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________________ विवरण करतां नवांगी टीकाकार आचार्य अभयदेव ए प्रयोगमा आवेला 'णं' ने वाक्यालंकाररूपे माना ए प्रयोगने ' सप्तमी ' विभक्तिवाळो पण जणावे छे. आचार्य अभयदेवनी दृष्टिए ए पदोनो पदच्छेद आ प्रमाणे छः ' ते णं काले णं, ते णं समए थे''ते' इति प्राकृतशैलीवशात् ' तस्मिर' x x x ‘णं' कारोऽन्यत्रापि वाक्यालंकारार्थः, * * काले अवसर्पिणीचतुर्थविभागलक्षणे, x x x समये कालस्यैव विशिष्टे भागे "-जूओ भगवती सूत्र रा० पृ० १८ टीका, शाता० सूत्र टीका पृ० १ समिति, उपासकदशासूत्र टीका पृ० १ समिति. ए प्रयोगर्नु विवरण करतां आचार्य मलयगिरि पण आचार्य अमरदेवनी पेठे पूर्व प्रमाणे जणावे छः-जूओ सूर्यप्रतिनी टीका पृ०: १ समिति. आचार्य अभयदेव ए पदोन संस्कृत - लेन कालेन तेन समयेन' पण करे छे अने आ पक्षमां तेओं आ बाक्यमां तृतीयानो अर्थ घटावे छे पण 'तृतीया' ने स्थान ‘सप्तमी' होवाना सूचना करता नी -- " अथवा तृतीयैवेयम्, ततः 'तेन कालेन हेतुभूतेन, तेन समयेन हेतुभूतेनैव”-जूओ भगवतीसूत्र रा० पृ०.१८ टीका.' मा० ३१
SR No.008425
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGujarat Puratattva Mandir Ahmedabad
Publication Year1925
Total Pages456
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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