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________________ 3 सरि पारि जपिरे कीरे कुमारो पोइ || दक्खिन्नदाणपारुस - विन्नाण दयाविवज्जियसरीरे । ' एहं तेह उण पेच्छइ कुमरो || 3 चवंते ढके सललियमिउमद्दवए गंधव्व पिए सएसायचित्ते । ' से दइणो' भणिरे सुहसे अह धत्रे दिट्ठे || कवेंजडे ( ? ) य जड्डे बहुभोई कढिपीरूणंगे । 'अम्मां तुप्पां' भणिरे अह पेच्छइ कारु तत्तो ॥ संधिविग्ग C घयलोणिय पुगे धम्मपरे उणे | न उ रे भलडं ' अह पेच्छइ गुज्जरे अवरे || भणिरे व्हा ओलित्तविलित्ते कयसीमंते सोहियंगत्ते । २२ अने जाडी नासिकावाळा, भार वहनारा अने ' सरि पारि' एवं बोलनारा होय छे. पछी उक्क देशना लोकोने - जोया, ए लोको दाक्षिण्य, दान, पौरुष, विज्ञान अने दया विनाना होय छे अने ' एहं तेहं ' एम बोलनारा होय छे. ए पछी सिंधना लोकोने जोया, लोको ललित, मृदु, गांधर्वप्रिय, स्वदेशपरायण, हसमुखा अने 'से " एम बोलनारा होय छे. दो S पछी कारुदेशना लोकोने जोया, ए. लोको कपिंजल (?) जड्डु, बहुभोजी, कठण अने पुष्ट अंगवाळा तथा 'अप्पां तुप्पां' एम बोलनारा होय छे. पछी गुर्जरलोकोने जोया, ए लोको घी अने माखणथी पुष्ट शरीरवाळा, धर्मपरायण, संधि विग्रहमां निपुण अने न उरे भल्लउं ' एम बोलनारा होय छे. पछी लाटना लोकोने जोया, ए लोको (माथामा ) थो
SR No.008425
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGujarat Puratattva Mandir Ahmedabad
Publication Year1925
Total Pages456
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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