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________________ "र-सो-लेशौ मागध्याम् ' इत्यादि यत् मागधभाषालक्षणं तेन अपरिपूर्णा प्राकृतभाषालक्षणबहुला अर्धमागधी" । .. ( औषपातिक टीका पृ० ७८ समिति) अभयदेवे आगमोनी भाषा उपरथी नक्की करेलु अर्धमाग-- धीन स्वरूप जोता तो : अर्धमागधी' नाम 'देवादार 'ना 'रणछोड ' ( ऋणने छोडनार ) नाम जेवू लागे छे. तेओ साफ साफ 'कहे छे के, आगमोनी भाषा प्राकृतलक्षणनी बहुलतावाळी छे अने एक लक्षण सिवाय मागधीनां बीजां खास लक्षणोने एमां काइ स्थान नथी, एथी ज वांचनार समजी शकशे के, वर्तमान आगमानी भाषाने अर्धमागधी कहेवी के प्राकृत कहेवी ? .. आगमो प्राकृत छे' ए मत तो आज घणा समयथी चाल्यो आवे छे अने हेमचंद्र अने अभयदेव करतां य प्राचीन अने प्रामाणिकः आचार्योए ए मतने स्वीकारेलो छे. ए संबंधमा आचार्य हरिभद्र जणावे छे के, “ प्राकृतनिबन्धोऽपि बालादिसाधारणः " इति १ दशवकालिकनी टीकामां जे प्रसंगे आचाय हरिभद्रे आ उल्लेख कयों छे ते प्रसंग आ. छः " दर्शनाचारना आठ प्रकार छे, तेमां पेहेलो प्रकार निशिंकित रहे ते, 'निःशंकित'नुं विवरण करतां कह्यु छ के, शंकाना बे प्रकार छे-सर्वशंका अने देशशंका. सर्वशंका एटले सर्व प्रकारे शंका अने देशशंका एटले अंशथी शंका. तेमां ' सर्वशंका 'नु स्वरूप बतावतां जणायु छ के, "सर्वशङ्का तु प्राकृतनिबद्धत्वात् सर्वमेवेदं परिकल्पितं भविष्यतीति।" अर्थात् 'प्राकृत भाषामां रचेलं होबाथी आ बधु य बनावटी केम न होय ?' आवी जे जिनागम प्रत्ये शंका करवी ते सर्वशंका, आनु समाधान करता हरिभद्रे उपर्युक्त उल्लेखने टांकी बताव्यो छे.
SR No.008425
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGujarat Puratattva Mandir Ahmedabad
Publication Year1925
Total Pages456
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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