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आ उपरांत ते बीजां सर्वादिशब्दजन्य ( यदा कदा विगेरे ) अव्ययो छे, तेनो उल्लेख तद्धित प्रकरणमां आवनारो है, खरुं
विचारिए तो
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कड्डुं
* कत्थई
* कन्दुई
* ककुथं
करसी * खड्डुओ * खेडुं
इयन्त इति संख्यान निपातानां न विद्यते
निपात
आगळ जणाच्या प्रमाणे देश्यप्राकृत ए, प्रस्तुत प्राकृतनुं एक अंग छे. तेमां जे जे शब्दोनो प्रयोग थएलो छे ते बधा शब्दो 'निपात' ने नामे ओळखाय छे. कारण के, ए शब्दोनी रचना, कोई जातनी व्युत्पत्ति के वर्णविकारनी अपेक्षा राखती नथी. किंतु ए, लौकिक संकेत अने उच्चारण उपर निर्भर छे. अहीं एवा-देश्यप्राकृतमा पराता केटलाक - निपातो आपीए छीए:
अर्थ-
अगया
अत्य (च्छ) कं
अलं
*313
* आसीसा
* उज्जलो
अमुरा:
अकाण्डम्
आपः
आशी:
उज्ज्वल:-बली
कुतूहलम्
क्वचित्
कन्दोत्थम्
""
ककुदम्
श्मशानम
क्षुल्लकः
वेलम्
अकाले.
दिन,
पाणी.
आशिष.
बलवान्.
कोड.
उत्पल.
घ.
क्रीडा.