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अर्थात् ' संस्कृत अने प्राकृत बे भाषाओ छे.''
आ उल्लेख गीतनी भाषाना प्रसंगमा छे. आ उपरथी एटलुं तो जरुर तारवी शकाय के, अनुयोगद्वारना समयमां अर्धमागधीने प्राकृतथी जुदी ज गणवामां आवती होत तो सूत्रकार प्राकृतनी साथे ज पोतानी प्रिय अने देवभाषा तरीके प्रसिद्धि पामेली अर्धमागधीने पण सूचववी भूले खरा ?
आ प्रमाणे एक नहि पण अनेक जैनाचार्योए वर्तमान आगमोनी भाषाने स्पष्ट शब्दमा प्राकृत कहेली छे माटे अमे पण अहीं ए ज मतने स्वीकारेलो छ, अने तेथी ज प्रस्तुत व्याकरणमां पण जैन आगमोना केटलांक विशिष्ट रूपोने प्राकृतना व्याकरण साथे ज नोंधेला छे.
आ तो जैनाचार्योनी न दृष्टिए आगमोमां आवेली भाषाना संबंधमा चर्चा थइ, तदुपरांत बीजी त्रण दृष्टिए पण अर्धमागधी भाषानी चर्चा थइ शके छे. तेमां
पहेली दृष्टि भरतना नाट्यशास्त्रनी, बीजी दृष्टि प्राकृत भाषानां व्याकरणोनी अने त्रीजी दृष्टेि अशोकनी धर्मलिपिओनी. भरतना नाट्यशास्त्रमा कडं छे के, " चेटानां राजपुत्राणां श्रेष्ठिनां चार्धमागधी"
भरतना० अध्याय १७ श्लो० ५० नाटकोमा पात्र तरीके आवता चेटो, राजपुत्रो अने शेठियाओ अर्धमागधी भाषा बोले छे. भरतना आ उल्लेखथी आपणे नाटकोनां ते ते पात्रोनी भाषाद्वारा अर्धमागधीना स्वरूपने कळी शकीरों.
नाटकोनी भाषाना नमूना---