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भूतकाळ (स्वरांत अने व्यंजनांत धातुने लागता प्रत्ययो)
१ संस्कृतमां भूतकाळना त्रण प्रकार छे, जेमके-यस्तनभूत, अद्यतनभूत अने परोक्षभूत. ए त्रणे काळना प्रत्ययो अने प्रक्रिया पण संस्कृतमा तद्दन जूदां जूदां छे. परंतु प्राकृत, शौरसेनी, मागधी, पैशाची के अपभ्रंश भाषामां तेम नथी. तेमां तो ते त्रणे काळ माटे एक सरखा ज प्रत्ययो छे, एटलुंज नहि पण ते त्रणे काळना, त्रणे पुरुषोना अने त्रणे वचनोना पण एक सरखा ज प्रत्ययो छे अर्थात् भूतकाळनी प्रक्रिया के रूपमा प्राकृत, शौरसेनी वगेरे भाषामां क्यांय कशो भेद जणातो नथी.
प्राकृत, शौरसेनी, मागधी, पैशाची अने अपभ्रंशमां भूतकाळना ए प्रत्ययो आ प्रमाणे छे:
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२ पु० ई (व्यंजनांत धातुने लागतो प्रत्यय) ३ पु०) __, सी, ही, हीअ (स्वरांत धातुने लागता प्रत्ययो)
१ कोईनो मत एवो छ के, वर्तमानकाळनी पेठे भूतकाळमां पण 'ज' अने 'जा' प्रत्यय वपराय छेः-होज, होजा-(अभूत्)
२ पालिमां त्रीजा पुरुषना एकवचनमा 'ई' अने 'इ' एम वे परस्मैपदी प्रत्ययो छे अने ए, प्राकृतना — ईअ ' प्रत्यय साथे मळता आवे छेः पालिप्र० पृ. २१७ नि० १७६
३ पालिमा श्रीजा पुरुषना अने बीजा पुरुषना एकवचनमां परस्मैपदी 'सि' प्रत्यय वपराएलो छे अने ए, प्राकृतना 'सी' प्रत्यय साथे मळतो आवे छे. जेम प्राकृतमां त्रणे पुरुषमा एक सरखो 'सी' । प्रत्यय स्वरांत धातुने लगाडवामां आवे छे तेम पालिमां त्रणे पुरुषमा एक सरखो 'सि' प्रत्यय स्वरांत धातुने लगाडवामां आवे छे. मात्र पालिनो ए 'सि' प्रत्यय प्रथम पुरुपना एकवचनमां अनुस्वारवाळो (सिं) वपराय छे एटलो ज भेद छः पालिप्र० २१८ नि० १७९