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ए प्रकारे धातुमानां प्रेरक अंगो तैयार करी लेवानां छे. ३ उपांत्यमां गुरु स्वरवाळा (स्वरादि वा व्यंजनादि ) धातुने उपर जणावेल प्रत्ययो उपरांत विकल्पे ' अवि ' प्रत्यय लगाइवाथी पण तेनुं प्रेरक अंग तैयार थाय छे:
प्रेरक अंगो
धातु
तुष्-तोषि--तोसि -
त्रुष्-घोषि - घोसि --
मुष्- मोषि- मोसि
दुष्- दूषि - दूसि
दोसि
दुहू-दोहि
मुह-मोहि
भक्षू - भक्षि-भक्खि
तक्ष- तक्षि-तक्खि
पार - पारि-
चिल्ला-चिल्ल
ܢ
जीव-जीवि
लुञ्च्–लुञ्चि-लुंचि - शुष्-शोषि-सोसि
चूष - चूषि-सि
तोसवि, तोस, तोसे, तोसाव, तोसावे । घोसव, घोस, घोसे, घोसाव, घोसावे ।
मोसवि, मोस, मोसे, मोसाव, मोसावे । दूसवि, दूस, दूसे, दूसाव, दूसावे । दोसवि, दोस, दोसे, दोसाव, दोसावे । दोहवि, दोह, दोहे, दोहाव, दोहावे । मोहवि, मोह, मोहे, मोहाव, मोहावे । भक्खवि, भक्ख, भक्खे, भक्रखाव, भक्खावे । तक्खवि, तक्ख, तक्खे, तक्खाय, तक्खावे । पारवि, पार, पारे, पाराव, पारावे । चिल्लवि, चिल्ल, चिल्ले, चिल्लाव, चिल्लावे । जीववि, जीव, जीवे, जीवाव, जीवावे । लुंचवि, लुंच, लुंचे, लुंचाव, लुंचावे | सोसवि, सोस, सोसे, सोसाव, सोसावे. चूतवि, चूस चूसे, चूसाव, चूसावे ।
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इत्यादि
ए रीते उपांत्यगुरुवाळा वातुओनुं प्रेरक अंग बनावी लेवानुं छे.
४ भ्रम ( भ्रम ) धातुनुं प्रेरक अंग ' भ्रमाड ' पण थाय छे: भम भमाङ, माम, मामे, भमाव, भमावे 1