमो भणिस्सिम भोहिमो भणेस्सिम
भणिस्सामु भणेस्सामु
भणिसमो भणेसमो मणिस्सिमो भणेस्सिमो भणिसमु
मणिहामु
भणेसमु
भणेहामु भणिहिमु
भणिस्सिमु
भणस्सिमु मणिसम भणेसम भणिस्सम भणेस्सिम
भणेहिमु भणिम्साम भस्साम भाणहाम भणेहाम भणिहिम भणेहिम भणिहिस्सा भणहिस्सा भणिहित्था
भणेहित्था २ पुरुष-भणिहित्था भणिस्सिह
भणेहित्था भणेस्सिह भणिहिह भणिस्सिध भणेहिह भणेस्सिध
भणिस्सिइत्था भणेस्सिइत्था
भणिसहु
शौरसेनी प्रमाणे
भणेसह
भणिस्सिहु
भणेस्सिहु मणिसह भणेसह
भणिमिसह
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________________
રહર
शौरसेनी प्रमाणे
३ पुरुष-मणिहिति भणिस्तिति
भणेहिंति भणेस्सिति भणिहिते भणिसिते भणेहिते भणेस्सिते भणिहिइरे भणिस्सिइरे भणेहिहरे भणेस्सिरे
भणेसिमह भणिसध भणेसघ भणिस्सिध भणेस्सिध भणिसइत्था भणेसइत्था भणिस्सिइत्या भणेस्सिइत्था भणिसहि भणेसहिं भणिस्सिहिं भणेस्सिहिं भणिसंति भसंति भणिस्सिति भणेस्थिति भणिसंते भणेसंते भणिस्सिते भणेस्सिते भणिसइरे भणेसरे मणिस्सिइरे मस्सिरे
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२७३
['न' अने 'ज्जा' नो उपयोग प्राकृतनी पेठे शौरसेनी वगेरे बी भाषाओमा करवानो छे !
ए रीते, व्यंजनांत धातुनां भविष्यत्काळनां बधी जातनां रूपो समजवानां छे अने प्राकृतरूपोनो ( मणिहि वगेरेनो ) उपयोग अपभ्रंशमां यथासंभव थइ शके छे.
हो (भू)
स्वरांत धातु अने पुरुषबोधक प्रत्यय-ए बेनी-बच्चे भविष्यत्काळमां पण ' ज्ज' अने ' ज्जा' विकल्पे आवे छे.
आगळ जणावेला नियमो प्रमाणे ' हो ' धातुनां (बधा स्वरांत धातुनां ) छ अंगो थाय छे अने ते अंगोने भविष्यत्काळना छ पुरुषबोधक प्रत्ययो लगाडवाथी अने ए प्रत्ययनिमित्तक थतो फेरफार ए अंगोमा करवायी स्वरांत धातुनां बधां रूपाख्यानो तैयार थाय छे. छ अंगो: हो-हो, होअ, होएज्ज, होएज्जा, होज्ज, होज्जा.
पापा, पाअ, पाएज, पाएज्जा, पाज्ज, पाजा. नी-नी, नीअ, नीएज, नीएज्जा, निज्ज, निज्जा.
[ बघा स्वरांत धातुनां छछ अंगो उपर्युक्त रीते करी लेवानां छे] जे रीते ' भण्' नां बधी जातनां रूपो आगळ बताववामां आव्यां छे ते ज रीते आ छ ए अंगनां प्रत्येकनां बधी जातनां रूपो बनावी लेवानां छे. जेमके;
एकवचन
प्राकृतरू० -
१ पुरुष - होस्सं
होइस्सं
प्रा० ३५
शौरसेनीरू ०- पैशाचीरू० - अपभ्रंशरू० --
मागधीरू०
होस्सिमि
होइस्सिमि
शौरसेनी
प्रमाणे
होस उं
होइस
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२७४ होएस्सं होएस्सिमि
होएस होएजिस्सं होएजिस्तिमि
होएज्जिसडं होएजेस्सं . होएजेस्सिमि
होएजेस होएजास्सं (जस्सं) होएज्जा (ज)सिमि होएज्जास होजिस्सं होजिस्सिमि
होजिस होजेस्सं होजेस्सिमि
होजेस होज्जास्सं (जस) होज्जा (ज) स्सिमि होजासउँ
[प्राकृत, शौरसेनी, मागधी, पैशाची अने अपभ्रंशनो मात्र एक ज प्रत्यय लगाडीने नमूनारूपे 'हो' नां ए छए अंगनां रूपो उपर आपेलां छे, एज प्रकारे दरेक प्रत्यय लगाडीने 'हो' नां ( स्वरांत धातुनां ) बधां रूपो समजी लेवानां छे.]
एज रीते हो नी पेठे पा, ला, दा, मिला, गिला अने वा वगेरे स्वरांत धातुओनां दरेकनां छ छ अंगो करी बधां रूपाख्यानो बनावी लेवानां छे.
भविष्यकाळनां संस्कृत सिद्धरूपोने पण वर्णविकारना नियमो लगाडी प्राकृतभा वापरी शकाय छे. जेमके:सo- भोक्ष्यामः-भोक्वामो ( प्रा०)
भविष्यति-भविस्सइ (,,) करिष्यति करिस्सइ (,) चरिष्यति चरिस्सइ (,)
भविष्यामि भविस्सामि (,,) इत्यादि. आर्षग्रंथोमा केटलांक रूपो तो आ ज प्रकारनां वपराएलां छे.
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ર૭૦ क्रियानिपत्ति-(परोक्षभविष्य ) ज्यारे शरतवाळां बे वाक्यो- एक संयुक्त वाक्य बनेलं होय अने तेमां देखाती बन्ने क्रियाओ कोइ सांकेतिक क्रिया जेवी जणाती होय त्यारे आ ' क्रियातिपत्ति' नो प्रयोग थाय छे.
प्राकृत, शौरसेनी, मागधी, पैशाची अने
___ अपभ्रंशना प्रत्ययोः सर्व पुरुष, सर्व वचन , ज, ज्जा, अन्त, माण
धातुने ‘न्त,' • माण' प्रत्यय लाग्या पछी तैयार थएल अकारांत अंगनां ते ते भाषा प्रमाणे नामनी प्रथमा विभक्ति नेवां ज रूपाख्यानो थाय छे. व्यंजनांत-भणेज्ज, भणेज्जा, भणंतो, भणमाणो सर्व पुरुष, सर्व वचन, स्वरांत-होज्ज, होज्जा, होतो, होमाणो }, ,
'आज्ञार्थ १ पुरुष-- मु १ पालिमां वपराता आशार्थ अने विध्यर्थ प्रत्ययो आ प्रमाणे छः জান্ধার্থ
विध्यर्थ (१ मि म. एय्यामि (प्रा० एज्जामि) ए, एय्याम(पाएजाम). परस्मैपद २२ हि थ. एय्यासि (प्रा० एज्जासि) ए, एय्याथ(प्रा० एजाह).
(३ तु अंतु. एय्य (प्रा० एडज ) ए, एयु.
(१ ए आमसे. एव्यं, ए एय्याम्हे. आत्मनेपदर २ स्तु व्हो. एथो एथ्यव्हो.
(३ तं अंतं. एथ एरं. -जूओ पालिप्र. पृ० १९१. पंचमी तथा पृ० १९४ सप्तमी.
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૨૭૬
२ पुरुष- मु, *इज्जसु, *इज्जहि, *इज्जे, हि ह
(अप० इ, उ, ए) ३ पुरुष- उ (शौ० दु)
सर्व पुरुष, सर्व वचन-ज्ज, ज्जा उपरना वधा प्रत्ययो पर रहेतां धातुना अकारांत अंगना अंत्य 'अ'नो ए' थाय छे.
'मु' अने मो' प्रत्यय पर रहेतां धातुना अकारांत अंगना अंत्य 'अ' नो 'आ' अने 'इ' विकल्पे थाय छे.
अकारांत अंगने लागेला · हि' प्रत्ययनो लोप थाय छे.
१ पु०- हसामु, हसिमु, हसामो, हसिमो,
हसेमु, हसमु. हसेमो, हसमो. २ पु०-- हससु, हसेसु, इसह, हसेह.
हसेज्जसु, हसेज्नहि,
हसेज्ने, हस. ३ पु०- हसउ, हसेउ. हसंतु, हसेतु. सर्व पु० सर्व वचन-हसेज्ज, हसेज्जा.
पालिना विध्यर्थप्रत्ययो थोडा रूपांतर साथे प्राकृतमां वपराया छः प्राकृतमा धातुनां विध्यर्थक रूपोमा जे 'एज्ज' अने 'एज्जा'नो अंश आवे छे ते पालिना 'एय्य' अने 'एय्या 'नु जकारवाळ रूपांतरमात्र छे अने ए पालिप्रत्ययो साथे बतावेलुं छे.
* आ त्रणे प्रत्ययो घातुना अकारांत अंगने ज लागे छे.
१ कोई ठेकाणे तो 'ए' ने बदले 'आ' पण यई जाय छे. जेमके-सुण-'सुणेउ' ने बदले सुणाउ (श्रणोतु)
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२७७
हो१ पु०-- होआमु, होइमु. होआमो, होइमो,
होएमु, होअमु, होएमो, होअमो, 'होएज्जामु, होएज्जिमु, होएज्जामो, होएजिमो, होएज्नेमु, होएज्जमु, होएज्जेमो, होएज्जमो, होज्जामु, होज्जिमु, होज्जामो, होज्जिमो, होज्नेम, होज्जमु, होज्नेमो. होज्जमो,
होमु, होज्न, होज्जा. होमो, होज्ज, होज्जा. पूर्व प्रमाणे 'हो' नां छ अंगो बनावी आज्ञार्थनां वध रूपाख्यानो · हस' नी पेठे साधवानां छे. अने ए रीते बधा स्वरांत धातुनां (दा, ला, पा वगेरेनां ) रूपाख्यानो समनवानां छे.
[ शौरसेनीनो प्रत्यय मागधी, पैशाची अने अपभ्रंशमां पण वापरवानो छे]
शौरसेनी, मागधी अने पैशाचीनां रूपाख्यानो
१ पु० हसामु वगेरे प्राकृत प्रमाणे हसामो वगेरे प्राकृत प्रमाणे. २ पु० हससु वगेरे , , हसह वगेरे , ,, ३ पु० हसदु, हसेदु
हसंतु वगेरे , ,,
अपभ्रंशनां रूपाख्यानो १ पु० हसामु वगेरे प्राकृत प्रमःणे हसामो वगेरे प्राकृत प्रमाणे २ पु० हसि, हसु, हसे, हससु हसह वगेरे , .,
वगैरे प्राकृत प्रमाणे १ जूओ पृ० २५४ 'जज' अने 'ज्जा'नी वपराश,
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२७८
३ पु० 'हसदु, हसेदु,
हसउ, हसेउ
हसंतु वगेरे प्राकृत प्रमाणे
१ पु० होआमु वगेरे
होआमो वगेरे प्राकृत प्रमाणे
प्राकृत प्रमाणे होइ, होउ, होए, २ पु० होअसु वगेरे
होअह वगेरे प्राकृत प्रमाणे
प्राकृत प्रमाणे ३ पु० होअदु, होएदु
होअंतु वगेरे होअउ, होएउ
प्राकृत प्रमाणे ए रीते दरेक व्यजनांत अने स्वरांत धातुओनां रूपो करी लेवानां छे.
विध्यर्थनी बधी प्रक्रिया आज्ञार्थना जेवी छे, विशेष ए छे के, सर्वपुरुष अने सर्ववचनमां एक 'ज्जइ' प्रत्यय वधारे लागे छे, ए । ज्जइ' प्रत्यय पर रहेता पूर्वना 'अ' 'ए' थाय छे: सर्वपुरुष ( होज्जइ, होज्ज, होज्जा ( भवेत् ) सर्ववचन | हसेज्जइ, हसेज्ज, हसेज्ना ( हसेत् )
आर्षग्रंथोमां विध्यर्थसूचक केटलांक खास रूपो मळी आवे छे, ते आ छ:
५ जूओ पृ० १० असंयुक्त 'कादि' लोप-हसदु-हसाउ २ ओ पृ० ३५ न्वद नि० (१)
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२७१
लिया
अच्छे
(स्यात् ) (चरेत् ) (पठेत् )
(आच्छिन्द्यात्) अब्भे
( आभिन्द्यात् ) आ रूपो विध्यर्थसूचक संस्कृत सिद्ध रूपो उपरथी सीधी रीते वर्णविकारना नियमो द्वारा सघाएला छे. ते हकीकत तेने पडखे ( ) आ निशानमां आपेलां रूपो उपरथी जणाइ आवे छे. ए रीते बीजां संस्कृतरूपो उपस्थी पण प्राकृतरूपो साधी शकाय छे. ]
अनियमित रूपाख्यान
अस्-थर्बु
वर्तमानकाळ अत्थि, म्हि, असि अत्थि, म्हो, म्ह. अत्वि, सि
अत्थि , अस्थि
अस्थि .
१ पुरुष २ पुरुष ३ पुरुष
१ पालिमां पण त्रणे पुरुषना एकवचनमा विध्यर्थसूचक 'ए' प्रत्यय वपराएलो छ (जूओ पृ० २७५ १ टिप्पण) ए अनुसारे पण आ आर्षरूपो साधी शकाय छे.
२ प्राकृतमा 'अस्' धातुनां धणां थोडां रूपो थाय छे, भूतकाळ सिवाय बीजा अर्थमां एक मात्र ' अस्थि' रूपयी पण काम चाली शके छे. पालिमां ' अस् ' नां दरेक काळवार नोखां नोखा रूपो थाय छे अने . पालिनां ए रूभो, संस्कृत रूमो साथे घणां भळती आधे छः
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२८०
भूतकाळ सर्व पुरुष, सर्व वचन-} आसि, अहेसि ।
विध्यर्थ, आज्ञार्थ, भविष्यत्काळ सर्व पुरुष, सर्व वचन-} अत्थि।
सात.
अ. ( पालिरूपो) वर्तमाना-१ अस्मि, अम्हि अस्म, अम्ह (अम्हसे ).
२ असि, महि अस्थ.
३ अस्थि सप्तमी-१ अस्स
अस्साम. (विध्यर्थ) २ अस्स
अस्सथ. ३ अस्स,
अस्सु, सिया
सियु. पंचमी-१ अस्मि, अम्हि अस्म, अम्ह. (आशार्थ) २ आहि,
३ अत्थु, अद्यतनी-१ आसिं
आसिम्ह (भूतकाळ)२ आसि
आसिस्थ ३ आसि
आसुं, आसिसु (आसु) -जूओ पालिप्र. पृ० १७८-१९८-१९२-२२३
'अस्' नां रूपो ३ जूओ आचारांगसूत्रनो आरंभ--- "पुरस्थमाओ वा दिसाओ आगओ अहं अंसि" इत्यादि. आ आर्षरूप संस्कृतना 'अस्मि' रूपनुं रूपांतर जणाय छे.
अत्थ.
सतु.
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ર૮૨
'कु-करवू मात्र भूतकाळ अने भविष्यत्काळमां 'कृ' धातुनो 'का' आदेश थाय छेः
भूतकाळ कासी, काही, काहीअ, काअसी, काअही, काअहीअ.
भविष्यत्काळ फक्त प्रथम पुरुषना एकवचनमा · काहं ' रूप वधारे थाय छे, बाकी बधां रूपो 'हो' धातुनी सरखां छः काहिइ, काहिसि, काहिमि इत्यादि ।
दा-देवू. मात्र भविष्यत्काळमां प्रथम पुरुषना एकवचनमा ‘दा' धातुनु ' दाह' रूप वधारे थाय छे, बाकी बधां रूपो 'हो' धातुनी सरखां छः
दाहं, दाहिमि, दाहिसि, दाहिइ, इत्यादि ।
१ 'कृ' न भूतकाळसूचक 'अकासि' अने 'अकासिं ' (त्रीजा पुरुषनु एकवचन अने प्रथम पुरुषन एकवचन ) रूप पालिमा थाय छे, ए, प्राकृतना 'कासी' रूप साथे मळतुं गणाय खरु:-जूओ पालिप्र. पृ० २२५ 'कृ'नां रूपो.
२ प्राकृतरूपो साथे मळतां आवतां 'कृ'नां भविष्यकाळनां पालिरूपो आ प्रमाणे छः
१ काहामि काहाम, २ काहिसि काहिथ. ३ काहिति काहिति.
-जुओ पालिप्र. पृ. २०९ 'कृ' नां रूपो. प्रा०३६
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૨૮૨ मात्र भविष्यत्काळमां नीचेना धातुओना नीचे प्रमाणे आदेशो थाय छः
'श्रु- सोच्छ । दृश-दच्छ। मिद्-भेच्छ। गम- गच्छ । मुच-मोच्छ । भुज-मोच्छ । रुद- रोच्छ । वच--वोच्छ । विद- वेच्छ । छिद-छेच्छ ।
आ धातुओनां भविष्यत्काळ संबंधी रूपाख्यानो भण' धातुनी जेवां थाय छे. विशेषता ए छे के, आ धातुओने लागता भविष्यत्का
१ प्राकृतमा 'श्रु' वगेरे धातुओनां 'सोच्छ' वगेरे अंगो बने छ तेम पालिमां पण बने छः
पालिअंगो श्रु- सोरस- प्रथम पुरुषy एकवचन- सोस्सं. गम - गच्छ--
गच्छिस्सामि.
रुच्छिस्सामि. - दरव तृतीय पुरुषतुं एकवचन-दिच्छति,
मोक्खति. वक्ख "
वक्खति. छिद
छेच्छति.
भोक्खति. -जूओ पालिप्र० पृ. २०६-२०७, [वर्णपरिवर्तनना नियमद्वारा 'श्रु' वगेरेनां संस्कृत रूपोमांथी पण उपर जणावेलां प्राकृत अने पालिअंगो नीपजावी शकाय छे. द्रक्ष्यति, मोक्ष्यति, मोक्ष्यते, वक्ष्यति, छेत्स्यति, रुत्स्यति (कल्पित) श्रोष्यतिजूओ शक्य, क्ष-च्छ, नि० २२ पृ. ३० सच्छ नि० २६. पृ. ३२ अने संयुक्त 'मादि' लोप पृ० १५ ]
मोक्ख
छेच्छ
भोरख
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ळना जेटला प्रत्ययो । हि' आदिवाळा छ तेमांना 'हि' नो लोप विकल्पे थाय छे तथा प्रथम पुरुषना एकवचनमा ए बधा धातुओर्नु एक अनुस्वारांत रूप पण वधारे थाय छः १ पुरुष-सोच्छं, सोच्छिमि, सोच्छेमि, सोच्छिहिमि, सोच्छेहिमि,
सोच्छिम्स, सोच्छेस्सं, सोच्छिम्सामि, सोच्छेस्सामि,
सोच्छिहामि, सोच्छेहामि । २ पुरुष-सोच्छिसि, सोच्छेसि, सोच्छिहिसि, सोच्छेहिसि,
सोच्छिसे, सोच्छेसे, सोच्छिहिसे, सोच्छेहिसे । ३ पुरुष-सोच्छिइ, सोच्छेइ, सोच्छिहिइ, सोच्छेहिइ । . सोच्छिए, सोच्छेए, सोच्छिहिए, सोच्छेहिए । इत्यादि ।
[सूचना-आख्यातने लगता बधी भाषाना (प्राकृत, शौरसेनी, मागधी, पैशाची अने अपभ्रंशना) प्रत्ययो आगळ जणावेला छे, आ चालु प्रकरणमां प्रेरकभेदी, सह्यभेदी वगेरे आख्यातने लगती हकीकत जणाववानी छे, तेमा मात्र प्राकृतना ज एक एक प्रत्ययद्वारा बर्धा उदाहरणो देखाडेलां छे तो अभ्यासीए पोतानी मेळे प्रेरकभेदी, सह्मभेदी वगेरे अंगोने शौरसेनी, मागधी, पैशाची अने अपभ्रंश भाषाना प्रत्ययो लगाडी ते ते भाषानां रूपो बनावी लेवा ]
प्रेरकरूप
प्रेरकअंग बनाववानी रीत १ धातुने अ, ए, आव अने आवे 'प्रत्यय लगाडवाथी तेनुं प्रेरक
अंग तैयार थाय छे.
१ पालिमां पण साधारण रीते प्रेरणाना अर्थमा 'अ,' 'ए,' . 'आप' अने 'आपे' लगाडवाथी धातुमात्रना चार अंगो बने छ:
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૨૮e
२ 'अ' अने 'ए' प्रत्यय पर रहेतां धातुना उपांत्य : अ'नो । आ' थाय छे.' धातु
प्रेरक अंगो कृ-कर कार, कारे, कराव, करावे ।
हास, हासे, हसाव, हसावे । शम्-सम्- साम, सामे, समाव, समावे। दृश-दरिस्- दरिस, दरिसे, दरिसाव, दरिसावे । भ्रम्-मम्- भाम, भामे, भमाव, भमावे । क्षम्-खम्- खाम, खामे, खमाव, खमावे। इत्यादि। (कृ) कार, कारे, काराप, कारापे. (पच्) पाच, पाचे, पाचाप, पाचापे. (हन्) घात, घाते, धाताप, घातापे. (गम्) गाम, गामे, गच्छाप, गच्छापे. (ग्रह). गाह, गाहे, गाहाप, गाहापे. (चिन्त्)
चिंताप, चिंतापे. (चुर् )
चोराप, चोरापे. (बुध्) बोध, बोधे, बुज्झाप, बुज्झापे.
पालिमां वपराता 'आप' अने 'आपे'ज प्राकृतमां वपराता 'आव' अने 'आवे' छे (जओ पृ० २४ प-व, अं० १६)
--जूओ पालिप्र० पृ० २२७–२२९, १ 'आवि' अने 'आवे' प्रत्यय पर रहेतां पण आ नियम लागे छे एम कोइनो मत छः कोई
हेमचंद्रकारावेइ ।
करावई। हासाविओ।
हसाविओ।
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२८५
ए प्रकारे धातुमानां प्रेरक अंगो तैयार करी लेवानां छे. ३ उपांत्यमां गुरु स्वरवाळा (स्वरादि वा व्यंजनादि ) धातुने उपर जणावेल प्रत्ययो उपरांत विकल्पे ' अवि ' प्रत्यय लगाइवाथी पण तेनुं प्रेरक अंग तैयार थाय छे:
प्रेरक अंगो
धातु
तुष्-तोषि--तोसि -
त्रुष्-घोषि - घोसि --
मुष्- मोषि- मोसि
दुष्- दूषि - दूसि
दोसि
दुहू-दोहि
मुह-मोहि
भक्षू - भक्षि-भक्खि
तक्ष- तक्षि-तक्खि
पार - पारि-
चिल्ला-चिल्ल
ܢ
जीव-जीवि
लुञ्च्–लुञ्चि-लुंचि - शुष्-शोषि-सोसि
चूष - चूषि-सि
तोसवि, तोस, तोसे, तोसाव, तोसावे । घोसव, घोस, घोसे, घोसाव, घोसावे ।
मोसवि, मोस, मोसे, मोसाव, मोसावे । दूसवि, दूस, दूसे, दूसाव, दूसावे । दोसवि, दोस, दोसे, दोसाव, दोसावे । दोहवि, दोह, दोहे, दोहाव, दोहावे । मोहवि, मोह, मोहे, मोहाव, मोहावे । भक्खवि, भक्ख, भक्खे, भक्रखाव, भक्खावे । तक्खवि, तक्ख, तक्खे, तक्खाय, तक्खावे । पारवि, पार, पारे, पाराव, पारावे । चिल्लवि, चिल्ल, चिल्ले, चिल्लाव, चिल्लावे । जीववि, जीव, जीवे, जीवाव, जीवावे । लुंचवि, लुंच, लुंचे, लुंचाव, लुंचावे | सोसवि, सोस, सोसे, सोसाव, सोसावे. चूतवि, चूस चूसे, चूसाव, चूसावे ।
1
इत्यादि
ए रीते उपांत्यगुरुवाळा वातुओनुं प्रेरक अंग बनावी लेवानुं छे.
४ भ्रम ( भ्रम ) धातुनुं प्रेरक अंग ' भ्रमाड ' पण थाय छे: भम भमाङ, माम, मामे, भमाव, भमावे 1
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२८६
.
ए रीते तैयार थएल प्रेरक अंगोने ते ते पुरुषबोधक प्रत्ययो लगाडवाथी तेनां दरेक प्रकारनां रूपाख्यानो तैयार थाय छे-ए रूपाख्यानो बनाववानी प्रक्रिया आगळ आवेल कर्तरिरूपाधिकारमा आवी गई छे. तो पण अहीं उदाहरण तरीके केटलांक रूपाख्यानो दविवामां आवे छेः
वर्तमानकाळ १ पु०-खामेमि, खामामि, खामामो,-'मु,-म, खामिमो, मु, म, खाममि, खामेमि, खामेमो,-मु,-म, खाममो, मु, म ।
__ खामेमो-मु,-म, खमावेमि, खमावामि, खमावामो,-मु,-म, खमाविमो, मु,-म, खमावमि, खमावेमि खमावेमो,-मु, म, खमावमो,-मु,-म,
खमावेमो,-मु,-म. इत्यादि । खामेज, खामेजा, खमावेज, खमावेज्जा ।
भूतकाळ सर्वपुरुष, सर्ववचन-तोसवि-सी,-ही, हीअ, तोस-सी,-ही,-हीअ,
तोसे-सी,-ही, हीअ, तोसाव-सी,-ही,-हीअ, तोसावेसी,-ही,-ही। इत्यादि ।
भविष्यत्काळ ३ पु०-भक्खवि-हिइ, भक्ख-हिइ, भक्खे-हिइ, भक्खाव-हिइ, __ भक्खावे-हिद
इत्यादि। १ -' मु' –'म' वगेरे प्रत्ययो मूकेला छे, तो मूळ अंगने ए प्रत्ययो लगाडी 'खामामो' नी पेठे 'खामामु' 'खामाम' वगेरे रूपो पोतानी मेळे बनावी लेवां अने हवे पछी ज्यां आबु आवे त्यां पण आ रीतेज समजी लेबु.
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२८७
क्रियातिपत्तिसर्वपुरुष, सर्ववचन-भक्खवितो-विमाणो,-विज्ज,-विजा ।
भक्खंतो,-क्खमाणो, खज,-क्खज्जा । भक्वेतो,-क्खमाणो,-क्खेज,-क्वेज्जा । भक्खावंतो,-क्खावमाणो,-क्खावज्ज,-खावज । भक्खावेतो, वेमाणो, वेज, -वेज्जा। इत्यादि ।
विध्यर्थ-आज्ञार्थ २, पु०-हाससु, -सेसु, हासेज्जसु, हासेजहि, हासेजे, हास।
हासेसु, हासेहि । हसा-वसु,-वेसु,-वेज्जसु,-वेजहि,-वेज्जे, हसाव । हसावेसु, हसावेहि । हासेज्जइ, हासेज, हासेज्जा, हसावेज्जइ, हसावेज, हसावेज्जा।
इत्यादि । ए रीते प्रत्येक प्रेरक अंगने वधी जातना पुरुषबोधक प्रत्ययो लगाडी तेनां रूपाख्यानो समजी लेवानां छे..
ज्यारे प्रेरकसह्यभेद, प्रेरकवर्तमानकृदंत, प्रेरकभूतकृदंत अने प्रेरकभविष्यत्कृदंत बनाववं होय त्यारे पण प्रेरकअंगने ज ते सह्यभेद वगेरेना प्रत्ययो लगाडी तेनां रूपाख्यानो बनावी लेवानां छे. (आ संबंधेनी विशेष माहिती सह्यभेदाधिकार अने कृदंताधिकारमा जणाववानी छे).
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नामधातु प्रेरकप्तक्रिया सिवाय संस्कृतमां बीजी पण अनेक प्रक्रियाओ छे, नेमके-'सन्नतप्रक्रिया, यउंतप्रक्रिया, यङ्लुबतप्रक्रिया अने नामधातुप्रक्रिया. परंतु प्राकृतमा ए प्रक्रियाओ माटे कोई खास विशेष
१ पालिमां पण सन्नंत, यङन्त, यङ्लुबंत अने नामधातुनी प्रक्रिया संस्कृतनी पेठे थाय छे:सन्नत- बुभुक्स्वति ( बुभुक्षते)
जिघच्छति (जिघत्सति) पिवासति (पिपासति) जिगिंसति (जिगीषति)
(जिहीर्षति) चिकिच्छति । तिकिच्छति ।
(चिकित्सति) वीमंसते (मीमांसते) सन्नतप्रेरक- बुभुक्खर्यात । ( बुभुक्षयति)
लालप्पति (लालप्यते) दादलात (जाज्वल्यते) चकमति ( चङमीति) जंगमति (जङ्गमीति) लालपति (लालपीति) पवतायति (पर्वतायते-पर्वत इय आचरति) छत्तीयति (छात्रीयति पुत्रम्) अतिहत्ययाति (अतिहस्तयति-हस्तिना
___ अतिक्रामति) उपवीणयति (वीणया उपगायति) कुसलयति (कुशलं पृच्छति)
--मालिप्र० पृ. २२९-२३३
यडन्त
यङ्लुबंत
नामधातु
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२८९
विधान तो नथी अने प्राकृत साहित्यमा ए प्रक्रियानां रूपाख्यानो उपलब्ध थाय छे एथी कल्पी शकाय छे के, ते ते प्रक्रियाना(संस्कृत) सिद्ध रूपोमां, आगळ जणावेल वर्णविकारना नियमानुसार फेरफार करी ते रूपोनो प्रयोग करवामां आवे (ल) छे. जेमकेसंस्कृत
प्राकृत शुश्रूषति
सुस्सूसइ । (सन्नंत) लालप्यते----
लालप्पइ । ( यङत)
चंकमइ । ( यङ्ग्लुबंत) चक्रमीति
चकमण । (चक्रमणम् )
इत्यादि । मात्र नामधातु माटे विशेषता आ छे : नामधातुओने लागेल । य' प्रत्ययनो लोप विकल्पे थाय छे. गुरुकायते--गरुआइ, गरुआअइ (गुरुरिव आचरति-गुरुनी जेवू
आचरण करे छे) दमदमायते-दमदमाइ दमदमाअइ ( दम दम थाय छे) लोहितायते- लोहिआए-ई, लोहिआअए-इ। (लाल थाय छे) हसायते-- हसाए-इ, हंसाअए,-इ। (हंसनी जेम आचरे छे) तमायते- तमाए-इ, तमाअए-ई । (अंघारा जेवु छे) अप्सरायते-- अच्छराए,-इ, अच्छराअए-इ।
(अप्सरानी जेम आचरे छे) उन्मनायते- उम्मणाए-इ, उम्मणाअए, इ (उन्मना थाय छे) कष्टायते- कट्ठाए,-३, कट्ठाअए,-ई।
(कष्टने माटे क्रमण करे छे)
प्रा० ३७
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२९०
धूमायते सुखायते शब्दायते
धूमाए-इ, धूमाअए-इ । (धूमने उद्बमे छे) सुहाए-इ, सुहाअए, इ । (सुखने अनुभवे छे) सद्दाए, ई, सद्दाअए-इ। (शब्द करे छे-बोलावे छे)
इत्यादि.
सह्यभेद वर्तमानकाळ, विध्यर्थ, आज्ञार्थ अने (ह्यस्तन ) भूतकाळमां धातुने — 'ई' अने ' इज्ज ' प्रत्यय लगाडवाथी तेनुं सह्यभेदी अंग
१ पालिमां सह्यभेदी अंग बनाववा माटे 'य' 'इय' अने 'ईय' तथा क्यांय 'इय्य' (प्रा. ईअ, इज) प्रत्ययनो व्यवहार याय छे:
पञ्चते, पच्चति (पच्यते) बुज्झते, बुज्झति (बुध्यते)
वुच्चते, वुच्चति (उच्यते) य अने इय- तुस्सते, तुसियति (नुष्यते)
पुच्छते, पुच्छियति (पृच्छयते) मंजियति
(मज्यते) इय्य- करिय्यति, करिय्यते (क्रियते) ईय- महीयति
(मह्यते) मथीयति
(मथ्यते) करीयति
(क्रियते) कय्यति कयिरति
-जूओ पालिप्र. पृ० २३४-२३७
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२९१
बने. छे अने ते अंगने प्राकृत, शौरसेनी, मागधी, पैशाची अने अपभ्रंश भाषाना ते ते पुरुषबोधक प्रत्ययो लगाडवाथी तेनां रूपाख्यानो थाय छे.
पैशाचीनी विशेषता पैशाचीमां धातुन सह्यभेदी अंग बनावयु होय तो पुरुषबोधक प्रत्ययो लगाडता पहेलां धातुने ईअ' इज्ज' ने बदले ‘इय्य' प्रत्यय लगाडवो जोईए. जेमके, सं०
प्रा० शौ० मा० पै. गीयते गिज्जए गिज्जदे गिय्यते दीयते
दिज्जदे दिय्यते रम्यते
रमिज्जदे रमिय्यते पठ्यते पढिजए पढिज्जदे पढिय्यते
दिज्जए रमिजए
'कृ' धातुनुं सह्यभेदी अंग बनावq होय तो पुरुषबोधक प्रत्ययो लगाडता पहेलां एने ('कृ' धातुने )ज : इय्य' ने बदले ईर' प्रत्यय लगाडवो जोईए. सं० क्रियते प्रा० करिज्जए शौ० मा० 'करिज्जदे पै० कीरते करीअए
करीअदे अपभ्रंशनी विशेषता संस्कृतमां थता प्रथम पुरुषना 'क्रिये' रूपने बदले अपभ्रंशमां कीसु' रूप पण वपराय छे अने पक्षे यथाप्राप्त.
१ कलिज्जदे, कलीअदे-जूओ पृ० २६ र-ल.
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२९२
साधारण सह्यभेदी अंगो धातु सह्यभेदी अंग धातु
सह्यभेदी अंग भण्-- भणीअ, भणिज्ज । पा- पाईअ, पाइज्ज । हस्- हसीअ, हसिज्ज । दा- दाईअ, दाइज्ज । कथ्–कह- कहीअ, कहिज्ज । ला- लाईअ, लाइज्ज । पत्-पड्- पडीअ, पडिज्ज । ध्या-झा-- झाईअ, झाइज्ज । कथ्-बोल्ल-- बोल्लीअ, बोल्लिज्ज । हो- होईअ, होइज्ज ।
सू- सूईअ, सूइज्ज ।
इत्यादि। ए रीते धातुमात्रनां सह्यभेदी अंगो बनावी लेवानां छे. आ अंगोनां रूपाख्यानो बनाववानी प्रक्रिया, कर्तरिरूपाधिकारमा जणावेल प्रक्रिया जेवी छे. जेमके
वर्तमानकाळ
( भण्यते ग्रन्थः) ३ पु०-(गंथो) भणीअइ,-एइ, अए, एए, एज, एज्जा
भाणज्जइ, ज्जेइ, ज्जए, जेए, जेज्ज, जेज्जा।
(भण्यन्ते ग्रन्थाः) ( गंथा ) भणीअंति, ते, एंति, एते, भणीअइरे, एइरे
भाणिज्जति, ते, ज्जेति, जेते, जइरे, ज्जेइरे, भणीएज्ज, एजा, भणिज्जेज, जेजा।
इत्यादि। (कथ्यसे त्वम् ) २ पु०-(तुम ) बोल्लीअसि, एसि, असे, एसे,
बोल्लिज्जसि, जेसि, जसे, जैसे
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२९३
( कथ्यध्वे यूयम् )
( तुम्हे ) बोली अह, एह, बोली इत्था, अइत्था । ( त्वया अहं सूये)
१०- (अहं) सूई आमि, एमि, अमि,
सूइज्जामि, जेमि, ज्जमि
सूईएज्ज, एज्जा सूइजेज, जेज्ज ।
"
भणीअउ एउ भणिज्जउ, जेड
भणीएज, जा
भणीएज्जइ
भणिज्जेज्ज, ज्जा भणिज्जेज्जइ
भणीअउ एउ भणिज्जउ, जेउ
भणीएज्ज, उजा
भणिज्जेज्न, ज्जा
विध्यर्थ
त्वया त्रयं सूमहे
(अम्हे) सूईआमो, मु, म, सूईइमो, मु, म
सूईएम, मु, म,
आज्ञार्थ
सूईअमो, मु, म,
सूइज्जामो, मु, म,
सूइज्जिमो, मु, म,
भणीअंतु एंतु ।
भणिज्जतु, जंतु ।
भणीएज्ज, ज्जा, ज्जइ ।
भणिज्जेज्ज, ज्जा, ज्जइ ।
-
सूइज्जेमो, मु, म,
सूइज्मो, मु, म,
सूईएब्ज, ज्जा,
सूइज्जेज, ज्जा ।
भणीअंतु, एंतु ।
भणिज्जंतु ज्जेतु ।
भणीएज्ञ, ज्जा ।
भणिज्जेज्ञ, ज्जा ।
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२९४
भूत-(धस्तनभूत) भणीअसी, ही, ही।
भणिज्जसी, ही, हीअ । १ ने कालमा सह्यभेदसूचक 'ईअ' अने 'इज्ज' प्रत्यय धातुने नथी लागता ते काळमां तेनां सह्यभेदी रूपो कर्तरिरूपो जेवां समजवानां छे, जेमके( अद्यतन ) भूतकाळ-भण-भणीअ । भविष्यत्काळ-भण-मणिहिद, भणिहिए, इत्यादि । क्रियातिपत्ति-भण-भणेज्ज, ज्जा, भणंतो, भणमाणो, इत्यादि ।
प्रेरक- सह्यभेद १ धातुन प्रेरक सह्यभेदी रूप करवू होय त्यारे धातुने प्रेरणासूचक एक मात्र — आवि ' प्रत्यय लगाडी, ते तैयार थएल अंगने सह्यभेदसूचक 'ईअ' अने 'इज्ज' प्रत्यय पूर्वोक्त काळमां लगाडी प्रत्येक धातुनुं प्रेरक सह्यभेदी अंग बनाववानुं छे.
२ प्रेरणासूचक कोइ पण प्रत्यय लगाड्या विना मात्र उपांत्य 'अ' नो दीर्घ करी अने सह्यभेदसूचक 'ई' अने 'इज्ज' प्रत्यय पूर्वोक्त काळमां लगाडीने पण प्रत्येक धातु- प्रेरक सह्यभेदी अंग तैयार थाय छे.
(आ सिवाय बीजी रीते प्रेरक सह्यभेदी अंग बनी शकतुं नथी) ___ए रीते तैयार थएल प्रेरक सह्मभेदी अंगनां रूपाख्यानोनी प्रक्रिया कर्तरि रूपाख्यानोनी प्रक्रिया जेवी छे.
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प्रे० सह्य ० प्रे०स० अंगकर+आवि-करावि + ईअ- करावीअ- करावीअइ, ए, सि, से,
इत्यादि. कर- कार + ईअ- कारीअ- कारीअइ, ए, सि, से,
इत्यादि. कर+आवि-करावि+ इज्ज-कराविज्ज कराविज्जइ, ए, सि, से,
इत्यादि. कर- कार + इज्ज- कारिज्ज- कारिज्जइ, ए, सि, से,
इत्यादि हस +आवि-हसावि+ईअ-- हसावीअ-- हसावीअइ, ए, सि, से,
इत्यादि. हस + हास + ईअ- हासीअ- हासीअमि, आमि, एमि
इत्यादि. हस+ हसावि+इज्ज-हसाविज्ज-हसाविजित्था,-विजेह,
जह, इत्यादि. हस+ हास + इज्ज-हासिज्ज-हासिज्जंति,न्ते, ज्जइरे,
इत्यादि. • ए रीते धातु मात्रनां प्रेरक सह्यभेदी अंगो तैयार करी सर्व काळनां रूपाख्यानो समजी लेवानां छे.
ज्यां प्रेरक अंगने 'ईअ अने 'इज्ज'प्रत्यय नथी लागता त्यां प्रेरक अंगथी सीधा पुरुषबोधक प्रत्ययो लगाडी कर्तरिरूपाख्यानोनी पेठे प्रेरक सह्यभेदी रूपाख्यानो समजवानां छे.
जेमके भविष्यकाळ
कर + आवि-कराविकराविहि-इ, ए, -सि, से, मि,
विहामि, विस्सामि, विसं
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कर- कार -कारेहि-इ, ए, -सि, -से, -मि,
रेहामि, रेस्सामि, रेस्सं हस+आवि-हसावि-हसाविहि-न्ति, -न्ते, -इरे-त्था, ह,
विस्सामो, विहामो, विस्सामु, विहामु, विस्साम, विहाम, विहिमो, विहिमु,
विहिम, विहिस्सा, विहित्था हस- हास -हासेहि-इ, ए, सि, से, मि,
सेहामि, सेस्सामि, सेस्सं । इत्यादि. क्रियातिपत्ति
कराविज्ज, ज्जा, करावंतो, करावमाणो । कारिज्ज, कारिज्जा, कारंतो, कारमाणो । इत्यादि.
अनियमित सह्यभेदी अंगो दृश- 'दीस- दीसइ, दीसिज्जइ, दीसउ, दीससी, ही, हीअ । वच- 'वुच्च- वुच्चइ, वुच्चिज्जइ, वुच्चउ, वुच्चसी, ही, हीअ । सह्य ०
प्रे० प्रे० भ० चि- चिव- चिन्वइ, चिबिहिइ, चिव्वाविइ, चिव्वाविहिइ, इत्यादि. चि- चिम्म-चिम्मइ, चिम्मिहिइ, चिम्माविइ, चिम्माविहिइ, इत्यादि. हन्- हम्म- हम्मइ, हम्मिहिइ, हम्माविइ, हम्माविहिइ, इत्यादि. खन्- खम्म- खम्मइ, खम्मिहिइ, खम्माविइ, खम्माविहिद, इत्यादि. दुह्- दुभ-दुब्भइ, दुब्मिहिइ, दुब्भाविइ, दुब्माविहिइ, इत्यादि.
१ वर्तमानमां, विध्यर्थमां, आज्ञार्थमा अने यस्तनभूतमा ज आ बे आदेशो वपराय छे.
२ आ वधा आदेशो वैकल्पिक छे अने मात्र सबभेदनी ज गमे ते जातनी रचनामां वपराय छे.
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२९७
लिङ्-- लिब्भ-लिभइ, लिब्भिहिइ, लिब्भाविइ, लिब्भाविहिइ,इत्यादि, वह- बुब्भ-वुब्भइ, वुब्भिहिड्, वुब्भाविइ, वुब्भाविहिद, इत्यादि. रुध्- रुब्भ-रुब्भइ, रुभिहिइ, रुब्भाविइ, रुबभाविहिइ, इत्यादि. दह- उज्झ-डज्झइ, डज्झिहिद, डज्झाविइ, उज्झाविहिइ, इत्यादि. बन्ध-वझ-बज्झइ, बज्झिहिइ, वज्झाविइ, बज्झाविहिइ, इत्यादि. सं+रुधू संरुज्झ-संरुज्झइ,संरुज्झिहिइ, संरुज्झाविइ,संरुज्झाविहिइ,इत्यादि. अणु+रुध्-अणुरुज्झ-अणुरुज्झइ, अणुरुज्झिहिह, अणुरुज्झाविइ,
अणुरुज्झाविहिइ, इत्यादि. उप+रुध्-उक्रुज्झा-उवरुज्झइ, उवरुझिहिइ, उवरुज्झविड़,
उवरुज्झाविहिइ, इत्यादि. गम्- गम्म--गम्मइ, गम्मिहिइ, गम्माविइ, गम्माविहिइ, इत्यादि, हम- हस्स-हस्सइ, हम्सिहिद, हरसाविइ, हम्साविहिइ, इत्यादि. भण्-भण्ण-भण', भणिहिइ, भण्णाविइ, मण्णाविहिद, इत्यादि. छुप-छुप्प-छुप्पइ, छुप्पिहिइ, छुप्पाविइ, छुप्पाविहिइ. इत्यादि.. रुद्-रुव्व-रुव्वद, रुविहिइ, रुब्वाविइ, रुव्वाविहिइ, इत्यादि, लभ्-भ-लभ, ललिहिइ, लब्भाविइ, लब्भाविहिइ, इत्यादि. कथ्-कत्थ-कथइ, कस्थिहिइ, कल्याविइ, कत्थाविहिइ, इत्यादि. भुज-भुज-भुज्जइ, भुज्जिहिइ, भुज्जाविइ, भुज्जाविहिइ, इत्यादि. हृ- हीर-हीरइ, होरिहिइ, हीराविइ, हीराविहिइ, इत्यादि. तु- तीर-तीरइ, तीरिहिइ, तीराविइ, तीराविहिइ, इत्यादि. कृ- कीर-कीरइ, कीरहिह, कीराविइ, कीराविहिइ, इत्यादि.
[प्राकृतमा 'कृ' नां सह्यभेदी अंगो बे थाय छे-कृ= 'कीर' अंने 'करीअ' : करिज,' त्यारे पैशाचीमां तो 'कृ'नु । कीर' अंग ज वपराय छः कीरते, कीरति ]
प्रा०३८
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२९८
ज-- जीर-जीरइ, जीरोहिद, जीराविइ, जीराविहिद, इत्यादि. अर्ज-विढप्प-विढप्पइ,विढप्पेहिइ, विढप्पाविइ, विढप्पाविहिह, इत्यादि. ज्ञा-णव-णव्वइ, णव्वेहिइ, णवाविइ, णव्वाविहिइ, इत्यादि, ज्ञा-णज्ज-गज्जइ, णज्जेहिइ, णज्जाविइ, णज्जाविहिइ, इत्यादि. वि+आ-व्या+ह-वाहिप्प-वाहिप्पड़, वाहिप्पेहिह, वाहिप्पाविइ,
वाहिप्पाविहिइ, इत्यादि. ग्रह-घेप्प-घेप्पइ, घेप्पेहिइ, घेप्याविइ, घेप्पाविहिइ, इत्यादि, स्पृश-छिप्प-छिप्पइ, छिप्पेहिइ, छिप्पाविइ, छिप्पाविहिइ, इत्यादि, सिच् ।
सिप्प-सिप्पए, सिप्पेहिए, सिप्पाविइ, सिप्पाविहिद, इत्यादि, . आरम्--आढप्प-आठप्पेइ, आढप्पेहिए, आढप्पाविइ, आढप्पाविहिइ,
इत्यादि. नि--निव्व-जिव्वए, जिव्वेहिए, जिव्वाविइ जिव्वाविहिइ इत्यादि. श्रु-सुव्व-- सुब्बए, सुव्वेहिए, सुव्वाविइ. सुव्वाविहिद, इत्यादि. हु-हुव्व- हुव्वए, हुब्वेहिइ, हुव्वाविद, हुव्वाविहिइ,: इत्यादि. स्तु-थुव्व-थुव्वइ, थुबेहिइ, थुत्वाविइ, थुत्वाविहिद, इत्यादि. लु -लुव्व-लुव्वइ, लुब्बेहिह, लुब्वाविइ, लुवाविहिह, इत्यादि. पू -पुव्व -- पुन्वइ, पुवेहिइ, पुवाविइ, पुवाविहिह, इत्यादि. धू-धुव्व-व्वए, धुबिहिइ, धुव्वाविइ, धुव्वाविहिद, इत्यादि.
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प्रकरण १३
कृदंत 'वर्तमानकदंत
१ धातुना अंगने त' 'माण' अने ई4 प्रत्यय लगाडवाथी तेनु कर्तरि-वर्तमान-कृदंत बने छे.
२ धातुना प्रेरक अंगने ‘न्त' माण' अने 'ई' प्रत्यय लगाडवाथी तेनुं प्रेरक-कर्तरि-वर्तमान-कृदंत बने छे.
३ धातुना सह्यभेदी अंगने ‘न्त' गाण' अने 'ई' प्रत्यय लगाडवाथी तेनुं सबभेदी-वर्तमान-कृदंत बने छे.
४ धातुना प्रेरक सह्यभेदी अंगने त ' 'माण' अने 'ई' प्रत्यय लगाडवाथी तेनुं प्रेरक-सह्यभेदी-वर्तमान-कृदंत बने छे.
५ वर्तमान कृदंतनान्त' 'माण' अने 'ई' प्रत्यय पर रहेता पूर्वना · अ'नो विकल्पे । ए' थाय छे.
कर्तरि वर्तमान कृदंत पुं०
न०
स्त्री० भण-भणंतो, भणमागो । भणंतं, भणमाणं । भणंती, भणंता ।
(शौ० मा० भणंदो) १ कृदंतना रूपाख्यानोनी प्रक्रिया नामनी जेवी छे..
२ पालिम पण वर्तमान कृदंत बनाववा माटे सर्वत्र 'अंत' अने 'मान' प्रत्ययनो उपयोग थाय छे:गच्छंतो, गच्छमानो
स्त्री० गच्छंती,
गच्छती. करोंतो, कुव्वतो, कुरुमानो, करानो. खादंतो, खादमानो
-पालिप्र० पृ. २४८-२४९. . ३ आ प्रत्ययवाळु रूप स्त्रीलिंगमा ज वपराय छे.
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'भणेतो, भणेमाणो। भणेतं, भणेमाणं । भणेती, भणेता ।
भणमाणी,भणमाणा। भणेमाणी,भणेमाणा।
भणई, भणेई । पा- पाअंतो, पाअमाणो । पाअंतं, पाअमाणं | पाअंती, पाअंता ।
(शौ० मा० पाअंदो) पाएंतो, पाएमाणो। पाएंतं, पाएमाणं । पाएंती, पाएंता । पांतो, पामाणो । पांतं, पामाणं । पांती, पाता ।
पाअमाणी,पाअमाणा। पाएमाणी,पाएमाणा। पामाणी, पामाणा। पाअई, पाएई।
पाई। रु-रवतो, (शौ० मा० 'वेदो) रत्रमाणो रिवंत रवमाणं। वंती,रवंता। वेतो, राणो । वंत, रवेमाणं । रवैती, रवेंता ।
रखमाणी, रवमाणा। वेमाणी, रवेमाणा।
हहरतो (शौ०मा०हरदोहरमाणो। हरत, हरमाणं । हरती, हरंता । हरतो हरमागो । हरतं हरमागं । हरती, होता ।
हरमाणी, हरमाणा। हरेमाणी, हरमाणा।
१ भर्णितो- सूओ दीर्घस्वर-हस्वस्वर पृ० ४ २ रवंतो + रवंदो जूओ पृ. ३५ न्त-न्द,
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वृष्-वरिसंतो, (शौ०मा०वरिसंदी) वरिसमाणो । वरिसंतं. वरिसमाणं।
वरिसंती,वरिसंता। वरिसेतो,बरिसेमाणो । वरिसेंतं.वरिसेमाणं । वरिसेंती,वरिसेंता ।
वरिसमाणी,
वरिसमाणा। वरिसेमाणी,
वरिसेमाणा।
वरिसई, वरिसेई। नी-नेतो, (नेदो शौ०मा०) नेमाणो। नेतं,नेमाणं । नेंती, नेता |
नेमाणी, नेमाणा।
तूस-तूसंतो, (शौ०मा०तूसंदो) तूसमागो । तूसंत, तूसमाणं ।
तूसंती, तूसंता। तूसेतो, तूसेमाणो । तूसेंतं, तूसेमागं । तूसेंती, तूसेंता ।
तूसमाणी, तूसमाणा । तूसेमाणी, तूसेमाणा।
तूसई, तूसेई । दा-'देतो (शौ०मा०देदो ) देमाणो । देतं, देमागं । देती, देंता ।
देमाणी, देमाणा।
१ वरिसंतो + वरिशंदो - जूओ पृ. २७ स-श,
ए प्रमाणे तूशंदो,
शुश्शूशंदो,
शोशविंदो वगेरे। २ जूओ पृ. २४६ नि० ६ ३ दा+अ+अंतोदा+ए-तो-देतो ।
दा++माणो दा+ए+माणोदेमाणो ।
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३०२
चल चलतो, चलमाणो । चलंतं, चलमाणं । चलंती, चलता । ( शौ० मा० चलंदो )
चल्लेतो, चलेमाणो । चलैतं चलेमाणं । चलेंती, चल्लेता।
चलमाणी, चलमाणा | चलेमाणी, चलेमाणा | चल्लाई, चलेई ।
खिद्-खिज्जतो, खिज्जमाणो । खिज्जंतं, खिज्जमाणं । खिजंती, खिज्जंता ।
त्वर
(शौ०मा०खिज्जंदो)
खिज्जेंतो, खिज्जेमाणो । खिज्जेतं, खिज्जेमाणं । खिज्जेती, खिज्जेता ।
खिज्जमाणी, खिज्जमाणा । खिज्जेमाणी, खिज्जेमाणा । खिज्जई, खिज्जेई ।
तुर- ' तुरंतो, तुरमाणो | तुरंतं, तुरमाणं । तुरंती, तुरंता ।
तूर
(शौ०मा० तुरंदो )
तुरंतो, तुरेमाणो । तुरेतं, तुरेमाणं । तुर्रेती, तुरंता ।
तुरमाणी, तुरमाणा । तुरेमाणी, तुरेमाणा ।
तुरई, तुरेई | सुस्सूसमाणो ।
लालप्पमाणो ।
शुश्रूष ---सुस्मृसंतो, (शौ० मा० सुस्सूदो ) लालप्य् - लालप्पंतो, (शौ० मा० लालप्पंदो)
( पै० ळाळप्पंतो )
गुरुकाय - गरुअंतो, (शौ० मा० गरुअंदो ) गरुभमाणो ।
' तुरंतो ' नी पेठे ' तूरंतो ' वगेरे रूपो पण करी देवां.
२ सुस्पूसंतं, सुस्सूसंती वगेरे रूपो पण करी लेवा.
३ जूओ पृ० २६ ल -ळ.
४ ' गुरुकायते ' नामधातुनुं रूप के, ए उपरथी ' गुरुकाय ' ए वर्तमान कृदंतनुं अंग बन्युं छे,
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३०३
प्रेरक कर्तरि वर्तमान कृदंत कर----कारंतो', (शौ० मा० कारंदो) कारमाणो । कारतो,
कारेमाणो । करावंतो,
करावमाणो। करावेतो,
करावेमाणो । शुष--सोसवितो, (शौ० मा० सोसविंदो ) सोसंतो, सोसेंतो,
सोसावंतो, सोसावतो सांसविमाणो, सोसमाणो, सोसेमाणो, सोसावमाणो,
सोसावमाणो इत्यादि.
सह्यभेदी वर्तमान कृदंत भण-----भणिज्जतो, भणिज्जमाणो, भणीअंतो, भणीअमाणो। पुं०
(शौ० मा० भणिजंदो ) (प० भनियंतो ) भाणिज्जत,-जमाणं, भणीअंत,-अमाणं । न०भणिज्जती,-ता, जई; भणीअंती,-ता, -णीअई। .
भणिज्जमाणी-णा; भणीअमाणी, भणीअमाणा IS .... पुं०-- न०- स्त्री०हन्-हम्मतो, हम्ममाणो; हम्मंतं, हम्ममाणं; हम्मंती, ता,
हम्ममाणी,णा,हम्मई।
१ 'कार' अंग उपरथी कारती, कारेई, कारमाणी, कारंतं वगेरे रूपो उपजावी लेवां. .... २ जुओ पृ० २९१ पैशाचीनी विशेषता,
३ जूओ पृ. २३ -न.
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३०४
प्रेरक सधभेदी कृदंत
( प्रेरक सह्यभेदी अंग बनाववानी प्रक्रिया 'प्रेरकसा भेद ' ने
जणावतां जणावी छे.' )
कर --- करावि + ईअ - करावीअंतो, - अमाणो,
( शौ० मा० करावी अंदो ) ( पै० कराविय्यतो )
कराविज्जतो, कराविजमाणो,
इत्यादि ।
इत्यादि ।
कर – करावि + इज्ज कर -- कार + ई - कारीअंतो, कारीअमाणो, कर कार + इज्ज- कारिज्जतो, कारिज्जमाणो, चि- चिव्व + आवि- चिव्वावितो, चिव्याविज्जमानो, इत्यादि ।
इत्यादि ।
इत्यादि ।
प्राकृत अने पैशाचीमां वर्तमान कृदंतनां रूपो सरखां थाय छे, शौरसेनी अने मागधीमां जे विशेषता छे ते उदाहरणो साथे जणावी छे, अपभ्रंशमां शौरसेनी अने प्राकृत प्रमाणे समजवानुं छे.
शौरसेनी, मागधी के पैशाचीनां उदाहरणो मात्र एक ज लिंगमां मूकेलां छे पण अभ्यासिए एनां त्रणे लिंगी रूपो पोतानी मेळे समजी लेवां.
पैशाचीना सह्यभेदी वर्तमान कृदंतनी विशेषता जणावेली छे. ( कोइ पण भाषानुं रूप करती वखते ' वर्ण-विकार' ना नियमो लक्ष्यमां राखवा )
भूतकृदंत
कतरि भूतकृदन --- सह्यभेदी भूतकृदंत
१ जूओ पृ० २९४ प्रेरक सहार्भेद.
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१ धातुना अंगने 'अ''द' अने 'त' लागवाथी तेनुं ( बन्ने
जातनुं ) भूतकृदंत बने छे. २ 'अ''द' अने 'त' प्रत्यय पर रहेतां पूर्वना । अ' नो 'इ' थाय छे. ('द' शौरसेनी, मागधी अने अपभ्रंशमां वप
राय छे अने 'त' पैशाचीमां वपराय छे.) कर्तरि भू०३०-गम+अगमिओ गमिदो, गमितो (गतः)
___ चल+अ चलिओ चलिदो, चलितो(चलितः)इत्यादि. सह्यभेदी भू० कृ०-कर+अकरिओ करिदो, करितो कडो (कृतः कट:) पढ+अ पढिओ पढिदो, पढितो गंथो (पठितो
ग्रन्थः ) इत्यादि. हस+अ हसिअं हसिदं, हसितं (हसितम्) लस+अ लसि लसिर्द, लसितं ( लसितम् ) तुर+अ-तुरिअं तुरिदं, तुरितं (त्वरितम्) इत्यादि. सुस्सूस+अ-सुस्मृसिरं सुस्मृसिदं, सस्सूसितं
(शुश्रूषितम्) चंकम+अ-चंकमि चंकमिदं, चंकमितं (चङमितम्)
झा +अ झायं झादं, झातं (ध्यातम् ) १ प्राकृतमां भूतकृदंतने माटे मात्र 'त (अ)' प्रत्यय वपराय छे, पालिमा ए 'त' उपरांत संस्कृतमा 'क्तवतु' नी पेठे बीजो 'तवंतु ' प्रत्यय पण वपराय छः
त-हुतो (हुतः)
तवंतु-हुतवा (हुतवान्) स्त्री० हुतवती (हुतवती)
- भूतकृदंतने लगती पालिनी प्रक्रिया संरकृतनी प्रक्रिया साथे भळती आवे छे-पालि प्र० पृ० २५१-२५३ प्रा० ३९
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प्रेरक
प्रेरणासूचक
नई कर्या पछा
लु +अ लुअं लुदं, लुतं (लूनम् )
हू +अ-हूअं हुई, हूतं ( भूतम् ) प्रेरक भू० कृ०--
१ धातुने प्रेरणासूचक आवि ' प्रत्यय लगाड्या पछी अथवा धातुना उपान्त्य 'अ' नो दीर्घ कर्या पछी भूतकृदंतनो 'अ' प्रत्यय लगाडवाथी तेनुं प्रेरक भूतकृदंत बने छे. कर- करावि+अ--कराविअं कराविदं, करावितं (कारितम् )
कारि+ अ-कारिअं कारिद, कारितं हस-- हसावि+अ-हसाविअं हसाविदं, हसावितं (हासितम्)
हासि+ अ-हासिअं. हासिदं, हासितं इत्यादि
आर्ष ग्रंथोमां के अर्वाचीन प्राकृतमा केटलेक स्थळे संस्कृतनां सिद्धरूपो उपरथी पण भूतकृदंतनां रूपो बनाववामां आव्यां छः
गतम्- गयं । मतम्- मयं । कृतम्- 'कडं । . हृतम् - हडं । मृतम्-. ... .. मर्ड। जितम्- जि।
तप्तम्- तत्तं । वगेरे भविष्यत्कृदंत--
धातुना अंगने • संत' ' समाण' अने सई' प्रत्यय लगा१ जूओ पार्नु ६६-त-ड. २ स्स + अंत = स्संत । स्स+माण- समाण ।
स्स + ई = सई. जूओ पृ० २९९ वर्तमानकृदंत.
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डवाथी तेनुं भविष्यत्कृदंत' बने छः
करिष्यन्-करिस्संतो (शौ० मा० करिस्संदो ) इत्यादि । करिष्यमाणः--करिस्समाणो इत्यादि।
हेत्वर्थकृदंत १ धातुना अंगने टुं' अने ' त्तए' प्रत्यय लगाडवाथी तेनुं हेत्वर्थकृदंत' बने छे. .
२ उपर जणावेला त्रणे प्रत्ययो ( ' तुं' 'दु' अने 'तए') पर रहेता पूर्वना ' अ 'नो इ' अने 'ए' थाय छे.
(दु' शौरसेनी, मागधी अने अपभ्रंशमा वपराय छे अने प्राकृत तथा पैशाचीमा 'तुं' वपराय छे.) १ भविष्यत्कृदंतनां पालिरूपो आ प्रमाणे छः -गमिस्सं ( गमिष्यन् ) स्त्री-गमिस्सती
___ गमिस्संती करिस (करिष्यन्)
चरिस्सं (चरिष्यन्) 'गमिष्यन् ' वगेरे सिद्धरूपोने छेड़े रहेला 'न् 'नो अनुस्वार करवाथी पालिनां 'गमिस्सं' वगेरे रूपो तैयार थयेला छे-पालिप्र० पृ. २४८-२४६
२ पालिभाषामां हेत्वर्थकृदंत करवाने माटे धातुने 'तुं तवे' 'ताये' अने ' तुये ' प्रत्ययो लगाडवामां आवे छे :
मंतुं । कातवे ( कर्तुम् ) नेतवे ( नेतुम् ) दक्खिताये ( द्रष्टुम् ) गणेतुये (गणयितुम् ) वगेरे.
-जूओ पालिप्र० पृ• २५७-२५८.
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________________
तुंदुं
1
भण्-भण+तुं भणिउं भणेउं भणिदु, मनितुं (भणितुम्भणवाने माटे हस् - हस + तुं - हसिउं, हसेउं हसितुं, हसितुं ( हसितुम् - हसवाने माटे) हो - होअ-तु-होइउं, होए ं होइदुं, होइतुं (भवितुम् - थवाने माटे) भण्-भणावि+तुं भणाविरं भणाविदु, मनावितुं ( भणाववा माटे ) कर करावि + तुं - कराविडं कराविदं, करावितुं ( कराववा माटे ) कर कार +तुं कारिडं, कारेउं कारिढुं, कारितुं ( कराववा माटे ) हम् -हास + तुं- हासिउं, हासेउं हासिदु, हासितुं ( हसाववा माटे ) शुश्रूष्- सुस्सूस+तुं सुस्सूसिउं, सुस्सूसेउं मुस्सूसिदं, सुस्सूसितुं ( शुश्रूषा करवा माठे )
चङ्क्रम्य
चङम्य - चंकम + तुं - संकमिउं, चकमेउं चकमिदं, चंकमितं
कृ + तुं + तुं त्वर् + तुं
ग्रहू
दृश् + तुं भुज् + तुं
मुच् + तुं
रुद् + तुं
वच् + तुं
1
1
F
Pad
इ =
तुर् + तुर् + एउं दह् + उ॑ =
( द्रष्टुम )
भोत् + तुं
भोत्तुं
( भोक्तुम् )
मोत् +
तुं
मोत्तुं
( मोक्तम् )
तुं
( रोदितुम् )
रोत् + रो वोत् + तुं = वोत्तं
( वक्तुम् )
१ प्रेरक हेत्वर्थकृदंतनी रचना प्रेरक भूतकृदंतनी जेवी ज छे,
Mod
३०८
"
( चंक्रमण करवा माटे ) इत्यादि.
अनियमित हेत्वर्थकृदंत
का + उ = काउं
घेत् + तुं = घेतं
तुरिंडं
तुरेडं
11
=
ז!
( कर्तुम् )
( ग्रहीतुम् )
(त्वरितुम् )
दट्ठे
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________________
'तए 'कर - कर + तए = करेत्तए ।
करित्तए । सिज्झ् - सिज्झ + ए = सिज्झित्तए (सेद्धम् ) उववज्जू - उववज्ज + तए - उववजितए ( उपपत्तम् ) विहर् - विहर + तए = विहरितए (विहर्तुम् ) पास - पास + तए = पासिसए (द्रष्टुम् ) गम् - गम + तए = गमित्तए (गन्तुम् ) "पवन - पव्वज + त्तए = पव्वइत्तए (प्रवनितुम् )
आहर् - आहार + तए = आहारित्तए ( आहर्तुम् ) दल - दल + इत्तए = "दलइत्तए (दातुम् ) अच्चासाद्- अच्चासाद + ए = अचासादेत्तए ( अत्याशात
यितुम् ) १ विशेषे करीने आ प्रत्ययनो उपयोग आर्षग्रंथोमां थएलो छे. वैदिक संस्कृतना अने पालिना तुमर्थक तवे' प्रत्ययनी साथे आ 'त्तए ' प्रत्ययनी विशेष समानता छे (जूओ पाणिनि-३-४-९ वैदिक प्र० तथा पृ० ३०७ नी १ टिप्पणी.
२ " अंतं करेत्तए " " सिज्झित्तए "" देवत्ताए उपवजित्तए " " भुंजमाणे विहरित्तए "-भगवतीसू० श० ७, उ०७ पृ. ३११ स.
३ रूवाइं पासित्तए" देवलोगं गमित्तए "-भगवतीसू० श. ७, उ० ७ पृ० ३१२ स..
४ " पवजाए पव्वइत्तए "" अप्पणा आहारित्तए ""-सुणयाणं दलहत्तए "-भगवतीसू० श. ३, उ० २ पृ० १७१ स०.
५ आर्षताने लीधे 'हर' नो 'हार' थयो छे. ' ६ आर्षताने लीधे अहीं 'इ' आगमरूपे थयो छे.
७ " सयमेव अच्चासादेत्तए"-भगवतीसू० श. ३, उ. २ पृ० १७२ स०.
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________________
३१०
'सममिलोक - समभिलोक + राए
अपभ्रंश
धातुना अंगने ' एवं ' अण
' एप्पिणु ' ' एवि ' अने ' एविणु' प्रत्यय लगाडवाथी अपभ्रंशनुं
हेत्वर्थदंत बने छे.
एवं
चय्
दा
अण
भुंज्
कर
सेव
भुंज्
+
अणहं-
मुंच्
भुंजू
+
कर्
जि
+ अण
+ अण
अणहिं-
+ अहं
+
अणहं
+
एप्पि -
+
एवं
एवं
+
अणहिं अणहिं
एप्पि
एप्पि
३० २ १० १६८ स०,
5
=
= देवं
D) 11
=
सममिलोएत्तए ( समभिलोकितुम् )
= सेवणहं
भुंजण हं
=
' ' अहं ' 'अणहिं' 'एप्पि'
=
चएवं
=
= मुंचणहिं
भुंज हिं
भुंजा
करण
करेप्पि
जोप्प
( त्यक्तुम् )
( दातुम् )
( भोक्तुम् )
( कर्तुम् )
( सेवितुम् )
( भोक्तुम् )
( मोक्तम् )
( भोक्तुम् )
( कर्तुम )
( जेतुम् )
"C
८ सपडिदिर्सि समभिलोएत्तर " - भगवतीसू० श०
३
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________________
एप्पिणुकर + एप्पिणु ८ करेप्पिणु ( कर्तुम् ) चय् + एप्पिणु = चएप्पिणु (त्यक्तुम् ) - एविकर् + एवि = करेवि ( कर्तुम् ) पाल् + एवि = पालेवि (पालयितुम् ) __ एविणुकर + एविणु - करविणु ( कर्तुम् ) ला + एविणु = लेविण (लातुम् )
केटलेक स्थळे संस्कृतना सिद्ध रूपो उपरथी पण हेत्वर्थकृदंतनां रूपोने बनावेलां छे: लब्धुम्
लर्छ । रोद्धम्
रोळ्।
जोद्धं । कर्तुम् - 'कटुं। वोरे संबंधकभूतकृदंत
१ धातुना अंगने — तुं' 'अ' ' तूण' 'तुआण' इत्ता' १ जूओ पार्नु ३५ त-ह नि० २९
२ 'इत्ता', 'इत्ताण', 'आय' अने' आए' प्रत्ययनो उपयोग खास करीने आपप्राकृतमां थएलो छे. पालिमा आ अर्थमा 'त्या' (क्यांय ' इत्वा' (आर्षप्रा०-' इत्ता') 'त्वान' (क्यांय ' इत्वान' ) (आर्षप्रा.-' इत्ताण' ) अने 'तून ' (प्रा० 'तून' के 'ऊण') प्रत्ययनो उपयोग थाय छे:स्वा-कत्वा, करित्वा ( आर्षप्रा० करिता) (कृत्वा)
गंस्वा . . .. . (गत्वा)
योद्धम्
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________________
३१२
इत्ताण आय' अने' आए' प्रत्यय लगाडवाथी तेनुं संबंधक
+ .
भूतकृदंत बने छे.
L
शौरसेनी अने मागधीमां संबंधकभूतकृदंत करवा माटे धातुने
प्रत्ययो पण
' इय' अने ' दूण' प्रत्यय लागे छे तथा प्राकृतना ' त 'कारादि द 'कारादि करीने लगाडाय छे अने ' इता
}
C
हंत्वा
जहित्वा । जहत्वा f
छिंदित्वा ( आर्षप्रा०
छिंदित्ता )
सुणित्वा ( "
सुणित्ता )
जिनित्वा (
जिणित्ता)
पापुणित्वा (आर्षप्रा० पापुणित्ता )
तून कत्तून
गंतून
हंतून
त्वान-- कत्वान
गंवान
हंत्यान
जहित्वान ( आर्षप्रा० जहित्ताण )
( हत्वा )
( हित्वा )
( हात्वा )
(छिच्चा)
( श्रुत्वा )
(जिल्ला)
( प्राप्य )
"
संस्कृतमां जेम उपसर्गवाळा धातुने साढ़े वत्वा ने बदले
नथी ) पण बनेलुं छेः उपनीय
•
"
थ वपराय छे तेम पालिमां ( पालिमा उपसर्ग होवानो कांइ नियम
2
अभिवंदिय
अभिज्ञाय ( शा + त्वा )
( नी + त्वा )
(वन्द् + इत्वा )
आर्षप्राकृतमां पण < आय' अने' आए छेडावाळां संबं
धक भूतकृदंतो मळे छे ते आ पारिनां 'य' छडावाळां रूपो साथे मळतां आवे छेपालि प्रा० पृ० २५५-२५६
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________________
३१३
' इत्ताण' प्रत्ययो पण वपराय छे.
पैशाचीमा ए अर्थमां · तून ' प्रत्यय वपराय छे.
अपभ्रंशमां ए अर्थमां 'इ'' इउ' 'इवि' अने ' अवि ' तथा ' एप्पि,' ' एप्पिणु,' 'एवि' अने 'एविणु' प्रत्ययनो व्यवहार थाय छे.
२ अपभ्रंश सिवायना उपर जणावला बीजा प्रत्ययो पर रहेतां प्रयोगानुसारे पूर्वना · अ' नो 'इ' अने 'ए' थाय छे.
३ केटलेक ठेकाणे प्राकृतना त 'कारादि प्रत्ययोना 'त' नो लोप पण थइ जाय छे (जओ असंयुक्त ' कादि । लोप पृ० १० नि० २)
४ उपर जणावेला प्रत्ययोमा जे प्रत्ययो 'ण' छेडावाळा छे तेने अंते विकल्पे अनुस्वार थाय छे. अपवाद-शौरसेनी
' शौरसेनीमा 'कृ' अने 'गम्' धातुनुं संबंधक भूतकृदंत 'कडुअ' अने — गडुअ' बने छेः (कृ + अडुअ = कडुअ-कृत्वा ( गम् + अडुअ = गडुअ-मत्वा) अपवाद-पैशाची __ष्ट्वा ' छेडावाळां संस्कृत रूपोर्नु संबंधक भूतकृदंत करवा माटे पैशा मां ए 'या' ने बदले 'खून' अने ' त्थून ' वापरवामां आवे छः
नढून, नत्थून ( सं० नंष्ट्वा )
तद्भून, तत्थून ( सं० तष्ट्वा ) वगेरे अपवाद-अपभ्रंश . मात्र एक · गम्' धातुनुं संबंधक भूतकृदंत करवा माटे अपप्रा००
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________________
३१४ भ्रंशना उपर्युक्त प्रत्ययो लगाडवा उपरांत : प्पि' अने : प्पिणु' प्रत्ययो पण लगाडवाना छः
गम् + प्पि = गम्प्पि – गत्वा ।
गम् + प्पिणु = गम्प्पिणु- गत्वा । भाषावार उदाहरणो प्राकृत हस– हस + तु = हसिउं, हसेउं, (हसित्वा ) हो- होअ +तुं = होइउं, . होएउं, ( भूत्वा ) हस्- हस + अ = हसिअ, हसेअ, ( हसित्वा ) हो- होअ + अ = होइअ, होएअ, ( भूत्वा ) हस्- हस + तूण = हसिऊण, हसिऊणं, हसेऊण, हसेऊणं
( हसित्वा) हो- होअ + तूण = होइऊण, होइऊणं, होएऊण, होएऊणं
( भूत्वा ) हस्- हस + तुआण-हसिउआण, हसिउआणं, हसेउआण, हसेउआणं
( हसित्वा) हो- होअ+ तुआण होइउआण, होइउआणं, होएउआण,होएउआणं
( भूत्वा ) भण-भणावि + तुं = भणाविउँ ( भाणयित्वा) . , + अ = भणाविअ
+ तूण = भणाविऊण, भणाविऊणं ., + तुआण = भणाविउआण, भणाविउआणं
- १.आ प्रेरक संबंधक भूतकृदंत छे अने एनी रचना प्रेरक भूतकृदंतनी जेवी छ।
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________________
भण्-भाण + तुं = भाणिउं, भाणेउं
, + अ = भाणिअ, भाणेअ ,, + तूण-- भाणिऊण, भाणिऊणं; भाणेऊण, भाणेऊणं ,, + तुआण, = भाणिउआण, भाणिउआणं, भाणेउआण,
भाणेउआणं कर-करावि+ तुं = कराविडं ( कारयित्वा )
" + अ = करावि , + तूण= कराविऊण, कराविऊणं
,, + तुआण, कराविउआण, कराविउआणं ,, कार + तुं = कारिउं, कारेउं
, + अ = कारिअ, कारे " +तूण = कारिऊण,कारिऊणं, कारेऊण, कारेऊणं
" तुआणं,कारिउआण कारिउआणं कारेउआण,कारेउआणं शुश्रूष्-सुस्सूस + तुं = सुस्मृसिउं, सुस्सूसेड
, + अ = सुस्मृसिअ, सुस्ससेअ , + तूण- सुस्सूसिऊण सुस्सूसिऊणं, सुस्सूसेऊण,
सुस्सूसेऊणं ,, +तुआण-सुस्सूसिउआण, सुस्सूसिउआणं, मुस्सूसेउआण
सुस्सूसेउआणं. चकम्य-चंकम+ तुं = चंकमिउं, चंकमेउं
, + अ = चंकमिअ, चंकमेअ , + तूण = चंकमिऊण, चंकमिऊणं; चंकमेऊण, चंकमेऊणं " +तुआण-चंकमिउआण, चंकमिउआणं, चंकमेउआण,
चंकमेउआणं.
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________________
३१६ कर- इत्ता = करिता (कृत्वा) कर- इत्ताण = करित्ताण, करित्ताणं कह- इत्ता = कहित्ता, ( कथयित्वा) कह- इत्ताण = कहिताण, कहिताणं गम- इत्ता = गमिता,
(गत्वा) गम- इत्ताण = गमित्ताण, गमित्ताणं . गह+ आय = 'गहाय
( गृहीत्वा) संपेह आए = संपेहाए (संप्रेक्ष्य) आया आए = आयाए
( आदाय) शौरसेनी, मागधी
( भूत्वा)
(पठित्वा)
हो + इय - हविय, होता " + दूण = होदूण , पढ + इय = पढिय, पढित्ता पढ + दूण = पदिदूण , रम + इय = रमिय, रंता
रम + दूण = रंदूण , पैशाची
( रन्त्वा )
+
तून = गंतून ( गत्वा ) रम् + तून = हसितून ( हसित्वा ) पढ + तून = पढितून (पढित्वा ) कध + तून = कधितून ( कथयित्वा )
१ भगवतीसूत्र० रा० श० ३, उ० २-" रयणाणि गहाय" " पडिग्गहियं गहाय "-पृ० १७०-१७१.
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________________
अपभ्रंश
कृ
""
79
>"
ग्रहू + तुं
+
1235
"
"
त्वर् + तुं
31
दृश्
लह + इ
कर + इउ
करिउ
कर + इवि
= करिवि
कर + अवि
करवि
कर + एप्पि = करेप्पि
कर + एप्पिणु = करेप्पिणु
कर + एविणु एविणु = करेविणु
कर + एवि
करेवि
( लब्ध्वा )
( कृत्वा )
("1 >
( >
"
(17 >
(,, >
)
( >
91
अनियमित संबंधक भूतकृदंत ( प्राकृत )
=
+ तुं
+ तूण
= लहि
+ तुं
+ तूण
+ आण-काउआण, काउआणं.
घेतं,
घेचूण, घेत्तृणं,
=
+ अ 11
ऋण =
काउं,
= काऊण, काऊणं,
+ उआण =
-
तूण
+ तुआण = त्रेत्तुआण, घेत्तुआणं.
= तुर + उ
३१७
1
"
=
=
( ”
"
= तुरिडं,
तुरेडं,
+ अ = तुरिअ, तुरेअ,
+ ऊण = तुरिऊण, तुरिऊणं; तुरेऊण,
तुरेऊणं.
+ उआण तुरिउआण, तुरिउआणं; तुरेउ
27
आण, तुरेउआणं.
दइ + उं
दहुँ
= दट्ठ + ऊ = दहूण, दहूणं
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________________
३१८
" + तुआण = दट्ठ + उआण-ददुआण, ददुआणं. भुंन + तुं = भोत् + तु = भोत्तुं, . " + तूण = + तूण = भोतूण, भोत्तूणं, " +तुआण = , + तुआण- भोत्तुआण, भोत्तुआणं. मुच् + तुं = मोत् + तुं = मोत्तुं ,, + तूण = " + तूण = मोतूण, मोतूंणं
+ तुआण= " + तुआण - मोतुआण, मोत्तुआणं. रुद् + तुं = रोत् + तुं - रोतुं ,, + तूण = रोत् + तूण = रोत्तूण, रोत्तूणं ,, +तुआण = रोत् + तुआण = रोत्तुआण, रोत्तुआणं. वच् + तुं = वोत् + तुं = वोत्तुं, ,, + तूण = वात् + तूण = वोत्तूण, वोत्तूणं, ,, + तुआण- वोत् + तुआण = वोतुआण, वोत्तुआणं. वन्द + तु = वंदित्तुं, बंदित्तु.
[संस्कृतनां सिद्ध संबंधक भूतकृदेतो पण थोडा फेरफार साथे प्राकृतमा वपरायां छः आदाय-आयाय
वन्दित्वा--वंदिता. . गत्वा-गता, गच्चा.
विप्रनहाय–विप्पनहाय. ज्ञात्वा-नच्चा.
श्रुत्वा-सोचा. नत्वा-नच्चा.
सुत्प्वा-सुत्ता. बुढा-बुज्झा.
संहृत्य-साहटु. भुक्त्वा-भोच्चा.
हत्वा-हंता मत्वा-मचा, मच्चा.
इत्यादि
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________________
'विध्यर्थ-कृदंत
विध्यर्थ कृदंतनी साधना विध्यर्थ कृदंतना संस्कृत सिद्ध रूपो उपरथी करवानी छे, तो पण तेने लगता केटलाक प्राकृत प्रत्ययो आ रीते छः . १ धातुने तव्व,' (शौ० दव') 'अणिज' अने 'अणीअ' 'प्रत्यय
लगाडवाथी तेनुं विध्यर्थ-कृदंत बने छे. २ . तव्व ' अने ‘दव्व' प्रत्यय पर रहेतां प्रायः पूर्वना 'अ' नो 'इ' तथा 'ए' थाय छे. १ विध्यर्थ कृदंतो सह्यभेदी होय छे.
२ विध्यर्थ कृदंत माटे पालिमा 'तव्य,' 'तय्य, ' 'य. अने ' अनीय ' प्रत्यय वपराय छे:--
भवितव्वं ( भवितव्यम् ) बुज्झितव्वं ( बोद्धव्यम् ) सयितव्यं (शयितव्यम् )
( ज्ञातव्यम्) पत्तय्यं
(प्रासव्यम् ) दट्टय्यं ( द्रष्टव्यम् ) देश्य
( देयम्) ( मेयम् )
(कृत्यम्) भच्चो
... (भृत्यः ) वृद्धिवाळो य ।कारियं ( कार्यम् ) Jहारियं
( हार्यम्) अनीय-- भवनीय
सयनीय पापणीयं . (प्रापणीयम्
पालिप्र. पृ० २५४
जातव्यं
य
मेय्यं
कच्च
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________________
३२०
३ विध्यर्थ - कृदंतने लागेल संस्कृत य' प्रत्ययने स्थाने प्राकृ
तमां ' अ ' पण लागे छे.
सिद्ध रूपो उपरथी बनतां विध्यर्थ- कृदंतो-
कार्यम् – कज्जं ।
-
।
. किञ्च ।
कृत्यम् ग्राह्यम् - गेज्झं ।
Gall
गुह्यम् - गुज्झं ।
वर्ज्यम् वज्जं ।
वाच्यम् - वच्चं । वक्कं ।
वाक्यम्
जन्यम् – जन्नं ।
भृत्यः भिच्चो ।
भार्या
अर्यः
—
गेयम् - गेज्जं, गेयं । इत्यादि ।
I
-
वद्यम् - वज्जं ।
-
भव्यम् - भव्वं ।
अवद्यम् - अवज्जं ।
तव्य - हस - हंसिअव्वं, हसेअव्वं, हसितव्वं, हसेतव्वं । हसाविअव्वं,
हसावितव्वं ।
भज्जा ।
अज्जो ।
च - पेयम् - पेज्ज, पेअं । पेया- पेज्जा, पेआ ।
I
आर्यम् - अज्जं ।
पाच्यम् - पच्चं । इत्यादि ।
।
शौ० हसिदव्वं, हसेदव्वं, हसाविद । सुस्सूसितव्वं, सुस्त, सुस्सूसिअन्नं, सुस्सूसेअन्वं । चकमितव्वं, चंकमेतव्वं, चकमिअव्वं, चकमे अन्वं । हो-होत, होअव्वं । चि चिव्विवं चिव्वे अव्वं,
चिव्वितव्यं, चिव्वेतव्वं ।
ज्ञा-नातव्वं, नायव्वं । अणिज्ज | हसणिज्जं, हसणीअं, हसावणिज्जं, हसावणीअं, अणीअ किरणिज्जं, करणीअं सुस्सूसणिज्जं, सुस्सूसणीअं, चकमणिज्जं, चंक्रमणीअं,
वच -- वयणिज्जं, वयणीअं । इत्यादि ।
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________________
३२१
-अनियमित विध्यर्थ कृदंत - ग्रह-तव्व-घेत्तव्वं । रुद्-तन्व-रोत्तव्वं । भुज-तव्व-भोत्तव्यं ।
कृ-तव्व-कातवं वच्-तव्व-वोत्तन्वं ।
कायवं मुच्-तत्व-मोत्तव्वं । त्वर-तव्व-तुरिअव्वं, तुरेअव्वं । दृश्-तव्व-दहव्वं ।
तुरितव्वं, तुरेतव्वं । विध्यर्थ कृदंत ( अपभ्रंश )---
प्राकृतमां वपराता 'तव्व' प्रत्ययने बदले अपभ्रंशमां ‘इएव्वउं,' ' एवउं' अने ' एवा' प्रत्यय वपराय छे
कर + इएव्वळ = करिएव्वउं - कर्तव्यम् । कर + एव्वउं - करेव्वउं कर + एवा = करेवा मर + इएव्वउं = मरिएल्वउं - मर्तव्यम् । मर + एवढं = मरेव्वउं मर + एवा = मरेवा सह + इएव्वउं - महिएव्वउं ... सोढव्यम् । सह + एव्वळ - सहेबउं सह + एवा = सहेवा सो + एवा = सोएवा - स्वप्तव्यम् । जग्ग + एवा = जग्गेवा ... जागरितव्यम् ।
प्रा
६१
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________________
રરર
कतरिकृदंत' धातुने 'इर' प्रत्यय लगाडवाथी तेनुं कर्तृसूचक कृदंत बने छेः हस-इर-हसिरो (हसनार ), हसिरा, री (हसनारी), हसिरं
(हसनारुं)। हसाव-इर--हसाविरो (हसावनार)-रा, री ( हसावनारी), रं
(हसावनारुं)। त्वर-उर-तुरिरो (त्वरा करनार) इत्यादि.
कर्तृसूचक कृदंतनी साधना, कर्तृसूचक कृदंतनां संस्कृत सिद्ध रूपो उपरथी पण थाय छे: पाचक:--पायगो, पायओ । नायक-नायगो, नायओ । नेता-नेआ। कर्ता-कत्ता । वक्ता-वत्ता । भर्ता-भता । कुम्भकारः-कुंभआरो। कर्मकरः कम्मगरो । स्तनधयः--थणंधयो । परंतपः-परंतवो ।
लेखक:-लेहओ इत्यादि । कतरिकृदंत ( अपभ्रंश) प्राकृतमा वपराएला ‘इर' ने बदले अपभ्रंशमां · अण' प्रत्यय लगाडवाथी कर्तृसूचक कृदंत बने छ :
मार + अणअ = मारणअ = मारणउ - मारक : बोल्ल - अगअ = बोलणअ = बोल्लगर - वाचक:
१ कर्तरिकृदंतनुं रूप बनाववा माटे पालिमां प्राकृतना 'इर' ने पद ले केटलाक खास धातुथी 'अ' प्रत्यय वपराय छे अने एज अर्थसूतकालने का साधवा माटे साधारण रीले 'सावी' प्रत्यार वापराप छ:--
3-- विदू ( वेत्तः) स्त्री विदुनी. तावी- भुत्तावी (भुक्तवान् ) स्त्री. भुत्ताविनी.
-पालिप्र० पृ० २५०-२५१.
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________________
३२३ वज्ज + अणअ = वज्जणअ = वज्जणउ - वादक : भस + अणअ = भसणअ = भसणउ - भषक : जा + अणअ = जाणअ = जाणउ - ज्ञायक :
प्रकरण १४
तद्धित १ . 'तेनुं आ' ए अर्थमां नामने 'केर ' प्रत्यय लागे छे अने अपभ्रंशमां · 'आर' प्रत्यय लागे छे. अस्मद् + केर = अम्हकेरें ( अस्माकमिदम् अस्मदीयम् )
अप० अम्हारु, महारु, युष्मद् + केर = तुम्हकेरं (युष्माकमिदम् युष्मदीयम् ) ___ अप० तुम्हारु, तुहारु, पर न केर = परकेरं (परस्य इदम् परकीयम् ) राज + केर = रायकरें (राज्ञः इदम् राजकीयम् )
२ . "तेमां थएल ' ए अर्थमा नामने ' इल्ल' अने उल्ल' प्रत्यय लागे छः इल्ल-गाम + इल्ल = गामिल्लं (ग्रामे भवम् ) स्त्री० गामिल्ली । १ संस्कृतनी पेठे पालिमां आ अर्थमा 'ईय' प्रत्यय वपराय छः मदनीयं (मदनस्य स्थानम् )
पालिप्र० पृ. २६० २ आ 'आर' प्रत्यय प्रायः 'युष्मद् ''अस्मद् ' ' त्वत्' अने ' मत् ' शब्दोने लागे छे. ३ 'तनिश्रित' अर्थमां पालिमा 'ल' प्रत्यय वपराय छः
दुछु निश्रितम् = दुटल्लं वेदनिश्रितम् = वेदलं
पालिप. पृ० २६०
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________________
३२४
पुर + इल = 'पुरिलं ( पुरे भवम् ) स्त्री० पुरिल्ली । अधस् + इल = हेटिलं (अधो भवम् ) स्त्री० हेझिल्ली ।
उपरि + इल = उवरिल्लं (उपरि भवम् ) उल्ल----आत्म + उल = अप्पुलं (आत्मनि भवम्)
तरु + उल्ल = तरुलं (तरौ भवम् ) नगर + उल = नयरुलं ( नगरे भवम् )
इत्यादि । ३ : तेनी जेवू ' ए अर्थमां नामने 'व' प्रत्यय लागे छः ____ महुरत्व पाडलिपुत्ते पासाया (मथुरावत् पाटलिपुत्रे प्रासादाः)
४ . पणुं' अर्थमां नामने 'इमा' 'त' अने । तण' प्रत्यय लागे छे अने अपभ्रंशमां ‘प्पण' प्रत्यय पण लागे छेः
पीण + इमा = पीणिमा ( पीनत्वम् ) पीण + त्तण - पीणत्तणं, पीण + त्त = पीणतं । पुप्फ + इमा = पुप्फिमा ( पुष्पत्वम् )
पुप्फ + तण = पुप्फत्तणं, पुप्फ + त = पुप्फत्तं । अप० वड्ड + प्पण - वड्डप्पणु, वडत्तणु वगेरे ( वृद्धत्वम् )
विहु + प्पण = विहुप्पणु, विहुत्तणु वगेरे (विभुत्वम् ) १ 'जात' अर्थमां पालिमा 'इम' प्रत्यय आवे छे:पश्चात् जातः = पच्छिमो। उपरि जातः = उपरिमो । पुरा जालः = परिमो! अधो जातः = हेट्ठिमो ।
ग्रन्थे जातः = गंथिमो
पालिप्र. पृ० २५९-२६०. २ आ अर्थमां पालिमा 'त्तन' (प्रा० तण) प्रत्यय आवे छः " ... पुथुज्जनस्स भावो पुथुज्जनत्तनं (पृथग्जनत्वम् )
पालिप्र० पृ० २६१
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________________
३२५
५ ‘वार ' अर्थमां नामने 'हुत्त ' (आर्ष-खुत्त') प्रत्यय लागे छे:
एक + हुत्त = एगहुत्तं (एककृत्व:-एकवारम् ) द्वि + हुत्त = दुहुतं (द्विवारम् ) त्रि + हुत्त = तिहुतं (त्रिवारम् ) शत + हुत्त = सयहुचं (शतवारम् )
सहस्र + हुत = सहस्सहुत्तं ( सहस्रवारम् ) ६ वाळु' अर्थमा आवता नामने लागता । मतु' प्रत्ययने स्थाने आल ' 'आलु' इत्त ' 'इर' - इल्ल' ' उल्ल' 'मण' मंत' अने 'वंत' प्रत्यय पराय छः आल- रस + आल = रसालो ( रसवान् )
जटा + आल = जडालो ( जटावान् ) ज्योत्स्ना+ आल = जोण्हालो ( ज्योत्स्नाकान् ) शब्द + आल = सद्दालो (शब्दवान् ) फटा + आल = फडालो ( फटावान् ) १ सं० कृत्वस्-कुत्त-खुत्त-हुत्त-जओ खादिनो 'हपृ० १९. २ 'वार' अर्थमा पालिमा 'क्वत्तुं' (सं० कृत्वस्) प्रत्यय वपराय छः
एकक्वत्तुं (एकवारम् ) द्विक्खत्तुं (द्विचारम्) तिक्तत्तुं (त्रिवारम्)
पालिप्र० पृ. २६१ आर्षप्राकृतमा आ अर्थमां ' खुत्त' (पालि-ख) प्रत्यय पण आवे छेः
तिक्खुत्तो"तिखुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ -
भग० स० पृ० २३५ पं. २ " महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ "
(सू० द्वि० श्रु० अ० ७ पृ. ४२५ पं० २ स.) " पत्तो अणंतखुत्तो" जीवविचारनी छेल्ली गाथा.
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________________
३२६
॥
+
॥
॥
आलु- इर्ष्या + आलु = ईसालू (ईर्ष्यावान् )
दया + आलु = दयालू ( दयावान् ) नेह + आलु = नेहालू (स्नेहवान् ) लज्जा + आलु = लज्जाळू ( लज्जावान् )
स्त्री० लजालुआ (लन्नावती) काव्य + इत्त = कव्वइतो ( काव्यवान् )
मान + इत्त = माणइत्तो ( मानवान् ) इर- गर्व + इर = गम्विरो (गर्ववान् )
- रोहरो ( रेखावान् ) इल्ल
शोभा + इल्ल = सोहिल्लो ( शोभावान् ) छाया + इल्ल = छाइलो (छायावान् )
याम + इल्ल = जामइल्लो ( यामवान् ) उल्ल- विचार + उल्ल = वियारुल्लो ( विचारवान् )
विकार + उल्ल = वियारुल्लो (विकारवान् ) श्मश्रु + 'उल्ल = मंसुलो ( श्मश्रुमान् ) दर्प + उल्ल = दप्पलो (दर्पवान् ) धन + मण = धणमणो ( धनवान् ) शोभा + मण = सोहामणो (शोभावान् )
भी + मण = बीहामणो ( भीमान् ) मंत- हनु + मंत = हणुमंतो ( हनुमान् )
= सिरिमंतो (श्रीमान् ) पुण्य + मंत = पुण्यमंतो (पुण्यवान् ) वंत- धन + वंत = धणवंतो ( धनवान् )
भक्ति + वंत = मत्तिवतो ( भक्तिमान् )
७ संस्कृतमा आवता ' तस्' प्रत्ययने स्थाने 'तो' अने 'दो' विकल्पे वपराय छे
॥
॥
॥
+
॥
॥
॥
॥
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________________
सर्व +
तस्
एक + तस्
+ तसू
अन्य
किम् +
यत् +
=
=
=
लागे छे :
अ
=
=
=
तस्
तस्
तत् + तस्
इदम्
+ तस्
८ संस्कृतमां वपराता प्' प्रत्ययने स्थाने प्राकृतमां 'हि', ह' अने ' त्थ' प्रत्यय वपराय छे:
6
३२७
सव्वत्तो, सव्वदो, सव्वओ ( सर्वतः )
एकत्तो, एकदो, एकओ ( एकतः )
अन्नतो, अन्नदो, अन्नाओ (अन्यतः )
कतो,
=
जत्तो,
तत्तो,
इतो,
जहि,
"
कुदो,
जदो,
=
=
कुओ
जओ
तदो,
इदो,
=
( कुतः )
( यतः )
तओ
इओ
यत् + त्र =
तत् + त्र = तहि, किम् + त्र = कहि,
अन्य +
त्र = अन्नहि, ९ ' अङ्कोठ' शब्द सिवाय बीजा शब्दने लागता 'तैल ' प्रत्यय स्थाने 'एल' प्रत्यय वपराय छे:
( ततः )
( इतः )
कटु + तैल [ अङ्कोठ + तैल १० नामने स्वार्थमां 'अ' 'इल' अने 'उल्ल' प्रत्यय विकल्पे
जह,
जत्थ ( यत्र )
तह,
तत्थ ( तत्र )
कत्थ
कहू, ( कुत्र ) अन्नह, अन्नत्थ ( अन्यत्र )
( कटुतैलम् )
कड्डुएलं अंकोलते (अङ्कोठतैलम् ) ]
चन्द्र + अ = चंदओ, चंदओ, चंदो चंदो ( चन्द्रकः )
हृदय + अ
हिअयअं, हिअयं ( हृदयकम् )
बहुक + अ
बहुअयं, बहुअं ( बहुकम् )
पल्लव + इल =
पल्लवो ( पल्लवः )
पल्लविल्लो, पुरिलो,
पुरा
+ इ =
पुरा ( पुरा )
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________________
पितृ + उल्ल = पिउल्लो, पिआ (पिता) हस्त + उल्ल = हत्थुलो, हत्थो ( हस्तः )
विशेषता पैशाचीमा स्वार्थिक 'अ' ने बदले संस्कृतनी पेठे 'क' वपराय छः सं० वदनकम्- प्रा० वयणयं- पै० वतनकं ।
* वतनके वतनकं समप्पेतून "
प्रा० व्या० पा० २ सू० १६४ पृ० ७० अपभ्रंशमां स्वार्थमां - अ अड,' उल्ल' • अंडअ', ' उल्लअ' अने । उल्लड' प्रत्ययो वपराय छेः
दिट्ठ + अ = दिट्ठउ (दृष्टकः ) दोस + अड = दोसड (दोषकः ) कुटी + उल्ल = कुडल्ली (कुटिका) हिअय + अडअ - हिअडडं (हृदयकम् ) चूड + उलअ चूडल्लओ (चूडकः ) बाहुबल + उल्लडअ-बाहुबलुल्लडउ (बाहुबलकः)
११ संस्कृतमां वपराता ‘पणु' अर्थवाळा (त्व, तल् ) प्रत्ययो नामने लाग्या पछी तैयार थएल ए ज नामने स्वार्थमां एना ए ज प्रत्ययो फरीवार पण लागे छे:
... मउअत्तता मृदुक + त्व - मउअत्त + ता =
। मउअत्तया ( मृदुकत्वता) १ प्राकृतरूपावतारमा 'अडड ! 'डड' 'अडुल''डुलअ' 'डडडुल' 'डुलडड' 'अडडडुल्ल' 'अडुलडटु' ' अहल्ल' 'डुलअडड डडडुलअ' 'डुलडा ' आ रीते बार प्रत्ययों पण जणावेला छे: पृ० ९५-९६-सू० ५.
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________________
३२९ अनियमित तद्धितांत रूपो एक + सि = एक्कासि ) एक + सि = एकसि ( एकदा) एक + इआ = एकआ
अ
+ मया = भुमया । (नः)
15
15.
भमया । शनैः + इअ = सणिों ( शनैः ) उपरि + ल्ल = अवरिलो ( उपरि ) ज + एतिअ = जेत्ति) ज + एत्तिल = जत्तिलं ( यावत् ) ज + एद्दह = जेद्दहं ) - अप० जेवडु, जेत्तुलो त + एत्तिअ = तेत्ति) त + एतिल = तेत्तिलं ( तावत् ) त + एदह = तेदहं ) ___ अप० तेवडु, तेत्तुलो एत + एत्तिअ = एत्तिों एस + मिल = ((एतावत् )
(इयत्)
एत + एद्दह = एहहं
अप० एवड्डु, एतुलो क + एतिअ = केत्ति) क + एत्तिल = केत्तिलं ( कियत् ) क + एद्दह = केदहं )
अप० केवडु, केत्तुलो प्रा० ४२
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________________
३३०
पर् + क
= परकं ( परकीयम् )
राय + क
= राइकं ( राजकीयम् )
अम्ह + एच्चय = अम्हेचयं ( अस्मदीयम् ) तुम्ह + एच्चय = तुम्हेचयं ( युष्मदीयम् ) सव्वंगिओ ( सर्वाङ्गीणः )
सांग+ इअ
पह + इअ
पहिओ ( पान्थः )
अप्प णय = अप्पणयं (आत्मीयम् )
+
=
नव
एक +
=
-
वैकल्पिक रूपो
+ ल = नवल्लो, नवो एकलो, एको एकलो, एको
मनाक् + अय = मणयं
·
मणियं, मणा
पीत + ल = पीअलं
( नवक: ) ( एककः )
मनाक् + इयं = मिश्र + आलिअ = मीसालिअं, मी (मिश्रम् ) दीर्घ + र = दीहर, दीहं ( दीर्घम् ) विद्युत् + ल = विज्जुला, विज्जू (विद्युत् ) पत्र + ल = पतलं, पतं (पत्रम् )
} ( मनाक् )
पीवलं, पीअं } ( पीतम् )
अन्ध + ल = अपलो, अंघो ( अन्धः )
संस्कृतनां सिद्ध तद्धितांत रूप उपरथी पण प्राकृत रूपो
बने छे:
धनिन् आर्थिकः =
= धनी धणी । तपस्विन् = तपस्वी = तत्रस्सी ।
अत्थिओ
1 राजन्यः
= रायण्णो ।
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________________
आस्तिकः = अत्थिओ । आर्षम् = आरिसं ! कानीनः = काणीणो । भैसम् = मिक्खं । मदीयम् - मईयं । वाङ्मयम् = वम्मयं । पीनता गणिया(शी०पीणदा) कौशेयम् = कोसेयं ।
(पै० पीनता) पितामहः = पिआमहो । यदा - भया ।
तदा - तया । कदा = कया ।
अन्यदा = अण्णया। सर्वदा = सन्वया । सर्वथा = सन्त्रहा।
इत्यादि.
धातुपाठ (परिशिष्ट) आठमा अध्यायना चोथा पादमा आचार्य हेमचंद्र प्राकृत धातुओने आ रीते आपे छः सूत्रांक अर्थनी दृष्ठिए हेमचंद्रे
मूळ रूपना मूकेलं मूळ रूप
आदेशो
२
कथ् प्रा० कह
वज्जर पज्जर उप्पाल पिसुण संघ बोल्ल
णिवर (दुःखकथने)
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--------------------------------------------------------------------------
________________
३३२
४ जुगुप्स् प्रा० उच्छ
(झुण
दुगुच्छं
५ बुभुक्ष् प्रा० बुहुक्ख
दुगञ्छ णीरव वोज
वजि
'व्या प्रा० झा
७
झा
{ সাত । मुण
उद्धमा
- ९ १०
उत् + 'मा श्रत् + धा पा प्रा. पि
सद्दह
[ पिज्ज
दुल
घोह
११ उत् + वा प्रा० उवा
ओरुम्मा
1 वसुआ
१२ नि + द्रा प्रा० निदा
१३ आ +ध्रा प्रा० अश्या १४ स्ना प्रा० हा १५ सम् + स्त्या
ओहीर उंच आइग्य अब्भुत्त संखा
थक्क चिट्ठ तिष्ठ (मा०चिष्ठ)
निरप्प
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--------------------------------------------------------------------------
________________
१७ उत् + स्था
। उकुक्कर १८ ग्लै प्रा० मिला
[वा
| पव्वाय १९ निर + मा
[ निम्माण
| निम्मव २० क्षि प्रा. झि
णिज्झर २१ छाद प्रा० छाय
णम नूम, णूम सन्नुम दक ओम्वाल
पव्वाल २२ नि + वृ-निवार प्रा० निवार । णिहोड
पात प्रा० पाड २३ दू २४ धवल
दुम, दूम २५ तुल
ओहाम २६ विरेच प्रा० विक ओलुंड
उल्लंड
( पल्इत्थ २७ ताड
आहोड
। विहोड २८ मिश्र प्रा० मीस
। वीसाल मिस्स
मेलव
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--------------------------------------------------------------------------
________________
२९
उत् + धूल प्रा० उद्भूल
३० भ्राम प्रा० भाम
। तालिअंट । तमाड
३१ नाश प्रा० नास
विउड नासव हारव विप्पगाम पलाव
३२ दर्श प्रा० दरिस
(दाव
(दक्खव
३३ उत् + घाट प्रा. उग्घाड
LEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE
३४ स्पृह
सिह
३५ सम् + भाव
आसंघ
३६
उत् + नम् प्रा० उन्नाव
। उत्थंघ
उल्लाल गुलुगुंछ
उप्पल
३७ प्र + स्थाप प्रा० पट्ठव
पट्टव पण्डव
वोक
३८ विज्ञप प्रा०
विण्णव
अबुक्क
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________________
३९
अर्प प्रा० अप्प
अल्लिव चच्चुप्प पणाम जव
४० याप प्रा. जाव ४१ प्लाव प्रा० पाव
आम्वाल
पव्वाल पक्खोड
४२ विकोश प्रा०
विकोस
४३ रोमन्थ
४४ कम प्रा० काम ४५ प्र+काश प्रा० पयाम ४६ कम्प ४७ आरोप प्रा० आरोव ४८ दोल ४९ रंज ५० घट प्रा० घड ५१ वेष्ट प्रा० वेढ ५२ क्री
वि+की प्राविकी
ओग्गाल वग्गोल णिहुव णुव्व विच्छोल वल रंखोल राव परिवाड परिआल किण
विकिण
बीह अली
५४
आ+ली
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--------------------------------------------------------------------------
________________
५५ नि+ली
५६ वि+ली
५७
५८
श्रु प्रा० सुण
५९ धू प्रा० पुण
६० भू
६२
६३
૬
६६
Ly
रु प्रा० रव
12
06)
"}
कृ प्रा० कर
कृ
६७ क्रु
६८ हैं
१९
कॄ
कृ
३३६
णिलीअ
णिलक
णिरिव
लुक
लिक
ल्हिक
बिरा
संज
कूंट
म्हण
चुव
h
हुव (शौ० भू, भुव)
भव)
हव णिव्वड (पृथगभवने, स्पष्टभवने च )
हुप्प ( प्रभवने )
कुण
णिआर ( काणेक्षितकरणे )
हि (निष्टम्भे )
संदाण (अवष्टम्भे )
वावश्क (श्रमकरणे ) णिव्वोल ( क्रोधपूर्व ओष्ठमालिन्ये ) पयल (शैथिल्यकरणे,
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--------------------------------------------------------------------------
________________
लम्बने च) णीलुंछ ( निष्पाते
आच्छोटने च) कम्म (क्षुरकरणे) गुलल ( चाटुकरणे )
७२ कृ ,
७४ स्मर प्रा० सर
झर
भर भल
विम्हर
सुमर
पयर
७५ वि+स्मृ
पम्हह पम्हुस बिहर वीसर
७६
व्या+ह प्रा. वाहर
७७ प्र+स प्रा० पसर
कोक, कुक्क पोक पयल उल्ल महमह (गन्धप्रसरणे) णीहर नील धाड वरहाड
७९ नि + सु प्रा० नीसर
प्रा० ४३
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--------------------------------------------------------------------------
________________
जग
८० जागृ प्रा० जागर ८१ व्या + पृप्रा० वावर ८२ सं + वृ प्रा० संवर
आजह
साहर साहट्ट
सन्नाम
८३ आ + दृ प्रा०
आदर . ८४ प्रहृ प्रा० पहर
अव + तु + ओअर
सार
ओह औरस
चय तर
तीर
पार
थक्क
फक श्लाघ खच पच
सलह वेअड सोल्ल पउल्ल छड्ड अवहेड
उस्सिक
अव
णिलंछ धंसाड
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--------------------------------------------------------------------------
________________
९२
" .
णिज्वल ( दुःखमोचने)
वेहय
वेलव जूरव उमच्छ
उग्गह अवह विडविड्ड
९५ समा + रच
उवहत्थ सारव समार केलाय सिंच सिंप
९६ सिच
९७ प्रच्छ ९८ गर्न
पुच्छ बुक्क
दिक्क (वृषगर्जने)
१०. राज
अग्ध छज्ज सह रीर
१०१ मस्न
आउड्ड णिउड्ड
बुद्ध
खुप्प
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--------------------------------------------------------------------------
________________
१०२ पुञ्ज
आरोल वमाल
जीह
ओसुक्क
१०४ तिन १०५ मृज प्रा० मज्ज
उग्घुस
ह
हुल
१०६ भञ्ज
रोसाण वेमय मुसुमूर
सूर
सड विर पविरंन करंज नीरंज पडिअग्ग
१०७ अबु + ब्रज
प्रा. अणुवञ्च १०८ अर्म १०९ युन
विढव जुज जुज्ज
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________________
११० · भुज
जिम
कम्म अण्ह समान चमढ चड्ड
कम्मव
१११ उप + मुंभ ११२ घट ११३ सम् + घट
गढ संगल मुर ( हासस्फुटिते)
११४ स्फुट
११५ मण्ड
चिंच चिंच चिंचिल्ल रीड टिविडिक
तोड तुट्ट खुट्ट
खुड
उखुड उल्लुक्क णिलुक
लुक
उल्लूर
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________________
६१७ पूर्ण
११८ वि+ वृत् प्रा.
विव ११९ क्वथ प्रा० कद १२० ग्रन्थ १२१ मन्थ
१२२ ह्लाद १२३ नि + सद १२४ छिन्द प्रा० छिंद
बुसल विरोल अवअच्छ णुमज्ज दुहाव णिच्छल णिज्योड णिव्वर
णिल्लूर
१२५
आ + छिद"
ओअंद
१२६
मृद
मद परिह खड्ड
चड्ड
मड्ड पन्नाड़
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--------------------------------------------------------------------------
________________
१२७ स्पन्द प्रा० फंद १२८ निर + पद प्रा० निष्पज्ज १२९ विसं + वद
चुलुचुल निव्वल
an
विअट्ट विलोट्ट
फंस
१३० शद
पक्खोड
णीहर
१३१ आ + क्रन्द १३२ खिद
जूर
विसुर
उत्थंघ
हक्क
१३३ रुथ प्रा० रुंध १३४ निषेध १३५ क्रुध प्रा० कुज्झ १३६ जन
जम्म
तड
१३७
तन
तड्ड
तड्डव
विरल
थिप्प अल्लिम
१३८ तृप १३९ उप + सूप १४० सं+ तप १४१ वि+ आप १४२ सम् + आप
झख
ओअग समाण
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--------------------------------------------------------------------------
________________
१४३ क्षिप
१४४
उत् + क्षिप
१४५ आ + क्षिप
१४६ स्वप
१४७ वेप
१४८ वि + लप
१४९ लिप
१५० गुप
૨૦૧
{
गलत्थ
अडक्ख
सोल
पेल
पोल
ྂ བྲ,ལླ་ླ
छुह
हुल
परी
गुलुगुञ्छ उत्थंघ
अल्लत्थ
उब्भुत
उसिक्क
हक्खव
णीरव
कमवस
लिस
लोड
लोट्ट
आयज्झ
झंख
वडवड
लिंप
विर
ड
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--------------------------------------------------------------------------
________________
३४५
अवहाव
१५१ कृप १५२ प्र + दीप
प्रा० पलीव
तेअव । संदुम
संधुक्क
अब्भुत्त
संभाव
१५३ लुभ १५४ शुभ
खउर
१५५
आ + रभ
आढव
REEEEEEEEEE
१५६
उपा + लभ
(झंख
पच्चार (पेलव
१५७ जृम्भ
विजृम्भ ( अम्भ)
१५८ नम १५९ वि + श्रम प्रा०
वीसाम
णिसुढ (भारपूर्वकनमने) णिव्वा
१६०
आ + क्रम
(ओहाव उत्थार
प्रा०४
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--------------------------------------------------------------------------
________________
३४६
१६१ भ्रम
टिरिदिल्ल ढुंढुल्ल दंढल्ल चकम भम्मड भमड भमाड तलअंट
१६२ गम्
अइच्छ अणुवज्ज अवज्जत
उक्कुस अक्कुस
पच्चड्ड पच्छंद णिम्मह णी
Page #447
--------------------------------------------------------------------------
________________
३४७
मीण
णीलुक
पद रंभ परिअल्ल वोल परिअल णिरिणास णिवह अक्सेह अवहर
१६३
आ + गम्
अहिपच्चुअ अभिड
१६४ सम् + गम्
१६५ अभ्या + गम्
उम्मत्थ
+
१६६ १६७
प्रत्या + गम् शम
पलोट्ट (पडिसा परिसाम
१६८ रम
संखुड्ड
ওমাৰ किलिकिंच
कोट्टम
मोट्टाय णीसर
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--------------------------------------------------------------------------
________________
१६९
पूर
अग्वाड সমৰ उद्भपा
अंगुम | अहिरेम
तुवर १ जअड । खिर
झर पज्झर
१७० त्वर
१७३
क्षर
णिजल
उत्थल्ल
१७४ १७५
उत् + छल वि + गल
थिप्प
१ गिद्दुह विसट्ट
१७६ दल
वल १७७ भ्रंश
वफ
फिड
१७८ नश
णिरणास
णिवह
अवसह पडिसा अवहर
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१७९ अव + काश १८० सं + दिश १८१ दश
ओवास अप्पाह বিসন্ত पेच्छ अवयच्छ अवयज्झ वज्ज सव्वव देख ओअक्ख अवक्ख अवअक्ख पुलो पुलअ नि अवपास पास फास फंस फरिस छिव छिह आलेख आलिह
१८२ स्पृश
रिअ
१८३ प्र+ विश १८४ प्र + मृश
प्र + सुष
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१८९ पिष
शिवह णिरिणास
णिरिणज रोञ्च
१८६ भष १८७ कृष
साअड्ड
अंच अणछ अयश्च आइज्छ अक्खोड ( असिकर्षणे) टुटुल्ल
१८८
."
१८९ गते
दढोल
१९० श्लिष प्रा0 सिलेस
गमेस घत्त सामग अवयास परिअंत चोप्पड आह अहिलंघ अहिलंख
१९१ म्रक्ष
१९२ काङ्ग
बच्च वंफ मह सिह विलुप
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________________
१९३. प्रति + ईक्ष
१९४ तक्ष
( सामय विहीर विरमाल तच्छ चच्छ रम्य रम्फ । कोआस । वोसट्ट
१९५ वि + कस
१९६ हस १९७ स्रंस
हिहस
डिंभ
१९८ त्रस
( डर
वोज्ज वज्ज
१९९ नि+ अस
5 णिम
। गुम
पलोट्ट
२०० परि + अस्
फ्लोट्ट
२०१ निः + श्वस २०२ उत् + लस
पल्हत्य झंख ऊसल जसुंभ जिल्लस पुलआअ गुजोल्ल आरोअ
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३५२
२०३ भास
भिस
घिस
२०४ ग्रस २०५ अव + गाह २०६ आ + रुह
ओवाह
। वलग्ग
२०७ मुह
गुम्म । गुम्मड
२०८
दह
। अहिऊल । आलुख
२०९
ग्रह
गेह
हर पंग निरुवार अहिपच्चुअ छिन्द भिन्द
२१६ छिद
२१७
जुज्झ
बुज्न गिज्झ
कुज्झ
सिज्झ मुझ
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२१९ सद
पत
२२०
क्वथ
२९७
वर्ध
२२१
वे
२२२ सं + वेष्ट
प्र + ईक्ष
મૈં
३९० ३९१ नू ३९२ व्रज
३९३ दृश
३९४ ग्रह
३९५ तक्ष
३५३
खडक
धुडक
झलक
चंप
सड
पड
क
वड
वेद
सं + वेल
आ + नक्ष प्रा० आयकल मा० आचस्क
केद्रलाक अपभ्रंश धातुओ
मागधीना धातु
प्रेक्ष प्रा० पेक्ख मा० पेस्क
=
हुच्च ( पर्याप्तौ )
ब्रुव
वुञ
प्रस
गृह
छोल
देश्य धातुओ
गू० खटक
११ धडक बुं
" झळक बुं
चांप
"
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ગુજરાત વિદ્યાપીઠ તરફથી પ્રકાશિત પુરાતત્ત્વ મંદિર ગ્રંથાવલી
પ્રાકૃત અને પાલી ભાષાના અભ્યાસ માટે
૬. પ્રાકૃત વ્યાકરણું.
૨. પ્રાકૃતકથાસ’ગ્રહ.
૩. પાલીપાડાવલી. ૪. અભિધાનપ્પદીપિકા
લે. ૫. ખેચરદાસ, જી, દોશી. ૪—૦-૦
૦-૧૨-૦
સ, મુનિ જિનવિજય
સ.
સ.
..
( પાલાંના શબ્દકોષ )
૫. અભિધમ્મર્ત્ય ગહેા. ૬. ધમ્મપદ ( મૂળ, અનુવાદ, કાષ ઇ. ) મ. ધર્માંનદ }ાસ બી અને અ, રા. વિ. પાઠક
૭ ઉપનિષત્ પાઠાવલી સ્`. અ. દ. ખા. કાલેલકર. ૮. સમ્મતિત પ્રકરણુ, તત્ત્વાધિની સાથે ભા. ૧:
,,
સ. અ. ધર્માનંદ કૈાસબી. ૨-૮
સ. પ, સુખલાલજી તથા ૫. બેચરદાસ. જી. દોશી.
ગુજરાતી પુસ્તક.
જ. આર્યવિદ્યાવ્યાખ્યાનમાળા.
૧૦. પ્રાચીન સાહિત્ય.
૧૧. આર્યોના હવારાના ઇતિહાસ, હૈ ઋગ્વેદી. ૧૨. મુદ્દલીલાસારસંગ્રહ લે. અ. ધર્માનંદ કૈાસી. ૧૩. ઔસધને! પરિચય,
૧૪. સમાધિમાર્ગ
23
ચામડાની પી.
અનુવાદકે શ્રીમહાદેવ દેશાઇ તથા શ્રીનરહિર ઠા. પરીખ,
"3
-૧૪-૩
૫-૦-૦
૧૫′ કાવ્યપ્રકાશ. અનુવાદ. . ૧~~૬. અનુવાદકા. રા. વિ. પાઠક, 24. ૨. છે. પરીખ.
.
૧-૦-૦
૦-૧૨-૦
૧૦-૦-૦
૨૦-૦
૨-૮-૦
૭-૧૨-૦
૩-૦-૦
2-6-0
૨-૦-૦
2-3-4
}
--6-o
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________________ છપાય છે. વૈદિક પાઠાવલી. (અનુવાદ સાથે) સં. અ, ર, છો. પરીખ પ્રાચીન ગુજરાતી ગદ્ય સંદર્ભ. સં. મુનિ જિનવિજય. સમ્મતિત. ભા. 2. સં. પં. સુખલાલજી તથા પં. બેચરદાસ તૈયાર છે. પુરાતત્ત્વ, પુસ્તક, 1 લું. પ-૧ર-મ પુરાતત્ત્વ- પુસ્તક. 2 જું. 5-12-o પુરાતત્ત્વ, પુસ્તક, 3 . પ-૧૨