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२८ संक्षिप्तसारप्राकृतपाद क्रमदीश्वर आ० विधुशेखरनीना
पालिप्रकाशनी प्रस्ता
वना पृ० १६ टि. २९ प्राकृतव्याकरण शुभचंद्र . जोएलु छे
आ उपरांत शाकल्य, भरत, कोहल (मार्कंडेयर्नु प्राकृत सर्वस्व पृ. १ श्लो० ३) भोज अने पुष्पवननाथ (षड्भाषाचंद्रिकानी प्रस्तावना पृ० १७ टि० ) आ पंडितोए पण प्राकृत व्याकरणो लखेला छे.
जे व्याकरगोना नाम अहीं आप्यां छे एमांना फक्त ६ के ७ जोवामां आव्यां छे, नामो तो बधां - बंगीय विश्वकोश' अने • केटलोगस् केटलोगोरम'माथी लईने मूकलां छे.
आ पुस्तकमां पालिप्रकाशनो उपयोग बहु करवामां आव्यो छे तेथी एना कर्ता आचार्य विधुशेखरजी तरफ मारी पूरी कृतज्ञता छ, ए सिवाय ने सजनाए मने बहु मूल्य सूचनो कर्या छे तेओ वधा तरफ पण हुँ पूर्ण कृतज्ञ छु,
आ पुस्तकमां खास करीने प्राकृतभाषा संबंधे ज सविशेष लख. वामां आव्यु छे अने बीजी बीजी भाषाओने लगता मात्र विशेष नियमो न दर्शाव्यां छे, उदाहरणो दर्शाव्यां छे खरां पण ते प्राकृत जेटलां नहि. अपभ्रंशने समजवा माटे सविशेष शब्दो अने उदाहरणो जरुर मूकवां जोइए पण स्थानाभावने लीधे अहीं तेम नथी बनी शक्यु.
माकृत भाषाना प्रथम अभ्यासीए प्रथम प्राकृत भाषाना ज नियमो तरफ विशेष लक्ष्य राखQ अने पछी बीजा वाचन वखते बीजी वीजी भाषाओने साथे लेची.