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एकंदर रीते संस्कृत करतां पालिनी आख्यातप्रक्रिया सरळ के अने प्राकृतमां तो ए सविशेष सरळ के.
विभक्तिओं
वर्तमाना, सप्तमी, पंचमी, ह्यस्तनी, अद्यतनी, परोक्षा, आशी: ( आशिरर्थ ), श्वस्तनी, भविष्यन्ती अने क्रियातिपत्ति एम 'दस विभक्तिओ संस्कृतमां छे, पालिमा आशिरर्थं अने श्वस्तनीनो प्रयोग नथी अने प्राकृतमां पंचमी अने सप्तमी एक सरखी है, ह्यस्तनी, अद्यतनी अने परोक्षा एक सरखी छे, अस्तनी अने भविष्यन्ती एक सरखी छे एटले वर्तमाना, आज्ञार्थ - विन्यर्थ, भूतकाळ, भविष्यत्काळ अने क्रियातिपत्ति ए पांच ज विभक्तिओ क्रियापदने लगती छे. आख्यातने लगतो विभक्तिप्रयोग संस्कृतमां जे झणिक्थी करवामां आवे छे तेवी झीणवट पालि के प्राकृतमां नथी, पालिमा ए दरेक विभक्तिना प्रत्ययो जुदा जुढ़ा छे पण प्राकृतमां तो आगळ जणाच्या प्रमाणे ए पांच विभक्तिओमां ज संस्कृतनी बधी विभक्तिओ समाएली छे.
आ चालु प्रकरणमां आख्यात विषे अने केलांक कृदंत विषे समजाववानुं छे पण धातुओथी बनतां हरेक नामो विषे कांई कहेवानं नथी माटे ज धातुना उपयोगनो विभाग करतां अहीं जणाववामां आवे छे के साहित्यमां धातुओनो उपयोग खास करीने बे प्रकारे थलो छे: क्रियापदरूपे अने कुतरूपे,
१ पाणिनिना संकेत प्रमाणे ए दस विभक्तिओनां नाम आ प्रमाणे छेः लट्, विधिलिङ्, लोट, लद्द, लिट्, आशीलिंड्, लुटू लट्, लड्·, अने लुड्..