________________
રરર
कतरिकृदंत' धातुने 'इर' प्रत्यय लगाडवाथी तेनुं कर्तृसूचक कृदंत बने छेः हस-इर-हसिरो (हसनार ), हसिरा, री (हसनारी), हसिरं
(हसनारुं)। हसाव-इर--हसाविरो (हसावनार)-रा, री ( हसावनारी), रं
(हसावनारुं)। त्वर-उर-तुरिरो (त्वरा करनार) इत्यादि.
कर्तृसूचक कृदंतनी साधना, कर्तृसूचक कृदंतनां संस्कृत सिद्ध रूपो उपरथी पण थाय छे: पाचक:--पायगो, पायओ । नायक-नायगो, नायओ । नेता-नेआ। कर्ता-कत्ता । वक्ता-वत्ता । भर्ता-भता । कुम्भकारः-कुंभआरो। कर्मकरः कम्मगरो । स्तनधयः--थणंधयो । परंतपः-परंतवो ।
लेखक:-लेहओ इत्यादि । कतरिकृदंत ( अपभ्रंश) प्राकृतमा वपराएला ‘इर' ने बदले अपभ्रंशमां · अण' प्रत्यय लगाडवाथी कर्तृसूचक कृदंत बने छ :
मार + अणअ = मारणअ = मारणउ - मारक : बोल्ल - अगअ = बोलणअ = बोल्लगर - वाचक:
१ कर्तरिकृदंतनुं रूप बनाववा माटे पालिमां प्राकृतना 'इर' ने पद ले केटलाक खास धातुथी 'अ' प्रत्यय वपराय छे अने एज अर्थसूतकालने का साधवा माटे साधारण रीले 'सावी' प्रत्यार वापराप छ:--
3-- विदू ( वेत्तः) स्त्री विदुनी. तावी- भुत्तावी (भुक्तवान् ) स्त्री. भुत्ताविनी.
-पालिप्र० पृ० २५०-२५१.