________________
१२९ अपभ्रंश-प्रत्ययने लगता नियमो पढमा । ज्यां शून्य छे त्यां अपभ्रंशमां प्रथमा अने द्वितीया बीआ विभक्तिमा ( एकवचन अने बहुवचनमा ) अकारांत नाम
आकारांत थइने वपराय छे अने एमने एम पण वपराय छे. तथा प्रथमाना एकवचनमां पुंलिंगी अकारांत नाम
प्राकृतनी पेठे ओकारांत थइने पण बपराय छे. चउत्थी) ज्यां शन्य छे त्यां मूळ अंग जेमन तेम वपराय छछी छे अने दीर्वात थइने पण वपराय छे. सत्तमी-ज्यां शून्य छे त्यां मूळ अंग इकारांत अने एकारांत थइने
वपराय छे. संबोहण--ज्यां शून्य छे त्यां संबोधननां बधों रूपाख्यानो प्रथमा
विभक्ति जेवां समजवानां छे.
अपभ्रंश-प्रत्यय लागतां अंगमां थता फेरफारो । तइया-तृतीया विभक्तिना प्राकृत प्रत्ययो लागतां मूळ अंगमां के
प्रत्ययोमा जे फेरफार थाय छे ते न फेरफार अपभ्रंशना ए प्रत्ययो लागतां पण समजवानो छे अने ए उपरांत तृतीयाना बहुवचननो प्रत्यय लागतां मूळ अंग आकारांत थाय छे
अने एमनुं एम पण वपराय छे. चउत्थी । चोथी, पांचमी अने छट्ठी विभक्तिना एकवचनना पंचमी (अने बहुवचनना प्रत्ययो लागतां मूळ अंगना अंत्यस्वरनो छठ्ठी (दीर्घ विकल्पे थाय छे तथा सातमीना बहुवचननो ज सत्तमी । प्रत्यय लागतां पण मूळ अंगमां पूर्वोक्त फेरफार थाय छे. संबोहण-अपभ्रंशनुं ( एकवचन अने बहुवचन- ) संबोधनी रूप
प्रथमानी पेठे समजवानुं छे अने बहुवचननो 'हो' प्रत्यय लागतां मूळ अंगना अंत्य स्वरनो दीर्घ विकल्पे थाय छे.