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बाकी बधां रूपो ते ते भाषा प्रमाणे · वीर ' नी जेवां थाय छे.
ए रीते गुण, देव, सोमव (सोमपा), गोव (गोपा), कररुह, 'सिर (शिरस् ), नभ, नह (नभस् ), दाम (दामन्), सेय (श्रेयस् ), क्य ( वचस्-वयस् ), सुमण ( सुमनस् ), सम्म ( शर्मन् ), चम्म ( चर्मन् ) वगेरे शब्दोनां रूपो जाणी लेवानां छे.
अपभ्रंश नान्यतरजातिनां रूपाख्यानोनी अपभ्रंशमा जे खास विशेषता छे ते आ प्रमाणेः १ प्रथमा अने द्वितीयाना बहुवचनमा प्राकृतनी पेठे अण प्रत्ययो
न लागतां मात्र एक • ई' प्रत्यय लागे छे अने एनी पूर्वनो
स्वर विकल्पे दीर्घ थाय छे. २ जे नान्यतर शब्दने छेडे ' क ' प्रत्यय लागेलो होय तेने प्रथमा
अने द्वितीयाना एकवचनमा ‘' प्रत्यय लागे छे.
१ जे शब्दो 'अस्' अने 'अन्' छेडावाळा छे ते प्राकृतमा नरजातिना भणाय छ (पृ. १२३-नामनी जातिओ) पण पालिमां एवा ' अस छेडावाळा शब्दोने (मनोगणने) नरजातिना अने नान्यतरजातिना गणवामां आव्या छेः पालिप्र. पृ० १३३-१३४ अने तेनु टिप्पण.
प्राकृतमा अने पालिमा ए 'अस्' अने 'अन्' छेडावाळा शादोनां बघां रूपो 'वीर' अने 'कुल' नी जेवां थाय छे तो पण आर्षप्राकृतमां अने पालिमा ए शब्दोनों केटलांक रूपो 'वीर' अने 'कुल' थी जुदां थाय छे. जेमके;
मण, मन (मनस् ) पालि आर्षमा
संस्कृत नक ५० ए. मनसा तु. ए. मणसा (मनसा)
पं. प. मणको (मनसः)