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क्रियापदरूपे वपराता धातुना रूपाख्यानन नाम 'आख्यात' छे अने कृदंतरूपे वपराता धातुना रूपाख्यानने 'नाम' कहेवामां आवे छे.
आख्यातरूपे वपराता धातुना रूपाख्याननी विविधता आ प्रमाणे :
कर्तरिरूप, कर्मणिरूप, भावेरूप ( महाभेद ), प्रेरककर्तरिरूप, प्रेरककर्मणिरूप, प्रेरकभावेरूप (प्रेरक सह्यभेद ) इत्यादि । . . __कृदंतरूपे वपराता धातुना रूपाख्यानना अनेक प्रकार आ रीते छः
वर्तमानकृदंत, प्रेरकवर्तमानकृदंत, कर्तृसूचकरूप, कतार । भविष्यत्कृदंत, प्रेरकभविष्यत्कृदंत ।
वर्तमानकृदंत, भविष्यत्कृदंत, प्रेरकवर्तमानकृदंत, भावे-सह्य भेद ।
प्रेरकभविष्यत्कृदंत, भूतकृदंत, विध्यर्थकृदंत, प्रेरक
") भूतकृदंत, प्रेरकविध्यर्थकृदंत । भावेरूप हेत्वर्थकृदंत अने संबंधकभूतकृदंत । ___ आ प्रकरणमा अही जणावेला क्रम प्रमाणे रूपाख्यानोनी समजूती आपवानी छे.
कर्तरिरूप प्राकृतमां धातुओनी वे जात छः व्यंजनांत धातु अने स्वरांत धातु १ व्यंजनांत धातुना छेक्टना व्यंजनमा 'अ'कार उमेराया पछी न
तेनां रूपाख्यानो थाय छे अने ए उमेरातो 'अ'कार विकरणरूप लेखाय हे