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प्रकरण १२
आख्यात संस्कृतभाषामा धातुओना अनेक प्रकार छे, जेमके, पेला गणना, बीजा गणना, चोथा गणना, छट्ठा गणना वगेरे. तेमां पण प्रत्येक गणमां धातुओना त्रण पेटा प्रकार छः परस्मैपदी, आत्मनेपदी अने उभयपदी. आम होवाथी संस्कृतमां धातुनां रूपाख्यानो अनेक प्रकारनां थाय छे. कारण के, तेमां प्रत्येक गणनी निशानीओ ( विकरण प्रत्ययो) जुदी जुदी छे, प्रक्रियाओ जुदी जुदी छे, आत्मनेपद तथा परस्मैपदना प्रत्ययो पण जुदा जुदा छे.
पालिमा केटलुक संस्कृतनी जे छ पण तेमां वैदिक संस्कृतनी पेठे आत्मनेपद अने परस्मैपदनो नियम अचोक्कस छे, प्राकृतमा तो आत्मनेपद अने परस्मैपदनो कोई नियम ज नथी. जो के प्राकृतमा वर्तमानकाळना केटलाक प्रत्ययों संस्कृतना आत्मनेपदी प्रत्ययो साथे पळता आवे छे पण ए प्रत्ययो दरेक धातुने लगाडी शकाय छे.
पालिव्याकरणमां' आपेला नियमो उपरथी समजी शकाय छे के, संस्कृतनी पेठे गणभेदने लोधे पालिमां ते ते धातुनां रूपो जुदा जुदां बने छे पण प्राकृत व्याकरणना नियमोमां तेम नथी. प्राकृतव्याकरणमां तो पेला गणना के चोथा गणना धातुनी एक सरखी प्रक्रिया छे, पण एटलं खरं के, ते ले धातुनां रूपो उपरथी सरस्खामणीने लीधे आपणे संस्कृतमां वपरातो ए वातुनो गण जरुर कळी शकी.'
१ अभी का-यायन पालिव्याकरण-आख्यातकल्प. २ दिव्यद (दीव्यति) चिणइ (चिनोति) जाणइ ( जानाति )