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प्राकृत-व्याकरण.
प्रकरण १
वर्णपरिचय प्राकृत भाषाओमां नीचे प्रमाणे स्वरो अने व्यंजनो वपराय छे. 'स्वर---
- अ, इ, उ. ( हूस्व) आ, ई, ऊ, ए, ओ, ( दीर्घ)
१ प्राकृतमा 'ऋ' नो विकार अ, इ, के उ थाय छे अने 'लु' नो विकार ' इलि' थाय छे माटे ए बे स्वतंत्र स्वर नथी. 'ऐ' नो विकार 'ए' के ' अइ ' थाय छे अने ' औ' नो विकार 'ओ' के 'अउ' थाय छे तेथी ए बे पण स्वतंत्र स्वर नथी.
२ 'एको' 'सेव्वा' 'सोतं' 'सो चिअ' वगेरे शब्दोमा आवेला 'ए' अने 'ओ' एकमात्रिक छे एम आचार्य शुभचंद्र जणावे छः (-शुभचंद्रनुं प्राकृत व्याकरण अ० १-२-४०-लिखित पृ० ४) आ उपरथी 'ए' अने 'ओ'नी एकमात्रिकता पण व्याजबी जणाय छे. उच्चारणनी दृष्टिए तो द्विर्भावने पामेला व्यजननी पूर्वनो द्विमात्रिक स्वर एकमात्रिक ज होवो जोइए; अन्यथा एवे ठेकाणे आवेला द्विमात्रिकनो उच्चार ज द्विमात्रिकनी रीते थइ शकतो नथी. आचार्य हेमचंद्र जणावे छे के, कोइ वैयाकरणो प्राकृतमां पण 'ऐ' अने ' औ 'ना उपयोगने इष्ट गणे छ (८-१-१) आचार्य हेमचंद्र पण ' अयि 'ना प्राकृतरूप 'ऐ' ने सम्मल गणे छे ( ८-१-१६९) तो पण तेमने ए सिवाय क्यांय 'ऐ' अने ' औ' नो व्यवहार इष्ट नथी,
प्रा. १